वीरवार, 12 अक्तूबर 2017
रुद्रप्रयाग से चले तो दोपहर के 3 बज रहे थे, आधे घंटे का सफ़र तय करके हम अगस्त्यमुनि मंदिर (Augustyamuni Temple) पहुंचे, समुद्रतल से 1000 मीटर की ऊँचाई पर मन्दाकिनी नदी के किनारे सड़क के दूसरी ओर स्थित ये मंदिर रुद्रप्रयाग से 19 किलोमीटर दूर है ! इस मंदिर को प्रसिद्द हिन्दू मुनि अगस्त्य ऋषि का घर माना जाता है, अगस्त्य ऋषि एक दक्षिण भारतीय मुनि थे जो जंगलों में विचरण करते हुए उत्तराखंड आए और सिला ग्राम में रहकर उन्होंने अनेक वर्षों तक तपस्या की ! इस दौरान उन्होंने यहाँ एक शिव मंदिर भी बनवाया जो बाद में अगस्त्येश्वर महादेव मंदिर (Augstyashwar Mahadev Temple) के नाम से प्रसिद्द हुआ ! प्रारंभ में तो ये मंदिर दक्षिण भारतीय शैली में बना हुआ था, लेकिन बाद में जब इस मंदिर का पुनरुद्धार हुआ तो इसे वर्तमान स्वरुप दिया गया ! मंदिर के मुख्य भवन में अगस्त्य मुनि का कुंड और उनके शिष्य भोगाजित की प्रतिमा स्थित है ! ये सब जानकारी मंदिर परिसर में एक दीवार पर अंकित थी ! साल में एक दिन यहाँ मेला भी लगता है तब देश-विदेश से हज़ारों श्रद्धालु इस मेले में शामिल होने के लिए आते है, बैसाखी का त्यौहार भी यहाँ बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है !
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अगस्त्यमुनि मंदिर का एक दृश्य (A View of Augstyamuni Temple) |
इस मंदिर के पत्थर की दीवारों पर हिन्दू देवी-देवताओं के सुन्दर चित्र तराशे गए है, जो यहाँ आने वाले लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करते है ! अगस्त्यमुनि क्षेत्र काफी चहल-पहल वाला इलाका है, मंदिर की ओर जाने वाली सीढियाँ सड़क के किनारे बनी दुकानों के बीच में है ! अगर आप इस इलाके से गुजर रहे है तो सड़क पर चलते हुए आप आगे निकल जायेंगे और आपको पता भी नहीं चलेगा ! केदारनाथ मंदिर तक ले जाने वाले हेलीकाप्टर की उड़ान सेवा भी अगस्त्यमुनि से शुरू हो जाती है, इसके अलावा यहाँ आस-पास वन-विभाग के कई अतिथिगृह है जहाँ यात्रियों के ठहरने और भोजन की उचित व्यवस्था है ! हमारा साथी अनिल बार-2 जूते उतारते हुए परेशान हो गया था इसलिए यहाँ सड़क के किनारे गाडी खड़ी करते ही उसने एक दूकान से अपने लिए चप्पल ले लिए ! हालांकि, मैं उससे बोला, इस मंदिर को देखने के बाद हम सीधे सोनप्रयाग जाकर रुकेंगे और केदारनाथ की चढ़ाई भी हम जूते पहनकर ही करेंगे, इसलिए अब इस चप्पल का ज्यादा फायदा नहीं है !
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मंदिर जाने का मार्ग (Way to Augstyamuni Temple) |
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अगस्त्यमुनि मंदिर का प्रवेश द्वार (Entrance of Augstyamuni Temple) |
लेकिन उसने कहा कोई बात नहीं, जूते पहने-2 पैर दुःख रहे है, सफ़र के दौरान चप्पल पहनकर पैरों को थोडा आराम मिल जायेगा ! गाडी सड़क के किनारे खड़ी करके हम सीढ़ियों से होते हुए मंदिर के मुख्य द्वार के सामने पहुंचे ! जूते-चप्पल मंदिर के बाहर उतारकर, प्रवेश द्वार से होते हुए हम मंदिर परिसर में दाखिल हुए ! जिस समय हम मंदिर में पहुंचे, मुख्य भवन का प्रवेश द्वार बंद था इसलिए मंदिर परिसर में घूमते हुए हमें मुख्य भवन के बाहर से ही दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ ! मंदिर परिसर में एक जगह अगस्त्यमुनि के आस-पास के दर्शनीय स्थलों की दूरी भी अंकित थी, फिल्हाल तो इस मंदिर के आस-पास काफी बसावट हो गई है ! लेकिन ये अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है कि जब इस मंदिर की स्थापना हुई होगी, तो यहाँ काफी घना जंगल रहा होगा ! खैर, मंदिर परिसर में घूमते हुए कुछ चित्र लेने के बाद हमने वापसी की राह पकड़ी ! हम यहाँ से चले तो पौने चार बज रहे थे, और सोनप्रयाग अभी भी यहाँ से लगभग 55 किलोमीटर दूर था !
हालांकि, मुझे समय का ये बंधन थोडा अटपटा लगा, केदारनाथ मंदिर में भीड़ होने पर एक घंटे में दर्शन करना शायद संभव ना हो ! हालांकि, मैंने समय की इस पाबन्दी को लेकर ज्यादा खोजबीन नहीं की, वैसे, अगर आप चाहे तो मात्र 3500 रूपए खर्च करके एक तरफ की हवाई यात्रा का भी आनंद ले सकते है ! मुझे तो ये विकल्प ज्यादा अच्छा लगा, पर इसमें भी सीट की उपलब्धता के ऊपर ही निर्धारित होगा कि आपको हेलीपेड पर कितना इन्तजार करना पड़ेगा ! फाटा में एक हेलीपेड पर हेलीकाप्टर में फ्यूल डाला जा रहा था, गाडी सड़क के किनारे खड़ी करके फोटो खींचने के लिए हम हेलीपेड की ओर गए ! लेकिन हेलीपेड से थोड़ी पहले खड़े एक सुरक्षाकर्मी ने हमें आगे बढ़ने से रोक दिया, हमने दूर से ही हेलीकाप्टर का फोटो लिया और सोनप्रयाग की ओर बढ़ गए ! गुप्तकाशी से आगे बढ़ने पर एक-दो जगह टूटा हुआ मार्ग मिला, तो कहीं बहुत ज्यादा चढ़ाई भी मिली ! एक जगह रास्ता टूटा होने के कारण सभी लोगों को गाडी से उतारकर गाडी निकालनी पड़ी ! खैर, ज्यादा दिक्कत नहीं हुई और हम सकुशल आगे बढ़ते रहे, ऐसे ही आगे बढ़ते हुए हमें सड़क के किनारे खड़े कुछ सुरक्षाकर्मी दिखाई दिए !
हमें रुकने का इशारा करके कुछ सुरक्षाकर्मी हमारे पास आए और गाडी चेक करवाने को बोले ! चेकिंग से हमें कोई आपति नहीं थी, गाडी की डिग्गी खोलकर पूरी गाडी चेक करवा दी ! फाटा से आगे बढ़ने के बाद ये मार्ग एक पहाड़ी पर चढ़ रहा था, शाम हो चुकी थी, हल्का-2 अँधेरा भी होने लगा था, एक मोड़ पर पहुंचकर इस पहाड़ी से सामने दूसरी पहाड़ी पर हरे-भरे सीढ़ीनुमा खेत एक शानदार दृश्य प्रस्तुत कर रहे थे ! गाडी सड़क के किनारे खड़ी करके हमने सामने वाली पहाड़ी के कुछ फोटो लिए और ज्यादा समय ना गंवाते हुए अपना सफ़र जारी रखा ! रास्ते में जगह-2 कुछ रिहायशी इलाके भी आते रहे, जहाँ भी कोई इलाका आता सड़क पर थोडा चहल-पहल भी बढ़ जाती, उसके बाद मार्ग पर फिर से वोही सन्नाटा पसर जाता ! सोनप्रयाग पहुँचते-2 अँधेरा हो चुका था, सोनप्रयाग पहुंचे से थोडा पहले हमारी बाईं ओर एक मार्ग ऊपर की ओर जा रहा था ! इस मोड़ पर लगे एक बोर्ड के मुताबिक ये मार्ग त्रियुगीनारायण मंदिर जाता है, ये वही मंदिर है जहाँ भगवान् शिव की शादी हुई थी ! लेकिन हमारे पास गूगल मैप से प्राप्त जो जानकारी थी उसके अनुसार सोनप्रयाग से इस मंदिर की दूरी महज 5 किलोमीटर है !
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सोनप्रयाग जाते हुए रास्ते में एक दृश्य |
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सोनप्रयाग जाते हुए रास्ते में एक दृश्य |
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सोनप्रयाग जाते हुए रास्ते में एक दृश्य |
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सोनप्रयाग जाते हुए रास्ते में एक दृश्य |
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सोनप्रयाग जाते हुए रास्ते में एक दृश्य |
जबकि यहाँ इस मोड़ पर अंकित बोर्ड के अनुसार ये दूरी 13 किलोमीटर थी, खैर, बाद में स्थानीय लोगों से पूछताछ पर पता चला कि 5 किलोमीटर वाला पैदल मार्ग है ! शुरू में तो मैंने गाडी मंदिर की ओर जाने वाले इस मार्ग पर मोड़ दी, लेकिन 1 किलोमीटर दूर जाने के बाद, चढ़ाई भरे घुमावदार पहाड़ी मार्ग को देखकर इस समय मंदिर जाने की इच्छा त्यागकर वापिस सोनप्रयाग की ओर गाडी घुमा दी ! सोनप्रयाग से थोड़ी पहले दाईं ओर एक पार्किंग स्थल है, जहाँ 120 रूपए प्रतिदिन (24 घंटे) के हिसाब से शुल्क लगता है ! हम पार्किंग में ना जाकर सीधे सोनप्रयाग जाकर रुके, ये एक छोटा क़स्बा है, सड़क के दाईं तरफ एक पुलिस चौकी है और इसके बगल में ही केदारनाथ जाने वाले श्रधालुओं के लिए रजिस्ट्रेशन कार्यलय (Registration Office, Kedarnath) है ! यहाँ पहुंचकर हमारा पहला काम रात्रि विश्राम के लिए एक होटल ढूँढने का था, गाडी एक किनारे खड़ी करके मैं और देवेन्द्र आस-पास के होटलों में पूछताछ करने चल दिए ! थोड़ी ही देर में हमें चौहान रेस्टोरेंट (Chauhan Restaurant) में रुकने के लिए एक कमरा मिल गया, किराया 400 रूपए प्रतिदिन और गरम पानी का शुल्क 50 रूपए प्रति बाल्टी !
हमें कोई आपति नहीं थी, कुछ कागजी कार्यवाही पूरी करने के बाद अपना-2 सामान लेकर हम सब प्रथम तल पर स्थित अपने कमरे में चल दिए ! सामान रखकर थोड़ी देर बाद हम नीचे आ गए और कुछ देर सोनप्रयाग में आस-पास टहलने के बाद खाना खाने के लिए एक होटल में जाकर बैठ गए ! थोडा इन्तजार करने के बाद हमारा खाना परोस दिया गया, खाना खाकर उठे तो हमने सुबह सोनप्रयाग से गौरीकुंड तक चलने वाली जीपों से सम्बंधित जानकारी भी जुटा ली, ताकि सुबह कोई परेशानी ना हो ! सुबह 5 बजे रजिस्ट्रेशन कार्यालय खुल जाता है और गौरीकुंड जाने के लिए जीपें भी 5 बजे ही चलनी शुरू हो जाती है ! वैसे आप चाहे तो रात को की अपना रजिस्ट्रेशन करवाकर सुबह समय से ही सोनप्रयाग से प्रस्थान कर सकते है ! खाना खाकर टहलते हुए हम गौरीकुंड की ओर जाने वाले मार्ग पर कुछ दूर तक गए, इस बीच एक दूकान पर रूककर 1-1 गिलास दूध भी पिया ! गिलास क्या था, स्टील का चाय वाला कप था, मुश्किल से 150 मिलीमीटर दूध आता होगा, पर ऐसी ठंडी जगहों पर गर्म दूध पीने से शरीर को गर्माहट तो मिलती ही है !
दूध का बिल चुकाते हुए एक मजेदार घटना घटी, हुआ कुछ यूं कि हमने 3 गिलास दूध लिया था, दूध लेने से पहले जब पुछा था तो उस दुकानदार ने कहा पहले दूध तो पी लो ! जब बिल चुकाने की बारी आई तो उस दुकानदार ने पहले 60 रूपए कहा लेकिन फिर 70 रूपए मांगे ! इस बात को लेकर हम काफी देर तक हंसी-मजाक करते रहे, कि शायद पहले वाले बिल में जीएसटी लगाना रह गया होगा ! वैसे, ट्रिप के अंत तक किसी को इस दूध का हिसाब समझ नहीं आया ! बेहतर है कि इस क्षेत्र में आप खाने से पहले सामान का मूल्य ज़रूर पूछ ले, क्योंकि हमारे साथ इस यात्रा पर ऐसे कई वाकये हुए जब पहले मूल्य कुछ बताया गया खा-पीकर फारिक होने के बाद बिल अलग रेट से बनाया गया ! टहलते हुए अब हम अपने कमरे में पहुँच चुके थे, दिनभर के सफ़र के बाद अच्छी थकान हो गई थी ! रात्रि विश्राम के बाद सुबह समय से उठकर केदारनाथ की पद यात्रा शुरू करनी है ! जिसका वर्णन मैं इस यात्रा के अगले लेख में करूँगा !
क्यों जाएँ (Why to go Sonprayag): अगर आपको धार्मिक स्थानों पर जाना अच्छा लगता है तो निश्चित तौर पर उत्तराखंड स्थित सोनप्रयाग में आकर आप निराश नहीं होंगे ! केदारनाथ जाने के लिए सोनप्रयाग बेस कैम्प है और यहाँ घूमने के लिए अनेकों जगहें है, शहर की भीड़-भाड़ से दूर 2-3 दिन आप यहाँ आराम से बिता सकते है !
कब जाएँ (Best time to go Sonprayag): वैसे तो आप सोनप्रयाग साल भर किसी भी महीने में जा सकते है लेकिन दिवाली के बाद केदारनाथ के द्वार बंद हो जाते है, जो फिर मई में खुलते है ! बारिश के मौसम में भी उत्तराखंड में बादल फटने की घटनाएँ अक्सर होती रहती है इसलिए इन दोनों मौसम में ना ही जाएँ ! अगर फिर भी इस दौरान जाने का विचार बने तो अतिरिक्त सावधानी बरतें !
कैसे जाएँ (How to reach Sonprayag): दिल्ली से सोनप्रयाग की कुल दूरी लगभग 460 किलोमीटर है जिसे तय करने में आपको लगभग 15 से 16 घंटे का समय लगेगा ! दिल्ली से सोनप्रयाग जाने के लिए सबसे बढ़िया मार्ग हरिद्वार-देवप्रयाग-रुद्रप्रयाग होते हुए है, दिल्ली से हरिद्वार तक 4 लेन राजमार्ग बना है जबकि ऋषिकेश से आगे पहाड़ी मार्ग शुरू हो जाता है और सिंगल मार्ग है ! आप चाहे तो हरिद्वार तक का सफ़र ट्रेन से कर सकते है और हरिद्वार से आगे का सफ़र बस या जीप से तय कर सकते है ! इसमें आपको थोडा अधिक समय लगेगा !
कहाँ रुके (Where to stay near Sonprayag): सोनप्रयाग में रुकने के लिए कई होटल है जहाँ रुकने के लिए आपको 500-600 रूपए खर्च करने पड़ेंगे ! होटल में खान-पान और सुख सुविधाओं की बहुत ज्यादा उम्मीद ना करें !
क्या देखें (Places to see near Sonpayag): सोनप्रयाग एक धार्मिक स्थल है, यहाँ वासुकी गंगा और मन्दाकिनी नदियों का संगम भी होता है ! सोनप्रयाग से 13 किलोमीटर दूर त्रियुगीनारायण का मंदिर है, जबकि सोनप्रयाग से 5 किलोमीटर दूर गौरीकुंड में भी पारवती माता का मंदिर है !
अगले लेख में जारी...
केदारनाथ यात्रा
- दिल्ली से केदारनाथ की एक सड़क यात्रा (A Road Trip from Delhi to Kedarnath)
- उत्तराखंड के कल्यासौड़ में है माँ धारी देवी का मंदिर (Dhari Devi Temple in Uttrakhand)
- रुद्रप्रयाग में है अलकनंदा और मन्दाकिनी का संगम (Confluence of Alaknanda and Mandakini Rivers - RudrPrayag)
- रुद्रप्रयाग में है कोटेश्वर महादेव मंदिर (Koteshwar Mahadev Temple in Rudrprayag)
- रुद्रप्रयाग से अगस्त्यमुनि मंदिर होते हुए सोनप्रयाग (A Road Trip from Rudrprayag to Sonprayag)
- गौरीकुंड से रामबाड़ा की पैदल यात्रा (A Trek from Gaurikund to Rambada)
- रामबाड़ा से केदारनाथ की पैदल यात्रा (A Trek from Rambada to Kedarnath)
- केदार घाटी में स्थित भैरवनाथ मंदिर (Bhairavnath Temple in Kedar Valley)
- केदारनाथ धाम की संध्या आरती (Evening Prayer in Kedarnath)
- केदारनाथ से वापसी भी कम रोमांचक नहीं (A Trek from Kedarnath to Gaurikund)
- सोनप्रयाग का संगम स्थल और त्रियुगीनारायण मंदिर (TriyugiNarayan Temple in Sonprayag)
बढिया लिखा
ReplyDeleteधन्यवाद सचिन भाई !
DeleteBhaut acchi jankaari di h bhaut badhiya lekh h Jai Mahadev
Deleteजी धन्यवाद ! जानकर अच्छा लगा कि लेख आपको पसंद आया !
DeleteBHAI PRADEEP AAP KA YATRA KA VARNAN BAHUT HI ACHHA LAGA NAINITAL AUR DALHOUSIE DHARMSALA AUR BHAG SUNAG KI YATRA MAINE BHI KI HAI KAFI ACHHA LAGA
ReplyDeleteशर्मा जी उत्साहवर्धन के लिए आपका दिल से आभार ! जानकर अच्छा लगा कि आपको लेख पसंद आया !
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