बुधवार, 18 जुलाई 2012
इस यात्रा वृतांत को शुरू से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें !
यात्रा के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि किस तरह हम डलहौजी से बस यात्रा करके धर्मशाला पहुँचे, और फिर हम सब शाम तक भाग्सू नाग झरने में नहाते रहे ! अब आगे, दिन भर सफ़र की थकान और झरने में नहाने के कारण रात को बढ़िया नींद आई ! सुबह जल्दी सोकर उठे, और नित्य-क्रम में लग गए ! आज हम त्रिउंड घूमने जाने वाले थे ये मक्लॉडगंज में एक शानदार ट्रेक है हर साल मक्लॉडगंज आने वाले हज़ारों लोग इस ट्रेक को करते है ! त्रिऊंड के बारे में हमने स्थानीय लोगों से काफ़ी जानकारी एकत्रित कर ली थी ! पिछली साल धर्मशाला यात्रा के दौरान समय के अभाव में त्रिउंड नहीं जा पाए थे, पर आज इस यात्रा पर जाने के लिए सभी लोग उत्साहित थे ! नाश्ता तो सुबह 9 बजे से पहले मिलने वाला नहीं था, ये जानकारी हम होटल वाले से पिछली रात को ही ले चुके थे ! हमने सोचा अगर नाश्ते के इंतज़ार में यहाँ बैठे रहे, तो पहुँच लिए त्रिउंड ! बस फिर क्या था, रास्ते में अपने साथ ले जाने के लिए ज़रूरी सामान अपने बैग में रखा, और त्रिउंड की चढ़ाई के लिए निकल पड़े !
फिर भी यात्रा शुरू करते-2 सुबह के साढ़े-सात बज चुके थे, अपने होटल से बाहर निकलकर हमने देखा कि आज मौसम साफ था और धूप भी ज़्यादा तेज़ नहीं थी ! मक्लोड़गंज के मुख्य बाज़ार पहुँचे तो खाने-पीने का सामान बेचने वाली कुछ दुकानों को छोड़कर लगभग सारा बाज़ार बंद था ! एक दुकान पर रुक कर हमने खाने के लिए कुछ चोकलेट, नमकीन-बिस्कुट और पानी की बोतलें खरीद ली, सारा सामान लेकर त्रिऊंड के लिए आगे बढ़ गए ! चाय तो हमें कहीं मिली नहीं, इसलिए एक फेरी वाले से खाने के लिए बन (पाव रोटी) ले लिए, यहाँ के बन देखने में थोड़ा अलग थे, खाकर देखा तो इनका स्वाद भी अलग था ! ये बहुत फीके थे, बिना चाय के खाना आसान नहीं था, थोड़ी देर तक तो बन खाते हुए आगे बढ़ते रहे, जब नहीं खाया गया तो रास्ते में एक कुत्ते को खिला दिए ! स्थानीय लोगों से बात-चीत के दौरान हमें पता चल चुका था कि त्रिउंड की चढ़ाई बहुत लम्बी और थका देने वाली है, फिर आगे पहाड़ी पर खाने-पीने की दुकानें भी ज्यादा नहीं है, इसलिए हमने मक्लॉडगंज से ही खाने-पीने का सामान अपने साथ ले लिया था !
वैसे पहाड़ों पर उतना ही सामान लेकर चलना चाहिए जितना ज़रूरी हो या फिर जितना आसानी से उठा सको ! ज्यादा भारी सामान लेकर चलने से थकावट जल्दी होने लगती है, और अगर एक बार थकावट होने लगे तो घुमक्कड़ी का आनंद अपने आप ही कम होने लगता है ! एक और ज़रूरी बात, पहाड़ों पर चढ़ाई के दौरान खाना तो चाहे थोडा कम खा लो, पर पानी लगातार पीते रहना चाहिए ! अक्सर पहाड़ों पर चढ़ाई के दौरान शरीर का सारा पानी पसीने के रूप में बाहर आ जाता है, इस कमी को पूरा करने के लिए लगातार पानी पीते रहना चाहिए ! अन्यथा शरीर में पानी की कमी के कारण आपकी घुमक्कड़ी का सारा आनंद ख़त्म हो सकता है ! मक्लोड़गंज से त्रिउंड की दूरी लगभग 9 किलोमीटर है, पता नहीं क्यों पर मुझे तो ये दूरी 10 किलोमीटर से भी ज्यादा लगी ! त्रिउंड जाने का रास्ता गालू मंदिर से होकर जाता है, और मक्लोड़गंज से गालू मंदिर जाने के 2 रास्ते है ! एक रास्ता तो डल-झील, नड्डी से होकर जाता है, और दूसरा रास्ता धर्मकोट होते हुए है !
नड्डी वाला रास्ता थोड़ा लंबा है इसलिए हम धर्मकोट वाले रास्ते से जा रहे थे, ये रास्ता वैसे तो थोड़ा छोटा है पर एकदम खड़ी चढ़ाई और थका देने वाला है ! वैसे त्रिऊंड जाने के लिए अगर आप गाडी से जाना चाहें तो गालू मंदिर तक गाड़ी से जा सकते है फिर उस से आगे का रास्ता आपको पैदल ही तय करना होगा ! गालू मंदिर के पास कुछ गेस्ट हाउस भी है, जहाँ रुकने के बढ़िया इंतज़ाम है, इस यात्रा का दौरान हमें कुछ विदेशी पर्यटक मिले, जो गालू मंदिर के पास ही रुके थे ! जिस रास्ते से हम लोग जा रहे थे, ये रास्ता उसी ओर था जिस ओर भाग्सू नाग मंदिर जाने का रास्ता है ! मक्लोड़गंज के मुख्य चौराहे से थोड़ा सा आगे निकल कर मुख्य सड़क दो भागों में विभाजित हो जाती है ! नीचे जाने वाली सड़क भाग्सू नाग मंदिर की ओर जाती है और ऊपर जाने वाली सड़क आपको धर्मकोट ले जाएगी ! अच्छा मौसम और अच्छे सहयात्री होने के कारण हमें त्रिऊंड की चढ़ाई में बहुत आनंद आ रहा था और ज्यादा परेशानी नहीं हो रही थी ! ये पूरा मार्ग ही बहुत सुंदर है, धर्मकोट पहुँचने से पहले ही हमें रास्ते में बहुत से सुन्दर नज़ारे दिखाई दिए !
रास्ते में हम कई जगहों पर रुके और प्रकृति के नजारों का भरपूर आनंद लिया ! धर्मकोट से पहले ऐसे ही रास्ते में एक जगह रुकने पर हमें सड़क किनारे काँच की टूटी हुई बोतलें और चिप्स के खाली पैकेट पड़े दिखाई दिए ! मुझे ये बात बहुत बुरी लगी कि क्यों हम जैसे कुछ लोग यहाँ अपनी छुट्टियाँ बिताने आते है और इन खूबसूरत जगहों को गंदा करके चले जाते है ! ऐसे सभी लोगों से मेरी विनम्र प्रार्थना है कि ऐसा ना करें, पहाड़ी जगहों पर ही नहीं बल्कि कहीं भी गंदंगी ना फ़ैलाएँ, इन पहाड़ी जगहों की खूबसूरती यहाँ की हरियाली और सफाई की वजह से ही है ! कल्पना कीजिए आप किसी हिल स्टेशन पर गए और वहाँ आपको जगह-2 गंदगी के ढेर देखने को मिले तो क्या आगे कभी आप ऐसी जगह पर जाएँगे ? बिल्कुल नहीं जाएँगे, बल्कि वापस आकर अपने सगे-संबंधियों से इस विषय पर चर्चा ज़रूर करेंगे और उन्हें भी वहाँ ना जाने की सलाह देंगे ! इसके विपरीत अच्छी जगह होने पर आप अपने सगे-संबंधियों और मित्रों को वहाँ जाने के लिए प्रेरित करेंगे !
अगर आप प्रकृति को कुछ दे नहीं सकते तो कम से कम गन्दगी फैला कर इसे गंदा भी मत कीजिए ! जुलाई-अगस्त का महीना और यहाँ धर्मशाला में बारिश ना हो, मुमकिन ही नहीं है, थोड़ी बहुत बारिश तो यहाँ रोज ही होती है ! अभी हम धर्मकोट पहुँचे ही थे कि अचानक से तेज़ बारिश शुरू हो गई, बारिश से बचने के लिए हम लोग फटाफट एक दुकान में घुस गए ! बारिश होने की वजह से मौसम में ठंडक भी बढ़ गई, हम लोग दुकान में बैठ कर बारिश के रुकने का इंतज़ार करने लगे ! बारिश से बचने के लिए हमारे अलावा अन्य लोग भी इस दुकान में आ गए थे, जिनमें से कुछ विदेशी पर्यटक भी थे ! थोड़ी देर वहाँ बैठने के बाद हमने दुकानदार से मैगी और चाय बनाने को कह दिया ! लगभग आधे घंटे तक जमकर बारिश होने के बाद मौसम खुल गया, इसी बीच हमने मैगी और चाय ख़त्म कर ली ! पेट-पूजा और थोड़ा आराम करने के बाद शरीर में नई ऊर्जा का संचार हो गया था और हम सब एक बार फिर तेज़ी से त्रिऊंड की ओर बढ़ने लगे !
यहाँ मक्लॉडगंज में मौसम बड़ी तेज़ी से करवट बदलता है, एक पल में बारिश शुरू हो जाती है और अगले ही पल मौसम खुल भी जाता है ! धर्मकोट में दुकान पर बैठ कर बारिश के रुकने का इंतज़ार करते हुए हमारे मन में यही उधेड़-बुन चल रही थी कि क्या ऐसे मौसम में त्रिउंड जाना समझदारी का काम होगा ! फिर दुकान के मालिक ने बताया कि इस मौसम (जुलाई-अगस्त) में तो यहाँ ऐसी बारिश दिन में एक-दो बार रोज़ ही होती है ! तब कहीं जाकर हमने अपनी इस यात्रा को जारी रखने का मन बनाया, वरना इस बार भी त्रिऊंड की यात्रा अधूरी रह जाती ! फिर शशांक ने भी कहा कि आगे चलते है यार, अगर मौसम ज्यादा खराब हुआ तो वापस आ जाएँगे ! धर्मकोट से थोडा सा आगे निकलते ही हम लोगों ने पक्का रास्ता छोड़कर एक सीढ़ीनुमा कच्चा रास्ता पकड़ लिया जोकि एक जंगल में से होकर गुजरता है ! ये रास्ता बहुत ही खड़ी चढ़ाई और थकाने वाला था, इस रास्ते पर आगे बढ़ने पर हमें अपनी दाईं ओर कुछ गाँव भी दिखाई दिए ! जंगल के बीचों-बीच पहुँचने पर एकदम सन्नाटा था, ना तो हमें कोई इंसान दिखाई दे रहा था और ना ही कोई जानवर, इस रास्ते पर अकेले आना बड़ा हिम्मत का काम होगा !
तभी रास्ते में हमें कुछ अन्य लोग नीचे आते दिखाई दिए, पूछने पर पता चला कि वो दोनों त्रिऊंड से आ रहे थे ! ये लोग सुबह 7 बजे त्रिऊंड से चले थे और अब यहाँ पहुँचे थे इन्होनें बताया कि आगे मौसम साफ है !इस पथरीले रास्ते पर लगभग आधे घंटे चलने के बाद हम लोग फिर से एक पक्की सड़क पर पहुँच गए, ये पक्का रास्ता नड्डी की ओर से आ रहा था ! गालू मंदिर से एक रास्ता तो हिमालयन वाटर फॉल की तरफ जाता है और दूसरा रास्ता त्रिउंड की ओर जाता है ! आज हम त्रिऊंड जा रहे है हिमालयन वॉटर फाल किसी और दिन जाएँगे ! गालू मंदिर के पास एक दुकान में थोड़ा समय बिताने के बाद हम सबने फिर से चढ़ाई शुरू कर दी ! रास्ते में हमें एक विदेशी सैलानियों का 8-10 लोगों का झुंड भी मिला ! उन लोगों के साथ एक गाइड भी था, गाइड से पूछताछ पर पता चला कि ये विदेशी लोग पिछली शाम को ही गालू मंदिर आ गए थे ! यहाँ गालू मंदिर के पास ही एक निजी गेस्ट हाउस है, रात को ये लोग यहीं रुके थे और अब सुबह त्रिउंड की चढ़ाई के लिए जा रहे थे !
रास्ते में जब एक दुकान पर पानी पीने के लिए थोड़ी देर रुके तो पूछने पर उसने बताया कि यहाँ पहाड़ों पर सामान लाने के लिए ये लोग खच्चरों का इस्तेमाल करते है ! साफ-सफाई को लेकर जगह-2 बोर्ड भी लगे हुए है कि पहाड़ों पर गंदगी ना फ़ैलाएँ, पहाड़ों पर कूड़ा-करकट साफ करने में बहुत कठिनाई आती है, इसलिए अपना सारा कूड़ा इन दुकानों पर रखे कूड़ेदान में ही डालना चाहिए ! ये दुकानदार नीचे जाते हुए खच्चरों पर रखकर इस कूड़े को अपने साथ ही ले जाते है ताकि पहाड़ों की सुंदरता बनी रहे ! इससे एक बात तो स्पष्ट है कि यहाँ के स्थानीय लोग पहाड़ों की सफाई का बहुत ध्यान रखते है, आख़िर इनकी रोज़ी-रोटी ही पहाड़ों पर आने वाले पर्यटकों से है ! उँचाई पर जाने पर खाने-पीने का सामान भी महँगा होता जा रहा था, जो पानी की बोतल 15 रुपए की आती है वो पहली दुकान पर हमें 20 रुपए, दूसरी दुकान पर 30 रुपए, और त्रिउंड पर 40 रुपए की मिली ! पर इतनी उँचाई पर ये लोग खाने-पीने का सामान अगर थोड़ा महँगा नहीं बेचेंगे तो इन्हें क्या बचेगा !
गालू मंदिर से आगे बढ़ने पर जो पहली दुकान मिली उसका नाम था मेजिक व्यू चाय शॉप ! इस दुकान पर जो बोर्ड लगा था उसके अनुसार ये 1984 से यहाँ पर थी, पर सच्चाई क्या है ये तो भगवान ही जाने ! जैसे-2 हम लोग ऊँचाई पर चढ़ते जा रहे थे, चारों ओर के नज़ारे और भी सुंदर होते जा रहे थे ! एक जगह तो ऐसी भी आई जहाँ बहुत घना कोहरा था ! कई जगह तो रास्ता भी काफ़ी संकरा था और इसलिए हम बहुत सावधानी से आगे बढ़ रहे थे, ज़रा सा पैर फिसला और आप घाटी में नीचे ! इन रास्तों को देख कर आपको बताने की ज़रूरत तो बिल्कुल नहीं होगी कि रात को तो यहाँ आना संभव ही नहीं है, दिन में ही यहाँ इतना सन्नाटा था तो रात को तो जंगली जानवरों का डर भी रहता होगा ! इस मार्ग पर कहीं उँचे पहाड़ थे तो कहीं गहरी ख़ाइयाँ, और इन खाइयों में गिरने का मतलब सीधे मौत के मुँह में जाना ! हमारे क्या किसी के भी मन को रोमांचित करने के लिए ये दृश्य काफ़ी थे ! ऐसे ही दुर्गम रास्तों और जंगलों को पार करते हुए हम आगे बढ़ रहे थे !
त्रिउंड से थोड़ा पहले एक विशाल पत्थर था जिस पर खड़े होकर हमने अपने केमरें को ऑटोमॅटिक मोड में रखकर एक फोटो खिंचवाया ! फिर इस पत्थर पर बैठ कर हमने थोड़ी देर आराम किया, चलते हुए हम इतने थक गए थे कि मन में ये विचार आया कि पता नहीं त्रिउंड अभी कितनी दूर है, बस यहीं से वापस लौट लिया जाए, पर विपुल बार-2 हमारा हौंसला बढ़ाने में लगा हुआ था ! शशांक की तो पूरी टी-शर्ट ही पसीने में भीग गई थी, और इस पसीने की वजह से उसे ठंड लग रही थी ! ठंड से बचने के लिए उसने गीली टी-शर्ट उतार दी ! आपको सुनने में थोड़ा अजीब लग रहा होगा पर सच्चाई यही है, एक तरफ तो पसीना और दूसरी तरफ ठंड ! उँचाई पर होने की वजह से वहाँ काफ़ी ठंड थी ! रास्ते में कई जगहों पर रुकते हुए हम लोग लगभग एक बजे त्रिउंड पहुँचे ! जिन पथरीले रास्तों से चल कर हम यहाँ तक आए थे, उसके बाद तो हमने कल्पना भी नहीं की थी कि यहाँ समुद्र तल से 2875 मीटर की उँचाई पर ऐसा बुग्याल (हरा-भरा मैदान) देखने को मिलेगा !
यहाँ पहुँचने पर ये एहसास होता है कि रास्ते में जो नज़ारे थे वो तो बस शुरुआत भर थे, असली सुंदरता तो यहाँ उपर बिखरी पड़ी है ! प्रकृति के इस सुंदर नज़ारे की तो कल्पना भी कोई बिरला ही कर सकता है ! त्रिउंड से देखने पर एक तरफ तो धर्मशाला का स्टेडियम दिखाई देता है और दूसरी तरफ धौलाधार पर्वतों की उँची-2 श्रंखलायें दिखाई देती है जो रास्ते की सारी थकान मिटा देती है ! त्रिउंड में 2-3 दुकानें है और इतने ही गेस्ट हाउस है, इन गेस्ट हाउस में लोगों के रुकने की व्यवस्था है ! यहाँ पर कुछ सरकारी गेस्ट हाउस भी है जिनमें रुकने के लिए आपको नीचे मक्लॉडगंज में ही आरक्षण करवाना पड़ता है ! वैसे ये गेस्ट हाउस ज़्यादातर बुक ही रहते है क्योंकि विदेशी सैलानी यहाँ हर मौसम में आते रहते है ! वैसे आपको अगर ये गेस्ट हाउस नहीं मिलते तो निराश होने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि आप यहाँ पर खुले आसमान के नीचे टेंट लगाकर भी अपनी रात गुज़ार सकते है ! टेंट आप यहीं त्रिउंड में ही स्थानीय दुकानदारों से किराए पर ले सकते है, एक टेंट का किराया 500-600 रुपये प्रतिदिन होता है !
सुना है कि त्रिउंड से सूर्योदय और सूर्यास्त का नज़ारा बहुत ही सुन्दर दिखाई देता है ! हम लोग रात को यहाँ नहीं रुके, पर यहाँ रुकने की पर्याप्त जानकारी हमने उपर त्रिउंड में ही स्थानीय दुकानदार से ले ली थी ! अगर आपका यहाँ कभी रुकने का विचार बने तो मैं आपको यहाँ टेंट लगाकर रुकने का ही सुझाव दूँगा ! इससे आप प्रकृति को ज़्यादा करीब से जान पाएँगे ! त्रिउंड से लगभग 2 किलोमीटर आगे जाने पर स्नो लाइन शुरू हो जाती है ! हालाँकि, हम लोग वहाँ गए नहीं थे पर ये जानकारी हमें यहाँ एक स्थानीय दुकानदार ने दी ! हमारे अलावा वहाँ काफ़ी पर्यटक थे जिनके हाव-भाव से लग रहा था कि वे लोग शायद रात को यहीं रुके थे ! हम चारों भी वहीं मैदान के एक ओर बैठ कर प्रकृति के अदभुत नजारों का आनंद ले रहे थे ! कहते है कि अगर मौसम साफ हो तो हिमालय पर्वत की श्रंखलाएँ यहाँ से दिखाई देती है ! इस जगह की ख़ूबसूरती ने हमारा भी दिल जीत लिया, जितनी कठिनाई के बाद हम लोग यहाँ पहुँचे थे, वो सारी कठिनाई अब हमें बहुत मामूली लग रही थी !
यहाँ कुछ ज़रूरी बातें है जो मैं आपको बताना चाहूँगा, जब भी आप त्रिउंड जाएँ तो कोशिश करें कि ज़्यादा टाइट जीन्स ना पहने इस से आपको पहाड़ों पर चढ़ने में कठिनाई नहीं होगी, अपने साथ गरम कपड़े तो ज़रूर ले जाएँ, और हमेशा स्पोर्ट्स शूज (रबर के जूते) पहन कर ही चढ़ाई शुरू करें ! अगर हो सके तो अपने साथ एक दूरबीन भी रख ले ताकि आप दूर तक के पहाड़ों को भी साफ देख सकें ! चढ़ाई करते समय थोड़ी-2 देर में पानी के घूँट लेते रहे ताकि शरीर में पानी की कमी ना हो ! कई बार हमें प्यास नहीं लगती फिर भी पानी पिए, क्योंकि प्यास ना लगने की स्थिति में शरीर का पानी ख़त्म होता जाएगा और एक साथ ही आपको कमज़ोरी महसूस होने लगेगी ! मदिरपान करके पहाड़ो की चढ़ाई ना ही करें तो बेहतर रहेगा, त्रिऊंड जाते हुए रास्ते में घना जंगल पड़ता है जिसमें जंगली जानवरों के होने की पूरी संभावना है ! कोशिश करें कि आप अंधेरा होने से पहले ही किसी सुरक्षित स्थान पर पहुँच जाएँ !
बमुश्किल 10 मिनट ही हुए होंगे कि अचानक घना कोहरा छा गया और बारिश शुरू हो गई ! बारिश से बचने के लिए हम एक दुकान में घुस गए ! 10-15 मिनट बाद जब बारिश बंद हुई तो हम लोग फिर से खुले मैदान में आकर प्रकृति के खुबसुरत नजारों को अपने कैमरें में कैद करने लगे ! बारिश के मौसम में यहाँ त्रिउंड में दिन भर बारिश की लुका-छुपी लगी रहती है और हर 20-25 मिनट में बारिश होती रहती है, जितनी देर हम वहाँ रहे, 2 बार बारिश का सामना किया ! बहुत देर तक तो बैठ कर हम प्रकृति के खूबसूरत नज़ारों को देखते रहे, सारी दुनिया को भूलकर हमने उस पल को खूब जिया ! यहाँ से वापसी का हममें से किसी का भी मन नहीं हो रहा था पर फिर भी लगभग 3 बजे हम लोगों ने वापसी की राह पकड़ी ! यहाँ से वापस आते हुए हमें रास्ते में दूर पहाड़ पर एक पानी का झरना दिखाई दिया, हमें लगा कि ये भाग्सू नाग झरना है पर दिशा का अंदाज़ा लगाने पर ये निष्कर्ष निकला कि ये भाग्सू नाग झरना नहीं है ! खैर, इन पहाड़ों पर तो ना जाने ऐसे कितने झरने है जहाँ तक पहुँचना भी शायद संभव ना हो !
ढलान होने के कारण वापसी में हमें ज्यादा वक़्त नहीं लगा, हम लोग गालू-मंदिर पहुँचने ही वाले थे कि तभी हमें किसी की आवाज़ सुनाई दी, मुड़कर पीछे देखा तो कोई दौड़ता हुआ हमारी ओर आता हुआ दिखाई दिया ! हम सभी वहीँ रुक कर देखने लगे, पास आने पर पता चला कि वो एक विदेशी महिला थी जो अपने साथियों से बिछड़ गई थी ! पूछने पर उसने अपना नाम नाडिया बताया, वो कनाडा से थी, और यहाँ शैक्षिक दौरे पर आई थी ! अपने ग्रुप से बिछड़ कर वह थोडा सहम गई थी, और फिर त्रिउंड से वापसी का रास्ता भी घने जंगल में से था ! उसने बताया कि रास्ते में दौड़ते हुए वो गिर भी गई थी, जिस से उसके हाथ में चोट लग गई थी ! यह पूछने पर कि वो हमसें क्या चाहती है उसने बताया कि वो हम लोगों के साथ मक्लोड़गंज तक जाना चाहती थी ! हम लोगों को उसकी मदद करने में कोई दिक्कत नहीं थी ! फिर हम सब लोग साथ ही मक्लोड़गंज की ओर चल दिए ! गालू-मंदिर से थोड़ा सा ही नीचे आए थे कि इन्द्र देवता एक बार फिर से बरस पड़े !
नाडिया ने तो झट से अपना छाता निकाल लिया, पर एक छाते में पाँच लोग कहाँ आने वाले थे ! इसलिए हम लोग भाग कर एक पेड़ के नीचे खड़े हो गए, बारिश रुकने पर आगे बढ़े तो पता ही नहीं चला कि कब हम लोग उस सीढ़ीनुमा पथरीले रास्ते को पीछे छोड़ आए, जिस पर चल कर हम सुबह धर्मकोट से गालू-मंदिर गए थे ! आगे बढ़ने पर हमें एहसास हुआ कि रास्ता तो पीछे छूट गया है, फिर उसी पक्के रास्ते पर थोड़ा सा और आगे बढ़कर अपनी बाईं ओर मुड़कर हम लोग धर्मकोट पहुँच गए, दाईं ओर जाने वाला मार्ग नड्डी जाता है ! रास्ते में हमने रंग-बिरंगे झंडे भी एक रस्सी में बँधे हुए देखे, शायद वहाँ मार्ग में कोई पूजा स्थल था ! कहते है ये रंग-बिरंगी झंडे इसलिए लगाए जाते है ताकि हवा के माध्यम से यहाँ की सकारात्मक ऊर्जा वातावरण में दूर तक फैल जाए और अधिक से अधिक लोगों को इसका लाभ मिल सके, बड़ी अच्छी सोच है ! धर्मकोट से पहले बाईं और एक प्राइमरी स्कूल भी था, थोड़ा आगे बढ़ने पर एक तिराहा आया, ये धर्मकोट था सामने ही वो दुकान भी थी जहाँ बैठ कर हमने सुबह चाय पी थी !
यहाँ से एक रास्ता बाईं तरफ होते हुए मक्लोड़गंज जाता है, इस रास्ते पर चल कर हम सुबह धर्मकोट आए थे और दूसरा रास्ता दाईं तरफ था ! वापसी के लिए हमने ये दाईं ओर वाला रास्ता चुना, नाडिया ने बताया कि वो सुबह इसी रास्ते से त्रिउंड के लिए आई थी ! इस रास्ते पर हमें सड़क के दोनों ओर पेड़ों पर उछल-कूद करते काफ़ी बंदर देखने को मिले, बातें करते हुए हम सब थोड़ी देर में मक्लोड़गंज पहुँच गए ! यहाँ पहुँच कर नाडिया ने हमें धन्यवाद कहा और अपने होटल की तरफ चली गई, हम सब भी थोड़ी देर बाज़ार में घूमने के बाद अपने होटल की तरफ आ गए !
कब जाएँ (Best time to go Dharmshala): वैसे तो आप साल के किसी भी महीने में घूमने के लिए धर्मशाला जा सकते है लेकिन झरनों में नहाना हो तो बारिश से बढ़िया कोई मौसम हो ही नहीं सकता ! वैसे अगर बर्फ देखने का मन हो तो आप यहाँ दिसंबर-जनवरी में आइए, धर्मशाला से 10 किलोमीटर ऊपर मक्लॉडगंज में आपको बढ़िया बर्फ मिल जाएगी !
कैसे जाएँ (How to reach Dharmshala): दिल्ली से धर्मशाला की दूरी लगभग 478 किलोमीटर है ! यहाँ जाने का सबसे बढ़िया साधन रेल मार्ग है दिल्ली से पठानकोट तक ट्रेन से जाइए, जम्मू जाने वाली हर ट्रेन पठानकोट होकर ही जाती है ! पठानकोट से धर्मशाला की दूरी महज 90 किलोमीटर है जिसे आप बस या टैक्सी से तय कर सकते है, इस सफ़र में आपके ढाई से तीन घंटे लगेंगे ! अगर आप सड़क मार्ग से जाना चाहे तो दिल्ली से धर्मशाला के लिए हिमाचल टूरिज़्म की वोल्वो और हिमाचल परिवहन की सामान्य बसें भी चलती है ! आप निजी गाड़ी से भी धर्मशाला जा सकते है जिसमें आपको दिल्ली से धर्मशाला पहुँचने में 9-10 घंटे का समय लगेगा ! इसके अलावा पठानकोट से बैजनाथ तक टॉय ट्रेन भी चलती है जिसमें सफ़र करते हुए धौलाधार की पहाड़ियों का विहंगम दृश्य दिखाई देता है ! टॉय ट्रेन से पठानकोट से कांगड़ा तक का सफ़र तय करने में आपको साढ़े चार घंटे का समय लगेगा !
कहाँ रुके (Where to stay in Dharmshala): धर्मशाला में रुकने के लिए बहुत होटल है लेकिन अगर आप धर्मशाला जा रहे है तो बेहतर रहेगा आप धर्मशाला से 10 किलोमीटर ऊपर मक्लॉडगंज में रुके ! घूमने-फिरने की अधिकतर जगहें मक्लॉडगंज में ही है धर्मशाला में क्रिकेट स्टेडियम और कांगड़ा का किला है जिसे आप वापसी में भी देख सकते हो ! मक्लॉडगंज में भी रुकने और खाने-पीने के बहुत विकल्प है, आपको अपने बजट के अनुसार 700 रुपए से शुरू होकर 3000 रुपए तक के होटल मिल जाएँगे !
क्या देखें (Places to see in Dharmshala): धर्मशाला में देखने के लिए वैसे तो बहुत जगहें है लेकिन अधिकतर जगहें ऊपरी धर्मशाला (Upper Dharmshala) यानि मक्लॉडगंज में है यहाँ के मुख्य आकर्षण भाग्सू नाग मंदिर और झरना, गालू मंदिर, हिमालयन वॉटर फाल, त्रिऊँड ट्रेक, नड्डी, डल झील, सेंट जोन्स चर्च, मोनेस्ट्री और माल रोड है ! जबकि निचले धर्मशाला (Lower Dharmshala) में क्रिकेट स्टेडियम (HPCA Stadium), कांगड़ा का किला (Kangra Fort), और वॉर मेमोरियल है !
अगले भाग में जारी...
डलहौजी - धर्मशाला यात्रा
इस यात्रा वृतांत को शुरू से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें !
यात्रा के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि किस तरह हम डलहौजी से बस यात्रा करके धर्मशाला पहुँचे, और फिर हम सब शाम तक भाग्सू नाग झरने में नहाते रहे ! अब आगे, दिन भर सफ़र की थकान और झरने में नहाने के कारण रात को बढ़िया नींद आई ! सुबह जल्दी सोकर उठे, और नित्य-क्रम में लग गए ! आज हम त्रिउंड घूमने जाने वाले थे ये मक्लॉडगंज में एक शानदार ट्रेक है हर साल मक्लॉडगंज आने वाले हज़ारों लोग इस ट्रेक को करते है ! त्रिऊंड के बारे में हमने स्थानीय लोगों से काफ़ी जानकारी एकत्रित कर ली थी ! पिछली साल धर्मशाला यात्रा के दौरान समय के अभाव में त्रिउंड नहीं जा पाए थे, पर आज इस यात्रा पर जाने के लिए सभी लोग उत्साहित थे ! नाश्ता तो सुबह 9 बजे से पहले मिलने वाला नहीं था, ये जानकारी हम होटल वाले से पिछली रात को ही ले चुके थे ! हमने सोचा अगर नाश्ते के इंतज़ार में यहाँ बैठे रहे, तो पहुँच लिए त्रिउंड ! बस फिर क्या था, रास्ते में अपने साथ ले जाने के लिए ज़रूरी सामान अपने बैग में रखा, और त्रिउंड की चढ़ाई के लिए निकल पड़े !
त्रिऊंड - सफ़र की शुरुआत (A view of Mcleodganj Market) |
वैसे पहाड़ों पर उतना ही सामान लेकर चलना चाहिए जितना ज़रूरी हो या फिर जितना आसानी से उठा सको ! ज्यादा भारी सामान लेकर चलने से थकावट जल्दी होने लगती है, और अगर एक बार थकावट होने लगे तो घुमक्कड़ी का आनंद अपने आप ही कम होने लगता है ! एक और ज़रूरी बात, पहाड़ों पर चढ़ाई के दौरान खाना तो चाहे थोडा कम खा लो, पर पानी लगातार पीते रहना चाहिए ! अक्सर पहाड़ों पर चढ़ाई के दौरान शरीर का सारा पानी पसीने के रूप में बाहर आ जाता है, इस कमी को पूरा करने के लिए लगातार पानी पीते रहना चाहिए ! अन्यथा शरीर में पानी की कमी के कारण आपकी घुमक्कड़ी का सारा आनंद ख़त्म हो सकता है ! मक्लोड़गंज से त्रिउंड की दूरी लगभग 9 किलोमीटर है, पता नहीं क्यों पर मुझे तो ये दूरी 10 किलोमीटर से भी ज्यादा लगी ! त्रिउंड जाने का रास्ता गालू मंदिर से होकर जाता है, और मक्लोड़गंज से गालू मंदिर जाने के 2 रास्ते है ! एक रास्ता तो डल-झील, नड्डी से होकर जाता है, और दूसरा रास्ता धर्मकोट होते हुए है !
नड्डी वाला रास्ता थोड़ा लंबा है इसलिए हम धर्मकोट वाले रास्ते से जा रहे थे, ये रास्ता वैसे तो थोड़ा छोटा है पर एकदम खड़ी चढ़ाई और थका देने वाला है ! वैसे त्रिऊंड जाने के लिए अगर आप गाडी से जाना चाहें तो गालू मंदिर तक गाड़ी से जा सकते है फिर उस से आगे का रास्ता आपको पैदल ही तय करना होगा ! गालू मंदिर के पास कुछ गेस्ट हाउस भी है, जहाँ रुकने के बढ़िया इंतज़ाम है, इस यात्रा का दौरान हमें कुछ विदेशी पर्यटक मिले, जो गालू मंदिर के पास ही रुके थे ! जिस रास्ते से हम लोग जा रहे थे, ये रास्ता उसी ओर था जिस ओर भाग्सू नाग मंदिर जाने का रास्ता है ! मक्लोड़गंज के मुख्य चौराहे से थोड़ा सा आगे निकल कर मुख्य सड़क दो भागों में विभाजित हो जाती है ! नीचे जाने वाली सड़क भाग्सू नाग मंदिर की ओर जाती है और ऊपर जाने वाली सड़क आपको धर्मकोट ले जाएगी ! अच्छा मौसम और अच्छे सहयात्री होने के कारण हमें त्रिऊंड की चढ़ाई में बहुत आनंद आ रहा था और ज्यादा परेशानी नहीं हो रही थी ! ये पूरा मार्ग ही बहुत सुंदर है, धर्मकोट पहुँचने से पहले ही हमें रास्ते में बहुत से सुन्दर नज़ारे दिखाई दिए !
रास्ते में हम कई जगहों पर रुके और प्रकृति के नजारों का भरपूर आनंद लिया ! धर्मकोट से पहले ऐसे ही रास्ते में एक जगह रुकने पर हमें सड़क किनारे काँच की टूटी हुई बोतलें और चिप्स के खाली पैकेट पड़े दिखाई दिए ! मुझे ये बात बहुत बुरी लगी कि क्यों हम जैसे कुछ लोग यहाँ अपनी छुट्टियाँ बिताने आते है और इन खूबसूरत जगहों को गंदा करके चले जाते है ! ऐसे सभी लोगों से मेरी विनम्र प्रार्थना है कि ऐसा ना करें, पहाड़ी जगहों पर ही नहीं बल्कि कहीं भी गंदंगी ना फ़ैलाएँ, इन पहाड़ी जगहों की खूबसूरती यहाँ की हरियाली और सफाई की वजह से ही है ! कल्पना कीजिए आप किसी हिल स्टेशन पर गए और वहाँ आपको जगह-2 गंदगी के ढेर देखने को मिले तो क्या आगे कभी आप ऐसी जगह पर जाएँगे ? बिल्कुल नहीं जाएँगे, बल्कि वापस आकर अपने सगे-संबंधियों से इस विषय पर चर्चा ज़रूर करेंगे और उन्हें भी वहाँ ना जाने की सलाह देंगे ! इसके विपरीत अच्छी जगह होने पर आप अपने सगे-संबंधियों और मित्रों को वहाँ जाने के लिए प्रेरित करेंगे !
अगर आप प्रकृति को कुछ दे नहीं सकते तो कम से कम गन्दगी फैला कर इसे गंदा भी मत कीजिए ! जुलाई-अगस्त का महीना और यहाँ धर्मशाला में बारिश ना हो, मुमकिन ही नहीं है, थोड़ी बहुत बारिश तो यहाँ रोज ही होती है ! अभी हम धर्मकोट पहुँचे ही थे कि अचानक से तेज़ बारिश शुरू हो गई, बारिश से बचने के लिए हम लोग फटाफट एक दुकान में घुस गए ! बारिश होने की वजह से मौसम में ठंडक भी बढ़ गई, हम लोग दुकान में बैठ कर बारिश के रुकने का इंतज़ार करने लगे ! बारिश से बचने के लिए हमारे अलावा अन्य लोग भी इस दुकान में आ गए थे, जिनमें से कुछ विदेशी पर्यटक भी थे ! थोड़ी देर वहाँ बैठने के बाद हमने दुकानदार से मैगी और चाय बनाने को कह दिया ! लगभग आधे घंटे तक जमकर बारिश होने के बाद मौसम खुल गया, इसी बीच हमने मैगी और चाय ख़त्म कर ली ! पेट-पूजा और थोड़ा आराम करने के बाद शरीर में नई ऊर्जा का संचार हो गया था और हम सब एक बार फिर तेज़ी से त्रिऊंड की ओर बढ़ने लगे !
यहाँ मक्लॉडगंज में मौसम बड़ी तेज़ी से करवट बदलता है, एक पल में बारिश शुरू हो जाती है और अगले ही पल मौसम खुल भी जाता है ! धर्मकोट में दुकान पर बैठ कर बारिश के रुकने का इंतज़ार करते हुए हमारे मन में यही उधेड़-बुन चल रही थी कि क्या ऐसे मौसम में त्रिउंड जाना समझदारी का काम होगा ! फिर दुकान के मालिक ने बताया कि इस मौसम (जुलाई-अगस्त) में तो यहाँ ऐसी बारिश दिन में एक-दो बार रोज़ ही होती है ! तब कहीं जाकर हमने अपनी इस यात्रा को जारी रखने का मन बनाया, वरना इस बार भी त्रिऊंड की यात्रा अधूरी रह जाती ! फिर शशांक ने भी कहा कि आगे चलते है यार, अगर मौसम ज्यादा खराब हुआ तो वापस आ जाएँगे ! धर्मकोट से थोडा सा आगे निकलते ही हम लोगों ने पक्का रास्ता छोड़कर एक सीढ़ीनुमा कच्चा रास्ता पकड़ लिया जोकि एक जंगल में से होकर गुजरता है ! ये रास्ता बहुत ही खड़ी चढ़ाई और थकाने वाला था, इस रास्ते पर आगे बढ़ने पर हमें अपनी दाईं ओर कुछ गाँव भी दिखाई दिए ! जंगल के बीचों-बीच पहुँचने पर एकदम सन्नाटा था, ना तो हमें कोई इंसान दिखाई दे रहा था और ना ही कोई जानवर, इस रास्ते पर अकेले आना बड़ा हिम्मत का काम होगा !
तभी रास्ते में हमें कुछ अन्य लोग नीचे आते दिखाई दिए, पूछने पर पता चला कि वो दोनों त्रिऊंड से आ रहे थे ! ये लोग सुबह 7 बजे त्रिऊंड से चले थे और अब यहाँ पहुँचे थे इन्होनें बताया कि आगे मौसम साफ है !इस पथरीले रास्ते पर लगभग आधे घंटे चलने के बाद हम लोग फिर से एक पक्की सड़क पर पहुँच गए, ये पक्का रास्ता नड्डी की ओर से आ रहा था ! गालू मंदिर से एक रास्ता तो हिमालयन वाटर फॉल की तरफ जाता है और दूसरा रास्ता त्रिउंड की ओर जाता है ! आज हम त्रिऊंड जा रहे है हिमालयन वॉटर फाल किसी और दिन जाएँगे ! गालू मंदिर के पास एक दुकान में थोड़ा समय बिताने के बाद हम सबने फिर से चढ़ाई शुरू कर दी ! रास्ते में हमें एक विदेशी सैलानियों का 8-10 लोगों का झुंड भी मिला ! उन लोगों के साथ एक गाइड भी था, गाइड से पूछताछ पर पता चला कि ये विदेशी लोग पिछली शाम को ही गालू मंदिर आ गए थे ! यहाँ गालू मंदिर के पास ही एक निजी गेस्ट हाउस है, रात को ये लोग यहीं रुके थे और अब सुबह त्रिउंड की चढ़ाई के लिए जा रहे थे !
रास्ते में जब एक दुकान पर पानी पीने के लिए थोड़ी देर रुके तो पूछने पर उसने बताया कि यहाँ पहाड़ों पर सामान लाने के लिए ये लोग खच्चरों का इस्तेमाल करते है ! साफ-सफाई को लेकर जगह-2 बोर्ड भी लगे हुए है कि पहाड़ों पर गंदगी ना फ़ैलाएँ, पहाड़ों पर कूड़ा-करकट साफ करने में बहुत कठिनाई आती है, इसलिए अपना सारा कूड़ा इन दुकानों पर रखे कूड़ेदान में ही डालना चाहिए ! ये दुकानदार नीचे जाते हुए खच्चरों पर रखकर इस कूड़े को अपने साथ ही ले जाते है ताकि पहाड़ों की सुंदरता बनी रहे ! इससे एक बात तो स्पष्ट है कि यहाँ के स्थानीय लोग पहाड़ों की सफाई का बहुत ध्यान रखते है, आख़िर इनकी रोज़ी-रोटी ही पहाड़ों पर आने वाले पर्यटकों से है ! उँचाई पर जाने पर खाने-पीने का सामान भी महँगा होता जा रहा था, जो पानी की बोतल 15 रुपए की आती है वो पहली दुकान पर हमें 20 रुपए, दूसरी दुकान पर 30 रुपए, और त्रिउंड पर 40 रुपए की मिली ! पर इतनी उँचाई पर ये लोग खाने-पीने का सामान अगर थोड़ा महँगा नहीं बेचेंगे तो इन्हें क्या बचेगा !
गालू मंदिर से आगे बढ़ने पर जो पहली दुकान मिली उसका नाम था मेजिक व्यू चाय शॉप ! इस दुकान पर जो बोर्ड लगा था उसके अनुसार ये 1984 से यहाँ पर थी, पर सच्चाई क्या है ये तो भगवान ही जाने ! जैसे-2 हम लोग ऊँचाई पर चढ़ते जा रहे थे, चारों ओर के नज़ारे और भी सुंदर होते जा रहे थे ! एक जगह तो ऐसी भी आई जहाँ बहुत घना कोहरा था ! कई जगह तो रास्ता भी काफ़ी संकरा था और इसलिए हम बहुत सावधानी से आगे बढ़ रहे थे, ज़रा सा पैर फिसला और आप घाटी में नीचे ! इन रास्तों को देख कर आपको बताने की ज़रूरत तो बिल्कुल नहीं होगी कि रात को तो यहाँ आना संभव ही नहीं है, दिन में ही यहाँ इतना सन्नाटा था तो रात को तो जंगली जानवरों का डर भी रहता होगा ! इस मार्ग पर कहीं उँचे पहाड़ थे तो कहीं गहरी ख़ाइयाँ, और इन खाइयों में गिरने का मतलब सीधे मौत के मुँह में जाना ! हमारे क्या किसी के भी मन को रोमांचित करने के लिए ये दृश्य काफ़ी थे ! ऐसे ही दुर्गम रास्तों और जंगलों को पार करते हुए हम आगे बढ़ रहे थे !
त्रिउंड से थोड़ा पहले एक विशाल पत्थर था जिस पर खड़े होकर हमने अपने केमरें को ऑटोमॅटिक मोड में रखकर एक फोटो खिंचवाया ! फिर इस पत्थर पर बैठ कर हमने थोड़ी देर आराम किया, चलते हुए हम इतने थक गए थे कि मन में ये विचार आया कि पता नहीं त्रिउंड अभी कितनी दूर है, बस यहीं से वापस लौट लिया जाए, पर विपुल बार-2 हमारा हौंसला बढ़ाने में लगा हुआ था ! शशांक की तो पूरी टी-शर्ट ही पसीने में भीग गई थी, और इस पसीने की वजह से उसे ठंड लग रही थी ! ठंड से बचने के लिए उसने गीली टी-शर्ट उतार दी ! आपको सुनने में थोड़ा अजीब लग रहा होगा पर सच्चाई यही है, एक तरफ तो पसीना और दूसरी तरफ ठंड ! उँचाई पर होने की वजह से वहाँ काफ़ी ठंड थी ! रास्ते में कई जगहों पर रुकते हुए हम लोग लगभग एक बजे त्रिउंड पहुँचे ! जिन पथरीले रास्तों से चल कर हम यहाँ तक आए थे, उसके बाद तो हमने कल्पना भी नहीं की थी कि यहाँ समुद्र तल से 2875 मीटर की उँचाई पर ऐसा बुग्याल (हरा-भरा मैदान) देखने को मिलेगा !
यहाँ पहुँचने पर ये एहसास होता है कि रास्ते में जो नज़ारे थे वो तो बस शुरुआत भर थे, असली सुंदरता तो यहाँ उपर बिखरी पड़ी है ! प्रकृति के इस सुंदर नज़ारे की तो कल्पना भी कोई बिरला ही कर सकता है ! त्रिउंड से देखने पर एक तरफ तो धर्मशाला का स्टेडियम दिखाई देता है और दूसरी तरफ धौलाधार पर्वतों की उँची-2 श्रंखलायें दिखाई देती है जो रास्ते की सारी थकान मिटा देती है ! त्रिउंड में 2-3 दुकानें है और इतने ही गेस्ट हाउस है, इन गेस्ट हाउस में लोगों के रुकने की व्यवस्था है ! यहाँ पर कुछ सरकारी गेस्ट हाउस भी है जिनमें रुकने के लिए आपको नीचे मक्लॉडगंज में ही आरक्षण करवाना पड़ता है ! वैसे ये गेस्ट हाउस ज़्यादातर बुक ही रहते है क्योंकि विदेशी सैलानी यहाँ हर मौसम में आते रहते है ! वैसे आपको अगर ये गेस्ट हाउस नहीं मिलते तो निराश होने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि आप यहाँ पर खुले आसमान के नीचे टेंट लगाकर भी अपनी रात गुज़ार सकते है ! टेंट आप यहीं त्रिउंड में ही स्थानीय दुकानदारों से किराए पर ले सकते है, एक टेंट का किराया 500-600 रुपये प्रतिदिन होता है !
सुना है कि त्रिउंड से सूर्योदय और सूर्यास्त का नज़ारा बहुत ही सुन्दर दिखाई देता है ! हम लोग रात को यहाँ नहीं रुके, पर यहाँ रुकने की पर्याप्त जानकारी हमने उपर त्रिउंड में ही स्थानीय दुकानदार से ले ली थी ! अगर आपका यहाँ कभी रुकने का विचार बने तो मैं आपको यहाँ टेंट लगाकर रुकने का ही सुझाव दूँगा ! इससे आप प्रकृति को ज़्यादा करीब से जान पाएँगे ! त्रिउंड से लगभग 2 किलोमीटर आगे जाने पर स्नो लाइन शुरू हो जाती है ! हालाँकि, हम लोग वहाँ गए नहीं थे पर ये जानकारी हमें यहाँ एक स्थानीय दुकानदार ने दी ! हमारे अलावा वहाँ काफ़ी पर्यटक थे जिनके हाव-भाव से लग रहा था कि वे लोग शायद रात को यहीं रुके थे ! हम चारों भी वहीं मैदान के एक ओर बैठ कर प्रकृति के अदभुत नजारों का आनंद ले रहे थे ! कहते है कि अगर मौसम साफ हो तो हिमालय पर्वत की श्रंखलाएँ यहाँ से दिखाई देती है ! इस जगह की ख़ूबसूरती ने हमारा भी दिल जीत लिया, जितनी कठिनाई के बाद हम लोग यहाँ पहुँचे थे, वो सारी कठिनाई अब हमें बहुत मामूली लग रही थी !
यहाँ कुछ ज़रूरी बातें है जो मैं आपको बताना चाहूँगा, जब भी आप त्रिउंड जाएँ तो कोशिश करें कि ज़्यादा टाइट जीन्स ना पहने इस से आपको पहाड़ों पर चढ़ने में कठिनाई नहीं होगी, अपने साथ गरम कपड़े तो ज़रूर ले जाएँ, और हमेशा स्पोर्ट्स शूज (रबर के जूते) पहन कर ही चढ़ाई शुरू करें ! अगर हो सके तो अपने साथ एक दूरबीन भी रख ले ताकि आप दूर तक के पहाड़ों को भी साफ देख सकें ! चढ़ाई करते समय थोड़ी-2 देर में पानी के घूँट लेते रहे ताकि शरीर में पानी की कमी ना हो ! कई बार हमें प्यास नहीं लगती फिर भी पानी पिए, क्योंकि प्यास ना लगने की स्थिति में शरीर का पानी ख़त्म होता जाएगा और एक साथ ही आपको कमज़ोरी महसूस होने लगेगी ! मदिरपान करके पहाड़ो की चढ़ाई ना ही करें तो बेहतर रहेगा, त्रिऊंड जाते हुए रास्ते में घना जंगल पड़ता है जिसमें जंगली जानवरों के होने की पूरी संभावना है ! कोशिश करें कि आप अंधेरा होने से पहले ही किसी सुरक्षित स्थान पर पहुँच जाएँ !
बमुश्किल 10 मिनट ही हुए होंगे कि अचानक घना कोहरा छा गया और बारिश शुरू हो गई ! बारिश से बचने के लिए हम एक दुकान में घुस गए ! 10-15 मिनट बाद जब बारिश बंद हुई तो हम लोग फिर से खुले मैदान में आकर प्रकृति के खुबसुरत नजारों को अपने कैमरें में कैद करने लगे ! बारिश के मौसम में यहाँ त्रिउंड में दिन भर बारिश की लुका-छुपी लगी रहती है और हर 20-25 मिनट में बारिश होती रहती है, जितनी देर हम वहाँ रहे, 2 बार बारिश का सामना किया ! बहुत देर तक तो बैठ कर हम प्रकृति के खूबसूरत नज़ारों को देखते रहे, सारी दुनिया को भूलकर हमने उस पल को खूब जिया ! यहाँ से वापसी का हममें से किसी का भी मन नहीं हो रहा था पर फिर भी लगभग 3 बजे हम लोगों ने वापसी की राह पकड़ी ! यहाँ से वापस आते हुए हमें रास्ते में दूर पहाड़ पर एक पानी का झरना दिखाई दिया, हमें लगा कि ये भाग्सू नाग झरना है पर दिशा का अंदाज़ा लगाने पर ये निष्कर्ष निकला कि ये भाग्सू नाग झरना नहीं है ! खैर, इन पहाड़ों पर तो ना जाने ऐसे कितने झरने है जहाँ तक पहुँचना भी शायद संभव ना हो !
ढलान होने के कारण वापसी में हमें ज्यादा वक़्त नहीं लगा, हम लोग गालू-मंदिर पहुँचने ही वाले थे कि तभी हमें किसी की आवाज़ सुनाई दी, मुड़कर पीछे देखा तो कोई दौड़ता हुआ हमारी ओर आता हुआ दिखाई दिया ! हम सभी वहीँ रुक कर देखने लगे, पास आने पर पता चला कि वो एक विदेशी महिला थी जो अपने साथियों से बिछड़ गई थी ! पूछने पर उसने अपना नाम नाडिया बताया, वो कनाडा से थी, और यहाँ शैक्षिक दौरे पर आई थी ! अपने ग्रुप से बिछड़ कर वह थोडा सहम गई थी, और फिर त्रिउंड से वापसी का रास्ता भी घने जंगल में से था ! उसने बताया कि रास्ते में दौड़ते हुए वो गिर भी गई थी, जिस से उसके हाथ में चोट लग गई थी ! यह पूछने पर कि वो हमसें क्या चाहती है उसने बताया कि वो हम लोगों के साथ मक्लोड़गंज तक जाना चाहती थी ! हम लोगों को उसकी मदद करने में कोई दिक्कत नहीं थी ! फिर हम सब लोग साथ ही मक्लोड़गंज की ओर चल दिए ! गालू-मंदिर से थोड़ा सा ही नीचे आए थे कि इन्द्र देवता एक बार फिर से बरस पड़े !
नाडिया ने तो झट से अपना छाता निकाल लिया, पर एक छाते में पाँच लोग कहाँ आने वाले थे ! इसलिए हम लोग भाग कर एक पेड़ के नीचे खड़े हो गए, बारिश रुकने पर आगे बढ़े तो पता ही नहीं चला कि कब हम लोग उस सीढ़ीनुमा पथरीले रास्ते को पीछे छोड़ आए, जिस पर चल कर हम सुबह धर्मकोट से गालू-मंदिर गए थे ! आगे बढ़ने पर हमें एहसास हुआ कि रास्ता तो पीछे छूट गया है, फिर उसी पक्के रास्ते पर थोड़ा सा और आगे बढ़कर अपनी बाईं ओर मुड़कर हम लोग धर्मकोट पहुँच गए, दाईं ओर जाने वाला मार्ग नड्डी जाता है ! रास्ते में हमने रंग-बिरंगे झंडे भी एक रस्सी में बँधे हुए देखे, शायद वहाँ मार्ग में कोई पूजा स्थल था ! कहते है ये रंग-बिरंगी झंडे इसलिए लगाए जाते है ताकि हवा के माध्यम से यहाँ की सकारात्मक ऊर्जा वातावरण में दूर तक फैल जाए और अधिक से अधिक लोगों को इसका लाभ मिल सके, बड़ी अच्छी सोच है ! धर्मकोट से पहले बाईं और एक प्राइमरी स्कूल भी था, थोड़ा आगे बढ़ने पर एक तिराहा आया, ये धर्मकोट था सामने ही वो दुकान भी थी जहाँ बैठ कर हमने सुबह चाय पी थी !
यहाँ से एक रास्ता बाईं तरफ होते हुए मक्लोड़गंज जाता है, इस रास्ते पर चल कर हम सुबह धर्मकोट आए थे और दूसरा रास्ता दाईं तरफ था ! वापसी के लिए हमने ये दाईं ओर वाला रास्ता चुना, नाडिया ने बताया कि वो सुबह इसी रास्ते से त्रिउंड के लिए आई थी ! इस रास्ते पर हमें सड़क के दोनों ओर पेड़ों पर उछल-कूद करते काफ़ी बंदर देखने को मिले, बातें करते हुए हम सब थोड़ी देर में मक्लोड़गंज पहुँच गए ! यहाँ पहुँच कर नाडिया ने हमें धन्यवाद कहा और अपने होटल की तरफ चली गई, हम सब भी थोड़ी देर बाज़ार में घूमने के बाद अपने होटल की तरफ आ गए !
मक्लॉडगंज चौराहे के पास एक मंदिर |
मक्लॉडगंज चौराहा (Mcleodganj Chowk) |
धर्मकोट से पहले रास्ते में आराम करते हुए (A view somewhere in Dharmkot) |
पीछे दिखाई दे रही दुकान पर ही पेट पूजा की थी |
धर्मकोट से गालू मंदिर जाने का जंगल वाला मार्ग (On the way to Galu Temple, Mcleodganj) |
On the way to Galu Temple |
गालू मंदिर से थोड़ा पहले |
गालू मंदिर के सामने एक दृश्य (A view near Galu Temple) |
एक शिकारी कुत्ता (A Gypsi Dog) |
दुकान में रखा हिमाचल प्रदेश का नक्शा |
गालू मंदिर से आगे त्रिऊंड जाते हुए (On the way to Triund) |
Trek to Triund, Mcleodganj |
रास्ते में आराम करते हुए शशांक और विपुल (Trek to Triund) |
उँचाई के साथ कोहरा भी बढ़ गया |
A view taken from Triund Trek |
त्रिऊंड जाने का पथरीला रास्ता |
ऊपर से दिखाई देता घाटी का एक दृश्य (A view from Hill, Triund) |
रास्ते में बिखरे पत्थर |
Trek to Triund |
बस पहुँच गए त्रिऊंड (A glimpse of Triund) |
त्रिऊंड में दुकानदार के साथ |
त्रिऊंड में खुला मैदान (A view from Triund) |
A view from Triund |
A view from Triund |
Another view from Triund |
क्यों जाएँ (Why to go Dharmshala): अगर आप दिल्ली की गर्मी और भीड़-भाड़ से दूर सुकून के कुछ पल पहाड़ों पर बिताना चाहते है तो आप धर्मशाला-मक्लॉडगंज का रुख़ कर सकते है ! यहाँ घूमने के लिए भी कई जगहें है, जिसमें झरने, किले, चर्च, स्टेडियम, और पहाड़ शामिल है ! ट्रेकिंग के शौकीन लोगों के लिए कुछ बढ़िया ट्रेक भी है !
कब जाएँ (Best time to go Dharmshala): वैसे तो आप साल के किसी भी महीने में घूमने के लिए धर्मशाला जा सकते है लेकिन झरनों में नहाना हो तो बारिश से बढ़िया कोई मौसम हो ही नहीं सकता ! वैसे अगर बर्फ देखने का मन हो तो आप यहाँ दिसंबर-जनवरी में आइए, धर्मशाला से 10 किलोमीटर ऊपर मक्लॉडगंज में आपको बढ़िया बर्फ मिल जाएगी !
कैसे जाएँ (How to reach Dharmshala): दिल्ली से धर्मशाला की दूरी लगभग 478 किलोमीटर है ! यहाँ जाने का सबसे बढ़िया साधन रेल मार्ग है दिल्ली से पठानकोट तक ट्रेन से जाइए, जम्मू जाने वाली हर ट्रेन पठानकोट होकर ही जाती है ! पठानकोट से धर्मशाला की दूरी महज 90 किलोमीटर है जिसे आप बस या टैक्सी से तय कर सकते है, इस सफ़र में आपके ढाई से तीन घंटे लगेंगे ! अगर आप सड़क मार्ग से जाना चाहे तो दिल्ली से धर्मशाला के लिए हिमाचल टूरिज़्म की वोल्वो और हिमाचल परिवहन की सामान्य बसें भी चलती है ! आप निजी गाड़ी से भी धर्मशाला जा सकते है जिसमें आपको दिल्ली से धर्मशाला पहुँचने में 9-10 घंटे का समय लगेगा ! इसके अलावा पठानकोट से बैजनाथ तक टॉय ट्रेन भी चलती है जिसमें सफ़र करते हुए धौलाधार की पहाड़ियों का विहंगम दृश्य दिखाई देता है ! टॉय ट्रेन से पठानकोट से कांगड़ा तक का सफ़र तय करने में आपको साढ़े चार घंटे का समय लगेगा !
कहाँ रुके (Where to stay in Dharmshala): धर्मशाला में रुकने के लिए बहुत होटल है लेकिन अगर आप धर्मशाला जा रहे है तो बेहतर रहेगा आप धर्मशाला से 10 किलोमीटर ऊपर मक्लॉडगंज में रुके ! घूमने-फिरने की अधिकतर जगहें मक्लॉडगंज में ही है धर्मशाला में क्रिकेट स्टेडियम और कांगड़ा का किला है जिसे आप वापसी में भी देख सकते हो ! मक्लॉडगंज में भी रुकने और खाने-पीने के बहुत विकल्प है, आपको अपने बजट के अनुसार 700 रुपए से शुरू होकर 3000 रुपए तक के होटल मिल जाएँगे !
क्या देखें (Places to see in Dharmshala): धर्मशाला में देखने के लिए वैसे तो बहुत जगहें है लेकिन अधिकतर जगहें ऊपरी धर्मशाला (Upper Dharmshala) यानि मक्लॉडगंज में है यहाँ के मुख्य आकर्षण भाग्सू नाग मंदिर और झरना, गालू मंदिर, हिमालयन वॉटर फाल, त्रिऊँड ट्रेक, नड्डी, डल झील, सेंट जोन्स चर्च, मोनेस्ट्री और माल रोड है ! जबकि निचले धर्मशाला (Lower Dharmshala) में क्रिकेट स्टेडियम (HPCA Stadium), कांगड़ा का किला (Kangra Fort), और वॉर मेमोरियल है !
अगले भाग में जारी...
डलहौजी - धर्मशाला यात्रा
- दिल्ली से डलहौजी की रेल यात्रा (A Train Trip to Dalhousie)
- पंज-पुला की बारिश में एक शाम (An Evening in Panch Pula)
- खजियार – देश में विदेश का एहसास (Natural Beauty of Khajjar)
- कालाटोप के जंगलों में दोस्तों संग बिताया एक दिन ( A Walk in Kalatop Wildlife Sanctuary)
- डलहौज़ी से धर्मशाला की बस यात्रा (A Road Trip to Dharmshala)
- दोस्तों संग त्रिउंड में बिताया एक दिन (An Awesome Trek to Triund)
- मोनेस्ट्री में बिताए सुकून के कुछ पल (A Day in Mcleodganj Monastery)
- हिमालयन वाटर फाल - एक अनछुआ झरना (Untouched Himachal – Himalyan Water Fall)
- पठानकोट से दिल्ली की रेल यात्रा (A Journey from Pathankot to Delhi)
बहुत बढ़िया लेख है ,जगह भी अच्छी लग रही है,पहली बार नाम सुना त्रिउंड का
ReplyDeleteये काफ़ी शानदार जगह है घूमने के लिए !
DeleteKasol is a best platform for trekking. ..
DeleteAisi bahut si jagah hai Himalaya mein ghoomne ke liye, baaki apni apni pasand ki baat hai !
Deleteफ़ोटो बहुत अच्छी है दोस्त
ReplyDeleteधन्यवाद अजय भाई !
Deleteऐसी बेहतरीन जानकारी साझा करने के लिए धन्यवाद। लेख में प्रत्येक और मूल्यवान जानकारी शामिल है और चित्र आंखों को पकड़ने वाले हैं। हम चाहते हैं कि आप एक बार बरोट जाएं।
ReplyDeleteजी धन्यवाद !
Delete