रविवार, 26 मार्च 2017
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हम कुछ समय नदी के किनारे बैठकर बिताना चाहते थे पहले गोवा बीच जाने का विचार था लेकिन फिर सोचा जब आज ही देवप्रयाग निकलना है तो क्यों ना चलकर शिवपुरी में बैठा जाए ! इसलिए राफ्टिंग के बाद हमने अपनी गाड़ी उठाई और शिवपुरी के लिए निकल पड़े, शिवपुरी से थोड़ी पहले सड़क पर काफ़ी जाम लगा था ! हमने भी अपनी गाड़ी सड़क के किनारे खाली जगह देख कर खड़ी कर दी और एक ढाबे पर खाना खाने के लिए जाकर बैठ गए ! अगले पौने घंटे में खाना खाकर यहाँ से फारिक हुए, अब तक रोड पर लगा जाम भी खुल चुका था ! थोड़ी दूर जाकर हमने अपनी गाड़ी खड़ी की और नदी किनारे जाने के लिए पैदल चल दिए ! सड़क से नीचे उतरकर झाड़ियों को पार करने के बाद नदी किनारे कुछ टेंट लगे हुए थे, जहाँ कुछ लोग वॉलीबाल खेल रहे थे ! हम उन्हें अनदेखा करते हुए नदी की ओर चल दिए, जहाँ से हमने राफ्टिंग शुरू की थी वो जगह यहाँ से थोड़ी ही दूर थी ! आधा घंटा नदी किनारे बैठ कर गप्पे मारते रहे, शाम के सवा छह बज रहे थे, सूर्यास्त भी होने को था ! शाकिब को अपने घर निकलना था और हमें भी देवप्रयाग के लिए प्रस्थान करना था !
एक बार तो हमारा विचार हरिद्वार या ऋषिकेश में शाम को होने वाली गंगा आरती देखने का भी था लेकिन फिर समय का सदुपयोग करने के लिए हमने देवप्रयाग निकलने में ही अपनी भलाई समझी ! शाकिब को एक जीप में बिठाने के बाद हम भी अपनी मंज़िल की ओर बढ़ गए ! शिवपुरी से चले तो हल्की-2 रोशनी थी, गाड़ी मैं ही चला रहा था और मेरा उद्देश्य उजाले में ही अधिकतम दूरी तय करने का था ! यहाँ से देवप्रयाग की दूरी महज 55 किलोमीटर है जिसे तय करने में हमें डेढ़ घंटे का समय लगा ! देवप्रयाग से थोड़ी पहले एक जगह पहाड़ तोड़ने का काम चल रहा था जिसकी वजह से रास्ता बंद था ! गाड़ियों की लंबी कतार देखकर पहले तो लगा शायद कोई नाका है जहाँ पुलिस की चेकिंग चल रही है लेकिन थोड़ी देर बाद समझ आ गया कि आगे पहाड़ तोड़ने का काम चल रहा है ! पिछले वर्ष चोपता जाते हुए भी हमें एक जगह ऐसे ही रुकना पड़ा था जब माइनिंग की वजह से पत्थर सड़क पर आ गए थे ! हम गाड़ी बंद करके बाहर आ गए और हालात का जायजा लेने के लिए चल पड़े !
माइनिंग के पास खड़े एक कर्मचारी से पूछा तो पता चला कि मार्ग खुलने में अभी आधे घंटे का समय लगेगा ! बातें करते हुए कब आधा घंटा बीत गया पता भी नहीं चला, फिर मार्ग खुलते ही हम देवप्रयाग की ओर बढ़ गए जो यहाँ से ज़्यादा दूर नहीं था ! जब हम देवप्रयाग पहुँचे तो रात हो चुकी थी, सवा आठ बज रहे थे, पहाड़ी पर दूर से ही रोशनी देखकर हमें अंदाज़ा हो गया था कि कोई कस्बा आने को है ! देवप्रयाग पहुँचे तो एक मार्ग सीधे निकल रहा था जबकि दूसरा मार्ग यू-टर्न लेकर नीचे घाटी में जा रहा था, हम इसी मार्ग पर हो लिए ! थोड़ी दूर जाने के बाद एक पुल को पार करते हुए हम नदी के उस पार पहुँच गए, पुल पार करते ही दाईं ओर एक दुकान है ! हम इस दुकान से आगे निकल चुके थे फिर पता नहीं मन में क्या आया कि गाड़ी खड़ी करके पूछताछ करने के लिए वापिस इसी दुकान पर आ गए ! रास्ते की पूछताछ करते हुए ही होटल वाले से पूछ लिया कि रात को रुकने के लिए यहाँ कोई जगह मिलेगी क्या ? होटल वाला बोला रुकने का इंतज़ाम तो मेरे यहाँ भी है एक बार आप कमरा देख लो अगर पसंद आ जाए तो यहीं रुक जाना !
हमें कोई आपत्ति नहीं थी, कमरा देखा तो हमें ये पसंद आ गया और वैसे भी हम कौन सा पारिवारिक यात्रा पर थे जो कमरे को लेकर इतना ना-नुखूर करते ! कमरे का किराया उसने 800 रुपए बताया, लेकिन बाद में सौदा 600 रुपए में तय हो गया ! अपना लाइसेन्स देकर एक रजिस्टर में बाकी की जानकारी दर्ज की और रात्रि भोजन का कहकर अपना सामान लेकर कमरे में आ गए ! कमरे में आकर थोड़ी देर बैठकर बातें करते रहे, फिर टहलने के लिए बाहर चल दिए ! जब हम टहलने के लिए निकल रहे थे तो होटल वाला बोला, सर खाना समय से खा लेना ! सड़क पर थोड़ी दूर तक एक चक्कर लगाने के बाद हम वापिस होटल की छत पर आ गए ! यहाँ पीछे ही नदी बह रही थी जिसकी आवाज़ रात के सन्नाटे में साफ सुनाई दे रही थी ! समय 9 बज रहे थे, खाने का समय हो रहा था, मुझे तो ज़्यादा भूख नहीं थी लेकिन अपने दोनों साथियों के साथ खाना-खाने के लिए नीचे आ गया ! 60-60 रुपए की थाली में दोनों ने भरपेट भोजन किया, थाली में आलू-मटर की सब्जी, दाल और रोटियों के अलावा चटनी भी थी !
खा-पीकर फारिक हुए तो एक बार फिर से टहलने के लिए पुल की ओर चल दिए, वैसे ऐसे जंगली इलाक़ों में रात के समय सुनसान में जाना सुरक्षित तो नहीं होता ! लेकिन रोमांच भी कोई चीज़ होती है, ऐसे दुर्गम स्थानों पर घूमने आओ और रोमांच ना हो तो मज़ा ही नहीं आता ! घंटे भर नदी के पुल पर बैठकर हम तीनों बातें करते रहे इस दौरान पुल पर से दो-तीन वाहन ही गुज़रे ! रात के अंधेरे में दिखाई दो नहीं दे रहा था लेकिन हमें अंदाज़ा हो रहा था कि संगम यहाँ से ज़्यादा दूर नहीं है ! दिन भर राफ्टिंग करके थकान हो चुकी थी और फिर पिछली रात भी सफ़र में ही बीती थी ! कल भी हमें एक लंबा सफ़र तय करना था इसलिए ज़्यादा देर ना करते हुए हम तीनों सवा दस बजे तक वापिस अपने कमरे में पहुँच गए ! यहाँ बिस्तर पर लेटते ही कब नींद आ गई पता ही नहीं चला ! सुबह पाँच बजे जब मेरे मोबाइल में अलार्म बजा तब नींद खुली, मैने खिड़की से बाहर झाँककर देखा तो अभी अंधेरा ही था ! थोड़ी देर तक तो बिस्तर पर ही पड़ा रहा लेकिन फिर उठकर नित्य-क्रम में लग गया ताकि समय से तैयार होकर संगम पर जा सके !
सूर्योदय का नज़ारा देखने के लिए मैं होटल की छत पर भी गया लेकिन आस-पास ऊँची-2 पहाड़ियाँ होने के कारण सूर्योदय नहीं दिखाई दिया ! घंटे भर में ही हम तीनों नहा-धोकर तैयार हो चुके थे, कमरे से बाहर आए तो होटल वाले ने पूछा, "नाश्ते में क्या लोगे सर" ? हमने कहा नाश्ता रहने दो, हमें संगम पर जाकर पूजा करनी है वापिस आकर कुछ खा लेंगे ! होटल की छत पर जाकर कुछ फोटो खींचने के बाद हमने गाड़ी उठाई और संगम की ओर चल दिए जो यहाँ से 4 किलोमीटर दूर था ! मुख्य मार्ग पर सड़क के किनारे से सीढ़ियों से होता हुआ एक मार्ग संगम के लिए जाता है ! गाड़ी सड़क के किनारे खड़ी करके हम इस मार्ग पर चल दिए, खड़ी सीढ़ियाँ थी, इसलिए उतरने में ज़्यादा समय नहीं लगा ! नीचे संगम से पहले एक मंदिर बना है, कहते है भगवान राम ने लंका जीतकर लौटने के बाद इसी स्थान पर आकर एक यज्ञ किया था ! फिर प्रथम शताब्दी में आदि शंकर द्वारा रघुनाथ जी की मूर्ति स्थापित कर यहाँ इस मंदिर का निर्माण करवाया गया !
सदियों से भारतवर्ष के कौने-2 से यहाँ यात्री आते रहे है, मंदिर के पिछले भाग में लगे एक शिलालेख में ऐसे ही एक तीर्थ यात्री का उल्लेख है जो यहाँ प्रथम शताब्दी में आया था ! इस पवित्र मंदिर का जीर्णोदार काँची कामकोटि पीठ के पूज्यपाद श्री शंकराचार्य जी के आदेश पर भगवान राम के भक्तों ने सन 1986-87 में करवाया था ! मंदिर के मुख्य भवन के बाहरी हिस्से में अभी भी मरम्मत का काम चल रहा था, संगम पर जाने से पहले हमने भी इस मंदिर में रुककर प्रार्थना की, और मंदिर से संबंधित जानकारी ली ! मंदिर का मुख्य भवन एक चबूतरे पर बना हुआ है और मंदिर के बाहर एक खुला बरामदा है ! यहाँ से दर्शन करके बाहर निकले तो फिर सीढ़ियों से होते हुए संगम की ओर चल दिए, ये एक रिहायशी इलाक़ा है और सीढ़ियों के दोनों तरफ मकान बने है ! नीचे उतरते ही सामने कुछ दुकानें है, दाईं ओर जाने पर एक छोटा बाज़ार है जबकि बाईं ओर जाने वाला मार्ग संगम तक जाता है, हम इसी मार्ग पर हो लिए ! जिस समय हम संगम पर पहुँचे, वहाँ ज़्यादा भीड़ नहीं थी, 2-4 लोग ही पूजा करने में लगे थे !
कुछ पंडे भी थे जो लोगों के आने की बाट जोह रहे थे, हमें आता देखकर उनके चेहरे पर चमक लौट आई, एक ने तो हमें पूजा करवाने का न्योता भी दिया जिसे हमने नकार दिया ! हम यहाँ कोई मन्नत माँग कर तो आए नहीं थी, दर्शन करने आए थे और वो तो हम इन पंडो के बिना भी कर सकते थे ! हमने पहले तो माँ गंगा को हाथ जोड़कर नमन किया, गंगाजल को माथे से लगाया और फिर प्रार्थना करने लगे ! जब प्रार्थना हो गई तो आस-पास घूमकर संगम का मुआयना किया, यहाँ संगम पर दो पूजनीय स्थान बनाए गए है, एक छोटी गुफा भी बनी है, जिसके बाहर हनुमान जी की मूर्ति रखी हुई है, लेकिन द्वार पर ही पंडा बैठा था, हम बाहर से ही हाथ जोड़कर आगे बढ़े ! एक जगह आटा गूँथ कर रखा हुआ था, ताकि यहाँ आने वाले श्रधालु दान स्वरूप इन आटों की गोलियाँ बनाकर नदी में मौजूद मछलियों को डाल सके ! हमने भी दक्षिणा स्वरूप कुछ पैसे देकर यहाँ से आटा लिया और घाट पर खड़े होकर आटे की गोलियाँ बनाकर पानी में डालने लगे !
आटे की गोली पानी में जाते ही सैकड़ों मछलियाँ एक साथ टूटकर गोली लपकने के लिए पानी के बाहर आती और फिर पल भर में ही पानी में लुप्त हो जाती ! बहुत बड़ी-2 मछलियाँ थी, काफ़ी देर तक हम इसी क्रम में लगे रहे ! फिर एक किनारे खड़े होकर दोनों नदियों को निहारने लगे, संगम में मिलने वाली नदियों की बात करें तो पूर्व दिशा से अलकनंदा नदी शांत स्वरूप से बहती हुई आती है जबकि उत्तर दिशा से गौमुख से अपने पूरे वेग से बहकर आती भागीरथी है ! भागीरथी का ये रौद्र रूप देखकर कोई भी सहम जाए, ऐसा लगता है जैसे ये अपने वेग से सबकुछ बहकर ले जाने को आतुर हो, लेकिन संगम पर पहुँचते ही ऐसा प्रतीत होता है कि अलकनंदा भागीरथी को शांत करने का प्रयास कर रही हो ! इस संगम के बाद इस नदी को गंगा के नाम से जाना जाता है और इसके बहाव में भी कुछ कमी आ जाती है ! कभी-2 तो ऐसा मन करता है कि यहाँ घंटो बैठकर दोनों नदियों के इस मिलन को अविरल देखते रहो ! वैसे हमें भी यहाँ बैठे-2 कब एक घंटे से अधिक का समय बीत गया पता ही नहीं चला, दिन की शुरुआत अच्छी रही और संगम स्थल पर अच्छा समय व्यतीत हुआ !
देवप्रयाग के पास का एक चित्र |
माइनिंग के पास खड़े एक कर्मचारी से पूछा तो पता चला कि मार्ग खुलने में अभी आधे घंटे का समय लगेगा ! बातें करते हुए कब आधा घंटा बीत गया पता भी नहीं चला, फिर मार्ग खुलते ही हम देवप्रयाग की ओर बढ़ गए जो यहाँ से ज़्यादा दूर नहीं था ! जब हम देवप्रयाग पहुँचे तो रात हो चुकी थी, सवा आठ बज रहे थे, पहाड़ी पर दूर से ही रोशनी देखकर हमें अंदाज़ा हो गया था कि कोई कस्बा आने को है ! देवप्रयाग पहुँचे तो एक मार्ग सीधे निकल रहा था जबकि दूसरा मार्ग यू-टर्न लेकर नीचे घाटी में जा रहा था, हम इसी मार्ग पर हो लिए ! थोड़ी दूर जाने के बाद एक पुल को पार करते हुए हम नदी के उस पार पहुँच गए, पुल पार करते ही दाईं ओर एक दुकान है ! हम इस दुकान से आगे निकल चुके थे फिर पता नहीं मन में क्या आया कि गाड़ी खड़ी करके पूछताछ करने के लिए वापिस इसी दुकान पर आ गए ! रास्ते की पूछताछ करते हुए ही होटल वाले से पूछ लिया कि रात को रुकने के लिए यहाँ कोई जगह मिलेगी क्या ? होटल वाला बोला रुकने का इंतज़ाम तो मेरे यहाँ भी है एक बार आप कमरा देख लो अगर पसंद आ जाए तो यहीं रुक जाना !
हमें कोई आपत्ति नहीं थी, कमरा देखा तो हमें ये पसंद आ गया और वैसे भी हम कौन सा पारिवारिक यात्रा पर थे जो कमरे को लेकर इतना ना-नुखूर करते ! कमरे का किराया उसने 800 रुपए बताया, लेकिन बाद में सौदा 600 रुपए में तय हो गया ! अपना लाइसेन्स देकर एक रजिस्टर में बाकी की जानकारी दर्ज की और रात्रि भोजन का कहकर अपना सामान लेकर कमरे में आ गए ! कमरे में आकर थोड़ी देर बैठकर बातें करते रहे, फिर टहलने के लिए बाहर चल दिए ! जब हम टहलने के लिए निकल रहे थे तो होटल वाला बोला, सर खाना समय से खा लेना ! सड़क पर थोड़ी दूर तक एक चक्कर लगाने के बाद हम वापिस होटल की छत पर आ गए ! यहाँ पीछे ही नदी बह रही थी जिसकी आवाज़ रात के सन्नाटे में साफ सुनाई दे रही थी ! समय 9 बज रहे थे, खाने का समय हो रहा था, मुझे तो ज़्यादा भूख नहीं थी लेकिन अपने दोनों साथियों के साथ खाना-खाने के लिए नीचे आ गया ! 60-60 रुपए की थाली में दोनों ने भरपेट भोजन किया, थाली में आलू-मटर की सब्जी, दाल और रोटियों के अलावा चटनी भी थी !
खा-पीकर फारिक हुए तो एक बार फिर से टहलने के लिए पुल की ओर चल दिए, वैसे ऐसे जंगली इलाक़ों में रात के समय सुनसान में जाना सुरक्षित तो नहीं होता ! लेकिन रोमांच भी कोई चीज़ होती है, ऐसे दुर्गम स्थानों पर घूमने आओ और रोमांच ना हो तो मज़ा ही नहीं आता ! घंटे भर नदी के पुल पर बैठकर हम तीनों बातें करते रहे इस दौरान पुल पर से दो-तीन वाहन ही गुज़रे ! रात के अंधेरे में दिखाई दो नहीं दे रहा था लेकिन हमें अंदाज़ा हो रहा था कि संगम यहाँ से ज़्यादा दूर नहीं है ! दिन भर राफ्टिंग करके थकान हो चुकी थी और फिर पिछली रात भी सफ़र में ही बीती थी ! कल भी हमें एक लंबा सफ़र तय करना था इसलिए ज़्यादा देर ना करते हुए हम तीनों सवा दस बजे तक वापिस अपने कमरे में पहुँच गए ! यहाँ बिस्तर पर लेटते ही कब नींद आ गई पता ही नहीं चला ! सुबह पाँच बजे जब मेरे मोबाइल में अलार्म बजा तब नींद खुली, मैने खिड़की से बाहर झाँककर देखा तो अभी अंधेरा ही था ! थोड़ी देर तक तो बिस्तर पर ही पड़ा रहा लेकिन फिर उठकर नित्य-क्रम में लग गया ताकि समय से तैयार होकर संगम पर जा सके !
सूर्योदय का नज़ारा देखने के लिए मैं होटल की छत पर भी गया लेकिन आस-पास ऊँची-2 पहाड़ियाँ होने के कारण सूर्योदय नहीं दिखाई दिया ! घंटे भर में ही हम तीनों नहा-धोकर तैयार हो चुके थे, कमरे से बाहर आए तो होटल वाले ने पूछा, "नाश्ते में क्या लोगे सर" ? हमने कहा नाश्ता रहने दो, हमें संगम पर जाकर पूजा करनी है वापिस आकर कुछ खा लेंगे ! होटल की छत पर जाकर कुछ फोटो खींचने के बाद हमने गाड़ी उठाई और संगम की ओर चल दिए जो यहाँ से 4 किलोमीटर दूर था ! मुख्य मार्ग पर सड़क के किनारे से सीढ़ियों से होता हुआ एक मार्ग संगम के लिए जाता है ! गाड़ी सड़क के किनारे खड़ी करके हम इस मार्ग पर चल दिए, खड़ी सीढ़ियाँ थी, इसलिए उतरने में ज़्यादा समय नहीं लगा ! नीचे संगम से पहले एक मंदिर बना है, कहते है भगवान राम ने लंका जीतकर लौटने के बाद इसी स्थान पर आकर एक यज्ञ किया था ! फिर प्रथम शताब्दी में आदि शंकर द्वारा रघुनाथ जी की मूर्ति स्थापित कर यहाँ इस मंदिर का निर्माण करवाया गया !
सदियों से भारतवर्ष के कौने-2 से यहाँ यात्री आते रहे है, मंदिर के पिछले भाग में लगे एक शिलालेख में ऐसे ही एक तीर्थ यात्री का उल्लेख है जो यहाँ प्रथम शताब्दी में आया था ! इस पवित्र मंदिर का जीर्णोदार काँची कामकोटि पीठ के पूज्यपाद श्री शंकराचार्य जी के आदेश पर भगवान राम के भक्तों ने सन 1986-87 में करवाया था ! मंदिर के मुख्य भवन के बाहरी हिस्से में अभी भी मरम्मत का काम चल रहा था, संगम पर जाने से पहले हमने भी इस मंदिर में रुककर प्रार्थना की, और मंदिर से संबंधित जानकारी ली ! मंदिर का मुख्य भवन एक चबूतरे पर बना हुआ है और मंदिर के बाहर एक खुला बरामदा है ! यहाँ से दर्शन करके बाहर निकले तो फिर सीढ़ियों से होते हुए संगम की ओर चल दिए, ये एक रिहायशी इलाक़ा है और सीढ़ियों के दोनों तरफ मकान बने है ! नीचे उतरते ही सामने कुछ दुकानें है, दाईं ओर जाने पर एक छोटा बाज़ार है जबकि बाईं ओर जाने वाला मार्ग संगम तक जाता है, हम इसी मार्ग पर हो लिए ! जिस समय हम संगम पर पहुँचे, वहाँ ज़्यादा भीड़ नहीं थी, 2-4 लोग ही पूजा करने में लगे थे !
कुछ पंडे भी थे जो लोगों के आने की बाट जोह रहे थे, हमें आता देखकर उनके चेहरे पर चमक लौट आई, एक ने तो हमें पूजा करवाने का न्योता भी दिया जिसे हमने नकार दिया ! हम यहाँ कोई मन्नत माँग कर तो आए नहीं थी, दर्शन करने आए थे और वो तो हम इन पंडो के बिना भी कर सकते थे ! हमने पहले तो माँ गंगा को हाथ जोड़कर नमन किया, गंगाजल को माथे से लगाया और फिर प्रार्थना करने लगे ! जब प्रार्थना हो गई तो आस-पास घूमकर संगम का मुआयना किया, यहाँ संगम पर दो पूजनीय स्थान बनाए गए है, एक छोटी गुफा भी बनी है, जिसके बाहर हनुमान जी की मूर्ति रखी हुई है, लेकिन द्वार पर ही पंडा बैठा था, हम बाहर से ही हाथ जोड़कर आगे बढ़े ! एक जगह आटा गूँथ कर रखा हुआ था, ताकि यहाँ आने वाले श्रधालु दान स्वरूप इन आटों की गोलियाँ बनाकर नदी में मौजूद मछलियों को डाल सके ! हमने भी दक्षिणा स्वरूप कुछ पैसे देकर यहाँ से आटा लिया और घाट पर खड़े होकर आटे की गोलियाँ बनाकर पानी में डालने लगे !
आटे की गोली पानी में जाते ही सैकड़ों मछलियाँ एक साथ टूटकर गोली लपकने के लिए पानी के बाहर आती और फिर पल भर में ही पानी में लुप्त हो जाती ! बहुत बड़ी-2 मछलियाँ थी, काफ़ी देर तक हम इसी क्रम में लगे रहे ! फिर एक किनारे खड़े होकर दोनों नदियों को निहारने लगे, संगम में मिलने वाली नदियों की बात करें तो पूर्व दिशा से अलकनंदा नदी शांत स्वरूप से बहती हुई आती है जबकि उत्तर दिशा से गौमुख से अपने पूरे वेग से बहकर आती भागीरथी है ! भागीरथी का ये रौद्र रूप देखकर कोई भी सहम जाए, ऐसा लगता है जैसे ये अपने वेग से सबकुछ बहकर ले जाने को आतुर हो, लेकिन संगम पर पहुँचते ही ऐसा प्रतीत होता है कि अलकनंदा भागीरथी को शांत करने का प्रयास कर रही हो ! इस संगम के बाद इस नदी को गंगा के नाम से जाना जाता है और इसके बहाव में भी कुछ कमी आ जाती है ! कभी-2 तो ऐसा मन करता है कि यहाँ घंटो बैठकर दोनों नदियों के इस मिलन को अविरल देखते रहो ! वैसे हमें भी यहाँ बैठे-2 कब एक घंटे से अधिक का समय बीत गया पता ही नहीं चला, दिन की शुरुआत अच्छी रही और संगम स्थल पर अच्छा समय व्यतीत हुआ !
अब यहाँ से वापसी का समय हो रहा था धूप भी काफ़ी तेज लग रही थी, फिर अपने साथ लाए 4-5 बोतलों में हमने गंगाजल लिया और यहाँ से वापसी की राह पकड़ी ! यहाँ से चले तो ऊपर वाले बाज़ार में हल्की पेट-पूजा की और फिर वापिस अपनी गाड़ी की ओर चल दिए ! गाड़ी लेकर साढ़े दस बजे अपने होटल पहुँचे, यहाँ सारा सामान अपने-2 बैग में रखने के बाद होटल वाले का बिल चुकाया और गाड़ी में सवार होकर अपने आज के सफ़र पर पौडी की ओर निकल पड़े !
अगर आप भी देवप्रयाग का रुख़ कर रहे है तो आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि यहाँ रुकने के लिए बहुत विकल्प है, कोई बड़ा होटल तो नहीं दिखा लेकिन छोटे-2 कई होटल, और होमस्टे मिल जाएँगे ! खाने-पीने में भी अधिकतर जगहों पर घर जैसा ही खाना मिलेगा, संगम पर आप अपनी सहूलियत के हिसाब से कभी भी जा सकते है, लेकिन घाट पर नहाते हुए सावधानी ज़रूर बरते ! चलिए इस लेख पर यहीं विराम लगाता हूँ अगले लेख में आपको अदवानी होते हुए लैंसडाउन जाने वाले मार्ग पर पड़ने वाले नज़ारों की सैर कराऊँगा !
शिवपुरी में गंगाजी के किनारे |
शिवपुरी में गंगाजी के किनारे |
शिवपुरी में गंगाजी के किनारे |
देवप्रयाग में होटल की छत पर |
देवप्रयाग में होटल की छत पर |
देवप्रयाग में संगम का एक दृश्य |
देवप्रयाग में संगम का एक दृश्य |
देवप्रयाग में संगम का एक दृश्य |
संगम की ओर जाने का मार्ग |
संगम से पहले बना रामजी का मंदिर |
मंदिर प्रांगण का एक दृश्य |
मंदिर प्रांगण का एक दृश्य |
भागीरथी अपने पूरे वेग से आती हुई |
नदी में दिखाई देती मछलियाँ |
देवप्रयाग में संगम का एक दृश्य |
कुमायूँ की बाल मिठाई गढ़वाल क्षेत्र में भी |
गेस्ट हाउस संचालक के साथ एक चित्र |
क्यों जाएँ (Why to go Devprayag): अगर आप शहर की भीड़-भाड़ से दूर सुकून के कुछ पल बिताना चाहते है तो देवप्रयाग आकर आप निराश नहीं होंगे ! यहाँ संगम स्थल पर आप घंटो बैठकर प्रकृति के नज़ारों का आनंद ले सकते है !
कब जाएँ (Best time to go Devprayag): देवप्रयाग आप साल भर किसी भी महीने में जा सकते है लेकिन बारिश के मौसम में उत्तराखंड में बादल फटने की घटनाएँ अक्सर होती रहती है इसलिए बारिश के दिनों में तो ना ही जाएँ ! अगर फिर भी बारिश के मौसम में जाने का विचार बने तो अतिरिक्त सावधानी बरतें !
कैसे जाएँ (How to reach Devprayag): दिल्ली से देवप्रयाग की कुल दूरी 316 किलोमीटर है जिसे तय करने में आपको लगभग 8 से 9 घंटे का समय लगेगा ! दिल्ली से देवप्रयाग जाने के लिए सबसे बढ़िया मार्ग रुड़की-हरिद्वार-ऋषिकेश होते हुए है, दिल्ली से हरिद्वार तक 4 लेन राजमार्ग बना है जबकि ऋषिकेश से आगे पहाड़ी मार्ग शुरू हो जाता है और सिंगल मार्ग है !
कहाँ रुके (Where to stay in Devprayag): देवप्रयाग एक पहाड़ी क्षेत्र है यहाँ आपको छोटे-बड़े कई होटल मिल जाएँगे, पहाड़ों पर स्थानीय लोग होमस्टे भी कराते है ! जहाँ होटल के लिए आपको 600 से 1500 रुपए तक खर्च करने पड़ सकते है वहीं होमस्टे थोड़ा सस्ता पड़ेगा ! फिर स्थानीय लोगों के बीच रहने से आप पहाड़ी लोगों की संस्कृति और रहन-सहन को करीब से जान पाएँगे !
क्या देखें (Places to see in Devprayag): देवप्रयाग एक धार्मिक स्थल है, यहाँ भागीरथी और अलकनंदा नदियों के संगम पर बना रघुनाथ जी मंदिर देवप्रयाग आने वालों के लिए सदा से ही आकर्षण का केंद्र रहा है !
अगले भाग में जारी...
ऋषिकेश लैंसडाउन यात्रा
कब जाएँ (Best time to go Devprayag): देवप्रयाग आप साल भर किसी भी महीने में जा सकते है लेकिन बारिश के मौसम में उत्तराखंड में बादल फटने की घटनाएँ अक्सर होती रहती है इसलिए बारिश के दिनों में तो ना ही जाएँ ! अगर फिर भी बारिश के मौसम में जाने का विचार बने तो अतिरिक्त सावधानी बरतें !
कैसे जाएँ (How to reach Devprayag): दिल्ली से देवप्रयाग की कुल दूरी 316 किलोमीटर है जिसे तय करने में आपको लगभग 8 से 9 घंटे का समय लगेगा ! दिल्ली से देवप्रयाग जाने के लिए सबसे बढ़िया मार्ग रुड़की-हरिद्वार-ऋषिकेश होते हुए है, दिल्ली से हरिद्वार तक 4 लेन राजमार्ग बना है जबकि ऋषिकेश से आगे पहाड़ी मार्ग शुरू हो जाता है और सिंगल मार्ग है !
कहाँ रुके (Where to stay in Devprayag): देवप्रयाग एक पहाड़ी क्षेत्र है यहाँ आपको छोटे-बड़े कई होटल मिल जाएँगे, पहाड़ों पर स्थानीय लोग होमस्टे भी कराते है ! जहाँ होटल के लिए आपको 600 से 1500 रुपए तक खर्च करने पड़ सकते है वहीं होमस्टे थोड़ा सस्ता पड़ेगा ! फिर स्थानीय लोगों के बीच रहने से आप पहाड़ी लोगों की संस्कृति और रहन-सहन को करीब से जान पाएँगे !
क्या देखें (Places to see in Devprayag): देवप्रयाग एक धार्मिक स्थल है, यहाँ भागीरथी और अलकनंदा नदियों के संगम पर बना रघुनाथ जी मंदिर देवप्रयाग आने वालों के लिए सदा से ही आकर्षण का केंद्र रहा है !
ऋषिकेश लैंसडाउन यात्रा
- दिल्ली से ऋषिकेश की सड़क यात्रा (A Road Trip to Rishikesh from Delhi)
- रोमांचक खेलों का केंद्र ऋषिकेश (Adventure Games in Rishikesh)
- देवप्रयाग में है भागीरथी और अलकनंदा का संगम (Confluence of Alaknanda and Bhagirathi Rivers - DevPrayag)
- पौडी - लैंसडाउन मार्ग पर है खूबसूरत नज़ारे (A Road Trip from Devprayag to Lansdowne)
- ताड़केश्वर महादेव मंदिर (A Trip to Tarkeshwar Mahadev Temple)
सर, दोनों नदियों के संगम के दृश्य तो आपने दिखाये ही नहीं।
ReplyDeleteसंगम के दृश्य भी दिए है लेख में, 7,8,9, और 19 नंबर चित्र देखिए !
Deleteबढ़िया पोस्ट भाई....यादे ताजा हो गयी हम भी पिछले महीने जाकर आये
ReplyDeleteबहुत बढ़िया, यादें ताज़ा हो गई इससे अच्छी क्या बात हो सकती है ! लग रहा है लेख लिखना सफल हुआ !
Deleteशानदार ! जबरजस्त !! जिंदाबाद !!!
ReplyDeleteवाह बुआ, आपकी तारीफ़ का भी जवाब नहीं !
Deleteबहुत अच्छा
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