शनिवार, 14 अक्तूबर 2017
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वासुकी गंगा और मन्दाकिनी नदी का संगम
वासुकी गंगा और मन्दाकिनी नदी का संगम
यात्रा के पिछले लेख में आपने केदारनाथ से सोनप्रयाग वापसी के बारे में पढ़ा, अब आगे, होटल से अपने कपडे लेकर हम सोनप्रयाग में बने घाट की ओर नहाने के लिए चल दिए ! होटल वाले ने हमसे कहा कि नदी का पानी काफी ठंडा रहता है इसलिए हम होटल में ही नहाकर घूमने के लिए घाट पर जाएँ ! लेकिन हमने ठान लिया था कि आज सोनप्रयाग में नहाकर ही वापिस जाना है इसलिए ठण्ड की परवाह किए बिना ही हम होटल से निकलकर घाट की ओर चल दिए ! सोनप्रयाग से गौरीकुंड जाने वाले मार्ग पर 100-150 मीटर चलने के बाद ही दाईं ओर संगम स्थल है, जिस दिन हम सोनप्रयाग आए थे तो यहाँ पहुँचते हुए ही अँधेरा हो गया था इसलिए हम संगम नहीं देख पाए थे ! आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि सोनप्रयाग में वासुकी ताल से आने वाली वासुकी गंगा और केदारनाथ से आने वाली मन्दाकिनी नदी का संगम होता है ! संगम स्थल मुख्य मार्ग से काफी नीचे है, जहाँ जाने के लिए कुछ सीढियाँ बनी है, और सीढियाँ ख़त्म होते ही झाड-झंझाड़ है ! इस समय नदी में पानी काफी कम था, इसलिए नदी के किनारे दूर तक बिखरे छोटे-बड़े पत्थर दिखाई दे रहे थे ! बारिश के समय जब जलस्तर बढ़ जाता है तो पानी नदी के किनारे तक आ जाता है !
खैर, ज्यादा समय गँवाए बिना हम सीढ़ियों से उतरकर नदी के किनारे पड़े पत्थरों पर जाकर बैठ गए ! कुछ देर इधर-उधर घूमकर हमने नदी का मुआयना किया और फिर स्नान करने के लिए एक उपयुक्त स्थान ढूंढ लिया जहाँ पानी का बहाव ज्यादा तेज नहीं था ! इस समय हम जहाँ खड़े थे वहां से दोनों नदियाँ दिखाई दे रही थी, हमारी बाईं ओर से वासुकी गंगा आ रही थी तो दाईं ओर से मन्दाकिनी ! मुझे पक्के से तो नहीं पता लेकिन मेरे अनुमान के मुताबिक वासुकी गंगा के उद्गम स्थल वासुकी ताल जाने के लिए त्रियुगीनारायण मंदिर के पास से कोई रास्ता जाता है ! संगम स्थल पर नदी का जल एकदम साफ़ था, इतना साफ़ कि नदी की तलहटी में पड़े पत्थर भी साफ़ दिखाई दे रहे थे और पानी इतना ठंडा कि कुछ ही पलों में शरीर को सुन्न कर दे ! एक पत्थर पर बैठकर जैसे ही मैंने अपना पैर पानी में डाला, मेरे पैर की नसें झनझना उठी, लेकिन इसका एक फायदा भी हुआ कि सफ़र की थकान भी कुछ ही देर में चली गई ! नदी के बीच में पानी का बहाव काफी तेज था, इसलिए हम ज्यादा अन्दर नहीं गए, किनारे ही बैठकर नहाते रहे ! थोड़ी देर बाद जब नदी में डुबकी लगाईं तो खोपड़ी सुन्न हो गई, ऐसा लगा जैसे किसी ने सिर में एक साथ सैकड़ों पिन चुभा दिए हो, लेकिन फिर थोड़ी देर में सब सामान्य हो गया !
सोनप्रयाग में घाट के पास का एक दृश्य (A view of Sangam in Sonprayag) |
खैर, ज्यादा समय गँवाए बिना हम सीढ़ियों से उतरकर नदी के किनारे पड़े पत्थरों पर जाकर बैठ गए ! कुछ देर इधर-उधर घूमकर हमने नदी का मुआयना किया और फिर स्नान करने के लिए एक उपयुक्त स्थान ढूंढ लिया जहाँ पानी का बहाव ज्यादा तेज नहीं था ! इस समय हम जहाँ खड़े थे वहां से दोनों नदियाँ दिखाई दे रही थी, हमारी बाईं ओर से वासुकी गंगा आ रही थी तो दाईं ओर से मन्दाकिनी ! मुझे पक्के से तो नहीं पता लेकिन मेरे अनुमान के मुताबिक वासुकी गंगा के उद्गम स्थल वासुकी ताल जाने के लिए त्रियुगीनारायण मंदिर के पास से कोई रास्ता जाता है ! संगम स्थल पर नदी का जल एकदम साफ़ था, इतना साफ़ कि नदी की तलहटी में पड़े पत्थर भी साफ़ दिखाई दे रहे थे और पानी इतना ठंडा कि कुछ ही पलों में शरीर को सुन्न कर दे ! एक पत्थर पर बैठकर जैसे ही मैंने अपना पैर पानी में डाला, मेरे पैर की नसें झनझना उठी, लेकिन इसका एक फायदा भी हुआ कि सफ़र की थकान भी कुछ ही देर में चली गई ! नदी के बीच में पानी का बहाव काफी तेज था, इसलिए हम ज्यादा अन्दर नहीं गए, किनारे ही बैठकर नहाते रहे ! थोड़ी देर बाद जब नदी में डुबकी लगाईं तो खोपड़ी सुन्न हो गई, ऐसा लगा जैसे किसी ने सिर में एक साथ सैकड़ों पिन चुभा दिए हो, लेकिन फिर थोड़ी देर में सब सामान्य हो गया !
सोनप्रयाग में संगम स्थल का एक दृश्य (A View of Sangam in Sonprayag) |
नदी के जल में दिखाई देते पत्थर |
संगम स्थल का एक और दृश्य |
घाट के पास का एक दृश्य |
गाडी लेकर पार्किंग से निकले तो हम त्रियुगीनारायण मंदिर की ओर जाने वाले मार्ग पर चल दिए, सोनप्रयाग से गुप्तकाशी जाने वाले मार्ग पर थोडा आगे बढ़ते ही एक मार्ग ऊपर पहाड़ी पर जाता है ! इस मार्ग पर 13 किलोमीटर चलने के बाद त्रियुगीनारायण गाँव आता है, इसी गाँव में ये मंदिर स्थित है, सोनप्रयाग से मंदिर तक जाने के लिए वैसे तो शानदार मार्ग बना है, लेकिन बीच में एक-दो जगह ये मार्ग टूटा भी हुआ है ! घुमावदार पहाड़ी मार्ग है, अच्छी-खासी चढ़ाई भी है इसलिए गाडी से जाने पर भी आधा घंटा लग ही जाता है ! हालाँकि, सोनप्रयाग से त्रियुगीनारायण मंदिर जाने के लिए एक पैदल मार्ग भी है जिसपर अच्छी खासी चढ़ाई है, इस मार्ग से मंदिर की ये दूरी घटकर 5 किलोमीटर रह जाती है, स्थानीय लोग तो मंदिर जाने के लिए इसी मार्ग का प्रयोग करते है ! चलिए, आगे बढ़ने से पहले इस मंदिर के बारे में आपको कुछ जानकारी दे देता हूँ, समुद्रतल से 1980 मीटर की ऊँचाई पर बना ये मंदिर भगवान् विष्णु को समर्पित है इसी मंदिर में भगवान् शिव का माता पार्वती से विवाह हुआ था ! एक कहावत के अनुसार इस मंदिर में प्रज्वलित अग्नि तीन युगों से जल रही है इसलिए इस स्थान का नाम त्रियुगी पड़ा, इसी अग्नि कुंड में शिव-पार्वती ने विवाह के फेरे लिए थे !
त्रियुगीनारायण गाँव से दिखाई देता एक दृश्य (A view from Triyuginarayan village) |
त्रियुगीनारायण गाँव से दिखाई देता एक दृश्य (A view from Triyuginarayan village) |
इन मान्यताओं को प्रमाणित करने के लिए मेरे पास कोई साक्ष्य तो नहीं है, लेकिन लोगों की धार्मिक भावनाएं इनसे जुडी है तो मैंने आपको बता दिया ! ये भी कहा जाता है कि माँ पार्वती ने शंकर जी को पाने के लिए त्रियुगीनारायण मंदिर से 5 किलोमीटर दूर गौरीकुंड में कठिन तपस्या की थी, जहाँ माँ पार्वती को समर्पित एक मंदिर बना है ! केदारनाथ जाने वाले अधिकतर श्रद्धालु इस मंदिर में भी दर्शन के लिए जाते है ! चलिए, वापिस अपनी यात्रा पर लौटते है, जहाँ हम सोनप्रयाग से निकलकर पहाड़ी घुमावदार मार्ग से होते हुए मंदिर की ओर बढे जा रहे थे ! मार्ग के शुरुआत में तो ज्यादा चढ़ाई नहीं है लेकिन जैसे-2 आगे बढ़ते जाते है, चढ़ाई भी बढती जाती है और रास्ते में इक्का-दुक्का जीप ही दिखाई देती है ! बीच में एक-दो जगह मार्ग टूटा हुआ भी है, एक जगह तो भूमि कटाव के कारण मार्ग धंस भी गया है, लेकिन फिर भी यहाँ गाडी चलाते हुए बड़ा आनंद आता है ! इस मार्ग पर चलते हुए मुझे ताडकेश्वर मंदिर की यात्रा याद आ गई, लैंसडाउन से ताडकेश्वर मंदिर जाते हुए भी हमें कुछ ऐसा ही मार्ग मिला था जो घने जंगल के बीच से निकलता है और जहाँ लोगों का आवागमन ना के बराबर था ! मंदिर से कुछ पहले एक रिहायशी इलाका आता है, हमें सड़क के किनारे एक लाल रंग की ईमारत दिखाई दी, मुझे लगा शायद यही त्रियुगीनारायण मंदिर है !
मुझे ये ईमारत ही त्रियुगीनारायण मंदिर लगी थी |
त्रियुगीनारायण गाँव से दिखाई देता एक दृश्य (A view from Triyuginarayan village) |
मंदिर के आस-पास स्थित अन्य जगहों की जानकारी छोटे बोर्ड पर अंकित है |
त्रियुगीनारायण मंदिर का बाहरी प्रवेश द्वार |
मंदिर जाते हुए दीवार पर बना शिव-पार्वती का एक चित्र |
मंदिर जाने का मार्ग |
त्रियुगीनारायण मंदिर का एक दृश्य |
मंदिर के प्रवेश द्वार पर बंधी घंटियाँ |
मंदिर परिसर का एक दृश्य |
मंदिर परिसर का एक दृश्य |
ब्रहम कुंड का एक दृश्य |
इसी शिला पर बैठकर शिवजी और माँ पार्वती का विवाह हुआ था |
विष्णु कुंड का एक दृश्य |
देवप्रयाग में होटल संचालक के साथ एक चित्र |
देवप्रयाग में संगम का एक दृश्य |
ऋषिकेश से पहले का एक दृश्य |
कब जाएँ (Best time to go Triyuginarayan): त्रियुगीनारायण जाने के लिए सितम्बर अक्तूबर का समय सर्वोत्तम है ! बारिश के मौसम में उत्तराखंड में बादल फटने की घटनाएँ अक्सर होती रहती है इसलिए इन दिनों यहाँ ना ही जाएँ ! अगर फिर भी इस दौरान जाने का विचार बने तो अतिरिक्त सावधानी बरतें !
कैसे जाएँ (How to reach Triyuginarayan): दिल्ली से त्रियुगीनारायण मंदिर की कुल दूरी लगभग 473 किलोमीटर है, निजी वाहन है तो आप मंदिर तक ले जा सकते है अगर बस या अन्य किसी साधन से जा रहे है तो सोनप्रयाग से त्रियुगीनारायण जाने के लिए जीपें चलती है ! दिल्ली से त्रियुगीनारायण जाने में आपको लगभग 15 से 16 घंटे का समय लगेगा, दिल्ली से सोनप्रयाग जाने के लिए सबसे बढ़िया मार्ग हरिद्वार-देवप्रयाग-रुद्रप्रयाग होते हुए है ! दिल्ली से हरिद्वार तक 4 लेन राजमार्ग बना है जबकि ऋषिकेश से आगे पहाड़ी मार्ग शुरू हो जाता है और सिंगल मार्ग है ! आप चाहे तो हरिद्वार तक का सफ़र ट्रेन से कर सकते है और हरिद्वार से आगे का सफ़र बस या जीप से तय कर सकते है ! इसमें आपको थोडा अधिक समय लगेगा !
कहाँ रुके (Where to stay near Triyuginarayan): त्रियुगीनारायण मंदिर के पास रुकने के लिए कई होटल है, जहाँ आपको 500-600 रूपए में कमरा मिल जायेगा ! मई-जून में ये किराया बढ़कर दुगुना भी हो जाता है ! दुर्गम क्षेत्र होने के कारण यहाँ खान-पान के बहुत ज्यादा विकल्प नहीं है इसलिए सुख सुविधाओं की बहुत ज्यादा उम्मीद ना करें !
क्या देखें (Places to see near Triyuginarayan): त्रियुगीनारायण मंदिर के आस-पास घूमने के लिए काफी जगहें है, जिसमें गौरी गुफा, कृष्ण सरोवर, और शकुम्भरी देवी मंदिर प्रमुख है ! पंवाली कांठा बुग्याल का ट्रेक भी यहीं से शुरू होता है जो यहाँ से 20 किलोमीटर दूर है ! इसके अलावा सोनप्रयाग में वासुकी गंगा और मन्दाकिनी नदी का संगम स्थल भी है !
समाप्त...
केदारनाथ यात्रा
- दिल्ली से केदारनाथ की एक सड़क यात्रा (A Road Trip from Delhi to Kedarnath)
- उत्तराखंड के कल्यासौड़ में है माँ धारी देवी का मंदिर (Dhari Devi Temple in Uttrakhand)
- रुद्रप्रयाग में है अलकनंदा और मन्दाकिनी का संगम (Confluence of Alaknanda and Mandakini Rivers - RudrPrayag)
- रुद्रप्रयाग में है कोटेश्वर महादेव मंदिर (Koteshwar Mahadev Temple in Rudrprayag)
- रुद्रप्रयाग से अगस्त्यमुनि मंदिर होते हुए सोनप्रयाग (A Road Trip from Rudrprayag to Sonprayag)
- गौरीकुंड से रामबाड़ा की पैदल यात्रा (A Trek from Gaurikund to Rambada)
- रामबाड़ा से केदारनाथ की पैदल यात्रा (A Trek from Rambada to Kedarnath)
- केदार घाटी में स्थित भैरवनाथ मंदिर (Bhairavnath Temple in Kedar Valley)
- केदारनाथ धाम की संध्या आरती (Evening Prayer in Kedarnath)
- केदारनाथ से वापसी भी कम रोमांचक नहीं (A Trek from Kedarnath to Gaurikund)
- सोनप्रयाग का संगम स्थल और त्रियुगीनारायण मंदिर (TriyugiNarayan Temple in Sonprayag)
सोनप्रयाग संगम की बाते और फोटो ज्यादातर कही देखी नही...त्रियुगीनारायण सोनप्रयाग के साथ बढ़िया यात्रा...हर हर महादेव...
ReplyDeleteधन्यवाद प्रतीक भाई, हर हर महादेव !
Deleteहर हर महादेव
ReplyDeleteहर हर महादेव, अनिल भाई !
Deleteपंवाली कांठा भी होकर आना था।
ReplyDeleteबिलकुल संदीप भाई, मन तो था लेकिन पिताजी के पैरों में काफी दर्द था जिसका ज़िक्र उन्होंने रामबाड़ा में किया था !
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