शुक्रवार, 26 मई 2017
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यात्रा के पिछले लेख में आप दिल्ली भ्रमण के दौरान लाल किला परिसर में मौजूद "वॉर मेमोरियल संग्रहालय (War Memorial Museum), ऐतिहासिक बावली (Baoli in Red Fort, Delhi) और दीवान-ए-आम (Diwan E Aam)" देख चुके है ! अब आगे, दीवान-ए-आम के पीछे एक बड़ा बगीचा है और बगीचे के उस पार है "रंग महल" (Rang Mahal) ! राजकीय आवासों में सबसे बड़े इस महल का प्रयोग मुगल काल में "शाही हरम" (Shahi Haram) के रूप में होता था, शाहजहाँ के राज में इसे "इम्तियाज़ महल" (Imtiyaz Mahal) के नाम से जाना जाता था ! प्यालीदार मेहराबों से युक्त ये महल 6 कक्षों में विभाजित था, इस महल के उत्तरी और दक्षिणी भाग को "शीशमहल" (Sheesh Mahal) के नाम से जाना जाता था ! शीशमहल की दीवारों और छतों के उपर शीशे के छोटे-2 सैकड़ों टुकड़े लगे हुए थे जो इनपर पड़ने वाले प्रकाश को परावर्तित कर एक मनोहारी दृश्य प्रस्तुत करते थे ! इस महल के बीच में एक जल धारा भी बहती थी जिसे "नहर-ए-बहिश्त" यानि "स्वर्ग की जलधारा" कहते थे !
जलधारा के पास ही संगमरकर का एक कुंड बना था जिसमें हाथीदाँत का फव्वारा लगा था, शाही स्त्रियाँ इस कुंड में स्नान किया करती थी ! रंग महल के बीच में एक तहखाना भी था, ठंडा होने के कारण गर्मी के दिनों में शाही स्त्रियाँ इस तहख़ाने में कुछ समय बिताया करती थी ! मुगल बादशाह रोज फ़ुर्सत के कुछ पल बिताने के लिए रंग महल में आया करते थे !
मुगल काल में जानवरों के शिकार के अलावा हाथियों की लड़ाई भी शाही मनोरंजन का एक अहम साधन हुआ करती थी, रंग महल में बैठकर ही बादशाह महल के बाहरी भाग वाले मैदान में होने वाली हाथियों की लड़ाई देखा करते थे ! रंग महल और दीवान-ए-आम के बीच वाले बगीचे में बने चबूतरे पर रोज शाम को कुछ संगीत कलाकार वाद्य यंत्र बजाया करते थे और सैकड़ों नृत्कियाँ एक साथ इस चबूतरे पर नृत्य किया करती थी ! बादशाह रंग महल की छत पर रखे सिंहासन पर बैठ कर इस नृत्य का लुत्फ़ लिया करते थे, बड़ा शाही जीवन था मुगल शासकों का, कभी-2 तो सोच कर भी ईर्ष्या होने लगती है ! रंग महल से अगली इमारत है लाल किले की सबसे भव्य इमारत "दीवान-ए-खास (Diwan E Khas)" !
जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है दीवान-ए-खास मुगल साम्राज्य का एक अहम हिस्सा हुआ करता था, इस इमारत की कार्य प्रणाली तो दीवान-ए-आम की तरह ही थी लेकिन यहाँ बादशाह अपने मंत्रियों और सिपहसालारों के साथ बैठकें किया करते थे ! आम लोगों के यहाँ आने पर पाबंदी थी, कुछ नियम यहाँ भी दीवान-ए-आम की तरह ही थे जिसके तहत बादशाह तो सभा में बैठते थे जबकि बाकी सभी लोग खड़े होकर सभा में भाग लेते थे ! सम्राट यहाँ निजी बैठकें आयोजित करते थे और यहीं से बैठकर सारा राज-पाट चलाते थे ! दीवान-ए-खास में बनी पाँच मेहराबों का मतलब इस्लाम के पाँच सिद्धांतों से है जिसमें अपने मज़हब को घोषित करना, नमाज़ पढ़ना, दान देना, रोज़ा रखना, और हज पर जाना शामिल है ! इस इमारत की छत का ऊपरी भाग गुंबद के आकर की चार छतरियों से सज़ा हुआ है, जिन्हें हिंदू महलों से लिया गया है ! दीवान-ए-खास सभी मुगल संरचनाओं में सबसे भव्य और कीर्तिमय इमारत थी, इसमें रेशम के पर्दे और छतरियाँ लटकी होती थी !
कुछ छतरियाँ तो इस इमारत के सामने भी फैली होती थी, ये इस राजवंश के मूल रूप को दर्शाती थी, यहाँ एक चाँदी की रेलिंग दो आहातों को अलग करती थी ! एक आहाता सबसे बड़े अधिकारियों के लिए होता था जबकि दूसरे आहाते में कम ऊँचे रुतबे वाले लोग बैठते थे ! यहाँ भी वाचकों के अलावा बाकी सभी लोग खड़े होते थे जैसा की दीवान-ए-आम में होता था ! दीवान-ए-खास में कई दुखद घटनाएँ हुई जिसने इतिहास बदल दिया, जैसे 1739 में ईरानी हमलावर "नादिरशाह (Nadirshah)" ने इस इमारत की छत से सारा सोना लूट लिया, वो दीवान-ए-खास से "मयूर सिंहासन (Mayur Sinhasan), कोहिनूर हीरा (Kohinoor Diamond), और दीवान-ए-आम में रखे बेशक़ीमती तख्त-ए-ताऊस (Takht E Taus) को अपने साथ ले गया ! सितंबर 1857 में लाल किले पर ब्रिटिश सैनिकों द्वारा कब्जा करने के 3 महीने बाद, दिसंबर में ब्रिटिश वायसराय ने महारानी विक्टोरिया की तरफ से एक हुक्म जारी करके भारत को ब्रिटिश साम्राज्य की एक आधिकारिक कॉलोनी बना दिया, जिसे "ज्वेल इन द क्राउन (Jewel in the Crown) भी कहा जाता है !
जनवरी 1858 में आख़िरी मुगल बादशाह "बहादुरशाह ज़फ़र (Bahadurshah Zafar) पर ब्रिटिश सरकार से विद्रोह के आरोप में मुक़दमा चलाने के लिए यहीं लाया गया था, बहादुरशाह ज़फ़र को उम्र क़ैद की सज़ा दी गई थी ! दीवान-ए-खास के स्तंभों पर संगमरमर के साथ कीमती पत्थर भी जड़े हुए थे, दीवारों पर की गई फूलों की शानदार सजावट हिंदू महलों से ली गई है, लेकिन फूलों के दोनों ओर उड़ते ड्रॅगन फ्लेम्स चीनी सभ्यता से लिए गए है ! छत की सजावट में लगा सोना-चाँदी 18वीं सदी के मध्य में लूटा गया था ! इस किले पर कब्जा करने के बाद अँग्रेज़ों ने इस दीवान-ए-खास और रंग महल को "ऑफिसर मेस (Officer Mess)" के तौर पर इस्तेमाल किया ! उन्होनें इस इमारत की दीवारों पर पैंट भी किया जिसे बाद में हटा दिया गया ! अभी हाल में ही इस इमारत की छत को इसके वास्तविक रूप में दिखाने के लिए सुनहरे रंग से पैंट किया गया है ! छत के एक हिस्से में किए गए इस पैंट से ही अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि जब सुनहरे रंग से इसकी रंगत ऐसी है तो जब इस इमारत की छत पर असली सोना रहा होगा तो इसकी भव्यता क्या रहती होगी !
दीवान-ए-खास के बगल में "खिजरी गेट (Khijri Gate)" वो सीढ़िया है जिसपर चढ़कर मुगल बादशाह शाहजहाँ लाल किले के निर्माण के बाद पहली बार यहाँ आए थे ! दीवान-ए-खास और रंग महल के बीच में एक अन्य इमारत भी है जिसका नाम है "खास महल (Khas Mahal)" ! ये मुगल बादशाह का निजी महल था, इस महल के तीन भाग है ! पहले भाग में तीन कमरों का एक समूह जो दीवान-ए-खास की तरफ है "तसबीह खाना (प्रार्थना कक्ष)" के रूप में जाना जाता है इसका उपयोग बादशाह निजी इबादत के लिए किया करते थे ! दूसरा भाग तसबीह खाना के पीछे बने तीन कमरे है जो बादशाह के शयन कक्ष के रूप में प्रयोग होते थे और इन्हें "ख्वबगाह" के नाम से जाना जाता था ! इसके दक्षिण में एक लंबा हाल है, जो चारों तरफ से अच्छे से सज़ा हुआ है, इसे "तोशखाना" यानि "बैठक" के रूप में प्रयोग किया जाता था ! इस हाल की उत्तरी दीवार में संगमरमर की एक आकर्षक जाली लगी है जिसके ऊपरी भाग में न्याय के तराजू का अंकन है जो मुगल बादशाहों की न्यायप्रियता का सूचक है !
खास महल से सटे पूर्व दिशा में एक अष्टपहलू प्रक्षेपित बुर्ज है जिसे "मुसम्मन बुर्ज" के नाम से जाना जाता है ! इसी बुर्ज से बादशाह अपनी प्रजा को दर्शन दिया करते थे ! दीवान-ए-खास के पीछे ही "शाही हमाम" है जहाँ शाही घराने की स्त्रियाँ कभी-2 स्नान किया करती थी ! शाही हमाम के बगल में ही "मोती मस्जिद (Moti Masjid)" है जिसका निर्माण "औरंगजेब (Aurengzeb)" ने अपने निजी उपयोग के लिए 1659 में करवाया था, दिन में कई बार इबादत करने के लिए औरंगजेब को अपने शयनकक्ष से इस मस्जिद तक जाने के लिए कुछ ही कदम चलना पड़ता था ! शाही घराने की महिलाएँ भी इस मस्जिद का उपयोग करती थी, मस्जिद को एक ऊँचे चबूतरे पर बनाया गया है ! प्रवेश करने के लिए पूर्वी दिशा में एक मेहराबदार द्वार है जो तांबे के पात्र से मढ़ा गया था, मस्जिद का आँगन चारों ओर से ऊँची-2 दीवारों से घिरा हुआ है ! मस्जिद सफेद संगमरमर से बनी हुई है, जबकि इसके इबादतखाने का फर्श काले संगमरमर की पट्टियों से सुसज्जित है !
मस्जिद के बाहरी दीवार पर भी कुछ लाल बलुआ पत्थर का प्रयोग किया गया है, मस्जिद के मुख्य कक्ष के ऊपर तीन गोलाकार गुंबद है जो तांबे के पात्र से मढ़े हुए थे ! मस्जिद परिसर में फव्वारे युक्त "हौज-ए-वजु (हाथ पैर धोने का हौज)" भी बना है ! वर्तमान में इस मस्जिद को बंद कर दिया गया है और किसी को भी इसमें जाने की अनुमति नहीं है ! मोती मस्जिद के उस पार पड़ने वाले "हयात बख़्श बाग (Hayat Baksh Bagh)" और "ज़फ़र महल (Zafar Mahal)" को मरम्मत कार्य होने के कारण फिलहाल आम जनता के लिए बंद किया गया था, इसलिए इन दो जगहों को मैं नहीं देख पाया ! रंग महल से दक्षिण की ओर स्थित "मुमताज़ महल (Mumtaz Mahal)" का नाम शाहजहाँ की सबसे प्रिय बेगम मुमताज़ के नाम पर रखा गहा था ! मुमताज़ महल उन महलों में से एक थी जो दीवान-ए-खास के दक्षिण में बनाए गए थे, इन सभी महलों के बीच से "नहर-ए-बहिश्त (स्वर्ग की जलधारा)" बहा करती थी ! अपने स्वर्णिम दिनों में ये महल भी शाही हरम का एक हिस्सा हुआ करता था और इसे "छोटे रंगमहल" के नाम से भी जाना जाता था !
मुमताज़ महल के दक्षिण में "असद बुर्ज" और उत्तर में रंगमहल स्थित है ! मुमताज़ महल के भीतरी भाग में लहरदार मेहराबों से विभाजित 6 कक्ष है जो मूलत चित्रित थे ! दीवारों और स्तंभों का निचला भाग संगमरमर से निर्मित है ! 1857 की क्रांति के बाद जब अँग्रेज़ों ने लाल किले पर कब्जा कर लिया तो उन्होनें इस महल का प्रयोग कारागार के रूप में किया, जिसके परिणामस्वरूप इस महल का मूल स्वरूप बिल्कुल बदल गया ! वर्तमान में इस महल को एक संग्रहालय का रूप दे दिया गया है और इसमें मुगल काल के दौरान प्रयोग होने वाली रोजमर्रा की वस्तुओं को सहेज कर रखा गया है ! 20 सितंबर 1857 को अँग्रेज़ मुगलों को गिरफ्तार करने के लिए "लाहौरी गेट (Lahori Gate)" से आए थे, लेकिन बहादुरशाह ज़फ़र और उनका काफिला किले को छोड़कर 3 दिन पहले ही नदी वाले रास्ते से भाग गया था ! अगले दिन ब्रिटिश अफ़सर "हडसन (Hodson)" ने बादशाह को "हुमायूँ के मक़बरे (Humayun's Tomb)" से पकड़ लिया, और वहाँ से वापिस लाल किला ले आए !
हडसन ने ये सुनिश्चित कर लिया था कि इस साम्राज्य का कोई भी वारिस ज़िंदा ना बचे ! शहंशाह के 3 बेटों को तो उसने खुद गोली मारी, अगले दिन उसने अपनी बहन को खत लिखकर ये जानकारी भी दी ! लाल किला घूमने के बाद मैं टहलता हुआ किले से बाहर जाने वाले मार्ग "दिल्ली गेट (Delhi Gate)" की ओर चल दिया ! किले से बाहर आकर मैं लाल किला पार्किंग परिसर की ओर चल दिया, जो यहाँ से थोड़ी दूरी पर था ! मेरी मोटरसाइकल वहीं खड़ी थी, वैसे दिल्ली गेट से पार्किंग तक जाने के लिए आप ई-रिक्शा की सुविधा भी ले सकते है ! पार्किंग से मोटरसाइकल लेकर मैने अपने घर के लिए प्रस्थान किया और अगले घंटे भर का सफ़र तय करके घर पहुँचा ! तो दोस्तों इसी के साथ ये दिल्ली भ्रमण का आज का सफ़र यहीं ख़त्म होता है, जल्द ही आपको किसी नई जगह की सैर पर लेकर चलूँगा !
क्यों जाएँ (Why to go Red Fort): अगर आपको ऐतिहासिक इमारतें देखना पसंद है तो आप दिल्ली में स्थित लाल किले का रुख़ कर सकते है !
दीवान-ए-खास की एक झलक (A View of Diwan E Khas) |
रंगमहल का एक नज़ारा |
रंग महल का एक नज़ारा |
रंग महल का एक नज़ारा |
रंगमहल के सामने चबूतरा |
कुछ छतरियाँ तो इस इमारत के सामने भी फैली होती थी, ये इस राजवंश के मूल रूप को दर्शाती थी, यहाँ एक चाँदी की रेलिंग दो आहातों को अलग करती थी ! एक आहाता सबसे बड़े अधिकारियों के लिए होता था जबकि दूसरे आहाते में कम ऊँचे रुतबे वाले लोग बैठते थे ! यहाँ भी वाचकों के अलावा बाकी सभी लोग खड़े होते थे जैसा की दीवान-ए-आम में होता था ! दीवान-ए-खास में कई दुखद घटनाएँ हुई जिसने इतिहास बदल दिया, जैसे 1739 में ईरानी हमलावर "नादिरशाह (Nadirshah)" ने इस इमारत की छत से सारा सोना लूट लिया, वो दीवान-ए-खास से "मयूर सिंहासन (Mayur Sinhasan), कोहिनूर हीरा (Kohinoor Diamond), और दीवान-ए-आम में रखे बेशक़ीमती तख्त-ए-ताऊस (Takht E Taus) को अपने साथ ले गया ! सितंबर 1857 में लाल किले पर ब्रिटिश सैनिकों द्वारा कब्जा करने के 3 महीने बाद, दिसंबर में ब्रिटिश वायसराय ने महारानी विक्टोरिया की तरफ से एक हुक्म जारी करके भारत को ब्रिटिश साम्राज्य की एक आधिकारिक कॉलोनी बना दिया, जिसे "ज्वेल इन द क्राउन (Jewel in the Crown) भी कहा जाता है !
जनवरी 1858 में आख़िरी मुगल बादशाह "बहादुरशाह ज़फ़र (Bahadurshah Zafar) पर ब्रिटिश सरकार से विद्रोह के आरोप में मुक़दमा चलाने के लिए यहीं लाया गया था, बहादुरशाह ज़फ़र को उम्र क़ैद की सज़ा दी गई थी ! दीवान-ए-खास के स्तंभों पर संगमरमर के साथ कीमती पत्थर भी जड़े हुए थे, दीवारों पर की गई फूलों की शानदार सजावट हिंदू महलों से ली गई है, लेकिन फूलों के दोनों ओर उड़ते ड्रॅगन फ्लेम्स चीनी सभ्यता से लिए गए है ! छत की सजावट में लगा सोना-चाँदी 18वीं सदी के मध्य में लूटा गया था ! इस किले पर कब्जा करने के बाद अँग्रेज़ों ने इस दीवान-ए-खास और रंग महल को "ऑफिसर मेस (Officer Mess)" के तौर पर इस्तेमाल किया ! उन्होनें इस इमारत की दीवारों पर पैंट भी किया जिसे बाद में हटा दिया गया ! अभी हाल में ही इस इमारत की छत को इसके वास्तविक रूप में दिखाने के लिए सुनहरे रंग से पैंट किया गया है ! छत के एक हिस्से में किए गए इस पैंट से ही अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि जब सुनहरे रंग से इसकी रंगत ऐसी है तो जब इस इमारत की छत पर असली सोना रहा होगा तो इसकी भव्यता क्या रहती होगी !
दीवान-ए-खास की एक झलक |
दीवान-ए-खास की एक झलक |
दीवान-ए-खास |
दीवान-ए-खास |
दीवान-ए-खास |
खास महल का एक नज़ारा |
खास महल के सामने मैदान |
लाल किला परिसर में मोती मस्जिद (Moti Masjid in Red Fort, Delhi) |
दूर से दिखाई देता दीवान-ए-खास और खास महल |
दूर से दिखाई देता दीवान-ए-खास और मोती मस्जिद |
दूर से दिखाई देता दीवान-ए-खास, खास महल और रंगमहल |
मस्जिद के बाहरी दीवार पर भी कुछ लाल बलुआ पत्थर का प्रयोग किया गया है, मस्जिद के मुख्य कक्ष के ऊपर तीन गोलाकार गुंबद है जो तांबे के पात्र से मढ़े हुए थे ! मस्जिद परिसर में फव्वारे युक्त "हौज-ए-वजु (हाथ पैर धोने का हौज)" भी बना है ! वर्तमान में इस मस्जिद को बंद कर दिया गया है और किसी को भी इसमें जाने की अनुमति नहीं है ! मोती मस्जिद के उस पार पड़ने वाले "हयात बख़्श बाग (Hayat Baksh Bagh)" और "ज़फ़र महल (Zafar Mahal)" को मरम्मत कार्य होने के कारण फिलहाल आम जनता के लिए बंद किया गया था, इसलिए इन दो जगहों को मैं नहीं देख पाया ! रंग महल से दक्षिण की ओर स्थित "मुमताज़ महल (Mumtaz Mahal)" का नाम शाहजहाँ की सबसे प्रिय बेगम मुमताज़ के नाम पर रखा गहा था ! मुमताज़ महल उन महलों में से एक थी जो दीवान-ए-खास के दक्षिण में बनाए गए थे, इन सभी महलों के बीच से "नहर-ए-बहिश्त (स्वर्ग की जलधारा)" बहा करती थी ! अपने स्वर्णिम दिनों में ये महल भी शाही हरम का एक हिस्सा हुआ करता था और इसे "छोटे रंगमहल" के नाम से भी जाना जाता था !
बाहर से दिखाई देता मुमताज़ महल |
मुमताज़ महल का अंदर का एक नज़ारा |
हडसन ने ये सुनिश्चित कर लिया था कि इस साम्राज्य का कोई भी वारिस ज़िंदा ना बचे ! शहंशाह के 3 बेटों को तो उसने खुद गोली मारी, अगले दिन उसने अपनी बहन को खत लिखकर ये जानकारी भी दी ! लाल किला घूमने के बाद मैं टहलता हुआ किले से बाहर जाने वाले मार्ग "दिल्ली गेट (Delhi Gate)" की ओर चल दिया ! किले से बाहर आकर मैं लाल किला पार्किंग परिसर की ओर चल दिया, जो यहाँ से थोड़ी दूरी पर था ! मेरी मोटरसाइकल वहीं खड़ी थी, वैसे दिल्ली गेट से पार्किंग तक जाने के लिए आप ई-रिक्शा की सुविधा भी ले सकते है ! पार्किंग से मोटरसाइकल लेकर मैने अपने घर के लिए प्रस्थान किया और अगले घंटे भर का सफ़र तय करके घर पहुँचा ! तो दोस्तों इसी के साथ ये दिल्ली भ्रमण का आज का सफ़र यहीं ख़त्म होता है, जल्द ही आपको किसी नई जगह की सैर पर लेकर चलूँगा !
नौबतखाना से दिखाई देता दीवान-ए-आम |
नौबतखाने के प्रथम तल पर संग्रहालय है |
लाल किले से बाहर आने का मार्ग |
दिल्ली गेट से दिखाई देता लाल किला |
दिल्ली गेट से दिखाई देता लाल किला |
कब जाएँ (Best time to go Red Fort): आप साल भर किसी भी दिन यहाँ जा सकते है लेकिन अगर ठंडे मौसम में जाएँगे तो ज़्यादा अच्छा रहेगा !
कैसे जाएँ (How to reach Red Fort): पुरानी दिल्ली में स्थित लाल किले को देखने के लिए आप मेट्रो से जा सकते है, लाल किले का सबसे नज़दीकी मेट्रो स्टेशन चाँदनी चौक है जहाँ से इस किले की दूरी महज 1.5 किलोमीटर है ! मेट्रो स्टेशन से उतरकर आप पैदल भी जा सकते है या ऑटो ले सकते है !
कहाँ रुके (Where to stay in Delhi): अगर आप आस-पास के शहर से इस किले को देखने आ रहे है तो शायद आपको रुकने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी ! जो लोग कहीं दूर से दिल्ली भ्रमण पर आए है उनके रुकने के लिए कनाट प्लेस और इसके आस-पास रुकने के लिए बहुत विकल्प मिल जाएँगे !
क्या देखें (Places to see near Red Fort): अगर दिल्ली भ्रमण पर निकले है तो दिल्ली में घूमने के लिए जगहों की कमी नहीं है आप जामा मस्जिद, राजघाट, लोधी गार्डन, हुमायूँ का मकबरा, इंडिया गेट, चिड़ियाघर, पुराना किला, क़ुतुब मीनार, सफ़दरजंग का मकबरा, कमल मंदिर, अक्षरधाम, कालकाजी मंदिर, इस्कान मंदिर, छतरपुर मंदिर, और तुगलकाबाद के किले के अलावा अन्य कई जगहों पर घूम सकते है ! ये सभी जगहें आस-पास ही है आप दिल्ली भ्रमण के लिए हो-हो बस की सेवा भी ले सकते है या किराए पर टैक्सी कर सकते है ! बाकि मेट्रो से सफ़र करना चाहे तो वो सबसे अच्छा विकल्प है !
दिल्ली भ्रमण
- इंडिया गेट, चिड़ियाघर, और पुराना किला (Visit to Delhi Zoo and India Gate)
- क़ुतुब-मीनार में बिताए कुछ यादगार पल (A Day with Friends in Qutub Minar)
- अग्रसेन की बावली - एक ऐतिहासिक धरोहर (Agrasen ki Baoli, New Delhi)
- बहाई उपासना केंद्र - कमल मंदिर - (Lotus Temple in Delhi)
- सफ़दरजंग के मक़बरे की सैर (Safdarjung Tomb, New Delhi)
- लोधी गार्डन - सिकंदर लोदी का मकबरा (Lodhi Garden - Lodhi Road, New Delhi)
- दिल्ली के ऐतिहासिक लाल किले की सैर - पहली कड़ी (A Visit to Historical Monument of Delhi, Red Fort)
- दिल्ली के ऐतिहासिक लाल किले की सैर - दूसरी कड़ी (A Visit to Historical Monument of Delhi, Red Fort)
- हुमायूँ के मक़बरे की सैर (A visit to Humayun’s Tomb, New Delhi)
लालकिले वाली पोस्ट की दोनों कड़िया पड़ी । मजा आ गया । इतना मजा तो लाल किला घूमने में भी नही आया था ।
ReplyDeleteधन्यवाद मुकेश जी !
DeleteBht bht badhiya lga Padhkr Ye History Aaur Ye JaaN Jr Ke Isme Jo likha Hai DiYa Huwa H Sab Such hai (Nice_HistorY)
Deleteधन्यवाद जी |
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