वीरवार, 17 नवंबर 2016
काफ़ी सोच विचार करने के बाद भी समझ नहीं आ रहा कि इस यात्रा को कहाँ से शुरू करूँ, चलिए, यात्रा की योजना कैसे बनी इस बात से ही शुरुआत करते है ! यात्रा शुरू करने से पहले आपको बता दूँ कि इस बार मैं आपको राजस्थान के प्रसिद्ध शहर "उदयपुर" की घुमक्कडी पर लेकर चल रहा हूँ ! वैसे तो मैं एक बार पहले 2011 में भी उदयपुर जा चुका हूँ, तब मैं और शशांक दिसंबर के अंतिम सप्ताह में वहाँ गए थे और कई जगहें घूम कर आए थे लेकिन उदयपुर में इतना कुछ देखने को है कि एक बार में मैं सबकुछ नहीं देख पाया ! मेरी पिछली उदयपुर यात्रा को आप यहाँ क्लिक करके विस्तार से पढ़ सकते है ! उदयपुर से वापिस आने के बाद मन के किसी कोने में दबी हुई इच्छा थी कि मौका मिलेगा तो एक बार फिर से उदयपुर जाकर उन जगहों को ज़रूर देखूँगा ! ये दबी इच्छा पिछले साल जागृत हो उठी जब मेरे कुछ मित्रों ने उदयपुर यात्रा पर साथ चलने के लिए मुझसे पूछा ! हुआ कुछ यूँ कि रोजाना ऑफिस साथ चलने वाले कुछ मित्र उदयपुर जाने की योजना बना रहे थे, मेरे मना करने के बावजूद उन्होनें मुझे भी इस यात्रा में शामिल कर लिया !
उदयपुर में फ़तेह सागर झील का एक दृश्य (A view of Fateh Sagar Lake, Udaipur) |
ट्रेन की टिकट आरक्षित करवाने के बाद उन्होनें मुझे जब इस बात से अवगत कराया तो मैने भी इस यात्रा पर अपनी मुहर लगा ही दी ! वैसे भी किसी यात्रा पर गए हुए काफ़ी समय हो गया था 4 महीने पहले जुलाई में लखनिया दरी यात्रा से आने के बाद कहीं घूमने नहीं जा पाया था ! बात नवंबर 2016 के प्रथम सप्ताह की है, जब दुष्यंत ने मुझे फोन करके बताया कि उदयपुर घूमने जाने के लिए उसने मेरी भी टिकट करवा दी है, थोड़ी देर की बातचीत के बाद उसने फोन रख दिया ! फिर अगले कुछ दिन तो सुबह-शाम ऑफिस आते-जाते हुए गाड़ी में इसी बात पर चर्चा चलती रही ! इसी बीच 8 नवंबर की शाम को भारत सरकार द्वारा नोटबंदी का ऐतिहासिक फ़ैसला आते ही चारों तरफ अफ़रा-तफ़री का माहौल हो गया ! एक बार तो हमें भी लगा कि नोटबंदी का असर निश्चित रूप से हमारी यात्रा पर भी पड़ेगा, क्योंकि बिना नकदी के तो कोई कैसे घूमने जाएगा ! एक बार यात्रा टिकटें रद्द करवाने का विचार भी बना, लेकिन ना जाने क्या सोचकर ये फ़ैसला यात्रा के अंतिम दिनों पर टाल दिया !
दुष्यंत बोला, अगर यात्रा वाले दिन से 1-2 दिन पहले तक नकदी का इंतज़ाम नहीं हुआ तो ही टिकट रद्द करेंगे ! नोटबंदी के समय हमारी यात्रा को 10 दिन बाकी थे, जैसे-तैसे करके एक हफ़्ता बीत गया ! हम इस इंतजार में थे कि शायद हफ्ते भर में हालात कुछ सामान्य हो जाएँ ! लेकिन इस दौरान बैंको के बाहर लगी कतारे छोटी होने की बजाय हर दिन बढ़ती जा रही थी, एटीएम भी नोटबंदी के समय सूखे की मार झेल रहे थे, कुछ में से तो पुराने नोट भी निकल रहे थे ! बैंक तो काउंटर पर ही कैश की आपूर्ति नहीं कर पा रहे थे, समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर ये यात्रा बिना नकदी के कैसे संपन्न होगी ! एक-दो दिन एटीएम की लाइन में लगकर जो नकद मिला भी वो पर्याप्त नहीं था, अब तो लगभग ये यात्रा स्थगित ही थी ! आख़िरकार यात्रा से दो दिन पहले थोड़ी ज़ोर-आज़माइश के बाद इतने पैसों का इंतज़ाम हो गया, कि यात्रा पर जाया जा सके ! निर्धारित दिन हम सब काम ख़त्म करने के बाद अपने-2 दफ़्तर से निकले और बल्लभगढ़ रेलवे स्टेशन पर जाने के लिए चल पड़े !
उदयपुर जाने के लिए हमें "मेवाड़ एक्सप्रेस" (Mewar Express, Train Number 12963) यहीं से पकड़नी थी, यात्रा पर जाने वाले कुछ साथी हमें बल्लभगढ़ रेलवे स्टेशन पर मिलने वाले थे जबकि दो लोग निज़ामुद्दीन से इसी ट्रेन में बैठकर आने वाले थे ! इस यात्रा पर हम कुल 8 लोग जा रहे थे, जितेंद्र, हवासिंह, देव, दुष्यंत, नरेंद्र, मोहनश्याम, रवि, और मैं ! मैं दूसरी बार इतने बड़े ग्रुप में यात्रा कर रहा था इससे पहले शिमला भी हम 8 लोग गए थे ! प्लेटफार्म पर पहुँचे तो बाकि साथी यहाँ पहले से ही पहुँच चुके थे, ट्रेन की प्रतीक्षा करते हुए यहाँ हँसी-मज़ाक का दौर चल रहा था, इनमें से कुछ लोगों को तो मैं पहले से जानता था जबकि 2-3 लोग ऐसे भी थे जिनसे मैं पहली बार मिल रहा था ! ट्रेन अपने निर्धारित समय पर आकर स्टेशन पर खड़ी हो गई ! हम सबकी सीटें कन्फर्म थी इसलिए बिना किसी भागा-दौड़ी के सब आराम से एक डिब्बे में चढ़े और अपनी सीट पर पहुँच गए ! थोड़ी देर में ही ट्रेन ने एक लंबा सायरन दिया और चल दी, यहाँ से चलने के बाद ट्रेन का अगला ठहराव मथुरा में था !
सामान सीटों के नीचे रखने के बाद सब अपनी-2 सीट पर बैठ गए, एक परिचय के बाद बातों का दौर चल पड़ा, थोड़ी ही देर में हम-सब काफ़ी घुल-मिल गए ! बल्लभगढ़ से चले हुए एक घंटा हो चुका था और भूख भी लगने लगी थी, जो मित्र घर जाकर स्टेशन आए थे वो हम सबके लिए रात्रि भोजन ले आए थे ! फिर तो बातों के साथ खाने का दौर चल पड़ा, जो काफ़ी देर तक चलता रहा ! इस बीच हमें पता चला कि इस कोच में एक व्यक्ति को जयपुर जाना था और वो ग़लती से इस ट्रेन में चढ़ गया था ! लोग उसे तरह-2 की सलाह दे रहे थे मथुरा निकल चुका था फिर उसने जब हमसे पूछा तो हमने उसे कह दिया या तो भरतपुर उतरकर यहाँ से जयपुर की बस पकड़ लो या फिर सवाई माधोपुर से ट्रेन पकड़ लेना, पता नहीं वो व्यक्ति कहाँ उतरा ! हम लोगों का बातों का दौर जारी था, जब बाते करते हुए काफ़ी समय बीत गया तो हम सब आराम करने के लिए अपनी-2 सीटों पर पहुँच गए ! थोड़ी देर की मशक्कत के बाद नींद भी आ गई, ये ट्रेन शाम साढ़े सात बजे बल्लभगढ़ से चलती है और सुबह साढ़े सात बजे से 10 मिनट पहले ही उदयपुर पहुँचा देती है इस तरह 710 किलोमीटर की दूरी तय करने में 12 घंटे का समय लेती है !
उदयपुर जाने के लिए हमें "मेवाड़ एक्सप्रेस" (Mewar Express, Train Number 12963) यहीं से पकड़नी थी, यात्रा पर जाने वाले कुछ साथी हमें बल्लभगढ़ रेलवे स्टेशन पर मिलने वाले थे जबकि दो लोग निज़ामुद्दीन से इसी ट्रेन में बैठकर आने वाले थे ! इस यात्रा पर हम कुल 8 लोग जा रहे थे, जितेंद्र, हवासिंह, देव, दुष्यंत, नरेंद्र, मोहनश्याम, रवि, और मैं ! मैं दूसरी बार इतने बड़े ग्रुप में यात्रा कर रहा था इससे पहले शिमला भी हम 8 लोग गए थे ! प्लेटफार्म पर पहुँचे तो बाकि साथी यहाँ पहले से ही पहुँच चुके थे, ट्रेन की प्रतीक्षा करते हुए यहाँ हँसी-मज़ाक का दौर चल रहा था, इनमें से कुछ लोगों को तो मैं पहले से जानता था जबकि 2-3 लोग ऐसे भी थे जिनसे मैं पहली बार मिल रहा था ! ट्रेन अपने निर्धारित समय पर आकर स्टेशन पर खड़ी हो गई ! हम सबकी सीटें कन्फर्म थी इसलिए बिना किसी भागा-दौड़ी के सब आराम से एक डिब्बे में चढ़े और अपनी सीट पर पहुँच गए ! थोड़ी देर में ही ट्रेन ने एक लंबा सायरन दिया और चल दी, यहाँ से चलने के बाद ट्रेन का अगला ठहराव मथुरा में था !
सामान सीटों के नीचे रखने के बाद सब अपनी-2 सीट पर बैठ गए, एक परिचय के बाद बातों का दौर चल पड़ा, थोड़ी ही देर में हम-सब काफ़ी घुल-मिल गए ! बल्लभगढ़ से चले हुए एक घंटा हो चुका था और भूख भी लगने लगी थी, जो मित्र घर जाकर स्टेशन आए थे वो हम सबके लिए रात्रि भोजन ले आए थे ! फिर तो बातों के साथ खाने का दौर चल पड़ा, जो काफ़ी देर तक चलता रहा ! इस बीच हमें पता चला कि इस कोच में एक व्यक्ति को जयपुर जाना था और वो ग़लती से इस ट्रेन में चढ़ गया था ! लोग उसे तरह-2 की सलाह दे रहे थे मथुरा निकल चुका था फिर उसने जब हमसे पूछा तो हमने उसे कह दिया या तो भरतपुर उतरकर यहाँ से जयपुर की बस पकड़ लो या फिर सवाई माधोपुर से ट्रेन पकड़ लेना, पता नहीं वो व्यक्ति कहाँ उतरा ! हम लोगों का बातों का दौर जारी था, जब बाते करते हुए काफ़ी समय बीत गया तो हम सब आराम करने के लिए अपनी-2 सीटों पर पहुँच गए ! थोड़ी देर की मशक्कत के बाद नींद भी आ गई, ये ट्रेन शाम साढ़े सात बजे बल्लभगढ़ से चलती है और सुबह साढ़े सात बजे से 10 मिनट पहले ही उदयपुर पहुँचा देती है इस तरह 710 किलोमीटर की दूरी तय करने में 12 घंटे का समय लेती है !
रात को बढ़िया नींद आई, सुबह जब आँख खुली तो उदयपुर पहुँचने वाले थे, ट्रेन समय से उदयपुर पहुँची, ये इस ट्रेन का अंतिम पड़ाव है ! हम सब अपना-2 सामान लेकर गाड़ी से उतरे और स्टेशन से बाहर की ओर चल दिए ! स्टेशन परिसर में हल्दीघाटी के युद्ध का बढ़िया चित्रण किया गया है, यहाँ रुककर सब फोटो खींचने में लग गए ! स्टेशन के बाहर ही 2 एटीएम भी है, दोनों में से किसी पर भी भीड़ नहीं थी, नोटबंदी के दौरान तो किसी भी एटीएम के सामने जाते ही आँखों में एक चमक सी आ जाती थी ! हमें लगा शायद नोटबंदी के कारण यहाँ भी नकदी की किल्लत हो रही होगी ! फिर पता नहीं मन में क्या आया कि मैने जेब से अपना डेबिट कार्ड निकाला और एटीएम मशीन पर पहुँच गया, जब पैसे निकले तो मेरी खुशी का ठिकाना नहीं था ! नोटबंदी के दौरान अपने ही पैसे निकालने पर जो खुशी महसूस हो रही थी उससे तो आप सब वाकिफ़ ही होंगे !
वैसे यहाँ उदयपुर में नोटबंदी की वजह से इतनी मारा-मारी नहीं थी, जितनी दिल्ली और इसके आस-पास के शहरों में थी !
स्टेशन परिसर का एक दृश्य |
स्टेशन परिसर का एक दृश्य |
स्टेशन के बाहर ही ऑटो स्टैंड था, यहाँ से एक ऑटो में सवार होकर हम होटल ढूँढने चल दिए ! ऑटो वाला हमें रेलवे लाइन के बराबर से जाते हुए एक मार्ग से लेकर उदयपोल गोल-चक्कर पहुँचा, यहाँ से बाएँ मुड़कर "उदयपोल मार्ग" (Udaipol Road) से होते हुए थोड़ी आगे बढ़े तो मार्ग के दोनों तरफ कई होटल थे ! 2-2 के समूह में हम 4 लोग फटाफट होटल ढूँढने में लग गए, 2-3 होटल देखने के बाद हमें एक होटल पसंद आ गया ! अब तक अधिकतर होटलों में हम कमरे ही देख रहे थे लेकिन यहाँ हमें एक बड़ा हॉल मिल गया ! 1 कमरे में 8 लोग नहीं आ सकते थे, इसलिए हमारे लिए हाल ही बढ़िया विकल्प था ! थोड़ा मोल-भाव करने के बाद 1200 रुपए में ये हाल ले लिया जो प्रथम तल पर था ! फिर हम अपना-2 सामान लेकर हॉल में पहुँचे और बारी-2 से नहाने-धोने में लग गए ताकि घूमने जाने के लिए समय से तैयार हो सके ! डेढ़ घंटे बाद हम सब तैयार होकर होटल के नीचे पहुँच चुके थे ! समय साढ़े नौ बज रहे थे, होटल वाले से पूछा तो वो बोला नाश्ता तैयार होने में समय लगेगा !
होटल से निकलते हुए लिया एक चित्र |
अगर आपने यहाँ आते ही बता दिया होता तो अब तक नाश्ता तैयार हो गया होता ! हमने सोचा, जितनी देर यहाँ रुककर नाश्ते का इंतजार करेंगे उतनी देर में तो कहीं घूम लेंगे ! होटल से दस कदम चलते ही हमने एक गाड़ी वाले को पकड़ लिया, उदयपुर भ्रमण के लिए 600 रुपए में सौदा तय करके हम निकल पड़े ! सबसे पहले हम "फ़तेहसागर झील" (Fateh Sagar Lake) पहुँचे, नौकायान के लिए ये शानदार झील है, यहाँ आप पेडल बोट (Pedal Boat, मोटर बोट (Motor Boat) या फिर स्पीड बोट (Speed Boat in Udaipur) की सवारी का मज़ा ले सकते है ! पेडल बोट और मोटर बोट के लिए आपको 100 और 150 रुपए आधे घंटे के देने होते है जबकि स्पीड बोट के लिए आपको 200 रुपए प्रति 5 मिनट के खर्च करने पड़ेंगे ! लेकिन इस 5 मिनट की स्पीड बोटिंग में आपको जो रोमांच आएगा, उसका शायद आप अभी अंदाज़ा भी ना लगा सको ! बोट में तो आपने कभी ना कभी किसी झील में सवारी की ही होगी, अगर कुछ नया अनुभव लेना चाहते है तो यहाँ आकर स्पीड बोट का मज़ा ज़रूर ले ! मेरा दावा है कि ये रोमांच आपको काफ़ी लंबे समय तक याद रहेगा !
स्पीड बोट में एक प्रक्षिशित व्यक्ति बोट चलाता है और आप उसे पकड़ कर बोट पर बैठते है, इस 5 मिनट में ही आप झील का एक लंबा चक्कर लगा लेंगे ! जब स्पीड बोट फर्राटा मारते हुए झील के पानी के ऊपर से गुजरती है तो बड़ा शानदार नज़ारा लगता है ! उदयपुर में फ़तेह सागर के अलावा भी कई झीले है यही वजह है कि इसे "झीलों की नगरी (City of Lakes)" भी कहा जाता है ! इस शहर में इन झीलों से ही पानी की आपूर्ति की जाती है, अपनी पिछली उदयपुर यात्रा के दौरान मैं उदयपुर के आस-पास स्थित अन्य झीलों में भी घूमा था ! फ़तेहसागर झील के सामने ही सड़क के किनारे लाइन से ख़ान-पान की कई दुकानें है, हम भी एक दुकान में जाकर बैठे और नाश्ता करने के बाद यहाँ से आगे बढ़े ! फ़तेह सागर झील से चले तो हमारा अगला पड़ाव था सहेलियों की बाड़ी, लेकिन ड्राइवर ने बीच राह में एक ग्रामोद्योग पर जाकर गाड़ी रोक दी और बोला, कुछ खरीददारी करनी हो तो आप यहाँ से कर सकते हो ! यहाँ जयपुरी रज़ाईयाँ, राजस्थानी जूतियाँ और अन्य परिधान मिलते है !
फ़तेह सागर झील जाते हुए रास्ते में एक पार्क में लिया चित्र |
फ़तेह सागर झील जाते हुए रास्ते में एक पार्क में लिया चित्र |
फ़तेह सागर झील का एक दृश्य (A view of Fateh Sagar Lake, Udaipur) |
फ़तेह सागर झील का एक दृश्य |
कुछ साथियों ने अपने लिए यहाँ से कपड़े खरीदे, लेकिन यहाँ हमारे डेढ़ घंटे खराब हो गए, जितना समय यहाँ खरीददारी में लगा दिया उतने में तो हम 2-3 जगहें घूम लेते ! ये बात यहाँ से निकलने के बाद लगभग सबकी ज़ुबान पर थी ! खैर, कोई बात नहीं, हर अनुभव से कुछ ना कुछ सीख तो मिलती ही है ! ग्रामोद्योग से चलने के बाद मुश्किल से 10 मिनट में ही हम "सहेलियों की बाड़ी" (Saheliyon ki Bari, Udaipur) पहुँच गए ! बाड़ी का अर्थ होता है बगीचा, तो सहेलियों की बाड़ी एक बगीचा है जिसका निर्माण महाराणा संग्राम सिंह द्वितीए ने सन 1710 से 1734 के बीच राजपरिवार की महिलाओं के आमोद-प्रमोद हेतु करवाया था ! इस बगीचे को देश के सुंदर बगीचो में गिना जाता है, पहले फ़तेहसागर के नीचे छोटे-बड़े कई बगीचे थे जिन्हें महाराणा फ़तेह सिंह ने इस बगीचे में मिलाकर एक भव्य स्वरूप प्रदान किया ! इस बगीचे में लगी चारों तरफ हरी-भरी घास, मनमोहक फूलों की अनगिनत श्रेणियाँ, और आकर्षक फव्वारों पर यहाँ आने वाले पर्यटकों की दृष्टि स्वत: ही ठहर जाती है ! बगीचे में जाने का प्रति व्यक्ति 10 रुपए प्रवेश शुल्क भी लगता है, जो बगीचे के रख-रखाव के लिए ज़रूरी भी है !
हमने भी जाकर काउंटर से 8 टिकटें ले ली और इसे प्रवेश द्वार पर दिखाते हुए बगीचे में दाखिल हो गए ! अंदर जाने पर सामने ही सामने एक छोटा कुंड बना है जिसमें लगे फव्वारे शानदार लगते है ! आज अच्छी धूप खिली थी, गर्मी भी लग रही थी इसलिए यहाँ कुछ फोटो खींचने के बाद हम बाहर आ गए और कुछ समय बगीचे में बिताते हुए वापिस अपनी गाड़ी में सवार होकर "सिटी पैलेस" (City Palace) की ओर चल दिए ! सिटी पैलेस से थोड़ी पहले हम गाड़ी से उतर गए, गाड़ी वाला हमें ये कहकर यहाँ से थोड़ी दूरी पर स्थित पार्किंग में चला गया कि जब आप लोग घूम लो तो मुझे फोन कर देना मैं आपको यहीं मिलूँगा ! गाड़ी से उतरकर हम पैदल ही पैलेस के प्रवेश द्वार की ओर जाने वाले मार्ग पर चल दिए ! यहाँ अच्छा-ख़ासा बाज़ार है सड़क के दोनों ओर ख़ान-पान से लेकर सजावट का सामान बेचने की दुकानें है ! हम जिस प्रवेश द्वार से अंदर जाने वाले थे वो "गणेश पोल" (Ganesh Pol) था मुख्य प्रवेश द्वार से काफ़ी पहले दाईं ओर टिकट घर है ! प्रवेश टिकट लेने के लिए दुष्यंत टिकट खिड़की की ओर चल दिया, इस लेख में फिलहाल इतना ही, सिटी पैलेस का वर्णन यात्रा के अगले लेख में करूँगा !
सहेलियों की बाड़ी का प्रवेश द्वार |
सहेलियों की बाड़ी के अंदर का एक दृश्य |
सहेलियों की बाड़ी के अंदर का एक दृश्य |
सहेलियों की बाड़ी के अंदर का एक दृश्य |
क्यों जाएँ (Why to go Udaipur): अगर आपको किले और महल देखना पसंद है और आप राजस्थान में नौकायान का आनंद लेना चाहते है तो उदयपुर आपके लिए एक अच्छा विकल्प है ! यहाँ उदयपुर के आस-पास देखने के लिए कई झीले है !
कब जाएँ (Best time to go Udaipur): वैसे तो आप साल के किसी भी महीने में घूमने के लिए उदयपुर जा सकते है लेकिन सितंबर से मार्च यहाँ घूमने जाने के लिए बढ़िया मौसम है ! गर्मियों में तो यहाँ बुरा हाल रहता है और झील में नौकायान का आनंद भी ठीक से नहीं ले सकते !
कैसे जाएँ (How to reach Udaipur): दिल्ली से उदयपुर की दूरी लगभग 663 किलोमीटर है ! यहाँ जाने का सबसे बढ़िया साधन रेल मार्ग है दिल्ली से उदयपुर के लिए नियमित रूप से कई ट्रेने चलती है, जो शाम को दिल्ली से चलकर सुबह जल्दी ही उदयपुर पहुँचा देती है ! ट्रेन से दिल्ली से उदयपुर जाने में 12 घंटे का समय लगता है जबकि अगर आप सड़क मार्ग से जाना चाहे तो दिल्ली से उदयपुर के लिए बसें भी चलती है जो 14 से 15 घंटे का समय लेती है ! अगर आप निजी वाहन से उदयपुर जाने की योजना बना रहे है तो दिल्ली जयपुर राजमार्ग से अजमेर होते हुए उदयपुर जा सकते है निजी वाहन से आपको 11-12 घंटे का समय लगेगा ! हवाई यात्रा का मज़ा लेना चाहे तो आप सवा घंटे में ही उदयपुर पहुँच जाओगे !
कहाँ रुके (Where to stay in Udaipur): उदयपुर राजस्थान का एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है यहाँ रोजाना हज़ारों देशी-विदेशी सैलानी घूमने के लिए आते है ! सैलानियों के रुकने के लिए यहाँ होटलों की भी कोई कमी नहीं है आपको 500 रुपए से लेकर 8000 रुपए तक के होटल मिल जाएँगे !
क्या देखें (Places to see in Udaipur): उदयपुर और इसके आस-पास देखने के लिए वैसे तो बहुत जगहें है लेकिन यहाँ के मुख्य आकर्षण सिटी पैलेस, लेक पैलेस, सहेलियों की बाड़ी, पिछोला झील, फ़तेह सागर झील, रोपवे, एकलिंगजी मंदिर, जगदीश मंदिर, जैसमंद झील, हल्दीघाटी, कुम्भलगढ़ किला, कुम्भलगढ़ वन्यजीव उद्यान, चित्तौडगढ़ किला और सज्जनगढ़ वन्य जीव उद्यान है ! इसके अलावा माउंट आबू यहाँ से 160 किलोमीटर दूर है वहाँ भी घूमने के लिए कई जगहें है !
अगले भाग में जारी...
उदयपुर - कुम्भलगढ़ यात्रा
- उदयपुर में पहला दिन – स्थानीय भ्रमण (Local Sight Seen in Udaipur)
- उदयपुर का सिटी पैलेस, रोपवे और पिछोला झील (City Palace, Ropeway and Lake Pichola of Udaipur)
- उदयपुर से माउंट आबू की सड़क यात्रा (A Road Trip from Udaipur to Mount Abu)
- दिलवाड़ा के जैन मंदिर (Jain Temple of Delwara, Mount Abu)
- माउंट आबू से कुम्भलगढ़ की सड़क यात्रा (A Road Trip From Mount Abu to Kumbhalgarh)
- कुम्भलगढ़ का किला - दुनिया की दूसरी सबसे लंबी दीवार (Kumbhalgarh Fort, The Second Longest Wall of the World)
- हल्दीघाटी का ऐतिहासिक युद्ध और महाराणा प्रताप संग्रहालय (The Battle of Haldighati and Maharana Pratap Museum)
@Pradeep - thanks for such a well written and beautiful blog with b'ful pics
ReplyDeleteThanks Brother for your kind words...
DeleteMe udaipir ka rhne vala hu udaipir me prtap gorav kendra hai
ReplyDelete👍👍
DeleteMe udaipir ka rhne vala hu udaipir me prtap gorav kendra hai
ReplyDeleteमनु भाई, ये तो रह गया देखना, चलो जब चित्तोडगढ़ आना होगा, तब कोशिश करूंगा, जो जगहें रह गई है उन्हें देख लूँ !
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