वीरवार, 19 जुलाई 2012
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यात्रा के पिछले लेख में आपने त्रिऊंड के बारे में पढ़ा, ट्रेकिंग के कारण अच्छी-ख़ासी थकान हो गई थी ! इसलिए वापिस आने के बाद थोड़ी देर मक्लॉडगंज बाज़ार में घूमने के बाद खा-पीकर हम वापिस अपने होटल पहुँच गए ! अब आगे, सुबह थोड़ा देरी से सोकर उठे, रात को बढ़िया नींद आई तो त्रिऊंड के सफ़र की सारी थकान दूर हो गई ! हम सब बिस्तर से निकलकर अपने होटल ही छत पर सुबह का नज़ारा देखने के लिए पहुँच गए ! धौलाधार की पहाड़ियों पर जब सुबह-2 सूरज की किरणें पड़ती है तो ये पहाड़ियाँ सुनहरे रंग में नहा कर और भी सुंदर दिखाई देती है ! पहाड़ भी हर मौसम में अपना रंग बदलते है, सर्दियों में बर्फ पड़ने पर सफेद, बारिश होने पर हरे-भरे, और सूर्य की किरणें पड़ने पर सुनहरे रंग के हो जाते है ! बहुत देर तक हम लोग अपने होटल की छत पर बैठ कर इस सुंदर दृश्य को देखते रहे ! त्रिउंड की यात्रा करने के बाद आज हम आराम के साथ-2 मस्ती करने के मूड में थे, इसलिए आज हमारा कहीं दूर जाने का विचार नहीं था, सबने सोचा कि आज का दिन यहीं मक्लॉडगंज के आस-पास ही घूम लिया जाए !
जब बात आस-पास घूमने की आई तो हमारे पास कई विकल्प थे, जैसे सेंट जोन्स चर्च, मक्लोडगंज मोनेस्ट्री, भाग्सू नाग झरना, और स्थानीय बाज़ार ! कहते है कि जब विकल्प ज़्यादा हो तो दुविधा रहती है कि पहले कहाँ जाया जाए, हमारे साथ भी ऐसा ही हुआ ! इस दुविधा का हल निकालने के लिए हमने आपसी सलाह से ये निष्कर्ष निकाला कि एक छोर से शुरू करते हुए सभी जगहों पर घूमा जाए ! आख़िरकार आए भी तो घूमने ही थे तो फिर काहे की दुविधा ! जो जगहें हम अपनी पिछली यात्रा के दौरान नहीं घूम पाए थे वो आज श्रेणी में पहले स्थान पर थे, जिसमें यहाँ का मोनेस्ट्री सबसे उपर था ! जब आज का कार्यक्रम तय हो गया तो सब लोग नीचे अपने कमरे में आ गए और नित्य-क्रम में लग गए ! समय से नहा-धोकर तैयार हुए और मोनेस्ट्री की तरफ चल दिए, अब मोनेस्ट्री जा रहे थे तो सोचा कि भगवान की पूजा करने के बाद ही पेट-पूजा की जाएगी ! अपनी योजना के मुताबिक हम लोग मोनेस्ट्री से आने के बाद सुबह का भोजन करके स्थानीय बाज़ार होते हुए सेंट जोन्स चर्च जाने वाले थे !
सुबह लगभग 8:30 बजे हम चारों मोनेस्ट्री पहुँच गए, मोनेस्ट्री के प्रवेश द्वार पर पहुँच कर हमने देखा कि मोनेस्ट्री में अंदर जाने और बाहर आने के रास्ते अलग-2 है ! देखने में जितनी सुंदर ये मोनेस्ट्री बाहर से लगती है उस से कहीं अधिक सुंदर ये अंदर से भी है ! जब हम लोग अंदर पहुँचे तो वहाँ पहले से ही काफ़ी भीड़ थी और कोई प्रार्थना चल रही थी, सब लोग पंक्ति में बैठे थे ! पूछने पर पता चला कि आज यहाँ एक उत्सव मनाया जा रहा है ये उत्सव उन वीरों की याद में है, जिन्होनें अपने प्राणों की आहुति तिब्बती क्रांति के दौरान दे दी ! इस जानकारी के अनुसार 1959 में जब चीन ने तिब्बत पर हमला किया, तो बहुत से तिब्बती क्रांतिकारी इस युद्ध की भेंट चढ़ गए ! तत्कालीन चीनी सरकार ने तिब्बती क्रांतिकारियों को पकड़ कर उन्हें बहुत यातनायें दी और अंत में उनके प्राण ले लिए ! अपने धर्म और देश की रक्षा के लिए हज़ारों क्रांतिकारियों ने अपने प्राणों की बलि दे दी !
इन क्रांतिकारियों की बलि भी काम ना आई और अंतत दलाई लामा (बौद्ध भिक्षुओं के मुखिया) तिब्बत छोड़ कर हिमालय के रास्ते भारत में यहाँ धर्मशाला आ गए ! दलाई लामा का अनुसरण करते हुए लगभग 80000 तिब्बती नागरिक भी यहाँ भारत आ गए ! तत्कालीन भारत सरकार ने इन शरणार्थियों को आश्रय दिया, ये शरणार्थी तभी से यहाँ के होकर रह गए ! यहाँ मक्लॉडगंज में तिब्बती लोगों की आबादी ज़्यादा होने के कारण इस जगह को मिनी ल्हासा के नाम से भी जाना जाता है ! हम सब जब सभागार में पहुँचे तो वहाँ बहुत से बौद्ध भिक्षु बैठे हुए थे, और सब लोग कोई पूजा संपन्न करने में लगे थे ! हम सबने पहले तो मोनेस्ट्री के चारों ओर घूम कर इसका निरीक्षण किया और फिर एक पंक्ति में दीवार के पास कालीन बिछाकर प्रार्थना में शामिल होने के लिए बैठ गए ! थोड़ी देर तक तो आराम से बैठ कर सब कुछ देखते रहे ! पर सच कहूँ तो हममें से किसी को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था, कि वहाँ क्या हो रहा था, बस इतना पता चल रहा था कि पूजा हो रही है !
पूजा में बौद्ध भिक्षु क्या मंत्र पढ़ रहे थे, कुछ भी नहीं समझ आया ! वैसे तो किसी भी पूजा में ज़्यादा कुछ समझ नहीं आता, पर इतना तो पता चल ही जाता है कि संस्कृत में मंत्र पढ़े जा रहे है पर यहाँ तो सबकुछ सिर के उपर से जा रहा था ! थोड़ी देर में जब मेरा सब्र जवाब दे गया तो मैंने शशांक से पूछा कि क्या उसे कुछ समझ आ रहा है, उम्मीद के मुताबिक उसका जवाब भी ना में ही था ! हितेश और विपुल के हालात तो उनकी शक्ल देखकर ही पता चल रहे थे इसलिए इस बारे में उन दोनों से तो कुछ पूछने की ज़रूरत ही नहीं थी ! हमने सोचा कि समझ तो कुछ आ नहीं रहा तो क्यों ना मोनेस्ट्री में घूम ही लिया जाए, फिर क्या था दोनों उठकर खड़े हुए और उस सभागार से बाहर जाने लगे ! हमने देखा कि सभागार के चारों ओर दीवारों पर ढोलक के आकार के सैकड़ों बक्से लगे हुए है, प्रार्थना के दौरान मोनेस्ट्री की परिक्रमा करते हुए आपको इन बक्सों को गोल-2 घुमाना होता है ! बक्सों को घुमाते हुए आपको “ओम साईं पदमें हूँ” मंत्र का जाप भी करना होता है !
कहते है कि एक बार मंत्र पढ़ने के दौरान बक्सा जितनी बार घूमेगा आपके मंत्र का उच्चारण उतनी बार माना जाएगा ! मतलब अगर आपने एक बार बक्सा घूमकर मंत्र पढ़ा और बक्सा 20 चक्कर घूमा तो माना जाएगा कि आपने 20 बार मंत्र का उच्चारण किया, है ना बड़ी दिलचस्प और मजेदार बात ! खैर, हमने गिन कर तो मंत्र का उच्चारण किया नहीं पर हाँ प्रार्थना ज़रूर की ! ये सारी जानकारी हमें एक बौद्ध भिक्षु ने दी, जो उस वक़्त सेवाभाव से मोनेस्ट्री में खाने-पीने का समान वितरित करवाने में लगा था ! अरे बातों-2 में मैं आपको ये तो बताना भूल ही गया कि प्रार्थना के दौरान वहाँ सभी भक्तों के लिए बौद्ध समुदाय की ओर से निशुल्क खाने-पीने की व्यवस्था थी ! हमने भी मोनेस्ट्री में प्रार्थना करने के बाद नमकीन चाय के साथ पाव-रोटी का आनंद लिया ! जी हाँ आपने सही सुना नमकीन चाय, उस दिन पहली बार मैंने नमकीन चाय का स्वाद चखा ! पूछने पर पता चला कि ये चाय याक (एक पहाड़ी जानवर) के दूध की होती है और इसे बटर चाय भी कहते है !
पता नहीं लोग कैसे दोबारा-2 लेकर वो चाय पी रहे थे पर मुझसे तो वो पहली बार ली हुई चाय ही नहीं पी गई ! जब मोनेस्ट्री के बाहर से दर्शन हो गए तो अंदर जाने की इच्छा भी होने लगी, प्रार्थना ख़त्म होने के बाद हम सब बारी-2 से मोनेस्ट्री के अंदर भी गए ! अंदर जाने पर हमने देखा कि वहाँ तिब्बती लोगों के भगवान की प्रतिमाएँ थी ! मुझे एक बात यहाँ बहुत अच्छी लगी कि यहाँ वो मारामारी नही थी जो अक्सर हमारे हिंदू धार्मिक स्थानों पर होती है ! बड़े आराम से मोनेस्ट्री में अंदर से दर्शन किए और फिर वापस बाहर उसी जगह आ गए जहाँ हितेश और विपुल बैठे हुए थे ! हमारे आने के बाद वो दोनों भी मोनेस्ट्री के अंदर से दर्शन करने चले गए ! मोनेस्ट्री में अंदर घूमते हुए ही हमने देखा कि एक कमरे में 25-30 बच्चे बैठ कर शिक्षा ले रहे थे ! हमने भी उस कमरे में घुसने की कोशिश की पर एक बौद्ध भिक्षु ने हमें अंदर जाने से मना कर दिया, संभवत ये बौद्ध भिक्षु उन बच्चों के शिक्षक रहे होंगे !
जब तक हम सब मोनेस्ट्री के दर्शन करके बाहर बरामदे में आए, धीरे-2 भीड़ छँटने लगी थी, बहुत से लोग यहाँ से जा चुके थे और कुछ अन्य जाने की तैयारी में थे ! हम लोगों के पास पर्याप्त समय था इसलिए बरामदे से बाहर आकर थोड़ी देर तक वहीं मोनेस्ट्री के बाहर एक पत्थर के गोल चबूतरे पर बैठ गए ! यहाँ बैठ कर थोड़ी देर तक तो यहाँ-वहाँ की बातें की, फिर समय देखा तो दोपहर के 11 बज रहे थे ! जब मैंने बाकी लोगों से चर्च चलने के लिए पूछा तो किसी ने भी साथ चलने के लिए हामी नहीं भरी ! मैं समझ गया कि सभी लोग कल के थके हुए है और आज धूप भी तेज होने के कारण चर्च जाने में आना-कानी कर रहे है ! मैने सोचा कोई बात नहीं मैं और शशांक तो पिछले साल चर्च देख ही चुके है ! फिर मैंने कहा चलो चर्च ना सही, बाज़ार तो चल दो यार, घर के लिए कुछ खरीद लेते है ! इसके लिए सब लोग तैयार हो गए और अगले दस मिनट में हम लोग मक्लोडगंज के मुख्य बाज़ार में खरीददारी कर रहे थे !
हमने ऊनी शॉल, भगवान की मूर्तियाँ और घरेलू सजावट का कुछ सामान खरीदा, विपुल ने यहाँ से अपने लिए एक अंगूठी खरीदी ! जब हमारी खरीददारी पूरी हो गई तो चर्च जाने की बात आई ! धूप तेज होने के कारण सबने चर्च जाने से मना कर दिया और हम सब वापस अपने होटल की ओर चल दिए ! होटल जाते हुए मोनेस्ट्री के बाहर एक दुकान से मोमोस और आलू के पराठे खरीद कर खाए ! होटल पहुँचकर हम सबने थोड़ी देर आराम किया और फिर 4 बजे उठकर जल-क्रीड़ा करने के लिए भाग्सू नाग झरने की ओर जाने पर चर्चा होने लगी ! भाग्सू नाग आना अपने आप में एक अद्भुत आनंद प्रदान करता है ! मेरी तो ये इच्छा थी कि जितने दिन भी हम मक्लोडगंज में है भाग्सू नाग जा कर ही स्नान किया जाए, पर कहते है कि सारी इच्छाएँ पूरी कहाँ होती है ! समय की कमी की वजह से रोज़ यहाँ आना हमारे लिया संभव नहीं था !
आख़िरकार हम मक्लोडगंज सिर्फ़ भाग्सू नाग झरने पर नहाने ही थोड़े ना आए थे, यहाँ और भी सुंदर स्थान है वो भी तो देखने थे ! एक बैग में थोड़ा सामान लेकर फिर से मुख्य बाज़ार से होते हुए हम सब झरने की ओर जाने वाले मार्ग पर चल दिए ! आधे घंटे का सफ़र तय करके हम सब झरने पर पहुँच गए, जब हम यहाँ पहुँचे तो हमेशा की तरह यहाँ पहले से ही काफ़ी भीड़ थी पर हम लोग भीड़ की परवाह किए बिना फटाफट पानी में उतर गए ! पहली डुबकी लगाने के बाद शरीर के साथ-2 मन को भी थोड़ी ठंडक मिली, फिर तो बहुत देर तक झरने के नीचे पानी में नहाते रहे ! झरने का पानी बहुत ठंडा था, ऐसा लग रहा था कि उपर से बर्फ पिघल कर सीधे इस झरने के रास्ते नीचे गिर रही हो ! 10 मिनट पानी में रहने पर ही सारा शरीर ठंडा हो जा रहा था, इसलिए बीच-2 में पानी से बाहर निकलकर वहीं पत्थर पर बैठ जाते ! आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि उपर वाले पक्के रास्ते से झरने तक पहुँचने में कम समय लगता है, नीचे वाला रास्ता उबड़-खाबड़ है इसलिए इस मार्ग से ज़्यादा समय लगता है !
झरने तक जल्दी पहुँचने के लिए जाते समय तो हम सब उपर वाले रास्ते से गए थे पर वापसी हमने पानी की धारा के बीच में से होते हुए पथरीले रास्ते से ही की ! झरने के पानी में नहाने के बाद ठंड तो खूब लग रही थी पर पानी से बाहर निकलने का मन भी नहीं हो रहा था ! मैनें तो बाहर निकल कर कपड़े पहन लिए पर हितेश तो झरने से बाहर निकलने का नाम ही नहीं ले रहा था ! झरने से वापस आते हुए भी राह में भी हम सबने खूब मस्ती की ! झरने में नहाने के कारण सारे कपड़े भीग चुके थे इसलिए होटल पहुँच कर अपने कपड़े बदले और फिर पेट पूजा के लिए मक्लोडगंज बाज़ार की ओर चल दिए ! शाम को यहाँ की रौनक देखने लायक होती है, पूरा बाज़ार ऐसा सज़ा हुआ था जैसे यहाँ कोई उत्सव हो ! किसी से सुना था कि यहाँ के मोमॉस बहुत स्वादिष्ट होते है तो इनका स्वाद चखना तो बनता ही था, पर हमें तो इसके स्वाद मैं कुछ फ़र्क नहीं लगा ! ज़ोर की भूख लगी थी जो मोमॉस खाने से शांत नहीं हुई, फिर तो गोलगप्पे, सॉफ्टी और बहुत सा चुटुर-पुटुर खाते रहे और वहीं चौराहे के पास एक बेंच पर बैठ कर बातें करते रहे !
मक्लॉडगंज चौराहे टैक्सी स्टैंड की ओर जाने वाले मार्ग पर लोगों के बैठने के लिए लोहे की कई कुर्सियाँ लगाई गई है ! इस कुर्सियों पर बैठ कर अच्छा समय व्यतीत होता है हम घंटो यहाँ बैठे रहे ! पिछली यात्रा के दौरान भी शाम की समय हम इन्हीं कुर्सियों पर बैठकर शाम को दिनभर की यात्रा पर चर्चा किया करते थे ! आज भी यहाँ बैठे-2 जब अंधेरा होने लगा और आस-पास की दुकानें बंद होने लगी तब जाकर हम यहाँ से उठे और अपने होटल की ओर चल दिए ! रात्रि का भोजन हमने अपने होटल में ही किया, इस दौरान अगले दिन की यात्रा पर भी चर्चा होती रही ! थोड़ी देर बैठकर बातें की और फिर अपने-2 बिस्तर पर आराम करने चले गए !
कब जाएँ (Best time to go Dharmshala): वैसे तो आप साल के किसी भी महीने में घूमने के लिए धर्मशाला जा सकते है लेकिन झरनों में नहाना हो तो बारिश से बढ़िया कोई मौसम हो ही नहीं सकता ! वैसे अगर बर्फ देखने का मन हो तो आप यहाँ दिसंबर-जनवरी में आइए, धर्मशाला से 10 किलोमीटर ऊपर मक्लॉडगंज में आपको बढ़िया बर्फ मिल जाएगी !
कैसे जाएँ (How to reach Dharmshala): दिल्ली से धर्मशाला की दूरी लगभग 478 किलोमीटर है ! यहाँ जाने का सबसे बढ़िया साधन रेल मार्ग है दिल्ली से पठानकोट तक ट्रेन से जाइए, जम्मू जाने वाली हर ट्रेन पठानकोट होकर ही जाती है ! पठानकोट से धर्मशाला की दूरी महज 90 किलोमीटर है जिसे आप बस या टैक्सी से तय कर सकते है, इस सफ़र में आपके ढाई से तीन घंटे लगेंगे ! अगर आप सड़क मार्ग से जाना चाहे तो दिल्ली से धर्मशाला के लिए हिमाचल टूरिज़्म की वोल्वो और हिमाचल परिवहन की सामान्य बसें भी चलती है ! आप निजी गाड़ी से भी धर्मशाला जा सकते है जिसमें आपको दिल्ली से धर्मशाला पहुँचने में 9-10 घंटे का समय लगेगा ! इसके अलावा पठानकोट से बैजनाथ तक टॉय ट्रेन भी चलती है जिसमें सफ़र करते हुए धौलाधार की पहाड़ियों का विहंगम दृश्य दिखाई देता है ! टॉय ट्रेन से पठानकोट से कांगड़ा तक का सफ़र तय करने में आपको साढ़े चार घंटे का समय लगेगा !
कहाँ रुके (Where to stay in Dharmshala): धर्मशाला में रुकने के लिए बहुत होटल है लेकिन अगर आप धर्मशाला जा रहे है तो बेहतर रहेगा आप धर्मशाला से 10 किलोमीटर ऊपर मक्लॉडगंज में रुके ! घूमने-फिरने की अधिकतर जगहें मक्लॉडगंज में ही है धर्मशाला में क्रिकेट स्टेडियम और कांगड़ा का किला है जिसे आप वापसी में भी देख सकते हो ! मक्लॉडगंज में भी रुकने और खाने-पीने के बहुत विकल्प है, आपको अपने बजट के अनुसार 700 रुपए से शुरू होकर 3000 रुपए तक के होटल मिल जाएँगे !
क्या देखें (Places to see in Dharmshala): धर्मशाला में देखने के लिए वैसे तो बहुत जगहें है लेकिन अधिकतर जगहें ऊपरी धर्मशाला (Upper Dharmshala) यानि मक्लॉडगंज में है यहाँ के मुख्य आकर्षण भाग्सू नाग मंदिर और झरना, गालू मंदिर, हिमालयन वॉटर फाल, त्रिऊँड ट्रेक, नड्डी, डल झील, सेंट जोन्स चर्च, मोनेस्ट्री और माल रोड है ! जबकि निचले धर्मशाला (Lower Dharmshala) में क्रिकेट स्टेडियम (HPCA Stadium), कांगड़ा का किला (Kangra Fort), और वॉर मेमोरियल है !
अगले भाग में जारी...
डलहौजी - धर्मशाला यात्रा
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यात्रा के पिछले लेख में आपने त्रिऊंड के बारे में पढ़ा, ट्रेकिंग के कारण अच्छी-ख़ासी थकान हो गई थी ! इसलिए वापिस आने के बाद थोड़ी देर मक्लॉडगंज बाज़ार में घूमने के बाद खा-पीकर हम वापिस अपने होटल पहुँच गए ! अब आगे, सुबह थोड़ा देरी से सोकर उठे, रात को बढ़िया नींद आई तो त्रिऊंड के सफ़र की सारी थकान दूर हो गई ! हम सब बिस्तर से निकलकर अपने होटल ही छत पर सुबह का नज़ारा देखने के लिए पहुँच गए ! धौलाधार की पहाड़ियों पर जब सुबह-2 सूरज की किरणें पड़ती है तो ये पहाड़ियाँ सुनहरे रंग में नहा कर और भी सुंदर दिखाई देती है ! पहाड़ भी हर मौसम में अपना रंग बदलते है, सर्दियों में बर्फ पड़ने पर सफेद, बारिश होने पर हरे-भरे, और सूर्य की किरणें पड़ने पर सुनहरे रंग के हो जाते है ! बहुत देर तक हम लोग अपने होटल की छत पर बैठ कर इस सुंदर दृश्य को देखते रहे ! त्रिउंड की यात्रा करने के बाद आज हम आराम के साथ-2 मस्ती करने के मूड में थे, इसलिए आज हमारा कहीं दूर जाने का विचार नहीं था, सबने सोचा कि आज का दिन यहीं मक्लॉडगंज के आस-पास ही घूम लिया जाए !
A view of our hotel room, Mcleodganj |
सुबह लगभग 8:30 बजे हम चारों मोनेस्ट्री पहुँच गए, मोनेस्ट्री के प्रवेश द्वार पर पहुँच कर हमने देखा कि मोनेस्ट्री में अंदर जाने और बाहर आने के रास्ते अलग-2 है ! देखने में जितनी सुंदर ये मोनेस्ट्री बाहर से लगती है उस से कहीं अधिक सुंदर ये अंदर से भी है ! जब हम लोग अंदर पहुँचे तो वहाँ पहले से ही काफ़ी भीड़ थी और कोई प्रार्थना चल रही थी, सब लोग पंक्ति में बैठे थे ! पूछने पर पता चला कि आज यहाँ एक उत्सव मनाया जा रहा है ये उत्सव उन वीरों की याद में है, जिन्होनें अपने प्राणों की आहुति तिब्बती क्रांति के दौरान दे दी ! इस जानकारी के अनुसार 1959 में जब चीन ने तिब्बत पर हमला किया, तो बहुत से तिब्बती क्रांतिकारी इस युद्ध की भेंट चढ़ गए ! तत्कालीन चीनी सरकार ने तिब्बती क्रांतिकारियों को पकड़ कर उन्हें बहुत यातनायें दी और अंत में उनके प्राण ले लिए ! अपने धर्म और देश की रक्षा के लिए हज़ारों क्रांतिकारियों ने अपने प्राणों की बलि दे दी !
इन क्रांतिकारियों की बलि भी काम ना आई और अंतत दलाई लामा (बौद्ध भिक्षुओं के मुखिया) तिब्बत छोड़ कर हिमालय के रास्ते भारत में यहाँ धर्मशाला आ गए ! दलाई लामा का अनुसरण करते हुए लगभग 80000 तिब्बती नागरिक भी यहाँ भारत आ गए ! तत्कालीन भारत सरकार ने इन शरणार्थियों को आश्रय दिया, ये शरणार्थी तभी से यहाँ के होकर रह गए ! यहाँ मक्लॉडगंज में तिब्बती लोगों की आबादी ज़्यादा होने के कारण इस जगह को मिनी ल्हासा के नाम से भी जाना जाता है ! हम सब जब सभागार में पहुँचे तो वहाँ बहुत से बौद्ध भिक्षु बैठे हुए थे, और सब लोग कोई पूजा संपन्न करने में लगे थे ! हम सबने पहले तो मोनेस्ट्री के चारों ओर घूम कर इसका निरीक्षण किया और फिर एक पंक्ति में दीवार के पास कालीन बिछाकर प्रार्थना में शामिल होने के लिए बैठ गए ! थोड़ी देर तक तो आराम से बैठ कर सब कुछ देखते रहे ! पर सच कहूँ तो हममें से किसी को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था, कि वहाँ क्या हो रहा था, बस इतना पता चल रहा था कि पूजा हो रही है !
पूजा में बौद्ध भिक्षु क्या मंत्र पढ़ रहे थे, कुछ भी नहीं समझ आया ! वैसे तो किसी भी पूजा में ज़्यादा कुछ समझ नहीं आता, पर इतना तो पता चल ही जाता है कि संस्कृत में मंत्र पढ़े जा रहे है पर यहाँ तो सबकुछ सिर के उपर से जा रहा था ! थोड़ी देर में जब मेरा सब्र जवाब दे गया तो मैंने शशांक से पूछा कि क्या उसे कुछ समझ आ रहा है, उम्मीद के मुताबिक उसका जवाब भी ना में ही था ! हितेश और विपुल के हालात तो उनकी शक्ल देखकर ही पता चल रहे थे इसलिए इस बारे में उन दोनों से तो कुछ पूछने की ज़रूरत ही नहीं थी ! हमने सोचा कि समझ तो कुछ आ नहीं रहा तो क्यों ना मोनेस्ट्री में घूम ही लिया जाए, फिर क्या था दोनों उठकर खड़े हुए और उस सभागार से बाहर जाने लगे ! हमने देखा कि सभागार के चारों ओर दीवारों पर ढोलक के आकार के सैकड़ों बक्से लगे हुए है, प्रार्थना के दौरान मोनेस्ट्री की परिक्रमा करते हुए आपको इन बक्सों को गोल-2 घुमाना होता है ! बक्सों को घुमाते हुए आपको “ओम साईं पदमें हूँ” मंत्र का जाप भी करना होता है !
कहते है कि एक बार मंत्र पढ़ने के दौरान बक्सा जितनी बार घूमेगा आपके मंत्र का उच्चारण उतनी बार माना जाएगा ! मतलब अगर आपने एक बार बक्सा घूमकर मंत्र पढ़ा और बक्सा 20 चक्कर घूमा तो माना जाएगा कि आपने 20 बार मंत्र का उच्चारण किया, है ना बड़ी दिलचस्प और मजेदार बात ! खैर, हमने गिन कर तो मंत्र का उच्चारण किया नहीं पर हाँ प्रार्थना ज़रूर की ! ये सारी जानकारी हमें एक बौद्ध भिक्षु ने दी, जो उस वक़्त सेवाभाव से मोनेस्ट्री में खाने-पीने का समान वितरित करवाने में लगा था ! अरे बातों-2 में मैं आपको ये तो बताना भूल ही गया कि प्रार्थना के दौरान वहाँ सभी भक्तों के लिए बौद्ध समुदाय की ओर से निशुल्क खाने-पीने की व्यवस्था थी ! हमने भी मोनेस्ट्री में प्रार्थना करने के बाद नमकीन चाय के साथ पाव-रोटी का आनंद लिया ! जी हाँ आपने सही सुना नमकीन चाय, उस दिन पहली बार मैंने नमकीन चाय का स्वाद चखा ! पूछने पर पता चला कि ये चाय याक (एक पहाड़ी जानवर) के दूध की होती है और इसे बटर चाय भी कहते है !
पता नहीं लोग कैसे दोबारा-2 लेकर वो चाय पी रहे थे पर मुझसे तो वो पहली बार ली हुई चाय ही नहीं पी गई ! जब मोनेस्ट्री के बाहर से दर्शन हो गए तो अंदर जाने की इच्छा भी होने लगी, प्रार्थना ख़त्म होने के बाद हम सब बारी-2 से मोनेस्ट्री के अंदर भी गए ! अंदर जाने पर हमने देखा कि वहाँ तिब्बती लोगों के भगवान की प्रतिमाएँ थी ! मुझे एक बात यहाँ बहुत अच्छी लगी कि यहाँ वो मारामारी नही थी जो अक्सर हमारे हिंदू धार्मिक स्थानों पर होती है ! बड़े आराम से मोनेस्ट्री में अंदर से दर्शन किए और फिर वापस बाहर उसी जगह आ गए जहाँ हितेश और विपुल बैठे हुए थे ! हमारे आने के बाद वो दोनों भी मोनेस्ट्री के अंदर से दर्शन करने चले गए ! मोनेस्ट्री में अंदर घूमते हुए ही हमने देखा कि एक कमरे में 25-30 बच्चे बैठ कर शिक्षा ले रहे थे ! हमने भी उस कमरे में घुसने की कोशिश की पर एक बौद्ध भिक्षु ने हमें अंदर जाने से मना कर दिया, संभवत ये बौद्ध भिक्षु उन बच्चों के शिक्षक रहे होंगे !
जब तक हम सब मोनेस्ट्री के दर्शन करके बाहर बरामदे में आए, धीरे-2 भीड़ छँटने लगी थी, बहुत से लोग यहाँ से जा चुके थे और कुछ अन्य जाने की तैयारी में थे ! हम लोगों के पास पर्याप्त समय था इसलिए बरामदे से बाहर आकर थोड़ी देर तक वहीं मोनेस्ट्री के बाहर एक पत्थर के गोल चबूतरे पर बैठ गए ! यहाँ बैठ कर थोड़ी देर तक तो यहाँ-वहाँ की बातें की, फिर समय देखा तो दोपहर के 11 बज रहे थे ! जब मैंने बाकी लोगों से चर्च चलने के लिए पूछा तो किसी ने भी साथ चलने के लिए हामी नहीं भरी ! मैं समझ गया कि सभी लोग कल के थके हुए है और आज धूप भी तेज होने के कारण चर्च जाने में आना-कानी कर रहे है ! मैने सोचा कोई बात नहीं मैं और शशांक तो पिछले साल चर्च देख ही चुके है ! फिर मैंने कहा चलो चर्च ना सही, बाज़ार तो चल दो यार, घर के लिए कुछ खरीद लेते है ! इसके लिए सब लोग तैयार हो गए और अगले दस मिनट में हम लोग मक्लोडगंज के मुख्य बाज़ार में खरीददारी कर रहे थे !
हमने ऊनी शॉल, भगवान की मूर्तियाँ और घरेलू सजावट का कुछ सामान खरीदा, विपुल ने यहाँ से अपने लिए एक अंगूठी खरीदी ! जब हमारी खरीददारी पूरी हो गई तो चर्च जाने की बात आई ! धूप तेज होने के कारण सबने चर्च जाने से मना कर दिया और हम सब वापस अपने होटल की ओर चल दिए ! होटल जाते हुए मोनेस्ट्री के बाहर एक दुकान से मोमोस और आलू के पराठे खरीद कर खाए ! होटल पहुँचकर हम सबने थोड़ी देर आराम किया और फिर 4 बजे उठकर जल-क्रीड़ा करने के लिए भाग्सू नाग झरने की ओर जाने पर चर्चा होने लगी ! भाग्सू नाग आना अपने आप में एक अद्भुत आनंद प्रदान करता है ! मेरी तो ये इच्छा थी कि जितने दिन भी हम मक्लोडगंज में है भाग्सू नाग जा कर ही स्नान किया जाए, पर कहते है कि सारी इच्छाएँ पूरी कहाँ होती है ! समय की कमी की वजह से रोज़ यहाँ आना हमारे लिया संभव नहीं था !
आख़िरकार हम मक्लोडगंज सिर्फ़ भाग्सू नाग झरने पर नहाने ही थोड़े ना आए थे, यहाँ और भी सुंदर स्थान है वो भी तो देखने थे ! एक बैग में थोड़ा सामान लेकर फिर से मुख्य बाज़ार से होते हुए हम सब झरने की ओर जाने वाले मार्ग पर चल दिए ! आधे घंटे का सफ़र तय करके हम सब झरने पर पहुँच गए, जब हम यहाँ पहुँचे तो हमेशा की तरह यहाँ पहले से ही काफ़ी भीड़ थी पर हम लोग भीड़ की परवाह किए बिना फटाफट पानी में उतर गए ! पहली डुबकी लगाने के बाद शरीर के साथ-2 मन को भी थोड़ी ठंडक मिली, फिर तो बहुत देर तक झरने के नीचे पानी में नहाते रहे ! झरने का पानी बहुत ठंडा था, ऐसा लग रहा था कि उपर से बर्फ पिघल कर सीधे इस झरने के रास्ते नीचे गिर रही हो ! 10 मिनट पानी में रहने पर ही सारा शरीर ठंडा हो जा रहा था, इसलिए बीच-2 में पानी से बाहर निकलकर वहीं पत्थर पर बैठ जाते ! आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि उपर वाले पक्के रास्ते से झरने तक पहुँचने में कम समय लगता है, नीचे वाला रास्ता उबड़-खाबड़ है इसलिए इस मार्ग से ज़्यादा समय लगता है !
झरने तक जल्दी पहुँचने के लिए जाते समय तो हम सब उपर वाले रास्ते से गए थे पर वापसी हमने पानी की धारा के बीच में से होते हुए पथरीले रास्ते से ही की ! झरने के पानी में नहाने के बाद ठंड तो खूब लग रही थी पर पानी से बाहर निकलने का मन भी नहीं हो रहा था ! मैनें तो बाहर निकल कर कपड़े पहन लिए पर हितेश तो झरने से बाहर निकलने का नाम ही नहीं ले रहा था ! झरने से वापस आते हुए भी राह में भी हम सबने खूब मस्ती की ! झरने में नहाने के कारण सारे कपड़े भीग चुके थे इसलिए होटल पहुँच कर अपने कपड़े बदले और फिर पेट पूजा के लिए मक्लोडगंज बाज़ार की ओर चल दिए ! शाम को यहाँ की रौनक देखने लायक होती है, पूरा बाज़ार ऐसा सज़ा हुआ था जैसे यहाँ कोई उत्सव हो ! किसी से सुना था कि यहाँ के मोमॉस बहुत स्वादिष्ट होते है तो इनका स्वाद चखना तो बनता ही था, पर हमें तो इसके स्वाद मैं कुछ फ़र्क नहीं लगा ! ज़ोर की भूख लगी थी जो मोमॉस खाने से शांत नहीं हुई, फिर तो गोलगप्पे, सॉफ्टी और बहुत सा चुटुर-पुटुर खाते रहे और वहीं चौराहे के पास एक बेंच पर बैठ कर बातें करते रहे !
मक्लॉडगंज चौराहे टैक्सी स्टैंड की ओर जाने वाले मार्ग पर लोगों के बैठने के लिए लोहे की कई कुर्सियाँ लगाई गई है ! इस कुर्सियों पर बैठ कर अच्छा समय व्यतीत होता है हम घंटो यहाँ बैठे रहे ! पिछली यात्रा के दौरान भी शाम की समय हम इन्हीं कुर्सियों पर बैठकर शाम को दिनभर की यात्रा पर चर्चा किया करते थे ! आज भी यहाँ बैठे-2 जब अंधेरा होने लगा और आस-पास की दुकानें बंद होने लगी तब जाकर हम यहाँ से उठे और अपने होटल की ओर चल दिए ! रात्रि का भोजन हमने अपने होटल में ही किया, इस दौरान अगले दिन की यात्रा पर भी चर्चा होती रही ! थोड़ी देर बैठकर बातें की और फिर अपने-2 बिस्तर पर आराम करने चले गए !
होटल की छत से लिया एक चित्र (A view from hour Hotel Terrace, Mcleodganj) |
होटल की छत से लिया एक चित्र |
Waiting for Breakfast |
मोनेस्ट्री से दिखाई देता एक नज़ारा (A view from Monestary, Mcleodganj) |
A view from Monestary, Mcleodganj |
प्रार्थना करते हुए इन ढोलकनुमा डिब्बों को घुमाते रहो |
ओम साईं पदमें हूँ |
पूजा में बैठे बौद्ध भिक्षु |
Prayer in Monestary, Mcleodganj |
बाज़ार में खरीददारी के दौरान लिया एक चित्र (A view of Mcleodganj Market) |
बाज़ार में खरीददारी के दौरान लिया एक चित्र (A view of Mcleodganj Market) |
झरने की ओर जाते हुए |
झरने की ओर जाते हुए मार्ग में लिया एक चित्र (Way to Bhagsu Naag Waterfall, Mcleodganj) |
झरने की ओर जाते हुए मार्ग में लिया एक चित्र (Way to Bhagsu Naag Waterfall, Mcleodganj) |
मार्ग से दिखाई देता धर्मशाला स्टेडियम (A glimpse of HPCA stadium from mcleodganj) |
दूर दिखाई देता भाग्सू नाग झरना (Bhagsu Naag Waterfall in Mcleodganj) |
झरने में नहाने के बाद मस्ती करते हुए |
झरने से वापसी आते हुए |
Trail to Bhagsu Naag Waterfall |
रास्ते में पानी रोककर नहाते हुए |
नहाने के बाद विपुल के चेहरे की चमक |
क्यों जाएँ (Why to go Dharmshala): अगर आप दिल्ली की गर्मी और भीड़-भाड़ से दूर सुकून के कुछ पल पहाड़ों पर बिताना चाहते है तो आप धर्मशाला-मक्लॉडगंज का रुख़ कर सकते है ! यहाँ घूमने के लिए भी कई जगहें है, जिसमें झरने, किले, चर्च, स्टेडियम, और पहाड़ शामिल है ! ट्रेकिंग के शौकीन लोगों के लिए कुछ बढ़िया ट्रेक भी है !
कब जाएँ (Best time to go Dharmshala): वैसे तो आप साल के किसी भी महीने में घूमने के लिए धर्मशाला जा सकते है लेकिन झरनों में नहाना हो तो बारिश से बढ़िया कोई मौसम हो ही नहीं सकता ! वैसे अगर बर्फ देखने का मन हो तो आप यहाँ दिसंबर-जनवरी में आइए, धर्मशाला से 10 किलोमीटर ऊपर मक्लॉडगंज में आपको बढ़िया बर्फ मिल जाएगी !
कैसे जाएँ (How to reach Dharmshala): दिल्ली से धर्मशाला की दूरी लगभग 478 किलोमीटर है ! यहाँ जाने का सबसे बढ़िया साधन रेल मार्ग है दिल्ली से पठानकोट तक ट्रेन से जाइए, जम्मू जाने वाली हर ट्रेन पठानकोट होकर ही जाती है ! पठानकोट से धर्मशाला की दूरी महज 90 किलोमीटर है जिसे आप बस या टैक्सी से तय कर सकते है, इस सफ़र में आपके ढाई से तीन घंटे लगेंगे ! अगर आप सड़क मार्ग से जाना चाहे तो दिल्ली से धर्मशाला के लिए हिमाचल टूरिज़्म की वोल्वो और हिमाचल परिवहन की सामान्य बसें भी चलती है ! आप निजी गाड़ी से भी धर्मशाला जा सकते है जिसमें आपको दिल्ली से धर्मशाला पहुँचने में 9-10 घंटे का समय लगेगा ! इसके अलावा पठानकोट से बैजनाथ तक टॉय ट्रेन भी चलती है जिसमें सफ़र करते हुए धौलाधार की पहाड़ियों का विहंगम दृश्य दिखाई देता है ! टॉय ट्रेन से पठानकोट से कांगड़ा तक का सफ़र तय करने में आपको साढ़े चार घंटे का समय लगेगा !
कहाँ रुके (Where to stay in Dharmshala): धर्मशाला में रुकने के लिए बहुत होटल है लेकिन अगर आप धर्मशाला जा रहे है तो बेहतर रहेगा आप धर्मशाला से 10 किलोमीटर ऊपर मक्लॉडगंज में रुके ! घूमने-फिरने की अधिकतर जगहें मक्लॉडगंज में ही है धर्मशाला में क्रिकेट स्टेडियम और कांगड़ा का किला है जिसे आप वापसी में भी देख सकते हो ! मक्लॉडगंज में भी रुकने और खाने-पीने के बहुत विकल्प है, आपको अपने बजट के अनुसार 700 रुपए से शुरू होकर 3000 रुपए तक के होटल मिल जाएँगे !
क्या देखें (Places to see in Dharmshala): धर्मशाला में देखने के लिए वैसे तो बहुत जगहें है लेकिन अधिकतर जगहें ऊपरी धर्मशाला (Upper Dharmshala) यानि मक्लॉडगंज में है यहाँ के मुख्य आकर्षण भाग्सू नाग मंदिर और झरना, गालू मंदिर, हिमालयन वॉटर फाल, त्रिऊँड ट्रेक, नड्डी, डल झील, सेंट जोन्स चर्च, मोनेस्ट्री और माल रोड है ! जबकि निचले धर्मशाला (Lower Dharmshala) में क्रिकेट स्टेडियम (HPCA Stadium), कांगड़ा का किला (Kangra Fort), और वॉर मेमोरियल है !
अगले भाग में जारी...
डलहौजी - धर्मशाला यात्रा
- दिल्ली से डलहौजी की रेल यात्रा (A Train Trip to Dalhousie)
- पंज-पुला की बारिश में एक शाम (An Evening in Panch Pula)
- खजियार – देश में विदेश का एहसास (Natural Beauty of Khajjar)
- कालाटोप के जंगलों में दोस्तों संग बिताया एक दिन ( A Walk in Kalatop Wildlife Sanctuary)
- डलहौज़ी से धर्मशाला की बस यात्रा (A Road Trip to Dharmshala)
- दोस्तों संग त्रिउंड में बिताया एक दिन (An Awesome Trek to Triund)
- मोनेस्ट्री में बिताए सुकून के कुछ पल (A Day in Mcleodganj Monastery)
- हिमालयन वाटर फाल - एक अनछुआ झरना (Untouched Himachal – Himalyan Water Fall)
- पठानकोट से दिल्ली की रेल यात्रा (A Journey from Pathankot to Delhi)
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