वृंदावन का जयपुर मंदिर (A View of Jaipur Temple in Vrindavan)

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मेरे पिछले लेख के माध्यम से आपने प्रेम मंदिर के दर्शन किए, प्रेम मंदिर से निकलने के बाद मैं जयपुर मंदिर जाने के लिए चल दिया ! वैसे तो 2-3 महीने में मेरा एक चक्कर वृंदावन का लग ही जाता है, और हर बार वृंदावन आने पर कई बार मैं इस मंदिर के सामने से गुजरा भी हूँ, पर कभी इस मंदिर में जाने का अवसर नहीं मिला ! हर बार कुछ ना कुछ बहाना रहता ही है इन मंदिरों को ना देख पाने का ! आप लोगों की जानकारी के लिए बता दूँ कि जयपुर मंदिर मथुरा-वृंदावन मार्ग पर मथुरा से 10 किलोमीटर दूर मुख्य सड़क के बाईं ओर स्थित है ! मुख्य सड़क से बाईं ओर जाने वाले एक मार्ग पर 60 मीटर के आस-पास चलने पर आप इस मंदिर के मुख्य द्वार पर पहुँच जाओगे ! मंदिर तक जाने के लिए पक्का मार्ग बना है, और गाड़ी खड़ी करने के लिए भी यहाँ पर्याप्त व्यवस्था है ! मंदिर के सामने ही एक खुला मैदान है जहाँ हमेशा एक-दो बसें खड़ी ही रहती है ! प्रेम मंदिर से इस मंदिर की दूरी लगभग 3 किलोमीटर है और मुझे ये दूरी तय करने में 8 से 10 मिनट का समय लगा ! मंदिर के खुलने का समय सुबह 6 बजे से रात को 8 बजे तक है !

jaipur temple
जयपुर मंदिर वृंदावन (Main Entrance of Jaipur Temple)

अगर आप प्रेम मंदिर होते हुए यहाँ आ रहे है तो प्रेम मंदिर से बाहर निकलकर इस्कॉन मंदिर की ओर जाने पर 200 मीटर चलकर सड़क के दाईं ओर एक मार्ग जाता है ! इस मार्ग पर आगे बढ़ने पर एक पुल पर से होते हुए डेढ़ किलोमीटर चलकर एक तिराहा आता है, यहाँ से आपको बाएँ मुड़कर आगे बढ़ना होता है ! इस मार्ग पर डेढ़ किलोमीटर चलकर परिक्रमा मार्ग पार करने के बाद सड़क के बाईं ओर जयपुर मंदिर है ! मुख्य मार्ग पर मंदिर की दिशा दर्शाता एक बोर्ड भी लगा है, मंदिर के सामने पहुँचकर मैने अपनी मोटरसाइकल खड़ी की और अंदर प्रवेश किया ! अंदर जाने के लिए सीढ़ियाँ बनी है, इन सीढ़ियों से चढ़कर सीधा मार्ग मुख्य भवन तक जाता है और इस मार्ग के दोनों तरफ खुला मैदान है ! इस मार्ग से होते हुए मैं भी मुख्य भवन के प्रवेश द्वार तक पहुँच गया ! यहाँ जूते उतारकर जब मैने मंदिर में अंदर प्रवेश किया तो उस समय अंदर ज़्यादा भीड़ नहीं थी, मेरे अलावा वहाँ 25-30 लोग ही थे ! कुछ भक्त तो अंदर हाल में बैठकर प्रार्थना में लगे हुए थे जबकि कुछ अन्य लोग एक झाँकी तैयार करने में लगे हुए थे !

इससे पहले हम और आगे बढ़े, मंदिर के बारे में आप लोगों को कुछ जानकारी देना उचित रहेगा ! इस मंदिर का निर्माण जयपुर के महाराज स्वामी महादेव जी ने सन 1917 में करवाया था, 30 साल की कड़ी मेहनत के बाद मंदिर का निर्माण हुआ ! मंदिर के अंदर-बाहर दीवारों पर और मुख्य भवन में भी राजस्थानी कलाकृति साफ झलकती है ! यहाँ तक की मंदिर के निर्माण में भी अधिकतम राजस्थानी पत्थरों का ही प्रयोग हुआ है, बड़े-2 पत्थरों को काटकर बारीक और सुंदर कारीगरी की गई है ! कहा जाता है कि मंदिर निर्माण के दौरान महाराज स्वामी महादेव जी ने मथुरा से वृंदावन को जोड़ने वाली रेलवे लाइन के निर्माण के लिए आर्थिक सहयता दी ताकि मंदिर निर्माण के लिए पत्थरों की ढुलाई आसान हो सके ! मुख्य भवन में अंदर जाकर मैं भी अन्य भक्तों की तरह एक किनारे जाकर बैठ गया, प्रभु के दर्शन में अभी थोड़ा समय बाकी था इसलिए सभी लोग हाल में बैठकर ही प्रतीक्षा कर रहे थे ! वैसे ये मंदिर भगवान श्री कृष्ण को समर्पित है पर यहाँ प्रभु के अलग-2 रूप की मूर्तियाँ स्थापित की गई है ! यहाँ पर प्रभु के राधा माधव, आनंद बिहारी और हंस गोपाल रूप दिखाए गए है ! 

थोड़ी देर इंतजार करने के बाद पुजारी ने मुख्य भवन में मूर्तियों के सामने वाला द्वार खोल दिया जो अब तक बंद था ! सभी भक्तजन बारी-2 से द्वार के सामने आकर भगवान के दर्शन करने लगे, मैने भी हाथ जोड़ कर प्रार्थना की ! फिर थोड़ी देर वहीं बैठकर मनन करने के बाद मैं मंदिर से बाहर की ओर चल दिया ! मुख्य भवन में काफ़ी अंधेरा था, मंदिर में बने झरोखों और खिड़की-दरवाज़ों से जो हल्की-फुल्की रोशनी आ रही थी, उसी से अंदर थोड़ा बहुत प्रकाश आ रहा था ! यहाँ शायद बिजली की व्यवस्था नहीं थी या हो सकता है उस समय बिजली आ ना रही हो, यूपी सरकार ज़िंदाबाद ! मंदिर से बाहर आकर मैने अपने जूते पहने और बैग से कैमरा निकालकर मंदिर के बगल से होते हुए गलियारे में पहुँच गया ! मुख्य भवन के चारों ओर एक गलियारा था और गलियारे के दूसरी तरफ यात्रियों के ठहरने के लिए कमरे बने हुए थे ! यहाँ रुकने वाले अधिकतर यात्री राजस्थान और गुजरात से थे, वैसे मंदिर के बाहर गुजरात की 2 बसें भी खड़ी थी ! निश्चित तौर पर इन बसों में आए यात्री मंदिर की धर्मशाला में ही रुके होंगे !

वैसे भी दिल्ली तक के यात्री भी यहाँ दिन में भ्रमण करके शाम होते-2 वापिस चले जाते है ! जिस दौरान में इस मंदिर में घूम रहा था, मंदिर में बने यात्री निवासों में काफ़ी लोग रुके हुए थे, यहाँ रुके हुए लोगों की दिनचर्या देख कर तो लग रहा था कि ये लोग काफ़ी समय से यहीं रहते है ! लेकिन मुझे समझ नहीं आया कि कोई यात्री एक ही जगह पर इतने लंबे समय के लिए क्यों रुकेगा ! खैर, मुझे यहाँ के कुछ फोटो लेने थे वो मैने ले लिए, अधिकतर मंदिरों में फोटो लेने पर मनाही होती है लेकिन इस मंदिर में मनाही नहीं थी ! फिर भी मैने मुख्य भवन के अंदर फोटो लेने की कोशिश भी नहीं की, अंदर ध्यान लगाने में इतना लीन हो गया कि फोटो लेने का मन ही नहीं हुआ ! मंदिर के चारों ओर की इमारतें भी बहुत खूबसूरत है, इन इमारतों में राजस्थानी कलाकारी खूब झलकती है ! मंदिर का एक चक्कर लगाते हुए मैने देखा कि मंदिर के पिछले हिस्से के कुछ दरवाजे बंद थे, मंदिर के बाहर ज़्यादा साफ-सफाई भी नहीं थी ! यहाँ कुछ लोग कपड़े धोने में लगे थे तो कुछ नहाने में, कुछ अन्य खाना भी बना रहे थे, मतलब नहा-धोकर पूरी दावत उड़ाने की तैयारी थी ! मंदिर का चक्कर लगाने के बाद मैं फिर से मंदिर के प्रवेश द्वार पर ही पहुँच गया !

मंदिर के सामने वाले मार्ग पर दोनों ओर बड़े-2 पत्थरों पर खूबसूरत कृतियाँ उकेरी गई थी, इतना बारीक काम देख कर मैं बनाने वाले की तारीफ़ किए बिना नहीं रह सका ! इन आकृतियों को थोड़ी देर तक निहारने के बाद वापसी के लिए मंदिर के बाहर वाले दरवाजे की ओर चल दिया, इस दौरान वहाँ कुछ नये यात्री भी दाखिल हुए ! मैदान के किनारे ही कुछ लोग बैठ कर हुक्का पी रहे थे तो कुछ किसी विषय को लेकर चर्चा में लगे थे ! मुख्य द्वार के पास भी कुछ अधेड़ उम्र के लोग बैठ कर बातें कर रहे थे, उनकी बातचीत से मुझे लगा कि वो शायद अपने रुकने की व्यवस्था देख रहे थे ! वहीं दीवार पर एक बोर्ड टंगा था जिसपर यहाँ रुकने के लिए कमरों के किराए की जानकारी दी गई थी ! मुख्य द्वार से बाहर आते ही मैं अपनी मोटरसाइकल की ओर चल दिया, मंदिर के बाहर मेरे अलावा भी कई दोपहिया और चार पहिया वाहन खड़े थे ! अपनी मोटरसाइकल चालू करके मैं मंदिर तक आने वाले मार्ग से होता हुआ मथुरा-वृंदावन जाने वाले मुख्य मार्ग पर चल दिया ! इसी मार्ग से दाईं और मुड़कर मैं अपने अगले पड़ाव यानि बिरला मंदिर की ओर चल दिया !

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जयपुर मंदिर वृंदावन (Jaipur Temple Vrindavan)


मंदिर परिसर में लिया एक चित्र  (A view from Temple Premises)


jaipur temple entrance
मुख्य भवन का प्रवेश द्वार (Entrance of Main Bhavan)




jaipur temple inside
मंदिर के अंदर लिया एक चित्र 


jaipur temple building
बेहतरीन कलाकारी का एक नमूना
jaipur temple door
मंदिर का एक प्रवेश द्वार जो अब स्थाई रूप से बंद है
मंदिर में बने कमरे


मंदिर के गलियार में बना बरामदा
मंदिर के पिछले भाग का एक चित्र
पत्थरों पर उकेरी गई कारीगरी
पत्थरों पर उकेरी गई कारीगरी


मंदिर के ये द्वार स्थाई रूप से बंद है 


मंदिर के सामने एक बड़े पत्थर पर की गई कारीगरी
थोड़ा ज़ूम करके देखते है
पत्थर पर उकेरी गई कारीगरी
पत्थर पर उकेरी गई कारीगरी
मंदिर परिसर में लिया एक और चित्र
मंदिर के सामने एक बड़े पत्थर पर की गई कारीगरी
मंदिर से बाहर जाने का मार्ग


मंदिर के बाहर से दिखाई देता मथुरा-वृंदावन मार्ग 


क्यों जाएँ (Why to go Vrindavan): अगर आप साप्ताहिक अवकाश (Weekend) पर दिल्ली की भीड़-भाड़ से दूर धार्मिक नगरी की तलाश में है तो वृंदावन आपके लिए उपयुक्त स्थान है यहाँ भगवान कृष्ण को समर्पित इतने मंदिर है कि आप घूमते-2 थक जाओगे पर यहाँ के मंदिर ख़त्म नहीं होंगे ! वृंदावन के तो कण-2 में कृष्ण भगवान से जुड़ी यादें है, क्योंकि उनका बचपन यहीं ब्रज में ही गुजरा ! कृष्ण भक्तों के लिए इससे उत्तम स्थान पूरी दुनिया में शायद ही कहीं हो !

कब जाएँ (Best time to go Vrindavan): 
वृंदावन आप साल के किसी भी महीने में किसी भी दिन आ सकते है बस यहाँ के मंदिरों के खुलने और बंद होने का एक निर्धारित समय है अधिकतर मंदिर दोपहर 12 बजे के आस पास बंद हो जाते है ! फिर शाम को 5 बजे खुलते है, इसलिए जब भी वृंदावन आना हो, समय का ज़रूर ध्यान रखें ! 

कैसे जाएँ (How to reach Vrindavan): वृंदावन आने का सबसे बढ़िया और सस्ता साधन रेल मार्ग से है, मथुरा यहाँ का सबसे नज़दीकी बड़ा रेलवे स्टेशन है जो देश के अन्य शहरों से रेल मार्ग से बढ़िया से जुड़ा है ! मथुरा से वृंदावन की दूरी महज 15 किलोमीटर है, रेलवे स्टेशन के बाहर से वृंदावन आने के लिए आपको तमाम साधन मिल जाएँगे ! अगर आप दिल्ली से सड़क मार्ग से वृंदावन आना चाहे तो यमुना एक्सप्रेस वे से होते हुए आ सकते है ! दिल्ली से वृंदावन की कुल दूरी 185 किलोमीटर है जिसे तय करने में आपको ढाई से तीन घंटे का समय लगेगा !

कहाँ रुके (Where to stay in Vrindavan): वृंदावन एक प्रसिद्ध धार्मिक शहर है यहाँ रोजाना दर्शन के लिए हज़ारों यात्री आते है ! लोगों के रुकने के लिए यहाँ तमाम धर्मशालाएँ और होटल है ! आप अपनी सहूलियत के हिसाब से 500 रुपए से लेकर 2500 रुपए तक के होटल ले सकते है !


कहाँ खाएँ (Eating option in Vrindavan): वृंदावन में अच्छा ख़ासा बाज़ार है जहाँ आपको खाने-पीने के तमाम विकल्प मिल जाएँगे ! मथुरा के पेड़े तो दुनिया भर में मशहूर है अगर आप वृंदावन आ रहे है तो यहाँ के पेड़ों के अलावा कचोरियों का स्वाद भी ज़रूर चखें !

क्या देखें (Places to see in Vrindavan): 
ये तो मैं आपको बता ही चुका हूँ कि वृंदावन भगवान कृष्ण की नगरी है यहाँ घूमने के लिए अनगिनत मंदिर है ! फिर भी कुछ मंदिर है जो यहाँ आने वाले लोगों में ख़ासे लोकप्रिय है जिनमें से कुछ है बांके बिहारी मंदिर, प्रेम मंदिर, बिरला मंदिर, जयपुर मंदिर, कृष्ण जन्मभूमि, माँ वैष्णो देवी मंदिर, रंगनाथ मंदिर और गोविंद देव मंदिर !

अगले भाग में जारी...

वृंदावन यात्रा
  1. वृंदावन के प्रेम मंदिर में बिताए कुछ पल (An Hour Spent in Prem Mandir, Vrindavan)
  2. वृंदावन का जयपुर मंदिर (A View of Jaipur Temple in Vrindavan)
  3. वृंदावन का खूबसूरत बिरला मंदिर (Birla Temple of Vrindavan)
  4. श्रीकृष्ण जन्मभूमि और द्वारकाधीश मंदिर (Shri Krishna Janmbhoomi and Dwarkadheesh Temple, Mathura)
  5. वृंदावन का पागल बाबा मंदिर (Pagal Baba Temple of Vrindavan)
  6. भगवान विष्णु को समर्पित रंगनाथ मंदिर (A Temple Dedicated to Lord Vishnu)
  7. हिंदू-मुस्लिम शिल्पकला का प्रतीक - गोविंद देव मंदिर (Beauty of Govind Dev Temple, Vrindavan)
  8. माँ वैष्णो देवी धाम – वृंदावन (Maa Vaishno Devi Temple, Vrindavan)
Pradeep Chauhan

घूमने का शौक आख़िर किसे नहीं होता, अक्सर लोग छुट्टियाँ मिलते ही कहीं ना कहीं घूमने जाने का विचार बनाने लगते है ! पर कुछ लोग समय के अभाव में तो कुछ लोग जानकारी के अभाव में बहुत सी अनछूई जगहें देखने से वंचित रह जाते है ! एक बार घूमते हुए ऐसे ही मन में विचार आया कि क्यूँ ना मैं अपने यात्रा अनुभव लोगों से साझा करूँ ! बस उसी दिन से अपने यात्रा विवरण को शब्दों के माध्यम से सहेजने में लगा हूँ ! घूमने जाने की इच्छा तो हमेशा रहती है, इसलिए अपनी व्यस्त ज़िंदगी से जैसे भी बन पड़ता है थोड़ा समय निकाल कर कहीं घूमने चला जाता हूँ ! फिलहाल मैं गुड़गाँव में एक निजी कंपनी में कार्यरत हूँ !

11 Comments

  1. Replies
    1. धन्यवाद आर डी प्रजापति जी !

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  2. बढि़या वर्णन । लिखते रहिए--- घूमते रहिए।

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    1. उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद स्वाति जी !

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