शनिवार, 20 अगस्त 2011
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तपोवन की यात्रा से वापस आने के बाद हम लोग अपने होटल के बरामदे में बैठ कर बातें करते हुए चाय की चुस्कियाँ ले रहे थे ! उन दिनों अन्ना हज़ारे का आंदोलन बड़े ज़ोरों पर था, सामने मेज पर रखा अख़बार इस बात की गवाही दे रहा था क्योंकि जब अख़बार उठा कर देखा तो पूरा अख़बार ही अन्ना हज़ारे के आंदोलन की सुर्ख़ियों से भरा पड़ा था ! इस आंदोलन के साथ ही भारत में अब तक जितने भी बड़े आंदोलन हुए थे उन सबका लेखा-जोखा भी अख़बार में था ! भारत के विभिन्न शहरों में अन्ना हज़ारे के आंदोलन की लहर दौड़ रही थी, अख़बार पढ़ते-2 ही इस आंदोलन को लेकर हम लोगों की चर्चा शुरू हो गई, जो काफ़ी देर तक चली ! बारी-2 से हम सबने इस आंदोलन को लेकर अपने-2 विचार रखे, कोई कह रहा था कि आंदोलन सफल रहेगा और किसी ने कहा की आंदोलन कमजोर पड़कर ख़त्म हो जाएगा ! थोड़ी देर बाद हमारी चर्चा आंदोलन से हटकर उस दिन के आगे के कार्यक्रम पर होने लगी !अब सभी लोग इस बात पर चर्चा कर रहे थे कि अब आगे कहाँ जाया जाए !
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A Sign Board in Dhanaulti
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हम लोगों का विचार अब चम्बा की ओर जाने का था, धनोल्टी से चम्बा की दूरी लगभग 25-30 किलोमीटर है ! अब इतनी दूरी पैदल तो तय की नहीं जा सकती, इसलिए ये निर्णय लिया गया कि हम लोग ये सफ़र अपनी गाड़ी से तय करेंगे ! घड़ी में समय देखा तो दोपहर के 2 बज रहे थे, और इस समय जाने का मतलब था शाम को वापसी में देरी ! चाय ख़त्म करके हम लोगों ने अपने कमरे में जाकर अपने साथ ले जाने का एक बैग तैयार किया, और गाड़ी की चाबी लेकर चम्बा जाने के लिए निकल पड़े ! इस बैग में हमने कैमरा, पानी की बोतलें, खाने-पीने का सामान, और एक टॉर्च रख लिया ! गाड़ी लेकर जैसे ही हम लोग ईको-पार्क से थोड़ा आगे बढ़े, तो धनोल्टी लिखा हुआ एक बोर्ड दिखाई दिया ! जीतू ने झट से गाड़ी रोक दी और कहने लगा यार इस बोर्ड के पास एक-दो फोटो खींच लेते है ! दोस्तों को दिखाने के लिए हो जाएगा कि हम लोग धनोल्टी घूम कर आए है ! हमने कहाँ कमीने तेरे दोस्त तो तेरे साथ ही है फिर तुझे ये दिखाना किसे है कि तू घूमने धनोल्टी आया है !
खैर, वहाँ पर 5-7 फोटो खींचने के बाद हम लोग वापस अपनी गाड़ी में आकर बैठ गए ! यहाँ से आगे बढ़ने पर हमें सड़क के किनारे कुछ स्कूली बच्चे सामने से आते हुए दिखाई दिए ! हमारी गाड़ी को देखकर बच्चे सड़क के किनारे खड़े होकर हमें देखने लगे ! मैं भी कार के साइड वाले शीशे में काफ़ी देर तक उन बच्चों को निहारता रहा जो अभी भी मुड़कर हमें देख रहे थे ! फिर सड़क पर एक मोड़ आया और बच्चे हमारी आँखों से ओझल हो गए ! मैने एक बात गौर की है कि पहाड़ों पर सड़क मार्ग से एक पहाड़ी से दूसरी पहाड़ी तक पहुँचने में 4-5 किलोमीटर की यात्रा करनी पड़ जाती है ! जबकि यहाँ रहने वाले स्थानीय लोग एक पहाड़ी से दूसरी पहाड़ी पर कच्चे रास्ते से ही जाते है ! ये लोग सवारी का प्रयोग ना करके पैदल ही यात्रा करते है ! ये भी एक कारण है कि पहाड़ी लोग दुबले-पतले पर मजबूत शरीर वाले होते है ! हमें तो याद नहीं पर शायद ही कोई मोटापे का शिकार पहाड़ी इंसान हमें अपनी इस यात्रा के दौरान देखने को मिला हो !
जिस रास्ते पर हम लोग आगे बढ़ रहे थे वहाँ तो हर पहाड़ी पार करते ही एक अलग नज़ारा दिखाई दे रहा था ! रास्ते में चलते हुए मन में ना जाने कितनी बार ये विचार आया कि शहर की भाग-दौड़ भरी ज़िंदगी को छोड़ कर कुछ दिन यहीं पहाड़ों पर बिता लिए जाएँ ! हर मोड़ पर ऐसा लग रहा था कि गाड़ी रोक कर थोड़ी देर इस खूबसूरती को निहार लिया जाए ! वैसे पहाड़ों पर पैदल यात्रा करने का अपना अलग ही मज़ा है पर अगर यात्रा थोड़ी लंबी हो तो अपनी गाड़ी ले जाने में भी कोई हर्ज नहीं है ! क्योंकि अपनी गाड़ी होने से एक तो आपको वापस लौटने की जल्दबाज़ी नहीं होती और दूसरा आप जहाँ मन चाहे वहाँ गाड़ी रोक कर प्राकृतिक दृश्यों का आनंद ले सकते है ! हमने भी आगे ऐसे ही एक मोड़ पर खुली जगह देख कर गाड़ी सड़क के किनारे रोक दी और सभी लोग गाड़ी से बाहर आकर आस-पास के नज़ारों को देखने लगे !वहाँ से देखने पर दूर तक दिखाई देती इठलाती-बलखाती सड़क, आसमान में लहराते बादल और दूर तक फैले हरे-भरे पहाड़, किसी का भी मन मोहने के लिए काफ़ी थे !
सड़क के एक छोर से खड़े होकर देखने पर ऐसा लग रहा था जैसे सड़क का दूसरा छोर दूर कहीं जाकर बादलों से मिल रहा हो ! एक ही झलक में इस दृश्य ने हमारा भी मन मोह लिया ! सामने लगे एक बोर्ड पर लिखी जानकारी से हमें पता चला कि इस जगह का नाम कद्दूखाल है ! बड़ा ही अजीब सा नाम है कद्दुखाल, पता नहीं किसी ने क्या सोचकर इस जगह का नाम रखा होगा, अगर आपको जानकारी हो तो मुझे भी ज़रूर बताना ! यहाँ से चम्बा की तरफ थोड़ी आगे बढ़े तो सड़क के किनारे पहाड़ों पर से पानी की छोटी-2 धाराएँ झरने की तरह बह कर सड़क के नीचे से होती हुई दूसरी ओर नीचे घाटी में जा रही थी ! पहाड़ों पर घूमने आने वालों को क्या चाहिए, खूबसूरत हरे-भरे पहाड़, दूर खुले आकाश में तैरते हुए बादल, और इन पहाड़ों के बीच अगर आपको पानी का झरना भी मिल जाए फिर तो क्या कहने ! ऐसा लगता है जैसे बिन माँगे मन की मुराद पूरी हो गई हो ! ऐसे नज़ारों को देख कर तो यही कहने को मन होता है कि धरती पर अगर कहीं स्वर्ग है तो वो पहाड़ों पर ही है !
ऐसे ही एक पानी के झरने को देख कर जीतू ने गाड़ी रोक दी और हम लोग उस झरने की ओर चल दिए ! पहाड़ों पर बहने वाले पानी में भीगना भी काफ़ी आनंद देता है, उस पानी से जो ठंडक और ताज़गी मिलती है वो शायद ही कहीं और मिल सके ! उस छोटे झरने के पास जाकर हम लोग बैठ गए और जयंत आस-पास के पेड़-पौधो का चित्र लेने लगा ! वहाँ ज़्यादा कुछ करने को तो था नहीं इसलिए हम लोग ज़्यादा देर ना रुक कर आगे बढ़ गए, क्योंकि पहाड़ी रास्तों पर तो ऐसे अनगिनत छोटे-बड़े झरने मिलते ही रहते है ! आगे एक मोड़ के पास ही सुरकंडा देवी के मंदिर तक जाने के लिए सीढ़ियाँ बनी हुई थी ! हम लोगों ने अपनी गाड़ी वहीं सड़क के किनारे एक ढाबे के सामने खड़ी कर दी और स्थानीय लोगों से सुरकंडा देवी के मंदिर के बारे में जानकारी लेने लगे ! लोगों से मिली जानकारी के अनुसार सुरकंडा देवी का मंदिर मुख्य सड़क से लगभग 2 किलोमीटर दूर है ! मंदिर के मुख्य प्रांगण तक जाने के लिए सीढ़ियाँ बनी हुई थी, हमें भी उन सीढ़ियों से होकर ही जाना था !
ये मंदिर माता सती को समर्पित है, प्राचीन कथाओं के अनुसार जब माता सती ने भगवान शिव को अपना वर चुन लिया तो उनके पिता राजा दक्ष इस चयन से खुश नहीं थे ! इसलिए जब उन्होनें अपने यहाँ एक महायग का आयोजन किया तो माता सती और भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया ! इस बात से शुब्ध होकर माता सती ने अग्नि समाधि ले ली ! जब भगवान शिव को इस बात की जानकारी मिली तो उन्होनें माता सती के शव को अपने कंधे पर रखकर तांडव करना शुरू कर दिया ! ये देख कर सारे देवतागण चिंता में पड़ गए, तब भगवान विष्णु ने अपना सुदर्शन चक्र चलाया जिस से माता सती के पार्थिव शरीर के टुकड़े-2 हो गए ! ये देख कर भगवान शिव महयोग के लिए बैठ गए, सती के शरीर के 51 टुकड़े हुए जो भारत में अलग-2 जगहों पर गिरे, इन जगहों को शक्ति-पीठ के नाम से जाना जाता है ! माता सती का सिर इस स्थान पर गिरा और यहाँ सुरकंडा देवी के मंदिर की स्थापना हुई !
ये सारी जानकारी हमें मंदिर में पहुँचने के बाद वहाँ के पुजारी ने दी ! सड़क के बाईं ओर बनी सीढ़ियों से होते हुए हमने मंदिर जाने के लिए चढ़ाई शुरू कर दी, सीढ़ियाँ ख़त्म होने के साथ ही ढ़ालनुमा पक्का रास्ता शुरू हो जाता है ! चढ़ाई काफ़ी खड़ी है इसलिए बहुत जल्दी ही थकान महसूस होने लगती है ! मंदिर जाने के रास्ते में कुछ स्थानीय लोग खाने-पीने का समान और मंदिर में चढ़ाने के लिए प्रसाद बेच रहे थे ! जबकि रास्ते में जगह-2 लोगों के आराम करने के लिए व्यवस्था भी की गई थी ! जो लोग पैदल जाने में समर्थ नहीं है उन लोगों के लिए यहाँ खच्चरों की व्यवस्था भी है ! खच्चरों से उपर जाने का किराया तो मैने नहीं पूछा पर अगर आप जाने से पहले ही अच्छे से मोल-भाव कर लेंगे तो आपके लिए सुविधाजनक रहेगा ! रास्ते में रुकते-रुकाते हम लोग उपर चढ़ते जा रहे थे, जयंत और परमार तो बहुत तेज़ी से आगे बढ़ गए, पर मैं और जीतू धीरे-2 चल रहे थे ! सच कहूँ, मेरी तो चलने की हिम्मत ही नहीं हो रही थी !
थोड़ी देर बाद जब हिम्मत जवाब दे गई तो हमने सोचा कि यहीं कहीं बैठ कर जयंत और परमार के वापस आने का इंतज़ार करते है ! ये सोचकर मैं और जीतू रास्ते में एक जगह रुक गए और वहीं से आस-पास का दृश्य देखने लगे ! वहाँ से देखने पर नीचे सड़क तक का नज़ारा एकदम साफ दिखाई दे रहा था, हरे-भरे पहाड़ो में से होते हुए घुमावदार रास्ते, और दूर तक दिखाई देते बादल बहुत ही सुंदर लग रहे थे ! असल में ऐसी शांत जगहों पर ही हम लोग अपने आप को थोड़ा समय दे पाते है वरना रोजमर्रा की ज़िंदगी में हमारे पास 2 मिनट शांति से बैठ कर अपने बारे में सोचने तक का वक़्त नहीं मिलता ! मैं भी वहीं बैठ कर अपनी ज़िंदगी के खट्टे-मीठे पलों को याद करने लगा ! मैं अपने ख्यालों में खोया हुआ था जबकि जीतू आस-पास के चित्र ले रहा था कि तभी मेरा फोन बज उठा ! फोन उठा कर देखा तो ये जयंत था, उसने बताया कि वे दोनों (जयंत और परमार) मंदिर के मुख्य प्रांगण में पहुँच चुके है और वहाँ से चारों ओर देखने पर बहुत ही सुंदर नज़ारा दिखाई दे रहा है !
जयंत की बात सुनकर मैने और जीतू ने एक ऐसे दृश्य की कल्पना की कि मैं और जीतू अपने आपको आगे बढ़ने से नहीं रोक पाए ! फिर तो जैसे हम लोगों को एक नई उर्जा मिल गई, तेज़ कदमों से हम लोगों ने आगे की चढ़ाई शुरू कर दी ! अगले 15-20 मिनट में हम दोनों भी मंदिर तक पहुँच गए, जहाँ अभी भी निर्माण कार्य चल रहा था ! हम लोग अपने जूते वहीं बाहर उतार कर हाथ-पैर धोने के बाद मंदिर में प्रवेश कर गए ! मंदिर के मुख्य भवन के बाहर ही एक बरामदा था जो चारों ओर से खुला हुआ था ! यहाँ खड़े होकर आप दूर तक की पहाड़ियों को देख सकते है ! यहाँ लोगों के बैठने की व्यवस्था भी है ! पहले तो काफ़ी देर तक हम सभी वहीं बरामदे में ही खड़े होकर बातें करते रहे फिर हम लोग पूजा करने के लिए मंदिर में अंदर गए ! आप भारत के किसी भी कोने में धार्मिक स्थान पर जाकर देख लीजिए, आपको हर जगह भीड़ देखने को मिल जाएगी पर यहाँ पर ऐसा कुछ भी नहीं था ! हम चार लोगों के अलावा 5-7 भक्त और थे जो दर्शन के लिए आए थे !
सुकरंडा देवी के मंदिर से लगा ही हनुमान जी का एक मंदिर भी है, पूजा करने के बाद हम लोग पुजारी से जाकर भी मिले, जिनका कक्ष मंदिर के साथ ही था ! उन्होनें ही हमें इस मंदिर के बारे में सारी आवश्यक जानकारी दी, उन्होनें हमें ये भी बताया कि हर साल यहाँ एक बार विशाल मेला भी लगता है और देश के विभिन्न हिस्सों से लोग इस मेले में आते है ! सारी जानकारी लेने के बाद हम लोग फिर से मंदिर के बाहर बने बरामदे में आ गए और वहाँ से दूर तक दिखाई देती हिमालय पर्वत श्रंखला को देखने लगे ! कहते है कि साफ मौसम में देखने पर यहाँ से भी ऋषिकेश तक की पहाड़ियाँ दिखाई देती है ! आज साफ मौसम होने की वजह से हम लोग भी उन पहाड़ियों को देख पा रहे थे ! इधर सूर्य देव भी रह-2 कर बादलों के बीच में से अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे थे ! अपनी ज़िंदगी में मैने बादलों को इतने करीब से कभी नहीं देखा था, कुछ बादल तो नीचे तैरते हुए दिखाई दे रहे थे और कुछ बादल हमारे समानांतर ही आसमान में दिखाई दे रहे थे !
हम लोगों ने बहुत सी तस्वीरें ली और फिर बैठ कर बातें करने लगे ! वहाँ से देखने पर हमें साफ दिखाई दे रहा था कि उस समय दूर कहीं बादल गरज रहे थे और बारिश भी हो रही थी ! समय देखा तो शाम के 5 बज रहे थे, थोड़ी देर बाद ही हम लोगों ने वापसी के राह पकड़ ली ! हालाँकि, उतरते हुए हमें ज़्यादा समय नहीं लग रहा था, पर फिर भी हम सावधानी पूर्वक उतर रहे थे ! इस समय मैं और जयंत अपने काम-काज को लेकर चर्चा कर रहे थे ! हम अक्सर गंभीर मुद्दों पर चर्चा ऐसे ही माहौल में करते है ! शादी, कामकाज या फिर कोई और गंभीर विषय, हमारे लिए इस से अच्छा माहौल तो कोई हो ही नहीं सकता ! नीचे उतरने में हमें ज़्यादा वक़्त नहीं लगा और हम लोग 6 बजे से 10 मिनट पहले ही नीचे मुख्य सड़क पर पहुँच गए जहाँ हमारी गाड़ी खड़ी थी ! सीढ़ियों से नीचे उतरते ही सामने कुछ खाने-पीने की दुकानें थी, भूख तो सबको ही लग रही थी तो सोचा क्यूँ ना पेट-पूजा कर ली जाए !
फिर क्या था बैठ गए वहीं एक दुकान में जाकर पराठे खाने के लिए ! 10-15 मिनट में ही हमारे सामने दही और आचार के साथ पराठे परोस दिए गए ! शाम तो हो ही चुकी थी इसलिए रात को फिर से खाने का कोई मन नहीं था ! सबने पेट भर के पराठे खाए, और 7 बजे तक खा-पीकर निबट गए ! सुरकंडा देवी के मंदिर से हमारे होटल की दूरी 10-12 किलोमीटर से ज़्यादा नहीं थी पर रात के समय सड़क पर पर्याप्त रोशनी ना होने के कारण हमें ये दूरी तय करने में ही 40-45 मिनट का समय लग गया ! एक तो अंधेरा और दूसरा कोहरा, इन दोनों मुश्किलों से जूझते हुए हम लोग आगे बढ़ रहे थे ! कोहरा इतना कि रास्ता भी दिखाई नहीं दे रहा था, कई जगहों पर तो हमें गाड़ी से उतर कर जीतू को रास्ता भी दिखाना पड़ा, ताकि गाड़ी कहीं खाई में ना उतर जाए ! जिन परिस्थितियों में हम लोग अपने होटल पहुँचे वो हम ही जानते है ! खैर, होटल पहुँच कर गाड़ी खड़ी की और अपने कमरे में सोने चले गए !
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Dhanaulti Chamba Road |
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Dhanaulti Chamba Road |
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कद्दुखाल (Somewhere in Kaddukhal) |
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Three Friends |
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Hulk, Standing on the Left |
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A view from Kaddukhal |
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धनोल्टी टिहरी मार्ग (Dhanaulti Tihri Road) |
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Way to Surkanda Devi Temple |
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सुरकंडा देवी के मंदिर जाने का मार्ग (Surkanda Devi Temple Route) |
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ऊपर से दिखाई देता एक दृश्य (A view from top) |
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उपर से दिखाई देता एक दृश्य (A view from top) |
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सुरकंडा देवी का मंदिर (Surkanda Devi Temple) |
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मंदिर का इतिहास (Temple History) |
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A view of Clouds from Surkanda Devi Temple |
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मंदिर से दिखाई देता एक दृश्य (A view from Surkanda Devi Temple) |
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Sun Covered with Clouds in Surkanda Devi |
क्यों जाएँ (Why to go Dhanaulti): अगर आप साप्ताहिक अवकाश (Weekend) पर दिल्ली की भीड़-भाड़ से दूर प्रकृति के समीप कुछ समय बिताना चाहते है तो मसूरी से 25 किलोमीटर आगे धनोल्टी का रुख़ कर सकते है ! यहाँ करने के लिए ज़्यादा कुछ तो नहीं है लेकिन प्राकृतिक दृश्यों की यहाँ भरमार है !
कब जाएँ (Best time to go Dhanaulti): धनोल्टी आप साल के किसी भी महीने में जा सकते है, हर मौसम में धनोल्टी का अलग ही रूप दिखाई देता है ! बारिश के दिनों में यहाँ की हरियाली देखने लायक होती है जबकि सर्दियों के दिनों में यहाँ बर्फ़बारी भी होती है ! लैंसडाउन के बाद धनोल्टी ही दिल्ली के सबसे नज़दीक है जहाँ अगर किस्मत अच्छी हो तो आप बर्फ़बारी का आनंद भी ले सकते है !
कैसे जाएँ (How to reach Dhanaulti): दिल्ली से धनोल्टी की दूरी महज 325 किलोमीटर है जिसे तय करने में आपको लगभग 7-8 घंटे का समय लगेगा ! दिल्ली से धनोल्टी जाने के लिए सबसे बढ़िया मार्ग मेरठ-मुज़फ़्फ़रनगर-देहरादून होकर है ! दिल्ली से रुड़की तक शानदार 4 लेन राजमार्ग बना है, रुड़की से छुटमलपुर तक एकल मार्ग है जहाँ थोड़ा जाम मिल जाता है ! फिर छुटमलपुर से देहरादून- मसूरी होते हुए धनोल्टी तक शानदार मार्ग है ! अगर आप धनोल्टी ट्रेन से जाने का विचार बना रहे है तो यहाँ का सबसे नज़दीकी रेलवे स्टेशन देहरादून है, जो देश के अन्य शहरों से जुड़ा हुआ है ! देहरादून से धनोल्टी महज 60 किलोमीटर दूर है जिसे आप टैक्सी या बस के माध्यम से तय कर सकते है, देहरादून से 10-15 किलोमीटर जाने के बाद पहाड़ी क्षेत्र शुरू हो जाता है !
कहाँ रुके (Where to stay in Dhanaulti): धनोल्टी उत्तराखंड का एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है यहाँ रुकने के लिए बहुत होटल है ! आप अपनी सुविधा अनुसार 800 रुपए से लेकर 3000 रुपए तक का होटल ले सकते है ! धनोल्टी में गढ़वाल मंडल का एक होटल भी है, और जॅंगल के बीच एपल ओरचिड नाम से एक रिज़ॉर्ट भी है !
कहाँ खाएँ (Eating option in Dhanaulti): धनोल्टी का बाज़ार ज़्यादा बड़ा नहीं है और यहाँ खाने-पीने की गिनती की दुकानें ही है ! वैसे तो खाने-पीने का अधिकतर सामान यहाँ मिल ही जाएगा लेकिन अगर कुछ स्पेशल खाने का मन है तो समय से अपने होटल वाले को बता दे !
क्या देखें (Places to see in Dhanaulti): धनोल्टी और इसके आस-पास घूमने की कई जगहें है जैसे ईको पार्क, सुरकंडा देवी मंदिर, और कद्दूखाल ! इसके अलावा आप ईको पार्क के पीछे दिखाई देती ऊँची पहाड़ी पर चढ़ाई भी कर सकते है ! हमने इस जगह को तपोवन नाम दिया था !
अगले भाग में जारी...
धनोल्टी यात्रा
- दोस्तों संग धनोल्टी का एक सफ़र (A Road Trip from Delhi to Dhanaulti)
- धनोल्टी का मुख्य आकर्षण है ईको-पार्क (A Visit to Eco Park, Dhanaulti)
- बारिश में देखने लायक होती है धनोल्टी की ख़ूबसूरती (A Rainy Trip to Dhanolti)
- सुरकंडा देवी - माँ सती को समर्पित एक स्थान (A Visit to Surkanda Devi Temple)
- मसूरी के मालरोड पर एक शाम (An Evening on Mallroad, Musoorie)
- मसूरी में केंप्टी फॉल है पिकनिक के लिए एक उत्तम स्थान (A Perfect Place for Picnic in Mussoorie – Kempty Fall)
अच्छा लेख और सुन्दर चित्रावली....!
ReplyDeleteधन्यवाद शैलेन्द्र जी...
Deleteबादलों के फोटो काफी अच्छे से खींचे गए ............!
ReplyDeleteHaan Ji...
Deleteyaadien taza ho gyi dobara,kitni sundar jagah thi..lovely location and pics
ReplyDeletephir se jaane ka mann kar rha hai pradeep
ReplyDeleteKabhi bhi chal lo yaar, hamne kab mana kiya hai ?
Deletehaan jaldi trip lagate hai dobara
ReplyDeleteबढ़िया यात्रा
ReplyDeleteजी धन्यवाद !
Deleteबढ़िया लेख
ReplyDeleteफोटो भी अच्छे लगे .
ReplyDeleteधन्यवाद रितेश भाई !
Deletebeautifully written post and equally supported by awesome pics ! Surkanda trek is not easy one , very steep.
ReplyDeleteThanks for sharing.
धन्यवाद महेश जी, सही कह रहे है आप, मंदिर तक जाने कि दूरी तो ज्यादा नहीं है लेकिन खड़ी चढ़ाई है !
DeleteNice article.Surkanda ma ki sampurn katha hindi me
ReplyDeleteThank You
DeleteThis comment has been removed by the author.
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