शनिवार, 19 जुलाई 2014
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अब तक आपने पढ़ा कि किस तरह हम लोग राह में आने वाली मुश्किलों को पार करके नजीबाबाद पहुँचे ! यहाँ खाना खाने के लिए एक होटल में प्रवेश किया, होटल बाहर से देखने पर तो बहुत अच्छा लग रहा था पर अंदर जाकर हमें एहसास हुआ, नाम बड़ा और दर्शन छोटे ! होटल में साफ सफाई की व्यवस्था कुछ ख़ास नहीं थी ! यहाँ हमने आलू-प्याज के पराठे और दही का नाश्ता किया, हालाँकि पराठे कुछ ख़ास नहीं थे, पर एक पराठा खाने के बाद जब तक मना करते, तब तक प्लेट में दूसरा पराठा भी आ चुका था ! होटल वाले का भुगतान करने के बाद हमने आगे का सफ़र जारी रखा ! बाद में जब मैने कहा कि यार उस पानी से भरे हुए मार्ग की फोटो नहीं खींच पाए, तो दोनों ने कहा कि चल वापसी में फिर से इसी मार्ग से आ जाएँगे और तेरी ये इच्छा भी पूरी कर देंगे ! रास्ते में काफ़ी देर तक इसी बात पर चर्चा चलती रही ! नजीबाबाद से कोटद्वार की दूरी लगभग 25 किलोमीटर है, और ये रास्ता दोनों ओर घने पेड़ों से घिरा हुआ बहुत सुंदर लगता है !
नजीजाबाद में नाश्ते के समय लिया गया एक चित्र (Breakfast somewhere in Najijabad) |
बारिश का मौसम होने की वजह से सड़क के दोनों ओर हरियाली ही हरियाली थी, शहर की भीड़-भाड़ से निकल कर इस मार्ग पर पहुँचते ही मन को बहुत सुकून मिला ! मैं तो पहाड़ों पर आता ही यहाँ की हरी-भरी वादियों के लिए हूँ, इस मार्ग पर हमें नाम मात्र की गाड़ियाँ ही आती-जाती दिखी, इस मार्ग पर ज़्यादा गाड़ियाँ ना चलने की वजह से मार्ग की हालत बहुत ही बढ़िया है ! कोटद्वार पहुँचने से पहले एक नदी का पुल आया, जहाँ से पहाड़ो की खूबसूरती दिखाई देनी शुरू हो गई ! हमारी जानकारी के अनुसार ये मलिन नदी थी, हालाँकि नदी में पानी का प्रवाह तो ज़्यादा तेज़ नहीं था, पर हां, पुल पर खड़े होकर एक बहुत ही सुंदर दृश्य दिखाई दे रहा था ! यहाँ पर 10-15 मिनट बिताने के बाद हम लोग कोटद्वार की ओर चल दिए ! जैसे-2 हम लोग कोटद्वार के नज़दीक पहुँचते जा रहे थे, मौसम भी ठंडा और सुहावना होता जा रहा था ! कोटद्वार के मुख्य चौराहे से आगे बढ़ते ही पहाड़ी क्षेत्र शुरू हो गया, फिर थोड़ी देर बाद हमारी दाईं ओर एक झरना भी दिखाई दिया !
हालाँकि, झरने में पानी तो ज़्यादा नहीं था पर सड़क से देखने पर दृश्य बहुत ही सुंदर लग रहा था ! झरने के पानी का बहाव ठीक-ठाक था और ये पानी सड़क पर से होकर नीचे हमारी बाईं ओर गिर रहा था ! झरना देखने की देर थी कि थोड़ा सा आगे ही सड़क के एक किनारे गाड़ी रोक कर हम सभी झरने की ओर चल दिए ! यहाँ भी 10-15 मिनट बिताने और बहुत से फोटो लेने के बाद हम लोग वापस अपनी गाड़ी की ओर चल दिए ! रिमझिम फुहारों के बीच पहाड़ी मार्ग पर यात्रा करने का भी अपना अलग ही अनुभव होता है, इस यात्रा पर भी रास्ते में जगह-2 हमें रिमझिम फुहारें देखने को मिली ! दुग्गडा पहुँचते-2 हम रास्ते में कई जगहों पर रुक कर प्रकति के नज़ारों का आनंद ले चुके थे ! दुग्गडा पार करने के बाद मुख्य सड़क दोनों तरफ उँचे-2 पेड़ों से घिरी हुई है, जो बहुत ही सुंदर नज़ारा प्रस्तुत करती है ! ऐसे ही घने पेड़ों के बीच हमने एक बार फिर से अपनी गाड़ी रोक दी और सड़क के किनारे घने जंगलों में उपर की ओर पैदल ही चल दिए ! उँचे-2 चीड़ के पेड़ और ज़मीन पर गिरे हुए उनके लाल पत्ते बहुत ही सुंदर लग रहे थे !
घने जंगलों के बीच पहुँच कर हम तीनों किसी विषय पर चर्चा करने लगे ! हम लोग यहाँ सुकून के कुछ पल बिताने आए थे इसलिए हड़बड़ी मचाकर लैंसडाउन नहीं पहुँचना चाहते थे क्योंकि हम सब इस बात से वाकिफ़ है कि अगर अपनो का साथ हो तो कई बार मंज़िल से ज़्यादा खूबसूरत राहें होती है ! इसलिए मंज़िल की ओर जाते हुए रास्ते में जो भी मिले उसी में आनंद लेते हुए आगे बढ़ना चाहिए ! एक और बात कभी भी किसी यात्रा पर बहुत ज़्यादा उम्मीद लेकर नहीं जाना चाहिए कि हमें इस यात्रा पर कुछ ऐसा-वैसा नज़ारा मिलेगा, क्योंकि पहाड़ों की खूबसूरती हर मौसम में अलग ही होती है ! हो सकता है कि जो छायाचित्र मैं यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ आपको अपनी यात्रा के दौरान वैसे नज़ारे ना मिले, अगर आप यहाँ ग्रीष्म या शीत ऋतु में आए ! खैर, चलिए अपनी यात्रा की ओर वापिस चलते है, तो इस तरह हमने रुकते-रुकाते अपना सफ़र जारी रखा, रास्ते में जहाँ कहीं भी कोई सुंदर नज़ारा दिखाई देता, हम लोग रुक कर उन नज़ारों का आनंद लेने लगते ! इसी तरह धीरे-धीरे आगे बढ़ते हुए हम शाम को 4 बजकर 35 मिनट पर लैंसडाउन पहुँच गए !
लैंसडाउन एक छावनी क्षेत्र है, और इसकी देख-रेख का जिम्मा गढवाल राइफल्स के जवानों ने अपने कंधों पर ले रखा है ! लैंसडाउन के मुख्य द्वार पर कुछ सैनिक तैनात थे, जो आते-जाते लोगों की सहायता कर रहे थे ! इस द्वार को पार करने के बाद ही गाँधी चौक है, जो लैंसडाउन का मुख्य चौराहा है ! गाँधी चौक मुख्य बाज़ार के बीचों-बीच स्थित है, यहाँ आपको अपनी ज़रूरत के हिसाब से कई प्रकार के होटल मिल जाएँगे, पर मुझे तो यहाँ के होटल अन्य पर्वतीय स्थानों की अपेक्षाकृत थोड़ा महँगे लगे ! कुछ होटलों में पूछताछ के दौरान पता चला कि यहाँ होटल के कमरों के किराए की शुरुआत ही 1800 रुपए से हो रही थी ! इस समय तो कोई सीजन भी नहीं था कि होटल मिलने में इतनी मारा-मारी हो ! कुछ भी कहो, मुझे तो इन होटलों का किराया काफ़ी महँगा लगा ! कई होटलों में पूछ-ताछ करने के बाद हम लोग यहाँ के सबसे शीर्ष स्थान टिप-एंड-टॉप की ओर चल दिए ! टिप-एंड-टॉप में गढ़वाल मंडल का एक सरकारी गेस्ट हाउस है, जिसमें रुकने के लिए कई कमरे है, ये सभी कमरे लकड़ी के बने हुए है और देखने में बहुत ही सुंदर लगते है !
गाँधी चौक पर किसी होटल में पैसे देने से अच्छा तो यहाँ टिप-एंड-टॉप पर गेस्ट हाउस में रुकना है ऐसा करने से आप अपने आप को प्रकृति के ज़्यादा नज़दीक पाएँगे ! ये गेस्ट हाउस तीन श्रेणियों में विभाजित है जोकि 1980, 5000 और 6500 रुपए है, अगर आप कभी यहाँ आना चाहे तो आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि गढ़वाल मंडल की वेबसाइट www.gmvnl.com पर जाकर आप इस गेस्ट हाउस में अपने रुकने के लिए कमरे आरक्षित करवा सकते है ! इन लकड़ी के बने घरों में रहने का भी अपना अलग ही मज़ा है, कमरे की खिड़कियों से देखने पर पूरे लैंसडाउन की सुंदरता दिखाई देती है ! पर्यटकों की संख्या बढ़ जाने पर यहाँ आने के बाद आपको इस गेस्ट हाउस में कमरे मिलने में दिक्कत हो सकती है ! इसलिए अगर आप अपने रुकने का इंतज़ाम पहले से कर लेंगे तो आपकी यात्रा ज़्यादा सुखद रहेगी ! हम लोग गाँधी चौक के आस-पास 3-4 होटलों में पूछ-ताछ कर चुके थे, सबका किराया 2000 से उपर ही बैठ रहा था और फिर इन होटलों से तो कुछ ख़ास नज़ारे भी नहीं दिखाई दे रहे थे !
गाँधी चौक पर होटल ढूँढते हुए हमें एक सज्जन अनुराग धुलिया (9412961300) मिले, जिन्होनें हमें बताया कि उन्होने अपने घर में ही पर्यटकों के रहने के लिए व्यवस्था की हुई है ! गाँधी चौक पर कमरा ना मिलने के बाद हमने सोचा कि चलो धुलिया जी के गेस्ट हाउस को भी देख लेते है अगर ठीक लगा तो आज रात वहीं रुक लेंगे वरना वापस आकर टिप-एंड-टॉप में रुक जाएँगे ! हमने अनुराग जी को बोला कि अभी तो हम लोग टिप-एंड-टॉप के नज़ारे लेने जा रहे है, जब आपके निवास पर पहुँचेगे तो आपको फोन कर देंगे ! टिप-एंड-टॉप पहुँच कर वहीं गढ़वाल मंडल के कैंटीन में हमने 3 मैगी बनाने का ऑर्डर दे दिया, वैसे यहाँ खाना-पीना थोड़ा महँगा है ! लैंसडाउन का शीर्ष बिंदु होने के कारण यहाँ से दूर घाटी का नज़ारा एकदम साफ दिखाई देता है ! मैगी बनाने का कहकर हम लोग वहाँ के आस-पास के नज़ारों का आनंद लेने लगे, लेकिन थोड़ी ही देर में यहाँ हल्की-2 बूंदा-बाँदी शुरू हो गई, और हम सब बारिश की इन फुहारों का आनंद लेने लगे !
बारिश के बाद मौसम इतना साफ हो जाता है कि चारों तरफ के नज़ारे बहुत ही सुंदर लगते है, यहाँ से भी घाटी में दूर तक फैले पहाड़ बिल्कुल साफ दिखाई दे रहे थे ! टिप-एंड-टॉप में रुकने के लिए और भी कई पर्यटक आए हुए थे जो हमें वहाँ आस-पास घूमते हुए दिखाई दिए ! थोड़ी देर में हमारी मैगी तैयार हो गई, हालाँकि बारिश से बचने के लिए वहाँ पर्याप्त स्थान था लेकिन हमने बारिश में भीगते हुए ही मैगी का आनंद लिया ! मैगी ख़त्म करने के बाद हम लोगों ने अपनी गाड़ी उठाई और टिप-एंड-टॉप से ज़हरिखाल की ओर चल दिए ! ज़हरिखाल, टिप-एंड-टॉप से 5 किलोमीटर दूर एक कस्बा है जो यहाँ उँचाई से देखने पर पास ही दिखाई देता है ! ज़हरिखाल जाने वाला मार्ग आगे गुमखाल-पौडी होते हुए बद्रीनाथ की ओर चला जाता है ! टिप-एंड-टॉप से निकलने के बाद ही एक टोल नाका है, जहाँ 4 पहिए वाहन का 52 रुपए का पार्किंग शुल्क लगता है ! पार्किंग शुल्क अदा करने के बाद हम लोग आगे बढ़ गए, और अगले 15 मिनट में हम लोग ज़हरिखाल पहुँच चुके थे !
यहाँ ज़हरिखाल में 15-20 दुकानें है जो यहाँ का मुख्य बाज़ार है, और यहीं पर एक इंटर कॉलेज भी है जिसकी स्थापना सन 1921 में हुई थी ! वहीं एक स्थानीय दुकानदार से अनुराग धुलिया के बारे में पूछ कर हम तीनों उनके गेस्ट हाउस की ओर चल दिए ! ये गेस्ट हाउस मुख्य बाज़ार से बमुश्किल 5 मिनट की दूरी पर था, कमरा देखा तो ये हमें पसंद आ गया, पूछने पर पता चला कि किराया भी ज़्यादा नहीं था, इसलिए हमने बिना देरी किए हामी भर दी ! कमरे में अपना सामान रखने के बाद हम लोग वापस मुख्य बाज़ार की ओर चल दिए, मौसम काफ़ी सुहावना था और आसमान में एक जगह तो इंद्रधनुष भी बना हुआ था ! आसमान साफ होने के कारण हमें सड़क के दोनों तरफ सुंदर नज़ारे दिखाई दे रहे थे, हमने वहाँ बैठ कर काफ़ी देर तक प्रकृति के नज़ारों का भरपूर आनंद लिया ! यहाँ खाने-पीने के ज़्यादा विकल्प ना होने के कारण जब शाम होने लगी तो हम लोग खाना खाने के लिए अपनी गाड़ी लेकर फिर से गाँधी चौक की ओर चल दिए !
यहाँ एक होटल में हमने रात्रि के भोजन में दाल-मखनी संग कढ़ाई पनीर का आनंद लिया ! मीठे में हमने गुलाब-जामुन और रसगुल्लों का स्वाद चखा, कुल मिलाकर खाने का स्वाद और होटल की सर्विस अच्छी थी ! हम लोगों ने एक प्लेट बिरयानी अपने साथ ले जाने के लिए पैक भी करवा ली ! जैसे-2 रात हो रही थी, मौसम भी ठंडा होने लगा था, आलम ये था कि जब हम लोग खाना खाकर बाहर निकले तो ठंड लग रही थी ! थोड़ी देर गाँधी चौक के आस-पास घूमने के बाद हम लोग फिर से अपने गेस्ट हाउस की ओर चल दिए ! यहाँ पहुँच कर हम लोगों ने थोड़ी देर तक अगले दिन की योजना पर चर्चा की और फिर आराम करने के लिए अपने-2 बिस्तर में चले गए ! तो दोस्तों, आज के सफ़र पर यहीं विराम लगाता हूँ, कल आपको ज़हरिखाल भ्रमण पर लेकर चलूँगा !
कोटद्वार लैंसडाउन मार्ग (Kotdwar Lansdowne Road) |
Way to Lansdowne |
मलिन नदी का पुल (Bridge on Malin River) |
झरना (Small waterfall on the way to Lansdowne) |
सड़क से दिखाई देता एक दृश्य (A view from Road) |
Road to Lansdowne |
Forest near Lansdowne |
जंगल से दिखाई देता एक दृश्य (A view from Forest) |
सड़क से दिखाई देता एक दृश्य (A view from Road) |
गाँधी चौक (Gandhi Chowk) |
टिप-एंड-टॉप में गढ़वाल मंडल के गेस्ट हाउस (GMVN Guest House) |
GMVN Guest House |
ज़हरिखाल से दिखाई देता एक दृश्य (A view from Jehrikhal) |
Another view from Jehrikhal |
ज़हरिखाल (Jehrikhal Market) |
(A view from Jehrikhal) |
क्यों जाएँ (Why to go Lansdowne): अगर आप साप्ताहिक अवकाश (Weekend) पर दिल्ली की भीड़-भाड़ से दूर प्रकृति के समीप कुछ समय बिताना चाहते है तो लैंसडाउन आपके लिए एक बढ़िया विकल्प है ! इसके अलावा अगर आप प्राकृतिक नज़ारों की चाह रखते है तो आप निसंकोच लैंसडाउन का रुख़ कर सकते है ! अगर दिसंबर-जनवरी में पहाड़ों पर बर्फ देखने की चाहत हो तो भी लैंसडाउन चले आइए, दिल्ली के सबसे नज़दीक का हिल स्टेशन होने के कारण लैंसडाउन लोगों की पसंदीदा जगहों में से एक है !
कब जाएँ (Best time to go Lansdowne): लैंसडाउन आप साल भर किसी भी महीने में जा सकते है बारिश के दिनों में तो यहाँ की हरियाली देखने लायक होती है लेकिन अगर आप बारिश के दिनों में जा रहे है तो मेरठ-बिजनौर-नजीबाबाद होकर ही जाए ! गढ़मुक्तेश्वर वाला मार्ग बिल्कुल भी ना पकड़े, गंगा नदी का जलस्तर बढ़ने के कारण नेठौर-चांदपुर का क्षेत्र जलमग्न रहता है ! वैसे, यहाँ सावन के दिनों में ना ही जाएँ तो ठीक रहेगा और अगर जाना भी हो तो अतिरिक्त समय लेकर चलें क्योंकि उस समय कांवड़ियों की वजह से मेरठ-बिजनौर मार्ग अवरुद्ध रहता है !
कैसे जाएँ (How to Reach Lansdowne): दिल्ली से लैंसडाउन की कुल दूरी 260 किलोमीटर है जिसे तय करने में आपको लगभग 7 से 8 घंटे का समय लगेगा ! दिल्ली से लैंसडाउन जाने के लिए सबसे बढ़िया मार्ग मेरठ-बिजनौर-नजीबाबाद होते हुए है, दिल्ली से खतौली तक 4 लेन राजमार्ग बना है जबकि खतौली से आगे कोटद्वार तक 2 लेन राजमार्ग है ! इस पूरे मार्ग पर बहुत बढ़िया सड़क बनी है, कोटद्वार से आगे पहाड़ी मार्ग शुरू हो जाता है !
कहाँ रुके (Where to stay in Lansdowne): लैंसडाउन एक पहाड़ी क्षेत्र है यहाँ आपको छोटे-बड़े कई होटल मिल जाएँगे, एक दो जगह होमस्टे का विकल्प भी है मैने एक यात्रा के दौरान जहाँ होमस्टे किया था वो है अनुराग धुलिया 9412961300 ! अगर आप यात्रा सीजन (मई-जून) में लैंसडाउन जा रहे है तो होटल में अग्रिम आरक्षण (Advance Booking) करवाकर ही जाएँ ! होटल के लिए आपको 800 से 2500 रुपए तक खर्च करने पड़ सकते है ! यहाँ गढ़वाल मंडल का एक होटल भी है, हालाँकि, ये थोड़ा महँगा है लेकिन ये सबसे बढ़िया विकल्प है क्योंकि यहाँ से घाटी में दूर तक का नज़ारा दिखाई देता है ! सूर्योदय और सूर्यास्त देखने के लिए भी ये शानदार जगह है !
कहाँ खाएँ (Where to eat in Lansdowne): लैंसडाउन में छोटे-बड़े कई होटल है, जहाँ आपको खाने-पीने का सभी सामान आसानी से मिल जाएगा ! अधिकतर होटलों में खाना सादा ही मिलेगा, बहुत ज़्यादा विकल्प की उम्मीद करना बेमानी होगा !
क्या देखें (Places to see in Lansdowne): लैंसडाउन में देखने के लिए कई जगहें है जैसे भुल्ला ताल, दरवान सिंह म्यूज़ीयम, टिप एन टॉप, और एक चर्च भी है ! टिप एन टॉप के पास संतोषी माता का मंदिर भी है ! चर्च सिर्फ़ रविवार के दिन खुलता है जबकि म्यूज़ीयम रोजाना सुबह 9 बजे खुलकर दोपहर को बंद हो जाता है, फिर शाम को 3 खुलता है, अगर आप लैंसडाउन आए है तो ये म्यूज़ीयम ज़रूर देखिए ! लैंसडाउन से 35 किलोमीटर दूर ताड़केश्वर महादेव मंदिर भी है, लैंसडाउन से एक-डेढ़ घंटे का सफ़र तय करके जब आप ताड़केश्वर महादेव मंदिर पहुँचोगे तो मंदिर के आस-पास के नज़ारे देखकर आपकी सारी थकान दूर हो जाएगी ! चीड़ के घने पेड़ो के बीच बने इस मंदिर की सुंदरता देखते ही बनती है !
लैंसडाउन यात्रा
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लैंसडाउन
बढ़िया।
ReplyDeleteजी धन्यवाद !
Deleteबारिश में हरे भरे पहाड़ सच में बहुत सुंदर लगते है
ReplyDeleteसच कहो तो पहाड़ों का असली रूप ही बरसात में निखर कर सामने आता है !
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