सोमवार, 25 दिसंबर 2017
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यात्रा के पिछले लेख में आप जोधपुर से जैसलमेर पहुँचने और यहाँ रुकने का इंतजाम करने के हमारे संघर्ष के बारे में पढ़ चुके है ! दोपहर का भोजन करने के बाद हम सदर बाज़ार से होते हुए जैसलमेर दुर्ग के अखय पोल के सामने पहुंचे, अब आगे, अखय पोल किले में जाने का एक बाहरी प्रवेश द्वार है इस द्वार से होते हुए महल तक जाने के लिए आपको 3 और द्वार पार करने होंगे जिनके नाम क्रमश: सूरज पोल, गणेश पोल और हवा पोल है ! जैसे-2 हम आगे बढ़ते जायेंगे, मैं इन द्वारों का वर्णन करता रहूँगा ! अखय पोल के ठीक सामने एक व्यस्त चौराहा है, जहाँ हमेशा ऑटो वालों का जमावड़ा लगा रहता है लेकिन फिर भी यातायात व्यवस्था को दुरुस्त बनाए रखने के लिए यहाँ पुलिस वाले भी तैनात किये गए है ! अखय पोल द्वार के दोनों तरफ शाही ध्वज के साथ ढाल और भाले लगाए गए है ! इस प्रवेश द्वार से अन्दर जाते ही एक खुला क्षेत्र है जहाँ दाईं ओर तो एक कतार में कई दुकानें है जबकि बाईं ओर एक पार्किंग स्थल है ! यहाँ खड़े होकर देखने से इस दुर्ग की विशालता का अंदाजा हो जाता है, कहते है जैसलमेर भारत का इकलौता दुर्ग है जिसमें वर्तमान में भी लोग निवास करते है ! पार्किंग स्थल से थोडा आगे बढ़ने पर बाईं ओर चबूतरे पर एक मंदिर बना है, जिसका वर्णन मैं इस यात्रा के अंतिम लेख में करूँगा !
जैसलमेर किले के अन्दर महल का एक दृश्य |
फिल्हाल हम अपनी दाईं ओर स्थित दूसरे प्रवेश द्वार की ओर बढ़ रहे है, अन्दर जाने पर मार्ग भी चढ़ाई भरा होता जा रहा है ! दुर्ग में रहने वाले लोग बाहर आने-जाने के लिए निजी गाड़ियों से किले के इसी प्रवेश द्वार से होकर रोजाना निकलते है, लेकिन ये इन लोगों की समझदारी का ही प्रमाण है कि अन्दर कभी जाम की स्थिति नहीं बनती, कम से कम हमने अपने दो दिन की इस यात्रा में तो कभी ऐसा नहीं देखा ! चलिए, आगे बढ़ने से पहले आपको इस दुर्ग से सम्बंधित जानकारी दे देता हूँ, दुनिया के सबसे बड़े किलों में शुमार इस किले का निर्माण 1156 में एक राजपूत शासक रावल जैसल ने करवाया था, उन्हीं के नाम पर इस दुर्ग का नाम भी रखा गया था ! हालांकि, जैसे-2 पीढियां आगे बढती गई, यहाँ के शासक अपने हिसाब से किले का विस्तार करवाते रहे ! राजस्थान के थार मरुस्थल के त्रिकुटा पर्वत पर बने इस दुर्ग की दीवारें पीले रंग की है जो दिन की रोशनी में हल्के सुनहरे रंग की लगती है, अपने सुनहरे रंग के कारण इस दुर्ग को "सोनार किला" या "गोल्डन फोर्ट" के नाम से भी जाना जाता है ! शहर के बीचों-बीच स्थित ये दुर्ग जैसलमेर की ऐतिहासिक धरोहर है जिसे देखने रोजाना हज़ारों लोग देश-विदेश से आते है !
अखय पोल के सामने का एक दृश्य |
अखय पोल से अन्दर जाने पर दुर्ग का एक दृश्य |
पार्किंग स्थल से दिखाई देता दुर्ग का एक दृश्य |
अखय पोल से अन्दर जाने पर पार्किंग स्थल |
इस दुर्ग की दूसरी लड़ाई 1541 में हुई, जब मुग़ल शासक हुमायूँ ने जैसलमेर पर हमला किया, तब तत्कालीन शासक रावल, मुगलों के इस हमले को सहन नहीं कर सका ! अंतत: वह मुगलों की शरण में चला गया और अपनी जान बचाने के लिए उसने अपनी पुत्री का विवाह अकबर से करके मुगलों से नाता जोड़ लिया ! इसके बाद इस किले में कहने को तो रावल रहे लेकिन असली स्वामित्व मुगलों का ही रहा, जिन्होनें 1762 तक इस दुर्ग को अपने नियंत्रण में रखा ! बाद में इस दुर्ग को महारावल मूलराज ने नियंत्रित किया, ईस्ट इंडिया कंपनी और मूलराज के बीच 12 दिसंबर 1818 को हुए एक समझौते के बाद राजा को ही इस दुर्ग का उत्तराधिकारी माना गया और किसी दुश्मन द्वारा आक्रमण किये जाने पर उन्हें ईस्ट इंडिया कंपनी की तरफ से सुरक्षा भी प्रदान की जाती थी ! फिर 1820 में मूलराज की मृत्यु के बाद उनके पोते गज सिंह ने यहाँ का शासन अपने हाथों में ले लिया, ब्रिटिश सरकार के नए नियमों के कारण बम्बई बंदरगाह पर समुद्री व्यापार की शुरुआत हुई ! इससे बम्बई का तो विकास हुआ लेकिन जैसलमेर की आर्थिक स्थिति कमजोर होती गई !
भारत की स्वतंत्रता और विभाजन के बाद प्राचीन व्यापार प्रणाली पूरी तरह से बंद हो गई, लेकिन 1965 और 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के समय जैसलमेर के इस दुर्ग ने अपने महत्त्व को फिर से प्रमाणित किया ! बताते है कि इस दुर्ग की खासियत है कि इसे बनाने में किसी भी प्रकार के सीमेंट, चूने या किसी अन्य वस्तु का प्रयोग नहीं किया गया, बल्कि इंटरलॉकिंग के जरिए पत्थरों को आपस में फंसाया गया है, मजबूती देने के लिए दुर्ग की दीवारों के ऊपरी भाग में लोहे की कीलें लगाईं गई है ! सुनने में ये बड़ा विचित्र लगता है लेकिन अगर ये सच है तो उस दौर के वास्तुकारों को नमन है जिनके मेहनत के परिणाम स्वरुप सदियों पुराना ये दुर्ग आज भी यहाँ विद्द्य्मान है ! आज भी इस दुर्ग में 5000 से ज्यादा लोग रहते है, ये लोग भाटी शासकों की निगरानी में काम करते थे और तभी से ये इस किले में रह रहे है ! लेकिन जैसे-2 जैसलमेर की जनसँख्या बढती गई वैसे-2 लोग त्रिकुटा पर्वत के नीचे भी रहने लगे, दुर्ग के कोनों पर तोपें लगाईं गई है इसे कैनन पॉइंट कहा जाता है यहाँ से खड़े होकर देखने पर आप इस दुर्ग का 80 प्रतिशत भाग देख सकते है ! दुर्ग में एक शानदार जल निकासी सुविधा भी है जिसे घुट नाली का नाम दिया गया है ये नाली बरसात के पानी को आसानी से चारों दिशाओं में किले से दूर ले जाता है !
इस दुर्ग के अन्दर राजस्थान के कई शहरों के धनी व्यापारियों ने सुन्दर और बड़ी-2 इमारतें बनवाई है, जिनमें से कुछ हवेलियाँ तो सदियों पुरानी है, इन हवेलियों में कई मंजिले और अनगिनत कमरे है, जिनकी बालकनी और दरवाजों पर विशेष कलाकृतियाँ बनाई गई है ! इनमें से कुछ हवेलियों को अब म्यूजियम का रूप दे दिया गया है लेकिन कई हवेलियों में आज भी लोग रहते है, इन हवेलियों का वर्णन मैं अगले लेख में करूँगा ! दुर्ग परिसर में मौजूद इन हवेलियों के अलावा एक जैन मंदिर भी है जिसमें छोटी-बड़ी 6600 प्रतामियां रखी गई है, ये जैन मंदिर लगभग 650 साल पुराना है ! इस मंदिर में मुख्य मूर्ति चिंतामणि पार्श्वनाथ जी की है, वैसे, ये थोडा जटिल प्रश्न है कि जब इस दुर्ग में जैन लोग रहते नहीं थे तो ये जैन मंदिर कहाँ से आया ! थोड़ी खोजबीन की तो पता चला कि जैन समुदाय में एक बापना परिवार था जो राजा को दान दिया करते थे, सोचने में बड़ा अजीब लगता है कि जिसने इतने बड़े दुर्ग का निर्माण करवाया उसे भी कोई दान देता होगा, पर ये हकीकत है, इन जैन समुदाय के लोगों ने ही इस मंदिर का निर्माण करवाया ! चलिए आगे बढ़ते है, अब तक हम सूरज पोल से होते हुए हम महल के तीसरे द्वार की ओर बढ़ रहे थे, रास्ता अभी भी हल्का-2 चढ़ाई भरा ही है !
सूरज पोल का एक दृश्य |
दुर्ग में अन्दर जाते हुए दिखाई देता एक दृश्य |
दुर्ग में अन्दर जाते हुए दिखाई देता एक दृश्य |
महल के सामने लक्ष्मी नारायण मंदिर का एक दृश्य |
महल के अन्दर जाने की सीढियाँ |
रानी महल का एक दृश्य |
महल के अन्दर का एक दृश्य |
महल के अन्दर का एक दृश्य |
महल के अन्दर का एक दृश्य |
महल के अन्दर का एक दृश्य |
महल के अन्दर का एक दृश्य |
महल में रखी एक हस्तनिर्मित मूर्ति |
महल में रखी एक हस्तनिर्मित मूर्ति |
महल के अन्दर का एक दृश्य |
किले की छत से दिखाई देता जैसलमेर शहर |
किले की छत से दिखाई देता जैसलमेर शहर |
किले की छत से दिखाई देता जैसलमेर शहर |
संगीत महल का एक दृश्य |
संगीत महल का एक दृश्य |
संगीत महल का एक दृश्य |
संगीत महल का एक दृश्य |
कब जाएँ (Best time to go Jaisalmer): जैसलमेर जाने के लिए नवम्बर से फरवरी का महीना सबसे उत्तम है इस समय उत्तर भारत में तो कड़ाके की ठण्ड और बर्फ़बारी हो रही होती है लेकिन राजस्थान का मौसम बढ़िया रहता है ! इसलिए अधिकतर सैलानी राजस्थान का ही रुख करते है, गर्मी के मौसम में तो यहाँ बुरा हाल रहता है !
कैसे जाएँ (How to reach Jaisalmer): जैसलमेर देश के अलग-2 शहरों से रेल और सड़क मार्ग से जुड़ा है, देश की राजधानी दिल्ली से इसकी दूरी लगभग 980 किलोमीटर है जिसे आप ट्रेन से आसानी से तय कर सकते है ! दिल्ली से जैसलमेर के लिए कई ट्रेनें चलती है और इस दूरी को तय करने में लगभग 18 घंटे का समय लगता है ! अगर आप सड़क मार्ग से आना चाहे तो ये दूरी घटकर 815 किलोमीटर रह जाती है, सड़क मार्ग से भी देश के अलग-2 शहरों से बसें चलती है, आप निजी गाडी से भी जैसलमेर जा सकते है !
कहाँ रुके (Where to stay near Jaisalmer): जैसलमेर में रुकने के लिए कई विकल्प है, यहाँ 1000 रूपए से शुरू होकर 10000 रूपए तक के होटल आपको मिल जायेंगे ! आप अपनी सुविधा अनुसार होटल चुन सकते है ! खाने-पीने की सुविधा भी हर होटल में मिल जाती है, आप अपने स्वादानुसार भोजन ले सकते है !
क्या देखें (Places to see near Jaisalmer): जैसलमेर में देखने के लिए बहुत जगहें है जिसमें जैसलमेर का प्रसिद्द सोनार किला, पटवों की हवेली, सलीम सिंह की हवेली, नाथमल की हवेली, बड़ा बाग, गदीसर झील, जैन मंदिर, कुलधरा गाँव, सम, और साबा फोर्ट प्रमुख है ! इनमें से अधिकतर जगहें मुख्य शहर में ही है केवल कुलधरा, खाभा फोर्ट, और सम शहर से थोडा दूरी पर है ! जैसलमेर का सदर बाज़ार यहाँ के मुख्य बाजारों में से एक है, जहाँ से आप अपने साथ ले जाने के लिए राजस्थानी परिधान, और सजावट का सामान खरीद सकते है !
अगले भाग में जारी...
जैसलमेर यात्रा
- जोधपुर से जैसलमेर की ट्रेन यात्रा (A Journey from Jodhpur to Jaisalmer)
- जैसलमेर के सोनार किले की सैर (A Visit to Jaisalmer Fort)
- जैसलमेर की शानदार हवेलियाँ (Beautiful Haveli’s of Jaisalmer)
- जैसलमेर की गदीसर झील (Gadisar Lake of Jaisalmer)
- जैसलमेर का बड़ा बाग (Bada Bagh of Jaisalmer)
- लोद्रवा के जैन मंदिर (Jain Temples of Lodruva)
- लोद्रवा का चुंधी-गणेश मंदिर (Chundhi Ganesh Temple of Lodruva)
- कुलधरा – एक शापित गाँव (Kuldhara – A Haunted Village)
- खाभा फोर्ट – पालीवालों की नगरी (Khabha Fort of Jaisalmer)
- खाभा रिसोर्ट और सम में रेत के टीले (Khabha Resort and Sam Sand Dunes)
- जैसलमेर के पांच सितारा होटल (Five Star Hotels in Jaisalmer)
- जैसलमेर दुर्ग के मंदिर और अन्य दर्शनीय स्थल (Local Sight Seen in Jaisalmer)