रविवार, 24 दिसंबर 2017
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यात्रा के पिछले लेख में आप उम्मेद भवन घूम चुके है, अब आगे, उम्मेद भवन से बाहर निकले तो पार्किंग से अपनी स्कूटी लेकर हम उसी मार्ग से वापिस आ गए जिससे यहाँ आए थे ! कुछ ही देर में हम उम्मेद भवन वाले मार्ग से निकलकर मुख्य मार्ग पर पहुँच गए, फिर एक फ्लाईओवर से होते हुए हम रास्ते में पड़ने वाले एक बाज़ार को पार करने के बाद मंडोर उद्यान पहुंचे ! यहाँ उद्यान के सामने ही एक पार्किंग स्थल है, अपनी स्कूटी पार्किंग में खड़ी करके हम उद्यान के प्रवेश द्वार की ओर बढे, लेकिन अन्दर जाने से पहले हमारी नज़र सड़क के उस पार स्थित मिठाइयों की दुकानों पर पड़ी ! हमने मन ही मन सोचा उद्यान घूमने में तो काफी समय लग जायेगा इसलिए अन्दर जाने से पहले पेट-पूजा कर लेते है, पता नहीं अन्दर कुछ खाने को मिलेगा भी या नहीं ? फिर सड़क के उस पार जाकर हमने एक दुकान पर रूककर चाय पी और कचोरियाँ खाई, देवेन्द्र को शायद ये ज्यादा अच्छी नहीं लगी, लेकिन अपने को ये गरमा-गर्म कचोरियाँ खाकर मजा आ गया और भूख भी कुछ हद तक शांत हो गई ! कचोरियाँ निबटाकर हम प्रवेश द्वार से होते हुए उद्यान में दाखिल हुए, जहाँ अन्दर जाने के लिए पक्का मार्ग बना है और मार्ग के किनारे चलने के लिए फुटपाथ भी है, जिसपर थोड़ी-2 दूरी पर फेरी वाले अपनी दुकान सजाये बैठे है !
मंडोर उद्यान में बने देवल (Deval in Mandor Garden) |
कोई मंदिर में चढाने का प्रसाद बेच रहा था, कोई खिलौने, तो कोई लाख के कड़े, कुछ महिलायें हाथों में मेहँदी लगाने का सामान लेकर भी बैठी थी ! वैसे आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि ये मार्ग जाकर एक मंदिर के पास ख़त्म होता है जिसके सामने जनाना महल भी है जिसे राजस्थान पुरातत्व विभाग ने अब एक सुन्दर संग्रहालय का रूप दे दिया है ! इस महल से सम्बंधित जानकारी मैं इस लेख में आगे दूँगा, फिल्हाल फुटपाथ पर आगे बढ़ते है जहाँ सड़क के किनारे जगह-2 छायादार पेड़ लगे है जिनके नीचे बैठे लंगूर आते-जाते लोगों पर नज़र गडाए बैठे है ! इनके सामने से गुजरता हुआ कोई व्यक्ति जब खाने-पीने का कोई सामान इनकी ओर फेंक देता है तो इनकी फुर्ती देखते ही बनती है ! चलिए, जब तक हम इस मार्ग पर आगे बढ़ रहे है आपको इस उद्यान से सम्बंधित कुछ ज़रूरी जानकारी दे देता हूँ ! जोधपुर रेलवे स्टेशन से 9 किलोमीटर की दूरी पर स्थित मंडोर कई दशकों से राजपुताना वैभव का केंद्र रहा है जिसके निशान आज भी शहर के अलग-2 हिस्सों में स्थित ऐतिहासिक इमारतों के रूप में देखे जा सकते है ! वैसे, दिल्ली से जोधपुर के लिए रोजाना चलने वाली मंडोर एक्सप्रेस का नाम भी इसी शहर के नाम पर रखा गया है !
उद्यान में जाने का प्रवेश द्वार |
सड़क के किनारे दिखाई देते लंगूर |
पुरातत्व विभाग की खोज के दौरान इस क्षेत्र से गुप्तकालीन पाषण कलाकृतियों का मिलना इस बात को प्रमाणित करता है कि प्राचीनकाल में मंडोर, कला, संस्कृति, और स्थापत्य का केंद्र रहा था ! खुदाई के दौरान यहाँ से मिले शिलालेखों, कलाकृतियों और अन्य सामग्रियों ने मंडोर के इतिहास, सामजिक व्यवस्था, धर्म और संस्कृति को जानने में बहुत सहायता की ! वैसे आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि मंडोर को लंका नरेश रावण की ससुराल भी कहा जाता है, हालांकि, रावण की पत्नी मंदोदरी के नाम से मिलता जुलता नाम होने के अलावा इस बात के कोई प्रमाण यहाँ उपलब्ध नहीं है ! इस उद्यान के मध्य भाग में दक्षिण से उत्तर की ओर एक कतार में जोधपुर के महाराजाओं के स्मारक बने हुए है, स्मारक के आस-पास छोटे-2 घास के मैदान भी है, जो बहुत सुन्दर लगते है ! इन स्मारकों में हिन्दू-मुस्लिम स्थापत्य कला का उत्कृष्ट समन्वय देखने को मिलता है, इन सभी स्मारकों में महाराजा अजीत सिंह का स्मारक सबसे विशाल है ! फुटपाथ पर चलते हुए हमें सड़क के उस पार एक पानी का कुंड दिखाई दे रहा है जो कचरे से भरा पड़ा है ! थोड़ी और आगे चलने पर हमें एक तिराहे से सड़क के दाईं ओर कुछ दूरी पर देवल और छतरियां दिखाई देने लगती है !
दूर से दिखाई देते देवल |
दूर से दिखाई देते देवल |
यहाँ ऐसे कई देवल है |
कुछ जानकारी भी दी गई है |
देवल में जाने की सीढियाँ |
देवल के अन्दर का एक दृश्य |
महाराजा अजीतसिंह की देवल |
महाराजा अजीतसिंह की देवल |
देवल के पास बैठा देवेन्द्र |
महाराजा अजीतसिंह की देवल |
देवल के पास से जाता एक मार्ग |
वाद्य यंत्र बजाता हुआ देवेन्द्र |
वाद्य यंत्र बजाता एक राजस्थानी कलाकार |
दूर से दिखाई देते देवल |
मंडोर उद्यान से सम्बंधित जानकारी देता एक बोर्ड |
संग्रहालय में जाने का प्रवेश द्वार |
मंदिर के सामने फेरे लेता एक नव-विवाहित जोड़ा |
दूर से दिखाई देती देवताओं के साल |
उद्यान से वापिस आते हुए लिया एक चित्र |
कब जाएँ (Best time to go Jodhpur): जोधपुर जाने के लिए नवम्बर से फरवरी का महीना सबसे उत्तम है इस समय उत्तर भारत में तो कड़ाके की ठण्ड और बर्फ़बारी हो रही होती है लेकिन राजस्थान का मौसम बढ़िया रहता है ! इसलिए अधिकतर सैलानी राजस्थान का ही रुख करते है, गर्मी के मौसम में तो यहाँ बुरा हाल रहता है !
कैसे जाएँ (How to reach Jodhpur): जोधपुर देश के अलग-2 शहरों से रेल और सड़क मार्ग से जुड़ा है, देश की राजधानी दिल्ली से इसकी दूरी 620 किलोमीटर है जिसे आप ट्रेन में सवार होकर रात भर में तय कर सकते है ! मंडोर एक्सप्रेस रोजाना पुरानी दिल्ली से रात 9 बजे चलकर सुबह 8 बजे जोधपुर उतार देती है ! अगर आप सड़क मार्ग से आना चाहे तो उसके लिए भी देश के अलग-2 शहरों से बसें चलती है, आप निजी गाडी से भी जोधपुर जा सकते है !
कहाँ रुके (Where to stay near Jodhpur): जोधपुर में रुकने के लिए कई विकल्प है, यहाँ 600 रूपए से शुरू होकर 3000 रूपए तक के होटल आपको मिल जायेंगे ! आप अपनी सुविधा अनुसार होटल चुन सकते है ! खाने-पीने की सुविधा भी हर होटल में मिल जाती है, आप अपने स्वादानुसार भोजन ले सकते है !
क्या देखें (Places to see near Jodhpur): जोधपुर में देखने के लिए बहुत जगहें है जिसमें मेहरानगढ़ किला, जसवंत थड़ा, उन्मेद भवन, मंडोर उद्यान, बालसमंद झील, कायलाना झील, क्लॉक टावर और यहाँ के बाज़ार प्रमुख है ! त्रिपोलिया बाज़ार यहाँ के मुख्य बाजारों में से एक है, जोधपुर लाख के कड़ों के लिए जाना जाता है इसलिए अगर आप यहाँ घूमने आये है तो अपने परिवार की महिलाओं के लिए ये कड़े ले जाना ना भूलें !
अगले भाग में जारी...
जोधपुर यात्रा
- दिल्ली से जोधपुर की ट्रेन यात्रा (A Train Journey from Delhi to Jodhpur)
- जोधपुर के मेहरानगढ़ दुर्ग का इतिहास (History of Mehrangarh Fort, Jodhpur)
- जोधपुर के मेहरानगढ़ दुर्ग की सैर (A Visit to Mehrangarh Fort, Jodhpur)
- मेहरानगढ़ दुर्ग के महल (A Visit to Palaces of Mehrangarh Fort, Jodhpur)
- मारवाड़ का ताजमहल - जसवंत थड़ा (Jaswant Thada, A Monument of Rajpoot Kings)
- जोधपुर का उम्मेद भवन (Umaid Bhawan Palace, Jodhpur)
- रावण की ससुराल और मारवाड़ की पूर्व राजधानी है मण्डोर (Mandor, the Old Capital of Marwar)
- जोधपुर की बालसमंद और कायलाना झील (Balasmand and Kaylana Lake of Jodhpur)
- जोधपुर का क्लॉक टावर और कुछ प्रसिद्द मंदिर (Temples and Clock Tower of Jodhpur)
Tags:
Mandor Garden
Nice description
ReplyDeleteउत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद सचिन भाई !
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