रविवार, 27 दिसंबर 2009
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यात्रा के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि किस तरह हम रोमांच से भरे एक सफ़र को तय करके देवबन पहुँचे और कुछ समय वहाँ बिताने के बाद वापिस अपने होटल आ गए ! अब आगे, रात को बढ़िया नींद आई तो सुबह समय से सोकर उठे, उठने के बाद भी काफ़ी देर तक कंबल में ही बैठे रहे ! यहाँ चकराता में इतनी जबरदस्त ठंड पड़ रही थी कि बिस्तर से निकलने की हिम्मत किसी की भी नहीं हो रही थी ! वैसे, कल रात खूब अच्छी नींद आने का कारण ये था कि आज का कमरा कल वाले कमरे से काफ़ी बड़ा और बिस्तर भी काफ़ी नरम था ! दरअसल, कल दोपहर को जब एक नवविवाहित जोड़े ने ये कमरा खाली किया तो होटल वाले को अपना फ़ायदा दिखा, अभी उसके पास यही एक कमरा खाली था, और हमने दो कमरे लिए हुए हुए थे ! अब अगर हम चारों वो दो कमरे छोड़ कर एक ही कमरे में आ जाते तो होटल वाले के पास एक की जगह दो कमरे खाली हो जाते ! हमें भी कोई आपत्ति नहीं थी, इसलिए दो छोटे कमरों से अच्छा एक बड़े कमरे में रहना ज़्यादा उचित लगा !
होटल की छत से दिखाई देता एक दृश्य (A view from our Hotel in Chakrata) |
फिर जब उसने बताया कि आज हम टाइगर फॉल होते हुए आगे लाखामंडल जाएँगे और वहीं से दिल्ली के लिए निकल लेंगे तो सब उसे ऐसे देखने लगे जैसे उसने हमारे अधिकारों का हनन कर दिया हो ! यहाँ के आस-पास घूमने की जगहों की जानकारी वो पिछली शाम को होटल संचालक और यहाँ के स्थानीय लोगों से ले चुका था, इस पूरी यात्रा का कर्ता-धर्ता भी वोही था ! इसलिए अब तो हम सब बिजली की फुर्ती से बारी-2 से नहाने-धोने में लग गए, आज एक ही बाथरूम था इसलिए बारी-2 से तैयार होने में एक घंटा लग गया ! जब तक हम तीनों तैयार हुए, जयंत नाश्ते के लिए नीचे हॉल में पहुँच चुका था, नीचे जाने पर आज हमें नाश्ते के लिए ज़्यादा इंतजार नहीं करना पड़ा क्योंकि जयंत पहले ही खाने का ऑर्डर दे चुका था ! अगले आधे घंटे में हम सब नाश्ता करके वापस अपने कमरे में आ गए और अपना बैग पैक करने लगे, सारा सामान लेकर हम सब होटल संचालक के पास पहुँच गए !
यहाँ हमने होटल में रुकने का हिसाब करके होटल संचालक को बकाया राशि का भुगतान किया और अपना सामान गाड़ी में रखकर टाइगर फाल के लिए निकल पड़े ! योजना के मुताबिक हम यहाँ से दिल्ली जाने वाले मार्ग पर पड़ने वाली जगहों को देखते हुए जाने वाले थे, टाइगर फॉल हमारा पहला लक्ष्य था ! समय देखा तो सुबह के साढ़े-आठ बज रहे थे, टाइगर फॉल चकराता से 25 किलोमीटर दूर है, पर पहाड़ी रास्ता होने के कारण ये दूरी तय करने में भी काफ़ी समय लग जाता है ! सफ़र शुरू करने के बाद थोड़ी दूर तक तो एक पहाड़ी से नीचे उतरे, फिर दूसरी पहाड़ियों पर चढ़ते हुए सड़क के दोनों ओर खूबसूरत नज़ारे दिखाई देने शुरू हो गए ! रास्ते में हम एक-दो जगह रुके भी, डेढ़ घंटे का सफ़र तय करने के बाद हमें अपनी बाईं ओर एक गहरी घाटी दिखाई दी, थोड़ा और आगे बढ़ने पर एक छोटा कस्बा मिला, जहाँ हमने गाड़ी सड़क के किनारे रोक-कर एक दुकान से पहले तो खाने-पीने का कुछ सामान खरीदा !
फिर टाइगर फॉल के बारे में ज़रूरी जानकारी भी ली, जानकारी के अनुसार टाइगर फॉल जाने के लिए हमें यहाँ से पैदल ही जाना था क्योंकि यहाँ से आगे गाड़ी ले जाने लायक रास्ता नहीं है ! सारा सामान गाड़ी में छोड़कर हम सब वहीं सड़क के किनारे से जाते हुए एक कच्चे मार्ग पर हो लिए, ये रास्ता ढलान पर और काफ़ी घुमावदार था, आगे जाने पर ये रास्ता खेतों में से होता हुआ झरने तक जाता है ! इस मार्ग पर एक किलोमीटर चलने के बाद हम नीचे घाटी में बसे एक छोटे गाँव में पहुँच गए ! रास्ते में ही कुछ बहुत पुरानी इमारतें और वस्तुएँ भी देखने को मिली, जिसमें एक पुरानी चक्की देखी ! वहाँ हमें गाँव का एक वृद्ध किसान भी मिला जिसने हमें कुछ महत्वपूर्ण जानकारियाँ दी, खेतों की मेंढ पर चलते हुए हम सब एक पुल पर पहुँचे, ये पुल झरने से बह कर आते हुए पानी पर ही बनाया गया था ! इस पुल से अभी भी झरना 300 मीटर दूर था, इस पुल से देखने पर एक तरफ तो कुछ किसान अपने खेतों में काम करते हुए दिखाई दे रहे थे जबकि दूसरी ओर कुछ बच्चे बकरियाँ चरा रहे थे !
झरना काफ़ी अंदर जाकर था इसलिए यहाँ से दिखाई नहीं दे रहा था ! पुल पार करने के बाद पानी के बहाव की दिशा देखकर अंदाज़ा लगाना काफ़ी आसान था कि झरना किस दिशा में है ! हम पानी के बहाव के विपरीत दिशा में बढ़ते रहे, फिर थोड़ा आगे बढ़ने पर पानी के गिरने की आवाज़ भी सुनाई देने लगी ! इस झरने में पानी काफ़ी उँचाई से नीचे गिर रहा था इसलिए दूर तक गर्जना उत्पन्न कर रहा था ! झरना दिखाई देने के बाद तो हम चारों दौड़ लगाते हुए झरने पर सबसे पहले पहुँचने की होड़ में लग गए, कुछ ही पलों बाद हम चारों झरने के सामने खड़े थे ! टाइगर फॉल का नाम भारत के कुछ उँचे झरनों की श्रेणी में आता है, यहाँ पानी 95 फीट की उँचाई से नीचे गिरता है, जो देखने में बहुत सुंदर लगता है ! इस झरने में नहाना भी काफ़ी रोमांचक होता है, जिस समय हम झरने पर पहुँचे वहाँ हमारे अलावा और कोई नहीं था ! वैसे, झरने के आस-पास काफ़ी गंदगी फैली थी, जिसे देख कर अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं था कि यहाँ लोग आते तो है पर ये झरना उतना विकसित नहीं हो पाया, जितना इसे होना चाहिए था !
अब इतना सुंदर झरना हमारे सामने था तो हम भला कहाँ रुकने वाले थे, झट से हम चारों नहाने के लिए झरने के नीचे पहुँच गए ! उम्मीद के मुताबिक झरने का पानी काफ़ी ठंडा था पर तीनों ओर से घिरा होने के कारण यहाँ ज़्यादा ठंड नहीं लग रही थी ! ठंड भी तभी लगती है जब गीले शरीर में हवा लगे, अगर पानी में बैठे रहो तो ठंड कम लगती है, जितनी देर हम पानी में रहे खूब आनंद आया ! आधे घंटे पानी में नहाने के बाद हम सब झरने से बाहर आ गए, उसके बाद काफ़ी देर तक ठंड लगती रही ! नहाने के दौरान जब कभी पानी की एक-दो धार सीधे शरीर पर पड़ जाती तो ऐसा लगता जैसे शरीर पर कोई चोट लग रही हो ! जब यहाँ काफ़ी समय हो गया तो सब वापस चल दिए, उस पुल को पार करते हुए हम सब तेज़ी से उपर खड़ी अपनी गाड़ी की ओर जाने लगे ! वापसी के दौरान राहुल तो उसी मार्ग से जा रहा था जिससे हम झरने तक आए थे पर हम तीनों पुल पार करने के बाद मुख्य रास्ता छोड़कर पहाड़ी पर चढ़ने लगे !
दरअसल, यात्रा में थोड़ा रोमांच लाने के लिए हमने सोचा कि पहाड़ी पर चढ़कर ऊपर चला जाए, इसलिए मुख्य मार्ग से हट गए ! इस पहाड़ी पर एकदम खड़ी चढ़ाई थी, इस समय पहाड़ी पर उगे सारे पेड़-पौधे भी सूख गए थे, शुरुआत में तो पहाड़ी पर चढ़ना काफ़ी आसान लग रहा था पर थोड़ी देर बाद चढ़ाई मुश्किल होती चली गई ! देखते ही देखते हम तीनों काफ़ी उँचाई पर पहुँच गए, पर अभी तक वो मुख्य मार्ग नहीं दिखाई दे रहा था जहाँ हमारी गाड़ी खड़ी थी ! इस पहाड़ी पर चढ़ाई करते हुए अंदाज़ा लगाना भी मुश्किल हो रहा था कि क्या वाकई में हम सही दिशा में चढ़ रहे थे ! आधे घंटे से भी ज़्यादा का समय हो गया था और अभी तक हम उपर नहीं पहुँच पाए थे, एक बार तो मन हुआ कि वापिस नीचे जाकर मुख्य मार्ग से होते हुए ही अपनी गाड़ी तक जाया जाए ! पर जब नीचे देखा तो पता चला कि हम उस समय काफ़ी उँचाई पर थे, और यहाँ से नीचे उतरना काफ़ी जोखिम भरा था ! चढ़ते हुए तो जैसे-तैसे करके हम छोटे-बड़े पौधों को पकड़-2 कर यहाँ तक पहुँच गए थे, पर उतरना उतना आसान नहीं लग रहा था !
ऐसी पहाड़ी से उतरते समय काफ़ी संतुलन बनाए रखने की ज़रूरत होती है जो यहाँ काफ़ी मुश्किल लग रहा था, ये बात हमने 3-4 कदम नीचे उतरने के दौरान ही महसूस कर ली ! जैसे ही मैं दो कदम नीचे उतरा, मेरा पैर फिसल गया, वो तो गनीमत थी कि वहीं पास में मौजूद एक टूटे हुए पेड़ की जड़ को मैने पकड़ लिया ! हिम्मत जवाब दे गई, सोच लिया नीचे तो किसी कीमत पर नहीं उतरना ! यहाँ से दूर दिखाई देता वो किसान अब भी अपने खेतों में काम कर रहा था जिसे झरने पर जाते हुए भी हमने देखा था ! मैने आवाज़ लगाकर उस से पूछना चाहा कि क्या जहाँ हम खड़े है, वहाँ से उपर जाया जा सकता है, इस पर उसने हमें नीचे आने का ही सुझाव दिया ! वास्तव में उस समय हमारी स्थिति आगे कुआँ, पीछे खाई वाली थी, हम सब यही सोच रहे थे कि राहुल तो कब का गाड़ी तक पहुँच गया होगा और हमारी राह देख रहा होगा ! फिर सोचा, फोन करके उसे बता दें कि हम तीनों यहाँ पहाड़ी पर फँस गए है, फोन निकाला तो उस समय तीनों में से किसी के भी फोन में नेटवर्क नहीं आ रहा था !
फिर तो जैसे लगने लगा कि हमारा अंतिम समय पास ही है, सबने भगवान को याद करना शुरू कर दिया, इतने में जयंत ने ये कहकर और डरा दिया कि यार, थोड़ी दूरी पर ऊपर की ओर बकरियाँ दिखाई दे रही है ! वो बोला, बेटे बकरियाँ ऐसे ही दुर्गम स्थानों पर होती है जहाँ इंसान पहुँच भी नहीं पाता, मतलब अब तो यहाँ से हमारा निकलना मुश्किल है ! सच कहूँ उस दिन यकीन हो गया कि सच्चे दोस्त वास्तव में कमीने ही होते है, ऐसे मुश्किल समय में लोग एक-दूसरे का हौंसला बढ़ाते है और ये सबको डराने में लगा है ! फिर जाने क्या मन में आया कि हम में से ही कोई बोला, यहाँ फँस तो गए ही है, चलो यार थोड़ा और ऊपर चलते है ! रास्ता मिलेगा तो सही वरना उपर से नज़ारे और शानदार मिलेंगे ! ये भी हो सकता है कि शायद बकरियों के आस-पास कोई इंसान भी मिल जाए जो यहाँ से निकलने में हमारी मदद कर दे ! मैं बोला, साले एक तो इतनी ऊँचाई पर आकर फँस गए है और तुम्हें अभी भी खूबसूरत नज़ारों की पड़ी है ! अबे ज़िंदा रहे, तो सारी उम्र पड़ी है नज़ारे देखने के लिए !
20-25 कदम और ऊपर चढ़ने के बाद हम बकरियों तक पहुँच गए, ये स्थान एक टीले की तरह था, जहाँ से हमें ऊपर जाता हुआ मार्ग भी दिखाई दे दिया ! टीले जैसी आकृति का होने के कारण हमें इसके पीछे से जाता मुख्य मार्ग नहीं दिखाई दे रहा था, पर अब हमें मुख्य मार्ग दिखाई दे दिया और अगले 5 मिनट में हम लोग अपनी गाड़ी तक पहुँच गए ! राहुल यहाँ पहुँचकर काफ़ी देर से हमारा इंतजार कर रहा था, हमारे वहाँ पहुँचते ही वो बोला, अबे, कहाँ रह गए थे तुम ? मैं यहाँ आधे घंटे से तुम्हारा इंतजार कर रहा हूँ, और तुम पता नहीं कहाँ रुक गए थे, तुममें से किसी का फोन भी नहीं लग रहा ! हमने कहा, बेटे जो रोमांच हम लेकर आ रहे है वो झरने से भी ज़्यादा अच्छा था, थोड़ी देर की बातचीत के बाद हमने वहीं एक दुकान पर चाय पी ! चाय ख़त्म करने के बाद गाड़ी में बैठकर दिल्ली जाने के लिए अपना आगे का सफ़र जारी रखा !
होटल की बालकनी से लिया एक चित्र (A view from our Hotel, Chakrata) |
सूर्योदय का एक और दृश्य (Sunrise in Chakrata, Dehradun) |
टाइगर फॉल निकलने की तैयारी करते हुए (Ready for Tiger Fall, Chakrata) |
होटल के बाहर पार्किंग में |
टाइगर फॉल जाने का मार्ग (On the way to Tiger Fall, Chakrata) |
टाइगर फॉल जाने का मार्ग (On the way to Tiger Fall, Chakrata) |
पहाड़ी से दिखाई देते खेत |
पहाड़ी से दिखाई देते खेत और झरने के पानी |
झरने की ओर जाते हुए दिखाई देती एक पहाड़ी |
झरने की ओर जाते हुए पवन |
झरने से पहले बना एक पुल |
टाइगर फॉल (झरना) (Tiger Fall) |
टाइगर फॉल (झरना) (Beauty of Tiger Fall) |
Beauty of Tiger Fall |
झरने से वापस आते हुए जयंत और पवन |
वापसी में दिखाई देता एक नज़ारा |
पहाड़ी पर चढ़ते हुए पवन |
वापसी में पहाड़ी से दिखाई देते खेत |
आख़िर में उपर पहुँच ही गए |
क्यों जाएँ (Why to go Chakrata): अगर आप साप्ताहिक अवकाश (Weekend) पर दिल्ली की भीड़-भाड़ से दूर प्रकृति के समीप कुछ समय बिताना चाहते है तो उत्तराखंड में स्थित चकराता का रुख़ कर सकते है ! यहाँ आपको देखने के लिए पहाड़, झरने, जंगल, और रोमांच सबकुछ मिलेगा !
कब जाएँ (Best time to go Chakrata): वैसे तो आप चकराता साल के किसी भी महीने में जा सकते है, पर अगर आपको हरे-भरे पहाड़ देखने हो और अगर आप झरने देखने का भी शौक रखते हो तो जुलाई-अगस्त उत्तम समय है ! अगर प्राकृतिक दृश्यों का भरपूर आनंद लेना हो तो आप यहाँ मार्च से जून के मौसम में आइए ! सर्दियों के मौसम में यहाँ कड़ाके की सर्दी पड़ती है इसलिए अगर सर्दी में यहाँ जाने की इच्छा हो रही हो तो अपने साथ गर्म कपड़े ज़रूर ले जाएँ !
कैसे जाएँ (How to reach Chakrata): दिल्ली से चकराता की दूरी महज 320 किलोमीटर है जिसे तय करने में आपको लगभग 8-9 घंटे का समय लगेगा ! दिल्ली से देहरादून होते हुए आप चकराता जा सकते है एक मार्ग यमुनानगर-पौंटा साहिब होकर भी चकराता को जाता है ! दोनों ही मार्गों की हालत बढ़िया है ! अगर आप चकराता ट्रेन से जाने का विचार बना रहे है तो यहाँ का सबसे नज़दीकी रेलवे स्टेशन देहरादून है, जो देश के अन्य शहरों से जुड़ा हुआ है ! देहरादून से चकराता महज 88 किलोमीटर दूर है जिसे आप टैक्सी या बस के माध्यम से तय कर सकते है, देहरादून से 10-15 किलोमीटर जाने के बाद पहाड़ी क्षेत्र शुरू हो जाता है !
कहाँ रुके (Where to stay in Chakrata): चकराता उत्तराखंड का एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है पहले यहाँ कम ही लोग जाते थे लेकिन अब यहाँ जाने वाले लोगों की तादात काफ़ी बढ़ गई है ! लोगों की सुविधा के लिए यहाँ रुकने के लिए कई होटल है लेकिन अगर यात्रा सीजन मई-जून में यहाँ जाने की योजना है तो होटल का अग्रिम आरक्षण करवाकर ही जाएँ ! होटल में रुकने के लिए आपको 800 रुपए से लेकर 2000 रुपए तक खर्च करने पड़ सकते है !
कहाँ खाएँ (Eating option in Chakrata): चकराता का बाज़ार बहुत बड़ा तो नहीं है लेकिन फिर भी खाने-पीने के लिए ठीक-ठाक दुकानें है ! फिर भी पहाड़ी क्षेत्र है इसलिए ख़ान-पान के ज़्यादा विकल्पों की उम्मीद ना ही रखे तो बेहतर होगा !
क्या देखें (Places to see in Chakrata): चकराता में घूमने के लिए बहुत ज़्यादा विकल्प तो नहीं है फिर भी कुछ जगहें ऐसी है जो यहाँ आने वाले यात्रियों का मन मो लेती है ! इनमें से कुछ जगहें है टाइगर फाल, देवबन, और लाखामंडल !
अगले भाग में जारी...
कहाँ खाएँ (Eating option in Chakrata): चकराता का बाज़ार बहुत बड़ा तो नहीं है लेकिन फिर भी खाने-पीने के लिए ठीक-ठाक दुकानें है ! फिर भी पहाड़ी क्षेत्र है इसलिए ख़ान-पान के ज़्यादा विकल्पों की उम्मीद ना ही रखे तो बेहतर होगा !
क्या देखें (Places to see in Chakrata): चकराता में घूमने के लिए बहुत ज़्यादा विकल्प तो नहीं है फिर भी कुछ जगहें ऐसी है जो यहाँ आने वाले यात्रियों का मन मो लेती है ! इनमें से कुछ जगहें है टाइगर फाल, देवबन, और लाखामंडल !
अगले भाग में जारी...
चकराता - मसूरी यात्रा
- चकराता का एक यादगार सफ़र (A Memorable Trip to Chakrata)
- चकराता के जंगल में बिताई एक शाम (A Beautiful Evening in Chakrata)
- देवबन के घने जंगल की रोमांचक यात्रा (Road Trip to Deoban, Chakrata)
- टाइगर फॉल में दोस्तों संग मस्ती (A Perfect Destination - Tiger Fall)
- लाखामंडल से मसूरी की सड़क यात्रा (A Road Trip to Mussoorie)
एक रोमांचकारी यात्रा,समझा जा सकता है कि जब पहाड़ी पर फंसे होंगे तो कितना दर लगा होगा
ReplyDeleteबिल्कुल सही बात, पहाड़ी पर फँसने के दौरान तो काफ़ी डर लग रहा था पर उपर पहुँच कर काफ़ी खुशी भी हुई !
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