इस यात्रा वृतांत को शुरू से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें !
बेताब-वैली तो हम दोनों जा नहीं पाए, लेकिन पहाड़ी पर चढ़ना और फिर पहलगाम में इस खड्ड के किनारे पानी में पैर डालकर बैठना अपने आप में एक सुखद अनुभव था ! चलिए बेताब वैली इस बार ना तो अगली बार ही सही, हमारे पास कोई तो बहाना होना चाहिए यहाँ दोबारा आने के लिए ! वैसे पहलगाम आते हुए हम जिस मार्ग से आए थे वापसी में उस मार्ग से नहीं गए ! हमारा ड्राइवर बहुत अनुभवी था और यहाँ पिछले कई सालों से टैक्सी चला रहा है, उसने बताया कि यात्रा सीजन में वो यहाँ यात्रियों को लेकर अक्सर आता है ! हर बार वो आता एक मार्ग से है और जाता दूसरे मार्ग से है ताकि सभी यात्री इस यात्रा के दौरान दोनों रास्तों के नज़ारों का आनंद ले सके ! हमने कहा सही कह रहे हो, आख़िर आदमी यहाँ घूमने ही आया है तो क्यों ना दोनों रास्तो का आनंद लिया जाए ! वापिस आते हुए थोड़ी दूर तक तो हम उसी मार्ग पर चलते रहे जिस से सुबह यहाँ आए थे, फिर रास्ते में एक तिराहे से दाएँ मुड़कर एक पहाड़ी के साथ-2 हो लिए !
जैसे-2 हम इस मार्ग पर आगे बढ़ रहे थे दूसरा मार्ग हमसे दूर होता जा रहा था, ये मार्ग ऊँचाई पर था जबकि दूसरा वाला मार्ग ढलान से होकर था ! आगे जाकर ये मार्ग फिर से श्रीनगर-पहलगाम वाले मुख्य मार्ग में मिल जाएगा, वैसे इस मार्ग से जाने पर श्रीनगर की दूरी भी थोड़ी बढ़ जाती है ! ऊँचे-नीचे रास्तों से होते हुए कई गाँवों को पार करते हुए हम आगे बढ़ते रहे ! थोड़ी देर बाद हम काफ़ी दूर तक झेलम नदी के साथ-2 चलते रहे, रास्ते में हमें एक और नदी दिखी, ड्राइवर ने बताया ये लिद्दर नदी है और इसे झेलम की सहायक नदी के रूप में जाना जाता है ! काफ़ी देर तक चलने के बाद सड़क के दोनों ओर सेब के बगीचे दिखाई देने लगे, इस समय सेब के पेड़ फल से लदे पड़े थे ! सेब के बाग तो मैं पहले भी मनाली से सोलांग वैली जाते हुए देख चुका था, पर उस समय पेड़ों पर फल नहीं थे ! इस मौसम में ये पेड़ फलों से लदे हुए थे, सेब के बाग देखने के बाद तो सेब खाने की इच्छा भी अपने आप ही जाग गई ! हमने ड्राइवर से कहा कि किसी बाग के पास गाड़ी रोक लो ताकि हम लोग सेब के बगीचे में घूम भी सके और सेब का स्वाद भी चख सके !
मैं गाड़ी में बैठा हुआ बाहर दिखाई देते सेब के बगीचों की फोटो खींचने में लगा हुआ था, इतने में ड्राइवर ने सड़क किनारे बाईं ओर गाड़ी रोक दी ! वो बोला, सड़क के दोनों और सेब के बाग है, जहाँ के सेब अच्छे लगे, ले लो ! गाड़ी से उतरकर हम पाँचों अपनी बाईं ओर वाले बगीचे में चल दिए, यहाँ सेब के फल तोड़कर एक जगह रखे हुए थे और कुछ स्थानीय लोग इन फलों को पेटियों में भर रहे थे ! सेब की फसल को तैयार करने के लिए ये लोग काफ़ी मेहनत करते है, बाग के अंदर पहुँचे तो मालूम हुआ कि ये काफ़ी घने बाग थे ! इस बार सेब की पैदावार भी खूब थी, फलों से लदे होने के कारण सभी पेड़ काफ़ी नीचे आ गए थे ! घना होने के कारण बाग के अंदर जाने पर हल्का-2 अंधेरा सा लग रहा था, पत्ते कम और सेब ज़्यादा दिखाई दे रहे थे ! बाग में चलते हुए सेब सिर पर ना लगे इसलिए सब झुक कर चल रहे थे ! सेब के बाग में घूमना एक सुखद अनुभव था, पेटी में सेब भर रहे एक स्थानीय युवक ने चखने के लिए एक सेब दिया, जिसे उस दंपति ने सहर्ष ले लिया !
हम दोनों बाग की फोटो खींचने में लगे हुए थे, वैसे तो यहाँ के सेब अच्छे थे पर हमारी उम्मीद मुताबिक नहीं थे ! इसलिए इस बाग से सेब लेने का विचार नहीं बना और हम लोग बाग से बाहर जाने वाले मार्ग पर चल दिए ! बाग से बाहर आकर मुख्य सड़क पर पहुँच और फिर सड़क के उस पार दूसरे बाग में चल दिए ! यहाँ के सेब पहले बाग के मुक़ाबले थोड़े बड़े और लाल थे, यहाँ भी अंदर जाने पर हमने देखा कि स्थानीय लोग पेटियों में सेब भरने में लगे थे ! बगीचे के प्रवेश द्वार के पास मुख्य सड़क के किनारे एक मेज लगाकर भी कुछ सेब बिक्री के लिए रखे गए थे ! बाग का मालिक भी वहीं बैठा था, हमारे प्रवेश करते ही वो उठकर हमारे पास आ गया ! यहाँ भी जब हमें चखने के लिए सेब मिला तो मैने बाग के मालिक से एक सेब पेड़ से तोड़ने के लिए पूछा ! सहमति मिलते ही मैं एक बढ़िया सा सेब ढूंढकर तोड़ लाया और इसे धोने के बाद खाना शुरू कर दिया ! पेड़ से ताज़ा तोड़ा हुआ सेब बहुत रसीला था, बाज़ार में मिलने वाले और बगीचे से तोड़कर लाए गए सेब में इतना फ़र्क तो होगा ही !
वैसे तो बाज़ार में भी बगीचो से ही तोड़कर सेब जाते है पर बाज़ार तक पहुँचते-2 इसे कई दिन हो जाते है और फिर उस सेब में वो बात नहीं होती जो पेड़ से तोड़े हुए सेब में थी ! सेब भी इतने बड़े थे कि 4 सेब कोई खा ले तो पेट भर जाए ! बहुत से लोगों का पेट शायद एक-दो सेब में भी भर जाए पर मैं यहाँ अपनी बात कर रहा हूँ ! सेब का स्वाद चखने के बाद उस दंपति ने 5 किलो सेब लिए और हमने 2 किलो, उन्हें ये सेब घर ले जाने थे पर हमने तो ये यहीं खाने के लिए लिए थे ! क्योंकि यहाँ दाम तो उतना ही था जितना हमारे यहाँ बाज़ार में मिल जाता है फिर यहाँ से लाद कर ले जाने का कोई विचार भी नहीं था ! 7 किलो सेब लेने के बाद बाग के मालिक ने खाने के लिए सबको एक-2 सेब देते हुए कहा कि यहाँ खाने का कोई पैसा नहीं है, भला कोई आदमी कितने सेब खा लेगा ! मुझे ये बात हज़म नहीं हुई, मन ही मन कहा एक दिन हमें बगीचे में छोड़ दो, फिर अगले दिन से कहना छोड़ दोगे कि कोई कितने सेब खा सकता है भला !
मैने मन ही मन कहा, यहाँ पेटियाँ डकारने वाले बैठे है और ये महाशय कह रहे है कि कोई कितना खा लेगा ! वैसे आप लोगों की जानकाई के लिए बता दूँ कि ये दो किलो सेब हम आज रात को ही डकार गए थे ! खैर, बगीचे से बाहर आकर हम पुन: अपनी गाड़ी में बैठे और श्रीनगर जाने के लिए रवाना हो गए ! थोड़ी डोर जाने पर रास्ते में एक टोल नाका आया, नाका तो क्या था बस 2-3 स्थानीय युवक खड़े थे जो हर आने-जाने वाली गाड़ी से टोल के नाम पर पैसे ले रहे थे. सुबह पहलगाम जाते समय भी रास्ते में 2 जगह टोल चुकाया था, और वापसी में भी इसके अलावा एक और जगह टोल दिया. आधे घंटे के सफ़र के बाद हम फिर से पहलगाम-श्रीनगर जाने वाले मार्ग पर पहुँच गए ! थोड़ी दूर जाने पर रास्ते में एक टोल नाका आया, टोल नाका क्या था बस 2-3 स्थानीय युवक खड़े थे जो हर आने-जाने वाली गाड़ी से टोल के नाम पर पैसे ले रहे थे ! सुबह पहलगाम जाते समय भी रास्ते में 2 जगह टोल चुकाया था, वापसी में भी रास्ते में दो बार टोल अदा किया !
इस मार्ग पर आधा घंटा और चलने के बाद हम सब फिर से पहलगाम-श्रीनगर जाने वाले उसी मार्ग पर पहुँच गए जिससे सुबह आए थे ! सेब हम खरीद चुके थे, पर सेब के अलावा भी थोड़ी-बहुत खरीददारी बाकी थी, सुबह पहलगाम जाते हुए रास्ते में हमने पामपुर में केसर की खेती देखी थी, सड़क के दोनों ओर केसर की कुछ दुकानें भी थी ! ड्राइवर ने बताया था कि यहाँ से बढ़िया केसर मिल जाता है और वापसी में केसर लेने का विचार सबका ही था ! जैसे ही हमारी गाड़ी पामपुर पहुँची, ड्राइवर ने जाकर एक दुकान के सामने गाड़ी खड़ी कर दी ! एक बार फिर सभी लोग गाड़ी से उतरे और एक केसर की दुकान में चल दिए, यहाँ दुकान में केसर के अलावा शिलाजीत, कश्मीरी राजमा, कहवा और कुछ अन्य जड़ी-बूटियाँ भी मौजूद थी ! केसर की पहचान हरेक दुकानदार केसर बेचते हुए बताता है, इस दुकानदार ने भी हमारे पहुँचते ही ज्ञान बाँटना शुरू कर दिया !
ये बात तो सभी जानते है कि बेचने वाला कभी नहीं कहेगा कि वो नकली माल बेच रहा है, हर दुकानदार का काम है कि वो अपने सामान को बेहतर बताकर बेचे ! इस दुकानदार ने भी कहा कि डल झील में जो नावों पर केसर बेचते है वो नकली केसर होती है और पूरे भारत में सिर्फ़ गिनती की जगहों पर ही असली केसर मिलता है ! मैं उसकी इस बात से सहमत नहीं था, फिर भी अन्य लोगों का ध्यान रखते हुए मैं चुप ही रहा ! जब उसने अपना पूरा ज्ञान बाँट लिया तो सवालों-जवाबों का दौर शुरू हुआ, केसर और अन्य जड़ी-बूटियों को लेकर सबके मन में कुछ दुविधाएँ थी ! जैसे केसर के सेवन से लेकर इसके फ़ायदे-नुकसान वगेरह-2, का सबका जवाब यहाँ मिला ! अंत में सबने थोड़ी अपनी-2 ज़रूरत अनुसार केसर ली, एक डिब्बी मैने भी ली, सोचा इस्तेमाल करके देख लेंगे कैसी है ! उस दंपति ने केसर के 4 छोटे डिब्बे लिए, शायद अपने सगे-संबंधियों को उफार स्वरूप देने के लिए !
ये मुझे उनकी बातों से पता चला, केसर लेने के बाद हम दोनों इसके बगल वाली दुकान में कहवा का स्वाद लेने चल दिए ! जबकि वो दंपति केसर की दुकान पर ही अन्य वस्तुएँ लेने में लग गया ! कहवा एक पेय पदार्थ है जो कश्मीर में काफ़ी लोकप्रिय है, कश्मीर के अलावा ये पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और मध्य एशिया के कुछ अन्य भागों में भी नियमित रूप से प्रयोग में लाया जाने वाला पेय है ! आप भी कभी कश्मीर आएँ तो यहाँ के कहवा का स्वाद लेना ना भूलें ! यहाँ के स्थानीय लोग तो नियमित रूप से इस पेय पदार्थ का सेवन करते है ! वैसे तो कहवा बनाने के लिए चाय की हरी पत्तियों को केसर, दालचीनी और इलायची के साथ पकाया जाता है ताकि कहवे को बढ़िया स्वाद दिया जा सके, फिर इसमें मिठास के लिए शहद मिलाया जाता है ! लेकिन यहाँ कहवा बनाने के लिए इस्तेमाल होने वाली सभी वस्तूयों का मिश्रण तैयार करके बेचा जा रहा था !
मैं इससे पहले भी कहवे का स्वाद ले चुका हूँ, स्थानीय लोग तो इसे दवा के रूप में भी काफ़ी प्रयोग में लाते है, सर्दी-जुकाम के लिए कहवा एक कारगर औषधि मानी जाती है ! खैर, कहवा पीने के बाद हम सब आगे बढ़ने के लिए तैयार थे, ड्राइवर भी अब तक अपना कहवा ख़त्म कर चुका था ! फिर हम सब गाड़ी में सवार हुए और श्रीनगर की ओर बढ़ गए, इस बीच बातों का सिलसिला भी लगातार जारी रहा ! हम सबने एक दूसरे के बारे में काफ़ी कुछ जाना, इस दौरान पता चला कि हमारा ड्राइवर पेशे से फोटोग्राफर है और अक्सर यहाँ होने वाली शादियों और दूसरे समारोहों में फोटोग्राफ़ी के लिए जाते रहता है ! यात्रा सीजन में अतिरिक्त आमदनी के लिए कभी-2 ड्राइवरी भी कर लेता है, ये टैक्सी भी उसकी अपनी नहीं थी बल्कि किराए की थी ! ये अच्छी बात है, बहुत से लोग ऐसा करते है ! केसर खरीदने के दौरान ही हमने ड्राइवर को किराए के रुपए भी दे दिए !
धीरे-2 हम श्रीनगर के पास पहुँच चुके थे, फिर भी इस सफ़र को एक तरफ से तय करने में साढ़े तीन घंटे का समय लग गया था ! जब हम डल झील के घाट 15 पर पहुँचे तो रात के 8 बज रहे थे, यहाँ उतरकर हमने स्थानीय बाज़ार से ही खाने-पीने की कुछ वस्तुएँ ली क्योंकि हाउसबोट वाले ने तो बोल ही रखा था कि अगर कुछ खाना हो तो 2-3 घंटे पहले बताना ! हाउसबोट वाले को फोन किया तो हमें लेने के लिए उसने नाव भेज दी, बाज़ार से सामान लेकर जब हम घाट पर पहुँचे तो वो दंपति अभी तक वहीं खड़े थे ! इतने में ही हल्की-2 बूंदा-बाँदी शुरू हो गई, रात को तो यहाँ वैसे ही ठंडक थी, बारिश से ठंड और बढ़ गई ! इस बारिश में भीगने से तबीयत भी खराब हो सकती थी, इसलिए घाट के पास बने डाकघर के किनारे खड़े होकर हम सब अपने-आपको बारिश से बचाते रहे ! इसी बीच अपनी नाव को भी देखते रहे, पता चला कि हम यहाँ छुपकर खड़े है और हमारी नाव आकर वापिस लौट जाए !
थोड़ी देर बाद हमारी नाव आ गई, हम चारों उसमें सवार होकर अपने हाउस बोट के लिए चल दिए, वो दंपति भी हमारे बगल वाले हाउस बोट में ही रुके हुए थे ! उस हाउस बोट के लिए भी यही नाव थी, शायद दोनों हाउसबोट का एक ही नाव वाले से कोई करार हो ! खैर, अचानक शुरू हुई बारिश की वजह से हम ज़्यादा कुछ खरीद नहीं पाए थे और जल्दबाज़ी में ही वापिस घाट पर लौट आए थे ! अब हमारे पास खाने के लिए सेब के अलावा कुछ अन्य फल और चिप्स वगेरह ही थे, नाव से उतरते ही बिलाल से पूछा कि खाने में कुछ मिलेगा क्या ! वो बोला, चाय मिल जाएगी, हितेश बोला, अरे बाबा तुम चाय खवाते रहियों बस, खाने की पूछ रहे है, चाय के अलावा कुछ है तो बता ! वो बोला, पहले बताना था ना सरजी, अब तो कुछ नहीं मिलेगा !
हमने कहा, पहले हमें भी कहाँ पता था कि एकदम से बारिश आ जाएगी ! नाव से उतरे तो हमारे कपड़े भीग चुके थे, इसलिए अपने कमरे में पहुँचकर सबसे पहले कपड़े बदले ! फिर अपने साथ लाए सेबों और अन्य फलों को काट लिया, बिलाल से कहकर थोड़ा मसाला मँगवाया और कटे हुए फलों पर डालकर खाना शुरू कर दिया ! इस दौरान दिन भर की यात्रा पर चर्चा भी चलती रही ! आज इस होटल में हमारा आख़िरी दिन था, सुबह हमें दूसरे होटल में चले जाना था इसलिए अगले दिन के कार्यक्रम पर भी विचार करते रहे, कि कैसे और कहाँ घूमना है ! जब सारे फल ख़त्म हो गए तो हितेश बोला, यार भूख तो अभी भी लग रही है, पेट तो मेरा भी नहीं भरा था, पर अब कुछ खाने के लिए बचा भी नहीं था !
अंत में विचार बना कि अपने हाउसबोट की रसोई में चलकर देखते है, शायद रसोइया कुछ बना दे ! रसोई में पहुँचे तो बिलाल और एक अन्य युवक खाना बनाने में लगे थे, हमारे पूछने पर बिलाल बोला, कि वो अपने लिए खाना बना रहा है ! हमने कहा भाई हमारे लिए भी कुछ बना दे, बिलाल बोला कि अब तो रसोई में सिर्फ़ आलू ही रखे है, बाकी सब्जियाँ ख़त्म हो गई ! फिर हमारे कहने पर उसने आलू की सब्जी और कुछ रोटियाँ बनाकर दी ! खाना लेकर हम सीधे अपने कमरे में आ गए, भूख बहुत तेज लगी थी, इसलिए सारी रोटियाँ निबटाने के बाद थोड़ी राहत मिली ! पेट भर गया तो जल्दी ही नींद भी आने लगी, बातें करते हुए कब नींद आ गई, पता ही नहीं चला !
कब जाएँ (Best time to go Srinagar): वैसे तो आप साल के किसी भी महीने में श्रीनगर जा सकते है लेकिन यहाँ आने का सबसे बढ़िया समय अप्रैल से अक्तूबर का है सर्दियों में तो यहाँ कड़ाके की ठंड पड़ती है कई बार तो डल झील भी जम जाती है !
कैसे जाएँ (How to reach Srinagar): दिल्ली से श्रीनगर की दूरी 808 किलोमीटर है जिसे तय करने में आपको लगभग 15-16 घंटे का समय लगेगा ! श्रीनगर देश के अन्य शहरों से सड़क और हवाई मार्ग से अच्छे से जुड़ा है जबकि यहाँ का नज़दीकी रेलवे स्टेशन उधमपुर है ! वैसे तो बारामूला से बनिहाल तक भी रेलवे लाइन है लेकिन इस मार्ग पर लोकल ट्रेन ही चलती है ! बारामूला से बनिहाल जाते हुए रास्ते में श्रीनगर भी पड़ता है ! उधमपुर से श्रीनगर तक आप बस या टैक्सी से भी आ सकते है, इन दोनों जगहों के बीच की कुल दूरी 204 किलोमीटर है और पूरा पहाड़ी मार्ग है जिसे तय करने में लगभग 5 घंटे का समय लगता है !
कहाँ रुके (Where to stay in Srinagar): श्रीनगर एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है यहाँ रुकने के लिए बहुत होटल है ! आप अपनी सुविधा अनुसार 800 रुपए से लेकर 2000 रुपए तक का होटल ले सकते है ! लेकिन अगर आप श्रीनगर में है तो कम से कम 1 दिन तो हाउसबोट में ज़रूर रुके ! डल झील में बने हाउसबोट में रुकने का अनुभव आपको ज़िंदगी भर याद रहेगा !
कहाँ खाएँ (Eating option in Srinagar): श्रीनगर में अच्छा-ख़ासा बाज़ार है, यहाँ आपको अपने स्वाद अनुसार खाने-पीने का हर सामान मिल जाएगा !
क्या देखें (Places to see in Srinagar): श्रीनगर और इसके आस-पास घूमने की कई जगहें है जिसमें से शंकराचार्य हिल, ट्यूलिप गार्डन, डल झील, सोनमर्ग, बेताब वैली, निशात गार्डन, मुगल गार्डन, शालीमार बाग, गुलमर्ग, परी महल, पहलगाम, खीर भवानी मंदिर और चश्मेशाही प्रमुख है !
अगले भाग में जारी...
श्रीनगर यात्रा
बेताब-वैली तो हम दोनों जा नहीं पाए, लेकिन पहाड़ी पर चढ़ना और फिर पहलगाम में इस खड्ड के किनारे पानी में पैर डालकर बैठना अपने आप में एक सुखद अनुभव था ! चलिए बेताब वैली इस बार ना तो अगली बार ही सही, हमारे पास कोई तो बहाना होना चाहिए यहाँ दोबारा आने के लिए ! वैसे पहलगाम आते हुए हम जिस मार्ग से आए थे वापसी में उस मार्ग से नहीं गए ! हमारा ड्राइवर बहुत अनुभवी था और यहाँ पिछले कई सालों से टैक्सी चला रहा है, उसने बताया कि यात्रा सीजन में वो यहाँ यात्रियों को लेकर अक्सर आता है ! हर बार वो आता एक मार्ग से है और जाता दूसरे मार्ग से है ताकि सभी यात्री इस यात्रा के दौरान दोनों रास्तों के नज़ारों का आनंद ले सके ! हमने कहा सही कह रहे हो, आख़िर आदमी यहाँ घूमने ही आया है तो क्यों ना दोनों रास्तो का आनंद लिया जाए ! वापिस आते हुए थोड़ी दूर तक तो हम उसी मार्ग पर चलते रहे जिस से सुबह यहाँ आए थे, फिर रास्ते में एक तिराहे से दाएँ मुड़कर एक पहाड़ी के साथ-2 हो लिए !
फल से लदे सेब के पेड़ (Apple Tree in Srinagar) |
जैसे-2 हम इस मार्ग पर आगे बढ़ रहे थे दूसरा मार्ग हमसे दूर होता जा रहा था, ये मार्ग ऊँचाई पर था जबकि दूसरा वाला मार्ग ढलान से होकर था ! आगे जाकर ये मार्ग फिर से श्रीनगर-पहलगाम वाले मुख्य मार्ग में मिल जाएगा, वैसे इस मार्ग से जाने पर श्रीनगर की दूरी भी थोड़ी बढ़ जाती है ! ऊँचे-नीचे रास्तों से होते हुए कई गाँवों को पार करते हुए हम आगे बढ़ते रहे ! थोड़ी देर बाद हम काफ़ी दूर तक झेलम नदी के साथ-2 चलते रहे, रास्ते में हमें एक और नदी दिखी, ड्राइवर ने बताया ये लिद्दर नदी है और इसे झेलम की सहायक नदी के रूप में जाना जाता है ! काफ़ी देर तक चलने के बाद सड़क के दोनों ओर सेब के बगीचे दिखाई देने लगे, इस समय सेब के पेड़ फल से लदे पड़े थे ! सेब के बाग तो मैं पहले भी मनाली से सोलांग वैली जाते हुए देख चुका था, पर उस समय पेड़ों पर फल नहीं थे ! इस मौसम में ये पेड़ फलों से लदे हुए थे, सेब के बाग देखने के बाद तो सेब खाने की इच्छा भी अपने आप ही जाग गई ! हमने ड्राइवर से कहा कि किसी बाग के पास गाड़ी रोक लो ताकि हम लोग सेब के बगीचे में घूम भी सके और सेब का स्वाद भी चख सके !
मैं गाड़ी में बैठा हुआ बाहर दिखाई देते सेब के बगीचों की फोटो खींचने में लगा हुआ था, इतने में ड्राइवर ने सड़क किनारे बाईं ओर गाड़ी रोक दी ! वो बोला, सड़क के दोनों और सेब के बाग है, जहाँ के सेब अच्छे लगे, ले लो ! गाड़ी से उतरकर हम पाँचों अपनी बाईं ओर वाले बगीचे में चल दिए, यहाँ सेब के फल तोड़कर एक जगह रखे हुए थे और कुछ स्थानीय लोग इन फलों को पेटियों में भर रहे थे ! सेब की फसल को तैयार करने के लिए ये लोग काफ़ी मेहनत करते है, बाग के अंदर पहुँचे तो मालूम हुआ कि ये काफ़ी घने बाग थे ! इस बार सेब की पैदावार भी खूब थी, फलों से लदे होने के कारण सभी पेड़ काफ़ी नीचे आ गए थे ! घना होने के कारण बाग के अंदर जाने पर हल्का-2 अंधेरा सा लग रहा था, पत्ते कम और सेब ज़्यादा दिखाई दे रहे थे ! बाग में चलते हुए सेब सिर पर ना लगे इसलिए सब झुक कर चल रहे थे ! सेब के बाग में घूमना एक सुखद अनुभव था, पेटी में सेब भर रहे एक स्थानीय युवक ने चखने के लिए एक सेब दिया, जिसे उस दंपति ने सहर्ष ले लिया !
हम दोनों बाग की फोटो खींचने में लगे हुए थे, वैसे तो यहाँ के सेब अच्छे थे पर हमारी उम्मीद मुताबिक नहीं थे ! इसलिए इस बाग से सेब लेने का विचार नहीं बना और हम लोग बाग से बाहर जाने वाले मार्ग पर चल दिए ! बाग से बाहर आकर मुख्य सड़क पर पहुँच और फिर सड़क के उस पार दूसरे बाग में चल दिए ! यहाँ के सेब पहले बाग के मुक़ाबले थोड़े बड़े और लाल थे, यहाँ भी अंदर जाने पर हमने देखा कि स्थानीय लोग पेटियों में सेब भरने में लगे थे ! बगीचे के प्रवेश द्वार के पास मुख्य सड़क के किनारे एक मेज लगाकर भी कुछ सेब बिक्री के लिए रखे गए थे ! बाग का मालिक भी वहीं बैठा था, हमारे प्रवेश करते ही वो उठकर हमारे पास आ गया ! यहाँ भी जब हमें चखने के लिए सेब मिला तो मैने बाग के मालिक से एक सेब पेड़ से तोड़ने के लिए पूछा ! सहमति मिलते ही मैं एक बढ़िया सा सेब ढूंढकर तोड़ लाया और इसे धोने के बाद खाना शुरू कर दिया ! पेड़ से ताज़ा तोड़ा हुआ सेब बहुत रसीला था, बाज़ार में मिलने वाले और बगीचे से तोड़कर लाए गए सेब में इतना फ़र्क तो होगा ही !
वैसे तो बाज़ार में भी बगीचो से ही तोड़कर सेब जाते है पर बाज़ार तक पहुँचते-2 इसे कई दिन हो जाते है और फिर उस सेब में वो बात नहीं होती जो पेड़ से तोड़े हुए सेब में थी ! सेब भी इतने बड़े थे कि 4 सेब कोई खा ले तो पेट भर जाए ! बहुत से लोगों का पेट शायद एक-दो सेब में भी भर जाए पर मैं यहाँ अपनी बात कर रहा हूँ ! सेब का स्वाद चखने के बाद उस दंपति ने 5 किलो सेब लिए और हमने 2 किलो, उन्हें ये सेब घर ले जाने थे पर हमने तो ये यहीं खाने के लिए लिए थे ! क्योंकि यहाँ दाम तो उतना ही था जितना हमारे यहाँ बाज़ार में मिल जाता है फिर यहाँ से लाद कर ले जाने का कोई विचार भी नहीं था ! 7 किलो सेब लेने के बाद बाग के मालिक ने खाने के लिए सबको एक-2 सेब देते हुए कहा कि यहाँ खाने का कोई पैसा नहीं है, भला कोई आदमी कितने सेब खा लेगा ! मुझे ये बात हज़म नहीं हुई, मन ही मन कहा एक दिन हमें बगीचे में छोड़ दो, फिर अगले दिन से कहना छोड़ दोगे कि कोई कितने सेब खा सकता है भला !
मैने मन ही मन कहा, यहाँ पेटियाँ डकारने वाले बैठे है और ये महाशय कह रहे है कि कोई कितना खा लेगा ! वैसे आप लोगों की जानकाई के लिए बता दूँ कि ये दो किलो सेब हम आज रात को ही डकार गए थे ! खैर, बगीचे से बाहर आकर हम पुन: अपनी गाड़ी में बैठे और श्रीनगर जाने के लिए रवाना हो गए ! थोड़ी डोर जाने पर रास्ते में एक टोल नाका आया, नाका तो क्या था बस 2-3 स्थानीय युवक खड़े थे जो हर आने-जाने वाली गाड़ी से टोल के नाम पर पैसे ले रहे थे. सुबह पहलगाम जाते समय भी रास्ते में 2 जगह टोल चुकाया था, और वापसी में भी इसके अलावा एक और जगह टोल दिया. आधे घंटे के सफ़र के बाद हम फिर से पहलगाम-श्रीनगर जाने वाले मार्ग पर पहुँच गए ! थोड़ी दूर जाने पर रास्ते में एक टोल नाका आया, टोल नाका क्या था बस 2-3 स्थानीय युवक खड़े थे जो हर आने-जाने वाली गाड़ी से टोल के नाम पर पैसे ले रहे थे ! सुबह पहलगाम जाते समय भी रास्ते में 2 जगह टोल चुकाया था, वापसी में भी रास्ते में दो बार टोल अदा किया !
इस मार्ग पर आधा घंटा और चलने के बाद हम सब फिर से पहलगाम-श्रीनगर जाने वाले उसी मार्ग पर पहुँच गए जिससे सुबह आए थे ! सेब हम खरीद चुके थे, पर सेब के अलावा भी थोड़ी-बहुत खरीददारी बाकी थी, सुबह पहलगाम जाते हुए रास्ते में हमने पामपुर में केसर की खेती देखी थी, सड़क के दोनों ओर केसर की कुछ दुकानें भी थी ! ड्राइवर ने बताया था कि यहाँ से बढ़िया केसर मिल जाता है और वापसी में केसर लेने का विचार सबका ही था ! जैसे ही हमारी गाड़ी पामपुर पहुँची, ड्राइवर ने जाकर एक दुकान के सामने गाड़ी खड़ी कर दी ! एक बार फिर सभी लोग गाड़ी से उतरे और एक केसर की दुकान में चल दिए, यहाँ दुकान में केसर के अलावा शिलाजीत, कश्मीरी राजमा, कहवा और कुछ अन्य जड़ी-बूटियाँ भी मौजूद थी ! केसर की पहचान हरेक दुकानदार केसर बेचते हुए बताता है, इस दुकानदार ने भी हमारे पहुँचते ही ज्ञान बाँटना शुरू कर दिया !
ये बात तो सभी जानते है कि बेचने वाला कभी नहीं कहेगा कि वो नकली माल बेच रहा है, हर दुकानदार का काम है कि वो अपने सामान को बेहतर बताकर बेचे ! इस दुकानदार ने भी कहा कि डल झील में जो नावों पर केसर बेचते है वो नकली केसर होती है और पूरे भारत में सिर्फ़ गिनती की जगहों पर ही असली केसर मिलता है ! मैं उसकी इस बात से सहमत नहीं था, फिर भी अन्य लोगों का ध्यान रखते हुए मैं चुप ही रहा ! जब उसने अपना पूरा ज्ञान बाँट लिया तो सवालों-जवाबों का दौर शुरू हुआ, केसर और अन्य जड़ी-बूटियों को लेकर सबके मन में कुछ दुविधाएँ थी ! जैसे केसर के सेवन से लेकर इसके फ़ायदे-नुकसान वगेरह-2, का सबका जवाब यहाँ मिला ! अंत में सबने थोड़ी अपनी-2 ज़रूरत अनुसार केसर ली, एक डिब्बी मैने भी ली, सोचा इस्तेमाल करके देख लेंगे कैसी है ! उस दंपति ने केसर के 4 छोटे डिब्बे लिए, शायद अपने सगे-संबंधियों को उफार स्वरूप देने के लिए !
ये मुझे उनकी बातों से पता चला, केसर लेने के बाद हम दोनों इसके बगल वाली दुकान में कहवा का स्वाद लेने चल दिए ! जबकि वो दंपति केसर की दुकान पर ही अन्य वस्तुएँ लेने में लग गया ! कहवा एक पेय पदार्थ है जो कश्मीर में काफ़ी लोकप्रिय है, कश्मीर के अलावा ये पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और मध्य एशिया के कुछ अन्य भागों में भी नियमित रूप से प्रयोग में लाया जाने वाला पेय है ! आप भी कभी कश्मीर आएँ तो यहाँ के कहवा का स्वाद लेना ना भूलें ! यहाँ के स्थानीय लोग तो नियमित रूप से इस पेय पदार्थ का सेवन करते है ! वैसे तो कहवा बनाने के लिए चाय की हरी पत्तियों को केसर, दालचीनी और इलायची के साथ पकाया जाता है ताकि कहवे को बढ़िया स्वाद दिया जा सके, फिर इसमें मिठास के लिए शहद मिलाया जाता है ! लेकिन यहाँ कहवा बनाने के लिए इस्तेमाल होने वाली सभी वस्तूयों का मिश्रण तैयार करके बेचा जा रहा था !
मैं इससे पहले भी कहवे का स्वाद ले चुका हूँ, स्थानीय लोग तो इसे दवा के रूप में भी काफ़ी प्रयोग में लाते है, सर्दी-जुकाम के लिए कहवा एक कारगर औषधि मानी जाती है ! खैर, कहवा पीने के बाद हम सब आगे बढ़ने के लिए तैयार थे, ड्राइवर भी अब तक अपना कहवा ख़त्म कर चुका था ! फिर हम सब गाड़ी में सवार हुए और श्रीनगर की ओर बढ़ गए, इस बीच बातों का सिलसिला भी लगातार जारी रहा ! हम सबने एक दूसरे के बारे में काफ़ी कुछ जाना, इस दौरान पता चला कि हमारा ड्राइवर पेशे से फोटोग्राफर है और अक्सर यहाँ होने वाली शादियों और दूसरे समारोहों में फोटोग्राफ़ी के लिए जाते रहता है ! यात्रा सीजन में अतिरिक्त आमदनी के लिए कभी-2 ड्राइवरी भी कर लेता है, ये टैक्सी भी उसकी अपनी नहीं थी बल्कि किराए की थी ! ये अच्छी बात है, बहुत से लोग ऐसा करते है ! केसर खरीदने के दौरान ही हमने ड्राइवर को किराए के रुपए भी दे दिए !
धीरे-2 हम श्रीनगर के पास पहुँच चुके थे, फिर भी इस सफ़र को एक तरफ से तय करने में साढ़े तीन घंटे का समय लग गया था ! जब हम डल झील के घाट 15 पर पहुँचे तो रात के 8 बज रहे थे, यहाँ उतरकर हमने स्थानीय बाज़ार से ही खाने-पीने की कुछ वस्तुएँ ली क्योंकि हाउसबोट वाले ने तो बोल ही रखा था कि अगर कुछ खाना हो तो 2-3 घंटे पहले बताना ! हाउसबोट वाले को फोन किया तो हमें लेने के लिए उसने नाव भेज दी, बाज़ार से सामान लेकर जब हम घाट पर पहुँचे तो वो दंपति अभी तक वहीं खड़े थे ! इतने में ही हल्की-2 बूंदा-बाँदी शुरू हो गई, रात को तो यहाँ वैसे ही ठंडक थी, बारिश से ठंड और बढ़ गई ! इस बारिश में भीगने से तबीयत भी खराब हो सकती थी, इसलिए घाट के पास बने डाकघर के किनारे खड़े होकर हम सब अपने-आपको बारिश से बचाते रहे ! इसी बीच अपनी नाव को भी देखते रहे, पता चला कि हम यहाँ छुपकर खड़े है और हमारी नाव आकर वापिस लौट जाए !
थोड़ी देर बाद हमारी नाव आ गई, हम चारों उसमें सवार होकर अपने हाउस बोट के लिए चल दिए, वो दंपति भी हमारे बगल वाले हाउस बोट में ही रुके हुए थे ! उस हाउस बोट के लिए भी यही नाव थी, शायद दोनों हाउसबोट का एक ही नाव वाले से कोई करार हो ! खैर, अचानक शुरू हुई बारिश की वजह से हम ज़्यादा कुछ खरीद नहीं पाए थे और जल्दबाज़ी में ही वापिस घाट पर लौट आए थे ! अब हमारे पास खाने के लिए सेब के अलावा कुछ अन्य फल और चिप्स वगेरह ही थे, नाव से उतरते ही बिलाल से पूछा कि खाने में कुछ मिलेगा क्या ! वो बोला, चाय मिल जाएगी, हितेश बोला, अरे बाबा तुम चाय खवाते रहियों बस, खाने की पूछ रहे है, चाय के अलावा कुछ है तो बता ! वो बोला, पहले बताना था ना सरजी, अब तो कुछ नहीं मिलेगा !
हमने कहा, पहले हमें भी कहाँ पता था कि एकदम से बारिश आ जाएगी ! नाव से उतरे तो हमारे कपड़े भीग चुके थे, इसलिए अपने कमरे में पहुँचकर सबसे पहले कपड़े बदले ! फिर अपने साथ लाए सेबों और अन्य फलों को काट लिया, बिलाल से कहकर थोड़ा मसाला मँगवाया और कटे हुए फलों पर डालकर खाना शुरू कर दिया ! इस दौरान दिन भर की यात्रा पर चर्चा भी चलती रही ! आज इस होटल में हमारा आख़िरी दिन था, सुबह हमें दूसरे होटल में चले जाना था इसलिए अगले दिन के कार्यक्रम पर भी विचार करते रहे, कि कैसे और कहाँ घूमना है ! जब सारे फल ख़त्म हो गए तो हितेश बोला, यार भूख तो अभी भी लग रही है, पेट तो मेरा भी नहीं भरा था, पर अब कुछ खाने के लिए बचा भी नहीं था !
अंत में विचार बना कि अपने हाउसबोट की रसोई में चलकर देखते है, शायद रसोइया कुछ बना दे ! रसोई में पहुँचे तो बिलाल और एक अन्य युवक खाना बनाने में लगे थे, हमारे पूछने पर बिलाल बोला, कि वो अपने लिए खाना बना रहा है ! हमने कहा भाई हमारे लिए भी कुछ बना दे, बिलाल बोला कि अब तो रसोई में सिर्फ़ आलू ही रखे है, बाकी सब्जियाँ ख़त्म हो गई ! फिर हमारे कहने पर उसने आलू की सब्जी और कुछ रोटियाँ बनाकर दी ! खाना लेकर हम सीधे अपने कमरे में आ गए, भूख बहुत तेज लगी थी, इसलिए सारी रोटियाँ निबटाने के बाद थोड़ी राहत मिली ! पेट भर गया तो जल्दी ही नींद भी आने लगी, बातें करते हुए कब नींद आ गई, पता ही नहीं चला !
पेटियों में सेब की भराई करते लोग (A view of Apple Orchard, Srinagar) |
Apple tree in Srinagar |
भेजने के लिए तैयार फल (Apples, Ready to Ship) |
Fresh Apple |
सेब से लदे पेड़ |
A view of Apple Orchard |
बिक्री के लिए लगाए गए फल |
क्यों जाएँ (Why to go Srinagar): अगर आप श्रीनगर की डल झील में नौकायान के अलावा हाउसबोट में कुछ दिन बिताना चाहते है तो कश्मीर जाइए ! यहाँ घूमने के लिए पहाड़, झील, प्राकृतिक नज़ारे, बगीचे, नदियाँ सब कुछ है ! ऐसे ही इसे "धरती का स्वर्ग" नहीं कहा जाता, जो भी एक बार यहाँ आता है, वो यहाँ की खूबसूरती की तारीफ़ किए बिना नहीं रह पाता !
कब जाएँ (Best time to go Srinagar): वैसे तो आप साल के किसी भी महीने में श्रीनगर जा सकते है लेकिन यहाँ आने का सबसे बढ़िया समय अप्रैल से अक्तूबर का है सर्दियों में तो यहाँ कड़ाके की ठंड पड़ती है कई बार तो डल झील भी जम जाती है !
कैसे जाएँ (How to reach Srinagar): दिल्ली से श्रीनगर की दूरी 808 किलोमीटर है जिसे तय करने में आपको लगभग 15-16 घंटे का समय लगेगा ! श्रीनगर देश के अन्य शहरों से सड़क और हवाई मार्ग से अच्छे से जुड़ा है जबकि यहाँ का नज़दीकी रेलवे स्टेशन उधमपुर है ! वैसे तो बारामूला से बनिहाल तक भी रेलवे लाइन है लेकिन इस मार्ग पर लोकल ट्रेन ही चलती है ! बारामूला से बनिहाल जाते हुए रास्ते में श्रीनगर भी पड़ता है ! उधमपुर से श्रीनगर तक आप बस या टैक्सी से भी आ सकते है, इन दोनों जगहों के बीच की कुल दूरी 204 किलोमीटर है और पूरा पहाड़ी मार्ग है जिसे तय करने में लगभग 5 घंटे का समय लगता है !
कहाँ रुके (Where to stay in Srinagar): श्रीनगर एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है यहाँ रुकने के लिए बहुत होटल है ! आप अपनी सुविधा अनुसार 800 रुपए से लेकर 2000 रुपए तक का होटल ले सकते है ! लेकिन अगर आप श्रीनगर में है तो कम से कम 1 दिन तो हाउसबोट में ज़रूर रुके ! डल झील में बने हाउसबोट में रुकने का अनुभव आपको ज़िंदगी भर याद रहेगा !
कहाँ खाएँ (Eating option in Srinagar): श्रीनगर में अच्छा-ख़ासा बाज़ार है, यहाँ आपको अपने स्वाद अनुसार खाने-पीने का हर सामान मिल जाएगा !
क्या देखें (Places to see in Srinagar): श्रीनगर और इसके आस-पास घूमने की कई जगहें है जिसमें से शंकराचार्य हिल, ट्यूलिप गार्डन, डल झील, सोनमर्ग, बेताब वैली, निशात गार्डन, मुगल गार्डन, शालीमार बाग, गुलमर्ग, परी महल, पहलगाम, खीर भवानी मंदिर और चश्मेशाही प्रमुख है !
श्रीनगर यात्रा
- श्रीनगर यात्रा - उड़ान भरने से पहले का सफ़र (Pre-Departure Journey)
- दिल्ली से श्रीनगर की विमान यात्रा (Flying Delhi to Srinagar)
- श्रीनगर हवाई अड्डे से डल झील की बस यात्रा (A Road Trip to Dal Lake)
- श्रीनगर से पहलगाम की सड़क यात्रा (A Road Trip to Pehalgam)
- सेब के बगीचों में बिताए कुछ पल (An Hour in Apple Orchard)
- श्रीनगर स्थानीय भ्रमण (Local Sight Seen of Srinagar)
- श्रीनगर से दिल्ली वापसी (Return Journey to Delhi)
wow, apple toh mast lag rhe hai :) khaya ya nahi ?
ReplyDeleteBilkul khaaye bhai, pet bharkar khaye...
Deleteकेसर कितने की मिलीं और एप्पल भी क्या भाव थे ये भी लिखना था ताकि कोई जाये तो उसको पहले से भाव पता रहे
ReplyDeleteक्या बुआ, सेब का भी भाव पूछोगी ! केसर 250 रुपए की एक ग्राम की डिब्बी थी !
Delete