लखनिया दरी और जरगो बाँध भ्रमण (Visit to Lakhaniya Daari and Jargo Dam)

शनिवार, 13 अगस्त 2016

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यात्रा के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि किस तरह हम नई दिल्ली से रात को चलकर सुबह मंडुवाडीह पहुँचे, फिर मंडुवाडीह रेलवे स्टेशन से निकलकर 2-3 ऑटो बदलकर नारायणपुर पहुँचे ! अब आगे, नारायणपुर में ऑटो से उतरकर हम दोनों एक तिराहे पर खड़े हो गए, चंद्रेश भाई को फोन करके बता दिया कि हम कहाँ खड़े है ! बगल में ही एक बाज़ार था जहाँ से हमने कुछ केले और बिस्कुट के पैकेट ले लिए ! लखनिया दरी के पास पता नहीं कुछ मिलेगा या नहीं ! थोड़ी देर बाद चंद्रेश भाई अपने एक मित्र के साथ हमारे पास पहुँचे, हम चारों बड़ी गर्मजोशी से मिले ! कुछ देर बातें करने के बाद चारों लोग बाइक पर सवार होकर अपनी मंज़िल की ओर निकल पड़े ! चंद्रेश भाई ने मुझसे पूछा, पहले कहाँ चले ? मैं बोला, देखनी तो सब जगहें है, आप अपनी सहूलियत के हिसाब से देख लो ! वो बोले, चलिए आपको पहले लखनिया दरी ही ले चलते है वापसी में जरगो बाँध ले चलेंगे, हमें कौन सी सवारी बदलनी है, बाइक तो है ही अपने पास ! हालाँकि, हमारी ये पहली मुलाकात थी, लेकिन सफ़र के दौरान एक बार भी ऐसा महसूस नहीं हुआ ! हमेशा यही लगा जैसे हम सब एक दूसरे को बरसों से जानते हो, वैसे मुलाकात पहली थी तो क्या हुआ, फ़ेसबुक के माध्यम से तो हम दोनों एक-दूसरे को काफ़ी समय से जानते ही थे !
लखनिया दरी जाते हुए रास्ते में लिया एक चित्र

नारायणपुर से निकलते ही हम एक राजमार्ग पर चढ़ गए, 4 लेन का बना ये राजमार्ग लखनिया दरी और चंद्रप्रभा वन्य उद्यान होते हुए आगे रॉबर्ट्सगंज निकल जाता है ! राजमार्ग पर चढ़े तो एक पेट्रोल पंप पर रुककर बाइक में पेट्रोल डलवाया और फिर अपने सफ़र पर आगे बढ़ गए ! इस बीच चंद्रेश भाई मुझे इस जगह के बारे में जानकारी देते रहे, उन्होनें बताया कि पहले ये क्षेत्र नक्सल प्रभावित था, नक्सली लोग अक्सर इस मार्ग पर घटनाओं को अंजाम दिया करते थे, धीरे-2 लोग जागरूक होते गए और विकास की राह पर मुड़ने लगे ! चंद्रेश भाई का घर भी यहाँ से पास ही है, इसी मार्ग पर आगे जाकर उनका कार्यालय भी है ! नारायणपुर से लखानिया दरी की दूरी मात्र 31 किलोमीटर है, शानदार मार्ग बना है तो सफ़र कब बीत जाता है, पता ही नहीं चलता ! इस बीच रास्ते में एक टोल प्लाज़ा भी आया, यहाँ 20 रुपए प्रति मोटरसाइकल के हिसाब से शुल्क अदा करके आगे बढ़े ! हम 50-60 की रफ़्तार से चल रहे थे और चंद्रेश भाई मुझे लगातार जानकारी देने में लगे थे ! रास्ते में सड़क के किनारे कई गाँव आए, एक जगह तो सड़क किनारे पत्थर काटने की मशीनें भी लगी हुई थी, उत्तर प्रदेश के इस हिस्से में पत्थर बहुतायत में मिलता है ! इन पत्थरों को भवन निर्माण के कार्य में उपयोग में लाया जाता है, इसलिए यहाँ बड़े पैमाने पर पत्थर की कटाई का काम भी किया जाता है ! 

लखनऊ में बने अंबेडकर पार्क में जिन पत्थरों का इस्तेमाल हुआ है उसमें से भी काफ़ी पत्थर इसी क्षेत्र से मँगवाए गए थे ! रास्ते में एक जगह सड़क के बाईं ओर दूर तक पानी दिखाई दे रहा था, यहाँ हमने फोटो खींचने के लिए अपनी बाइक रोकी ! ये बारिश का पानी था, ढलान वाला क्षेत्र होने के कारण यहाँ पानी जमा हो गया था ! कुछ फोटो लेने के बाद हम आगे बढ़ गए, यहाँ से थोड़ी दूरी पर ही एक पक्का पुल बना था लेकिन हम इस पुल से पहले ही अपनी दाईं ओर जाते हुए एक सहायक मार्ग पर मुड़ गए ! सीधे जाने वाला मार्ग चंद्रप्रभा वन्य उद्यान को छूता हुआ रॉबर्ट्सगंज चला जाता है ! बरसात की वजह से चारों तरफ हरियाली भी खूब फैली थी, और जगह-2 छोटे-बड़े कई झरने भी थे ! लखनिया दरी पहुँचने से पहले हमने दूर सड़क के बाईं ओर कई छोटे-बड़े झरने देखे ! मुख्य मार्ग को छोड़कर हम जिस मार्ग पर आए थे ये मार्ग लखनिया दरी होता हुआ वापिस जाकर उसी राजमार्ग में मिल जाता है जिसे छोड़कर हम आए थे ! रास्ते में सड़क पर कई गाय रास्ता रोककर बैठी थी और सड़क के बीचों बीच आराम फरमा रही थी ! इस सड़क की हालत देखकर लग रहा था कि इसका निर्माण हाल में ही हुआ है ! 

लखनिया दरी जल प्रपात मुख्य मार्ग से काफ़ी अंदर है, यहाँ जाने के लिए सड़क के किनारे दाईं ओर एक गेट लगा है ! इस गेट से थोड़ी पहले मुख्य मार्ग पर एक पुल बना है झरने से बहकर आता हुआ जल इस पुल के नीचे से होकर मार्ग के दूसरी ओर चला जाता है ! इस समय झरने में खूब पानी था इसलिए इस पुल के नीचे से भी जल अच्छे वेग से बह रहा था ! यहाँ से आगे बढ़े तो गेट से होते हुए जल प्रपात की ओर जाने वाले मार्ग पर चल दिए ! चार पहिया वाहन इस गेट से आगे नहीं जा सकते जबकि दुपहिया वाहन यहाँ से 100-150 मीटर अंदर तक आराम से चले जाते है ! हम भी अपनी बाइक लेकर इसी मार्ग पर चलते रहे, बीच में जब ऊबड़-खाबड़ रास्ता आता तो मैं बाइक से उतर जाता ! हमारी दाईं ओर विशाल जलधारा बह रही थी, और एक दो जगह तो ऊँचाई से दूर तक के नज़ारे देखने के लिए चबूतरे भी बने हुए थे ! ऐसे ही एक चबूतरे पर नज़ारे देखने के लिए हम भी रुके, ये जल झरने से ही आ रहा था ! पानी का बहाव देखकर चंद्रेश भाई बोले, आज पानी बहुत तेज़ी से आ रहा है, लग नहीं रहा कि झरने तक जा पाएँगे ! फिर भी कोशिश करके देखते है, शायद बात बन जाए ! 

उनकी ये बात सुनकर मुझे थोड़ी निराशा हुई, और हो भी क्यों ना, 2 साल से इस झरने को देखने की तमन्ना दिल में लिए बैठा था ! इस जल प्रपात को देखने ही तो हम इतनी दूर से आए थे और अगर यही नहीं देख पाए तो पीड़ा तो होगी ही ! थोड़ी दूर जाकर रास्ता ख़त्म हो गया, आगे पानी ही पानी था, हमने अपनी बाइक यहीं खड़ी कर दी, हमारे अलावा यहाँ अन्य दुपहिया वाहन भी खड़े थे ! मुख्य मार्ग से यहाँ आते हुए हमने जलधारा के किनारे बहुत से परिवारों को देखा जो यहाँ डेरा जमाए हुए थे ! इस मौसम में ये लोग यहाँ परिवार संग छुट्टियाँ बिताने आते है, और खाने-पीने का सामान अपने साथ लेकर चलते है, फिर जहाँ डेरा डालते है वहीं अपना चूल्हा जलाकर पकाते-खाते है ! बाइक खड़ी करके हम पैदल ही झरने की ओर चल दिए, ऊबड़-खाबड़ पथरीले मार्ग से होते हुए हम कुछ दूर तक गए ! तेज बहाव के कारण अधिकतर हिस्सा पानी में डूबा हुआ था, आगे बढ़ने का रास्ता भी बड़ी मुश्किल से मिल रहा था और जो मिल भी रहा था वो बहुत फिसलन भरा था ! जैसे-तैसे करके कुछ दूर तक तो चले गए, उसके आगे का मार्ग पानी में डूबा हुआ था ! जल प्रपात यहाँ से अभी भी डेढ़ किलोमीटर दूर था, लेकिन आगे अथाह जल में रास्ता ही नहीं दिखाई दे रहा था ! 

खैर, जब आगे बढ़ने का कोई मार्ग नहीं मिला तो हम सब वहीं बैठ गए ! वैसे, नज़ारे तो यहाँ से भी शानदार दिखाई दे रहे थे, चारों तरफ ऊँची-2 पहाड़ियों पर फैली हरियाली और नीचे बहती ये जल धारा ! कुछ युवा पानी में नहा भी रहे थे लेकिन इतनी तेज जलधार में नहाना भी ख़तरे से कम नहीं है ! झरने तक जाने वाला मार्ग घने पेड़-पौधों से घिरा हुआ है इसलिए इस क्षेत्र में वन्य जीवों के होने की भी पूरी संभावना है ! बारिश का मौसम होने के कारण इस समय तो चारों तरफ हरियाली ही हरियाली थी लेकिन दूसरे किसी मौसम में सारा क्षेत्र सूखा ही रहता है ! इसलिए यहाँ रौनक भी इसी मौसम में होती है, वो अलग बात है कि कभी-2 ज़्यादा बारिश की वजह से झरने तक पहुँचना भी मुश्किल हो जाता है ! आसमान में अभी भी घने बादल मंडरा रहे थे, चारों तरफ पहाड़ियों से बहकर पानी नीचे इसी जलधारा में गिर रहा था ! लगभग आधा घंटा यहाँ बिताने के बाद हम वापिस चल दिए, ताकि बाकी जगहों पर जा सके ! वैसे इस क्षेत्र में घूमने वाली जगहों की कोई कमी नही है, लखनिया दरी, सिद्धनाथ दरी, विंध्यम फॉल, चंद्रप्रभा वन्य जीव उद्यान, जरगो बाँध, और चुनार के किले के अलावा विंध्यवासिनी देवी का मंदिर और कुछ अन्य धार्मिक स्थल भी है ! 

लखनिया दरी से निकले तो वापिस उसी मार्ग पर चल दिए जिससे यहाँ आए थे, 8 किलोमीटर वापिस जाने के बाद अपनी बाईं ओर जाने वाले एक मार्ग पर मुड़ गए, जरगो बाँध यहाँ से 12 किलोमीटर दूर है ! अब हम मुख्य मार्ग को छोड़कर एक सहायक मार्ग पर आ चुके थे, ये मार्ग कई गाँवों को जोड़ता है, दो-तीन गाँव पार करने के बाद हम एक नहर पर पहुँचे, यहाँ बाएँ मुड़कर इस नहर के साथ-2 कुछ दूर तक चलते रहे ! इस नहर के किनारे भी एक-दो गाँव बसे हुए है, गाँव की औरतें नहर में कपड़े धो रही थी जबकि पुरुष अन्य कामों में व्यस्त थे ! ये नहर जरगो बाँध से ही निकलती है, नहर के साथ चलते हुए थोड़ी देर बाद हम एक जगह पहुँचे, जहाँ सड़क दाईं ओर मुड़ रही थी, सामने दूर तक फैला एक ऊँचा टीला दिखाई दे रहा था ! चंद्रेश भाई बोले, अगले कुछ ही मिनटों में यहाँ का नज़ारा बदलने वाला है, उनकी बात सुनकर मुझे समझते देर नहीं लगी कि हम बाँध पर पहुँच चुके है ! धीरे-2 सड़क मुड़कर टीले के ऊपर पहुँच गई, यहाँ का पहला नज़ारा देखते ही मेरी आँखें खुली की खुली रह गई ! वास्तव में यहाँ आकर नज़ारा बदल चुका था, नीचे खड़ा कोई व्यक्ति अनुमान भी नहीं लगा सकता कि इस टीले के उस पार ऐसा नज़ारा हो सकता है ! 

कई किलोमीटर दूर तक फैले इस बाँध में अथाह जल था, जिसे देखकर किसी की भी आँखें चौंधिया जाए ! जब हम लखनिया दरी से चले थे तो बादल छाए हुए थे लेकिन यहाँ जरगो बाँध पर पहुँचे तो अच्छी धूप खिल रही थी, सूरज की किरणें बाँध के पानी पर पड़कर आँखों पर तेज लग रही थी ! बाँध के इस किनारे खड़े होकर अंदाज़ा भी नहीं लग रहा था कि ये कितनी दूर तक फैला है ! चंद्रेश भाई ने बताया कि ये बाँध कई किलोमीटर में फैला है और इस बाँध से आस-पास के कई क्षेत्रों में खेती और अन्य कार्यों के लिए पानी की आपूर्ति होती है ! वैसे इस समय तो बाँध में पानी कम ही था, मुझे समझ नहीं आया कि बारिश का मौसम होने के बावजूद भी पानी कम क्यों था ! खैर, बाँध के एक किनारे अपनी मोटरसाइकल खड़ी करके हमने वहीं बैठ कर अपने साथ लाए फलों का भक्षण किया ! थोड़ी देर वहाँ बैठने के बाद हम बाँध से नीचे उतर आए और एक अन्य मार्ग से होते हुए अपनी अगली मंज़िल परमहंस आश्रम की ओर चल दिए ! वैसे हम जितनी देर भी बाँध पर रहे, इक्का-दुक्का लोग ही वहाँ दिखे, हाँ कुछ चरवाहे ज़रूर वहाँ अपने पशुओं को लेकर वहाँ घूम रहे थे ! 

एक बार फिर से हम गाँव के रास्तों से होते हुए आगे बढ़े, इन गाँवों में घूमते हुए अपने बचपन के दिन याद आ गए ! गाँव का माहौल तो हर जगह एक जैसा ही होता है और फिर मैने भी तो अपने बचपन का कुछ समय उत्तर प्रदेश के गाँवों में ही गुज़रा है ! जरगो बाँध से परमहंस आश्रम जाते हुए भी रास्ता कहीं-2 टूटा हुआ था ! जब किसी गाँव में घुसते तो छोटे-2 बच्चे सड़क किनारे खेलते हुए दिख जाते, फिर गाँव से बाहर आते ही एकदम सन्नाटा पसरा हुआ मिलता ! ये सिलसिला काफ़ी समय तक चलता रहा, बीच में सड़क किनारे खाली पड़ी पथरीली ज़मीन को देख कर मन में कई सवाल उठे, इस से पहले मैं कुछ पूछता, चंद्रेश भाई बोले, ये ऊसर ज़मीन खेती लायक नहीं है, लेकिन आने वाले समय में यहाँ उद्योग के लिए अच्छे अवसर पैदा हो सकते है ! मेरी ईश्वर से प्रार्थना है चंद्रेश भाई कि आपकी बात सच साबित हो और यहाँ उद्योग के अवसर बढ़े ताकि यहाँ आस-पास के लोगों के जीवन स्तर में भी सुधार हो ! 

रास्ते में एक-दो जगह कंपनी के बोर्ड देखकर अंदाज़ा हो गया कि यहाँ की कुछ ज़मीनें तो बिक भी चुकी है, एक जगह तो बड़े पैमाने पर टायर भी दिखे, पूछने पर पता चला कि यहाँ पुराने टायरों को री-साइकल किया जाता है ! जरगो बाँध से परमहंस आश्रम की दूरी महज 25 किलोमीटर है, लेकिन खराब रास्ता होने के कारण इस दूरी को तय करने में एक घंटे तक का समय लग ही जाता है ! सुबह से बाइक पर बैठे-2 मेरी कमर जवाब देने लगी थी, हर मोड़ पर यही लग रहा था कि शायद हम आश्रम पहुँच गए ! बीच-2 में जब खराब रास्ता आता तो मेरी हालत भी खराब हो जाती ! फिर जब आश्रम की ओर जाने वाले मार्ग पर पहुँचे तो शानदार मार्ग आ गया, यहाँ आश्रम के सामने एक चौराहा बना है ! मुख्य मार्ग से ये आश्रम 100 मीटर अंदर जाकर है, आश्रम तक जाने वाल्र मार्ग के दोनों ओर घने वृक्ष लगे है और गाड़ियाँ खड़ी करने के लिए भी बढ़िया इंतज़ाम है ! इस आश्रम के बारे में विस्तार से अगले लेख में लिखूंगा !


लखनिया दरी जाने का मार्ग

राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे जमा पानी

चंद्रेश जी और मैं

लखनिया दरी जाने का मार्ग

लखनिया दरी जाने का मार्ग

झरने से बहकर आता पानी

झरने से बहकर आता पानी

चंद्रेश भाई के साथ आए एक मित्र

लखनिया दरी जाने का प्रवेश द्वार


जलधारा के किनारे बैठे लोग




जलधारा के किनारे बैठे लोग


ऐसे नज़ारे वहाँ आम थे





झरने से बहकर आता पानी

कुछ दूरी तक ऐसा मार्ग भी बना है



लखनिया दरी से जरगो बाँध जाते हुए

लखनिया दरी से जरगो बाँध जाते हुए

टीले के उस पार ही जरगो बाँध है


जरगो बाँध में अथाह जल

जरगो बाँध में अथाह जल


जरगो बाँध से परमहंस आश्रम जाते हुए

जरगो बाँध से परमहंस आश्रम जाते हुए

परमहंस आश्रम जाने का मार्ग

क्यों जाएँ (Why to go Lakhaniya Dari): घने जंगलों के बीच स्थित लखनिया दरी बहुत सुंदर झरना है, झरने के पानी से नीचे काफ़ी दूर तक एक झील बन जाती है ! अगर खूबसूरत झरने देखने का मन हो तो ये जगह आपके लिए उपयुक्त है ! इसके अलावा मिर्ज़ापुर में बना जरगो बाँध भी यहाँ आने वाले लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र रहता है !

कब जाएँ (Best time to go Lakhaniya Dari): वैसे तो आप लखनिया दरी और जरगो बाँध देखने के लिए साल के किसी भी महीने में जा सकते है लेकिन इस झरने का मुख्य स्त्रोत बारिश का पानी ही है ! इसलिए अगर झरने का असली मज़ा लेना है तो बारिश के मौसम में जाएँ !

कैसे जाएँ (How to reach Lakhaniya Dari): चुनार रेलवे स्टेशन से इस झरने की दूरी मात्र 32 किलोमीटर है जबकि वाराणसी से ये दूरी बढ़कर 58 किलोमीटर हो जाती है ! इसके अलावा जरगो बाँध चुनार रेलवे स्टेशन से 15 किलोमीटर तो वाराणसी से 41 किलोमीटर दूर है ! दोनों ही रेलवे स्टेशन से आप टैक्सी ले सकते है जबकि शैयर्ड जीप या ऑटो से भी इन झरनों तक जा सकते है !

कहाँ रुके (Where to stay in Lakhaniya Dari): झरनों के पास तो रुकने के लिए कोई होटल उपलब्ध नहीं है आप चुनार या वाराणसी में किसी होटल में रात्रि विश्राम के लिए रुक सकते है !

क्या देखें (Places to see in Lakhaniya Dari): मिर्ज़ापुर में देखने के लिए कई जगहें है यहाँ विंध्यम फॉल, टांडा फॉल, लखनिया दरी, और सिद्धनाथ दरी के अलावा कई धार्मिक स्थल भी है ! इन धार्मिक स्थलों में विंध्यवासिनी देवी का मंदिर प्रमुख है ! इसके अलावा परमहंस आश्रम, जरगो बाँध, और चुनार का किला भी यहाँ आने वाले लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र रहते है !

अगले भाग में जारी...

मिर्जापुर यात्रा
  1. मिर्जापुर यात्रा - दिल्ली से वाराणसी (Mirzapur Trip - Delhi to Varanasi)
  2. लखनिया दरी और जरगो बाँध भ्रमण (Visit to Lakhaniya Daari and Jargo Dam)
  3. परमहंस आश्रम, सिद्धनाथ दरी और चुनार के किले का भ्रमण (Visit to Siddhnath Dari, ParamHans Aashram and Chunar Fort)
  4. रामनगर फ़ोर्ट और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (A Visit to Ramnagar Fort and BHU)
Pradeep Chauhan

घूमने का शौक आख़िर किसे नहीं होता, अक्सर लोग छुट्टियाँ मिलते ही कहीं ना कहीं घूमने जाने का विचार बनाने लगते है ! पर कुछ लोग समय के अभाव में तो कुछ लोग जानकारी के अभाव में बहुत सी अनछूई जगहें देखने से वंचित रह जाते है ! एक बार घूमते हुए ऐसे ही मन में विचार आया कि क्यूँ ना मैं अपने यात्रा अनुभव लोगों से साझा करूँ ! बस उसी दिन से अपने यात्रा विवरण को शब्दों के माध्यम से सहेजने में लगा हूँ ! घूमने जाने की इच्छा तो हमेशा रहती है, इसलिए अपनी व्यस्त ज़िंदगी से जैसे भी बन पड़ता है थोड़ा समय निकाल कर कहीं घूमने चला जाता हूँ ! फिलहाल मैं गुड़गाँव में एक निजी कंपनी में कार्यरत हूँ !

10 Comments

  1. परमहंस आश्रम अड़गड़ानंद स्वामी के आश्रम का ही नाम है ना

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    1. जी बिल्कुल सही पहचाना आपने !

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  2. वाह जी, गजब घुमक्कड़ी ! देखिये चंद्रेश जी के साथ हम कब घूमने जा पाते है । एक बार तो मिलते मिलते रह गए ।

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    1. पांडे जी ईश्वर से प्रार्थना है कि आपकी मनोकामना जल्द पूरी हो !

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  3. गुफा चित्रकारी के लिए यही स्तःन प्रसिध्हा है क्या ?

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    1. गुफा चित्रकारी की जानकारी मुझे नहीं थी !

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