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रेजीडेंसी, नाम सुनकर ही किसी के लिए भी ये अनुमान लगाना मुश्किल नहीं होगा कि ये इमारत कभी किसी का निवास स्थान रही होगी, पर किसका ? ये सोचने वाली बात है ! अगर आपके मन में आ रहा है कि अवध के किसी नवाब का, तो आप ग़लत है ! दरअसल, ये इमारत लखनऊ में रहने वाले ब्रिटिश जनरल और उनके सहयोगियों का निवास स्थान थी ! ब्रिटिश जनरल उस समय अवध के नवाबों की अदालत में ब्रिटिश सरकार का प्रतिनिधित्व किया करते थे, यही कारण है कि लखनऊ के बीचों-बीच गोमती नदी के किनारे स्थित इस इमारत को ब्रिटिश रेजीडेंसी के नाम से भी जाना जाता है ! पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित घोषित हो चुकी इस इमारत का लखनऊ की ऐतिहासिक इमारतों में काफ़ी महत्वपूर्ण स्थान है ! असल में रेजीडेंसी कई ऐसी इमारतों का एक समूह है जो कभी इस परिसर में मौजूद थी, वर्तमान में इनमें से अधिकतर इमारतें तो खंडहर में तब्दील हो चुकी है लेकिन जो बची है उन्हें देखने आने वालों की तादात अभी कम नहीं हुई ! वैसे अपने दौर में रेजीडेंसी में खूब चहल-पहल हुआ करती थी !
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रेजीडेंसी का प्रवेश द्वार (Entrance of Residency) |
इस इमारत के इतिहास की बात करे तो इसका निर्माण कार्य अवध के नवाब आसिफ़–उद्-दौला ने सत्ता संभालने के बाद सन 1775 में शुरू करवाया ! बाद में अवध के अगले नवाब शादत अली ख़ान ने सन 1800 में इस इमारत का निर्माण कार्य पूरा करवाया ! रेजीडेंसी का एक बहुत बड़ा हिस्सा 1857 की क्रांति में अंग्रेज़ो और भारतीय क्रांतिकारियों के बीच हुई लड़ाई में नष्ट हो गया था, युद्ध ख़त्म होने के बाद इसे जस का तस छोड़ दिया गया और धीरे-2 ये खंडहर में तब्दील हो गया ! इस इमारत की टूटी-फूटी दीवारों में आज भी तोप के गोलों के निशान देखे जा सकते है जो 1857 में हुई क्रांति की याद दिलाते है ! रेजीडेंसी परिसर में कभी एक चर्च और एक कब्रिस्तान भी थे जो आज ज़मींदोज़ हो चुके है ! 1857 की क्रांति के दौरान इस कब्रिस्तान में 2000 से भी अधिक लोग दफ़न कर दिए गए थे ! रेजीडेंसी परिसर में एक संग्राहलय भी है जहाँ प्रतिदिन शाम को रेजीडेंसी के इतिहास पर प्रकाश डाला जाता है ! इस संग्राहालय में 1857 की क्रांति का बहुत अच्छे से चित्रण किया गया है ! लखनऊ के भीड़-भाड़ वाले इलाक़े से निकलकर जब हम दोनों रेजीडेंसी के सामने से निकले तो उदय ने पूछ लिया कि भाई इस इमारत को देखने चलना है क्या ? मैने कहा, नेकी और पूछ-2, भाई लखनऊ आया ही घूमने हूँ तो जितना हो सके घूम लूँ !
जब तक उदय ने पार्किंग में मोटरसाइकल खड़ी की तब तक मैं जाकर अंदर जाने की दो टिकटें ले आया ! प्रवेश शुल्क भी नाम मात्र का ही है केवल 5 रुपए प्रति व्यक्ति ! प्रवेश द्वार पर टिकट दिखाकर हमने रेजीडेंसी परिसर में प्रवेश किया ! इस बीच उदय की उसके एक मित्र आदिल से फोन पर बात हो रही थी, वो हमसे मिलने के लिए कोडिया घाट आने वाला था पर बीच में हम ये इमारत देखने रुक गए तो उदय ने आदिल को भी रेजीडेंसी आने के लिए कह दिया ! मुख्य प्रवेश द्वार से थोड़ी आगे बढ़ने पर बैली-गार्ड द्वार है, काले रंग का ये द्वार काफ़ी ऊँचा है और दूर से देखने पर किसी किले के प्रवेश द्वार जैसा लगता है ! इस द्वार का निर्माण अवध के नवाब शादत अली ख़ान ने ब्रिटिश कैप्टन "बैली" के सम्मान में करवाया था, इसलिए इस द्वार को बैली गेट के नाम से भी जाना जाता है ! द्वार के दोनों ओर की दीवारों पर खिड़कियाँ है जो आज भी सही-सलामत है ! वर्तमान में बैली गेट को स्थाई रूप से बंद कर दिया गया है और परिसर में अंदर जाने के लिए इस गेट के बगल से एक अन्य मार्ग है ! हम भी बैली गेट के बगल से जाने वाले मार्ग से होकर अंदर की ओर चल दिए, मुख्य द्वार से बैली गेट तक आने का पक्का मार्ग बना है और इसके दोनों ओर खूब हरियाली है ! बैली-गेट को पार करने के बाद ये पक्का मार्ग पूरे रेजीडेंसी परिसर में फैला हुआ है !
गेट के पास इस मार्ग पर खड़े होने पर हमारी दाईं ओर एक पुरानी इमारत थी जो अब खंडहर में तब्दील हो चुकी है ! 1851 में निर्मित ये इमारत कभी कोषागार हुआ करती थी, उस दौर में इस इमारत को बनाने में लगभग 17000 रुपए का खर्च आया था ! 1857 की क्रांति के दौरान इस इमारत के मध्य भाग को एनफील्ड कारतूस बनाने के लिए कारखाने के रूप में भी इस्तेमाल किया गया ! यहाँ से सीधा जाने वाला मार्ग आगे घूमता हुआ संग्रहालय तक जाता है, इस बीच राह में क़ासिम सैय्यद शाह बाबा की एक दरगाह भी है ! कोषागार के बाहर हेनरी लॉरेन्स का स्मारक बना है जहाँ स्मृति स्वरूप एक चिन्ह भी लगा हुआ है ! जबकि कोषागार के ठीक सामने परिसर के अंदर वाले मार्ग के दूसरी ओर जो इमारत है वो कभी डॉक्टर फेयरर का घर हुआ करती थी ! इस इमारत की छत भी अब टूट चुकी है और वर्तमान में सिर्फ़ दीवारें ही बची है ! डॉक्टर फेयरर कभी रेजीडेंसी में सर्जन हुआ करते थे ! हम यहाँ बैली गेट को पार करने के बाद आदिल की प्रतीक्षा कर रहे थे, थोड़ी देर बाद जब वो आ गया तो हम कोषागार की ओर चल दिए ! रेजीडेंसी परिसर को यदि प्रेमी युगलों का गढ़ कहे तो ग़लत नहीं होगा, यहाँ कोषागार के आस-पास दूर तक हरा-भरा मैदान है और बीच-2 में खूब पेड़-पौधे भी लगे है !
इन पेड़-पौधों के नीचे और खुले मैदान में दिन भर आप प्रेमी युगलों को बाहों में बाहें डाल कर घूमते हुए और अन्य क्रिया-कलापों में लिप्त देख सकते है ! इन युगलों को ना तो यहाँ आने वाले अन्य लोगों की परवाह है और ना ही दीन-दुनिया से कोई मतलब, ये तो बस एक-दूसरे में ही खोए रहते है ! कोषागार के बाहरी भाग में ऊँचे-2 स्तंभ बने हुए थे, कभी इनके ऊपर छत भी रही होगी, लेकिन वर्तमान में नहीं है ! कोषागार की दीवारों में लगी पतली-2 ईंटें आज भी काफ़ी अच्छी हालत में है ! यहाँ आपस में जुड़े कई कमरे है और इन कमरों के प्रवेश द्वार काफ़ी ऊँचे-2 है, फर्श भी काफ़ी मजबूत है ! दरवाज़ों के ऊपरी भाग पर सपोर्ट देने के लिए लकड़ी के गार्डर का प्रयोग किया गया है ! इमारत का अधिकतर भाग तो नष्ट हो चुका है लेकिन जो बचा है वो सही हालत में है ! अंदर हमें एक छोटा स्नानागार भी देखने को मिला, जिसकी तलहटी पर अच्छी कारीगरी की गई थी ! इमारत के पिछले भाग में छत पर जाने के लिए पत्थर की सीढ़ियाँ भी बनी हुई थी, लेकिन अब इमारत की छत तो बची नहीं है इसलिए सीढ़ियाँ मात्र दिखावट के लिए ही रह गई है ! कोषागार को देखने के बाद हम तीनों बाहर आ गए !
मुख्य मार्ग पर आकर हम डॉक्टर फेयरर के निवास स्थान में भी गए, यहाँ कुछ फोटो लिए और वापिस आ गए ! परिसर में बने पक्के मार्ग पर चलते हुए हम आगे बढ़ते रहे, इसी मार्ग पर हमारी दाईं ओर वो दरगाह भी आई, जिसका ज़िक्र मैने ऊपर किया है ! दरगाह में कुछ लोग मौजूद थे, कहते है कि हफ्ते में किसी दिन यहाँ काफ़ी भीड़ रहती है, लेकिन आज तो नहीं थी ! यहाँ से हम तीनों अपनी बाईं ओर चल दिए, इस मार्ग पर थोड़ी दूर चलने के बाद हमारी दाईं ओर एक मस्जिद थी ! अंदर तो हम नहीं गए लेकिन बाहर से ही कुछ फोटो खींच लिए, मस्जिद के इस ओर से सूर्य देव हमारे सामने आ रहे थे इसलिए कुछ अच्छे फोटो लेने की चाह में हम मस्जिद के दूसरी ओर पहुँच गए ! मस्जिद के कुछ फोटो लेने के बाद हम वापिस उसी मार्ग पर आ गए और दरगाह के सामने से होते संग्रहालय की ओर चल दिए ! इस दरगाह के पीछे एक खुला मैदान है और इसमें बहुत सुंदर पेड़ लगे है, पेड़ों के उस पार ही संग्राहलय बना है ! दरगाह से देखने पर पेड़ों से घिरे इस संग्राहालय का एक शानदार नज़ारा दिखाई देता है !
मुख्य मार्ग से निकलकर एक सहायक मार्ग इस संग्रहालय तक जाता है, इस मार्ग के किनारे ही एक चारदीवारी है जिसकी दीवारों पर क्रमबद्ध तरीके से छोटी-2 तोपें रखी है ! जबकि संग्राहलय के प्रवेश द्वार के पास बड़ी तोपें रखी हुई है, लोग इन तोपों के पास खड़े होकर फोटो खिंचवाने में लगे थे ! हमने भी बहती गंगा में हाथ धोते हुए कुछ फोटो खिंचवा लिए, ये तोपें बहुत मोटे लोहे से बनी है और आज भी बहुत अच्छी हालत में है ! ये संग्राहालय सुबह 9 बजे खुलकर शाम को 5 बजे बंद हो जाता है, और हर शुक्रवार को ये बंद रहता है ! हमारी किस्मत देखिए, आज भी शुक्रवार ही है इसलिए ये संग्राहालय बंद था और हमें यहाँ से बेरंग ही लौटना पड़ा ! वैसे रेजीडेंसी परिसर में कई इमारतों की दीवारों पर 1857 की क्रांति में हुई गोला-बारी के निशान आज भी दिखाई देते है ! मुख्य मार्ग पर ही आगे बढ़ने पर बाईं ओर सेंट मैरी चर्च और एक कब्रिस्तान भी था ! क्रांति के दौरान जब इस कब्रिस्तान में जगह कम पड़ने लगी तो लोगों की क़ब्रें ना बनाकर उन्हें यहाँ सामूहिक रूप से ही दफ़न कर दिया गया !
वैसे इस रेजीडेंसी के बारे में कुछ कहानियाँ भी प्रचलित है, पता नहीं इन कहानियों में कितनी सच्चाई है ! मुझे ये जानकारी रेजीडेंसी परिसर के आस-पास रहने वाले स्थानीय लोगों से मिली ! ऐसी ही एक कहानी के अनुसार सन 1971 में लखनऊ के लाल बहादुर विश्वविद्यालय के होस्टल में रहने वाले तीन छात्रों में एक शर्त लगी ! शर्त ये थी कि किसमें इतनी हिम्मत है कि वो एक रात यहाँ रेजीडेंसी में अकेले बिता सके ! इस परिसर में कब्रिस्तान होने के कारण लोग यहाँ रात को कम ही आते थे, लेकिन फिर भी इस शर्त के लिए उन तीनों में से एक ने यहाँ रात गुजारने के लिए हामी भर दी ! शर्त के अनुसार तीनों दोस्त मध्य रात्रि में रेजीडेंसी पहुँचे, उस समय बैली गेट के चारों ओर की दीवारें टूटी हुई थी इसलिए कोई भी आसानी से अंदर आ सकता था ! अपने साथी को यहाँ छोड़कर बाकी दोनों मित्र वापिस लौट गए, फिर जब अगली सुबह वो यहाँ आए तो देखा कि उनके दोस्त की मृत्यु हो चुकी है ! पुलिस के डर से दोनों मित्र फरार हो गए, बाद में जब शव का पोस्टमार्टम कराया गया तो मौत की वजह दिल का दौरा पड़ना बताया गया ! इस दिल के दौरे की वजह डर था जो रात के सुनसान में इस परिसर में उस व्यक्ति ने महसूस किया ! खैर, रेजीडेंसी परिसर घूमने के बाद हम तीनों बैली-गेट से होते हुए बाहर पार्किंग की ओर चल दिए, जहाँ हमारी मोटरसाइकल खड़ी थी !
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रेजीडेंसी की प्रवेश टिकटें |
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बैली गेट का एक दृश्य (A view of Baily Gate) |
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बैली गेट की जानकारी देता एक बोर्ड |
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हेनरी लॉरेन्स का स्मारक |
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रेजीडेंसी की जानकारी दर्शाता बोर्ड |
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कोषागार की जानकारी दर्शाता बोर्ड |
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कोषागार की इमारत |
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उदय और आदिल (बाएँ से दाएँ) |
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कोषागार के अंदर का एक दृश्य |
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रेजीडेंसी परिसर में एक और स्मारक |
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स्तंभ और उनके ऊपर लगे गार्डर |
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इमारत के अंदर का एक दृश्य |
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इमारत के अंदर का एक दृश्य |
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स्नानागार की तलहटी पर की गई कारीगरी |
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कोषागार का पिछला भाग |
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एक फोटो मेरी भी हो जाए |
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दरगाह के पास से दिखाई देता संग्रहालय |
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दरगाह के पास से दिखाई देता संग्रहालय |
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रेजीडेंसी परिसर में मौजूद मस्जिद |
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एक साफ फोटो भी देख लो |
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संग्रहालय का प्रवेश द्वार |
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संग्रहालय से संबंधित जानकारी दर्शाता एक बोर्ड |
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ये है वो बड़ी तोप |
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दीवारों पर लगी छोटी तोपें |
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परिसर में मौजूद एक विशाल पेड़ |
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चर्च और कब्रिस्तान की जानकारी देता एक बोर्ड |
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कब्रिस्तान के अंदर का एक दृश्य |
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कब्रिस्तान के अंदर का एक दृश्य |
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रेजीडेंसी परिसर का एक दृश्य |
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रेजीडेंसी परिसर का एक दृश्य |
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संग्रहालय के पीछे रखी तोपें |
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रेजीडेंसी परिसर का एक दृश्य |
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तोप का नज़दीक से लिया एक चित्र |
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क्षतिग्रस्त इमारत का एक दृश्य |
क्यों जाएँ (Why to go Lucknow): वैसे नवाबों का शहर लखनऊ किसी पहचान का मोहताज नहीं है, इस शहर के बारे में वैसे तो आपने भी सुन ही रखा होगा ! अगर आप प्राचीन इमारतें जैसे इमामबाड़े, भूल-भुलैया, अंबेडकर पार्क, या फिर जनेश्वर मिश्र पार्क घूमने के साथ-2 लखनवी टुंडे कबाब और अन्य शाही व्यंजनों का स्वाद लेना चाहते है तो बेझिझक लखनऊ चले आइए !
कब जाएँ (Best time to go Lucknow): आप साल के किसी भी महीने में लखनऊ जा सकते है ! गर्मियों के महीनों यहाँ भी खूब गर्मी पड़ती है जबकि दिसंबर-जनवरी के महीने में यहाँ बढ़िया ठंड रहती है !
कैसे जाएँ (How to reach Lucknow): दिल्ली से लखनऊ जाने का सबसे बढ़िया और सस्ता साधन भारतीय रेल है दिल्ली से दिनभर लखनऊ के लिए ट्रेनें चलती रहती है किसी भी रात्रि ट्रेन से 8-9 घंटे का सफ़र करके आप प्रात: आराम से लखनऊ पहुँच सकते है ! दिल्ली से लखनऊ जाने का सड़क मार्ग भी शानदार बना है 550 किलोमीटर की इस दूरी को तय करने में भी आपको 7-8 घंटे का समय लग जाएगा !
कहाँ रुके (Where to stay in Lucknow): लखनऊ एक पर्यटन स्थल है इसलिए यहाँ रुकने के लिए होटलों की कमी नहीं है आप अपनी सुविधा के अनुसार चारबाग रेलवे स्टेशन के आस-पास या शहर के अन्य इलाक़ों में स्थित किसी भी होटक में रुक सकते है ! आपको 500 रुपए से शुरू होकर 4000 रुपए तक के होटल मिल जाएँगे !
क्या देखें (Places to see in Lucknow): लखनऊ में घूमने के लिए बहुत जगहें है जिनमें से छोटा इमामबाड़ा, बड़ा इमामबाड़ा, भूल-भुलैया, आसिफी मस्जिद, शाही बावली, रूमी दरवाजा, हुसैनबाद क्लॉक टॉवर, रेजीडेंसी, कौड़िया घाट, शादत अली ख़ान का मकबरा, अंबेडकर पार्क, जनेश्वर मिश्र पार्क, कुकरेल वन और अमीनाबाद प्रमुख है ! इसके अलावा भी लखनऊ में घूमने की बहुत जगहें है 2-3 दिन में आप इन सभी जगहों को देख सकते है !
क्या खरीदे (Things to buy from Lucknow): लखनऊ घूमने आए है तो यादगार के तौर पर भी कुछ ना कुछ ले जाने का मन होगा ! खरीददारी के लिए भी लखनऊ एक बढ़िया शहर है लखनवी कुर्ते और सूट अपने चिकन वर्क के लिए दुनिया भर में मशहूर है ! खाने-पीने के लिए आप अमीनाबाद बाज़ार का रुख़ कर सकते है, यहाँ के टुंडे कबाब का स्वाद आपको ज़िंदगी भर याद रहेगा ! लखनऊ की गुलाब रेवड़ी भी काफ़ी प्रसिद्ध है, रेलवे स्टेशन के बाहर दुकानों पर ये आसानी से मिल जाएगी !
अगले भाग में जारी...
लखनऊ यात्रा
बहुत बढ़िया लिखा है और रेजिडेंस का बयान भी, पुरानी चीजे देखने का अपना ही आनंद है
ReplyDeleteजी धन्यवाद !
Deleteबहुत ही अच्छा और सराहनीय कार्य
ReplyDeleteथैंक्स फ़ॉर
धन्यवाद किशन जी !
Deleteप्रेमी युगलों का गढ़ ।
ReplyDeleteसही कहा आपने, प्रेमी युगलों का गढ़ तो है ही ! और ये ही क्यों किसी भी बड़े शहर के पार्को और ऐतिहासिक इमारतों को देख लीजिए !
Deleteप्रेमी युगलों का गढ़ ।
ReplyDeleteThanks for information and picture s
ReplyDeleteThank you for this appreciation.
DeleteThanks for information and picture s
ReplyDeleteThank you !
Deleteआपका ये लेख बहुत प्रशंसानिय है
ReplyDeleteजी धन्यवाद !
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