माउंट आबू से कुम्भलगढ़ की सड़क यात्रा (A Road Trip From Mount Abu to Kumbhalgarh)

शनिवार, 19 नवंबर 2016 

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यात्रा के पिछले लेख में आपने "दिलवाड़ा के जैन मंदिरों" के बारे में पढ़ा, माउंट आबू से वापिस आने से पहले हम यहाँ के सबसे ऊँचे स्थान पर स्थित "गुरु शिखर" मंदिर भी घूम आए ! अब आगे, गुरु शिखर से वापिस आकर हम अपनी गाड़ी में बैठे और अपने अगले पड़ाव "कुम्भलगढ़" की ओर निकल पड़े ! अब तक हम माउंट आबू में देखने की अधिकतर जगहें घूम ही चुके थे ! इसलिए अब हमारा मन यहाँ से निकलकर कुम्भलगढ़ पहुँचने का था, आज की रात कुम्भलगढ़ में रुककर सुबह विश्व प्रसिद्ध "कुम्भलगढ़ का किला" (Kumbhalgarh Fort) देखते हुए वापिस उदयपुर जाने का था ! उदयपुर के लिए वापिस जाते हुए हम रास्ते में हल्दीघाटी में स्थित "महाराणा प्रताप संग्रहालय" (Maharana Pratap Museum) भी देखने वाले थे ! हम गुरु शिखर से चले तो साढ़े तीन बज रहे थे, यहाँ से कुम्भलगढ़ की दूरी 184 किलोमीटर है, जिसे तय करने में लगभग 3.5 घंटे से 4 घंटे का समय लगने वाला था ! माउंट आबू से वापिस जाते हुए जसवंतगढ़ तक तो हम उसी मार्ग से जाने वाले थे जिससे हम सुबह उदयपुर से यहाँ आए थे, फिर जसवंतगढ़ में राष्ट्रीय राजमार्ग को छोड़कर हमें बाईं ओर को जाने वाले एक मार्ग पर जाना था !
जसवंतगढ़ में लिया एक चित्र 
माउंट आबू से जसवंतगढ़ तक तो बढ़िया राजमार्ग बना है लेकिन यहाँ से कुम्भलगढ़ का मार्ग ज़्यादा बढ़िया नहीं है पूछने पर ड्राइवर ने बताया कि इन दोनों जगहों के बीच एकल मार्ग है और अधिकतर पहाड़ी क्षेत्र है, शाम होने के बाद तो इस मार्ग पर वाहनों की आवाजाही भी बहुत कम हो जाती है इसलिए लूटपाट की घटनाएँ भी होती रहती है ! जसवंतगढ़ से कुम्भलगढ़ की दूरी लगभग 55 किलोमीटर है, पथरीला रास्ता है इसलिए कभी अकेले इस मार्ग पर जा रहे हो तो शाम होने के बाद ना ही जाएँ तो बढ़िया है ! गुरु शिखर से निकलने के बाद हम रास्ते में एक जगह लघु-शंका के लिए रुके, यहाँ खाने-पीने का कुछ सामान भी ले लिया, ताकि बार-2 रुकना ना पड़े ! माउंट आबू से चले तो 4 बज चुके थे, शानदार सड़क थी, चाहते तो यहाँ थोड़ी तेज गति से चलते हुए समय बचाया जा सकता था लेकिन हमारा ड्राइवर नियमित गति से ही गाड़ी चलाता रहा ! नतीजन, शाम 6 बजे हम जसवंतगढ़ पहुँच गए, इस दौरान मैं इंटरनेट के माध्यम से कुम्भलगढ़ में रुकने के लिए होटल ढूंढता रहा !

इंटरनेट पर तो अधिकतर महँगे होटल ही दिखाई दे रहे थे, एक-दो होटल वालों से बात भी की, लेकिन बात नहीं बनी, कहीं किराया ज़्यादा था तो कहीं कमरा खाली नहीं था ! अब हम असमंजस में थे, कि अगर कुम्भलगढ़ में जाकर रुकने का इंतज़ाम नहीं हुआ तो क्या करेंगे ! कुछ साथियों ने कहा वापिस आ जाएँगे तो कुछ बोले, गाड़ी में ही सो जाएँगे, ऐसे ही कई ऊट-पटांग सुझाव मिले ! जसवंतगढ़ में रुककर कुछ देर इसी बात पर चर्चा भी हुई ! अंधेरा होने लगा था, ड्राइवर बोला, सर जो भी करना है जल्दी बताओ, यहाँ से कुम्भलगढ़ पहुँचने में कम से कम 2 घंटे और लगेंगे, यहीं पर ज़्यादा देर हो गई तो आगे परेशानी बढ़ सकती है ! फिर यहाँ ज़्यादा समय गँवाए बिना हम कुम्भलगढ़ के लिए निकल पड़े, सोचा जो होगा, देखा जाएगा ! ड्राइवर ने बताया कि जसवंतगढ़ में कभी आदिवासियों का वर्चस्व था, ये लोग आते-जाते लोगों की गाड़ियों पर तोड़-फोड़ तो किया ही करते थे, मौका मिलने पर लूटपाट भी कर लेते थे ! पता नहीं ड्राइवर किस जमाने की बात कर रहा था क्योंकि वर्तमान में तो यहाँ ऐसा कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था ! 
माउंट आबू से वापिस जाते हुए
माउंट आबू से वापिस जाते हुए
जसवंतगढ़ में लिया एक चित्र 
जसवंतगढ़ में लिया एक चित्र 
अब तो यहाँ खूब अच्छी सड़क बनी है और दुकानें सड़क के किनारे काफ़ी दूरी पर है खैर, थोड़ी देर में ही हम राष्ट्रीय राजमार्ग को छोड़कर कुम्भलगढ़ जाने वाले मार्ग पर पहुँच चुके थे, इस मार्ग पर ना तो रोशनी थी और ना ही यातायात, बीच-2 में जब इक्का-दुक्का वाहन सामने से गुज़रते तो गाड़ी की कृत्रिम रोशनी में थोड़ी दूर तक का मार्ग दिखाई दे जाता ! लेकिन गाड़ी के गुज़रते ही फिर से वही हालात बन जाते, अब तक काफ़ी अंधेरा हो चुका था, हम तेज़ी से इस मार्ग पर बढ़े जा रहे थे ! इस मार्ग पर लगभग आधा सफ़र तय हो चुका था जब एक सायरा नामक जगह आई, यहाँ से बाईं ओर "राणकपुर" जाने के लिए मार्ग अलग हो रहा था ! राणकपुर में देखने के लिए प्रसिद्ध "चौमुखा जैन" (Chaumukha Jain Temple) मंदिर और "राणकपुर डैम" (Ranakpur Dam) के अलावा कुछ अन्य दर्शनीय स्थल भी है ! लेकिन इस यात्रा पर हम कुम्भलगढ़ का किला देखने निकले थे इसलिए सीधे जाने वाले मार्ग पर चलते रहे ! सायरा से थोड़ी आगे बढ़ने पर सड़क के किनारे दोनों ओर एक लाइन से कई मंदिर है, रिहायशी इलाक़ा होने के कारण यहाँ थोड़ी रौनक थी ! 

लेकिन जैसे-2 हम आगे बढ़े, सुनसान रास्ता शुरू हो गया, बीच-2 में सड़क के किनारे ऊँचे पहाड़ भी आते रहे ! कुम्भलगढ़ से 10-12 किलोमीटर पहले एक कस्बा पड़ा, नाम याद नहीं लेकिन यहाँ का बाज़ार ठीक-ठाक था, ख़ान-पान की कई दुकानें थी ! पहाड़ी मार्ग होने के कारण कुछ साथियों की तबीयत ठीक नहीं थी लेकिन बाकि साथियों को भूख लगने लगी थी ! यहाँ बाज़ार में गाड़ी रोककर एक हलवाई की दुकान पर गए और हल्की-2 पेट-पूजा की, कुछ सामान रास्ते के लिए भी ले लिया ! जिन साथियों की तबीयत खराब थी, उन्हें भी बाहर की ताजी हवा लेकर राहत महसूस हुई ! उनके लिए कुछ नींबू और संतरे की टाफिया ले ली ! यहाँ से आगे बढ़े तो एक अजीब घटना घटी, सड़क के किनारे एक अस्थायी बैरियर लगा हुआ था यहाँ 2-3 लोग खड़े थे, मार्ग क्षतिग्रस्त होने के कारण गाड़ी की रफ़्तार भी ज़्यादा नहीं थी ! बैरियर के पास से गुज़रते हुए पहले तो इन लोगों ने टॉर्च जलाकर हमारी गाड़ी में देखा, फिर गाड़ी के बैरियर के पास से निकल जाने के बाद टॉर्च जलाकर पहाड़ी के ऊपर कुछ इशारा किया !

तुरंत ही पहाड़ी के ऊपर से आगे की ओर टॉर्च जलाकर एक अन्य संकेत दिया गया, ये सब क्रमबद्ध तरीके से कुछ ही समय अंतराल में हुआ ! ड्राइवर से इस मार्ग पर लूटपाट होने की बात सुनने के बाद हम सब सचेत थे इसलिए हर छोटी-बड़ी गतिविधि पर नज़र रखे हुए थे ! जैसे ही हम घूमकर पहाड़ी के दूसरी ओर पहुँचे, मुख्य मार्ग के आधे हिस्से में बड़े-2 पत्थर रखे थे, इन पत्थरों को कुछ इस तरह से रखा गया था कि ज़रूरत पड़ने पर कुछ ही पल में रास्ता बाधित किया जा सके ! ये सारी घटना एक किलोमीटर के दायरे में हुई, शंका तो हमें तभी हो गई थी जब हमारी गाड़ी पर टॉर्च से रोशनी की गई थी ! गाड़ी में इसी बात को लेकर हम सब चर्चा भी कर रहे थे, इन पत्थरों को देखकर हमारी शंका यकीन में बदल गई ! ड्राइवर को मिलाकर गाड़ी में हम कुल 9 लोग थे, अगर कम लोग होते तो लूटपाट के लिए निश्चित तौर पर ये लोग इन पत्थरों से रास्ते में अवरोध उत्पन्न करते ! इक्का-दुक्का या महिलाओं संग यात्रा करने वाले यात्रियों को ये लोग बड़ी आसानी से अपना शिकार बना लेते है, लेकिन हम 9 लोग थे, और हम सब हर परिस्थिति का मुकाबला करने के लिए तत्पर थे ! 

अब इन लोगों ने टॉर्च जलाकर क्या इशारा किया, ये तो पता नहीं, लेकिन मार्ग में अवरोध ना होने के कारण हमने ये अंदाज़ा लगा लिया कि इनका इशारा था कि गाड़ी नहीं रोकनी ! हम ज़्यादा लोग थे इसलिए पत्थर ज्यों के त्यों पड़े रहे ! यहाँ से आगे तो काफ़ी दूर तक इसी बात पर चर्चा चलती रही, गुप्प रास्ते में गाड़ी की रोशनी ही उजाला कर रही थी, बीच-2 में सुनसान सड़क के किनारे कुछ मोटरसाइकल भी खड़ी दिखी ! खैर, थोड़ी देर बाद सड़क के किनारे हमें बड़े-2 कुछ रिज़ॉर्ट और होटल दिखाई दिए ! इन होटलों में कृत्रिम रोशनी से की गई सजावट दूर से ही सबको अपनी ओर आकर्षित कर रही थी, सड़क के किनारे जगह-2 इन होटलों से संबंधित बोर्ड भी लगे थे ! यहाँ के कुछ होटलों में स्पा और बार भी थे, गाड़ी में बैठे कुछ साथियों का मत ये भी था कि अगर कहीं होटल नहीं मिला तो किसी स्पा या बार में ही चलकर बैठेंगे ! ऐसे ही एक होटल के सामने गाड़ी खड़ी करके हम रात्रि विश्राम के लिए कमरे के बारे में पूछने गए ! कमरा तो काफ़ी अच्छा था, लेकिन किराया 2500 रुपए प्रति कमरा था, और एक कमरे में 2 से ज़्यादा लोग नहीं रुक सकते थे ! 

मतलब 8 लोगों के लिए हमें 10000 रुपए खर्च करने पड़ते, जो हमारे लिए बहुत ज़्यादा थे, वापिस आकर हम गाड़ी लेकर आगे बढ़ गए ! वैसे, अगर आप परिवार संग यात्रा कर रहे है तो इन होटलों में रुकना एक अच्छा अनुभव रहेगा ! यहाँ से आगे बढ़े तो थोड़ी देर में "केलवाड़ा गाँव" में पहुँच गए, ये एक रिहायशी इलाक़ा था, यहाँ भी एक छोटा सा बाज़ार था, बाज़ार में आमने-सामने गिनती के कुछ होटल भी थे ! सड़क के किनारे गाड़ी खड़ी करके हम 2-2 लोगों के समूह बनाकर इन होटलों में कमरा ढूँढने चल दिए ! दोनों ही होटलों में हमें कमरा पसंद आ गया, एक होटल में डबल बेडरूम सेट था तो दूसरे में हमें एक बड़ा हॉल मिल गया, जिसमें 9 सिंगल बेड लगे थे ! बिना देरी किए हमने हॉल को चुना, थोड़ा मोलभाव किया तो 1200 रुपए में सौदा तय हो गया ! अलग-2 कमरों में रुकने पर वो मस्ती नहीं हो पाती जो यहाँ एक हॉल में रुककर हमने की ! हम अपना सामान लेकर होटल में पहुँच गए और कागज़ी कार्यवाही की औपचारिकता पूरी करने के बाद अपने कमरे में आ गए ! दिन भर के सफ़र और घूमने के कारण अच्छी थकान हो गई थी, पैर भी दर्द कर रहे थे ! 

हाथ-पैर धोने के बाद थोड़ी थकान दूर हुई, हॉल में अपने-2 बेड पर बैठकर हम सब गप्पे मारने लगे, इस बीच दुष्यंत जाकर खाने का ऑर्डर दे आया ! आज बड़ी मजेदार महफ़िल जमी, काफ़ी देर तक बातों का दौर चलता रहा, खूब गप्पे मारे ! आज देव सिंह की बढ़िया खिंचाई की, हवा सिंह ने जो प्रश्नों की आहुति दी, उनका जवाब देव के पास नहीं था, रवि बेनीवाल बीच-2 में हवा सिंह के प्रश्नों की आहुति में घी डालता रहा ! आज भी जब हम उस रेकॉर्डिंग को सुनते है तो खूब हंसते है ! पौने घंटे बाद हम अपने कमरे से निकलकर खाना खाने के लिए होटल के डाइनिंग हॉल में पहुँच गए ! खाना स्वादिष्ट बना था, दिन भर की भूख यहाँ खाना खाकर शांत हुई ! आधे घंटे बाद खाना खाकर फारिक हुए तो कुछ देर होटल के बाहर सड़क पर टहलने के बाद वापिस अपने हॉल में पहुँच गए ! थोड़ी देर की मशक्कत के बाद नींद ने सबको अपनी आगोश में ले लिया, नींद खुली रात को 3 बजे, जब होटल के बाहर कुत्तों के तेज-2 भोंकने की आवाज़ें आ रही थी ! 

कमरे की खिड़कियाँ खुली होने के कारण शोर इतना बढ़ गया कि मेरे अलावा कुछ अन्य साथियों की भी नींद खुल गई ! उठकर खिड़की से झाँककर बाहर देखा तो कुत्तों का एक समूह एक ओर मुँह करके लगातार भौंके का रहे थे ! शायद कुत्तों को कोई सियार या अन्य वन्य जीव दिख गया था, कमरे की सारी खिड़कियाँ बंद की, तब जाकर थोड़ी राहत मिली ! उसके बाद जब बिस्तर पर जाकर नींद आई तो फिर सुबह रोशनी होने पर ही आँख खुली ! चलिए इस लेख पर यहीं विराम लगाता हूँ धीरे-2 लेख काफ़ी बड़ा हो गया है, इसलिए कुम्भलगढ़ किले में घूमने का वर्णन इस यात्रा के अगले लेख में करूँगा !

केलवाड़ा गाँव में हमारे होटल के सामने के दृश्य

क्यों जाएँ (Why to go Kumbhalgarh): अगर आप किले और ऐतिहासिक इमारतें देखने का शौक रखते है तो आपको यहाँ ज़रूर जाना चाहिए क्योंकि इस किले की दीवार को दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी दीवार होने का दर्जा प्राप्त है ! इसके अलावा भी कुम्भलगढ़ और इसके आस-पास घूमने के लिए काफ़ी कुछ है !

कब जाएँ (Best time to go Kumbhalgarh): वैसे तो आप साल के किसी भी महीने में घूमने के लिए माउंट आबू जा सकते है लेकिन सितंबर से मार्च यहाँ घूमने जाने के लिए सबसे बढ़िया मौसम है ! गर्मियों में तो यहाँ बुरा हाल रहता है !

कैसे जाएँ (How to reach Kumbhalgarh): दिल्ली से 
कुम्भलगढ़ की दूरी लगभग 614 किलोमीटर है ! यहाँ जाने का सबसे बढ़िया साधन रेल मार्ग है और यहाँ का नज़दीकी रेलवे स्टेशन "रानी" है जिसकी दूरी कुम्भलगढ़ से महज 35 किलोमीटर है, जिसे आप बस या जीप से तय कर सकते है ! दिल्ली से रानी के लिए नियमित रूप से एक ट्रेन चलती है, जो रात को दिल्ली से चलकर सुबह रानी पहुँचा देती है ! ट्रेन से दिल्ली से कुम्भलगढ़ जाने में 12 घंटे का समय लगता है जबकि अगर आप सड़क मार्ग से जाना चाहे तो दिल्ली से कुम्भलगढ़ के लिए बसें तो नहीं चलती लेकिन आप टैक्सी से जा सकते है ! अगर आप निजी वाहन से कुम्भलगढ़ जाने की योजना बना रहे है तो दिल्ली जयपुर राजमार्ग से अजमेर होते हुए कुम्भलगढ़ जा सकते है निजी वाहन से आपको 12-13 घंटे का समय लगेगा ! इसके अलावा अगर आप हवाई यात्रा का आनंद लेना चाहते है तो यहाँ का सबसे नज़दीकी हवाई अड्डा उदयपुर जिसकी दूरी यहाँ से 115 किलोमीटर के आस पास है ! हवाई यात्रा में आपको सवा घंटे का समय लगेगा !

कहाँ रुके (Where to stay in Kumbhalgarh): कुम्भलगढ़ राजस्थान का एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है यहाँ रोजाना हज़ारों देशी-विदेशी सैलानी घूमने के लिए आते है ! सैलानियों के रुकने के लिए यहाँ होटलों की भी कोई कमी नहीं है कई बड़े होटल और रिज़ॉर्ट है ! जबकि छोटे होटल तो गिनती के ही है, जहाँ छोटे होटलों के लिए आपको 800-900 रुपए खर्च पड़ेंगे वहीं रिज़ॉर्ट में प्रतिदिन रुकने का खर्च 3000 से ऊपर ही आएगा !

क्या देखें (Places to see in Kumbhalgarh): कुम्भलगढ़ और इसके आस-पास देखने के लिए वैसे तो बहुत जगहें है लेकिन यहाँ का मुख्य आकर्षण कुम्भलगढ़ का किला है जिसे देखने के लिए लोग देश-विदेश से आते है ! कुम्भलगढ़ वन्यजीव उद्यान भी यहाँ देखने लायक जगह है, कुम्भलगढ़ से उदयपुर जाते हुए रास्ते में हल्दी घाटी नामक एक जगह पड़ती है जहाँ महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक का स्मारक बना है ! घूमने आने वाले लोग ये स्मारक देखने भी ज़रूर जाते है ! उदयपुर यहाँ से 102 किलोमीटर दूर है, और वहाँ देखने के लिए सिटी पैलेस, लेक पैलेस, सहेलियों की बाड़ी, पिछोला झील, फ़तेह सागर झील, रोपवे, एकलिंगजी मंदिर, जगदीश मंदिर, जैसमंद झील, चित्तौडगढ़ किला और सज्जनगढ़ वन्य जीव उद्यान है ! इसके अलावा माउंट आबू जोकि यहाँ से 170 किलोमीटर दूर है वहाँ भी देखने के लिए कई जगहें है जिसमें दिलवाड़ा मंदिर, नक्की झील, गुरु शिखर, ट्रेवर टेंक वन्य जीव उद्यान प्रमुख है !

अगले भाग में जारी...

उदयपुर - कुम्भलगढ़ यात्रा
  1. उदयपुर में पहला दिन – स्थानीय भ्रमण (Local Sight Seen in Udaipur)
  2. उदयपुर का सिटी पैलेस, रोपवे और पिछोला झील (City Palace, Ropeway and Lake Pichola of Udaipur)
  3. उदयपुर से माउंट आबू की सड़क यात्रा (A Road Trip from Udaipur to Mount Abu)
  4. दिलवाड़ा के जैन मंदिर (Jain Temple of Delwara, Mount Abu)
  5. माउंट आबू से कुम्भलगढ़ की सड़क यात्रा (A Road Trip From Mount Abu to Kumbhalgarh)
  6. कुम्भलगढ़ का किला - दुनिया की दूसरी सबसे लंबी दीवार (Kumbhalgarh Fort, The Second Longest Wall of the World)
  7. हल्दीघाटी का ऐतिहासिक युद्ध और महाराणा प्रताप संग्रहालय (The Battle of Haldighati and Maharana Pratap Museum)
Pradeep Chauhan

घूमने का शौक आख़िर किसे नहीं होता, अक्सर लोग छुट्टियाँ मिलते ही कहीं ना कहीं घूमने जाने का विचार बनाने लगते है ! पर कुछ लोग समय के अभाव में तो कुछ लोग जानकारी के अभाव में बहुत सी अनछूई जगहें देखने से वंचित रह जाते है ! एक बार घूमते हुए ऐसे ही मन में विचार आया कि क्यूँ ना मैं अपने यात्रा अनुभव लोगों से साझा करूँ ! बस उसी दिन से अपने यात्रा विवरण को शब्दों के माध्यम से सहेजने में लगा हूँ ! घूमने जाने की इच्छा तो हमेशा रहती है, इसलिए अपनी व्यस्त ज़िंदगी से जैसे भी बन पड़ता है थोड़ा समय निकाल कर कहीं घूमने चला जाता हूँ ! फिलहाल मैं गुड़गाँव में एक निजी कंपनी में कार्यरत हूँ !

8 Comments

  1. अभी तक यह किला और यह दीवार देखने की इच्छा बाकि है देखते है कब मौका मिलता है।

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    1. अरे वाह, संदीप भाई फिर तो लगा ही आओ एक चक्कर !

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  2. सजीव विवरण। कुछ दिनों पहले माउंट आबू होकर आये लेकिन माउंट आबू तक ही सीमित रहे। कुम्भलगढ़ के किले को देखने जल्द ही जाना पड़ेगा। टोर्च से इशारों वाला अनुभव भयावह था।

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    1. धन्यवाद विकास भाई, वाकई देखने लायक जगह है कुम्भलगढ़ का किला !

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  3. बढ़िया यात्रा कुंभलगढ़ की

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    1. धन्यवाद प्रतीक भाई !

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  4. बहुत ही सुंदर लेख प्रदीप भाई, ड्राइवर की बातों और टार्च वाली घटना से सच मे सफ़र और भी रोमांचक हो गया,कुम्भलघड़ फोर्ट के अगले लेख का इंतज़ार रहेगा |

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    1. धन्यवाद नितिन भाई, अगला लेख कल तक प्रकाशित हो जाएगा !

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