हरिद्वार से चोपता की बस यात्रा (A Road Trip to Chopta)

शनिवार, 23 जनवरी 2016

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मेरे पिछले लेख में आपने पढ़ा कि किस तरह हम दिल्ली से रात्रि का सफ़र करके हरिद्वार पहुँचे ! हरिद्वार से जब हमारी बस ने चलना शुरू किया तो सुबह के 6 बज रहे थे, बाहर अभी भी अंधेरा ही था ! पहाड़ी मार्ग पर बस में सफ़र करते हुए मुझे उल्टी की परेशानी रहती है, मेरे अलावा इस यात्रा पर मेरे अन्य साथियों को भी ये परेशानी थी ! इसलिए बस में बैठने से पहले ही हमने उल्टी से बचने की दवा खा ली थी ! कृत्रिम रोशनी से हरिद्वार चमक रहा था, इस जगमगाहट की वजह था हरिद्वार में अर्ध-कुंभ का आयोजन ! अगले 3 माह यानि अप्रैल तक यहाँ अर्ध-कुंभ की छटा बिखरी रहेगी, इस दौरान हरिद्वार में गंगा स्नान के लिए करोड़ों श्रद्धालु आएँगे ! रंग-बिरंगे इस कृत्रिम प्रकाश में हरिद्वार शहर बहुत वाकई बहुत खूबसूरत लग रहा था ! भोर का समय होने के कारण अभी सड़क पर ज़्यादा भीड़ भी नहीं थी, वरना दिन के समय तो इस मार्ग पर काफ़ी भीड़-भाड़ रहती है ! इस मार्ग पर रास्ते में एक-दो जगह सड़क निर्माण का काम भी चल रहा था ! काफ़ी देर तक इस मार्ग पर चलने के बाद देहरादून से आने वाला एक मार्ग भी आकर इसी मार्ग में मिल गया !

चोपता जाने का मार्ग (Snow Covered way to Chopta)

ऋषिकेश से निकलते हुए बस में बैठे-2 ही राम झूला के अलावा कुछ दूसरे खूबसूरत नज़ारे भी देखे, ऋषिकेश से ये सड़क गंगा नदी के किनारे-2 काफ़ी दूर तक जाती है ! ऋषिकेश के बाद तो पहाड़ी इलाक़ा शुरू हो जाता है और इसी के साथ शुरू हो जाते है घुमावदार पहाड़ी रास्ते ! लगभग 2 घंटे के सफ़र के बाद ब्यासी में आकर हमारी बस रुकी, यहाँ सड़क के किनारे खाने-पीने की कुछ दुकानें है, हरिद्वार आने-जाने वाली हर बस यहाँ आधे घंटे के लिए रुकती है ! इस आधे घंटे में यात्री नाश्ता-पानी से लेकर बाकी के काम निबटा सकते है ! ब्यासी से चलने के बाद हमारी बस देवप्रयाग होते हुए श्रीनगर पहुँची, रात को नींद पूरी ना होने के कारण मैं रास्ते में कई बार सो भी गया और कई खूबसूरत नज़ारे देखने से वंचित रह गया ! ब्यासी से चलने के थोड़ी देर बाद ही जीतू को उल्टियाँ आनी शुरू गई थी, इसलिए वो अब आगे वाले कैबिन से निकलकर बस की पिछली सीट पर जाकर बैठ गया ! जयंत और सौरभ तो ब्यासी से पहले ही पीछे जाकर बैठ गए थे, श्रीनगर में भी आधा घंटा खड़े होकर बस में नई सवारियाँ बिठाई गई !

श्रीनगर से चले तो पौने ग्यारह बज रहे थे यहाँ मैं भी पिछली सीट पर जाकर बैठ गया ! वैसे इस बस के जगह-2 रुकने के कारण मुझे तो काफ़ी फ़ायदा हुआ ! दरअसल, जब कभी भी मेरी उल्टी करने की स्थिति बनती, बस के रुकने का समय आ जाता और मेरी तबीयत ठीक हो जाती ! श्रीनगर से चले तो रुद्रप्रयाग जाकर रुके, जहाँ कहीं भी हमारी बस रुकती, जयंत जाकर खाने-पीने का कुछ सामान ले आता ! श्रीनगर में हम सब जूस पीकर चले तो यहाँ रुद्रप्रयाग में बाल-मिठाई का स्वाद चखा, बाल मिठाई कुमाऊँ की देन है लेकिन यहाँ गढ़वाल की बाल मिठाई का स्वाद भी ठीक ही था ! हम लोगों ने इस बस में रुद्रप्रयाग तक की ही टिकट ली थी लेकिन बस के परिचालक ने हमें बताया कि वो हमें ऊखीमठ से थोड़ा पहले कुंड नामक एक जगह पर छोड़ देगा ! हमने भी सोचा, यहाँ दूसरी सवारी लेने से अच्छा है इसी बस से कुंड तक सफ़र करते है, कुंड से आगे का वहाँ पहुँच कर देखेंगे ! हरिद्वार से रुद्रप्रयाग तक का किराया 235 रुपए प्रति सवारी था और उससे आगे कुंड तक के लिए हमने 50 रुपए प्रति सवारी दिए ! 

आधे घंटे बाद जब रुद्रप्रयाग से चले तो मुख्य मार्ग दो भागों में बँट गया, रुद्रप्रयाग अलकनंदा और मंदाकिनी का संगम स्थल है ! यहाँ से दाएँ जाने वाला मार्ग अलकनंदा के किनारे-2 जोशीमठ-बद्रीनाथ होते हुए आगे चला जाता है, जबकि, बाएँ जाने वाला मार्ग मंदाकिनी के किनारे-2 होते हुए ऊखीमठ-केदारनाथ को जाता है ! हम ऊखीमठ वाले मार्ग पर जा रहे थे, रुद्रप्रयाग से चलने के बाद सवा घंटे का सफ़र तय करके हम कुंड पहुँचे, इस दौरान मार्ग में नदी के किनारे बहुत से खूबसूरत दृश्य दिखाई देते है ! अगर अपनी गाड़ी से आओ तो रास्ते में कई जगह रुककर प्राकृतिक नज़ारों का आनंद लिया जा सकता है, बस तो रास्ते में कहीं रुकी नहीं इसलिए हम बस की खिड़की से ही इन नज़ारों को देखते रहे ! सड़क की हालत ठीक थी, इसलिए अपनी गाड़ी ले जाने में कोई दिक्कत नहीं है ! रास्ते में कई जगह तो नदी के किनारे भू-स्खलन के निशान भी दिखाई दिए, जहाँ पहाड़ के कई बड़े हिस्से खिसककर नदी में समा गए थे ! कुंड पहुँचकर जब बस से उतरे तो चारों तरफ पहाड़ी ही दिखाई दे रही थी, हमारे बार्ईं ओर काफ़ी नीचे मंदाकिनी नदी बह रही थी ! 

हम अपना सामान सड़क के किनारे रखने में लगे थे कि तभी सामने एक जीप वाला दिखाई दिया, पूछने पर पता चला कि वो ऊखीमठ जा रहा है, उसी ने बताया कि यहाँ से चोपता जाने के लिए सीधे कोई सवारी नहीं मिलेगी ! ऊखीमठ से शैयर्ड जीप या कोई अन्य सवारी मिल जाएगी, फिर 20 रुपए प्रति व्यक्ति के हिसाब से उसने हमें ऊखीमठ छोड़ दिया ! अब तक जीतू एकदम पस्त हो चुका था, इसलिए जीप से उतरते ही उसने घोषणा कर दी कि आज वो और सफ़र नहीं कर सकता इसलिए आज रात ऊखीमठ में ही रुकेगा ! हमने उसे समझाया कि भाई पहले कुछ खा-पी ले, उसके बाद आगे के कार्यक्रम पर विचार करेंगे ! ऊखीमठ में एक होटल में रुककर जब हल्की पेट पूजा की तो शरीर में जान आई, लंबे सफ़र से सबको थकान हो गई थी ! जयंत और सौरभ आज ही चोपता जाने के पक्ष में थे, लेकिन जीतू आज यहीं रुकना चाहता था, मैं असमंजस में था कि किसका पक्ष लूँ ! अंत में जीतू को समझाया कि भाई चोपता ना सही, आज सारी गाँव ही चल लेते है ! कम से कम शाम को कुछ घूमने को तो मिल जाएगा, वरना यहाँ ऊखीमठ में तो घूमने के लिए भी कुछ दिखाई नहीं दे रहा ! वो अलग बात है कि मुझे बाद में पता चला कि यहाँ ऊखीमठ में भी देखने के लिए मंदिर है ! 

खैर, जब जीतू हमारी बात से सहमत हो गया तो हमने ऊखीमठ से सारी गाँव जाने के लिए 400 रुपए में एक जीप वाले से सौदा तय कर लिया ! जीप में सवार होकर हम सब निकल पड़े, लेकिन रास्ते में एक जगह पहाड़ पर खनन का काम चल रहा था इसलिए रास्ता कुछ देर के लिए बंद था ! जीप से उतरकर हम आस-पास की फोटो लेने लगे, इसी दौरान हमें दूर पहाड़ी पर चोपता भी दिखाई दिया ! हमारे अलावा कुछ अन्य यात्री भी अपनी-2 जीप से उतरकर वहाँ फोटो खींचने में लगे थे ! वापिस आकर जब जीप में बैठे तो पता नहीं सबके मन में क्या आया कि सभी लोग आज ही चोपता जाने के लिए सहमत हो गए ! फिर जब हमने जीप वाले से चोपता चलने के लिए कहा तो उसने मना कर दिया, वो बोला उसने फोन पर एक दूसरी बुकिंग ले ली है ! उसने कहा कि हमने उससे सारी गाँव तक जाने का सौदा तय किया था और इसलिए वो हमें सारी गाँव छोड़कर दूसरी बुकिंग पर चला जाएगा ! काफ़ी कोशिश की लेकिन अतिरिक्त रुपए देने पर भी बात नहीं बनी, इसी बीच राह में एक दूसरा जीप वाला सामने से आता दिखाई दिया ! हमारे ड्राइवर ने उससे हाल-चाल पूछने के लिए गाड़ी रोकी, इस दौरान उसने ये भी पूछ लिया कि क्या वो हमें चोपता छोड़ देगा ? 

दूसरी जीप वाला हमें चोपता छोड़ने पर सहमत हो गया, फिर हमने अपना सारा सामान दूसरी जीप में रख दिया और पहले जीप वाले को उसका भुगतान कर दिया ! यहाँ से चोपता जाने के लिए भी 400 रुपए में सौदा तय हुआ, ये जीप वाला चोपता से आ रहा था और इसे ऊखीमठ में कुछ काम था, इसलिए पहले ये ऊखीमठ जाना चाहता था ! हमारी किस्मत अच्छी थी कि खनन की वजह से फिर से मार्ग पर यातायात रोक दिया गया, वहाँ खड़े कर्मचाड़ी ने बताया कि आधे घंटे से पहले ये मार्ग नहीं खुलेगा ! ये सुनकर हमने जीप वाले पर दबाव डाला कि आधे घंटे यहाँ खड़े रहने से अच्छा है कि हमें चोपता ही छोड़ आओ ! हमारी बात से सहमत होकर ड्राइवर ने अपनी गाड़ी वापिस चोपता के लिए मोड़ दी, थोड़ी देर बाद हम सारी गाँव को मुड़ने वाले मार्ग को पीछे छोड़ते हुए चोपता की ओर बढ़ रहे थे ! दुग्गलबिठा में हमें कुछ युवकों का एक समूह मिला, यहाँ से ये लोग भी हमारी जीप में ही सवार हो गए ! ये पंजाब से आए कुछ लड़कों का समूह था, ये लोग हमें ऊखीमठ में भी मिले थे और रास्ते में खनन वाली जगह पर भी ! ये लोग अलग जीप से आ रहे थे, पता नहीं जीप वाले ने इन्हें यहाँ बीच राह में क्यों छोड़ दिया ? 

वैसे, यहाँ दुग्गलबिठा में कुछ होटल और दुकानें भी है, जहाँ लोगों के रुकने की व्यवस्था है, लेकिन शायद इन लड़कों ने भी आज रात चोपता में रुकने का ही विचार बना रखा था ! दुग्गलबिठा में हमने अपना सारा सामान जीप की छत पर लाद दिया और पिछली सीटों पर ये लोग बैठ गए ! यहाँ से थोड़ी आगे ही बढ़े थे कि रास्ते में एक आल्टो कार मुख्य मार्ग से फिसलकर सड़क के किनारे वाली पहाड़ी से टकरा गई थी ! दरअसल, सड़क पर बर्फ गिरी होने के कारण सड़क पर टायरों की पकड़ नहीं बन रही थी और ड्राइवर ने ज़्यादा रेस दे दी, बस कार फिसलकर किनारे वाली पहाड़ी से जा भिड़ी ! हमारी जीप का ड्राइवर कीर्ति सिंह चौहान जिसे मैने चोपता के रॉबिनहुड की ऊपाधि दी, वाकई ज़िंदादिल इंसान था ! किसी को भी मुसीबत में देखकर उसने हमेशा ही मदद की पेशकश की, यहाँ उसके साथ मैं भी जीप से उतरा और उस आल्टो को वहाँ से निकालने में मदद की ! इस समय यहाँ के नज़ारे इतने खूबसूरत थे कि हमारी जीप में सवार बाकी लोग जीप से उतरकर फोटो खींचने में लग गए ! अगर आप भी कभी चोपता जाएँ और आपको किसी भी प्रकार की मदद की ज़रूरत हो तो आप यहाँ के रॉबिनहुड को 7351779576 पर फोन कर सकते है, ये आपकी हर संभव मदद करेंगे ! 

आल्टो को निकालने के बाद हम वापिस अपने जीप में सवार हुए और चोपता का अपना सफ़र जारी रखा ! जैसे-2 हम ऊँचाई पर पहुँचते जा रहे थे, मौसम भी ठंडा हो रहा था और सड़क पर बर्फ भी बढ़ती जा रही थी, ड्राइवर बोला यहाँ तो चोपता के मुक़ाबले कुछ भी बर्फ नहीं है ! इसी मार्ग पर आगे बढ़ते हुए सड़क के किनारे कई जगहों पर हमने कुछ निजी टेंट भी लगे देखे ! पहाड़ी रास्तो पर तो वैसे भी अधिक समय लगता है और यहाँ चोपता जाते हुए तो रास्ते में काफ़ी बर्फ गिरी हुई थी, इसलिए 30 किलोमीटर के सफ़र को तय करने में ही हमें 1 घंटे से भी ज़्यादा का समय लग गया ! जब हम चोपता पहुँचे तो हल्का-2 अंधेरा होने लगा था, चोपता से थोड़ी पहले सड़क के किनारे दाईं ओर कुछ दुकानें थी जबकि बाईं ओर एक पहाड़ी थी ! दुकानें अभी बंद थी, लेकिन यात्रा सीजन में ये सब निश्चित तौर पर खुली रहती होंगी ! वैसे तो चोपता में रुकने के लिए छोटे-2 कई होटल है, लेकिन हम रुकने के लिए अपने साथ टेंट और स्लीपिंग बैग लेकर आए थे ! इसलिए जीप से उतरते ही हम सबसे पहले टेंट लगाने के लिए एक उचित जगह की तलाश करने लगे ! थोड़ी देर की तलाश के बाद हमें सड़क किनारे उन बंद दुकानों के पीछे एक खुला मैदान दिखाई दिया, मैदान से नीचे जाने पर एक घना जंगल था ! 

चोपता का मुख्य चौराहा यहाँ से 150 मीटर की दूरी पर था, टेंट लगाने के लिए हमें ये उत्तम जगह लगी ! बिना समय गवाएँ हमने तेज़ी से टेंट लगाने का काम शुरू कर दिया और अंधेरा होते-2 हमारा टेंट तैयार हो गया ! आस-पास की कुछ फोटो खींचने के साथ-2 हम आग जलाने की तैयारी भी कर रहे थे, लकड़ियों के अलावा हमने आग जलाने के लिए सूखे घास-फूंस भी जमा कर लिए ! टेंट में अपना सारा सामान रखने के बाद और आग जलाने का सामान जमा करके हम खाना खाने के लिए चोपता के मुख्य चौराहे पर एक दुकान में चले गए ! यहाँ रात्रि भोजन करने के पश्चात हम कुछ कागज और बड़ी लकड़ियाँ भी ले आए ताकि देर तक आग बनी रहे ! यहाँ का भोजन ज़्यादा स्वादिष्ट नहीं था लेकिन मजबूरी में जो मिल जाए, खा लेना चाहिए ! टहलते हुए हम वापिस अपने टेंट के पास पहुँचे, यहाँ हमारे टेंट के बगल में ही दो टेंट और लग गए थे, टेंट में वही लोग थे जो दुग्गलबिठा से हमारे साथ आए थे ! यहाँ आग जलाने में हमें काफ़ी मेहनत करनी पड़ी, घास-फूंस और कागज कुछ ही पलों में जलकर बुझ गए लेकिन बड़ी लकड़ियाँ सुलगकर रह गई, हिम्मत ना हारते हुए हमने कोशिश जारी रखी और हमारी मेहनत बेकार नहीं गई ! 

काफ़ी देर तक हवा करने और फूँक मारने के बाद आख़िरकार आग जल उठी, उसके बाद हमने इसे बुझने नहीं दिया ! एक बार जब बड़ी लकड़ियों ने आग पकड़ लिया तो काफ़ी देर तक आग बनी रही ! काफ़ी देर तक आग के चारों ओर बैठकर हम सब बातें करते रहे, सौरभ ट्राइपॉड लगाकर आसमान और आस-पास की फोटो खींचता रहा ! थोड़ी देर में हमारे टेंट के बगल वाले टेंट में रुके लड़के भी चोपता से खाना खाने के बाद लकड़ियाँ लेकर हमारे पास ही आ गए, ये भी हमारे साथ रात 10 बजे तक आग के पास ही बैठे रहे ! फिर सब आराम करने के लिए अपने टेंट में चले गए, इस समय यहाँ काफ़ी ठंड थी लेकिन आग के पास बैठने के कारण गर्माहट थी ! हम सब अपने-2 स्लीपिंग बैग में घुस गए, फिर कब नींद आ गई, पता ही नहीं चला ! वैसे रात को यहाँ का तापमान -4 तक चला गया था, लेकिन हमारे स्लीपिंग बैग ने बखूबी साथ निभाया और हम ठंड से बचे रहे ! आज की यात्रा पर यहीं विराम लगाता हूँ कल आपको तुंगनाथ मंदिर लेकर चलूँगा !


हरिद्वार-ऋषिकेश मार्ग का एक चित्र (Way to Rishikesh from Haridwar)
श्रीनगर में लिया एक चित्र (A view from Srinagar, Uttarakhand)
गर्मा-गर्म समोसे  (A view from a tea shop)
रुद्रप्रयाग चौराहे का एक दृश्य (A view from Rudrprayag Market)
Somewhere in Rudrprayag
रुद्रप्रयाग बाज़ार का एक दृश्य (A view of Rudrprayag Market)
Jayant giving pose in Rudrprayag
Rudrprayag Market
दूर पहाड़ी पर दिखाई देता एक गाँव (View of a village)
दुग्गलबिठा में जीप की छत से लिया एक चित्र (Somewhere in Duggalbitha)
दूर दिखाई देती एक पहाड़ी
चोपता जाने का मार्ग (Way to Chopta)
दुर्घटनाग्रस्त आल्टो
चोपता जाने का बर्फीला मार्ग (Snow covered road to Chopta)
हमारी जानदार सवारी
चोपता का मुख्य चौक (A view from Chopta)
तुंगनाथ जाने का मुख्य द्वार (Way to Tungnath Temple)
चोपता में खड़े निजी वाहन
इसी होटल के नीचे खुले मैदान में हमने टेंट लगाया था (An evening in Chopta)
पहाड़ी पर गिरी बर्फ (Snow covered hills)
रात को रुकने के लिए हमारा टेंट (Our Tent in Chopta)
गर्माहट के लिए आग भी जला ली (Bonfire in Chopta)
गर्माहट के लिए आग भी जला ली (Bonfire in Chopta)
क्यों जाएँ (Why to go Chopta): अगर आपको धार्मिक स्थलों के अलावा रोमांचक यात्राएँ करना अच्छा लगता है तो चोपता आपके लिए एक बढ़िया विकल्प है ! यहाँ पहाड़ों की ऊँचाई पर स्थित तुंगनाथ मंदिर की छटा देखते ही बनती है !

कब जाएँ (Best time to go Chopta
): वैसे तो आप साल के किसी भी महीने में तुंगनाथ जा सकते है लेकिन उत्तराखंड में स्थित चार धामों की तरह तुंगनाथ का मंदिर भी साल के 6 महीने ही खुलता है ! मई के प्रथम सप्ताह में खुलकर ये अक्तूबर के अंतिम सप्ताह में बंद हो जाता है ! मंदिर के द्वार बंद होने के बाद भी लोग ट्रेक करने के लिए यहाँ जाते है, चंद्रशिला जाने के लिए रास्ता तुंगनाथ मंदिर होकर ही जाता है ! गर्मियों के महीनों में भी यहाँ बढ़िया ठंडक रहती है जबकि दिसंबर-जनवरी के महीने में तुंगनाथ में भारी बर्फ़बारी होती है इसलिए कई बार तो रास्ता भी बंद कर दिया जाता है ! बर्फ़बारी के दौरान अगर तुंगनाथ जाने का मन बना रहे है तो अतिरिक्त सावधानी बरतें !

कैसे जाएँ (How to reach Chopta): दिल्ली से चोपता जाने के लिए सबसे अच्छा मार्ग सड़क मार्ग है वैसे आप हरिद्वार तक ट्रेन से और उससे आगे का सफ़र बस, जीप या टैक्सी से भी कर सकते है ! दिल्ली से चोपता की कुल दूरी 405 किलोमीटर है जबकि हरिद्वार से ये दूरी 183 किलोमीटर रह जाती है !
दिल्ली से चोपता पहुँचने में आपको 11-12 घंटे का समय लगेगा !

कहाँ रुके (Where to stay in Chopta): चोपता में रुकने के लिए बहुत ज़्यादा विकल्प नहीं है गिनती के 2-4 होटल है जहाँ रुकने के लिए आपको 800 से 1000 रुपए तक खर्च करने पड़ सकते है ! अगर आप टेंट में रुकना चाहते है तो आप अपने साथ लाए टेंट लगा सकते है या ये होटल भी  आपको किराए पर टेंट मुहैया करवा देंगे !


क्या देखें (Places to see in Chopta
): चोपता में प्राकृतिक दृश्यों की भरमार है चारों तरह बर्फ से लदी ऊँची-2 पहाड़ियाँ सुंदर दृश्य प्रस्तुत करती है ! आप किसी भी तरफ सिर उठाकर देखेंगे तो आपको प्रकृति का अलग ही रूप दिखाई देगा ! इसलिए अलावा यहाँ 3680 मीटर की ऊँचाई पर स्थित भगवान शिव का मंदिर है जो दुनिया का सबसे ऊँचा शिव मंदिर माना जाता है ! इस मंदिर से एक किलोमीटर आगे 4000 मीटर की ऊँचाई पर चंद्रशिला है ! चढ़ाई करते हुए हिमालय पर्वत श्रंखलाओं का जो दृश्य दिखाई देता है वो सफ़र की थकान मिटाने के लिए काफ़ी है !

अगले भाग में जारी...

तुंगनाथ यात्रा
  1. दिल्ली से हरिद्वार की ट्रेन यात्रा (A Train Journey to Haridwar)
  2. हरिद्वार से चोपता की बस यात्रा (A Road Trip to Chopta)
  3. विश्व का सबसे ऊँचा शिव मंदिर – तुंगनाथ (Tungnath - Highest Shiva Temple in the World)
  4. तुंगनाथ से चोपता वापसी (Tungnath to Chopta Trek)
  5. चोपता से सारी गाँव होते हुए देवरिया ताल (Chopta to Deoria Taal via Saari Village)
  6. ऊखीमठ से रुद्रप्रयाग होते हुए दिल्ली वापसी (Ukimath to New Delhi via Rudrprayag)
Pradeep Chauhan

घूमने का शौक आख़िर किसे नहीं होता, अक्सर लोग छुट्टियाँ मिलते ही कहीं ना कहीं घूमने जाने का विचार बनाने लगते है ! पर कुछ लोग समय के अभाव में तो कुछ लोग जानकारी के अभाव में बहुत सी अनछूई जगहें देखने से वंचित रह जाते है ! एक बार घूमते हुए ऐसे ही मन में विचार आया कि क्यूँ ना मैं अपने यात्रा अनुभव लोगों से साझा करूँ ! बस उसी दिन से अपने यात्रा विवरण को शब्दों के माध्यम से सहेजने में लगा हूँ ! घूमने जाने की इच्छा तो हमेशा रहती है, इसलिए अपनी व्यस्त ज़िंदगी से जैसे भी बन पड़ता है थोड़ा समय निकाल कर कहीं घूमने चला जाता हूँ ! फिलहाल मैं गुड़गाँव में एक निजी कंपनी में कार्यरत हूँ !

12 Comments


  1. बहुत खूब , शब्दों की जीवंत भावनाएं... सुन्दर चित्रांकन
    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
    http://madan-saxena.blogspot.in/
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  2. ये वाली पोस्ट मैंने एप्प्स से पढ़ी लेकिन वहां कमेंट करने की जगह नही दिखाई दी ! ऐसी जगह पर आग जलाना भी बड़ा काम है और ये अच्छी भी लगती है !

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    1. योगी जी, विषम परिस्थितियों में आग जलना वाकई मुश्किल काम था लेकिन उसके बाद जो सुकून मिला, वो भी कुछ कम नहीं था !

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  3. सुंदर नजारे और मजेदार सफ

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  4. Rudraprayag से सारी तक 400/- और सारी से चोपता तक 400/- कुछ अधिक नही हैं।

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    1. अहमद जी, बुकिंग में ऐसे ही मिलता है और वापसी में तो हमने सारी गाँव से ऊखीमठ तक 500 और फिर ऊखीमठ से रुद्रप्रयाग तक के 1500 रुपए दिए थे !

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  5. Hi Pradeep
    Photographs and travel description are awesome. Thanks
    What are arrangement for staying at Chopta during end of December, Do you have any contact for it Please share. Planning to go there around 23-25 Dec with family.

    Regards
    Niranjan.

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    1. निरंजन जी, तुंगनाथ में ज्यादा बड़े होटल तो नहीं है लेकिन जहाँ से चढ़ाई शुरू होती है वहीँ सड़क के दोनों ओर 3-4 होटल है, जहाँ खाने पीने का सामान भी मिल जायेगा और रात्रि रुकने की व्यवस्था भी हो जाएगी ! टेंट में रुकने का इंतजाम भी ये होटल वाले करवा देंगे ! बुग्याल होटल की फोटो तो अगली पोस्ट में दिखाई दे ही रही है !

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  6. I love Tungnath Mahadev
    Bike se full enjoy kiya humne

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    1. बहुत अच्छे ! मैं अंदाजा लगा सकता हूँ कि बाइक से तो अलग ही आनंद आया होगा, पहाड़ों पर बाइक से घूमने बड़ा ही रोमांचकारी रहता है !

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