शनिवार, 26 दिसंबर 2009
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यात्रा के पिछले लेख में आपने चकराता के स्थानीय भ्रमण के बारे में पढ़ा ! अब आगे, सुबह 8 बजे जब मैं सोकर उठा, देखा तो जयंत पहले ही उठ चुका था, वो बोला चल यार छत पर चलकर सूर्योदय के नज़ारे देखते है ! ठंड बहुत थी, बिस्तर से निकलने का मन तो नहीं हो रहा था, पर फिर भी हिम्मत करके बाहर निकलकर हम दोनों कमरे से बाहर चल दिए ! छत पर जाने से पहले बगल वाले कमरे में जाकर देखा तो दरवाजा खुला हुआ था और हमारे दोनों साथी अभी भी सो रहे थे ! हमारे जाने की आहट सुनकर वो दोनों भी जाग गए और फिर हम चारों छत पर सुबह के नज़ारे देखने चल दिए ! आज मौसम साफ लग रहा था इसलिए दूर तक फैले सुंदर नज़ारे देखे जा सकते थे, वैसे ठंड भी खूब तेज लग रही थी ! ठंड के मारे पूरा शरीर कंपकपा रहा था, हालत ये थी कि जैकेट की जेब से हाथ बाहर निकालने का मन भी नहीं हो रहा था, कान बरफ जैसे ठंडे हो गए थे, और ठंड के कारण ऐसा लग रहा था कि पैरों में उंगलियाँ ही ना हो !
होटल की छत से सूर्योदय (A view of sunrise from our Hotel, Chakrata) |
आज की यात्रा के लिए जगह सुनिश्चित होने के बाद हम सब छत से नीचे अपने कमरे में आ गए ! यहाँ हम सब बारी-2 से नित्य-क्रम से फारिक होने के बाद नहा-धोकर तैयार हो गए, फिर नाश्ता करने के लिए नीचे होटल के हॉल में आ गए ! होटल में रुकने वाले सभी पर्यटक यहीं हॉल में बैठकर खाना खा रहे थे, रसोइया थोड़ा सुस्त था इसलिए हमें खाने के लिए काफ़ी इंतजार करना पड़ा ! अगले एक घंटे में हम सब खा-पीकर फारिक हो गए, घड़ी में समय देखा तो ग्यारह बजने वाले थे ! अपने कमरे में वापस आकर देवबन जाने के लिए एक बैग तैयार किया और पार्किंग स्थल की ओर चल दिए, जहाँ हमारी गाड़ी खड़ी थी ! ड्राइवर को भी खाने-पीने के लिए समयानुसार पैसे दे रहे थे ताकि वो अपनी इच्छा अनुसार खा-पी सके, जब हम पार्किंग स्थल पर पहुँचे तो वो नाश्ता करने में लगा था ! थोड़ी देर बाद जब उसने अपना नाश्ता ख़त्म कर लिया तो आज का सफ़र शुरू करने से पहले हमने गाड़ी का टैंक फुल करवा लिया ताकि रास्ते में कोई परेशानी ना हो !
आप लोगों की जानकारी के लिए बता दूँ कि यहाँ चकराता में आस-पास हमें कोई पेट्रोल पंप तो मिला नहीं था, पर यहाँ के स्थानीय दुकानदार अपने पास बेचने के लिए भरपूर मात्रा में पेट्रोल-डीजल रखते है ताकि ज़रूरत पड़ने पर पर्यटक यहाँ से अपनी गाड़ी के लिए ईंधन ले सके ! हालाँकि, यहाँ पेट्रोल-डीजल का मूल्य बाज़ार के भाव से 4-5 रुपए अधिक ही था, पर मरता क्या ना करता ! चकराता के मुख्य चौराहे से निकलकर हमने इस सफ़र की शुरुआत की ! देवबन एक वन्य क्षेत्र है इसलिए यहाँ जाने से पहले आपको इस मार्ग के प्रवेश द्वार पर ही वन-विभाग के कार्यालय में वन्य क्षेत्र में अंदर जाने के लिए एक शुल्क अदा करना होता है ! इस से वन-विभाग को ये जानकारी भी रहती है कि इस समय जंगल में कितने पर्यटक घूम रहे है, जो किसी अनहोनी में आपका पता लगाने के लिए सहायक होते है ! शुल्क अदा करने के दौरान हमने जंगल के बारे में थोड़ी जानकारी वहाँ के अधिकारी से लेनी चाही तो वो संक्षेप में बोला कि अंदर तुम्हारे देखने लायक बहुत कुछ है !
घुमावदार रास्तों से होते हुए जब हम थोड़ा आगे बढ़े तो मुख्य सड़क पर हमें एक सियार दिखाई दिया ! हमारी गाड़ी को अपनी ओर आता हुआ देख वो जंगल में अंदर चला गया, अब उम्मीद बँध गई कि ये सफ़र काफ़ी रोमांचक रहने वाला है ! जंगल के शुरुआत में तो पहाड़ों पर हरियाली बिल्कुल भी नहीं थी, चारों तरफ गंजे पहाड़ दिखाई दे रहे थे, आगे बढ़ने पर धीरे-2 रास्ता खराब होने के साथ-2 चढ़ाई वाला होता जा रहा था ! बीच-2 में इस मार्ग की हालत ऐसी थी कि सड़क कम और गड्ढे ज़्यादा दिखाई दे रहे थे ! इस मार्ग पर चलते हुए ऐसा लग रहा था सदियों पहले ये सड़क बनाई गई हो और उसके बाद इसके रख-रखाव पर किसी ने ध्यान ही नहीं दिया है ! कुछ पल के लिए तो हम सबने वन-विभाग वालों को खूब कोसा, जिन्होने हमें इस मार्ग की हालत के बारे में बताए बिना ही अंदर भेज दिया ! इस रास्ते पर अगर किसी की गाड़ी खराब हो जाए तो उसे काफ़ी दिक्कत का सामना करना पड़ सकता है ! धीरे-2 सावधानी से हम सब उस मार्ग पर बढ़ते रहे, अब मार्ग की हालत पहले की अपेक्षा काफ़ी बढ़िया हो गई थी !
सड़क के दोनों किनारों पर गाड़ी के टायरों के लिए सीमेंट की पतली पगडंडी बनी हुई थी जबकि मध्य भाग उबड़-खाबड़ ही था ! कुल मिलाकर एक बार में एक ही गाड़ी के जाने की जगह थी, अगर कोई दूसरी गाड़ी आ जाती, तो एक चालक को मार्ग के किनारे गाड़ी लगानी पड़ती ! फिर इसी रास्ते पर बढ़ते हुए हमारी दाईं ओर एक बड़े पत्थर पर स्पाइडर कॉलोनी नाम के एक कैंप का प्रचार किया गया था ! ये कैंप यहाँ देवबन में आने वाले पर्यटकों को इसी जंगल में रोमांच से भरपूर अलग-2 क्रियाकलाप करवाते है, जिसमें मोटरसाइकल दौड़ से लेकर कुछ अन्य रोमांचक करतब शामिल है ! ये सब जानकारी हमें कैंप के उस प्रचार पर लिखी बातों से पता चली ! वैसे, देखा जाए तो चकराता से देवबन की दूरी मात्र 15 किलोमीटर है, पर रास्ता खराब होने और वन्य क्षेत्र होने के कारण ये दूरी तय करने में भी काफ़ी वक़्त लग जाता है ! फिर यहाँ आने वाले पर्यटक रास्ते में जगह-2 रुक कर प्रकृति के नज़ारों का भी खूब आनंद लेते है !
हमने इस बड़े पत्थर के पास सड़क के किनारे अपनी गाड़ी रुकवा दी और इस पत्थर पर चढ़कर खूब फोटो खिंचवाई ! यहीं पत्थर के उपर से एक कच्चा रास्ता जंगल में अंदर की ओर जाता है, हम तीनों भी इसी मार्ग पर चल दिए ! यहाँ हमें एक सीडी, खाने-पीने के सामान के खाली पैकेट और जंगली जानवरों के शरीर के कुछ अवशेष मिले ! जो इस बात को प्रमाणित कर रहे थे कि लोग यहाँ अक्सर आते रहते है ! इस कच्चे मार्ग पर काफ़ी अंदर जाने के बाद भी जब हमें कोई मार्ग नहीं मिला तो हम वापस वहीं आ गए, जहाँ हमारी गाड़ी खड़ी थी ! इस पत्थर से नीचे उतरकर हम सब सड़क के किनारे खड़े होकर घाटी में दूर तक फैले घने जंगल को देखने लगे, जो यहाँ से देखने पर बहुत सुंदर लग रहे थे ! थोड़ी देर वहाँ बिताने के बाद हम अपनी गाड़ी में सवार होकर आगे बढ़ गए, ये मार्ग दोनों ओर से घने जंगलों से घिरा हुआ था, चढ़ाई इतनी ज़्यादा थी कि कभी-2 तो लग रहा था जैसे हम किसी खड़ी चोटी पर गाड़ी चला रहे हो ! घुमावदार रास्तों से होते हुए धीरे-2 हम काफ़ी उँचाई पर आ गए थे, यहाँ पर जंगल तो नाम मात्र का ही था लेकिन घुमावदार पहाड़ी रास्ते अभी तक भी थे !
इस मार्ग पर जाते हुए रास्ते में हमें इक्का-दुक्का गाड़ियाँ ही दिखाई दी थी ! रुकते-रुकाते आधे घंटे के सफ़र के बाद हम फिर से घने जंगल में प्रवेश कर चुके थे, ये जंगल इतना घना था कि सूर्य का प्रकाश भी हम तक नहीं पहुँच पा रहा था, इसलिए बहुत ठंड लग रही थी ! इस ठंड से बचने के लिए जैकट तो पहन रखी थी पर पैरों में जूते ना होने के कारण ठंड से राहत नहीं थी ! फिर इसी मार्ग पर सड़क के दाईं ओर हमें एक छोटी झील दिखाई दी, वैसे आप इसे तालाब भी कह सकते है पर मैं तो झील ही कहूँगा ! ये झील सड़क से काफ़ी नीचे गहराई में थी, सड़क से देखने में ये बहुत सुंदर लग रही थी ! दूर से देखने पर ही पता चल रहा था कि तापमान कम होने की वजह से इसका पानी जमा हुआ था ! अब ऐसी सुंदर जगहों पर भला कौन नहीं जाना चाहेगा, गाड़ी सड़क के किनारे खड़ी करके हम सब लगभग दौड़ते हुए उस झील की ओर चल दिए !
पैरों में जूते ना होने के कारण गाड़ी से उतरते ही मुझे बहुत तेज ठंड महसूस हुई, पर झील देखने की खुशी में मैं उस ठंड को भूल गया ! हमने कई बार पढ़ रखा था और टेलीविज़न पर देख भी रखा था कि ऐसी जमी हुई झीलों में अक्सर उपर बरफ की एक पतली परत होती है, जो ज़्यादा भार पड़ने पर टूट भी जाती है ! एक बार पानी के नीचे जाने पर ऐसी हालत में पानी से बाहर निकलना मुश्किल हो जाता है ! बड़ी सावधानी से हमने पहले एक पैर का भार उस जमी हुई झील पर रखा और फिर धीरे-2 सभी लोग उस झील की सतह पर जाकर खड़े हो गए ! ये झील चारों ओर से घने पेड़ों से घिरी हुई है और पास में ही एक छोटा पुल भी बना है ! पुल के उस पार पेड़ों के पीले-2 पत्ते गिरे हुए थे जो बहुत सुंदर लग रहे थे, ऐसे दृश्य अक्सर किताबों में देखे थे ! झील का पानी जम जाने के कारण इसकी सतह पर काफ़ी फिसलन थी, इस दौरान हम में से दो लोग वहाँ गिरे भी थे !
हम सब वहाँ बैठ कर किसी बात पर चर्चा कर रहे थे कि तभी राहुल को ना जाने क्या हुआ कि वो बरफ पर ज़ोर-2 से उछलने लगा, और फिर वही हुआ जिसका हमें डर था ! एक ही जगह पर खड़े होकर 4-5 बार उछलने के कारण जमी हुई बरफ में दरार पड़ने लगी, ये दरार आसानी से देखी जा सकती थी ! अगर जमे हुए पानी में एक बार दरार पड़ जाए तो वो कभी भी टूट सकता है, हमने कहा यार तुझे यहाँ अच्छा नहीं लग रहा था तो वापस चला जाता ! उलूल-जुलूल हरकतें क्यों कर रहा है, इस पर वो बोला, अबे हमें यहाँ काफ़ी देर तो हो गई है, आगे भी तो चलना है ! हमने कहा महाराज हम आख़िरी पर्यटक नहीं है जो इस झील को देखने आए है, और लोग भी यहाँ आते होंगे, उनके देखने के लिए भी तो कुछ छोड़ दे ! उसके बाद हम वहाँ ज़्यादा देर नहीं रुके और वापस अपनी गाड़ी की ओर चल दिए ! वैसे, इस जंगल में यात्रा करना काफ़ी रोमांचकारी लग रहा था, मोटरसाइकल से शायद इस रोमांच के साथ थोड़ा ख़तरा भी बढ़ जाए ! क्योंकि इस वन्य क्षेत्र में जंगली जानवरों के होने की पूरी संभावना है !
गाड़ी में बैठकर हमने फिर से अपना सफ़र जारी रखा, सड़क के दोनों ओर दुर्लभ पेड़-पौधों के साथ बोर्ड पर लिखी कुछ रोचक जानकारियाँ भी हमें देखने को मिली जिनपर इस वन्य क्षेत्र के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई थी ! आधे घंटे के सफ़र के बाद एक उँचा टीला आया जिसे पार करके हम एक खुले मैदान में पहुँच गए, देवबन तो ये पूरा क्षेत्र ही था पर ये मैदान इस क्षेत्र का अंतिम पड़ाव था ! आगे रास्ता नहीं था, हमने मैदान के चारों ओर नज़र दौड़ाकर देखी, पर वहाँ हमें कोई नहीं दिखाई दिया ! हालाँकि, यहाँ पहुँचने से थोड़ी देर पहले रास्ते में हमें एक जीप में कुछ लोग जाते हुए दिखाई दिए थे ! ये मैदान ढलान पर था, मैदान के प्रवेश द्वार के सामने दो-तीन लकड़ी के कॉटेज थे, जिसमें यहाँ आने वाले पर्यटकों के रुकने की व्यवस्था थी ! इस कॉटेज की देखभाल करने वाले एक व्यक्ति (जोकि उस समय कॉटेज के अंदर ही बैठा था) से पूछने पर पता चला कि इन कॉटेज का आज रात का आरक्षण तो हो चुका है !
उसने हमें ये भी बताया कि इन कॉटेज का आरक्षण नीचे जंगल के प्रवेश द्वार पर बने कार्यालय में ही होता है ! वैसे रात्रि में यहाँ रुकना बहुत ही बढ़िया अनुभव रहता होगा, जब यहाँ का आरक्षण नहीं मिला तो हम सब आगे मैदान की ओर बढ़ गए, जोकि यहाँ से ब्मुश्किल 50 गज की दूरी पर था ! मैदान में पहुँचकर हम सब एक पेड़ के किनारे घास में लेट गए और ठंड के इस मौसम में धूप का आनंद लेने लगे ! 10-15 मिनट के बाद इस मैदान के प्रवेश द्वार पर दो एमबेसडर कारें आकर रुकी, थोड़ी देर में गाड़ी से उतरकर 7-8 लोग मैदान में हमारी ओर आने लगे ! इन लोगों ने भी कॉटेज के गार्ड से कुछ पूछ-ताछ की, ये एक बड़ा परिवार था या शायद दो परिवार थे और एक साथ घूमने निकले थे ! जहाँ हम चारों बैठे थे वहाँ से थोड़ी दूर अगले पेड़ के नीचे इस परिवार की महिलाओं ने बैठने के लिए एक चादर बिछा ली ! बाद में बात-चीत के दौरान पता चला कि ये लोग जयपुर से यहाँ छुट्टियाँ मनाने आए थे ! फिर हम चारों वहाँ से उठकर मैदान के दूसरी ओर ढलान वाले भाग में एक क्षतिग्रस्त इमारत में चले गए !
इस इमारत में मौजूद अवशेष इस बात की गवाही दे रहे थे कि कभी कोई इस इमारत में भी रहता होगा ! शायद मैदान के दूसरे भाग में स्थित कॉटेज की देखभाल करने वाला गार्ड या फिर हो सकता है कि ये इमारत भी कभी पर्यटकों के ठहरने के लिए बनाई गई हो ! हमने इस इमारत में खूब मस्ती की और फिर जब मौसम ठंडा होने लगा तो आस-पास से कुछ सूखी लकड़ियाँ इकट्ठी करके आग जला ली ! इस क्षतिग्रस्त इमारत से देखने पर ढलान से थोड़ा आगे लोहे के तार लगाकर घेराबंदी की गई थी, जो शायद इस क्षेत्र की सीमा तय करने के लिए लगाया गया था ! उस बाड़ के आगे फिर से घने जंगल का क्षेत्र शुरू हो रहा था, कुछ भी हो, चारों तरफ हरियाली और घने जंगल देख कर मन खुश हो गया ! काफ़ी देर तक वहीं आग के किनारे बैठ कर हाथ सेंकते रहे और किसी विषय पर चर्चा भी ! अक्सर ऐसी शांत जगहें चर्चा करने के लिए अनुकूल रहती है, जहाँ हम बैठे थे ये भू-भाग काफ़ी ढलान पर था इसलिए यहाँ से हमारी गाड़ी भी दिखाई नहीं दे रही थी !
जब यहाँ बैठे हुए काफ़ी देर हो गई तो हमने वापसी की राह पकड़ी और ढलान पर चढ़ते हुए वापस उस खुले मैदान में पहुँच गए ! जयपुर वाला परिवार वापस जा चुका था पर जाते हुए यहाँ काफ़ी गंदगी फैला गए थे ! बहुत गुस्सा आया उन लोगों पर, आते है यहाँ छुट्टियाँ मनाने और वापस जाते हुए यहाँ गंदगी छोड़ जाते है ! समय शाम के 5 बज रहे थे जब हम सब अपनी गाड़ी में बैठकर चकराता के लिए वापसी की राह पर थे ! घना जंगल होने के कारण एक बार तो लगने लगा कि वापस पहुँचते हुए रात हो जाएगी, पर जैसे ही जंगली क्षेत्र ख़त्म हुआ, सूर्य देख कर हमें पता चला कि अभी सूर्यास्त में काफ़ी समय था ! वापसी में भी कई जगहों पर रुकते-रुकाते आगे बढ़ते रहे, यहाँ हम गाड़ी से उतरकर कई पहाड़ियों से पैदल ही नीचे उतरे ! कुल मिलकर हमें वापसी में भी डेढ़ घंटा लग गया, होटल पहुँचकर गाड़ी खड़ी की और पैदल ही स्थानीय बाज़ार में घूमने चल दिए ! बाज़ार से खाने-पीने का सामान लेकर वापिस अपने होटल आए और रात्रि का भोजन करने के बाद अपने-2 बिस्तर पर आराम करने चले गए !
छत पर पवन, जयंत और मैं (दाएँ से बाएँ) |
Early morning on Hotel terrace, Chakrata |
देवबन - सफ़र की शुरुआत (Way to Deoban, Chakrata) |
जंगल में एक कैंप (Trekking camp in Deoban, Chakrata) |
जंगल में एक कैंप (Spider Colony in Chakrata) |
Somewhere on the way to Deoban, Chakrata |
देवबन जाने का मार्ग (On the way to Deoban in Chakrata) |
पीछे दिखाई देता घुमावदार रास्ता |
जमी हुई झील (A frozen lake in Deoban, Chakrata) |
झील पर खड़े तीन मित्र (A frozen lake in Deoban, Chakrata) |
देवबन में (Deoban) |
देवबन में दिखाई देते कॉटेज |
क्षतिग्रस्त इमारत |
आग जलाने के तैयारी करते हुए |
Bonfire in Deoban, Chakrata |
जंगल में जाती पगडंडी और दाईं तरफ लगा बाड़ |
सूर्यास्त का एक नज़ारा (A view of sunset from Deoban) |
पहाड़ी से उतरते हुए जयंत और पवन |
होटल में हमारा नया कमरा |
क्यों जाएँ (Why to go Chakrata): अगर आप साप्ताहिक अवकाश (Weekend) पर दिल्ली की भीड़-भाड़ से दूर प्रकृति के समीप कुछ समय बिताना चाहते है तो उत्तराखंड में स्थित चकराता का रुख़ कर सकते है ! यहाँ आपको देखने के लिए पहाड़, झरने, जंगल, और रोमांच सबकुछ मिलेगा !
कब जाएँ (Best time to go Chakrata): वैसे तो आप चकराता साल के किसी भी महीने में जा सकते है, पर अगर आपको हरे-भरे पहाड़ देखने हो और अगर आप झरने देखने का भी शौक रखते हो तो जुलाई-अगस्त उत्तम समय है ! अगर प्राकृतिक दृश्यों का भरपूर आनंद लेना हो तो आप यहाँ मार्च से जून के मौसम में आइए ! सर्दियों के मौसम में यहाँ कड़ाके की सर्दी पड़ती है इसलिए अगर सर्दी में यहाँ जाने की इच्छा हो रही हो तो अपने साथ गर्म कपड़े ज़रूर ले जाएँ !
कैसे जाएँ (How to reach Chakrata): दिल्ली से चकराता की दूरी महज 320 किलोमीटर है जिसे तय करने में आपको लगभग 8-9 घंटे का समय लगेगा ! दिल्ली से देहरादून होते हुए आप चकराता जा सकते है एक मार्ग यमुनानगर-पौंटा साहिब होकर भी चकराता को जाता है ! दोनों ही मार्गों की हालत बढ़िया है ! अगर आप चकराता ट्रेन से जाने का विचार बना रहे है तो यहाँ का सबसे नज़दीकी रेलवे स्टेशन देहरादून है, जो देश के अन्य शहरों से जुड़ा हुआ है ! देहरादून से चकराता महज 88 किलोमीटर दूर है जिसे आप टैक्सी या बस के माध्यम से तय कर सकते है, देहरादून से 10-15 किलोमीटर जाने के बाद पहाड़ी क्षेत्र शुरू हो जाता है !
अगले भाग में जारी...
चकराता - मसूरी यात्रा
कब जाएँ (Best time to go Chakrata): वैसे तो आप चकराता साल के किसी भी महीने में जा सकते है, पर अगर आपको हरे-भरे पहाड़ देखने हो और अगर आप झरने देखने का भी शौक रखते हो तो जुलाई-अगस्त उत्तम समय है ! अगर प्राकृतिक दृश्यों का भरपूर आनंद लेना हो तो आप यहाँ मार्च से जून के मौसम में आइए ! सर्दियों के मौसम में यहाँ कड़ाके की सर्दी पड़ती है इसलिए अगर सर्दी में यहाँ जाने की इच्छा हो रही हो तो अपने साथ गर्म कपड़े ज़रूर ले जाएँ !
कैसे जाएँ (How to reach Chakrata): दिल्ली से चकराता की दूरी महज 320 किलोमीटर है जिसे तय करने में आपको लगभग 8-9 घंटे का समय लगेगा ! दिल्ली से देहरादून होते हुए आप चकराता जा सकते है एक मार्ग यमुनानगर-पौंटा साहिब होकर भी चकराता को जाता है ! दोनों ही मार्गों की हालत बढ़िया है ! अगर आप चकराता ट्रेन से जाने का विचार बना रहे है तो यहाँ का सबसे नज़दीकी रेलवे स्टेशन देहरादून है, जो देश के अन्य शहरों से जुड़ा हुआ है ! देहरादून से चकराता महज 88 किलोमीटर दूर है जिसे आप टैक्सी या बस के माध्यम से तय कर सकते है, देहरादून से 10-15 किलोमीटर जाने के बाद पहाड़ी क्षेत्र शुरू हो जाता है !
कहाँ रुके (Where to stay in Chakrata): चकराता उत्तराखंड का एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है पहले यहाँ कम ही लोग जाते थे लेकिन अब यहाँ जाने वाले लोगों की तादात काफ़ी बढ़ गई है ! लोगों की सुविधा के लिए यहाँ रुकने के लिए कई होटल है लेकिन अगर यात्रा सीजन मई-जून में यहाँ जाने की योजना है तो होटल का अग्रिम आरक्षण करवाकर ही जाएँ ! होटल में रुकने के लिए आपको 800 रुपए से लेकर 2000 रुपए तक खर्च करने पड़ सकते है !
कहाँ खाएँ (Eating option in Chakrata): चकराता का बाज़ार बहुत बड़ा तो नहीं है लेकिन फिर भी खाने-पीने के लिए ठीक-ठाक दुकानें है ! फिर भी पहाड़ी क्षेत्र है इसलिए ख़ान-पान के ज़्यादा विकल्पों की उम्मीद ना ही रखे तो बेहतर होगा !
क्या देखें (Places to see in Chakrata): चकराता में घूमने के लिए बहुत ज़्यादा विकल्प तो नहीं है फिर भी कुछ जगहें ऐसी है जो यहाँ आने वाले यात्रियों का मन मो लेती है ! इनमें से कुछ जगहें है टाइगर फाल, देवबन, और लाखामंडल !
कहाँ खाएँ (Eating option in Chakrata): चकराता का बाज़ार बहुत बड़ा तो नहीं है लेकिन फिर भी खाने-पीने के लिए ठीक-ठाक दुकानें है ! फिर भी पहाड़ी क्षेत्र है इसलिए ख़ान-पान के ज़्यादा विकल्पों की उम्मीद ना ही रखे तो बेहतर होगा !
क्या देखें (Places to see in Chakrata): चकराता में घूमने के लिए बहुत ज़्यादा विकल्प तो नहीं है फिर भी कुछ जगहें ऐसी है जो यहाँ आने वाले यात्रियों का मन मो लेती है ! इनमें से कुछ जगहें है टाइगर फाल, देवबन, और लाखामंडल !
चकराता - मसूरी यात्रा
- चकराता का एक यादगार सफ़र (A Memorable Trip to Chakrata)
- चकराता के जंगल में बिताई एक शाम (A Beautiful Evening in Chakrata)
- देवबन के घने जंगल की रोमांचक यात्रा (Road Trip to Deoban, Chakrata)
- टाइगर फॉल में दोस्तों संग मस्ती (A Perfect Destination - Tiger Fall)
- लाखामंडल से मसूरी की सड़क यात्रा (A Road Trip to Mussoorie)
Frozen lake mast tha, nice pics :)
ReplyDeleteधन्यवाद जीतू भाई !
Deleteजमी हुयी झील के बारे में पढ़कर अच्छा लगा,ऐसी चीजें काफी आकर्षित करती हैं
ReplyDeleteहर्षिता जी, झील वाकई में बहुत सुंदर है !
Deleteमुझे भी जमी हुई झील ने ही आकर्षित किया. सच कहूँ तो मैने आजतक कोई जमी झील का फोटो तक नहीं देखा था, बस सुना था की पूरी की पूरी झील जम जाती है लेकिन आज उस जमी झील पर आप तीनों को खड़े हुए देखकर मज़ा आ गया. बहुत सुंदर यात्रा व्रुत्तान्त तथा लुभावने चित्र...
ReplyDeleteThanks,
वाकई, जमी हुई झील पर खड़ा होना अपने आप में एक सुखद अनुभव था ! अगर कभी मौका मिले तो यहाँ ज़रूर जाइए !
Deleteआज का दिन तो मस्ती में गुजरा । मुझे लगता है वो झील न हॉकर बारिश का इक्कठा पानी है जो गद्दा होंने की वजय से भर गया । अब दिसम्बर में पैनी जम गया होगा ।खेर फिर भी जमा हुआ पानी बहुत सुन्दर दिख रहा है और तिनो का फोटु उसमें जान ड़ाल रहा है । इतनी सर्दी में पवन तुमने सिर्फ चप्पल पहनी। आश्चर्य है । हम तो घर में भी चप्पल के निचे मोज़े पहनते है। ठंडी ही नहीं कयामत की ठंडी लग रही होगी :):):):)
ReplyDeleteबिल्कुल सही, आज का दिन तो मस्ती में ही गुजरा ! हो सकता है बारिश का पानी हो, और हो सकता है तालाब ही हो ! पर हमने तो कुल मिलाकर वहाँ खूब मस्ती की ! वैसे जमी हुई झील देखने के बाद हमारी सारी सर्दी छू-मंतर हो गई !
Deleteन फ़िक्र, न कोई चिंता , इसे कहते दोस्तों के साथ मस्ती से घूमना , जहाँ मन किया रुक गये, जब मन किया चल दिया ... | एक बढ़िया पोस्ट ... फोटो के साथ बढ़िया नजारा देबवन का | मसूरी देहरादून घूमा है पर चकराता नहीं देखा .... चलो लेख से कुछ हासिल तो हुआ ...
ReplyDeleteलिखिए रहिये ...
धन्यवाद रितेश भाई !
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