रविवार, 15 जुलाई 2012
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यात्रा के पिछले लेख में आपने पॅंच-पुला के बारे में पढ़ा, अब आगे, डलहौज़ी की रात इतनी ठंडी थी, कि सुबह बिस्तर से बाहर निकलने का मन ही नहीं हो रहा था ! बिस्तर पर लेटे-2 ही अपने कमरे की खिड़की से बाहर झाँक कर देखा, तो सूर्योदय हो चुका था ! फिर तो आलस को एक तरफ रखकर फटाफट बिस्तर से बाहर निकले, और अपने कमरे की छत पर सुबह की खूबसूरती का नज़ारा देखने के लिए पहुँच गए ! उस समय हमारे होटल की छत पर कुछ बंदर घूम रहे थे, हमें देखते ही सारे बंदर भाग खड़े हुए ! यहाँ छत पर से बहुत सुन्दर नज़ारा दिखाई दे रहा था, हल्की-2 लालिमा लिए दूर लाल रंग का सूर्य दिखाई दे रहा था, और सूरज की किरणें घने पेड़ों को चीर कर हम तक आ रही थी ! हम लोग वहीँ छत पर एक किनारे बैठ कर प्रकृति की सुन्दरता को निहारने लगे, मोबाइल में समय देखा तो सुबह के सात बज रहे थे ! डलहौज़ी में आज हमारे पास घूमने जाने के लिए तीन जगहें थी, कालाटोप वाइल्डलाइफ सेंचुरी, डायन कुण्ड, और खजियार ! इन जगहों में हमारे होटल से सबसे दूर खजियार था, जिसकी दूरी यहाँ से करीब 22 किलोमीटर थी !
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यात्रा के पिछले लेख में आपने पॅंच-पुला के बारे में पढ़ा, अब आगे, डलहौज़ी की रात इतनी ठंडी थी, कि सुबह बिस्तर से बाहर निकलने का मन ही नहीं हो रहा था ! बिस्तर पर लेटे-2 ही अपने कमरे की खिड़की से बाहर झाँक कर देखा, तो सूर्योदय हो चुका था ! फिर तो आलस को एक तरफ रखकर फटाफट बिस्तर से बाहर निकले, और अपने कमरे की छत पर सुबह की खूबसूरती का नज़ारा देखने के लिए पहुँच गए ! उस समय हमारे होटल की छत पर कुछ बंदर घूम रहे थे, हमें देखते ही सारे बंदर भाग खड़े हुए ! यहाँ छत पर से बहुत सुन्दर नज़ारा दिखाई दे रहा था, हल्की-2 लालिमा लिए दूर लाल रंग का सूर्य दिखाई दे रहा था, और सूरज की किरणें घने पेड़ों को चीर कर हम तक आ रही थी ! हम लोग वहीँ छत पर एक किनारे बैठ कर प्रकृति की सुन्दरता को निहारने लगे, मोबाइल में समय देखा तो सुबह के सात बज रहे थे ! डलहौज़ी में आज हमारे पास घूमने जाने के लिए तीन जगहें थी, कालाटोप वाइल्डलाइफ सेंचुरी, डायन कुण्ड, और खजियार ! इन जगहों में हमारे होटल से सबसे दूर खजियार था, जिसकी दूरी यहाँ से करीब 22 किलोमीटर थी !
गाँधी चौक पर बस का इंतजार करते हुए शशांक (Gandhi Chowk in Dalhousie) |
आप लोगों की जानकारी के लिए बता दूं कि खजियार को इसकी सुन्दरता की वजह से छोटा स्विट्ज़रलैंड भी कहा जाता है, ये हिमाचल का बहुत ही प्रसिद्ध दर्शनीय स्थान है ! जब हम गाँधी चौक पहुँचे तो वहाँ ज़्यादा यात्री नहीं थे, 9 बज गए थे पर अभी तक ख़ज़ियार जाने वाली बस का कहीं कोई अता-पता नहीं था ! हमने सोचा बस के इंतजार करते हुए चाय ही पी लेते है, पास में ही एक दुकानदार को 4 चाय बनाने के लिए कहकर हम लोग आपस में बातें करने लगे ! गाँधी चौक पर ही एक टैक्सी स्टैंड भी है जहाँ से आप खजियार, कालाटॉप, या डायन कुंड जाने के लिए किराए पर टैक्सी ले सकते है, पर किराया ज़्यादा होने की वजह से हमने टैक्सी के बजाय बस के सफ़र को ज़्यादा अहमियत दी ! धीरे-2 गाँधी चौक पर यात्रियों की भीड़ बढ़ने लगी, इन यात्रियों में से कुछ तो दैनिक यात्री भी लग रहे थे, शायद ये यहाँ से अपने व्यवसाय के चक्कर में चम्बा जाते हो ! हम सब भी वहाँ अन्य यात्रियों की तरह बस के इंतज़ार में खड़े थे, और मैं ये बात पूरे विश्वास से कह सकता हूँ कि अगर अगले दस मिनट में बस ना आती तो और भी ज़्यादा भीड़ हो जाती !
चाय पीते हुए अचानक हमें पहाड़ी के नीचे से बस आती हुई दिखाई दी, हमें समझने में देर नहीं लगी कि ये ख़ज़ियार जाने वाली बस थी ! पहाड़ों की उँचाई से अक्सर काफ़ी दूर तक दिखाई देता है इसलिए हमें ये बस दिखाई दे दी, और हमने बस के यहाँ पहुँचने से पहले ही फटाफट अपनी चाय ख़त्म कर ली ! गाँधी चौक तक पहुँचते-2 बस अपने निर्धारित समय से पांच मिनट लेट हो चुकी थी, बस के रुकते ही हम सब तुरंत इसमें सवार हो गए ! बस के अंदर भीड़ तो बहुत थी पर हमें वहाँ दो सीटें मिल गई, हम चारों उन दो सीटों पर ही बैठ गए ! जैसा कि मैं आपको अपने पिछले लेख में भी बता चुका हूँ कि गाँधी चौक से आगे बढ़ने पर मुख्य सड़क दो हिस्सों में विभाजित हो जाती है,पॅंच-पुला जाते हुए हम नीचे वाले रास्ते पर गए थे, और आज हम ख़ज़ियार जाने के लिए ऊपर वाले रास्ते पर जा रहे थे ! जो लोग अपनी गाडी से डलहौज़ी जाना चाहते है, उनकी जानकारी के लिए बता दूं कि खजियार, कालाटोप वाइल्डलाइफ सेंचुरी, और डायन-कुण्ड जाने के लिए आपको इसी ऊपर वाले रास्ते पर जाना होता है !
हमारी बस जैसे ही गांधी चौक से आगे बढ़ी तो दस-पन्द्रह मिनट की यात्रा के बाद सड़क के किनारे हमें डलहौज़ी पब्लिक स्कूल दिखाई दिया, पहाड़ों पर ये स्कूल देखने में बहुत ही सुन्दर लग रहा था ! इस स्कूल के बारे में पहले काफ़ी सुना था और आज देख भी लिया ! ऐसी जगहों पर स्कूल-कॉलेज में पढने का अलग ही मजा होता है, शहर से दूर एकदम शांत वातावरण में पढ़ने के लिए स्कूल जाना अपने आप में ही एक अलग अनुभव है ! खैर, छोड़िए ये पढ़ाई-लिखाई की बातें, मैं भी आपको खजियार घुमाते-2 कहाँ ये पढ़ाई की बातें लेकर बैठ गया ! खजियार जाते हुए रास्ते में कई घुमावदार मोड़ आए, धीरे-2 हम लोग काफ़ी उँचाई पर पहुँच चुके थे ! फिर उँचाई से ही हमें दूर एक खुला मैदान दिखाई दिया, एक स्थानीय यात्री से पूछने पर पता चला कि ये ख़ज़ियार ही था ! उँचाई पर पहुँचने के बाद बस ने नीचे उतरना शुरू कर दिया, फिर भी गाँधी चौक से खजियार पहुँचने में हमें करीब दो घंटे लग गए !
बस में बैठे-2 ही खिड़की में से खजियार का पहला दृश्य देख कर मन खुश हो गया ! नज़ारा ही कुछ ऐसा दिखाई दे रहा था कि शब्दों में बयां नहीं कर सकता, ये नज़ारा किसी को भी अपनी ओर आकर्षित करने के लिए काफी था ! बात-चीत के दौरान ही बस में बैठे एक सहयात्री ने मुझे बताया था कि खजियार से एक किलोमीटर आगे भगवान शिवजी का एक मंदिर है, जहाँ दूर-2 से लोग दर्शन के लिए आते है ! उसने मुझे सुझाव भी दिया कि खजियार घूमने से पहले तुम इस मंदिर में जाकर भगवान के दर्शन कर सकते हो, उसके बाद पैदल ही वापस खजियार आ जाना ! जब मंदिर के बारे में मैंने अपने साथियो को बताया तो सबने कहा कि बात तो सही है, आए तो घूमने ही है, और हमारे पास दिन भी पूरा है, तो कहीं से भी शुरुआत करें, क्या फर्क पड़ता है ! यही सोच कर खजियार पहुँचने के बाद भी हम लोग बस में ही बैठे रहे, और मंदिर के सामने पहुँच कर ही बस से उतरे ! बस से उतरने पर सड़क के एक ओर तो घने जॅंगल थे और दूसरी ओर भगवान शिव का मंदिर था !
मंदिर में जाकर भगवान के दर्शन करने के बाद थोड़ी देर तक मंदिर प्रांगण में घूम कर वहां का जायजा लिया ! मंदिर के प्रांगण में ही भगवान शिव की एक विशाल प्रतिमा है ! एक भक्तजन से बातचीत के दौरान ही हमें पता चला कि लोग यहाँ देश के अलग-2 हिस्सों से सेवाभाव से आते है, कुछ दिन रुक कर यहाँ मंदिर में सेवा करते है, और फिर अपने घर लौट जाते है ! जिस भक्तजन से हम बात कर रहे थे, वो पंजाब से थे और उनका अपना एक्सपोर्ट का कारोबार था, वो भी यहाँ सेवाभाव से हर साल ही आते है ! उन्होंने ही हमें ये जानकारी भी दी कि ये मंदिर भक्तजनों के दान की राशि से ही बनाया गया है ! इसलिए यहाँ भक्तजनों के रुकने और खाने-पीने की भी निशुल्क व्यवस्था है ! प्राप्त जानकारी के अनुसार यहाँ गर्मियों में बहुत श्रद्धालु आते है, इसलिए अगर कभी आप गर्मियों में यहाँ आएं तो अपने रुकने की व्यवस्था करके ही आएं, क्यूंकि गर्मियों में मंदिर के सभी कमरें भरे रहते है ! हालाँकि, अपनी एक ब्लॉगर मित्र दर्शन कौर धनौय के लेख से मिली जानकारी के अनुसार यहाँ सिर्फ़ ट्रस्ट के सदस्यों को ही कमरे मिलते है ! इस बात की पुष्टि के लिए आप मंदिर कमेटी में फोन करके पता कर सकते है !
यहाँ मंदिर में आधा घंटा रुकने के बाद हम लोग मंदिर के प्रांगण से बाहर आ गए, और खजियार की ओर पैदल ही चल दिए ! मंदिर से खजियार जाने का रास्ता बहुत सुन्दर है, मुख्य सड़क के दोनों ओर ऊँचे-2 चीड के पेड़, यहाँ की सुन्दरता को चार चाँद लगा देते है ! सड़क के दोनों ओर चीड के पेड़ो का घना जंगल है ! बाईं तरफ के जंगल सड़क से थोडा ऊँचाई पर है, थोड़ी दूर तक तो हम लोग सड़क पर ही चलते रहे, और फिर बाईं ओर के जंगल में घुस गए, हम लोगों का विचार इस जंगल में से होकर खजियार में प्रवेश करने का था ! रास्ते में कई जगह रुककर हम लोगों ने फोटो भी खिंचवाए ! जंगल में घुसते ही एक ऊँची जगह पर खड़े होकर हमने देखा कि आगे उसी जंगल में बड़े-2 चीड के पेड़ टूट कर गिरे हुए थे, शायद ये पेड़ आंधी में टूटे थे ! हम टूटे हुए उन पेड़ों में से कुछ पर चढ़-कर तो कुछ के नीचे से होते हुए खजियार के मैदान में पहुँचे ! खजियार में घुसते ही दूर तक खुला हरा मैदान दिखाई देता है, और उस मैदान के दूसरी ओर विशाल चीड के पेड़, जिन्हें देख कर ऐसा लगता है कि ये चीड के पेड़ खजियार की सुन्दरता को अपने अन्दर समेटना चाहते हो !
ऐसी पहाड़ी जगह पर ऐसे खुले मैदान कई बार तो हैरत पैदा कर देते है ! इस मैदान में पहुँचते ही मन में एक अजीब सी ख़ुशी हुई, जिसका अंदाज़ा आप लोग यहाँ पहुँच कर ही लगा पाओगे ! मैदान के चारों तरफ चलने के लिए पक्की सड़क बनाई गई है, और जगह-2 फेरी वाले खाने-पीने का सामान बेच रहे थे ! कुछ परिवार मैदान के एक कोने में बैठकर खाने-पीने का आनंद ले रहे थे, तो कुछ लोग मैदान के चारों तरफ घुड़सवारी का आनंद ले रहे थे ! मैदान के मध्य में एक झील भी है जिसका इतिहास बहुत पुराना है, कहते है कि ये झील उल्का पिंडों के टकराने से बनी है ! इस झील को लेकर कुछ अन्य कहावतें भी है पर ये बातें कितनी सच्ची है ये कोई नहीं जानता ! हालाँकि, जिस समय हम ख़ज़ियार में थे, इस झील में ज़्यादा पानी नहीं था, और जितना भी पानी था वो बहुत गंदा था ! ख़ज़ियार के मैदान में ही घुड़सवारी के लिए आपको घोड़े वाले मैदान के अंदर बनी सड़क के किनारे ही घुमते हुए मिल जाएंगे, जो आपसे कुछ रुपए लेकर आपको घोड़े पर बिठाकर पूरे मैदान का चक्कर लगवा देंगे !
हम लोगों ने तो पैदल ही पूरे मैदान के 2 चक्कर लगा दिए, और उसके बाद मैदान के बीच में ही बैठ कर प्रकृति के नज़ारों का आनंद लेने लगे ! फिर जब भूख लगी तो खाना खाने खजियार के मैदान के मुख्य द्वार (जहाँ बसें रुकती है) की ओर चल दिए ! आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि खजियार में वैसे तो खाने-पीने के लिए फेरी वाले काफी कुछ बेचते रहते है, पर आपकी सुविधा के लिए यहाँ खजियार में दो-तीन होटल भी है, जहाँ आप भारतीय व्यंजनों का आनंद ले सकते है ! हम लोगों ने तो दही के साथ गोभी और पनीर के पराठों का आनंद लिया ! अक्सर घूमने-फिरने की जगहों पर खाने-पीने के सामान इतने स्वादिष्ट नहीं मिलते, पर यहाँ ऐसा नहीं था, यहाँ के पराठें स्वादिष्ट थे, और हमने पेट भर-कर खूब खाया ! खाने के बाद हम लोग फिर से मैदान के एक हिस्से में जाकर बैठ गए ! यहीं एक जादूगर अपने करतब दिखा रहा था, लोगों की भीड़ देख कर हमें इस बात का पता चला !
फिर क्या था, हम लोग भी चल दिए ये जादू का खेल देखने के लिए ! अपने करतब के लिए उसने दर्शक-दीर्घा में से किसी को आने के लिए आमंत्रित किया, जब कोई नहीं गया तो शशांक ही उठ कर चल दिया ! ये करतब बड़ा ही ख़तरनाक था, इसके बारे में मैं यहाँ ज़्यादा कुछ नहीं लिखना चाहूँगा, आख़िर शशांक के घर वाले लोगों को अगर इस बारे में पता चला तो उसका तो घूमना-फिरना बंद ही हो जाएगा ! करतब ख़त्म होने के बाद समय देखा तो दोपहर के दो बज चुके थे, डलहौज़ी जाने के लिए यहाँ खजियार से आखिरी बस दोपकर तीन बजे चलती है, जिसकी जानकारी हम यहाँ आते हुए बस कंडक्टर से पहले ही ले चुके थे ! आधा घंटा और मैदान में बैठने के बाद हम लोग खजियार के मुख्य प्रवेश द्वार के पास आकर बस के इंतज़ार में बैठ गए ! बस अपने निर्धारित समय पर आकर खजियार के बस स्टॉप पर खड़ी हो गई, जब सभी यात्री बस में सवार हो गए, तो बस चल दी ! वापस जाते हुए हमें ड्राईवर के बराबर वाली सीट मिली, जहाँ से हम बाहर के नजारों का आनंद आसानी से ले सकते थे !
बस में बैठे-2 प्रकृति के नजारों का आनंद लेते हुए पता ही नहीं चला कि कब समय बीत गया, और हम गाँधी चौक पहुँच गए ! हम जब गाँधी चौक पहुँचे तो अभी अँधेरा नहीं हुआ था, और गाँधी चौक पर स्थित लाइब्रेरी अभी तक खुली हुई थी, हमने सोचा कि क्यों ना थोड़ी देर लाइब्रेरी में ही बैठ लिया जाए ! माफ़ कीजिए, मैं आपको इस लाइब्रेरी के बारे में बताना तो भूल ही गया ! गाँधी चौक पर ही सेंट जोन्स चर्च के दाईं ओर एक पब्लिक लाइब्रेरी है, पिछली शाम जब हम पंच-पुला से घूम कर वापस आए थे तो ये बंद हो चुकी थी, पर आज ये अभी तक खुली हुई थी ! हमें लगा कि शायद लाइब्रेरी में डलहौज़ी के बारे में विस्तृत जानकारी मिले, और यही सोच कर हम लोग लाइब्रेरी के अंदर चले गए ! इस लाइब्रेरी के बाहर ही एक एटीएम भी है, जहाँ से आप ज़रूरत पड़ने पर पैसे निकाल सकते है ! लाइब्रेरी में घुसते ही सामने की ओर एक कंप्यूटर कक्ष था, जहाँ लोग इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहे थे ! मुख्य दरवाजे के पास ही एक आगंतुक रजिस्टर रखा हुआ था, हमने अपनी जानकारी इस रजिस्टर में भरी और लाइब्रेरी में अन्दर दाखिल हो गए !
आगे बढ़ने पर देखा कि लाइब्रेरी के एक कोने में दीवार पर चार्ट के माध्यम से डलहौज़ी के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई थी, आजादी से पहले के डलहौज़ी को भी चित्रों के माध्यम से दिखाया गया था ! चार्ट के दाईं ओर लोहे की अलमारियाँ रखी हुई थी, जिनमें बहुत ही दुर्लभ किताबों का संग्रह था ! हम लोगों ने अपनी-2 रूचि के अनुसार अलमारियों से कुछ किताबें निकलवाई, और वहीँ लाइब्रेरी में बैठ कर पढने लगे ! इन किताबों को पढ़कर हमें डलहौज़ी के इतिहास के बारे में भी महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त हुई ! लगभग आधा घंटा लाइब्रेरी में बैठने के बाद हम लोग बाहर आ गए, और बहुत देर तक गाँधी चौक के पास ही बाज़ार में घूमते रहे ! बाज़ार से अपनी ज़रूरत अनुसार थोड़ी-बहुत खरीददारी की, और जब अँधेरा हो गया तो वहीँ गाँधी चौक के पास ही टैक्सी स्टैंड पर बैठ कर बातें करने लगे ! हमें वहां बैठे हुए थोड़ी देर ही हुई थी कि अचानक बारिश शुरू हो गई, हम लोग बारिश से बचने के लिए वहीँ एक रेस्टोरेंट में घुस गए !
पहाड़ों पर बारिश कब शुरू हो जाए कोई नहीं जानता और फिर जुलाई होने की वजह से ये तो मौसम भी बरसात का ही था ! भूख बहुत तेज लगी थी, ऐसे में बिना भीगे अपने होटल जाना मुमकिन नहीं था इसलिए वहीँ खाने का आर्डर भी दे दिया ! खाना खाने के बाद हमने रेस्टोरेंट से बाहर झाँक कर देखा, तो अभी भी तेज़ बारिश हो रही थी, और इसके रुकने के कोई आसार नहीं दिखाई दे रहे थे ! क्यूंकि हमारा होटल गाँधी चौक से ज्यादा दूर नहीं था तो हमने सोचा कि यहाँ इंतज़ार करने से कोई फायदा नहीं है ! वहीँ पास की दुकान से दो छाते खरीदे, और बारिश से बचते हुए हम चारों लोग अपने होटल पहुँच गए ! जब होटल पहुँचे तो समय काफी हो गया था और हम लोग थक भी गए थे, फिर हमें अगले दिन भी तो घूमने जाना था, इसलिए बिना देरी दिए हम लोग अपने-2 बिस्तर में आराम करने चले गए !
Near Gandhi Chowk, Dalhousie |
दूरी दर्शाता एक बोर्ड |
गाँधी चौक से दिखाई देता ख़ज़ियार जाने का मार्ग (Way to Khajjar, Dalhousie) |
शिव मंदिर में शशांक और हितेश |
शिव मंदिर से ख़ज़ियार जाने का मार्ग |
सड़क के किनार घने चीड़ के पेड़ |
Forest Near Khajjar |
ख़ज़ियार का मैदान |
ख़ज़ियार का मैदान (Beautiful Khajjar) |
ख़ज़ियार का मैदान |
मैदान के बाहर टैक्सी स्टैंड |
बस से दिखाई देता एक दृश्य (A view from the Bus) |
बस के अंदर का एक दृश्य |
गाँधी चौक के पास रात्रि में लिया एक चित्र |
बारिश के बाद घर लिया एक चित्र |
क्यों जाएँ (Why to go Dalhousie): अगर आप दिल्ली की गर्मी और भीड़-भाड़ से दूर सुकून के कुछ पल पहाड़ों पर बिताना चाहते है तो आप डलहौजी का रुख़ कर सकते है ! यहाँ घूमने के लिए भी कई जगहें है, जिसमें झरने, चर्च, पहाड़, मंदिर और वन्य जीव उद्यान शामिल है !
कब जाएँ (Best time to go Dalhousie): वैसे तो आप साल के किसी भी महीने में घूमने के लिए डलहौजी जा सकते है लेकिन झरनों में नहाना हो तो बारिश से बढ़िया कोई मौसम हो ही नहीं सकता ! वैसे अगर बर्फ देखने का मन हो तो आप यहाँ दिसंबर-जनवरी में आइए, बढ़िया बर्फ़बारी देखने को मिलेगी !
कैसे जाएँ (How to reach Dalhousie): दिल्ली से डलहौजी की दूरी लगभग 559 किलोमीटर है ! यहाँ जाने का सबसे बढ़िया साधन रेल मार्ग है दिल्ली से पठानकोट तक ट्रेन से जाइए, जम्मू जाने वाली हर ट्रेन पठानकोट होकर ही जाती है ! पठानकोट से डलहौजी की दूरी महज 83 किलोमीटर है जिसे आप बस या टैक्सी से तय कर सकते है, इस सफ़र में आपके ढाई से तीन घंटे लगेंगे ! अगर आप सड़क मार्ग से जाना चाहे तो दिल्ली से डलहौजी (चम्बा) के लिए हिमाचल टूरिज़्म की वोल्वो और हिमाचल परिवहन की सामान्य बसें भी चलती है ! आप निजी गाड़ी से भी डलहौजी जा सकते है जिसमें आपको दिल्ली से डलहौजी पहुँचने में 10-11 घंटे का समय लगेगा !
कहाँ रुके (Where to stay in Dalhousie): डलहौजी में रुकने के लिए बहुत होटल है आपको अपने बजट के अनुसार 700 रुपए से शुरू होकर 3000 रुपए तक के होटल मिल जाएँगे ! मई-जून के महीनों में यहाँ ज़्यादा भीड़ रहती है इसलिए अगर इन महीनों में जाना हो तो होटल का अग्रिम आरक्षण करवाकर ही जाएँ !
क्या देखें (Places to see in Dalhousie): डलहौजी में देखने के लिए वैसे तो बहुत जगहें है लेकिन यहाँ के मुख्य आकर्षण पॅंचपुला वॉटरफॉल, सातधारा वॉटरफॉल, ख़ज़ियार, कलाटॉप वाइल्डलाइफ सेंचुरी, सेंट जॉन चर्च, डायन कुंड, और माल रोड है ! इसके अलावा रोमांच के शौकीन लोगों के लिए यहाँ से थोड़ी दूर चम्बा में रिवर राफ्टिंग, राक क्लाइंबिंग, और ट्रेकिंग के विकल्प भी है !
डलहौजी - धर्मशाला यात्रा
- दिल्ली से डलहौजी की रेल यात्रा (A Train Trip to Dalhousie)
- पंज-पुला की बारिश में एक शाम (An Evening in Panch Pula)
- खजियार – देश में विदेश का एहसास (Natural Beauty of Khajjar)
- कालाटोप के जंगलों में दोस्तों संग बिताया एक दिन (A Walk in Kalatop Wildlife Sanctuary)
- डलहौज़ी से धर्मशाला की बस यात्रा (A Road Trip to Dharmshala)
- दोस्तों संग त्रिउंड में बिताया एक दिन (An Awesome Trek to Triund)
- मोनेस्ट्री में बिताए सुकून के कुछ पल (A Day in Mcleodganj Monastery)
- हिमालयन वाटर फाल - एक अनछुआ झरना (Untouched Himachal – Himalyan Water Fall)
- पठानकोट से दिल्ली की रेल यात्रा (A Journey from Pathankot to Delhi)
Yaha ki pic dekh k lag ra hai k ab jald Hi Khajiyar jana padega
ReplyDeleteबिल्कुल जाना चाहिए भाई ! जगह वाकई बहुत खूबसूरत है !
Deleteख़ज़ियार की फोटोज देख के तो लगता है कि प्लान बनाना ही पड़ेगा
ReplyDeleteसही बात है, घूमने लायक शानदार जगह है !
Deleteप्रदीप वो शिवजी का मन्दिर नहीं बल्कि माता रानी का मंदिरः है। शिव की 81 फुट की प्रतिमा बाहर लगी है।वैसे डलहौजी का जवाब नहीं
ReplyDeleteजानकारी देने के लिए धन्यवाद दर्शन जी !
Deleteपेड़ काटना या कटे पेड़ घर लाना यहाँ जुर्म है। इसकी सजा मौत ही है ऐसा जंगल का कानून है। इसलिए चीड़ के पेड़ जंगल में पड़े रहते है उनको कोई नहीं उठता। यह बात हमको ड्राइवर ने बताई थी ।
ReplyDeleteमौत की सज़ा तो बंद ही हो चुकी है हमारे देश में ! हाँ, डराने के लिए लोगों ने ऐसा माहौल बना रखा होगा, ताकि लोग पेड़ ना काटे !
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