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अब तक आपने पढ़ा कि किस तरह हम दोनों (मैं और हितेश) अलग-2 विमानों से अलग-2 समय अंतराल पर श्रीनगर पहुँचे ! वैसे हितेश तो 2 बजे से पहले ही यहाँ पहुँच गया था पर वो यहीं हवाई अड्डे पर रुककर मेरे आने की प्रतीक्षा कर रहा था ताकि आगे का सफ़र हम दोनों साथ में तय कर सके ! एयरपोर्ट से बाहर आते हुए मुझे हितेश भी वहीं खड़ा मिला, यहाँ से हम दोनों साथ हो लिए ! फिर हम दोनों मेरा बैग लेने एयरपोर्ट के उस हिस्से में आ गए जहाँ विमान से उतारकर यात्रियों का सामान लाया जाता है ! यहाँ एक अंडाकार आकृति की बेल्ट घूमती रहती है जिस पर यात्रियों का सारा सामान डाल दिया जाता है यात्री इस बेल्ट के चारों तरफ खड़े रहते है और पहचान कर अपना-2 सामान ले लेते है ! थोड़ी देर इंतजार के बाद मेरा बैग भी आ गया, जिसे लेकर हम दोनों एयरपोर्ट से बाहर की ओर चल दिए ! श्रीनगर अंतराष्ट्रीय हवाई अड्डा है, इसके बावजूद भी यहाँ बहुत ज़्यादा विमानों की आवाजाही नहीं है, फिर भी सुरक्षा कारणों से यहाँ हमेशा बहुत भीड़ रहती है !
अब तक आपने पढ़ा कि किस तरह हम दोनों (मैं और हितेश) अलग-2 विमानों से अलग-2 समय अंतराल पर श्रीनगर पहुँचे ! वैसे हितेश तो 2 बजे से पहले ही यहाँ पहुँच गया था पर वो यहीं हवाई अड्डे पर रुककर मेरे आने की प्रतीक्षा कर रहा था ताकि आगे का सफ़र हम दोनों साथ में तय कर सके ! एयरपोर्ट से बाहर आते हुए मुझे हितेश भी वहीं खड़ा मिला, यहाँ से हम दोनों साथ हो लिए ! फिर हम दोनों मेरा बैग लेने एयरपोर्ट के उस हिस्से में आ गए जहाँ विमान से उतारकर यात्रियों का सामान लाया जाता है ! यहाँ एक अंडाकार आकृति की बेल्ट घूमती रहती है जिस पर यात्रियों का सारा सामान डाल दिया जाता है यात्री इस बेल्ट के चारों तरफ खड़े रहते है और पहचान कर अपना-2 सामान ले लेते है ! थोड़ी देर इंतजार के बाद मेरा बैग भी आ गया, जिसे लेकर हम दोनों एयरपोर्ट से बाहर की ओर चल दिए ! श्रीनगर अंतराष्ट्रीय हवाई अड्डा है, इसके बावजूद भी यहाँ बहुत ज़्यादा विमानों की आवाजाही नहीं है, फिर भी सुरक्षा कारणों से यहाँ हमेशा बहुत भीड़ रहती है !
डल झील से दिखाई देता एक दृश्य (A view from Dal Lake, Srinagar) |
एयरपोर्ट से बाहर निकलते ही हमें कुछ टैक्सी वालों ने घेर लिया, और हमें हमारे गंतव्य तक पहुँचाने की बात करने लगे ! हितेश ने जिस हाउसबोट में रुकने के लिए कमरा आरक्षित करवाया था वो डल झील में नेहरू पार्क के पास था ! हमने एक-दो टैक्सी वालों से नेहरू पार्क तक जाने का किराया पूछा तो कोई 500 रुपए बोला और कोई 600 रुपए ! इतने रुपए देने का हमारा मन नहीं था, टैक्सी वालों से पूछने पर ही पता चला कि यहाँ से जम्मू-कश्मीर परिवहन की बसें भी चलती है ! उस समय भी एयरपोर्ट के बाहर ऐसी ही एक बस खड़ी थी, पूछने पर पता चला कि ये बस लाल चौक होते हुए नेहरू पार्क तक भी जाएगी ! फिर क्या था हम दोनों अपना सामान लेकर बस में चढ़ गए, ये मिनी बस थी फिर भी अभी इसमें कुछ सीटें खाली थी और हम दोनों को आराम से सीट मिल गई ! बस के ड्राइवर ने पूछने पर बताया कि अभी बस के चलने का समय नहीं हुआ है समय होने पर ये बस चल देगी !
बस में बैठे-2 काफ़ी समय हो गया पर अभी तक इसके चलने का कोई संकेत नहीं मिल रहा था ! ड्राइवर के अलावा कुछ सवारियाँ भी बाहर ही टहलने में लगी थी, ड्राइवर को आवाज़ लगाकर पूछा तो वो बोला कि बस अब चलने ही वाले है ! वैसे श्रीनगर एयरपोर्ट के बाहर का नज़ारा भी काफ़ी सुंदर है, बाहर निकलते ही बसों के मुड़ने के लिए एक गोल-चक्कर बना हुआ है ! इस गोल-चक्कर के चारों तरफ खूब सुंदर-2 फूल लगे है जो आगंतुको का ध्यान बरबस ही अपनी ओर खींच लेते है ! वैसे इस समय काफ़ी तेज धूप निकल रही थी, ऐसी धूप देखकर लग रहा था कि जो गरम कपड़े हम अपने साथ लाए है वो शायद ही इस्तेमाल हो ! इतने में ही ड्राइवर बस में चढ़ा और उसने बस चालू कर दी, अब हमें लग रहा था कि शायद हमारी बस चलने वाली है ! एक लंबा सायरन देकर बस ने चलना शुरू कर दिया, एयरपोर्ट से बाहर आते हुए मुख्य मार्ग के दोनों ओर सुरक्षाबलों का अच्छा-ख़ासा जमावड़ा लगा था !
इस क्षेत्र को देखकर तो ऐसा लग रहा था जैसे हम किसी छावनी में से गुजर रहे हो ! इस क्षेत्र से बाहर निकलते ही हमारी बस मुख्य सड़क पर पहुँच गई ! फिर लाल चौक के पास रास्ते में एक पुल निर्माण का कार्य चल रहा था, इसलिए यातायात थोड़ा बाधित भी था ! लाल चौक के बारे में अक्सर समाचारों में सुना करता था इसलिए इसके बारे में थोड़ी बहुत जानकारी थी ! एक बात तो मैं आप लोगों को बताना ही भूल गया कि इस बस से एयरपोर्ट से नेहरू पार्क तक जाने का किराया प्रति व्यक्ति 70 रुपए था, वैसे किराया सभी यात्रियों के लिए 70 रुपए ही था चाहे आप रास्ते में कहीं भी उतरो ! आधे से पौने घंटे के सफ़र के बाद हम दोनों डलगेट पार करके नेहरू पार्क के सामने उतर चुके थे, यहाँ से ये बस मुड़कर वापिस चली गई ! डलगेट से ही डल झील शुरू हो जाती है, शायद झील का शुरुआती बिंदु होने के कारण इस जगह का नाम डलगेट पड़ा है ! ये मार्ग डल झील के किनारे-2 काफ़ी दूर तक गया है फिर आगे यही मार्ग सोनमर्ग को निकल जाता है !
इस सड़क के बार्ईं ओर डल झील है जबकि दाईं ओर बाज़ार है, जिसमें एक लाइन से काफ़ी दुकानें और होटल भी है ! खाने-पीने से लेकर ज़रूरत का बाकी सामान भी यहाँ आसानी से मिल जाता है ! नेहरू पार्क से थोड़ा आगे बढ़ने पर ही सड़क के दाईं ओर एक मार्ग पहाड़ी के ऊपर शंकराचार्य मंदिर को जाता है ! बस से उतरते ही हम अपना सामान लेकर घाट पर लगी नावों में से एक में बैठने लगे, नाव वाला बोला कि आप लोगों के रुकने के लिए कोई हाउस बोट करवा दूँ ! हमने कहा कि अपने रुकने का इंतज़ाम हम पहले ही एक हाउसबोट में करवा चुके है तो वो नाव वाला बोला कि फिर आप अलग बोट में क्यों जा रहे हो ! अपने हाउसबोट वाले को फोन करके अपने आने की खबर दे दो तो वो आपके लिए नाव भेज देगा ! मैं तो यहाँ से तभी चलूँगा जब नाव में और सवारियाँ आ जाएँगी, वरना आप लोगों को ही ज़्यादा किराया देकर चलना होगा !
हमने सोचा यार ये तो सवारियों का इंतजार करेगा, यहाँ बैठने से तो अच्छा है चलकर थोड़ा जलपान कर लिया जाए, और अपने हाउसबोट वाले को भी अपने आने की सूचना दे दी जाए ! ये सोचकर हम दोनों नाव में ना बैठकर सड़क के दूसरी ओर आ गए, यहाँ एक टेलीफ़ोन बूथ से अपने हाउसबोट वाले को फोन किया कि हम लोग नेहरू पार्क के पास घाट 15 पर आ गए है ! इस पर उसने कहा कि आप वहीं रूको में आपके लिए नाव भेज रहा हूँ, इतना कहकर उसने फोन काट दिया ! हमने सोचा यार हमने तो टेलिफोन बूथ से फोन किया है ये बोट वाला हमें पहचानेगा कैसे ? यहाँ घाट पर खड़े होकर हमारा हाउसबोट दिखाई दे रहा था, अगर कोई नाव वहाँ से चलती तो हमें वो भी दिखाई देती ! हमने सोचा चलो यहीं से देखते रहेंगे, जैसे ही कोई नाव हाउस बोट से निकलेगी, हम ध्यान रखेंगे ! पेट पूजा करने के इरादे से हम दोनों टेलिफोन बूथ से बाहर निकलकर एक खाने-पीने की दुकान पर आ गए !
हमने सोचा यार ये तो सवारियों का इंतजार करेगा, यहाँ बैठने से तो अच्छा है चलकर थोड़ा जलपान कर लिया जाए, और अपने हाउसबोट वाले को भी अपने आने की सूचना दे दी जाए ! ये सोचकर हम दोनों नाव में ना बैठकर सड़क के दूसरी ओर आ गए, यहाँ एक टेलीफ़ोन बूथ से अपने हाउसबोट वाले को फोन किया कि हम लोग नेहरू पार्क के पास घाट 15 पर आ गए है ! इस पर उसने कहा कि आप वहीं रूको में आपके लिए नाव भेज रहा हूँ, इतना कहकर उसने फोन काट दिया ! हमने सोचा यार हमने तो टेलिफोन बूथ से फोन किया है ये बोट वाला हमें पहचानेगा कैसे ? यहाँ घाट पर खड़े होकर हमारा हाउसबोट दिखाई दे रहा था, अगर कोई नाव वहाँ से चलती तो हमें वो भी दिखाई देती ! हमने सोचा चलो यहीं से देखते रहेंगे, जैसे ही कोई नाव हाउस बोट से निकलेगी, हम ध्यान रखेंगे ! पेट पूजा करने के इरादे से हम दोनों टेलिफोन बूथ से बाहर निकलकर एक खाने-पीने की दुकान पर आ गए !
यहाँ गर्मागर्म छोले-भठूरे और पकोडे बनाए जा रहे थे, भूख बहुत तेज लगी थी इसलिए दुकानदार को पहले आधा किलो पकोडे लाने का आदेश दे दिया ! पकोडे तुरंत आ गए क्योंकि ये पहले के बने हुए थे और सिर्फ़ गर्म करने के लिए ही कढ़ाई में डाले गए होंगे ! पकोडे खाने शुरू किए ही थे कि हमने एक प्लेट छोले भठूरे लाने का आदेश भी दे दिया ! जब तक छोले भठूरे परोसे गए, आधे पकोडे ख़त्म हो चुके थे, भठूरे आने के बाद पकोड़ो से ध्यान हटाकर हम भठूरों पर टूट पड़े ! सोचा पकोड़ो के चक्कर में कहीं भठूरे ठंडे ना हो जाएँ ! जैसे ही भठूरे का पहला निवाला मुँह में डाला तो पता चला कि वो कच्चे थे ! तुरंत होटल में मौजूद कर्मचारी को फटकार लगाई और भठूरे ढंग से सेंक कर लाने को कहा ! फिर क्या था, ज़्यादा सेंकने के चक्कर में भठूरों का रूप-रंग ही बदल गया ! अब इन्हें भठूरे कहना भठूरों का अपमान होगा, ये इतने करारे हो गए कि हाथ में लेते ही चूरा हो जा रहे थे, खाने का सारा मज़ा किरकिरा हो गया !
अंत में बिना खाए ही भठूरों की प्लेट हमने छोड़ दी, पकोडे भी इतने ज़्यादा हो गए थे कि ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रहे थे ! अब तक मुँह का स्वाद एकदम खराब हो गया था इसलिए होटल वाले का बिल चुकाकर हम फिर से घाट की ओर चल दिए जहाँ हमें लेने के लिए नाव आने वाली थी ! घाट पर थोड़ी देर प्रतीक्षा करने के बाद भी जब हमारे हाउसबोट से कोई नाव नहीं आई तो हम एक दूसरी नाव में सवार होकर अपने हाउसबोट न्यू ग्रीन व्यू की ओर चल दिए ! हाउसबोट पर नाव से उतरने के बाद 50 रुपए किराया दिया और अपना सामान लेकर होटल के अंदर चले गए ! यहाँ होटल वाले को नाव ना भेजने के लिए फटकार भी लगाई और उससे कहा कि अगर नाव नहीं भेजनी थी तो फोन पर ही बता देना था ताकि हम वहाँ खड़े होकर इंतजार ना करते ! फिर यहाँ हाउसबोट में रुकने से संबंधित कागज़ी कार्यवाही पूरी करने के बाद हाउसबोट का एक कर्मचारी हमें कमरा दिखाने चल दिया !
जिस कमरे में वो हमें लेकर गया वो कमरा हमें पसंद नहीं आया, इस कमरे में काफ़ी सीलन थी, अजीब सी गंध भी आ रही थी ! हमने इस कमरे को लेने में आपत्ति जताई तो वो कर्मचारी बोला कि इस समय यही कमरा खाली है आज रात इसमें रुक जाइए, कल आपको दूसरा कमरा दे देंगे ! फिर जब उसने ये बोला कि वैसे ये कमरा आपके आरक्षित किए गए कमरे से एक लेवल ऊपर है तो हँसी भी आई और गुस्सा भी ! हमने सोचा कि जब इस कमरे की हालत ऐसी है तो हमारे आरक्षित किए हुए कमरे का क्या हाल होगा ! इसी बात को लेकर काफ़ी देर तक उससे बहस भी हुई, इस दौरान होटल का मालिक भी आ गया और अपनी दलीलें देने लगा ! सफ़र की थकान और दूसरा कोई विकल्प ना होने के कारण हमने एक रात उसी कमरे में रुकना उचित समझा ! कमरे में थोड़ी देर बैठ कर बातें करने के बाद हम दोनों अपने कमरे से बाहर आकर हाउसबोट में घूमने लगे !
शाम होने के साथ ही मौसम में हल्की-2 ठंडक होने लगी थी, डल झील में बहुत सी नावें तैर रही थी, हम वहीं अपने हाउसबोट के किनारे बैठ कर इस नज़ारे को काफ़ी देर तक देखते रहे ! यहाँ डल झील में ही दुकानें सजती है जहाँ सब्जियाँ, फल और खाने-पीने की दूसरी वस्तुओं से लेकर, साजो सामान भी मिलता है ! ये सभी दुकानें नावों पर ही लगती है और झील में तैरती रहती है, शायद ही कोई दुकानदार आपसे दोबारा टकराए ! होटल वाले से रात्रि के भोजन के बारे में पूछा तो वो बोला कि अगर रात्रि का भोजन यहाँ करना हो तो हमें 2-3 घंटे पहले बता देना ताकि हम उसके हिसाब से ही इंतज़ाम कर सके ! अगर बताने में देरी की तो फिर यहाँ खाना नहीं मिलेगा, हमने कहा कोई बात नहीं हम बाज़ार में जाकर खा लेंगे ! हितेश ने तो व्यंग्य कसते हुए ये भी कहा कि 2-3 घंटे पहले क्यों कल सुबह उठते ही तुझे बता देंगे कि कल रात को क्या खाना है ! फिर थोड़ी देर बाद हम दोनों नाव में सवार होकर घूमने के लिए घाट की ओर चल दिए, सुना था कि दिन ढलने के बाद झील के किनारे टहलना काफ़ी अच्छा अनुभव रहता है !
जब हम घाट पर पहुँचे तो यहाँ काफ़ी रौनक थी, चारों तरफ खाने-पीने का सामान बेचने की दुकानें लगी थी ! यहाँ घूमने आए कुछ पर्यटक डल झील के किनारे बने फ़ुटपाथ पर टहल रहे थे, सूर्यास्त हो चुका था फिर भी अभी तक डूब चुके सूरज की हल्की-2 लालिमा दिखाई दे रही थी ! हम दोनों भी उसी फुटपाथ पर बातें करते हुए आगे बढ़ने लगे, रास्ते में हमने कुछ फेरी वालों से खाने-पीने का थोड़ा बहुत सामान भी लिया ! शाम के खाए हुए पकोडे अभी नहीं पचे थे और फिर हल्का-फुल्का तो हम खा ही चुके थे इसलिए ज़्यादा भूख नहीं थी ! फिर भी दोनों ने चुटुर-पुटुर काफ़ी कुछ खा लिया, पर रात में कहीं भूख ना लग जाए इसलिए वापिस अपने होटल आते हुए हमने कुछ फल खरीद लिए ! अब आराम करने का मन हो रहा था इसलिए वापिस अपने होटल चलने की सोची ! वैसे भी यहाँ आते हुए हमारे होटल वाले ने बताया था कि समय से वापिस आ जाना, सुरक्षा कारणों से ज़्यादा रात में यहाँ घूमना ठीक नहीं है ! नाव से वापस अपने हाउसबोट पहुँचकर थोड़ी देर तक दोनों बातें करते रहे और फिर आराम करने के लिए अपने-2 बिस्तर पर चले गए !
जब हम घाट पर पहुँचे तो यहाँ काफ़ी रौनक थी, चारों तरफ खाने-पीने का सामान बेचने की दुकानें लगी थी ! यहाँ घूमने आए कुछ पर्यटक डल झील के किनारे बने फ़ुटपाथ पर टहल रहे थे, सूर्यास्त हो चुका था फिर भी अभी तक डूब चुके सूरज की हल्की-2 लालिमा दिखाई दे रही थी ! हम दोनों भी उसी फुटपाथ पर बातें करते हुए आगे बढ़ने लगे, रास्ते में हमने कुछ फेरी वालों से खाने-पीने का थोड़ा बहुत सामान भी लिया ! शाम के खाए हुए पकोडे अभी नहीं पचे थे और फिर हल्का-फुल्का तो हम खा ही चुके थे इसलिए ज़्यादा भूख नहीं थी ! फिर भी दोनों ने चुटुर-पुटुर काफ़ी कुछ खा लिया, पर रात में कहीं भूख ना लग जाए इसलिए वापिस अपने होटल आते हुए हमने कुछ फल खरीद लिए ! अब आराम करने का मन हो रहा था इसलिए वापिस अपने होटल चलने की सोची ! वैसे भी यहाँ आते हुए हमारे होटल वाले ने बताया था कि समय से वापिस आ जाना, सुरक्षा कारणों से ज़्यादा रात में यहाँ घूमना ठीक नहीं है ! नाव से वापस अपने हाउसबोट पहुँचकर थोड़ी देर तक दोनों बातें करते रहे और फिर आराम करने के लिए अपने-2 बिस्तर पर चले गए !
डल झील से दिखाई देता एक दृश्य |
नाव चालक बिलाल |
डल झील का एक दृश्य (An evening in Dal lake, Srinagar) |
डल झील का एक दृश्य |
डल झील के किनारे घूमते हुए (Sunset at Dal Lake, Srinagar) |
डल झील पर सूर्यास्त का नज़ारा (Sunset at Dal Lake, Srinagar) |
क्यों जाएँ (Why to go Srinagar): अगर आप श्रीनगर की डल झील में नौकायान के अलावा हाउसबोट में कुछ दिन बिताना चाहते है तो कश्मीर जाइए ! यहाँ घूमने के लिए पहाड़, झील, प्राकृतिक नज़ारे, बगीचे, नदियाँ सब कुछ है ! ऐसे ही इसे "धरती का स्वर्ग" नहीं कहा जाता, जो भी एक बार यहाँ आता है, वो यहाँ की खूबसूरती की तारीफ़ किए बिना नहीं रह पाता !
कब जाएँ (Best time to go Srinagar): वैसे तो आप साल के किसी भी महीने में श्रीनगर जा सकते है लेकिन यहाँ आने का सबसे बढ़िया समय अप्रैल से अक्तूबर का है सर्दियों में तो यहाँ कड़ाके की ठंड पड़ती है कई बार तो डल झील भी जम जाती है !
कैसे जाएँ (How to reach Srinagar): दिल्ली से श्रीनगर की दूरी 808 किलोमीटर है जिसे तय करने में आपको लगभग 15-16 घंटे का समय लगेगा ! श्रीनगर देश के अन्य शहरों से सड़क और हवाई मार्ग से अच्छे से जुड़ा है जबकि यहाँ का नज़दीकी रेलवे स्टेशन उधमपुर है ! वैसे तो बारामूला से बनिहाल तक भी रेलवे लाइन है लेकिन इस मार्ग पर लोकल ट्रेन ही चलती है ! बारामूला से बनिहाल जाते हुए रास्ते में श्रीनगर भी पड़ता है ! उधमपुर से श्रीनगर तक आप बस या टैक्सी से भी आ सकते है, इन दोनों जगहों के बीच की कुल दूरी 204 किलोमीटर है और पूरा पहाड़ी मार्ग है जिसे तय करने में लगभग 5 घंटे का समय लगता है !
कहाँ रुके (Where to stay in Srinagar): श्रीनगर एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है यहाँ रुकने के लिए बहुत होटल है ! आप अपनी सुविधा अनुसार 800 रुपए से लेकर 2000 रुपए तक का होटल ले सकते है ! लेकिन अगर आप श्रीनगर में है तो कम से कम 1 दिन तो हाउसबोट में ज़रूर रुके ! डल झील में बने हाउसबोट में रुकने का अनुभव आपको ज़िंदगी भर याद रहेगा !
कहाँ खाएँ (Eating option in Srinagar): श्रीनगर में अच्छा-ख़ासा बाज़ार है, यहाँ आपको अपने स्वाद अनुसार खाने-पीने का हर सामान मिल जाएगा !
क्या देखें (Places to see in Srinagar): श्रीनगर और इसके आस-पास घूमने की कई जगहें है जिसमें से शंकराचार्य हिल, ट्यूलिप गार्डन, डल झील, सोनमर्ग, बेताब वैली, निशात गार्डन, मुगल गार्डन, शालीमार बाग, गुलमर्ग, परी महल, पहलगाम, खीर भवानी मंदिर और चश्मेशाही प्रमुख है !
अगले भाग में जारी...
श्रीनगर यात्रा
- श्रीनगर यात्रा - उड़ान भरने से पहले का सफ़र (Pre-Departure Journey)
- दिल्ली से श्रीनगर की विमान यात्रा (Flying Delhi to Srinagar)
- श्रीनगर हवाई अड्डे से डल झील की बस यात्रा (A Road Trip to Dal Lake)
- श्रीनगर से पहलगाम की सड़क यात्रा (A Road Trip to Pehalgam)
- सेब के बगीचों में बिताए कुछ पल (An Hour in Apple Orchard)
- श्रीनगर स्थानीय भ्रमण (Local Sight Seen of Srinagar)
- श्रीनगर से दिल्ली वापसी (Return Journey to Delhi)
बहुत बढ़िया प्रदीप जी..... अपनी कश्मीर की यात्रा याद हो आई.... |
ReplyDeleteनेहरु पार्क तो बहुत दूर है.... काफी दूर ले लिया था आपने कमरा
हाँ, रितेश भाई, था तो दूर, लेकिन हाउस बोट में रुकना था तो करा लिया ! जानकर अच्छा लगा कि आपको अपनी यात्रा की यादें ताज़ा हो गई !
Deleteजोरदार वर्णन तस्वीरों के साथ ...तुम्हारा अनुभव काम आएगा ।
ReplyDeleteधन्यवाद बुआ !
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