रविवार, 20 जुलाई 2014
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लैंसडाउन पहुँचने तक की यात्रा का वर्णन मैं अपने पिछले लेख में कर चुका हूँ ! हालाँकि रात को खूब अच्छी नींद आई पर सुबह जल्दी उठ जाने की आदत की वजह से 5 बजे मेरी नींद अपने आप ही खुल गई, उठकर देखा तो अभी बाहर अंधेरा था और बारिश भी हो रही थी ! काफ़ी देर तक तो मैं बिस्तर पर ही लेटा रहा और फिर से सोने की बहुत कोशिश की लेकिन मुझे फिर नींद नहीं आई ! उसके बाद मैं अपने बिस्तर से उठा और टेलिविज़न चालू करके समाचार देखने लगा ! जब बाहर उजाला होने लगा तो मैने फिर से अपने कमरे की खिड़की से झाँक कर देखा, बाहर अभी भी बारिश हो रही थी और चारों ओर घना कोहरा छाया हुआ था ! ऐसा मौसम देख कर एक बार तो लगा कि आज तो कहीं घूमना नहीं हो पाएगा, पर थोड़ी देर बाद जब गेस्ट हाउस के मालिक अनुराग जी टहलते हुए बाहर बरामदे में आए तो उनसे बात करने पर पता चला कि यहाँ पिछले दिन भी सुबह के वक़्त ऐसा ही मौसम था जोकि सुबह 9 बजे तक खुल गया था ! बारिश के दिनों में पहाड़ों पर अक्सर मौसम हर घंटे बदलता रहता है, एक पल बारिश तो अगले ही पल धूप निकल आती है !
कमरे से दिखाई देता एक दृश्य (A view from our Room) |
थोड़ी देर बाद जब जयंत और जीतू भी अपने-2 बिस्तर से बाहर आ गए और नित्य-क्रम से निबट कर घूमने जाने के लिए तैयार हो गए, सुबह की चाय पीने के बाद हम लोग गेस्ट हाउस से बाहर निकल आए ! बाहर अभी भी हल्की-2 बारिश हो रही थी, पर घूमने वालों को भला बारिश कहाँ रोक सकती है ! बारिश की परवाह किए बिना ही हम तीनों घूमने के लिए ज़हरिखाल के मुख्य बाज़ार की ओर चल दिए ! यहीं मुख्य मार्ग पर भगवान का एक मंदिर है, जहाँ जाकर हमने पहले तो भगवान के दर्शन किए और फिर टिप-एंड-टॉप की ओर पैदल ही चल दिए ! वैसे तो टिप-एंड-टॉप जाने की मुख्य सड़क मंदिर के सामने ही है लेकिन इस मुख्य सड़क के उस पार से एक कच्चा रास्ता उपर की ओर जाता है, हम तीनों इसी कच्चे रास्ते से उपर की ओर चढ़ने लगे ! यहाँ पर आपको तस्वीरों की कमी महसूस हो सकती है क्योंकि बारिश की वजह से हम लोग कैमरा अपने कमरे पर ही छोड़ आए थे !
खैर, इस कच्चे रास्ते से होते हुए हम लोग सीधे टोल नाके के पास पहुँच गए ! पहाड़ों पर अक्सर ऐसा होता है, पक्के रास्ते बहुत ही घुमावदार और लंबे होते है, इसलिए यहाँ के स्थानीय लोग आवागमन के लिए इन कच्चे रास्तों का उपयोग बहुत ज़्यादा करते है ! टोल नाके से थोड़ा आगे बढ़ने पर हमें अपनी बाईं ओर एक उँची पहाड़ी दिखाई दी, हमारे अनुमान के मुताबिक इस पहाड़ी की उँचाई से बहुत ही अच्छा नज़ारा दिखाई देता होगा इसलिए हमने इस पहाड़ी के उपर चढ़ने का निश्चय किया ! मैं और जयंत तो फटाफट पहाड़ी पर चढ़ने लगे पर जीतू नीचे ही खड़ा रहा, जैसे-2 हम दोनों उपर चढ़ते जा रहे थे, हमारा जोश भी बढ़ता जा रहा था ! थोड़ी देर में हम दोनों पहाड़ी के उपर पहुँच गए ! यहाँ एक उँचा सा टीला था और टीले के दूसरी ओर ज़हरिखाल से टिप-एंड-टॉप जाने वाली मुख्य सड़क थी ! यहाँ से हमें जीतू दिखाई नहीं दे रहा था, आवाज़ लगाकर भी देखा पर कुछ जवाब नहीं मिला ! यहाँ से चारों ओर के नज़ारे देखने के बाद हम लोग इस सड़क पर ज़हरिखाल की ओर बढ़े तो एक दिशा सूचक बोर्ड से मालूम हुआ कि ज़हरिखाल की दूरी यहाँ से 2.5 किलोमीटर है !
हम दोनों इस मार्ग पर ये सोच कर तेज़ी से आगे बढ़ने लगे कि जीतू नीचे खड़ा हम दोनों की प्रतीक्षा कर रहा होगा ! रास्ते में हमने कई बार जीतू को आवाज़ भी लगाई, पर उसका कोई जवाब नहीं आया ! जॅंगल एकदम शांत होने के कारण आवाज़ भी बहुत दूर तक जा रही थी, जिस सड़क से हम लोग ज़हरिखाल जा रहे थे उसके दाईं ओर तो वही पहाड़ी थी जिसपर हम चढ़े थे जबकि बाईं ओर गहरी खाई थी, जहाँ से किसी जंगली जानवर के चिल्लाने की आवाज़ आ रही थी, मुझे तो ये आवाज़ सियार की लगी ! जब हम लोग वापिस टोल नाके के पास पहुँच गए तो वो स्थान जहाँ से हमने चढ़ाई शुरू की थी, वहाँ जीतू हमें नहीं मिला ! जयंत कहने लगा कि कहीं हमारा इंतज़ार करता हुआ जीतू भी पहाड़ी के उपर तो नहीं चला गया ! पर मुझे पता था कि आलसी जीतू ऐसा तो नहीं कर सकता, मैने कहा यार वो ज़हरिखाल वापस चला गया होगा और कहीं बैठ कर नाश्ता कर रहा होगा ! जिस रास्ते से हम लोग उपर आए थे उसी रास्ते से होते हुए हम लोग नीचे उतरकर सीधे मंदिर के पास पहुँच गए !
दूर से ही जीतू हमें सड़क के किनारे खड़ा दिखाई दिया, पास पहुँचने पर वो कहने लगा यार तुम्हें पहाड़ की चढ़ाई ही करनी थी तो मुझे भी बता दिया होता, मैं भी आ जाता ! हमने कहा चढ़ाई के लिए क्या तुझे अलग से न्योता देना होगा, दरअसल उसे लगा कि हम लोग उस पहाड़ी की थोड़ी उँचाई पर चढ़ने के बाद वापस नीचे आ जाएँगे, इसलिए वो हमारे साथ उपर नहीं चढ़ा ! हमने कहा कोई बात नहीं, नाश्ता करने के बाद फिर से ऐसी ही एक चढ़ाई कर लेंगे, तब तू भी हमारे साथ चल दियो ! थोड़ी देर वहीं खड़े होकर बातें करने के बाद हम लोग नाश्ता करने के लिए पास की ही एक दुकान में जाकर बैठ गए ! बारिश के मौसम में अगर सुबह-2 नाश्ते में चाय संग पराठे या ब्रेड-आमलेट मिल जाए तो क्या कहने ! पराठे तो इस समय उपलब्ध नहीं थे इसलिए नाश्ते में ब्रेड-आमलेट से ही काम चलाना पड़ा ! नाश्ता करने के बाद हमारे शरीर में एक नई उर्जा का संचार हुआ और इस बार हम लोग ज़हरिखाल के गवर्नमेंट इंटर कॉलेज में घूमने चल दिए !
ये कॉलेज ज़हरिखाल के मुख्य बाज़ार के पास ही है और काफ़ी बड़ा है, आज रविवार होने के कारण ये कॉलेज बंद था ! कॉलेज के मुख्य द्वार पर लगे बोर्ड पर लिखी जानकारी के अनुसार इस कॉलेज की स्थापना 1921 में हुई थी, कॉलेज के अंदर एक खुला मैदान है जहाँ बंदरों ने खूब आतंक मचा रखा था ! थोड़ी देर इस मैदान में घूमने के बाद हम लोग वापस अपने गेस्ट हाउस आ गए ! गेस्ट हाउस पहुँचे तो साढ़े दस बज रहे थे, हम तीनों जल्दी से नहा-धोकर तैयार हो गए और अपना सारा सामान अपने-2 बैग में रख लिया ! अब लैंसडाउन से बिदाई का समय हो गया था, हमने सोचा कि जैसे लैंसडाउन आते समय रास्ते में मस्ती करते हुए आए थे, अगर समय से निकले तो वापसी में भी वैसी ही मस्ती करने को मिलेगी ! सारा सामान लेकर गेस्ट हाउस की चाबी अनुराग धुलिया को देकर जब जहरिखाल के मुख्य चौराहे पर अपनी गाड़ी के पास पहुँचे तो 11 बजकर 30 मिनट हो रहे थे ! सारा सामान गाड़ी में रखने के बाद हम लोग टिप-एंड-टॉप की ओर चल दिए !
टोल नाके पर पहुँच कर फिर से 52 रुपए की पर्ची कटवाई और आगे बढ़ गए ! गाँधी चौक से होते हुए हम लोग दुग्गडा की ओर चल दिए ! गाड़ी की गैस तो यहाँ आते हुए ही ख़त्म हो चुकी थी और अब तो पेट्रोल के भी दो ही डंडे दिखाई दे रहे थे ! एक बार तो हमें लगा कि कहीं रास्ते में ही पेट्रोल ना ख़त्म हो जाए, और आस पास तो कहीं पेट्रोल पंप भी नहीं था ! इस पर जयंत बोला कि अब तो हमें पहाड़ी से नीचे ही उतरना है इसलिए परेशानी की बात नहीं है क्योंकि उतरते हुए ज़्यादा पेट्रोल नहीं लगेगा, और फिर हम कोटद्वार पहुँच कर तो काफ़ी पेट्रोल पंप मिल जाएँगे ! इसी उधेड़-बुन में जब हम लोग गाँधी चौक से आगे बढ़े तो रास्ते में एक जगह आती है ठंडी सड़क ! पता नहीं क्या सोच कर इस जगह का नाम रखा गया होगा ! शीशे खोल कर बाहर हाथ निकाला तो महसूस हुआ कि इस समय यहाँ काफ़ी ठंडक थी, हमें लगा शायद ये ठंडक ही इस नाम की वजह हो !
गाड़ी को सड़क के एक किनारे खड़ी करके हम लोग हम लोग ठंडी सड़क देखने के लिए चल दिए, ये जगह सड़क के किनारे एक पतली पगडंडी से होते हुए नीचे खाई की ओर जाती है, घना जॅंगल होने के कारण नीचे कोहरा भी छाया हुआ था ! यहाँ ठंडी सड़क पर चलते हुए प्रकृति के नज़ारों का भरपूर आनंद लिया जा सकता है ! इस पतली पगडंडी पर थोड़ी दूर तक चलने के बाद हम लोग एक जगह जाकर रुक गए ! रास्ता तो ओर भी नीचे तक जा रहा था पर जब हमें यहीं से इतने सुंदर नज़ारे और हरियाली दिखाई दे रही थी तो हमें ज़्यादा नीचे जाने की ज़रूरत महसूस नहीं हुई ! थोड़ी देर तक वहाँ घूमने और बहुत सारी फोटो खिंचवाने के बाद हम लोग वापिस आकर दुग्गडा की ओर चल दिए ! वापसी में भी हमें एक से एक सुंदर नज़ारे देखने को मिले, सड़क के किनारे बादल तो ऐसे टहल रहे थे जैसे सारे जहाँ के बादल यहाँ लैंसडाउन में ही छुट्टियाँ मनाने आए हो ! रास्ते में हम लोगों ने कई जगह रुक-2 कर प्रकृति के इन खूबसूरत नज़ारों को अपने कैमरें में क़ैद किया और अपना सफ़र जारी रखा !
गाड़ी को सड़क के एक किनारे खड़ी करके हम लोग हम लोग ठंडी सड़क देखने के लिए चल दिए, ये जगह सड़क के किनारे एक पतली पगडंडी से होते हुए नीचे खाई की ओर जाती है, घना जॅंगल होने के कारण नीचे कोहरा भी छाया हुआ था ! यहाँ ठंडी सड़क पर चलते हुए प्रकृति के नज़ारों का भरपूर आनंद लिया जा सकता है ! इस पतली पगडंडी पर थोड़ी दूर तक चलने के बाद हम लोग एक जगह जाकर रुक गए ! रास्ता तो ओर भी नीचे तक जा रहा था पर जब हमें यहीं से इतने सुंदर नज़ारे और हरियाली दिखाई दे रही थी तो हमें ज़्यादा नीचे जाने की ज़रूरत महसूस नहीं हुई ! थोड़ी देर तक वहाँ घूमने और बहुत सारी फोटो खिंचवाने के बाद हम लोग वापिस आकर दुग्गडा की ओर चल दिए ! वापसी में भी हमें एक से एक सुंदर नज़ारे देखने को मिले, सड़क के किनारे बादल तो ऐसे टहल रहे थे जैसे सारे जहाँ के बादल यहाँ लैंसडाउन में ही छुट्टियाँ मनाने आए हो ! रास्ते में हम लोगों ने कई जगह रुक-2 कर प्रकृति के इन खूबसूरत नज़ारों को अपने कैमरें में क़ैद किया और अपना सफ़र जारी रखा !
जाते समय रास्ते में हमें जो पानी का झरना मिला था वापसी में वो नहीं था, शायद जिस स्त्रोत से पानी आ रहा था वहाँ अब उतना पानी ना हो कि ये झरने तक पहुँच सके ! सड़क के किनारे-2 ही एक नदी भी बह रही थी, जिसमें पानी का बहाव तो ज़्यादा नहीं था, यहाँ से गुज़रते समय थोड़ी देर नदी किनारे बैठ कर प्रकति के नज़ारों को निहारने के अपने मोह को हम लोग नहीं रोक पाए ! हालाँकि, उसी दौरान हिमाचल प्रदेश के कुल्लू में एक नदी में कॉलेज के कुछ विद्यार्थियों के बह जाने की खबर भी चर्चा में थी, पर यहाँ पानी उतना नहीं था कि किसी भी तरह के ख़तरे की बात हो ! थोड़ा समय यहाँ बिताने की आस मन में लिए हम लोगों ने गाड़ी सड़क के एक किनारे रोक दी ! गाड़ी से उतरकर हम तीनों इस नदी की ठंडक लेने के लिए सड़क से नीचे की ओर चल दिए, पथरीले रास्तों से होते हुए हम लोग नदी तक पहुँच गए ! जैसे ही पानी में पैर रखा, एक अजीब सी सिहरन पूरे बदन में महसूस हुई, नदी का ठंडा पानी एक सुखद एहसास दे रहा था !
फिर वहीं एक बड़ा सा पत्थर देख कर हम तीनों उस पर बैठ गए और अपने पैर पानी में लटका दिए ! काफ़ी देर तक यहाँ-वहाँ की बातें करने के बाद जब हल्की-2 बारिश से हम लोग भीगने लगे तो सोचा कि भीग तो वैसे भी रहे है तो क्यों ना नदी में स्नान ही कर लिया जाए ! बस फिर क्या था हम तीनों उस नदी में नहाने के लिए उतर गए ! बारिश भी धीरे-2 तेज होने लगी थी जिससे पास में रखा हमारा सामान अब भीगने लगा था ! लेकिन उस समय सामान के भीगने की किसे पड़ी थी, हम सभी तो मौसम का आनंद ले रहे थे ! थोड़ी देर बाद मैं तो नदी से बाहर आ गया, पर जयंत और जीतू पानी से बाहर निकलने का नाम ही नहीं ले रहे थे ! जब नदी पर ही एक घंटे से अधिक का समय बीत गया तब कहीं जाकर वो दोनों भी बाहर आए और हमने अपना आगे का सफ़र शुरू किया ! जितनी देरी हम लोग यहाँ करने वाले थे उतना ही अधिक देरी हमें आगे के सफ़र में होने वाली थी ! फिर भी वहाँ से निकलते-2 सवा चार बज चुके थे !
जब पहाड़ी रास्ता ख़त्म हो गया और हम लोग मलिन नदी के पुल पर पहुँचे तो यहाँ भी नदी में पानी ना के बराबर ही था ! रास्ते में एक पेट्रोल पंप पर रुककर गाड़ी में तेल डलवाया और अपना आगे का सफ़र जारी रखा, मैदानी क्षेत्र आने के बाद सड़क के किनारे-2 ही एक रेलवे लाइन जा रही थी, यहाँ भी हमने थोड़ी देर रुककर मस्ती की ! नजीबाबाद पहुँचने के बाद हमने बिजनौर से मेरठ होते हुए वापिस जाने की सोची ! क्योंकि जिस रास्ते से हम आए थे वो तो पूरा ही जलमग्न था और हम फिर से कोई जोखिम नहीं लेना चाहते थे ! इसलिए बिजनौर से अपनी दाईं ओर मुड़ते हुए हम लोग खतौली वाले मार्ग पर आ गए ! मेरठ तक तो सब ठीक-ठाक था पर मेरठ में घुसते ही कांवडियों का भयंकर हुजूम देखने को मिला ! प्रशाशन ने कांवडियों के लिए एक तरफ का रास्ता आरक्षित कर रखा था और बाकी का यातायात एक रास्ते पर ही चालित था !
हमने कहा लो जी, सारे सफ़र की कसर यहाँ निकल जाएगी क्योंकि हम जानते थे कि ऐसे हालात में मेरठ को पार करने में ही हमें काफ़ी मशक्कत करनी पड़ेगी ! खैर, मेरठ में इस मार्ग पर चलते हुए वहीं सड़क के किनारे एक होटल में खाना खाने के लिए हमने फिर से गाड़ी रोकी और पेट पूजा करने के बाद आगे का सफ़र जारी रखा ! इस होटल का खाना बहुत ही स्वादिष्ट था, और खाना खाने के बाद तो अब नींद भी आने लगी थी ! इस समय जयंत गाड़ी चला रहा था ! यहाँ किसी की भावनाओं को आहत करने का मेरा कोई आशय नहीं है, पर मैं ये बात विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि इन कांवडियों में से आधे भक्त ही सच्ची श्रद्धा से इस यात्रा पर जाते है, अन्य तो बस मौज-मस्ती के लिए जाते है, इन लोगों की वजह से सड़क पर चलने वाले अन्य लोगों को कितनी परेशानियों का सामना करना पड़ता है ये तो शायद इस मार्ग पर यात्रा करने वाला एक यात्री ही बता सकता है ! इतने हुड़दंगी कांवडीए देख कर लगता ही नहीं है कि ये भक्ति-भाव से इस यात्रा पर गए हो !
अगर ऐसा ही है तो फिर ये गंगाजल लाने का दिखावा क्यों, पूजा तो आप अपने घर भी कर सकते है ! अगर इस विवाद पर चर्चा करने बैठ गए तो निष्कर्ष निकलने में कई दिन बीत जाएँगे और आप भी कहेंगे कि अपने यात्रा वृतांत छोड़ कर मैने भी क्या नया विवाद शुरू कर दिया ! जैसे-तैसे मेरठ पार करके नोयडा पहुँचते हुए रात के ग्यारह बजे गए ! नोयडा पहुँच कर गाड़ी में फिर से गैस भरवाने के बाद हमने जो रफ़्तार पकड़ी तो फिर फरीदाबाद जाकर ही रुके ! जयंत और जीतू को उनके घर छोड़ने के बाद मैने पलवल के लिए अपना सफ़र जारी रखा ! रात साढ़े बारह बजे मैने अपने घर में प्रवेश करने के बाद राहत की साँस ली ! थकान काफ़ी हो चुकी थी इसलिए गाड़ी खड़ी करके फटाफट अपने बिस्तर पर आराम करने चला गया क्योंकि अगले दिन ऑफिस भी जाना था ! तो दोस्तों इसी के साथ अपनी यात्रा को यहीं समाप्त करता हूँ, जल्द ही एक नए सफ़र की शुरुआत करूँगा !
Jehrikhaal Market |
Jehrikhaal Govt. College |
कॉलेज परिसर के भीतर का दृश्य (College Campus) |
ठंडी सड़क जाने का मार्ग (Way to Thandi Sadak) |
ठंडी सड़क जाने का मार्ग (Way to Thandi Sadak) |
ठंडी सड़क के अंदर का दृश्य (Trek near thandi Sadak) |
Trek near thandi Sadak |
भुल्ला ताल (Bhulla Taal) |
A view from Hill |
Forest Near Lansdowne |
A river on Dugadda Lansdowne Road |
A river on Dugadda Lansdowne Road |
Railway Trek near Kotdwar |
ठंडी सड़क लैंसडाउन (Thandi Sadak)
लैंसडाउन जाते हुए मार्ग में एक नदी
क्यों जाएँ (Why to go Lansdowne): अगर आप साप्ताहिक अवकाश (Weekend) पर दिल्ली की भीड़-भाड़ से दूर प्रकृति के समीप कुछ समय बिताना चाहते है तो लैंसडाउन आपके लिए एक बढ़िया विकल्प है ! इसके अलावा अगर आप प्राकृतिक नज़ारों की चाह रखते है तो आप निसंकोच लैंसडाउन का रुख़ कर सकते है ! अगर दिसंबर-जनवरी में पहाड़ों पर बर्फ देखने की चाहत हो तो भी लैंसडाउन चले आइए, दिल्ली के सबसे नज़दीक का हिल स्टेशन होने के कारण लैंसडाउन लोगों की पसंदीदा जगहों में से एक है !कब जाएँ (Best time to go Lansdowne): लैंसडाउन आप साल भर किसी भी महीने में जा सकते है बारिश के दिनों में तो यहाँ की हरियाली देखने लायक होती है लेकिन अगर आप बारिश के दिनों में जा रहे है तो मेरठ-बिजनौर-नजीबाबाद होकर ही जाए ! गढ़मुक्तेश्वर वाला मार्ग बिल्कुल भी ना पकड़े, गंगा नदी का जलस्तर बढ़ने के कारण नेठौर-चांदपुर का क्षेत्र जलमग्न रहता है ! वैसे, यहाँ सावन के दिनों में ना ही जाएँ तो ठीक रहेगा और अगर जाना भी हो तो अतिरिक्त समय लेकर चलें क्योंकि उस समय कांवड़ियों की वजह से मेरठ-बिजनौर मार्ग अवरुद्ध रहता है !
कैसे जाएँ (How to Reach Lansdowne): दिल्ली से लैंसडाउन की कुल दूरी 260 किलोमीटर है जिसे तय करने में आपको लगभग 7 से 8 घंटे का समय लगेगा ! दिल्ली से लैंसडाउन जाने के लिए सबसे बढ़िया मार्ग मेरठ-बिजनौर-नजीबाबाद होते हुए है, दिल्ली से खतौली तक 4 लेन राजमार्ग बना है जबकि खतौली से आगे कोटद्वार तक 2 लेन राजमार्ग है ! इस पूरे मार्ग पर बहुत बढ़िया सड़क बनी है, कोटद्वार से आगे पहाड़ी मार्ग शुरू हो जाता है !
कहाँ रुके (Where to stay in Lansdowne): लैंसडाउन एक पहाड़ी क्षेत्र है यहाँ आपको छोटे-बड़े कई होटल मिल जाएँगे, एक दो जगह होमस्टे का विकल्प भी है मैने एक यात्रा के दौरान जहाँ होमस्टे किया था वो है अनुराग धुलिया 9412961300 ! अगर आप यात्रा सीजन (मई-जून) में लैंसडाउन जा रहे है तो होटल में अग्रिम आरक्षण (Advance Booking) करवाकर ही जाएँ ! होटल के लिए आपको 800 से 2500 रुपए तक खर्च करने पड़ सकते है ! यहाँ गढ़वाल मंडल का एक होटल भी है, हालाँकि, ये थोड़ा महँगा है लेकिन ये सबसे बढ़िया विकल्प है क्योंकि यहाँ से घाटी में दूर तक का नज़ारा दिखाई देता है ! सूर्योदय और सूर्यास्त देखने के लिए भी ये शानदार जगह है !
कहाँ खाएँ (Where to eat in Lansdowne): लैंसडाउन में छोटे-बड़े कई होटल है, जहाँ आपको खाने-पीने का सभी सामान आसानी से मिल जाएगा ! अधिकतर होटलों में खाना सादा ही मिलेगा, बहुत ज़्यादा विकल्प की उम्मीद करना बेमानी होगा !
क्या देखें (Places to see in Lansdowne): लैंसडाउन में देखने के लिए कई जगहें है जैसे भुल्ला ताल, दरवान सिंह म्यूज़ीयम, टिप एन टॉप, और एक चर्च भी है ! टिप एन टॉप के पास संतोषी माता का मंदिर भी है ! चर्च सिर्फ़ रविवार के दिन खुलता है जबकि म्यूज़ीयम रोजाना सुबह 9 बजे खुलकर दोपहर को बंद हो जाता है, फिर शाम को 3 खुलता है, अगर आप लैंसडाउन आए है तो ये म्यूज़ीयम ज़रूर देखिए ! लैंसडाउन से 35 किलोमीटर दूर ताड़केश्वर महादेव मंदिर भी है, लैंसडाउन से एक-डेढ़ घंटे का सफ़र तय करके जब आप ताड़केश्वर महादेव मंदिर पहुँचोगे तो मंदिर के आस-पास के नज़ारे देखकर आपकी सारी थकान दूर हो जाएगी ! चीड़ के घने पेड़ो के बीच बने इस मंदिर की सुंदरता देखते ही बनती है !
लैंसडाउन यात्रा
- दिल्ली से लैंसडाउन का एक यादगार सफ़र (A Road Trip from Delhi to Lansdowne)
- बारिश में देखने लायक होती है लैंसडाउन की ख़ूबसूरती (Beautiful Views on the Way to Lansdowne)
- लैंसडाउन से दिल्ली की सड़क यात्रा (A Road Trip from Lansdowne to Delhi)
Yaadien Taaza ho gyi, Pics dekh kar, Thandi Sadak sach mein bahut Thandi thi :) :)
ReplyDeleteतुमने ठंडी सड़क में बहुत मज़े किए जीतू भाई, मेरे पास सबूत के तौर पर कुछ फोटो भी है, कहो तो ईमैल कर दूँ !
Deleteलैपी जी आपके लेख सचमुच अद्भुत होते हैं। आपके ब्लॉग को बढ़कर ऐसा लगता है की हमने भी आपके साथ भ्रमण कर लिया। लैंसडौन के सफर के बारे में पढ़कर वो समय याद आ गया जब जीतेन्द्र जी ने तैरते हुए लोगों के बीच से गाड़ी चलाई थी। गाड़ी में पानी भरना शुरू हो गया था और हम सबकी हालत खस्ता हो गयी थी।
ReplyDeleteसुन्दर।
ReplyDeleteजी धन्यवाद !
Deleteसुंदर जगह ओर दोस्तो का साथ, बढिया है
ReplyDeleteलैंसडाउन वीकेंड बिताने के लिए शानदार जगह है !
DeleteMazedaar vratant...Aap logon ne St. Mary's church nahi dekha?
ReplyDeleteAur haan, nadi ka naam Malini hai.
अच्छा, ये नदी तो लैंसडाउन आते हुए रास्ते में एक जगह और भी मिली थी !
Deleteबहुत बढ़िया प्रदीप जी....आपके साथ लैंसडाउन का सफ़र करके अच्छा लगा.....
ReplyDeleteलेख में चित्रों ने सजीवता ला दी धन्यवाद
बहुत ही बढ़िया ... बारिशो में ती हमारे बॉम्बे के पहाड़ी एरिये लोनावाला और माथेरान भी कुछ इसी तरह हो जाते है ।खूबसूरत झरने और बलखाती नदिया।वीडियो बढ़िया थे।और सफर भी जोरदार
ReplyDeleteमैंने सुना है कि लोनावला और समूचे महाराष्ट्र में ही बरसात का मौसम अच्छा रहता है घूमने के लिए ! मैं एक बार पुणे आया था मार्च में घूमने ! तब दोस्त ने जुलाई-अगस्त में फिर से आने का न्योता दिया था, लेकिन मैं जा ही नहीं पाया !
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