शनिवार, 23 दिसंबर 2017
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यात्रा के पिछले लेख में आप मेहरानगढ़ के संग्रहालय में स्थित हाथी-हौदे, पालकियां और हुक्के देख चुके है, अब आगे, तस्वीर स्टूडियों से बाहर आने के बाद अगला नंबर था “दौलत खाना” देखने का, लेकिन अन्दर जाने से पहले हम कुछ देर श्रृंगार चौकी के पास बने चबूतरे के किनारे बैठ कर महल की दीवारों पर की गई कारीगरी नक्काशीदार जालियों को जी भरकर देखना चाहते थे ! सूर्य की रोशनी जब इन जालियों की ज्यामितीय नक्काशी के बीच से निकल कर आती है तो बहुत सुन्दर लगती है ! यहाँ खाली बैठे रहना भी एक सुखद एहसास देता है, मन करता है यहाँ घंटो बैठकर यूँ ही इन नक्काशियों को देखते रहे, वैसे ये जालियां पर्दा प्रथा की परंपरा को भी कायम रखती है ! आप देख सकते है कि यहाँ खड़े होकर जालियों के उस पार देखना संभव नहीं है लेकिन जालियों के उस पार से बाहर देखना बहुत आसान है ! राजपरिवार की महिलाएं सामने आए बिना इन जालियों के पीछे से ही नीचे बरामदे में होने वाली कार्यवाही देखा करती थी ! महल की खिडकियों के ऊपर बने ये झरोखे झोपड़ियों की छत से प्रभावित थे, ये जाली और झरोखे, राजपूत वास्तुकला का हिस्सा है, कुछ समय बैठने के बाद हम दौलतखाना देखने के लिए उठ गए !
दौलतखाने में रखी एक पालकी |
जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है "दौलतखाना" मेहरानगढ़ के संग्रहालय का खजाना है यहाँ संग्रहालय के विभिन्न कक्षों में प्रदर्शित कला वस्तुओं में से श्रेष्ठ कलाकृतियों को प्रदर्शित किया गया है ! दौलत खाना एक प्रकार से सम्पूर्ण संग्रहालय का प्रतिनिधित्व करता है, पहले यहाँ खजाना रखा जाता था, और कालांतर में राजघराने के आभूषण रखे जाने लगे इसलिए इसे दौलतखाना नाम दिया गया ! अन्दर जाते ही सामने एक सुनहरे रंग की पालकी रखी है जो लगभग 300 वर्ष पुरानी है जोधपुर के महाराज अभय सिंह इसे अपनी गुजरात विजय के बाद अपने साथ लाए थे ! इस पालकी में लकड़ी के ऊपर सोने का पानी चढ़ाया गया है और इसके चारों ओर शीशे की खिड़कियाँ लगी है, इसके ऊपरी भाग में की गई नक्काशी गुजराती शिल्पकला का उत्कृष्ट उदहारण है ! यहाँ से आगे बढे तो मछली के शरीर के आकार की एक तोप प्रदर्शनी के लिए रखी गई है, गजनी खान की ये तोप महाराज कुमार गजसिंह की जालोर विजय के बाद प्राप्त हुई ! थोड़ी ओर आगे बढे तो दीवारों पर चित्रों के माध्यम से राजपूत शासकों को युद्ध और अन्य क्रियाएं करते हुए दिखाया गया है ! इसके बाद शीशे के बक्सों में बंद अश्त्र-शस्त्रों को प्रदर्शनी के लिए रखा गया है, प्रदर्शनी के लिए रखी हर वस्तु के साथ उसके विषय में जरुरी जानकारी भी दी गई है !
मछली के शरीर के मुंह वाली गजनी खान की तोप |
महाराजा अजीत सिंह की तलवार |
युद्ध के समय सर पर पहना जाने वाले मुकुट |
प्रदर्शनी में रखी एक अन्य तलवार |
मुट्ठी में पकड़कर चलाई जाने वाली एक गुप्ती |
पूजा में प्रयोग होने वाला एक कलश |
हृदय के आकार में बना चाँदी का एक चौपड़ |
पीछे वाला बक्सा कलमदान है इसपर सोने-चाँदी का काम किया गया है, जबकि आगे वाला बक्सा पानदान है |
सोने-चाँदी के तारों और फूल-पत्तियों की आकृति से सुसज्जित एक पानदान |
शराब और अफीम का पानी परोसने के लिए प्रयोग की जाने वाली चुस्की |
हुक्का पाइप का ऊपरी भाग इसमें एक महिला को मगरमच्छ के मुंह से बाहर आते हुए दिखाया गया है |
चिलम, जिसे हुक्के के ऊपरी भाग में लगाया जाता है इसमें तम्बाकू भरा जाता है |
ये ताला मेहरानगढ़ के एक मुख्य द्वार को बंद करके लगाया जाता था |
चार चाबियों से खुलने वाले इस ताले को जेवर के बक्से पर लगाया जाता था |
गणगोर माता की मारवाड़ी परिधान में सुसज्जित मूर्ति |
एक प्रकार की तोप |
फूलमहल का एक दृश्य |
फूलमहल का एक दृश्य |
फूलमहल की छत पर की गई सुनहरी कारीगरी, चारों कोनों पर काले धागे भी बंधे है |
शीशमहल का एक दृश्य |
शीशमहल का एक दृश्य |
सिलेह खाना से आगे बढ़ने पर हम "तखत विलास" पहुंचे, महाराजा तखत सिंह का शयनकक्ष होने के कारण इस महल का ये नाम पड़ा ! महाराजा तखत सिंह ने मारवाड़ पर 1843 से 1873 तक शासन किया, अपने शासन काल में ही तखत सिंह ने इस महल का निर्माण करवाया ! ये महल इस दुर्ग की सबसे ऊपरी मंजिल पर स्थित है, महल की चारदीवारों, छत, और फर्श पर सुन्दर चित्रांकन किया गया है ! इन चित्रों में नृत्य करती अप्सराएँ, सजीव तोपों के चित्रांकन के अलावा युद्ध के मैदान की ओर कूच करती राजपूत सेना का जोधपुरी शैली में अत्यंत आकर्षक चित्रण किया गया है ! इस महल की छत पर लाख के काम के साथ मारवाड़ी कलम के चित्र अंकित है, भवन की छत से लटकता हुआ एक विशाल पंखा भी लगा है जिसे खींचने के लिए परिचारिका दूसरे कक्ष में बैठा करती थी ताकि शयन कक्ष की मर्यादा बनी रहे ! इस कक्ष के फर्श पर चटकीले रंगों से कुछ इस तरह चित्रकारी की गई है, जिसे देखकर लगता है जैसे कोई कालीन बिछी हो ! कमरे में एक विशाल पलंग भी बिछा है, जिसपर महाराजा तखत सिंह विश्राम किया करते थे ! इस कक्ष की छत पर लटके शीशे के रंग-बिरंगे गोले (क्रिसमस बॉल) यूरोपीय प्रभाव को दर्शाते है, और इस कमरे की सुन्दरता को चार-चाँद लगाते है ! हालांकि, इस कक्ष में साफ़-सफाई का थोडा अभाव ज़रूर दिखा, हो सकता है जब इसे पर्यटकों के लिए खोला जाए तो ये कमी दूर हो जाए !
तखत विलास का एक दृश्य |
तखत विलास की छत पर लगी क्रिसमस बाल |
तखत विलास का एक दृश्य |
तखत विलास में रखी खेलने वाली चौपड़ |
झांकी महल में एक कतार में रखी पालकियां |
झांकी महल का एक दृश्य |
दुर्गादास राठौर और अजीत सिंह का एक दृश्य |
यहाँ से चले तो सीढ़ियों से होते हुए हम "मोती महल" के सामने पहुँच गए, ये महल भी मेहरानगढ़ के प्राचीन महलों में से एक है और आज भी अपने मूल स्वरुप में है ! इसका निर्माण सवाई राजा सूरसिंह जी ने करवाया था, सूरसिंह जी ने मारवाड़ पर 1595 से 1619 तक शासन किया, इस दौरान उन्होंने मोती महल के अलावा कुछ अन्य इमारतों का निर्माण करवाया ! इस महल की छत पर सोने का बहुत सुन्दर नक्काशीदार काम किया गया है, बीच-2 में शीशे भी जड़े गए है ! मोती-महल के विशाल कक्ष में आठ पहलू वाला मुग़ल सिंहासन भी रखा है, इस सिंहासन के दाईं ओर मारवाड़ के दावी जाति और बाईं ओर जीवणी जाति के जागीरदारों का दरबार लगा करता था, इन जागीरदारों के बैठने की गद्दियाँ आज भी यहाँ मौजूद है ! इस महल की दीवारों की सतह बारीक पिसे हुए सीपों और चूना प्लास्टर को मिलाकर की गई है जो कमरे को मोती जैसी चमक देते है ! महल की भीतरी दीवारों में जगह-2 आले बने है जिसमें रखे तेल के दीयों से ये महल जगमगाता था ! इस महल में मेहरानगढ़ के सबसे महत्वपूर्ण दरबार लगते थे, जिसमें महाराज अपने परिवार, सरदारों, मंत्रियों, अफसरों, और गुरुओं से राज्य सम्बन्धी मामलों में औपचारिक बातचीत करते थे !
बरामदे से दिखाई देते महल |
बरामदे से दिखाई देते महल |
बरामदे से दिखाई देते महल |
बरामदे से दिखाई देते महल |
देवेन्द्र बलौदी |
बरामदे से दिखाई देते महल |
बरामदे से दिखाई देते महल |
महल से बाहर निकलते हुए बिक्री के लिए सजी एक दुकान |
किले के पिछले भाग में जाते हुए |
किले की दीवार पर रखी तोपें |
किले की दीवार पर रखी तोप |
मंदिर जाने का मार्ग |
मंदिर के पास से दिखाई देता जोधपुर शहर |
किले से बाहर जाने का मार्ग |
कब जाएँ (Best time to go Jodhpur): जोधपुर जाने के लिए नवम्बर से फरवरी का महीना सबसे उत्तम है इस समय उत्तर भारत में तो कड़ाके की ठण्ड और बर्फ़बारी हो रही होती है लेकिन राजस्थान का मौसम बढ़िया रहता है ! इसलिए अधिकतर सैलानी राजस्थान का ही रुख करते है, गर्मी के मौसम में तो यहाँ बुरा हाल रहता है !
कैसे जाएँ (How to reach Jodhpur): जोधपुर देश के अलग-2 शहरों से रेल और सड़क मार्ग से जुड़ा है, देश की राजधानी दिल्ली से इसकी दूरी 620 किलोमीटर है जिसे आप ट्रेन में सवार होकर रात भर में तय कर सकते है ! मंडोर एक्सप्रेस रोजाना पुरानी दिल्ली से रात 9 बजे चलकर सुबह 8 बजे जोधपुर उतार देती है ! अगर आप सड़क मार्ग से आना चाहे तो उसके लिए भी देश के अलग-2 शहरों से बसें चलती है, आप निजी गाडी से भी जोधपुर जा सकते है !
कहाँ रुके (Where to stay near Jodhpur): जोधपुर में रुकने के लिए कई विकल्प है, यहाँ 600 रूपए से शुरू होकर 3000 रूपए तक के होटल आपको मिल जायेंगे ! आप अपनी सुविधा अनुसार होटल चुन सकते है ! खाने-पीने की सुविधा भी हर होटल में मिल जाती है, आप अपने स्वादानुसार भोजन ले सकते है !
क्या देखें (Places to see near Jodhpur): जोधपुर में देखने के लिए बहुत जगहें है जिसमें मेहरानगढ़ किला, जसवंत थड़ा, उन्मेद भवन, मंडोर उद्यान, बालसमंद झील, कायलाना झील, क्लॉक टावर और यहाँ के बाज़ार प्रमुख है ! त्रिपोलिया बाज़ार यहाँ के मुख्य बाजारों में से एक है, जोधपुर लाख के कड़ों के लिए जाना जाता है इसलिए अगर आप यहाँ घूमने आये है तो अपने परिवार की महिलाओं के लिए ये कड़े ले जाना ना भूलें !
अगले भाग में जारी...
जोधपुर यात्रा
- दिल्ली से जोधपुर की ट्रेन यात्रा (A Train Journey from Delhi to Jodhpur)
- जोधपुर के मेहरानगढ़ दुर्ग का इतिहास (History of Mehrangarh Fort, Jodhpur)
- जोधपुर के मेहरानगढ़ दुर्ग की सैर (A Visit to Mehrangarh Fort, Jodhpur)
- मेहरानगढ़ दुर्ग के महल (A Visit to Palaces of Mehrangarh Fort, Jodhpur)
- मारवाड़ का ताजमहल - जसवंत थड़ा (Jaswant Thada, A Monument of Rajpoot Kings)
- जोधपुर का उम्मेद भवन (Umaid Bhawan Palace, Jodhpur)
- रावण की ससुराल और मारवाड़ की पूर्व राजधानी है मण्डोर (Mandor, the Old Capital of Marwar)
- जोधपुर की बालसमंद और कायलाना झील (Balasmand and Kaylana Lake of Jodhpur)
- जोधपुर का क्लॉक टावर और कुछ प्रसिद्द मंदिर (Temples and Clock Tower of Jodhpur)
वाह राजा के खजाने के हथियार देख के मजा आ गया
ReplyDeleteउत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद प्रतीक भाई, वैसे, आपने इस यात्रा के पिछले लेख पढ़े क्या ?
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