रविवार, 21 अगस्त 2011
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गाड़ी खड़ी करके हम सब अंदर अपने कमरे में आकर अपने-2 बिस्तर पर लेट गए, दिन भर के सफ़र से थकान होने के कारण बिस्तर पर लेटे-2 कब नींद आ गई पता ही नहीं चला ! रात को बढ़िया नींद आई, इसलिए सुबह आराम से सोकर उठे और अपने नित्यक्रम में लग गए ! आज 21 अगस्त है और धनोल्टी में हमारा आख़िरी दिन भी, आज कहीं घूमने जाने की जल्दबाज़ी तो थी नहीं, पर समय से मसूरी के लिए निकलना था ताकि दिन में बढ़िया से मसूरी की सैर कर सके ! अपनी योजना के मुताबिक हम लोग एक रात मसूरी में बिताने वाले थे, नहा-धोकर तैयार होने के बाद फटाफट अपने कमरे के नीचे बरामदे में नाश्ता करने पहुँच गए ! समय देखा तो सुबह के 8 बजकर 45 मिनट हो रहे थे, थोड़ी देर में ही हमारे लिए नाश्ता भी आ गया, नाश्ता करने के बाद हमने होटल का हिसाब-किताब करके बकाया राशि का भुगतान किया और कमरे में से अपना सामान निकाल कर बाहर गाड़ी में रखने लगे ! साढ़े नौ बजते-2 हम लोग अपना सारा सामान गाड़ी में रखकर चलने के लिए तैयार हो गए !
आज धूप अच्छी खिली थी, पर हवा चलने की वजह से मौसम में ठंडक बरकरार थी ! धनोल्टी को अपना आख़िरी सलाम देने के साथ ही जीतू ने गाड़ी मसूरी की ओर मोड़ दी ! यात्रा शुरू हुए ब्मुश्किल 10 मिनट ही हुए होंगे कि अचानक परमार को दूर घाटी में कहीं बर्फ के पहाड़ दिखाई दिए ! उसने हम सबको इस बात से अवगत कराया तो जीतू ने इन पहाड़ों को देखने के लिए गाड़ी सड़क के एक किनारे रोक दी ! सभी लोग गाड़ी से बाहर निकल आए और बर्फ के उन पहाड़ों को देखने लगे, जयंत और परमार को तो वो बर्फ की पहाड़ी बिल्कुल साफ दिखाई दे रही थी पर मुझे और जीतू को अभी तक बर्फ की पहाड़ी नहीं दिखाई दे रही थी ! एक बार तो हमें लगा कि जयंत और परमार मज़े लेने के लिए बर्फ के पहाड़ दिखाई देने का झूठा दावा कर रहे है, पर फिर काफ़ी मशक्कत के बाद हमें भी वो पहाड़ दिखाई देने लगे ! इन पहाड़ों का रंग भी सफेद होने के कारण अब तक हम दोनों इन्हें बादल समझ रहे थे !
यही वजह है कि हम दोनों इन पहाड़ों को नहीं देख पाए थे, पर अब सब कुछ बिल्कुल साफ हो गया था ! बिना दूरबीन के खुली आँखों से बर्फ के इन पहाड़ों को देखना भी अपने आप में एक अलग ही खुशी देता है, इतने करीब से और नंगी आँखों से मैने बर्फ के पहाड़ों को पहले कभी नहीं देखा था ! जिस दिन हमने तपोवन की चढ़ाई की थी, उस दिन हम काफ़ी उँचाई पर थे पर फिर भी हमारा ध्यान इन पहाड़ों की ओर नहीं गया ! पता नहीं ये पहाड़ उस दिन भी दिखाई दे रहे थे या नहीं ! खैर, बहुत देर तक उन पहाड़ों को देखने और सैकड़ों फोटो अपने कैमरे में क़ैद करने के बाद हम लोगों ने फिर से अपनी मसूरी की यात्रा जारी रखी ! मैने अपने पिछले लेखों में लिखा भी है कि पहाड़ों पर ऐसे विहंगम दृश्य तो अक्सर दिखाई देते ही है जो आपको अपनी ओर बाँधे रखने का माद्दा रखते है, पर किसी विद्वान ने कहा है कि पहाड़ों और जंगलों में जितना घूमोगे उतने बढ़िया नज़ारे देखने को मिलेंगे !
बस इसी नियम का पालन करते हुए हम लोग आगे मसूरी की ओर बढ़ गए ! सुबह की ताज़ी हवा शरीर के साथ-2 मन को भी तरोताज़ा कर रही थी, जीतू के पास नए-पुराने गीतों का ऐसा मिश्रण था जो इस मौसम में एक अलग ही समाँ बाँध रहा था ! मसूरी जाते हुए रास्ते में सड़क के दोनों ओर कई छोटे-बड़े गाँव आए, पहाड़ी रास्तों पर तो जहाँ 20-25 घर बने, उसे ही एक गाँव का नाम दे दिया गया है ! रास्ते में हमें फिर से एक जगह भू-स्खलन की वजह से मार्ग बाधित मिला, पर हम लोग सकुशल वहाँ से निकल गए ! एक जगह तो ऐसा भी आया जहाँ पहाड़ी को बीच में काट कर रास्ता बनाया गया है, मतलब सड़क दोनों तरफ से पहाड़ी से घिरी हुई है ! ऐसी खूबसूरत जगह और जीतू गाड़ी ना रोके, ऐसा हो ही नहीं सकता ! जीतू ने एक बार फिर अपनी गाड़ी सड़क के किनारे रोक दी और हम सब नीचे उतरकर फोटो खीचने में लग गए ! यहाँ भी एक दिक्कत हो गई, बर्फ के पहाड़ों की फोटो लेते समय जयंत ने अपने कैमरे के लेंस बदल दिए थे ताकि दूर तक के दृश्यों को आसानी से ले सके !
ये लेंस अब पास के दृश्यों को क़ैद नहीं कर पा रहे थे, इसलिए सड़क के दोनों ओर के पहाड़ चित्र में दिखाई नहीं दे रहे है ! यहाँ भी 10-15 मिनट की मस्ती करने के बाद हम लोग फिर से आगे मसूरी के लिए चल दिए ! इस बार गाड़ी में बैठने के साथ ही जयंत ने फिर से अपने कैमरे के लेंस बदल दिए ताकि पास के दृश्यों को आसानी से क़ैद कर सके ! दोस्तों के साथ इस मस्ती के पल में मुझे "ज़िंदगी ना मिलेगी दोबारा" के दृश्य याद आ रहे थे, वैसे हमारा मन भी कितना चंचल है जो पल भर में ही कहाँ से कहाँ पहुँच जाता है ! मैं अपने ख्यालों में खोया हुआ था कि रास्ते में हमें सड़क के किनारे विदेशी सैलानियों का एक समूह दिखाई दिया ! वे लोग पैदल ही थे, और वहीं खड़े होकर अपने कैमरें में तस्वीरें क़ैद कर रहे थे ! मैं गाड़ी में बैठा हुआ खिड़की में से दूर तक दिखाई देता नीला आसमान देख पा रहा था ! पहाड़ों पर प्रदूषण कम होने की वजह से नीला आसमान और दूर तक का नज़ारा बिल्कुल साफ दिखाई दे रहा था !
रास्ते में कुछ ऐसे खूबसूरत नज़ारे भी देखने को मिले जिन्हें देख कर यशराज चोपड़ा की फिल्मों की याद आ गई ! मन ही मन मैने सोचा, ना जाने क्यों यश चोपड़ा इस खूबसूरती को छोड़ कर अपनी फिल्मों के लिए यूरोप जाते है ! जब हमारे भारत में ही इतनी खूबसूरत जगहें है तो कहीं बाहर जाने की क्या ज़रूरत है ! खैर, ये उनका व्यक्तिगत मामला है, उनके पास पैसे है तो वो विदेश जा रहे है, और हमारे पास उतने पैसे नहीं है तो हम यहीं स्वदेश में घूम रहे है ! ऐसे ही मनभावन नज़ारों को देखते हुए जीतू ने फिर से गाड़ी रोक दी, यहाँ पर एक बात मैं आपको बताना चाहूँगा कि ऐसी यात्राओं पर अपनी गाड़ी होने का ये तो बहुत ही बढ़िया फ़ायदा है कि जहाँ मन किया गाड़ी रोक कर देखने लगे प्राकृतिक नज़ारे ! वरना बसों में बैठ कर आप कहाँ-2 उतरोगे और कितनी बसें बदलोगे ! यहाँ भी 10-15 फोटो खींचने के बाद हम लोग फिर से अपनी मंज़िल की ओर चल दिए !
अब हम लोग मसूरी से ज़्यादा दूर नहीं थे, यहाँ से हमारा रास्ता दो हिस्सों में बँट रहा था, हम लोगों ने जयंत की समझदारी की वजह से यहाँ ग़लत रास्ता चुन लिया ! हम लोग लैंडोर होते हुए मसूरी जा रहे थे जो काफ़ी संकरा और भीड़-भाड़ वाला है ! ये रास्ता शहर के बीच में से होता हुआ मसूरी जाता है जबकि बाहरी रास्ता खुला और कम भीड़-भाड़ वाला है ! पर एक कहावत है ना कि जब ओखली में सिर दे दिया तो मूसर से क्या डरना ! जयंत ने इस रास्ते को चुनते हुए तो कहा था कि ये रास्ता बहुत अच्छा और छोटा है ! क्योंकि वो पहले भी इस रास्ते से आ चुका है, पर आगे बढ़ने पर हमें जानकारी के अभाव में सही रास्ता पकड़ने के लिए स्थानीय लोगों की मदद लेनी पड़ी ! जैसे-तैसे करके हम लोग मसूरी पहुँचे, पर आज रविवार होने की वजह से मसूरी में बहुत भीड़ थी ! दिल्ली के नज़दीक होने के कारण यहाँ सप्ताह के अंत में काफ़ी भीड़ हो जाती है, ऐसा लगता है सारी दिल्ली उठकर यहीं मसूरी चली आती है !
मसूरी के मुख्य बाज़ार में घुसने के लिए जितने भी चेक पोस्ट (नाके) है सब जगह यातायात को नियंत्रित करने के लिए स्थानीय पुलिसकर्मी खड़े रहते है ! गाड़ी लेकर अंदर जाने पर आपको हर बार 100 रुपए देने पड़ते है और शाम को 5 बजे के बाद तो अंदर गाड़ी लेकर जा भी नहीं सकते ! मतलब अगर आप गाड़ी लेकर कहीं घूमने जाओ तो 5 बजे से पहले वापस मसूरी के माल रोड़ पर प्रवेश कर लो, वरना आपको गाड़ी कहीं बाहर ही खड़ी करनी पड़ेगी ! आप जितनी बार भी अंदर आएँगे, आपको 100 रुपए देने ही पड़ेंगे, मुझे तो ये बहुत बुरा नियम लगा, भाई एक ही दिन जाकर अगर कोई वापस आता है तो काहे के 100 रुपए देगा ! हमने भी 100 रुपए अदा करके अंदर माल रोड़ में प्रवेश किया, वैसे यहाँ की सड़कें तो इतनी संकरी नहीं है पर गाड़ियाँ ज़्यादा होने की वजह से हमेशा ही जाम की स्थिति बनी रहती है ! पार्किंग स्थल ढूँढने के लिए भी आपको काफ़ी घूमना पड़ता है ! बाज़ार में एक जगह जलेबी देख कर जयंत बोला, यहाँ की दूध और जलेबी बहुत बढ़िया है, चलो आज दूध-जलेबी का स्वाद चखते है !
दोपहर हो गई थी और सुबह के पराठे भी पच चुके थे, फिर रही-सही भूख जलेबी देख कर बढ़ गई ! इस पर जीतू बोला, भाई भूख तो सभी को लग रही है पर पहले कहीं गाड़ी खड़ी करने का इंतज़ाम कर लेते है उसके बाद जो खाना हो वो खा लेना ! ऐसी भीड़-भाड़ में गाड़ी रोक कर जलेबियाँ भी तो नहीं खा सकते थे ! मसूरी पहुँचने के बाद रहने के लिए होटल ढूँढना भी बहुत बड़ी समस्या थी, गाड़ी लेकर हर जगह घूमा नहीं जा सकता था, इसलिए गाड़ी को एक जगह रोक कर पैदल जाकर ही अपने रुकने के लिए होटल ढूँढने का विचार बना ! हम गाड़ी खड़ी करने के लिए जगह ढूँढ ही रहे थे कि तभी एक एजेंट हमसे टकरा गया, पूछने लगा रुकने के लिए होटल चाहिए क्या? हमने कहा नेकी और पूछ-2, दिखा दे भाई होटल, पसंद आ गया तो रुक जाएँगे, वरना ढूँढ तो हम रहे ही है ! वो एजेंट हमें जिस होटल में लेकर गया वो मुख्य बाज़ार के एक किनारे पर जाकर काफ़ी उँचाई पर था, हम लोग गाड़ी लेकर उस एजेंट के पीछे-2 चल रहे थे !
ऐसे पहाड़ी स्थलों पर ऐसे होटल जो मुख्य सड़क से हटकर होते है वो अक्सर इन दलालों के माध्यम से ही पर्यटकों से संपर्क करते है ! जब हमने होटल का कमरा देखा तो हमें वो पसंद आ गया, कमरे की खिड़की से बाज़ार का नज़ारा भी दिखाई दे रहा था ! हालाँकि, होटल की हालत देख कर ये अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं था कि ये बहुत पुराना होटल है, कमरे की सजावट और पुराने जमाने के खिड़की-दरवाजे इस बात का प्रमाण दे रहे थे कि ये होटल काफ़ी समय पहले बनाया गया है ! असल में हमने दो कमरे लिए जो एक दरवाजे के माध्यम से आपस में जुड़े हुए थे, कमरे छोटे-2 थे पर आपस में जुड़े थे तो हमें कोई परेशानी नहीं थी ! कमरे का किराया भी ज़्यादा नहीं था इसलिए हमने कमरा देखने के बाद होटल के मालिक को हामी भर दी और पेशगी में उसे हज़ार रुपए देने के साथ ही कागज़ी कार्यवाही भी पूरी की ! अगर आज रविवार ना होता तो निश्चित तौर पर ये कमरा हमें और भी कम दाम पर मिल जाता, पर सप्ताह का अंत होने की वजह से आज मसूरी में काफ़ी भीड़ थी !
हमने भी ज़्यादा जोखिम लेना ठीक नहीं समझा, पता चला कि कहीं और दूसरा होटल देखने गए और ये कमरा भी हाथ से निकल गया ! जब तक जयंत ने कागज़ी कार्यवाही पूरी की, जीतू ने गाड़ी होटल के सामने बने खुले खाली मैदान में लगा दी ! फिर हम लोगों ने गाड़ी में से अपना सारा सामान निकाल कर होटल के कमरे में रखा और ताला लगाकर मुख्य बाज़ार की ओर खाना खाने के लिए चल दिए ! हालाँकि हमारे होटल में खाने की सुविधा थी पर हम लोगों का मन खाने के साथ-2 बाज़ार में घूमने का भी थी, यही सोचकर हमने बाज़ार का रुख़ किया ! यहाँ मसूरी में भीड़-भाड़ ज़्यादा होने की वजह से गर्मी भी काफ़ी लग रही थी ! धनोल्टी में तो मौसम अच्छा था पर यहाँ तो ग़ज़ब की गर्मी लग रही थी, लग ही नहीं रहा था कि हम किसी पहाड़ी जगह पर है ! बाज़ार में घूमते हुए एक होटल के सामने आकर रुके, अंदर गए तो वहाँ की भीड़ देखकर एक बार तो मन हुआ कि कहीं और चला जाए क्योंकि यहाँ तो आधे घंटे से पहले नंबर आने वाला नहीं है !
फिर सोचा कि आज तो सभी जगह ऐसी भीड़ होगी, तो यहाँ-वहाँ घूमने से अच्छा है यहीं पर खाने का ऑर्डर देकर इंतज़ार किया जाए ! फिर क्या था सबने अपने-2 खाने का ऑर्डर दिया और वहीं एक मेज के चारों ओर बैठ कर खाने का इंतज़ार करने लगे ! लगभग 25 मिनट बाद हम लोगों के लिए खाना परोसा गया, कुछ भी कहो पर वहाँ का खाना बड़ा स्वादिष्ट था, खाकर मज़ा आ गया ! खाना खाने के बाद हमने समय देखा तो दोपहर के 1 बजकर 30 मिनट हो रहे थे, खाने का बिल चुकाने के साथ ही हम लोग होटल से बाहर आ गए ! थोड़ी देर तो हम सभी मसूरी के माल रोड पर घूमते रहे और फिर मसूरी के मुख्य बाज़ार में बने चर्च में चले गए ! चर्च में बैठकर कुछ देर प्रार्थना करने के बाद हम सब बाहर आ गए और आराम करने के लिए घूमते हुए अपने होटल की ओर चल दिए ! एक घंटे आराम करने के बाद हम लोग एक बार फिर मसूरी के माल रोड पर घूम रहे थे ! वैसे एक बात गौर करने लायक है कि हर हिल स्टेशन पर एक माल रोड ज़रूर होता है, पता नहीं किसी ने क्या सोच कर ये नाम रखा होगा, कि सारे पहाड़ी क्षेत्रों ने इससे अपना लिया !
हम लोगों ने माल रोड के 2-3 चक्कर लगा लिए, शाम होते-2 मौसम ठंडा हो गया था और कोहरा भी छाने लगा था ! फिर माल रोड पर ही एक दुकान पर रुककर सभी लोगों ने अपनी-2 ज़रूरतों के अनुसार थोड़ी-बहुत खरीददारी की ! माल रोड के पास ही सड़क के किनारे लोगों के बैठने की भी व्यवस्था है हम लोग हल्का ख़ान-पान लेने के बाद यहीं आकर बैठ गए ! यहाँ बैठ कर खूब सारी बातें हुई, भविष्य की चर्चायें हुई और कई अन्य बातों पर वाद-विवाद चलता रहा ! ऐसी शांत जगहों पर अगर आप अपने लिए थोड़ा समय निकाल कर अपने जीवन के अच्छे-बुरे पलों को याद कर सको तो शायद आप अपनी ज़िंदगी को और करीब से जान पाओगे ! अंधेरा होने लगा था पर हम लोग वहीं माल रोड के पास ही बैठ कर बातें करने में मशगूल थे, मैने कहा जब माल रोड पर ही बैठना था तो होटल में कमरा क्यों लिया है यार ! इस पर परमार बोला, अबे रात में कहाँ माल रोड पर सोएगा, कमरा रात को सोने के लिए लिया है, दिन में कमरे पर थोड़ी पड़ा रहेगा, दिन में घूमने के लिए तो यहाँ ये माल रोड है !
माल रोड से उठे तो एक दुकान में गोलगप्पे का स्वाद लेते हुए वापस अपने होटल का रुख़ किया ! हमारे होटल से थोड़ा पहले ही एक रेस्टोरेंट था जिसमें तिब्बती, चीनी और थाईलैंड के मशहूर व्यंजन परोसे जा रहे थे, ये जानकारी हमें होटल का बोर्ड पढ़कर लगी ! हमने सोचा भारतीय व्यंजन तो रोज ही खाते है आज विदेशी व्यंजनों का स्वाद भी चख लिया जाए ! ये रेस्टोरेंट जिसका नाम "रेज" था, प्रथम तल पर था, इसलिए हम लोग सीढ़ियाँ चढ़कर रेस्टोरेंट के अंदर पहुँच गए ! वहाँ जाकर पता चला कि अभी तो खाने की सारी मेजें भरी हुई थी, इस समय वहाँ बैठने तक की जगह नहीं थी, होटल के बेरे ने हमें बताया कि 10-15 मिनट में जगह खाली हो जाएगी ! हम लोगों ने सोचा कि वहाँ खड़े होकर इंतज़ार करने से तो अच्छा है नीचे चलकर इंतज़ार किया जाए, ताकि बाहर के नज़ारे भी देख सके और खुल कर बातें भी कर सके ! रेस्टोरेंट के बेरे से ये कहकर हम लोग नीचे आ गए कि जब जगह खाली हो जाए तो हमें आवाज़ लगा देना ! नीचे आकर हम लोग यहाँ-वहाँ की बातें करने लगे और मसूरी की रंगीन शाम का आनंद लेने लगे !
लगभग 20 मिनट बाद बेरे ने हमें जानकारी दी कि जगह खाली हो गई है, हम लोग फिर से उपर पहुँच गए ! खाने का ऑर्डर दिया और वहीं बैठ कर खाने का इंतज़ार करने लगे, थोड़ी देर में ही हमारा खाना परोस दिया गया ! बाकी लोगों का तो मुझे पता नहीं, पर मुझे यहाँ का खाना अच्छा नहीं लगा, खाना खाने के बाद जब समय देखा तो रात के 10 बज रहे थे ! रेस्टोरेंट से बाहर आकर सबने एक-2 कुल्फी ली और अपने होटल की ओर चल दिए ! रात को यहाँ ठंड काफ़ी बढ़ गई थी, पर सर्दी में भी ऐसे पहाड़ी क्षेत्र में कुल्फी खाने का भी अपना अलग ही मज़ा है ! पैदल चलते हुए हम लोग 10 मिनट में अपने होटल पहुँच गए, ठंड की वजह से ये 10 मिनट भी हमें काफ़ी लंबे लगे थे ! होटल पहुँच कर हम लोग आराम करने के लिए अपने-2 बिस्तर में चले गए, अब क्योंकि अगले दिन सुबह हमें नोयडा के लिए वापस जाना था, इसलिए ज़्यादा देर तक जागना ठीक नहीं था !
क्यों जाएँ (Why to go Mussoorie): अगर आप साप्ताहिक अवकाश (Weekend) पर दिल्ली की भीड़-भाड़ से दूर प्रकृति के समीप कुछ समय बिताना चाहते है तो उत्तराखंड में स्थित मसूरी का रुख़ कर सकते है ! अपनी खूबसूरती के लिए मशहूर मसूरी को "पहाड़ों की रानी" के नाम से भी जाना जाता है !
कब जाएँ (Best time to go Mussoorie): मसूरी आप साल के किसी भी महीने में जा सकते है, हर मौसम में मसूरी घूमने का अलग ही मज़ा है ! दिन के समय यहाँ भले ही थोड़ी गर्मी रहती है लेकिन शाम के बाद तो यहाँ हमेशा ठंडक हो ही जाती है !
कैसे जाएँ (How to reach Mussoorie): दिल्ली से मसूरी की दूरी महज 280 किलोमीटर है जिसे तय करने में आपको लगभग 6-7 घंटे का समय लगेगा ! दिल्ली से मसूरी जाने के लिए सबसे बढ़िया मार्ग मेरठ-मुज़फ़्फ़रनगर-देहरादून होकर है ! दिल्ली से रुड़की तक शानदार 4 लेन राजमार्ग बना है, रुड़की से छुटमलपुर तक एकल मार्ग है जहाँ थोड़ा जाम मिल जाता है ! फिर छुटमलपुर से देहरादून होते हुए मसूरी तक शानदार मार्ग है ! अगर आप मसूरी ट्रेन से जाने का विचार बना रहे है तो यहाँ का सबसे नज़दीकी रेलवे स्टेशन देहरादून है, जो देश के अन्य शहरों से जुड़ा हुआ है ! देहरादून से मसूरी महज 33 किलोमीटर दूर है जिसे आप टैक्सी या बस के माध्यम से तय कर सकते है, देहरादून से 10-15 किलोमीटर जाने के बाद पहाड़ी क्षेत्र शुरू हो जाता है !
कहाँ रुके (Where to stay in Mussoorie): मसूरी उत्तराखंड का एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है यहाँ रुकने के लिए बहुत होटल है ! आप अपनी सुविधा अनुसार 800 रुपए से लेकर 3000 रुपए तक का होटल ले सकते है ! सप्ताह के अंत में और ख़ासकर मई-जून में तो यहाँ भयंकर भीड़ रहती है इसलिए इस समय कोशिश करें कि अग्रिम आरक्षण करवा कर ही आए !
कहाँ खाएँ (Eating option in Mussoorie): मसूरी में अच्छा-ख़ासा बाज़ार है, यहाँ आपको अपने स्वाद अनुसार खाने-पीने का हर सामान मिल जाएगा ! अब तक मैं जितने भी हिल स्टेशन पर घूमा हूँ मुझे सबसे अच्छा और बड़ा माल रोड मसूरी का ही लगा है !
क्या देखें (Places to see in Mussoorie): मसूरी और इसके आस-पास घूमने की कई जगहें है जिसमें से कैमल बैक रोड, लाल टिब्बा, कंपनी गार्डन, गन हिल, केंपटी फॉल, और माल रोड काफ़ी प्रसिद्ध है ! आप यहाँ से 25 किलोमीटर दूर धनोल्टी का रुख़ भी कर सकते है !
अगले भाग में जारी...
धनोल्टी यात्रा
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गाड़ी खड़ी करके हम सब अंदर अपने कमरे में आकर अपने-2 बिस्तर पर लेट गए, दिन भर के सफ़र से थकान होने के कारण बिस्तर पर लेटे-2 कब नींद आ गई पता ही नहीं चला ! रात को बढ़िया नींद आई, इसलिए सुबह आराम से सोकर उठे और अपने नित्यक्रम में लग गए ! आज 21 अगस्त है और धनोल्टी में हमारा आख़िरी दिन भी, आज कहीं घूमने जाने की जल्दबाज़ी तो थी नहीं, पर समय से मसूरी के लिए निकलना था ताकि दिन में बढ़िया से मसूरी की सैर कर सके ! अपनी योजना के मुताबिक हम लोग एक रात मसूरी में बिताने वाले थे, नहा-धोकर तैयार होने के बाद फटाफट अपने कमरे के नीचे बरामदे में नाश्ता करने पहुँच गए ! समय देखा तो सुबह के 8 बजकर 45 मिनट हो रहे थे, थोड़ी देर में ही हमारे लिए नाश्ता भी आ गया, नाश्ता करने के बाद हमने होटल का हिसाब-किताब करके बकाया राशि का भुगतान किया और कमरे में से अपना सामान निकाल कर बाहर गाड़ी में रखने लगे ! साढ़े नौ बजते-2 हम लोग अपना सारा सामान गाड़ी में रखकर चलने के लिए तैयार हो गए !
दूर दिखाई देते बरफ के पहाड़ (A view of Snow Line) |
यही वजह है कि हम दोनों इन पहाड़ों को नहीं देख पाए थे, पर अब सब कुछ बिल्कुल साफ हो गया था ! बिना दूरबीन के खुली आँखों से बर्फ के इन पहाड़ों को देखना भी अपने आप में एक अलग ही खुशी देता है, इतने करीब से और नंगी आँखों से मैने बर्फ के पहाड़ों को पहले कभी नहीं देखा था ! जिस दिन हमने तपोवन की चढ़ाई की थी, उस दिन हम काफ़ी उँचाई पर थे पर फिर भी हमारा ध्यान इन पहाड़ों की ओर नहीं गया ! पता नहीं ये पहाड़ उस दिन भी दिखाई दे रहे थे या नहीं ! खैर, बहुत देर तक उन पहाड़ों को देखने और सैकड़ों फोटो अपने कैमरे में क़ैद करने के बाद हम लोगों ने फिर से अपनी मसूरी की यात्रा जारी रखी ! मैने अपने पिछले लेखों में लिखा भी है कि पहाड़ों पर ऐसे विहंगम दृश्य तो अक्सर दिखाई देते ही है जो आपको अपनी ओर बाँधे रखने का माद्दा रखते है, पर किसी विद्वान ने कहा है कि पहाड़ों और जंगलों में जितना घूमोगे उतने बढ़िया नज़ारे देखने को मिलेंगे !
बस इसी नियम का पालन करते हुए हम लोग आगे मसूरी की ओर बढ़ गए ! सुबह की ताज़ी हवा शरीर के साथ-2 मन को भी तरोताज़ा कर रही थी, जीतू के पास नए-पुराने गीतों का ऐसा मिश्रण था जो इस मौसम में एक अलग ही समाँ बाँध रहा था ! मसूरी जाते हुए रास्ते में सड़क के दोनों ओर कई छोटे-बड़े गाँव आए, पहाड़ी रास्तों पर तो जहाँ 20-25 घर बने, उसे ही एक गाँव का नाम दे दिया गया है ! रास्ते में हमें फिर से एक जगह भू-स्खलन की वजह से मार्ग बाधित मिला, पर हम लोग सकुशल वहाँ से निकल गए ! एक जगह तो ऐसा भी आया जहाँ पहाड़ी को बीच में काट कर रास्ता बनाया गया है, मतलब सड़क दोनों तरफ से पहाड़ी से घिरी हुई है ! ऐसी खूबसूरत जगह और जीतू गाड़ी ना रोके, ऐसा हो ही नहीं सकता ! जीतू ने एक बार फिर अपनी गाड़ी सड़क के किनारे रोक दी और हम सब नीचे उतरकर फोटो खीचने में लग गए ! यहाँ भी एक दिक्कत हो गई, बर्फ के पहाड़ों की फोटो लेते समय जयंत ने अपने कैमरे के लेंस बदल दिए थे ताकि दूर तक के दृश्यों को आसानी से ले सके !
ये लेंस अब पास के दृश्यों को क़ैद नहीं कर पा रहे थे, इसलिए सड़क के दोनों ओर के पहाड़ चित्र में दिखाई नहीं दे रहे है ! यहाँ भी 10-15 मिनट की मस्ती करने के बाद हम लोग फिर से आगे मसूरी के लिए चल दिए ! इस बार गाड़ी में बैठने के साथ ही जयंत ने फिर से अपने कैमरे के लेंस बदल दिए ताकि पास के दृश्यों को आसानी से क़ैद कर सके ! दोस्तों के साथ इस मस्ती के पल में मुझे "ज़िंदगी ना मिलेगी दोबारा" के दृश्य याद आ रहे थे, वैसे हमारा मन भी कितना चंचल है जो पल भर में ही कहाँ से कहाँ पहुँच जाता है ! मैं अपने ख्यालों में खोया हुआ था कि रास्ते में हमें सड़क के किनारे विदेशी सैलानियों का एक समूह दिखाई दिया ! वे लोग पैदल ही थे, और वहीं खड़े होकर अपने कैमरें में तस्वीरें क़ैद कर रहे थे ! मैं गाड़ी में बैठा हुआ खिड़की में से दूर तक दिखाई देता नीला आसमान देख पा रहा था ! पहाड़ों पर प्रदूषण कम होने की वजह से नीला आसमान और दूर तक का नज़ारा बिल्कुल साफ दिखाई दे रहा था !
रास्ते में कुछ ऐसे खूबसूरत नज़ारे भी देखने को मिले जिन्हें देख कर यशराज चोपड़ा की फिल्मों की याद आ गई ! मन ही मन मैने सोचा, ना जाने क्यों यश चोपड़ा इस खूबसूरती को छोड़ कर अपनी फिल्मों के लिए यूरोप जाते है ! जब हमारे भारत में ही इतनी खूबसूरत जगहें है तो कहीं बाहर जाने की क्या ज़रूरत है ! खैर, ये उनका व्यक्तिगत मामला है, उनके पास पैसे है तो वो विदेश जा रहे है, और हमारे पास उतने पैसे नहीं है तो हम यहीं स्वदेश में घूम रहे है ! ऐसे ही मनभावन नज़ारों को देखते हुए जीतू ने फिर से गाड़ी रोक दी, यहाँ पर एक बात मैं आपको बताना चाहूँगा कि ऐसी यात्राओं पर अपनी गाड़ी होने का ये तो बहुत ही बढ़िया फ़ायदा है कि जहाँ मन किया गाड़ी रोक कर देखने लगे प्राकृतिक नज़ारे ! वरना बसों में बैठ कर आप कहाँ-2 उतरोगे और कितनी बसें बदलोगे ! यहाँ भी 10-15 फोटो खींचने के बाद हम लोग फिर से अपनी मंज़िल की ओर चल दिए !
अब हम लोग मसूरी से ज़्यादा दूर नहीं थे, यहाँ से हमारा रास्ता दो हिस्सों में बँट रहा था, हम लोगों ने जयंत की समझदारी की वजह से यहाँ ग़लत रास्ता चुन लिया ! हम लोग लैंडोर होते हुए मसूरी जा रहे थे जो काफ़ी संकरा और भीड़-भाड़ वाला है ! ये रास्ता शहर के बीच में से होता हुआ मसूरी जाता है जबकि बाहरी रास्ता खुला और कम भीड़-भाड़ वाला है ! पर एक कहावत है ना कि जब ओखली में सिर दे दिया तो मूसर से क्या डरना ! जयंत ने इस रास्ते को चुनते हुए तो कहा था कि ये रास्ता बहुत अच्छा और छोटा है ! क्योंकि वो पहले भी इस रास्ते से आ चुका है, पर आगे बढ़ने पर हमें जानकारी के अभाव में सही रास्ता पकड़ने के लिए स्थानीय लोगों की मदद लेनी पड़ी ! जैसे-तैसे करके हम लोग मसूरी पहुँचे, पर आज रविवार होने की वजह से मसूरी में बहुत भीड़ थी ! दिल्ली के नज़दीक होने के कारण यहाँ सप्ताह के अंत में काफ़ी भीड़ हो जाती है, ऐसा लगता है सारी दिल्ली उठकर यहीं मसूरी चली आती है !
मसूरी के मुख्य बाज़ार में घुसने के लिए जितने भी चेक पोस्ट (नाके) है सब जगह यातायात को नियंत्रित करने के लिए स्थानीय पुलिसकर्मी खड़े रहते है ! गाड़ी लेकर अंदर जाने पर आपको हर बार 100 रुपए देने पड़ते है और शाम को 5 बजे के बाद तो अंदर गाड़ी लेकर जा भी नहीं सकते ! मतलब अगर आप गाड़ी लेकर कहीं घूमने जाओ तो 5 बजे से पहले वापस मसूरी के माल रोड़ पर प्रवेश कर लो, वरना आपको गाड़ी कहीं बाहर ही खड़ी करनी पड़ेगी ! आप जितनी बार भी अंदर आएँगे, आपको 100 रुपए देने ही पड़ेंगे, मुझे तो ये बहुत बुरा नियम लगा, भाई एक ही दिन जाकर अगर कोई वापस आता है तो काहे के 100 रुपए देगा ! हमने भी 100 रुपए अदा करके अंदर माल रोड़ में प्रवेश किया, वैसे यहाँ की सड़कें तो इतनी संकरी नहीं है पर गाड़ियाँ ज़्यादा होने की वजह से हमेशा ही जाम की स्थिति बनी रहती है ! पार्किंग स्थल ढूँढने के लिए भी आपको काफ़ी घूमना पड़ता है ! बाज़ार में एक जगह जलेबी देख कर जयंत बोला, यहाँ की दूध और जलेबी बहुत बढ़िया है, चलो आज दूध-जलेबी का स्वाद चखते है !
दोपहर हो गई थी और सुबह के पराठे भी पच चुके थे, फिर रही-सही भूख जलेबी देख कर बढ़ गई ! इस पर जीतू बोला, भाई भूख तो सभी को लग रही है पर पहले कहीं गाड़ी खड़ी करने का इंतज़ाम कर लेते है उसके बाद जो खाना हो वो खा लेना ! ऐसी भीड़-भाड़ में गाड़ी रोक कर जलेबियाँ भी तो नहीं खा सकते थे ! मसूरी पहुँचने के बाद रहने के लिए होटल ढूँढना भी बहुत बड़ी समस्या थी, गाड़ी लेकर हर जगह घूमा नहीं जा सकता था, इसलिए गाड़ी को एक जगह रोक कर पैदल जाकर ही अपने रुकने के लिए होटल ढूँढने का विचार बना ! हम गाड़ी खड़ी करने के लिए जगह ढूँढ ही रहे थे कि तभी एक एजेंट हमसे टकरा गया, पूछने लगा रुकने के लिए होटल चाहिए क्या? हमने कहा नेकी और पूछ-2, दिखा दे भाई होटल, पसंद आ गया तो रुक जाएँगे, वरना ढूँढ तो हम रहे ही है ! वो एजेंट हमें जिस होटल में लेकर गया वो मुख्य बाज़ार के एक किनारे पर जाकर काफ़ी उँचाई पर था, हम लोग गाड़ी लेकर उस एजेंट के पीछे-2 चल रहे थे !
ऐसे पहाड़ी स्थलों पर ऐसे होटल जो मुख्य सड़क से हटकर होते है वो अक्सर इन दलालों के माध्यम से ही पर्यटकों से संपर्क करते है ! जब हमने होटल का कमरा देखा तो हमें वो पसंद आ गया, कमरे की खिड़की से बाज़ार का नज़ारा भी दिखाई दे रहा था ! हालाँकि, होटल की हालत देख कर ये अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं था कि ये बहुत पुराना होटल है, कमरे की सजावट और पुराने जमाने के खिड़की-दरवाजे इस बात का प्रमाण दे रहे थे कि ये होटल काफ़ी समय पहले बनाया गया है ! असल में हमने दो कमरे लिए जो एक दरवाजे के माध्यम से आपस में जुड़े हुए थे, कमरे छोटे-2 थे पर आपस में जुड़े थे तो हमें कोई परेशानी नहीं थी ! कमरे का किराया भी ज़्यादा नहीं था इसलिए हमने कमरा देखने के बाद होटल के मालिक को हामी भर दी और पेशगी में उसे हज़ार रुपए देने के साथ ही कागज़ी कार्यवाही भी पूरी की ! अगर आज रविवार ना होता तो निश्चित तौर पर ये कमरा हमें और भी कम दाम पर मिल जाता, पर सप्ताह का अंत होने की वजह से आज मसूरी में काफ़ी भीड़ थी !
हमने भी ज़्यादा जोखिम लेना ठीक नहीं समझा, पता चला कि कहीं और दूसरा होटल देखने गए और ये कमरा भी हाथ से निकल गया ! जब तक जयंत ने कागज़ी कार्यवाही पूरी की, जीतू ने गाड़ी होटल के सामने बने खुले खाली मैदान में लगा दी ! फिर हम लोगों ने गाड़ी में से अपना सारा सामान निकाल कर होटल के कमरे में रखा और ताला लगाकर मुख्य बाज़ार की ओर खाना खाने के लिए चल दिए ! हालाँकि हमारे होटल में खाने की सुविधा थी पर हम लोगों का मन खाने के साथ-2 बाज़ार में घूमने का भी थी, यही सोचकर हमने बाज़ार का रुख़ किया ! यहाँ मसूरी में भीड़-भाड़ ज़्यादा होने की वजह से गर्मी भी काफ़ी लग रही थी ! धनोल्टी में तो मौसम अच्छा था पर यहाँ तो ग़ज़ब की गर्मी लग रही थी, लग ही नहीं रहा था कि हम किसी पहाड़ी जगह पर है ! बाज़ार में घूमते हुए एक होटल के सामने आकर रुके, अंदर गए तो वहाँ की भीड़ देखकर एक बार तो मन हुआ कि कहीं और चला जाए क्योंकि यहाँ तो आधे घंटे से पहले नंबर आने वाला नहीं है !
फिर सोचा कि आज तो सभी जगह ऐसी भीड़ होगी, तो यहाँ-वहाँ घूमने से अच्छा है यहीं पर खाने का ऑर्डर देकर इंतज़ार किया जाए ! फिर क्या था सबने अपने-2 खाने का ऑर्डर दिया और वहीं एक मेज के चारों ओर बैठ कर खाने का इंतज़ार करने लगे ! लगभग 25 मिनट बाद हम लोगों के लिए खाना परोसा गया, कुछ भी कहो पर वहाँ का खाना बड़ा स्वादिष्ट था, खाकर मज़ा आ गया ! खाना खाने के बाद हमने समय देखा तो दोपहर के 1 बजकर 30 मिनट हो रहे थे, खाने का बिल चुकाने के साथ ही हम लोग होटल से बाहर आ गए ! थोड़ी देर तो हम सभी मसूरी के माल रोड पर घूमते रहे और फिर मसूरी के मुख्य बाज़ार में बने चर्च में चले गए ! चर्च में बैठकर कुछ देर प्रार्थना करने के बाद हम सब बाहर आ गए और आराम करने के लिए घूमते हुए अपने होटल की ओर चल दिए ! एक घंटे आराम करने के बाद हम लोग एक बार फिर मसूरी के माल रोड पर घूम रहे थे ! वैसे एक बात गौर करने लायक है कि हर हिल स्टेशन पर एक माल रोड ज़रूर होता है, पता नहीं किसी ने क्या सोच कर ये नाम रखा होगा, कि सारे पहाड़ी क्षेत्रों ने इससे अपना लिया !
हम लोगों ने माल रोड के 2-3 चक्कर लगा लिए, शाम होते-2 मौसम ठंडा हो गया था और कोहरा भी छाने लगा था ! फिर माल रोड पर ही एक दुकान पर रुककर सभी लोगों ने अपनी-2 ज़रूरतों के अनुसार थोड़ी-बहुत खरीददारी की ! माल रोड के पास ही सड़क के किनारे लोगों के बैठने की भी व्यवस्था है हम लोग हल्का ख़ान-पान लेने के बाद यहीं आकर बैठ गए ! यहाँ बैठ कर खूब सारी बातें हुई, भविष्य की चर्चायें हुई और कई अन्य बातों पर वाद-विवाद चलता रहा ! ऐसी शांत जगहों पर अगर आप अपने लिए थोड़ा समय निकाल कर अपने जीवन के अच्छे-बुरे पलों को याद कर सको तो शायद आप अपनी ज़िंदगी को और करीब से जान पाओगे ! अंधेरा होने लगा था पर हम लोग वहीं माल रोड के पास ही बैठ कर बातें करने में मशगूल थे, मैने कहा जब माल रोड पर ही बैठना था तो होटल में कमरा क्यों लिया है यार ! इस पर परमार बोला, अबे रात में कहाँ माल रोड पर सोएगा, कमरा रात को सोने के लिए लिया है, दिन में कमरे पर थोड़ी पड़ा रहेगा, दिन में घूमने के लिए तो यहाँ ये माल रोड है !
माल रोड से उठे तो एक दुकान में गोलगप्पे का स्वाद लेते हुए वापस अपने होटल का रुख़ किया ! हमारे होटल से थोड़ा पहले ही एक रेस्टोरेंट था जिसमें तिब्बती, चीनी और थाईलैंड के मशहूर व्यंजन परोसे जा रहे थे, ये जानकारी हमें होटल का बोर्ड पढ़कर लगी ! हमने सोचा भारतीय व्यंजन तो रोज ही खाते है आज विदेशी व्यंजनों का स्वाद भी चख लिया जाए ! ये रेस्टोरेंट जिसका नाम "रेज" था, प्रथम तल पर था, इसलिए हम लोग सीढ़ियाँ चढ़कर रेस्टोरेंट के अंदर पहुँच गए ! वहाँ जाकर पता चला कि अभी तो खाने की सारी मेजें भरी हुई थी, इस समय वहाँ बैठने तक की जगह नहीं थी, होटल के बेरे ने हमें बताया कि 10-15 मिनट में जगह खाली हो जाएगी ! हम लोगों ने सोचा कि वहाँ खड़े होकर इंतज़ार करने से तो अच्छा है नीचे चलकर इंतज़ार किया जाए, ताकि बाहर के नज़ारे भी देख सके और खुल कर बातें भी कर सके ! रेस्टोरेंट के बेरे से ये कहकर हम लोग नीचे आ गए कि जब जगह खाली हो जाए तो हमें आवाज़ लगा देना ! नीचे आकर हम लोग यहाँ-वहाँ की बातें करने लगे और मसूरी की रंगीन शाम का आनंद लेने लगे !
लगभग 20 मिनट बाद बेरे ने हमें जानकारी दी कि जगह खाली हो गई है, हम लोग फिर से उपर पहुँच गए ! खाने का ऑर्डर दिया और वहीं बैठ कर खाने का इंतज़ार करने लगे, थोड़ी देर में ही हमारा खाना परोस दिया गया ! बाकी लोगों का तो मुझे पता नहीं, पर मुझे यहाँ का खाना अच्छा नहीं लगा, खाना खाने के बाद जब समय देखा तो रात के 10 बज रहे थे ! रेस्टोरेंट से बाहर आकर सबने एक-2 कुल्फी ली और अपने होटल की ओर चल दिए ! रात को यहाँ ठंड काफ़ी बढ़ गई थी, पर सर्दी में भी ऐसे पहाड़ी क्षेत्र में कुल्फी खाने का भी अपना अलग ही मज़ा है ! पैदल चलते हुए हम लोग 10 मिनट में अपने होटल पहुँच गए, ठंड की वजह से ये 10 मिनट भी हमें काफ़ी लंबे लगे थे ! होटल पहुँच कर हम लोग आराम करने के लिए अपने-2 बिस्तर में चले गए, अब क्योंकि अगले दिन सुबह हमें नोयडा के लिए वापस जाना था, इसलिए ज़्यादा देर तक जागना ठीक नहीं था !
धनोल्टी मसूरी मार्ग पर एक गाँव (A village on Dhanaulti Mussoorie Road) |
विदेशी पर्यटकों के एक समूह (A group of tourist) |
Way to Mussoorie |
Dhanaulti Mussoorie Road |
धनोल्टी मसूरी मार्ग (Way to Mussoorie) |
Three Friends |
धनोल्टी मसूरी मार्ग (A view from Road) |
मसूरी चर्च के अंदर (Church in Mussoorie) |
माल रोड मसूरी (Mall Road Mussoorie) |
माल रोड मसूरी (Mall Road Mussoorie) |
क्यों जाएँ (Why to go Mussoorie): अगर आप साप्ताहिक अवकाश (Weekend) पर दिल्ली की भीड़-भाड़ से दूर प्रकृति के समीप कुछ समय बिताना चाहते है तो उत्तराखंड में स्थित मसूरी का रुख़ कर सकते है ! अपनी खूबसूरती के लिए मशहूर मसूरी को "पहाड़ों की रानी" के नाम से भी जाना जाता है !
कब जाएँ (Best time to go Mussoorie): मसूरी आप साल के किसी भी महीने में जा सकते है, हर मौसम में मसूरी घूमने का अलग ही मज़ा है ! दिन के समय यहाँ भले ही थोड़ी गर्मी रहती है लेकिन शाम के बाद तो यहाँ हमेशा ठंडक हो ही जाती है !
कैसे जाएँ (How to reach Mussoorie): दिल्ली से मसूरी की दूरी महज 280 किलोमीटर है जिसे तय करने में आपको लगभग 6-7 घंटे का समय लगेगा ! दिल्ली से मसूरी जाने के लिए सबसे बढ़िया मार्ग मेरठ-मुज़फ़्फ़रनगर-देहरादून होकर है ! दिल्ली से रुड़की तक शानदार 4 लेन राजमार्ग बना है, रुड़की से छुटमलपुर तक एकल मार्ग है जहाँ थोड़ा जाम मिल जाता है ! फिर छुटमलपुर से देहरादून होते हुए मसूरी तक शानदार मार्ग है ! अगर आप मसूरी ट्रेन से जाने का विचार बना रहे है तो यहाँ का सबसे नज़दीकी रेलवे स्टेशन देहरादून है, जो देश के अन्य शहरों से जुड़ा हुआ है ! देहरादून से मसूरी महज 33 किलोमीटर दूर है जिसे आप टैक्सी या बस के माध्यम से तय कर सकते है, देहरादून से 10-15 किलोमीटर जाने के बाद पहाड़ी क्षेत्र शुरू हो जाता है !
कहाँ रुके (Where to stay in Mussoorie): मसूरी उत्तराखंड का एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है यहाँ रुकने के लिए बहुत होटल है ! आप अपनी सुविधा अनुसार 800 रुपए से लेकर 3000 रुपए तक का होटल ले सकते है ! सप्ताह के अंत में और ख़ासकर मई-जून में तो यहाँ भयंकर भीड़ रहती है इसलिए इस समय कोशिश करें कि अग्रिम आरक्षण करवा कर ही आए !
कहाँ खाएँ (Eating option in Mussoorie): मसूरी में अच्छा-ख़ासा बाज़ार है, यहाँ आपको अपने स्वाद अनुसार खाने-पीने का हर सामान मिल जाएगा ! अब तक मैं जितने भी हिल स्टेशन पर घूमा हूँ मुझे सबसे अच्छा और बड़ा माल रोड मसूरी का ही लगा है !
क्या देखें (Places to see in Mussoorie): मसूरी और इसके आस-पास घूमने की कई जगहें है जिसमें से कैमल बैक रोड, लाल टिब्बा, कंपनी गार्डन, गन हिल, केंपटी फॉल, और माल रोड काफ़ी प्रसिद्ध है ! आप यहाँ से 25 किलोमीटर दूर धनोल्टी का रुख़ भी कर सकते है !
अगले भाग में जारी...
धनोल्टी यात्रा
- दोस्तों संग धनोल्टी का एक सफ़र (A Road Trip from Delhi to Dhanaulti)
- धनोल्टी का मुख्य आकर्षण है ईको-पार्क (A Visit to Eco Park, Dhanaulti)
- बारिश में देखने लायक होती है धनोल्टी की ख़ूबसूरती (A Rainy Trip to Dhanolti)
- सुरकंडा देवी - माँ सती को समर्पित एक स्थान (A Visit to Surkanda Devi Temple)
- मसूरी के मालरोड पर एक शाम (An Evening on Mallroad, Musoorie)
- मसूरी में केंप्टी फॉल है पिकनिक के लिए एक उत्तम स्थान (A Perfect Place for Picnic in Mussoorie – Kempty Fall)
शानदार सफर का समापन ।मंसूरी मैंने देखा नहीं है कभी जाना हुआ तो सबकुछ देखूँगी।और हम भी सपरिवार साथ जाते है तो कार ही करते है।
ReplyDeletebachpan mein garmion ki chootion mein almost har sunday ko mussoorie jana hotha tha or wapsi mein rajpur road par ek lotha dhang ka hotel moti mahal mein dinner.
ReplyDeleteAb kafi commercialize ho gaya hai . purana mussoorie miss kartha hun
देहरादून से मसूरी जाने पर शानदार नज़ारे दिखाई देते है ! इन नज़ारों को देखकर बार-2 यहाँ जाने का मन करता है ! वैसे हर पॉपुलर हिल स्टेशन का यही हाल है, आधुनिकरण के बीच इन जगहों कि वास्तविक सुंदरता कहीं खो गई है !
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