मेहरानगढ़ दुर्ग के महल (A Visit to Palaces of Mehrangarh Fort, Jodhpur)

शनिवार, 23 दिसंबर 2017

इस यात्रा वृतांत को शुरू से पढने के लिए यहाँ क्लिक करें !


यात्रा के पिछले लेख में आप मेहरानगढ़ के संग्रहालय में स्थित हाथी-हौदे, पालकियां और हुक्के देख चुके है, अब आगे, तस्वीर स्टूडियों से बाहर आने के बाद अगला नंबर था “दौलत खाना” देखने का, लेकिन अन्दर जाने से पहले हम कुछ देर श्रृंगार चौकी के पास बने चबूतरे के किनारे बैठ कर महल की दीवारों पर की गई कारीगरी नक्काशीदार जालियों को जी भरकर देखना चाहते थे ! सूर्य की रोशनी जब इन जालियों की ज्यामितीय नक्काशी के बीच से निकल कर आती है तो बहुत सुन्दर लगती है ! यहाँ खाली बैठे रहना भी एक सुखद एहसास देता है, मन करता है यहाँ घंटो बैठकर यूँ ही इन नक्काशियों को देखते रहे, वैसे ये जालियां पर्दा प्रथा की परंपरा को भी कायम रखती है ! आप देख सकते है कि यहाँ खड़े होकर जालियों के उस पार देखना संभव नहीं है लेकिन जालियों के उस पार से बाहर देखना बहुत आसान है ! राजपरिवार की महिलाएं सामने आए बिना इन जालियों के पीछे से ही नीचे बरामदे में होने वाली कार्यवाही देखा करती थी ! महल की खिडकियों के ऊपर बने ये झरोखे झोपड़ियों की छत से प्रभावित थे, ये जाली और झरोखे, राजपूत वास्तुकला का हिस्सा है, कुछ समय बैठने के बाद हम दौलतखाना देखने के लिए उठ गए !
दौलतखाने में रखी एक पालकी 

जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है "दौलतखाना" मेहरानगढ़ के संग्रहालय का खजाना है यहाँ संग्रहालय के विभिन्न कक्षों में प्रदर्शित कला वस्तुओं में से श्रेष्ठ कलाकृतियों को प्रदर्शित किया गया है ! दौलत खाना एक प्रकार से सम्पूर्ण संग्रहालय का प्रतिनिधित्व करता है, पहले यहाँ खजाना रखा जाता था, और कालांतर में राजघराने के आभूषण रखे जाने लगे इसलिए इसे दौलतखाना नाम दिया गया ! अन्दर जाते ही सामने एक सुनहरे रंग की पालकी रखी है जो लगभग 300 वर्ष पुरानी है जोधपुर के महाराज अभय सिंह इसे अपनी गुजरात विजय के बाद अपने साथ लाए थे ! इस पालकी में लकड़ी के ऊपर सोने का पानी चढ़ाया गया है और इसके चारों ओर शीशे की खिड़कियाँ लगी है, इसके ऊपरी भाग में की गई नक्काशी गुजराती शिल्पकला का उत्कृष्ट उदहारण है ! यहाँ से आगे बढे तो मछली के शरीर के आकार की एक तोप प्रदर्शनी के लिए रखी गई है, गजनी खान की ये तोप महाराज कुमार गजसिंह की जालोर विजय के बाद प्राप्त हुई ! थोड़ी ओर आगे बढे तो दीवारों पर चित्रों के माध्यम से राजपूत शासकों को युद्ध और अन्य क्रियाएं करते हुए दिखाया गया है ! इसके बाद शीशे के बक्सों में बंद अश्त्र-शस्त्रों को प्रदर्शनी के लिए रखा गया है, प्रदर्शनी के लिए रखी हर वस्तु के साथ उसके विषय में जरुरी जानकारी भी दी गई है !


मछली के शरीर के मुंह वाली गजनी खान की तोप
महाराजा अजीत सिंह की तलवार

युद्ध के समय सर पर पहना जाने वाले मुकुट

प्रदर्शनी में रखी एक अन्य तलवार

मुट्ठी में पकड़कर चलाई जाने वाली एक गुप्ती
यहाँ रखे तलवारों में मिश्रधातुओं की बनी अलग-2 आकार और मूठों से सुसज्जित अनेक तलवारे रखी गई थी, सम्राट अकबर की एक तलवार भी यहाँ प्रदर्शनी के लिए रखी गई है ! इसके अलावा बांस से बने पर्दों पर की गई चित्रकारी, चाँदी के बर्तन, महिलाओं के सिंगारदान, पानदान, चुस्की, चिलम, मदिरापान के बर्तन, और कुछ विचित्र प्रकार के ताले भी रखे गए थे ! इन सभी वस्तुओं के बारे में विस्तार से लिखने बैठ गया तो कई पोस्ट लिखनी पड़ेंगी, सभी वस्तुएं अपने आप में अनोखी है ! दौलतखाना से बाहर निकलते हुए गुलाबी साडी में सुसज्जित माता गणगौर देवी की एक मूर्ति भी दिखाई दी, चाँदी से निर्मित माता की ये सुन्दर प्रतिमा परंपरागत मारवाड़ी आभूषणों और वस्त्रों से सुसज्जित है ! गणगौर देवी माँ पार्वती का ही एक अवतार है, मारवाड़ में सुहागिन औरतें हर वर्ष चैत्र मास में अपने पति की दीर्घायु के लिए और अविवाहित कन्याएँ सुयोग्य वर के लिए गणगौर माता की पूजा करती है ! तब यहाँ एक बड़े उत्सव का आयोजन भी होता है, देश-विदेश से लोग इस आयोजन में शामिल होने आते है !

पूजा में प्रयोग होने वाला एक कलश

हृदय के आकार में बना चाँदी का एक चौपड़

पीछे वाला बक्सा कलमदान है इसपर सोने-चाँदी का काम किया गया है, जबकि आगे वाला बक्सा पानदान है
सोने-चाँदी के तारों और फूल-पत्तियों की आकृति से सुसज्जित एक पानदान 
शराब और अफीम का पानी परोसने के लिए प्रयोग की जाने वाली चुस्की 

हुक्का पाइप का ऊपरी भाग इसमें एक महिला को मगरमच्छ के मुंह से बाहर आते हुए दिखाया गया है

चिलम, जिसे हुक्के के ऊपरी भाग में लगाया जाता है इसमें तम्बाकू भरा जाता है

ये ताला मेहरानगढ़ के एक मुख्य द्वार को बंद करके लगाया जाता था 

चार चाबियों से खुलने वाले इस ताले को जेवर के बक्से पर लगाया जाता था 

गणगोर माता की मारवाड़ी परिधान में सुसज्जित मूर्ति

एक प्रकार की तोप
दौलतखाने से बाहर आने के बाद सीढ़ियों से होते हुए हम "फूलमहल" पहुंचे, इस महल का निर्माण महाराजा अभय सिंह ने करवाया था जिन्होनें मारवाड़ पर 1724 से 1749 तक शासन किया ! इस महल की छत पर आकर्षक फूल-पत्तियां, और राजपरिवार के सदस्यों के चित्र बने है, और सोने से बनी कुलदेवी की मूर्ति, और अन्य देवी-देवताओं के चित्र बनवाए गए है ! इस भवन में द्वारकाधीश श्री कृष्ण का भी एक सुन्दर चित्र बना है जो मारवाड़ के राजाओं का वैष्णव धर्म के प्रति आस्था का प्रतीक है ! फूलमहल कई बड़े उत्सवों और आयोजनों का साक्षी रहा है, इस महल की छत इतनी आकर्षक है कि इसे किसी की नज़र ना लगे इसलिए काले धागों के गुच्छे छत के चारों कोनों पर लटकाए गए है ! इस महल में दरबार भी सजते थे और महफिले भी होती थी, इसलिए इसे नृत्य कक्ष भी कहा जाता है ! यहाँ से निकलने के बाद टहलते हुए हम "शीश महल" के सामने पहंचे, फिल्हाल इस महल में पर्यटकों का प्रवेश वर्जित है, इसलिए हम बाहर से ही एक-दो फोटो खींच कर आगे बढे ! इस महल में शीशे का बढ़िया काम तो हुआ ही है, महल की छत और दीवारों पर चटक रंगों में बनी राजस्थानी चित्रकला का भी बढ़िया इस्तेमाल किया गया है, कृत्रिम रोशनी में देखने पर ये शानदार लगता है !


फूलमहल का एक दृश्य

फूलमहल का एक दृश्य

फूलमहल की छत पर की गई सुनहरी कारीगरी, चारों कोनों पर काले धागे भी बंधे है 
शीशमहल का एक दृश्य

शीशमहल का एक दृश्य
शीश महल से आगे जाने पर "सिलेह खाना" यानि कि हथियार घर है, इसे भी फिल्हाल पर्यटकों के लिए बंद किया गया है ! फिर भी खिड़की से देखने पर अन्दर प्रदर्शनी के लिए रखे हथियार दिखाई देते है, पता नहीं अभी कुछ मरम्मत कार्य के लिए इसे बंद किया गया है या किसी और कारण से, लेकिन अन्दर हथियारों का अच्छा-ख़ासा संग्रह है ! यहाँ हमें एक मजेदार जानकारी मिली, कहते है शुरुआत में राजपूत योद्धा युद्ध में बारूद इस्तेमाल करना पसंद नहीं करते थे, वे अपनी तलवारबाजी, युद्ध कौशल और पराक्रम पर ही विश्वास करते थे ! लेकिन राणा सांगा और बाबर के बीच 1527 में हुए खनवा के युद्ध में बाबर की सेना की तोपों और बंदूकों के आगे राजपूत सैनिकों का साहस ज्यादा देर नहीं टिक सका ! कुछ की क्षण में सैकड़ों राजपूत सैनिक मारे गए, और हज़ारों की संख्या में घायल हो गए, बाबर की इस निर्णायक जीत ने राजपूत शासकों को युद्ध में बारूद इस्तेमाल ना करने के अपने निर्णय पर दोबारा विचार करने पर विवश कर दिया ! बावजूद इसके मेहरानगढ़ के वार्षिक अश्त्र-शस्त्र पूजा समारोह में आज भी तलवार की ही पूजा की जाती है ! हथियार घर में तलवार, भाले, कटार, बरछी, ढाल, कवच, तीर-धनुष और अन्य कई अश्त्र-शस्त्र रखे थे !

सिलेह खाना से आगे बढ़ने पर हम "तखत विलास" पहुंचे, महाराजा तखत सिंह का शयनकक्ष होने के कारण इस महल का ये नाम पड़ा ! महाराजा तखत सिंह ने मारवाड़ पर 1843 से 1873 तक शासन किया, अपने शासन काल में ही तखत सिंह ने इस महल का निर्माण करवाया ! ये महल इस दुर्ग की सबसे ऊपरी मंजिल पर स्थित है, महल की चारदीवारों, छत, और फर्श पर सुन्दर चित्रांकन किया गया है ! इन चित्रों में नृत्य करती अप्सराएँ, सजीव तोपों के चित्रांकन के अलावा युद्ध के मैदान की ओर कूच करती राजपूत सेना का जोधपुरी शैली में अत्यंत आकर्षक चित्रण किया गया है ! इस महल की छत पर लाख के काम के साथ मारवाड़ी कलम के चित्र अंकित है, भवन की छत से लटकता हुआ एक विशाल पंखा भी लगा है जिसे खींचने के लिए परिचारिका दूसरे कक्ष में बैठा करती थी ताकि शयन कक्ष की मर्यादा बनी रहे ! इस कक्ष के फर्श पर चटकीले रंगों से कुछ इस तरह चित्रकारी की गई है, जिसे देखकर लगता है जैसे कोई कालीन बिछी हो ! कमरे में एक विशाल पलंग भी बिछा है, जिसपर महाराजा तखत सिंह विश्राम किया करते थे ! इस कक्ष की छत पर लटके शीशे के रंग-बिरंगे गोले (क्रिसमस बॉल) यूरोपीय प्रभाव को दर्शाते है, और इस कमरे की सुन्दरता को चार-चाँद लगाते है ! हालांकि, इस कक्ष में साफ़-सफाई का थोडा अभाव ज़रूर दिखा, हो सकता है जब इसे पर्यटकों के लिए खोला जाए तो ये कमी दूर हो जाए !


तखत विलास का एक दृश्य

तखत विलास की छत पर लगी क्रिसमस बाल

तखत विलास का एक दृश्य

तखत विलास में रखी खेलने वाली चौपड़
तखत विलास से चले तो हम "झांकी महल" में पहुँच गए, इस महल का निर्माण भी राजा तखत सिंह ने 1860 में करवाया था ! भव्य जालीदार झरोखों से सुसज्जित और लाल पत्थरों के छज्जो से बना ये दो मंजिला नक्काशीदार महल है ! इस महल से रानियाँ, उनकी दासियाँ और राजपरिवार की अन्य महिलाएं आँगन में हो रहे शाही उत्सवों, राजसभाएं और अन्य गतिविधियाँ देखा करती थी, इसलिए इस महल को झांकी महल कहा जाने लगा ! इस महल की दीवारें सादी सफ़ेद रंग की है, जिनपर कोई कारीगरी नहीं की गई, और यहाँ 19वीं और 20वीं शताब्दी में बने पालने प्रदर्शन के लिए रखे गए है ! इनमें से कुछ चित्रित पालने शाही शिशुओं के लिए बनाए गए थे जबकि कुछ अन्य पालनों का उपयोग भगवान् कृष्ण की मूर्तियों की पूजा के लिए किया जाता था ! यहाँ भी कुछ फोटो खींचने के बाद हम आगे बढ़ गए, जहाँ दीवार पर बने हमें कई चित्र दिखाई दिए ! उन्नीसवी सदी में एक विदेशी इतिहासकार ने एक आदर्श राजपूत योद्धा के पूरे हाव-भाव का वर्णन करते हुए कहा है उनके पास बन्दूक, भाला, तलवार, और कटार के अलावा बरछी, ढाल, कुल्हाड़ी, चक्र धनुष और तीरों से भरा तरकश हुआ करता था ! इनमें से ज्यादातर हथियार यहाँ एक जर्मन चित्रकार द्वारा बनाई गई तस्वीर में मौजूद है !


झांकी महल में एक कतार में रखी पालकियां 

झांकी महल का एक दृश्य

दुर्गादास राठौर और अजीत सिंह का एक दृश्य
इस चित्र में राजपरिवार को निर्वासित अवस्था में दिखाया गया है, युवा राजकुमार अजीत सिंह तलवारबाजी कर अभ्यास कर रहे है और घोड़े पर सवार दुर्गादास राठौर रोटी सेकने की तैयारी कर रहे है ! 1678 में मारवाड़ के महाराज जसवंत सिंह की अफगानिस्तान में एक युद्ध के दौरान हुई मृत्यु के बाद मुग़ल बादशाह औरंगजेब ने मारवाड़ को अपने अधीन कर लिया ! जोधपुर के संरक्षक दुर्गादास राठौर मारवाड़ के नवजात उत्तराधिकारी अजीत सिंह के लिए उनका मारवाड़ वापिस लेने दिल्ली स्थित औरंगजेब के दरबार में पहुंचे ! मुग़ल बादशाह ने शर्त रखी कि अजीत सिंह की परवरिश उनके महल में मुस्लिम धर्म के अनुसार हो, राजपूतों ने ये मांग ठुकरा दी ! इसके बाद मुगलों ने दुर्गादास और उनके दल पर हमला कर दिया, 300 से भी ज्यादा राजपूत वीरों ने अपना बलिदान देकर जैसे-तैसे अजीत सिंह को एक सुरक्षित स्थान पर पहुंचा दिया ! इसके बाद दुर्गादास के संरक्षण में युवराज अजीत सिंह मारवाड़ के जंगलों में निर्वासित जीवन जीने को मजबूर हो गए ! दुर्गादास ने अजीत सिंह को अच्छी शिक्षा-दीक्षा दी और एक लम्बे समय के बाद 1707 में जोधपुर पर हमला कर दो दिनों में ही अपने पुश्तैनी महल पर कब्ज़ा कर लिया ! दुर्गादास को आज भी उनकी वफादारी के लिए राठौर वंश में आदर से याद किया जाता है !

यहाँ से चले तो सीढ़ियों से होते हुए हम "मोती महल" के सामने पहुँच गए, ये महल भी मेहरानगढ़ के प्राचीन महलों में से एक है और आज भी अपने मूल स्वरुप में है ! इसका निर्माण सवाई राजा सूरसिंह जी ने करवाया था, सूरसिंह जी ने मारवाड़ पर 1595 से 1619 तक शासन किया, इस दौरान उन्होंने मोती महल के अलावा कुछ अन्य इमारतों का निर्माण करवाया ! इस महल की छत पर सोने का बहुत सुन्दर नक्काशीदार काम किया गया है, बीच-2 में शीशे भी जड़े गए है ! मोती-महल के विशाल कक्ष में आठ पहलू वाला मुग़ल सिंहासन भी रखा है, इस सिंहासन के दाईं ओर मारवाड़ के दावी जाति और बाईं ओर जीवणी जाति के जागीरदारों का दरबार लगा करता था, इन जागीरदारों के बैठने की गद्दियाँ आज भी यहाँ मौजूद है ! इस महल की दीवारों की सतह बारीक पिसे हुए सीपों और चूना प्लास्टर को मिलाकर की गई है जो कमरे को मोती जैसी चमक देते है ! महल की भीतरी दीवारों में जगह-2 आले बने है जिसमें रखे तेल के दीयों से ये महल जगमगाता था ! इस महल में मेहरानगढ़ के सबसे महत्वपूर्ण दरबार लगते थे, जिसमें महाराज अपने परिवार, सरदारों, मंत्रियों, अफसरों, और गुरुओं से राज्य सम्बन्धी मामलों में औपचारिक बातचीत करते थे !


बरामदे से दिखाई देते महल

बरामदे से दिखाई देते महल

बरामदे से दिखाई देते महल

बरामदे से दिखाई देते महल

देवेन्द्र बलौदी

बरामदे से दिखाई देते महल
महल के सामने ही ऊपर की ओर पांच झरोखे बने हुए है जिनकी ये विशेषता है कि महल में बैठने वाला इन झरोखों के पीछे नहीं देख सकता ! रानियाँ और शाही परिवार की अन्य महिलाएं कभी-2 इन जालियों से दरबार का दृश्य देखते हुए वहां की गतिविधियों पर नज़र रखती थी ! मोती महल के विशाल दरवाजों पर रंग-बिरंगे पारदर्शी शीशे लगे है, रात के समय इन शीशों से छन-2 कर आती हुई कृत्रिम रोशनी अद्भुत दृश्य उत्पन्न करती है ! जिस समय हम यहाँ पहुंचे, इस महल में कुछ काम चल रहा था इसलिए अन्दर नहीं जा सके, हम बाहर से ही कुछ फोटो लेकर आगे बढ़ गए ! मोती महल देखने के बाद हम एक बरामदे में पहुँच गए, यहाँ बने एक स्टाल पर ऑडियो गाइड वापिस करने के बाद हम महल से बाहर आ गए ! बाहर निकलने का मार्ग एक लम्बे गलियारे से होकर है जहाँ बिक्री के लिए विभिन्न प्रकार के परिधान, इत्र, श्रृंगार का सामान, चायपती और कुछ अन्य सामान रखे थे ! हमें यहाँ से कुछ नहीं लेना था इसलिए ज्यादा समय ना गंवाते हुए बाहर की ओर चल दिए ! बाहर निकलने पर दाईं ओर जाता हुआ एक मार्ग किले के पिछले भाग में जाता है, रास्ते में दाईं ओर कुछ निर्माण कार्य भी चल रहा है !


बरामदे से दिखाई देते महल

महल से बाहर निकलते हुए बिक्री के लिए सजी एक दुकान

किले के पिछले भाग में जाते हुए 
थोड़ी दूर जाने पर किले की बाहरी दीवारों पर शहर की ओर मुंह करके एक कतार में कई तोपें रखी हुई है, इन तोपों के बीच सूर्यवंशी राठौर शासकों का फहराता एक शानदार ध्वज भी है ! इसी मार्ग पर इन तोपों से थोडा आगे बढ़ने पर नीचे ढलान की ओर जाता एक मार्ग चामुंडा देवी मंदिर की ओर जाता है, आने-जाने के मार्गों को अलग करने के लिए बीच में रेलिंग भी लगी है ! ऊँचाई पर होने के कारण यहाँ से नीले रंग में रंगा जोधपुर का पुराना शहर भी दिखाई देता है, लेकिन इस समय सूर्य सामने होने के कारण शहर का दृश्य साफ़ नहीं दिखाई दे रहा था ! 100-150 मीटर जाने के बाद ढलान ख़त्म हो गई, यहाँ से आगे कुछ सीढियाँ बनी थी, इन सीढ़ियों से होते हुए हम मंदिर परिसर में पहुंचे ! इस मंदिर में फोटो खींचने पर पाबन्दी है इसलिए सीढियाँ ख़त्म होते ही हमने अपने-2 फ़ोन अपने बैग में रख दिए ! मंदिर के मुख्य द्वार से होते हुए हम मुख्य भवन में दाखिल हुए और पूजा करने के बाद थोड़ी देर मंदिर परिसर में ही बैठ गए ! मंदिर की परिक्रमा के दौरान इसकी बाहरी दीवारों में बने मोखले में से जोधपुर का नीला शहर दिखाई देता है ! इन मोखलो के पास बैठने की भी जगह बनी है, हर मोखले पर कोई ना कोई बैठा ही हुआ था, हम भी एक खाली स्थान देखकर कुछ देर के लिए बैठ गए !


किले की दीवार पर रखी तोपें

किले की दीवार पर रखी तोप 

मंदिर जाने का मार्ग
मेहरानगढ़ का किला घूमने के बाद अधिकतर लोग इस मंदिर में दर्शन के लिए आ ही जाते है, वैसे आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि यहाँ एक हादसा भी हुआ था जब सितम्बर 2008 में इस मंदिर में मची भगदड़ के दौरान 224 लोगो की मृत्यु हो गई थी और 400 से भी अधिक लोग घायल हुए थे ! उस दिन नवरात्रि का प्रथम दिन था, सुबह-2 मंदिर में दर्शन करने के लिए 25000 से भी अधिक लोगों की भीड़ खड़ी थी ! मंदिर के द्वार खुलते ही सभी लोग एकदम से अन्दर आने की होड़ में लग गए, नतीजन यहाँ अफरा-तफरी का माहौल बन गया और ये हादसा हुआ ! अलग-2 समाचार पत्रों ने इस हादसे की अलग-2 वजहें बताई, लेकिन कुल मिलाकर इस घटना से मानव जान-माल की बड़ी क्षति हुई ! चलिए, अब यहाँ से बाहर आने का समय हो गया था, अगले लेख में मैं आपको यहाँ से कुछ दूरी पर स्थित राजपूत शासकों के समाधि स्थल जसवंत थड़ा के भ्रमण पर लेकर चलूँगा !


मंदिर के पास से दिखाई देता जोधपुर शहर

किले से बाहर जाने का मार्ग
क्यों जाएँ (Why to go Jodhpur): अगर आपको ऐतिहासिक इमारतें और किले देखना अच्छा लगता है तो निश्चित तौर पर राजस्थान में जोधपुर का रुख कर सकते है !

कब जाएँ (Best time to go Jodhpur): जोधपुर जाने के लिए नवम्बर से फरवरी का महीना सबसे उत्तम है इस समय उत्तर भारत में तो कड़ाके की ठण्ड और बर्फ़बारी हो रही होती है लेकिन राजस्थान का मौसम बढ़िया रहता है ! इसलिए अधिकतर सैलानी राजस्थान का ही रुख करते है, गर्मी के मौसम में तो यहाँ बुरा हाल रहता है !

कैसे जाएँ (How to reach 
Jodhpur): जोधपुर देश के अलग-2 शहरों से रेल और सड़क मार्ग से जुड़ा है, देश की राजधानी दिल्ली से इसकी दूरी 620 किलोमीटर है जिसे आप ट्रेन में सवार होकर रात भर में तय कर सकते है ! मंडोर एक्सप्रेस रोजाना पुरानी दिल्ली से रात 9 बजे चलकर सुबह 8 बजे जोधपुर उतार देती है ! अगर आप सड़क मार्ग से आना चाहे तो उसके लिए भी देश के अलग-2 शहरों से बसें चलती है, आप निजी गाडी से भी जोधपुर जा सकते है ! 


कहाँ रुके (Where to stay near 
Jodhpur): जोधपुर में रुकने के लिए कई विकल्प है, यहाँ 600 रूपए से शुरू होकर 3000 रूपए तक के होटल आपको मिल जायेंगे ! आप अपनी सुविधा अनुसार होटल चुन सकते है ! खाने-पीने की सुविधा भी हर होटल में मिल जाती है, आप अपने स्वादानुसार भोजन ले सकते है !


क्या देखें (Places to see near Jodhpur): जोधपुर में देखने के लिए बहुत जगहें है जिसमें मेहरानगढ़ किला, जसवंत थड़ा, उन्मेद भवन, मंडोर 
उद्यान, बालसमंद झील, कायलाना झील, क्लॉक टावर और यहाँ के बाज़ार प्रमुख है ! त्रिपोलिया बाज़ार यहाँ के मुख्य बाजारों में से एक है, जोधपुर लाख के कड़ों के लिए जाना जाता है इसलिए अगर आप यहाँ घूमने आये है तो अपने परिवार की महिलाओं के लिए ये कड़े ले जाना ना भूलें !

अगले भाग में जारी...

जोधपुर यात्रा
  1. दिल्ली से जोधपुर की ट्रेन यात्रा (A Train Journey from Delhi to Jodhpur)
  2. जोधपुर के मेहरानगढ़ दुर्ग का इतिहास (History of Mehrangarh Fort, Jodhpur)
  3. जोधपुर के मेहरानगढ़ दुर्ग की सैर (A Visit to Mehrangarh Fort, Jodhpur)
  4. मेहरानगढ़ दुर्ग के महल (A Visit to Palaces of Mehrangarh Fort, Jodhpur)
  5. मारवाड़ का ताजमहल - जसवंत थड़ा (Jaswant Thada, A Monument of Rajpoot Kings)
  6. जोधपुर का उम्मेद भवन (Umaid Bhawan Palace, Jodhpur)
  7. रावण की ससुराल और मारवाड़ की पूर्व राजधानी है मण्डोर (Mandor, the Old Capital of Marwar)
  8. जोधपुर की बालसमंद और कायलाना झील (Balasmand and Kaylana Lake of Jodhpur)
  9. जोधपुर का क्लॉक टावर और कुछ प्रसिद्द मंदिर (Temples and Clock Tower of Jodhpur)
Pradeep Chauhan

घूमने का शौक आख़िर किसे नहीं होता, अक्सर लोग छुट्टियाँ मिलते ही कहीं ना कहीं घूमने जाने का विचार बनाने लगते है ! पर कुछ लोग समय के अभाव में तो कुछ लोग जानकारी के अभाव में बहुत सी अनछूई जगहें देखने से वंचित रह जाते है ! एक बार घूमते हुए ऐसे ही मन में विचार आया कि क्यूँ ना मैं अपने यात्रा अनुभव लोगों से साझा करूँ ! बस उसी दिन से अपने यात्रा विवरण को शब्दों के माध्यम से सहेजने में लगा हूँ ! घूमने जाने की इच्छा तो हमेशा रहती है, इसलिए अपनी व्यस्त ज़िंदगी से जैसे भी बन पड़ता है थोड़ा समय निकाल कर कहीं घूमने चला जाता हूँ ! फिलहाल मैं गुड़गाँव में एक निजी कंपनी में कार्यरत हूँ !

2 Comments

  1. वाह राजा के खजाने के हथियार देख के मजा आ गया

    ReplyDelete
    Replies
    1. उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद प्रतीक भाई, वैसे, आपने इस यात्रा के पिछले लेख पढ़े क्या ?

      Delete
Previous Post Next Post