शनिवार, 14 जुलाई 2012
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यात्रा के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि किस तरह हम दिल्ली से ट्रेन का लंबा सफ़र तय करके पठानकोट होते हुए यहाँ डलहौजी पहुँचे ! अब आगे, होटल पहुँचने के बाद तैयार होकर खाने-पीने के बाद हम लोग पंच-पुला घूमने निकल पड़े, दोपहर के तीन बज चुके थे, इसलिए हमने आज का दिन डलहौज़ी में आस-पास घूमना ही उचित समझा ! पंच-पुला, डलहौज़ी के मुख्य बाज़ार (गाँधी चौक) से लगभग दो किलोमीटर की दूरी पर है, जहाँ जाने के लिए वैसे तो आप गाँधी चौक से बस या टैक्सी ले सकते है, पर पहाड़ों पर घुमक्कड़ी का असली मजा तो पैदल ही आता है ! पहाड़ों पर प्रकृति के जो नज़ारे आप पैदल चल कर देख सकते है वो बस या कार में बैठ कर शायद ही कभी दिखाई दे ! पंज-पुला जाने के लिए हम चारों गाँधी चौक से तीन बजे पैदल ही निकल पड़े ! गाँधी चौक से थोडा सा आगे बढ़ने पर मुख्य सड़क दो भागों में विभाजित हो जाती है, ऊपर जाने वाली सड़क खजियार होते हुए चंबा निकल जाती है जबकि नीचे जाने वाला मार्ग पंच-पुला होते हुए आगे चला जाता है !
हम सब नीचे जाने वाले मार्ग पर चल दिए, शुरू में तो ये सड़क थोड़ी संकरी है पर आगे जाने पर ये अपेक्षाकृत थोड़ी चौड़ी हो जाती है ! ये मार्ग दोनों ओर से घने पेड़ों से घिरा हुआ है, उँचे-2 चीड़ के पेड़ बहुत अच्छा दृश्य प्रस्तुत करते है ! जिस समय हम सब अपने होटल से निकले थे तो मौसम ठीक था पर पहाड़ों पर मौसम कब बदल जाए, ये कोई नहीं जानता ! कुछ ऐसा ही हमारे साथ भी हुआ, जैसे ही हम लोग पंच-पुला जाने वाली सड़क पर पहुँचे, मौसम अचानक खराब होने लगा, चारों ओर घना कोहरा छा गया, मौसम में ठंडक काफ़ी बढ़ गई, और बारिश होने के आसार भी लगने लगे ! हम लोगों को यूँ मौसम के अचानक बदलने का अनुमान नहीं था इसलिए हम अपने गरम कपडे होटल में ही छोड़ कर आए थे ! हम लोग आधी दूरी तय कर चुके थे इसलिए वापस जाने का भी मन नहीं था, फिर सोचा कि अगर मौसम खराब हुआ तो रास्ते में कहीं रुक जाएँगे !
जब मौसम ज़्यादा खराब हो गया तो पहले तो हम सिर छुपाने की जगह ढूँढने लगे, पर फिर सोचा कि अगर मौसम की परवाह करके रुक गए तो घूमने का सारा मजा किरकिरा हो जाएगा ! हल्की-2 बूँदा-बाँदी के बीच हम तेज़ कदमों से पंच-पुला की तरफ आगे बढ़ते रहे ! गाँधी चौक से पंच-पुला जाने वाला मार्ग काफी घुमावदार है, हर मोड़ से प्रकृति के खूबसूरत नज़ारे दिखाई देते है ! यहाँ इस मार्ग पर चलते हुए आपको हर मोड़ पर लगता है कि यहीं रुक कर थोड़ी देर इस खूबसूरती का आनंद लिया जाए, हमने भी ऐसा ही किया ! हल्की-2 बारिश के बीच हम रुकते-रुकाते पंच-पुला की ओर बढ़ते रहे, बीच-2 में कुछ नज़ारों को अपने कैमरें में भी समेटते रहे ! जैसे-2 हम पंच-पुला के करीब पहुँचते जा रहे थे, नज़ारे और भी सुन्दर होते जा रहे थे, फिर एक घुमावदार मोड़ से पंच-पुला दिखाई देने लगा ! अब हम सब तेज़ क़दमों से पंच-पुला की ओर बढ़ने लगे, फिर भी उस मोड़ से यहाँ पंच-पुला पहुँचने में हमें दस से पंद्रह मिनट लग गए !
यहाँ पंज-पुला में सरदार अजीत सिंह जी का स्मारक भी है, स्मृति स्वरूप उनकी प्रतिमा भी लगी हुई है ! अजीत सिंह जी एक क्रांतिकारी थे और ब्रिटिश शासन के दौरान उन्होने सरकार विरोधी कई आंदोलनों में भाग लिया ! उनके बारे में और अधिक जानने के लिए यहाँ क्लिक करें ! समय देखा तो शाम के साढ़े चार बज रहे थे, और मौसम अभी भी बारिश का ही बना हुआ था ! पंच-पुला में बच्चों के खेलने-कूदने की बढ़िया व्यवस्था है, चाहे वो झूलने के लिए झूले हों, बैठने के लिए खुले मैदान, या फिर पानी में घूमने के लिए नाव, सब कुछ यहाँ पर है ! चौंकिए मत, नाव के लिए कोई बड़ी झील नहीं है, एक छोटा सा तालाब है और जिस समय हम यहाँ पहुँचे कुछ बच्चे इसी तालाब में नौकायान का आनंद ले रहे थे ! आप भी कभी बच्चो के साथ यहाँ घूमने आएँ तो नौकायान का आनंद तो ले ही सकते है ! हम लोग जब पंच-पुला पहुंचे तो वहां पहले से ही काफी लोग मौजूद थे, हम भी खाली जगह देख कर बैठ गए !
कुछ स्थानीय लोगो ने कैंप लगा कर यात्रियों के मनोरंजन के लिए बहुत बढ़िया इंतज़ाम कर रखे थे ! इस कैंप में कहीं छोटी-2 घाटियों को रस्सी के पुल से जोड़ा गया था, तो कहीं रस्सी के माध्यम से ! इस कैंप में एंट्री टिकट लेकर जाने के बाद लोगों को इस रस्सी के पुल के सहारे एक घाटी से दूसरी घाटी पर जाना था, और रस्सी से लटक कर एक पहाड़ से दूसरे पहाड़ पर पहुँचना था ! कैंप देखने में ही काफ़ी रोमांचकारी लग रहा था, सुरक्षा के इंतज़ाम भी ठीक-ठाक लगे ! कुछ भी कहो, पर यहाँ आने वालो के लिए मनोरंजन का इंतज़ाम तो अच्छा था, इसलिए हम लोग वहीँ बैठ कर लोगों को रस्सी का पुल पार करते हुए देखने लगे ! तभी अचानक बारिश शुरू हो गई, सभी लोग बारिश से बचने के लिए इधर-उधर भागने लगे, पर एक लड़की ऐसी भी थी जो इस बारिश में भी रस्सी का पुल पार करके ही वापस आई ! खैर, बारिश ने जब एक बार रफ़्तार पकड़ी तो फिर जम कर बरसीं, सभी लोग बारिश के रुकने का इंतज़ार करने लगे !
वहाँ मेगी और चाय बेचने वाले एक दुकानदार की तो चाँदी हो गई, जो लोग कुछ नहीं भी लेने वाले थे इस ठंड के मौसम में उसने भी चाय और मेगी का ऑर्डर दे ही दिया ! बारिश होने के कारण ठंड काफी बढ़ गई, हम लोग तो टी-शर्ट्स में ही घूम रहे थे, इसलिए ठिठुरन महसूस होने लगी ! अब हमें लगने लगा था कि होटल से निकलते समय अपने-2 जैकेट ले लेने चाहिए थे, पर आदमी ग़लती से ही सबक भी लेता है ! आप लोग अगर कभी बारिश के मौसम में पहाड़ों पर घूमने जाएँ तो अपने साथ कुछ गरम कपडे ज़रूर रखें, ताकि ज़रूरत पड़ने पर खराब मौसम से अपने आप को बचा सके ! अब हमारे पास वहाँ बैठ कर बारिश के रुकने का इंतज़ार करने के सिवा दूसरा कोई विकल्प नहीं था, हमने भी अपने लिए चाय और मेगी का ऑर्डर दे दिया ! चाय पीने के बाद शरीर में थोड़ी गर्मी महसूस हुई, गर्मी बढ़ाने के लिए दूसरी चाय का ऑर्डर भी दे दिया ! जब तक हमने मेगी ख़त्म की, बारिश भी थम चुकी थी, बारिश से पेड़ों के पत्ते धुल कर चमकने लगे थे !
घड़ी में समय देखा तो शाम के साढ़े-पांच बज रहे थे, हमने सोचा अब वापिस अपने होटल चला जाए ! चाय वाले का हिसाब करके जैसे ही वहाँ से चले कि विपुल ने पानी की तेज़ धारा पहाड़ो के बीच में से नीचे आते देखी ! दुकानदार से पूछने पर पता चला कि थोडा सा ऊपर जाने पर ही पानी का एक छोटा झरना है, बारिश में इस झरने में पानी आ जाता है ! ये सुनकर हमने सोचा क्यों ना झरना देख कर ही चला जाए, फिर तो हम सब उस झरने की ओर चल दिए ! पहाड़ों के बीच में से जिस दिशा से पानी की धारा आ रही थी हम सब उसी दिशा में आगे बढ़ने लगे ! दस मिनट की चढ़ाई के बाद ही हम लोग झरने तक पहुँच गए, हमारे सिवा उस झरने पर कोई नहीं था ! एक तो झरना हमारी उम्मीद से काफी छोटा था, दूसरा इसमें गंदा पानी आ रहा था, उपर से पानी अपने साथ मिट्टी बहा कर ला रहा था ! फिर सबने ये सोच कर संतोष कर लिया कि कुछ ना से तो ये झरना ही सही, पंज-पुला में प्राकृतिक नज़ारों के अलावा वैसे तो देखने के लिए कुछ मिला नहीं !
आधा घंटे झरने पर बिताने के बाद हम सब वापस नीचे आ गए ! झरने से नीचे आते हुए हमने एक पगडंडी पहाड़ी के ऊपर जाते हुए देखी, सोचा की उपर से कुछ और सुंदर नज़ारे दिखाई देंगे, हम सब उस पगडंडी पर चल दिए ! इस पगडंडी पर थोडा ही आगे बढ़े थे कि एक स्थानीय युवक हमें पहाड़ी के ऊपर से नीचे आता दिखाई दिया, पूछने पर पता चला कि वो उपर पहाड़ी पर बसे एक गाँव में रहता है और नीचे खाने-पीने का सामान लेने जा रहा था ! उसने हमें ये कहकर डराने की कोशिश की, कि इस रास्ते पर काफी जंगली जानवर है इसलिए तुम लोग यहाँ से वापस लौट जाओ ! अगर तुम्हें पहाड़ी के ऊपर जाना ही है तो दिन में जाना, अभी शाम हो चुकी है और ऊपर पहुँचने से पहले ही रात भी हो जाएगी, हमने कहा तुम कैसे जाओगे तो बोला कि मैं इस समय नहीं, सुबह उपर जाउँगा ! हम सबका ऊपर जाने का मन तो बहुत था पर क्यूंकि हम लोग पंच-पुला आते हुए गरम कपडे लेकर नहीं आए थे और हमारे पास टोर्च भी एक ही थी तो सोचा कि वापस चलने में ही भलाई है !
क्योंकि रात्रि में ऐसे अंजान जंगल में बिना तैयारी के जाना कोई समझदारी का काम नहीं था ! इस समय जिस ऊंचाई पर हम खड़े थे, वहां से भी बहुत सुंदर नज़ारे दिखाई दे रहे थे, गाँधी चौक की ओर जाती सड़क के उपर बड़े-2 चीड़ के पेड़ काफ़ी अच्छे लग रहे थे ! थोड़ी देर यहाँ बिताने के बाद हम सब नीचे उस कैंप की ओर चल दिए ! जब हम वापस नीचे कैंप पर पहुँचे तो कुछ गिनती के लोगों को छोड़ कर सारे पर्यटक वापस जा चुके थे, एक बार तो ऐसा लगा कि सभी लोग बारिश के रुकने का ही इंतजार कर रहे थे ! पंज-पुला से होटल वापसी का सफ़र भी काफ़ी रोमांचकारी रहा, क्योंकि मुख्य मार्ग पर इस समय कोई चहलकदमी नहीं थी, इक्का-दुक्का गाड़ियाँ ही आ-जा रही थी ! चारों तरफ एकदम सन्नाटा पसरा हुआ था, और अंधेरा भी हो चुका था ! इस मार्ग पर वापस आते हुए रास्ते में सड़क के किनारे हमें एक ग्रीनलैंड नाम का बंगला दिखाई दिया, जो बहुत सुन्दर था, बना भी काफ़ी पुराना हुआ था !
मुख्य सड़क से ये बंगला काफ़ी नीचे था और इसके चारों तरफ एक खुला मैदान था, खिड़कियों पर लगे शीशे से देखने पर लग रहा था कि इस समय बंगले में कोई नहीं था ! मैदान में ही एक बड़ा सा पेड़ था और मैदान में छोटी-2 घास लगी हुई थी, मुख्य सड़क पर एक प्रवेश द्वार था और शायद दूसरा प्रवेश द्वार नीचे रहा होगा ! यहाँ सड़क के पास वाले प्रवेश द्वार के पास बने चबूतरे पर बैठ कर हम इस बंगले को देखने लगे ! हालाँकि, इस बंगले के आस-पास और बंगले भी थे, पर सबसे सुंदर यही बंगला लग रहा था ! थोड़ी देर इस बंगले के पास रुकने के बाद हम फिर से अपने होटल की तरफ चल दिए ! अगले 10 मिनट में हम गाँधी चौक पहुँच चुके थे, पंज-पुला के पास घना जॅंगल होने के कारण अंधेरा लग रहा था पर यहाँ अभी भी उजाला था और फिर मुख्य बाज़ार होने के कारण कृत्रिम रोशनी भी थी ! जब हमने देखा कि सेंट-जोन्स चर्च अभी बंद नहीं हुआ है, तो सोचा कि क्यों ना चर्च में जाकर प्रार्थना ही कर ली जाए !
अन्दर जाने पर पता चला कि चर्च के बंद होने का समय पास ही था इसलिए ज़्यादा देर वहाँ ना रुककर हम सब बाहर आ गए ! चर्च में बैठना मेरे लिए हमेशा ही सुखद अनुभव रहता है, चारों तरफ शांति ही शांति, ऐसा हमारे मंदिरों में शायद ही कहीं देखने को मिलता हो ! चर्च से बाहर आकर काफी देर तक तो फोटो खींचने-खिंचवाने का सिलसिला चलता रहा, और फिर वहीं गाँधी चौक के पास ही एक होटल में हम सबने पेट-पूजा की ! खाना खाने के बाद देर रात तक बाज़ार में ही घुमते रहे, कि तभी फिर से बारिश शुरू हो गई, बारिश काफ़ी तेज थी, किसी को भिगाने के लिए तो काफ़ी थी ! वैसे हमारा होटल गाँधी-चौक से ज़्यादा दूर नहीं था, बमुश्किल 10 मिनट की दूरी पर रहा होगा, पर बारिश एकदम से शुरू हुई थी इसलिए हमारे पास इतना भी समय नहीं था कि भागकर अपने होटल जा सके ! सिर छुपाने के लिए हम सब बाज़ार में ही एक दुकान में घुस गए, जहाँ हमने ठंडी में कुलफी का लुत्फ़ उठाया !
फिर जब थोड़ी देर बाद बारिश धीमे हो गई तो हम तेज़ कदमों से अपने होटल की ओर चल दिए ! होटल पहुँचकर अगले दिन की यात्रा पर विचार-विमर्श करने के बाद अपने-2 बिस्तर पर आराम करने चले गए !
कब जाएँ (Best time to go Dalhousie): वैसे तो आप साल के किसी भी महीने में घूमने के लिए डलहौजी जा सकते है लेकिन झरनों में नहाना हो तो बारिश से बढ़िया कोई मौसम हो ही नहीं सकता ! वैसे अगर बर्फ देखने का मन हो तो आप यहाँ दिसंबर-जनवरी में आइए, बढ़िया बर्फ़बारी देखने को मिलेगी !
कैसे जाएँ (How to reach Dalhousie): दिल्ली से डलहौजी की दूरी लगभग 559 किलोमीटर है ! यहाँ जाने का सबसे बढ़िया साधन रेल मार्ग है दिल्ली से पठानकोट तक ट्रेन से जाइए, जम्मू जाने वाली हर ट्रेन पठानकोट होकर ही जाती है ! पठानकोट से डलहौजी की दूरी महज 83 किलोमीटर है जिसे आप बस या टैक्सी से तय कर सकते है, इस सफ़र में आपके ढाई से तीन घंटे लगेंगे ! अगर आप सड़क मार्ग से जाना चाहे तो दिल्ली से डलहौजी (चम्बा) के लिए हिमाचल टूरिज़्म की वोल्वो और हिमाचल परिवहन की सामान्य बसें भी चलती है ! आप निजी गाड़ी से भी डलहौजी जा सकते है जिसमें आपको दिल्ली से डलहौजी पहुँचने में 10-11 घंटे का समय लगेगा !
कहाँ रुके (Where to stay in Dalhousie): डलहौजी में रुकने के लिए बहुत होटल है आपको अपने बजट के अनुसार 700 रुपए से शुरू होकर 3000 रुपए तक के होटल मिल जाएँगे ! मई-जून के महीनों में यहाँ ज़्यादा भीड़ रहती है इसलिए अगर इन महीनों में जाना हो तो होटल का अग्रिम आरक्षण करवाकर ही जाएँ !
क्या देखें (Places to see in Dalhousie): डलहौजी में देखने के लिए वैसे तो बहुत जगहें है लेकिन यहाँ के मुख्य आकर्षण पॅंचपुला वॉटरफॉल, सातधारा वॉटरफॉल, ख़ज़ियार, कलाटॉप वाइल्डलाइफ सेंचुरी, सेंट जॉन चर्च, डायन कुंड, और माल रोड है ! इसके अलावा रोमांच के शौकीन लोगों के लिए यहाँ से थोड़ी दूर चम्बा में रिवर राफ्टिंग, राक क्लाइंबिंग, और ट्रेकिंग के विकल्प भी है !
अगले भाग में जारी...
डलहौजी - धर्मशाला यात्रा
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यात्रा के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि किस तरह हम दिल्ली से ट्रेन का लंबा सफ़र तय करके पठानकोट होते हुए यहाँ डलहौजी पहुँचे ! अब आगे, होटल पहुँचने के बाद तैयार होकर खाने-पीने के बाद हम लोग पंच-पुला घूमने निकल पड़े, दोपहर के तीन बज चुके थे, इसलिए हमने आज का दिन डलहौज़ी में आस-पास घूमना ही उचित समझा ! पंच-पुला, डलहौज़ी के मुख्य बाज़ार (गाँधी चौक) से लगभग दो किलोमीटर की दूरी पर है, जहाँ जाने के लिए वैसे तो आप गाँधी चौक से बस या टैक्सी ले सकते है, पर पहाड़ों पर घुमक्कड़ी का असली मजा तो पैदल ही आता है ! पहाड़ों पर प्रकृति के जो नज़ारे आप पैदल चल कर देख सकते है वो बस या कार में बैठ कर शायद ही कभी दिखाई दे ! पंज-पुला जाने के लिए हम चारों गाँधी चौक से तीन बजे पैदल ही निकल पड़े ! गाँधी चौक से थोडा सा आगे बढ़ने पर मुख्य सड़क दो भागों में विभाजित हो जाती है, ऊपर जाने वाली सड़क खजियार होते हुए चंबा निकल जाती है जबकि नीचे जाने वाला मार्ग पंच-पुला होते हुए आगे चला जाता है !
पंज-पुला जाते हुए मार्ग में (On the way to Panch Pula) |
जब मौसम ज़्यादा खराब हो गया तो पहले तो हम सिर छुपाने की जगह ढूँढने लगे, पर फिर सोचा कि अगर मौसम की परवाह करके रुक गए तो घूमने का सारा मजा किरकिरा हो जाएगा ! हल्की-2 बूँदा-बाँदी के बीच हम तेज़ कदमों से पंच-पुला की तरफ आगे बढ़ते रहे ! गाँधी चौक से पंच-पुला जाने वाला मार्ग काफी घुमावदार है, हर मोड़ से प्रकृति के खूबसूरत नज़ारे दिखाई देते है ! यहाँ इस मार्ग पर चलते हुए आपको हर मोड़ पर लगता है कि यहीं रुक कर थोड़ी देर इस खूबसूरती का आनंद लिया जाए, हमने भी ऐसा ही किया ! हल्की-2 बारिश के बीच हम रुकते-रुकाते पंच-पुला की ओर बढ़ते रहे, बीच-2 में कुछ नज़ारों को अपने कैमरें में भी समेटते रहे ! जैसे-2 हम पंच-पुला के करीब पहुँचते जा रहे थे, नज़ारे और भी सुन्दर होते जा रहे थे, फिर एक घुमावदार मोड़ से पंच-पुला दिखाई देने लगा ! अब हम सब तेज़ क़दमों से पंच-पुला की ओर बढ़ने लगे, फिर भी उस मोड़ से यहाँ पंच-पुला पहुँचने में हमें दस से पंद्रह मिनट लग गए !
यहाँ पंज-पुला में सरदार अजीत सिंह जी का स्मारक भी है, स्मृति स्वरूप उनकी प्रतिमा भी लगी हुई है ! अजीत सिंह जी एक क्रांतिकारी थे और ब्रिटिश शासन के दौरान उन्होने सरकार विरोधी कई आंदोलनों में भाग लिया ! उनके बारे में और अधिक जानने के लिए यहाँ क्लिक करें ! समय देखा तो शाम के साढ़े चार बज रहे थे, और मौसम अभी भी बारिश का ही बना हुआ था ! पंच-पुला में बच्चों के खेलने-कूदने की बढ़िया व्यवस्था है, चाहे वो झूलने के लिए झूले हों, बैठने के लिए खुले मैदान, या फिर पानी में घूमने के लिए नाव, सब कुछ यहाँ पर है ! चौंकिए मत, नाव के लिए कोई बड़ी झील नहीं है, एक छोटा सा तालाब है और जिस समय हम यहाँ पहुँचे कुछ बच्चे इसी तालाब में नौकायान का आनंद ले रहे थे ! आप भी कभी बच्चो के साथ यहाँ घूमने आएँ तो नौकायान का आनंद तो ले ही सकते है ! हम लोग जब पंच-पुला पहुंचे तो वहां पहले से ही काफी लोग मौजूद थे, हम भी खाली जगह देख कर बैठ गए !
कुछ स्थानीय लोगो ने कैंप लगा कर यात्रियों के मनोरंजन के लिए बहुत बढ़िया इंतज़ाम कर रखे थे ! इस कैंप में कहीं छोटी-2 घाटियों को रस्सी के पुल से जोड़ा गया था, तो कहीं रस्सी के माध्यम से ! इस कैंप में एंट्री टिकट लेकर जाने के बाद लोगों को इस रस्सी के पुल के सहारे एक घाटी से दूसरी घाटी पर जाना था, और रस्सी से लटक कर एक पहाड़ से दूसरे पहाड़ पर पहुँचना था ! कैंप देखने में ही काफ़ी रोमांचकारी लग रहा था, सुरक्षा के इंतज़ाम भी ठीक-ठाक लगे ! कुछ भी कहो, पर यहाँ आने वालो के लिए मनोरंजन का इंतज़ाम तो अच्छा था, इसलिए हम लोग वहीँ बैठ कर लोगों को रस्सी का पुल पार करते हुए देखने लगे ! तभी अचानक बारिश शुरू हो गई, सभी लोग बारिश से बचने के लिए इधर-उधर भागने लगे, पर एक लड़की ऐसी भी थी जो इस बारिश में भी रस्सी का पुल पार करके ही वापस आई ! खैर, बारिश ने जब एक बार रफ़्तार पकड़ी तो फिर जम कर बरसीं, सभी लोग बारिश के रुकने का इंतज़ार करने लगे !
वहाँ मेगी और चाय बेचने वाले एक दुकानदार की तो चाँदी हो गई, जो लोग कुछ नहीं भी लेने वाले थे इस ठंड के मौसम में उसने भी चाय और मेगी का ऑर्डर दे ही दिया ! बारिश होने के कारण ठंड काफी बढ़ गई, हम लोग तो टी-शर्ट्स में ही घूम रहे थे, इसलिए ठिठुरन महसूस होने लगी ! अब हमें लगने लगा था कि होटल से निकलते समय अपने-2 जैकेट ले लेने चाहिए थे, पर आदमी ग़लती से ही सबक भी लेता है ! आप लोग अगर कभी बारिश के मौसम में पहाड़ों पर घूमने जाएँ तो अपने साथ कुछ गरम कपडे ज़रूर रखें, ताकि ज़रूरत पड़ने पर खराब मौसम से अपने आप को बचा सके ! अब हमारे पास वहाँ बैठ कर बारिश के रुकने का इंतज़ार करने के सिवा दूसरा कोई विकल्प नहीं था, हमने भी अपने लिए चाय और मेगी का ऑर्डर दे दिया ! चाय पीने के बाद शरीर में थोड़ी गर्मी महसूस हुई, गर्मी बढ़ाने के लिए दूसरी चाय का ऑर्डर भी दे दिया ! जब तक हमने मेगी ख़त्म की, बारिश भी थम चुकी थी, बारिश से पेड़ों के पत्ते धुल कर चमकने लगे थे !
घड़ी में समय देखा तो शाम के साढ़े-पांच बज रहे थे, हमने सोचा अब वापिस अपने होटल चला जाए ! चाय वाले का हिसाब करके जैसे ही वहाँ से चले कि विपुल ने पानी की तेज़ धारा पहाड़ो के बीच में से नीचे आते देखी ! दुकानदार से पूछने पर पता चला कि थोडा सा ऊपर जाने पर ही पानी का एक छोटा झरना है, बारिश में इस झरने में पानी आ जाता है ! ये सुनकर हमने सोचा क्यों ना झरना देख कर ही चला जाए, फिर तो हम सब उस झरने की ओर चल दिए ! पहाड़ों के बीच में से जिस दिशा से पानी की धारा आ रही थी हम सब उसी दिशा में आगे बढ़ने लगे ! दस मिनट की चढ़ाई के बाद ही हम लोग झरने तक पहुँच गए, हमारे सिवा उस झरने पर कोई नहीं था ! एक तो झरना हमारी उम्मीद से काफी छोटा था, दूसरा इसमें गंदा पानी आ रहा था, उपर से पानी अपने साथ मिट्टी बहा कर ला रहा था ! फिर सबने ये सोच कर संतोष कर लिया कि कुछ ना से तो ये झरना ही सही, पंज-पुला में प्राकृतिक नज़ारों के अलावा वैसे तो देखने के लिए कुछ मिला नहीं !
आधा घंटे झरने पर बिताने के बाद हम सब वापस नीचे आ गए ! झरने से नीचे आते हुए हमने एक पगडंडी पहाड़ी के ऊपर जाते हुए देखी, सोचा की उपर से कुछ और सुंदर नज़ारे दिखाई देंगे, हम सब उस पगडंडी पर चल दिए ! इस पगडंडी पर थोडा ही आगे बढ़े थे कि एक स्थानीय युवक हमें पहाड़ी के ऊपर से नीचे आता दिखाई दिया, पूछने पर पता चला कि वो उपर पहाड़ी पर बसे एक गाँव में रहता है और नीचे खाने-पीने का सामान लेने जा रहा था ! उसने हमें ये कहकर डराने की कोशिश की, कि इस रास्ते पर काफी जंगली जानवर है इसलिए तुम लोग यहाँ से वापस लौट जाओ ! अगर तुम्हें पहाड़ी के ऊपर जाना ही है तो दिन में जाना, अभी शाम हो चुकी है और ऊपर पहुँचने से पहले ही रात भी हो जाएगी, हमने कहा तुम कैसे जाओगे तो बोला कि मैं इस समय नहीं, सुबह उपर जाउँगा ! हम सबका ऊपर जाने का मन तो बहुत था पर क्यूंकि हम लोग पंच-पुला आते हुए गरम कपडे लेकर नहीं आए थे और हमारे पास टोर्च भी एक ही थी तो सोचा कि वापस चलने में ही भलाई है !
क्योंकि रात्रि में ऐसे अंजान जंगल में बिना तैयारी के जाना कोई समझदारी का काम नहीं था ! इस समय जिस ऊंचाई पर हम खड़े थे, वहां से भी बहुत सुंदर नज़ारे दिखाई दे रहे थे, गाँधी चौक की ओर जाती सड़क के उपर बड़े-2 चीड़ के पेड़ काफ़ी अच्छे लग रहे थे ! थोड़ी देर यहाँ बिताने के बाद हम सब नीचे उस कैंप की ओर चल दिए ! जब हम वापस नीचे कैंप पर पहुँचे तो कुछ गिनती के लोगों को छोड़ कर सारे पर्यटक वापस जा चुके थे, एक बार तो ऐसा लगा कि सभी लोग बारिश के रुकने का ही इंतजार कर रहे थे ! पंज-पुला से होटल वापसी का सफ़र भी काफ़ी रोमांचकारी रहा, क्योंकि मुख्य मार्ग पर इस समय कोई चहलकदमी नहीं थी, इक्का-दुक्का गाड़ियाँ ही आ-जा रही थी ! चारों तरफ एकदम सन्नाटा पसरा हुआ था, और अंधेरा भी हो चुका था ! इस मार्ग पर वापस आते हुए रास्ते में सड़क के किनारे हमें एक ग्रीनलैंड नाम का बंगला दिखाई दिया, जो बहुत सुन्दर था, बना भी काफ़ी पुराना हुआ था !
मुख्य सड़क से ये बंगला काफ़ी नीचे था और इसके चारों तरफ एक खुला मैदान था, खिड़कियों पर लगे शीशे से देखने पर लग रहा था कि इस समय बंगले में कोई नहीं था ! मैदान में ही एक बड़ा सा पेड़ था और मैदान में छोटी-2 घास लगी हुई थी, मुख्य सड़क पर एक प्रवेश द्वार था और शायद दूसरा प्रवेश द्वार नीचे रहा होगा ! यहाँ सड़क के पास वाले प्रवेश द्वार के पास बने चबूतरे पर बैठ कर हम इस बंगले को देखने लगे ! हालाँकि, इस बंगले के आस-पास और बंगले भी थे, पर सबसे सुंदर यही बंगला लग रहा था ! थोड़ी देर इस बंगले के पास रुकने के बाद हम फिर से अपने होटल की तरफ चल दिए ! अगले 10 मिनट में हम गाँधी चौक पहुँच चुके थे, पंज-पुला के पास घना जॅंगल होने के कारण अंधेरा लग रहा था पर यहाँ अभी भी उजाला था और फिर मुख्य बाज़ार होने के कारण कृत्रिम रोशनी भी थी ! जब हमने देखा कि सेंट-जोन्स चर्च अभी बंद नहीं हुआ है, तो सोचा कि क्यों ना चर्च में जाकर प्रार्थना ही कर ली जाए !
अन्दर जाने पर पता चला कि चर्च के बंद होने का समय पास ही था इसलिए ज़्यादा देर वहाँ ना रुककर हम सब बाहर आ गए ! चर्च में बैठना मेरे लिए हमेशा ही सुखद अनुभव रहता है, चारों तरफ शांति ही शांति, ऐसा हमारे मंदिरों में शायद ही कहीं देखने को मिलता हो ! चर्च से बाहर आकर काफी देर तक तो फोटो खींचने-खिंचवाने का सिलसिला चलता रहा, और फिर वहीं गाँधी चौक के पास ही एक होटल में हम सबने पेट-पूजा की ! खाना खाने के बाद देर रात तक बाज़ार में ही घुमते रहे, कि तभी फिर से बारिश शुरू हो गई, बारिश काफ़ी तेज थी, किसी को भिगाने के लिए तो काफ़ी थी ! वैसे हमारा होटल गाँधी-चौक से ज़्यादा दूर नहीं था, बमुश्किल 10 मिनट की दूरी पर रहा होगा, पर बारिश एकदम से शुरू हुई थी इसलिए हमारे पास इतना भी समय नहीं था कि भागकर अपने होटल जा सके ! सिर छुपाने के लिए हम सब बाज़ार में ही एक दुकान में घुस गए, जहाँ हमने ठंडी में कुलफी का लुत्फ़ उठाया !
फिर जब थोड़ी देर बाद बारिश धीमे हो गई तो हम तेज़ कदमों से अपने होटल की ओर चल दिए ! होटल पहुँचकर अगले दिन की यात्रा पर विचार-विमर्श करने के बाद अपने-2 बिस्तर पर आराम करने चले गए !
पंज-पुला जाते हुए मार्ग में शशांक और विपुल |
पीछे घना कोहरा (Dense Fog in Panch Pula, Dalhousie) |
विपुल, शशांक और हितेश (बाएँ से दाएँ) |
रास्ते में विश्राम करते हुए |
पंज-पुला जाने का मार्ग (Dalhousie Panch Pula Road) |
A Creature |
घने कोहरे से ढकी पहाड़ी (Hills Covered with Dense Fog, Dalhousie) |
पीछे दिखाई देते उँचे-2 पेड़ (Dense Forest in Panch Pula, Dalhousie) |
पंज-पुला का एक दृश्य (A view of Panch Pula, Dalhousie) |
हितेश के पीछे कैंप द्वारा बनाया गया रस्सी का अस्थाई पुल |
शशांक कुछ दिखाते हुए |
एक छोटा झरना |
झरने से लिया एक चित्र (A view from Waterfall, Panch Pula) |
झरने से लिया एक चित्र |
झरने से बहता पानी |
पहाड़ी पर बसे गाँव में जाने का मार्ग |
घाटी का एक नज़ारा (A beautiful view of Valley, Panch Pula) |
ग्रीनलैंड बंगला (GreenLand in Dalhousie) |
गाँधी चौक जाने का मार्ग |
सड़क के किनारे घने जंगल (A view from Road, Panch Pula) |
गाँधी चौक पर विपुल और शशांक |
गाँधी चौक पर सेंट-जोन्स चर्च (St. John's Church in Dalhousie) |
क्यों जाएँ (Why to go Dalhousie): अगर आप दिल्ली की गर्मी और भीड़-भाड़ से दूर सुकून के कुछ पल पहाड़ों पर बिताना चाहते है तो आप डलहौजी का रुख़ कर सकते है ! यहाँ घूमने के लिए भी कई जगहें है, जिसमें झरने, चर्च, पहाड़, मंदिर और वन्य जीव उद्यान शामिल है !
कब जाएँ (Best time to go Dalhousie): वैसे तो आप साल के किसी भी महीने में घूमने के लिए डलहौजी जा सकते है लेकिन झरनों में नहाना हो तो बारिश से बढ़िया कोई मौसम हो ही नहीं सकता ! वैसे अगर बर्फ देखने का मन हो तो आप यहाँ दिसंबर-जनवरी में आइए, बढ़िया बर्फ़बारी देखने को मिलेगी !
कैसे जाएँ (How to reach Dalhousie): दिल्ली से डलहौजी की दूरी लगभग 559 किलोमीटर है ! यहाँ जाने का सबसे बढ़िया साधन रेल मार्ग है दिल्ली से पठानकोट तक ट्रेन से जाइए, जम्मू जाने वाली हर ट्रेन पठानकोट होकर ही जाती है ! पठानकोट से डलहौजी की दूरी महज 83 किलोमीटर है जिसे आप बस या टैक्सी से तय कर सकते है, इस सफ़र में आपके ढाई से तीन घंटे लगेंगे ! अगर आप सड़क मार्ग से जाना चाहे तो दिल्ली से डलहौजी (चम्बा) के लिए हिमाचल टूरिज़्म की वोल्वो और हिमाचल परिवहन की सामान्य बसें भी चलती है ! आप निजी गाड़ी से भी डलहौजी जा सकते है जिसमें आपको दिल्ली से डलहौजी पहुँचने में 10-11 घंटे का समय लगेगा !
कहाँ रुके (Where to stay in Dalhousie): डलहौजी में रुकने के लिए बहुत होटल है आपको अपने बजट के अनुसार 700 रुपए से शुरू होकर 3000 रुपए तक के होटल मिल जाएँगे ! मई-जून के महीनों में यहाँ ज़्यादा भीड़ रहती है इसलिए अगर इन महीनों में जाना हो तो होटल का अग्रिम आरक्षण करवाकर ही जाएँ !
क्या देखें (Places to see in Dalhousie): डलहौजी में देखने के लिए वैसे तो बहुत जगहें है लेकिन यहाँ के मुख्य आकर्षण पॅंचपुला वॉटरफॉल, सातधारा वॉटरफॉल, ख़ज़ियार, कलाटॉप वाइल्डलाइफ सेंचुरी, सेंट जॉन चर्च, डायन कुंड, और माल रोड है ! इसके अलावा रोमांच के शौकीन लोगों के लिए यहाँ से थोड़ी दूर चम्बा में रिवर राफ्टिंग, राक क्लाइंबिंग, और ट्रेकिंग के विकल्प भी है !
डलहौजी - धर्मशाला यात्रा
- दिल्ली से डलहौजी की रेल यात्रा (A Train Trip to Dalhousie)
- पंज-पुला की बारिश में एक शाम (An Evening in Panch Pula)
- खजियार – देश में विदेश का एहसास (Natural Beauty of Khajjar)
- कालाटोप के जंगलों में दोस्तों संग बिताया एक दिन (A Walk in Kalatop Wildlife Sanctuary)
- डलहौज़ी से धर्मशाला की बस यात्रा (A Road Trip to Dharmshala)
- दोस्तों संग त्रिउंड में बिताया एक दिन (An Awesome Trek to Triund)
- मोनेस्ट्री में बिताए सुकून के कुछ पल (A Day in Mcleodganj Monastery)
- हिमालयन वाटर फाल - एक अनछुआ झरना (Untouched Himachal – Himalyan Water Fall)
- पठानकोट से दिल्ली की रेल यात्रा (A Journey from Pathankot to Delhi)
पंचपुला पर सरदार अजित सिंह के स्मारक की चर्चा नहीं की तुमने जो सरदार भगतसिंग के चाचा थे और स्वयं क्रन्तिकारी थे। उनका पैतृक घर और अंतिम स्थल डाल्हिजि ही था। वैसे जब हम यहाँ गए तो काफी बारिश थी और हमको कोई नहीं मिला था ओरण हमने ये खूबसूरत झरना देखा । फोटु बहुत अच्छे थे
ReplyDeleteयाद दिलाने के लिए शुक्रिया दर्शन जी, उनके बारे में इस लेख में अब जानकारी दे दी गई है !
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