मेरा पिछला लेख तो आप पढ़ ही चुके होंगे जिसमें मैं चाइना मंदिर घूमने के बाद म्यूज़ीयम पहुँचा और म्यूज़ीयम में ना जाकर इसके सामने बनी एक झोपड़ीनुमा इमारत में चल दिया ! अब आगे, तो जिस इमारत को मैं चर्च समझ कर अंदर चला आया था असल में वो सारनाथ में स्थित थाई मंदिर है ! इस मंदिर का प्रवेश द्वार शानदार बना है, प्रवेश द्वार से लेकर मंदिर के मुख्य भवन की आकृति में थाईलैंड संस्कृति की झलक साफ दिखाई देती है ! एक खुले मैदान के बीचों-बीच बना ये मंदिर बहुत सुंदर लगता है, मंदिर परिसर में मुख्य भवन के अलावा भी कई मूर्तियाँ और आकृतियाँ बनी हुई है ! थाई मंदिर के मुख्य भवन के ऊपरी भाग में महात्मा बुद्ध के चित्र बने हुए है इन चित्रों में उन्हें अलग-2 क्रिया-कलाप करते हुए दिखाया गया है ! पहला चित्र उनके बाल रूप को दर्शाता है तो दूसरे चित्र में महात्मा बुद्ध ध्यान लगाते हुए दिखाई देते है, अगले चित्र में वो अपने शिष्यों को ज्ञान दे रहे है, तो एक अन्य चित्र में उन्हें विश्राम करते हुए भी दिखाया गया है !
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थाई मंदिर का एक दृश्य |
चलिए, अब इस मंदिर से जुड़ी कुछ और जानकारियाँ भी दे देता हूँ इस मंदिर का निर्माण थाईलैंड सरकार ने करवाया है ! मुख्य भवन के सामने ही चार शेरों की मूर्ति और अशोक चक्र भी बना हुआ है ! मंदिर परिसर में ही एक पीपल के पेड़ के नीचे महात्मा बुद्ध की सुनहरे रंग की प्रतिमा बनी है ! मैं टहलता हुआ मुख्य भवन के प्रवेश द्वार के सामने पहुँच गया ! मेरे अलावा कुछ अन्य लोग भी इस समय यहाँ थे, सीढ़ियों से होते हुए मैने मुख्य भवन में प्रवेश किया ! मुख्य भवन ज़्यादा बड़ा नहीं था, इसमें भी महात्मा बुद्ध की एक सुनहरे रंग की मूर्ति बनी हुई है ! थाई मंदिर भी सारनाथ आने वाले लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र है, मुख्य भवन घूमने के बाद मैं बाहर आ गया और बुद्ध की विशाल प्रतिमा को देखने चल दिया जो मंदिर परिसर में ही थी ! मंदिर से 10 कदम की दूरी पर ही मुझे महात्मा बुद्ध की एक काले रंग की प्रतिमा दिखाई दी, जिसमें वो ध्यानमग्न बैठे है ! इस प्रतिमा को पीले रंग के वस्त्र से ढका गया है !
कुल मिलाकर इस मंदिर में भी महात्मा बुद्ध की छाप दिखाई देती है या यूँ कह लीजिए कि पूरे सारनाथ में ही महात्मा बुद्ध की छवि दिखाई देती है ! एक प्रमुख बौद्ध तीर्थ स्थल होने के कारण पूरे विश्व से यहाँ हर वर्ष लाखों श्रधालु आते है, इन श्रधालुओं में जापान, थाईलैंड, और चीन जैसे बौद्ध धर्म प्रधान देशों से आने वाले लोगों की तादात सबसे अधिक होती है ! इस मंदिर की ख़ासियत इसकी थाई वास्तुशिल्प शैली है, मंदिर की इमारत काफ़ी रंग-बिरंगी है इसलिए दूर से ही बाकी इमारतों से काफ़ी अलग दिखाई देती है ! ये मंदिर थाई बौद्ध महंतो द्वारा संचालित किया जाता है, मंदिर के पास एक खूबसूरत बगीचा भी है, जहाँ कई तरह के फूल-पौधे लगे है !
थोड़ी और आगे बढ़ा तो मुझे अपनी दाईं ओर महात्मा बुद्ध की एक विशाल प्रतिमा दिखाई दी, प्राप्त जानकारी के मुताबिक गौतम बुद्ध की ये प्रतिमा हमारे देश में बुद्ध की सबसे बड़ी प्रतिमा है ! थाईलैंड के पूर्व प्रधानमंत्री सुरायुद चुनालोट ने इस प्रतिमा का शिलान्यास 16 मार्च 2011 को किया, बुद्ध की ये प्रतिमा 80 फीट ऊँची है !
इस प्रतिमा को बनाने में लगभग 2 करोड़ रुपए की लागत आई और इसे बनाने में 14 वर्ष का लंबा समय लगा ! इस प्रतिमा को बनाने में 815 बड़े पत्थरों का इस्तेमाल हुआ है ! बुद्ध की इस प्रतिमा को बनाने के पीछे भी एक कहानी है, कहते है कि जब तालिबानी समुदाय ने अफ़ग़ानिस्तान में मौजूद महात्मा बुद्ध की मूर्ति को क्षतिग्रस्त कर दिया तो यहाँ सारनाथ में इस विशाल प्रतिमा को बनाने का काम शुरू किया गया ! 14 सालों के अथक प्रयास का नतीजा इस विशाल प्रतिमा के रूप में आज सारी दुनिया के सामने है !
इस प्रतिमा के सामने ही एक बड़ा सुंदर सा उद्यान बना है, उद्यान में रंग-बिरंगी फूल है और पास में ही पानी के फव्वारे भी लगे है ! इसी उद्यान में बुद्ध की प्रतिमा के ठीक सामने एक महामाया देवी सरोवर भी बना है सरोवर ज़्यादा बड़ा तो नहीं है लेकिन सुंदर लगता है ! उद्यान में ही एक जगह सारनाथ का चक्र बना हुआ था और एक सुनहरे रंग की लाफिंग बुद्धा की प्रतिमा भी बनी हुई थी !
थाई मंदिर और बुद्ध की विशाल प्रतिमा देख लेने के बाद मैं मंदिर परिसर से बाहर की ओर चल दिया ! इस मंदिर में आने के 2 द्वार है, घूमने के बाद मैं मंदिर के दूसरे द्वार से बाहर निकला ! जिस मार्ग से मैं वाराणसी से यहाँ आया था उसी मार्ग पर वापिस चल दिया, थोड़ी दूर जाने पर ही सड़क के किनारे मुझे एक और इमारत दिखाई दी, ये चौखंडी स्तूप था !
सारनाथ में मंदिरों की श्रंखला घूमने के बाद ये अंतिम स्थान था जिसे मैं आज देखने वाला था ! इस स्तूप में भी महात्मा बुद्ध से जुड़ी कई निशानियाँ है, ऐसा कहा जाता है कि चौखंडी स्तूप का निर्माण मूलत: सीढ़ीदार मंदिर के रूप में किया गया था ! चार भुजाओं वाले आधार पर बनी यह ईंट निर्मित विशाल संरचना वस्तुत: बौद्ध स्तूप है, गुप्तकाल (चौथी-पाँचवी शताब्दी) में बना ये स्तूप उस स्थान विशेष का द्योतक है जहाँ ज्ञान प्राप्ति के पश्चात महात्मा बुद्ध की भेंट अपने प्रथम पाँच शिष्यों से हुई थी ! इस स्तूप का उल्लेख सातवीं शताब्दी के विख्यात चीनी यात्री युआन चवांग ने अपने यात्रा विवरण में भी किया है !
इस स्तूप की कुल ऊँचाई 93 फीट है, जो क्रमश: ऊपर की ओर आकार में घटते हुए तीन सोपानों से युक्त है, जिसके प्रत्येक सोपान की ऊँचाई और चौड़ाई दोनों लगभग 12 फीट है ! स्तूप के शिखर पर सुशोभित एक अष्टभुजी मुगलकालीन संरचना है, जिसका निर्माण इस स्थान पर हुमायूँ के आगमन को अविस्मरणीय बनाने के लिए राजा टोडरमल के पुत्र गोवर्धन द्वारा 1588 ईस्वी में करवाया गया था !
ये सारी जानकारी मुझे स्तूप के पास लगे एक बोर्ड से मिली ! इस स्तूप के चारों ओर भी एक खुला मैदान है जिसमें चलने के लिए एक पक्का मार्ग बना है ! यहाँ घूमने के लिए बहुत ज़्यादा कुछ नहीं था इसलिए यहाँ कुछ फोटो खींचने के बाद में इमारत के मुख्य द्वार से बाहर आ गया ! फिर यहाँ से एक ऑटो में सवार होकर सारनाथ रेलवे स्टेशन की ओर चल दिया जहाँ से मुझे अपने आगे के सफ़र के लिए ट्रेन पकड़नी थी ! इसी के साथ ये यात्रा ख़त्म होती है, जल्द ही आपको हिमाचल के किसी स्थान की यात्रा पर लेकर चलूँगा !
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थाई मंदिर का एक और दृश्य |
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मंदिर परिसर में स्थापित महात्मा बुद्ध की प्रतिमा |
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मंदिर परिसर में अन्य कलाकृतियाँ |
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मुख्य भवन में महात्मा बुद्ध की प्रतिमा |
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मंदिर परिसर में अन्य कलाकृतियाँ |
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थाई मंदिर का प्रवेश द्वार |
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थाई मंदिर के मुख्य भवन का एक और दृश्य |
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थाई मंदिर के मुख्य भवन का एक और दृश्य |
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महात्मा बुद्ध की विशाल प्रतिमा |
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मंदिर परिसर में अन्य कलाकृतियाँ |
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महात्मा बुद्ध की विशाल प्रतिमा |
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महात्मा बुद्ध की विशाल प्रतिमा |
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दूर से दिखाई देता चौखंडी स्तूप |
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चौखंडी स्तूप का प्रवेश द्वार |
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चौखंडी स्तूप का एक दृश्य |
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चौखंडी स्तूप की जानकारी देता एक बोर्ड |
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चौखंडी स्तूप का एक दृश्य |
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चौखंडी स्तूप का एक और दृश्य |
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चौखंडी स्तूप का एक और दृश्य |
क्यों जाएँ (Why to go Sarnath): अगर आपकी बौद्ध धर्म में आस्था है या आप बौद्ध धर्म से संबंधित अपना सामान्य ज्ञान बढ़ाना चाहते है तो भारत में सारनाथ से उत्तम शायद ही कोई दूसरी जगह हो ! इसके अलावा वाराणसी में गंगा नदी के किनारे बने घाट, काशी विश्वनाथ का मंदिर, और रामनगर का किला भी देखने के लिए प्रसिद्ध जगहें है ! अगर आप वाराणसी में है तो गंगा नदी के किनारे बने दशावमेघ घाट पर रोज शाम को होने वाली गंगा आरती में ज़रूर शामिल हो !
कब जाएँ (Best time to go Sarnath): आप साल के किसी भी महीने में सारनाथ जा सकते है हर मौसम में यहाँ अलग ही आनंद आता है गर्मी के दिनों में भयंकर गर्मी पड़ती है तो सर्दी भी कड़ाके की रहती है !
कैसे जाएँ (How to reach Sarnath): दिल्ली से सारनाथ जाने के लिए आपको वाराणसी होकर जाना पड़ेगा, वाराणसी दिल्ली से 800 किलोमीटर दूर है, जहाँ जाने के लिए सबसे सस्ता और बढ़िया साधन भारतीय रेल है ! वैसे तो नई दिल्ली से वाराणसी के लिए प्रतिदिन कई ट्रेनें चलती है लेकिन शिवगंगा एक्सप्रेस (12560) इस मार्ग पर चलने वाले सबसे बढ़िया ट्रेन है जो शाम 7 बजे नई दिल्ली से चलकर सुबह 7 बजे वाराणसी उतार देती है ! वाराणसी से सारनाथ जाने के लिए नियमित अंतराल पर ऑटो और बसें चलती रहती है दोनों जगहों के बीच की दूरी महज 10 किलोमीटर है !
कहाँ रुके (Where to stay in Sarnath): सारनाथ में रुकने के लिए कई होटल है लेकिन अगर आप थोड़ी सुख-सुविधाओं वाला होटल चाहते है तो वाराणसी में रुके सकते है ! वाराणसी में 500 रुपए से लेकर 4000 रुपए तक के होटल मिल जाएँगे !
क्या देखें (Places to see in Sarnath): सारनाथ घूमते हुए तो ऐसा लगता है जैसे आप एक अलग ही दुनिया में आ गए हो ! हर तरफ महात्मा बुद्ध से संबंधित मंदिर और दर्शनीय स्थल है ! सारनाथ में घूमने के लिए वैसे तो कई जगहें है लेकिन चौखंडी स्तूप, थाई मंदिर, म्यूज़ीयम, अशोक स्तंभ, तिब्बत मंदिर, मूलगंध कूटी विहार, धूमेख स्तूप, बौधि वृक्ष और डियर पार्क प्रमुख है !
समाप्त...
सारनाथ भ्रमण
- दिल्ली से वाराणसी की रेल यात्रा (A train trip to Varanasi from Delhi)
- धूमेख स्तूप, बोधिवृक्ष और मूलगंध कूटी विहार (Tourist Attractions in Sarnath, Dhumekh Stoop, and Mulgandh Kuti Vihar Temple)
- सारनाथ का चाइना मंदिर (China Temple in Sarnath)
- सारनाथ का थाई मंदिर और चौखंडी स्तूप (Tourist Attractions in Sarnath, Thai Temple and Chaukhandi Stoop)
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