शुक्रवार, 13 अक्तूबर 2017
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पिछले लेख में आपने केदार घाटी में स्थित भैरवनाथ मंदिर के बारे में पढ़ा ! अब आगे, चाय पीने के बाद घूमते हुए हम मंदिर परिसर में पहुंचे ! मंदिर में इस समय आरती की तैयारियां चल रही थी, जो शाम साढ़े छह बजे शुरू होती है, अभी साढ़े पांच बज रहे थे, इसलिए हम टहलते हुए मंदिर के पीछे चल दिए ! मंदिर के ठीक पीछे हमने भीम शिला देखी, इस शिला के बारे में तो आप जानते ही होंगे, अगर नहीं जानते तो आपको बता दूं कि यही वो शिला है जिसने 2013 में केदारनाथ में आई त्रादसी के समय केदारनाथ मंदिर की रक्षा की थी ! स्थानीय लोग बताते है कि प्रलय से पहले यहाँ ये शिला नहीं थी, लेकिन 2013 में जब चोराबारी ताल के रास्ते प्रलय आई तो पता नहीं कहाँ से 25-30 फीट चौड़ा ये पत्थर मंदिर के ठीक पीछे आकर कुछ इस तरह रुक गया कि ऊपर से बहकर आ रहा मलवा इस पत्थर से टकराकर दाएं-बाएं मुड गया ! इस मलवे में बहुत सारा कीचड और बड़े-2 पत्थर बहकर आए थे जिसने केदार घाटी में भयंकर प्रलय मचाया था ! इस प्रलय में मंदिर तो पानी में डूब गया, लेकिन भीम शिला ने मुख्य इमारत को मलवे की वजह से कोई हानि नहीं होने दी !
अगर ये मलवा सीधे मंदिर से टकराया होता तो मंदिर की इमारत को भारी क्षति हुई होती ! कुछ लोग तो इस शिला की भी पूजा करते है, जिसकी पुष्टि आप शिला पर लगे तिलक से कर सकते है ! हम यहाँ खड़े होकर मंदिर के पिछले भाग और इसके आस-पास के चित्र खींचने में लगे थे, यहाँ मंदिर के पीछे काफी दूर तक बड़े-2 पत्थर गिरे हुए थे जो त्रादसी के समय ऊपर चोराबारी ताल से बहकर यहाँ आए थे ! केदार घाटी में होने वाले निर्माण कार्य के लिए इन्हीं पत्थरों को तोड़कर काम में लाया जा रहा है, जगह-2 निर्माण सामग्री बिखरी पड़ी है ! कुछ दूरी पर एक जेसीबी मशीन और एक ट्रक भी खड़ा था, जेसीबी इन पत्थरों को तोड़ने का काम कर रही थी, जबकि ट्रक की सहायता से टूटे हुए इन पत्थरों को अलग-2 स्थानों पर ले जाया जाता है ! अब शाम होने लगी थी, धीरे-2 बादलों ने भी मंदिर के पीछे स्थित ऊंचे-2 पहाड़ों को अपनी गिरफ्त में लेना शुरू कर दिया था ! जैसे-2 शाम हो रही थी, मौसम भी ठंडा होता जा रहा था, हम सबने जैकेट पहन रखे थे उसके बाद भी हमें ठण्ड लग रही थी ! मंदिर के पीछे ऊंचे-2 पहाड़ों से मलवे के नीचे बहकर आने के निशान साफ़ दिखाई दे रहे थे, बारिश के दिनों में इसी रास्ते से पानी भी बहकर नीचे आता है !
केदारनाथ मंदिर में की गई सजावट |
अगर ये मलवा सीधे मंदिर से टकराया होता तो मंदिर की इमारत को भारी क्षति हुई होती ! कुछ लोग तो इस शिला की भी पूजा करते है, जिसकी पुष्टि आप शिला पर लगे तिलक से कर सकते है ! हम यहाँ खड़े होकर मंदिर के पिछले भाग और इसके आस-पास के चित्र खींचने में लगे थे, यहाँ मंदिर के पीछे काफी दूर तक बड़े-2 पत्थर गिरे हुए थे जो त्रादसी के समय ऊपर चोराबारी ताल से बहकर यहाँ आए थे ! केदार घाटी में होने वाले निर्माण कार्य के लिए इन्हीं पत्थरों को तोड़कर काम में लाया जा रहा है, जगह-2 निर्माण सामग्री बिखरी पड़ी है ! कुछ दूरी पर एक जेसीबी मशीन और एक ट्रक भी खड़ा था, जेसीबी इन पत्थरों को तोड़ने का काम कर रही थी, जबकि ट्रक की सहायता से टूटे हुए इन पत्थरों को अलग-2 स्थानों पर ले जाया जाता है ! अब शाम होने लगी थी, धीरे-2 बादलों ने भी मंदिर के पीछे स्थित ऊंचे-2 पहाड़ों को अपनी गिरफ्त में लेना शुरू कर दिया था ! जैसे-2 शाम हो रही थी, मौसम भी ठंडा होता जा रहा था, हम सबने जैकेट पहन रखे थे उसके बाद भी हमें ठण्ड लग रही थी ! मंदिर के पीछे ऊंचे-2 पहाड़ों से मलवे के नीचे बहकर आने के निशान साफ़ दिखाई दे रहे थे, बारिश के दिनों में इसी रास्ते से पानी भी बहकर नीचे आता है !
केदारनाथ मंदिर के पीछे भीम शिला |
केदारनाथ मंदिर के से दिखाई देता एक दृश्य |
केदारनाथ मंदिर के से दिखाई देता एक दृश्य |
केदारनाथ मंदिर के से दिखाई देता एक दृश्य |
केदारनाथ मंदिर के से दिखाई देता एक दृश्य |
केदारनाथ मंदिर के से दिखाई देता एक दृश्य |
रात में दिखाई देता केदारनाथ मंदिर |
रात में दिखाई देता केदारनाथ मंदिर |
रात में दिखाई देता केदारनाथ मंदिर |
थोड़ी देर टहलने के बाद हम एक होटल में पहुंचे, यहाँ अच्छी-खासी भीड़ थी, हम जाकर एक खाली टेबल के सामने बैठ गए ! इस समय होटल में बंगाली लोगों का एक समूह भोजन करने में लगा था, होटल पर कई कारीगर थे, लेकिन बंगालियों ने उन्हें ऐसा उलझाया कि होटल का लगभग हर कारीगर बौखलाया हुआ सा लग रहा था ! वैसे, आपको एक सलाह दूंगा कि केदारनाथ में अगर आप किसी भी होटल में खाने-पीने के लिए बैठे है तो सामान लेने से पहले उसका मूल्य ज़रूर पूछ ले, हमारे साथ ऐसा कई बार हुआ कि खाने से पहले सामान का दाम अलग था और खाने के बाद उसका अलग दाम लगाया गया ! कुछ देर बाद जब बंगाली लोग यहाँ से चले गए तो हमारा नंबर भी आ गया, उड़द-चने की दाल और गर्मा-गर्म रोटी खाकर मन तृप्त हो गया ! दाल में नमक काफी तेज थी, नींबू भी डालकर देख लिया, लेकिन नमक की तेजी नहीं गई ! आखिरकार, तेज नमक के साथ ही हमने खाना खाया, होटल के कारीगर बड़े खुश लग रहे थे, हमें लगा शायद बंगालियों से इन्हें अच्छी आमदनी हो गई है ! खाना खाते हुए होटल वाले से बातचीत के दौरान पता चला कि इस ढाबे पर काम करने वाले सभी लोग कल सुबह यहाँ से वापिस नीचे अपने घर जाने वाले थे !
एक लड़के ने बताया कि वो 4 महीने बाद अपने घर जा रहा है, और दीपावली का त्योहार अपने परिवार के साथ मनाएगा, इसकी ख़ुशी देखकर हमें भी बड़ा अच्छा लगा ! ये लोग बड़े खुश थे, आखिर खुश होना भी चाहिए, लम्बे समय के बाद परिवार के पास वापिस जाना किसे नहीं अच्छा लगता ! केदारनाथ के पट बंद होने में बहुत ही कम समय बचा था, दीपावली के अगले सप्ताह में ये बंद हो जायेगा और फिर अगले साल मई में इस मंदिर के पट खुलेंगे ! इस दौरान यहाँ रहने वाले दुकानदार भी नीचे चले जाते है और अपने-2 हुनर के हिसाब से अलग-2 कामों में व्यस्त हो जाते है ! मई में पट खुलते ही ये लोग फिर से यहाँ लौटने लगते है, ये सिलसिला सालों-साल ऐसे ही चलता रहता है, सब पापी-पेट का सवाल है, वरना अपना घर परिवार छोड़कर सुदूर स्थानों पर जाना किसे अच्छा लगता है ! खाना ख़त्म करके हम आराम करने के लिए वापिस अपने होटल की ओर चल दिए, ठण्ड बढ़ने के कारण चारों तरफ सन्नाटा पसर चुका था, होटल पहुँचते-2 हमें कंपकपी लग गई ! दिनभर घूमते-2 अच्छी थकान हो गई थी इसलिए सोने के लिए ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ी, भला हो उस होटल वाले का जिसने कमरे में पर्याप्त रजाइयाँ रखी हुई थी ! चलिए, इस लेख पर यहीं विराम लगाता हूँ, यहाँ से वापसी की यात्रा का वर्णन अगले लेख में करूँगा !
क्यों जाएँ (Why to go Kedarnath): अगर आपको धार्मिक स्थानों पर जाना अच्छा लगता है तो निश्चित तौर पर उत्तराखंड में स्थित केदारनाथ आपके लिए एक बढ़िया जगह है ! केदारनाथ उत्तराखंड में स्थित चार धाम में से एक है यहाँ जाने के लिए सोनप्रयाग बेस कैम्प है और यहाँ जाते हुए रास्ते में घूमने के लिए अनेकों जगहें है, शहर की भीड़-भाड़ से दूर 2-3 दिन आप यहाँ आराम से बिता सकते है !
कब जाएँ (Best time to go Kedarnath): केदारनाथ के द्वार हर वर्ष मई में खुलकर दीवाली के बाद बंद हो जाते है ! साल के 6 महीने भारी बर्फ़बारी के कारण केदारनाथ मंदिर बंद रहता है ! बहुत से लोग बर्फ़बारी के दौरान भी सोनप्रयाग आते है लेकिन इस दौरान बर्फ के अलावा उन्हें कुछ नहीं मिलता ! बारिश के मौसम में उत्तराखंड में बादल फटने की घटनाएँ अक्सर होती रहती है इसलिए इन दिनों भी यहाँ ना ही जाएँ ! अगर फिर भी इस दौरान जाने का विचार बने तो अतिरिक्त सावधानी बरतें !
कैसे जाएँ (How to reach Kedarnath): दिल्ली से केदारनाथ की कुल दूरी लगभग 481 किलोमीटर है, जिसमें से सोनप्रयाग तक की 460 किलोमीटर की दूरी आप निजी वाहन से भी तय कर सकते है ! सोनप्रयाग से आगे 5 किलोमीटर गौरीकुंड है जहाँ जाने के लिए सोनप्रयाग से जीपें चलती है ! अंतिम 17 किलोमीटर की यात्रा आपको पैदल ही तय करनी होती है ! सोनप्रयाग तक आपको लगभग 15 से 16 घंटे का समय लगेगा, सोनप्रयाग से आगे पैदल यात्रा करने में 7-8 घंटे लगते है ! दिल्ली से सोनप्रयाग जाने के लिए सबसे बढ़िया मार्ग हरिद्वार-देवप्रयाग-रुद्रप्रयाग होते हुए है, दिल्ली से हरिद्वार तक 4 लेन राजमार्ग बना है जबकि ऋषिकेश से आगे पहाड़ी मार्ग शुरू हो जाता है और सिंगल मार्ग है ! आप चाहे तो हरिद्वार तक का सफ़र ट्रेन से कर सकते है और हरिद्वार से आगे का सफ़र बस या जीप से तय कर सकते है ! इसमें आपको थोडा अधिक समय लगेगा !
कहाँ रुके (Where to stay near Kedarnath): केदारनाथ में रुकने के लिए कई होटल है जहाँ रुकने के लिए आपको 500-600 रूपए में कमरा मिल जायेगा ! मई-जून में ये किराया बढ़कर दुगुना भी हो जाता है ! हेलीपेड के पास डोरमेट्री की व्यवस्था भी है जहाँ प्रति व्यक्ति आपको 600-700 रूपए देने होंगे ! केदारनाथ में खान-पान के बहुत ज्यादा विकल्प नहीं है इसलिए सुख सुविधाओं की बहुत ज्यादा उम्मीद ना करें !
क्या देखें (Places to see near Kedarnath): केदारनाथ चार धामों में से एक धार्मिक स्थल है, यहाँ 1 किलोमीटर की दूरी पर भैरवनाथ मंदिर है, 4 किलोमीटर दूरी पर चोराबारी ताल भी है, चोराबारी ताल से आगे ग्लेशियर शुरू हो जाते है ! सोनप्रयाग में वासुकी गंगा और मन्दाकिनी नदियों का संगम होता है ! सोनप्रयाग से 13 किलोमीटर दूर त्रियुगीनारायण का मंदिर है, जबकि सोनप्रयाग से 5 किलोमीटर दूर गौरीकुंड में भी पार्वती माता का मंदिर है !
अगले लेख में जारी...
केदारनाथ यात्रा
केदारनाथ यात्रा
- दिल्ली से केदारनाथ की एक सड़क यात्रा (A Road Trip from Delhi to Kedarnath)
- उत्तराखंड के कल्यासौड़ में है माँ धारी देवी का मंदिर (Dhari Devi Temple in Uttrakhand)
- रुद्रप्रयाग में है अलकनंदा और मन्दाकिनी का संगम (Confluence of Alaknanda and Mandakini Rivers - RudrPrayag)
- रुद्रप्रयाग में है कोटेश्वर महादेव मंदिर (Koteshwar Mahadev Temple in Rudrprayag)
- रुद्रप्रयाग से अगस्त्यमुनि मंदिर होते हुए सोनप्रयाग (A Road Trip from Rudrprayag to Sonprayag)
- गौरीकुंड से रामबाड़ा की पैदल यात्रा (A Trek from Gaurikund to Rambada)
- रामबाड़ा से केदारनाथ की पैदल यात्रा (A Trek from Rambada to Kedarnath)
- केदार घाटी में स्थित भैरवनाथ मंदिर (Bhairavnath Temple in Kedar Valley)
- केदारनाथ धाम की संध्या आरती (Evening Prayer in Kedarnath)
- केदारनाथ से वापसी भी कम रोमांचक नहीं (A Trek from Kedarnath to Gaurikund)
- सोनप्रयाग का संगम स्थल और त्रियुगीनारायण मंदिर (TriyugiNarayan Temple in Sonprayag)
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Kedarnath
बढ़िया दर्शन करवा रहे हो भाई केदारनाथ के ...हर हर महादेव
ReplyDeleteधन्यवाद प्रतीक भाई |
Deletehar har mahadev mast bhai
ReplyDeleteHar har mahadev
Deleteबढिया यात्रा
ReplyDeleteउत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद सचिन भाई !
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