यात्रा के पिछले लेख में आप जैसलमेर की प्रमुख हवेलियों का भ्रमण कर चुके है, नाथमल की हवेली देखने के बाद हम बड़ा बाग देखने जाने वाले थे लेकिन बड़ा बाग देखने से पहले हम रास्ते में पड़ने वाली गदीसर झील घूमना चाहते थे ! क्या पता, बाद में ये झील देखने के लिए समय मिले या नहीं, इसलिए आज जैसलमेर के आस-पास की जितनी जगहें देख लेंगे, कल पर दबाव कम हो जाएगा ! नाथमल की हवेली से निकलने के बाद 5-7 मिनट की यात्रा करके हम गदीसर झील के सामने पहुँच गए, हमें मोटरसाइकिल से यहाँ छोड़कर भूरा राम गाडी लेने चला गया ताकि बड़ा बाग़ घूमने जाने में आसानी रहे ! क्या कहा, कौन भूरा राम, अरे ये देखिये, हम भूरा राम के साथ जैसलमेर की हवेलियाँ घूम लिए और मैं भूरा राम से आपका परिचय करवाना ही भूल गया ! भूरा राम एक स्थानीय लड़का था जो हमें जैसलमेर घुमाने के लिए गाइड के रूप में मिला ! हुआ दरअसल कुछ यूं कि जब हम सोनार किले से शाही महल देख कर जैसलमेर की गलियों में भटक रहे थे तो एक गली से गुजरते हुए हम एक चित्रकार के घर के सामने पहुंचे ! यहाँ कुछ चित्रों को सूखने के लिए बाहर लटकाया गया था, ये चित्र इतने सुन्दर थे कि इनपर नज़र पड़ते ही हमारे कदम अपने आप ही रुक गए !
|
गदीसर झील का प्रवेश द्वार (टीलों की द्वार) |
अब इस चित्रकार के बारे में तो क्या ही बताऊँ, लक्की, जी हाँ, यही नाम बताया था उसने अपना, उसकी कला में एक अजीब सा जादू था ! रंगों में डूबे ब्रश को लेकर जब उसके हाथ कैनवस पर चलते है तो ऐसे-2 चित्र उभरकर सामने आते है कि सामने वाला तारीफ़ किए बिना नहीं रह सकता ! लक्की ने अलग-2 विषयों पर और छोटे-बड़े सभी आकार के अधिकतर चित्रों को बनाने के लिए काले कपड़ो का प्रयोग किया था ! किसी चित्र में रंग भरने के लिए वाटर पेंट का इस्तेमाल किया था किसी में आयल पेंट, आयल और वाटर पेंटिंग के रंगों में तो काफी फर्क था लेकिन चित्रों में कोई फर्क नहीं था, हर चित्र अपने आप में अद्भुत था ! देखने में ये इतने आकर्षक लग रहे थे कि देवेन्द्र ने इन्हें लेने की इच्छा जताई, बस फिर क्या था, अपने जूते बाहर उतारकर हम इस घर में दाखिल हो गए ! अन्दर का दृश्य भी कम लुभावना नहीं था, हर आकार की सैकड़ों पेंटिंग दीवारों पर लगाईं गई थी ! लक्की से बातचीत शुरू की तो पता चला ये महाशय शौक के लिए चित्रकारी करते थे लेकिन बाद में इन्होनें अपने शौक को ही अपना रोजगार बना लिया ! वैसे बहुत अच्छा लगता है ऐसे लोगों से मिलकर जो अपने शौक को ही अपना व्यवसाय बना लेते है, ऐसे लोग बहुत कम ही देखने को मिलते है !
|
देवेन्द्र ने यही पेंटिंग ली थी |
|
देवेन्द्र, लक्की और मैं (बाएं से दाएं) |
|
लक्की की बनाई एक पेंटिंग |
लक्की के पास 300 रूपए से शुरू होकर 60-70 हज़ार रूपए तक की पेंटिंग थी, वैसे तो यहाँ रखी हर पेंटिंग अपने आप में नायाब थी लेकिन मुझे कुछ पेंटिंग काफी आकर्षक लगी जिनमें से कुछ के चित्र यहाँ लगा रहा हूँ ! पेंटिंग लेने से पहले काफी देर तक बैठकर हम लक्की से बात करते रहे, जब हम यहाँ से निकल रहे थे तो लक्की ने हमसे पूछ लिया कि आप दोनों को जैसलमेर कैसा लगा ? जब हमने बताया कि अभी तक हम सिर्फ जैसलमेर दुर्ग ही घूमे है तो लक्की ने हमें भूरा राम से मिलवा दिया ! दो दिन जैसलमेर और इसके आस-पास देखने की जगहें घुमाने का शुल्क भी तय हो गया, फिर लक्की ने फ़ोन करके भूरा राम को बुला लिया ! एक मोटरसाइकिल पर सवार होकर पहले हम जैसलमेर की हवेलियाँ घूमे और फिर गदीसर झील के लिए रवाना हुए, वैसे आप इन हवेलियों को पैदल भी घूम सकते है ये सभी आस-पास ही है ! चलिए, वापिस अपनी यात्रा पर लौटते है जहाँ हम गदीसर झील के सामने पहुँच चुके है ! आगे बढ़ने से पहले आपको इस झील से सम्बंधित कुछ जानकारी दे देता हूँ ! रेगिस्तान का इलाका होने के कारण जैसलमेर में हमेशा से ही पानी की किल्लत रही है, जैसलमेर की जनता को इस समस्या से निजात दिलाने के लिए महरावल जैसल ने 1367 में जैसलमेर किले से डेढ़ किलोमीटर दूर स्थित इस झील का निर्माण करवाया था !
|
गदीसर झील जाने का मार्ग |
|
बालकनी से दिखाई देती गदीसर झील |
|
बालकनी से दिखाई देती गदीसर झील |
समय के साथ महरावल गडसी ने इस झील में मरम्मत कार्य करवाया और इसके रंग-रूप में भी कुछ बदलाव किया ! किसी जमाने में इस झील से ही जैसलमेर शहर में पानी की आपूर्ति की जाती थी, लेकिन लगातार पानी के उपयोग से ये झील सूखती गई और वर्तमान में ये सिकुड़कर काफी छोटी हो गई है ! अब तो ये जैसलमेर आने वाले पर्यटकों के लिए एक दर्शनीय स्थल बनकर रह गई है, यहाँ आने वाले अधिकतर लोग इस झील में नौकायान का आनंद लेते है ! इस झील के किनारे-2 कई मंदिर बने हुए है और इसके बीचों-बीच कई छतरियां बनी हुई है जो देखने में बहुत सुन्दर लगती है ! सर्दियों के मौसम में तो इस झील के किनारे देश-विदेश से कई प्रवासी पक्षी आते है जो भरतपुर पक्षी अभ्यारण्य जाते हुए कुछ समय के लिए गदीसर झील पर रुकने के बाद आगे बढ़ते है ! इस झील से कुछ पहले टीलों की द्वार बनी हुई है, इस द्वार से होकर ही झील तक जाया जाता है ! इस द्वार के पास 1908 में भगवान् विष्णु की एक मूर्ति स्थापित की गई थी ! कहते है कि झील के किनारे बने इस विशाल द्वार का निर्माण टीलों नाम की एक गणिका (वैश्या) ने करवाया था, जिसके नाम पर ही इस द्वार का नाम टीलों की द्वार पड़ा !
|
गदीसर झील का एक दृश्य |
|
टीलों की द्वार से सम्बंधित जानकारी |
जन साधारण के विरोध को देखते हुए जब महरावल गडसी ने इस द्वार को गिरवाना चाहा तो टीलों ने उस पर एक मंदिर का निर्माण करवा दिया, इसके बाद मामला शांत हो गया ! ये विशाल भवन रुपी प्रवेश द्वार बाहर से आने वाले साधू-संतों और यात्रियों के ठहरने के लिए प्रयोग में आता था ! इस द्वार के ऊपरी भाग में देवल की आकृतियाँ, खिड़कियाँ और कई मोखले बने हुए है, दूर से देखने पर ये किसी भवन का हिस्सा ही लगता है ! इस द्वार से थोडा पहले दाईं ओर एक कतार में कुछ दुकानें है जहाँ साज-सज्जा और अन्य सामग्रियां बिक्री के लिए रखी गई है ! द्वार के पास ही सीढ़ियों से होते हुए हम एक गलियारे में पहुँच गए जो आगे जाकर एक बालकनी में खुलता है, यहाँ से गदीसर झील का शानदार दृश्य दिखाई दे रहा था ! अगर आप घुड़सवारी का आनंद लेना चाहते है तो उसकी सुविधा भी यहाँ उपलब्ध है, इस द्वार से पहले कुछ घोड़े वाले खड़े थे जो यहाँ आने वाले पर्यटकों को घुड़सवारी करवाते है ! बालकनी में खड़े होकर कुछ देर झील को निहारने के बाद हम सीढ़ियों से उतरकर नीचे आ गए और प्रवेश द्वार से होते हुए झील की तरफ चल दिए !
|
प्रवेश द्वार से सड़क की ओर जाने वाला मार्ग |
|
प्रवेश द्वार के बगल से जाती सीढियाँ |
|
नौकायान की सवारी के लिए बना टिकट घर |
प्रवेश द्वार को पार करते ही नज़ारा एकदम बदल जाता है, यहाँ से गदीसर झील का जो दृश्य दिखाई देता है वो रेगिस्तान में किसी हरियाली ही तरह है ! इस द्वार से 8-10 कदम की दूरी पर एक बोटिंग स्टैंड है जहाँ रंग-बिरंगी नावें पर्यटकों को लेकर झील में जाने के लिए तैयार खड़ी थी ! कुछ नावें यात्रियों को लेकर झील के बीच में गई हुई थी, झील में तैरती इन नावों का यहाँ से एक सुन्दर दृश्य दिखाई दे रहा था ! कुछ देर स्टैंड पर खड़े रहकर इन रंग-बिरंगी नावों को देखने के बाद हम लकड़ी के बने एक अस्थायी पुल से होते हुए बोट की ओर चल दिए, हम यहाँ आते हुए नौकायान की सवारी करने का टिकट ले आए थे जो प्रवेश द्वार से थोडा पहले टिकट खिड़की पर मिल रहा था ! आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि इस झील में पेडल और शिकारा दोनों तरह की बोट है ! जहाँ 2 सीट वाली पेडल बोट के लिए आपको आधे घंटे के 100 रूपए खर्च करने होंगे, वहीँ शिकारा बोट के लिए आपको 300 रूपए देने होंगे ! 4 सीट वाली पेडल बोट का किराया 200 रूपए और 6 लोगों वाली शिकारा बोट का किराया 300 रूपए है ! अपनी पेडल बोट में सवार होकर बोट स्टैंड से निकलकर हम झील के बीच में पहुँच गए, हमने इस झील के कई चक्कर लगाए !
|
गदीसर झील में बना बोट स्टैंड |
|
बोटिंग स्टैंड से दिखाई देती टीलों की द्वार |
|
बोटिंग स्टैंड से दिखाई देता एक दृश्य |
|
गदीसर झील के बीच में बना एक देवल |
|
गदीसर झील के बीच में बना एक देवल |
|
बोट से दिखाई देता गदीसर झील का एक दृश्य |
|
गदीसर झील के बीच में बना एक देवल |
|
गदीसर झील के बीच में बने देवल |
|
बोट से दिखाई देती गदीसर झील |
|
गदीसर झील के बीच में बने देवल |
|
गदीसर झील के बीच में स्थित एक मंदिर |
|
बोट से दिखाई देती गदीसर झील |
|
गदीसर झील के बीच में बने देवल |
|
गदीसर झील के बीच में बना एक देवल |
|
गदीसर झील से दिखाई देता बोटिंग स्टैंड |
|
गदीसर झील से दिखाई देता बोटिंग स्टैंड |
|
गदीसर झील के बीच में बने देवल |
|
हमारी बोट से दिखाई देती गदीसर झील |
बोट में सवार होकर देवलों के पास जाकर हमने आस-पास के कई चित्र लिए, इस बीच जब हम अपनी नाव झील के किनारे ले गए तो ये कीचड में फँस गई ! पेडल मारने पर भी ये नहीं हिली, कोई हल ना मिलता देख हमने यहाँ से कुछ दूरी पर स्थित एक दूसरी नाव में सवार चालक को आवाज़ लगाईं ! वो बोला आप में से कोई नाव से नीचे उतरकर धक्का लगा लो, किनारे ज्यादा पानी नहीं है ! ये सुनकर, देवेन्द्र झील में उतरा और धक्का मारते हुए नाव को किनारे से बीच में ले आया, इसके बाद हमने फिर से झील में कई चक्कर लगाए, जब समय पूरा हो गया तो हम किनारे पर वापिस आ गए ! गदीसर झील में बोटिंग करके बहुत आनंद आया, शाम का समय होने के कारण ज्यादा तेज धूप नहीं थी और फोटो भी बढ़िया आ रहे थे ! नौकायान करके यहाँ से निकले तो भूरा राम को फ़ोन लगाकर झील के सामने वाली रोड पर बुला लिया ! प्रवेश द्वार से बाहर आने पर खान-पान की कई दुकानें है, हमें भूख नहीं लगी थी इसलिए यहाँ रुके बिना आगे बढ़ गए ! बाहर आते हुए रास्ते में एक बोर्ड दिखाई दिया, जिसपर अंकित जानकारी के अनुसार रोजाना शाम को यहाँ कठपुतली का शो (Puppet Show) होता है !
पहला शो शाम साधे छह बजे शुरू होता है जबकि दूसरा शो रात को साढ़े सात बजे शुरू होता है, दोनों शो आधे-2 घंटे के होते है ! मेरा अनुमान है ये शो बढ़िया होते होंगे, हमें अभी बड़ा बाग और जैन मंदिर देखने जाना था इसलिए हम ये शो नहीं देख पाए, लेकिन अगर आप जैसलमेर घूमने जा रहे हो तो इस कठपुतली शो को ज़रूर देखें ! इस झील के सामने वाली सड़क पर शाम के समय अक्सर जाम की समस्या बन जाती है इसलिए यातायात को नियंत्रित करने के लिए यहाँ पुलिस वाले खड़े रहते है ! हम बाहर पहुंचे तो भूरा राम सड़क के किनारे गाडी लेकर हमारी प्रतीक्षा कर रहा था, हम बिना समय गँवाए गाडी में सवार हुए और अपने अगले पड़ाव बड़ा बाग की ओर चल दिए जो यहाँ से 14 किलोमीटर की दूरी पर था ! बड़ा बाग एक विशाल पार्क है जिसे भाटी शासकों ने बनवाया था, ये बाग अपने शाही स्मारकों और छतरियों के लिए दुनिया भर में प्रसिद्द है, बड़ा बाग और इसकी छतरियों का वर्णन मैं अपनी यात्रा के अगले लेख में करूँगा !
|
गदीसर झील की जानकारी दर्शाता एक बोर्ड |
|
पपेट शो की जानकारी दर्शाता एक बोर्ड |
क्यों जाएँ (Why to go Jaisalmer): अगर आपको ऐतिहासिक इमारतें और किले देखना अच्छा लगता है, भारत में रहकर रेगिस्तान घूमना चाहते है तो निश्चित तौर पर राजस्थान में जैसलमेर का रुख कर सकते है !
कब जाएँ (Best time to go Jaisalmer): जैसलमेर जाने के लिए नवम्बर से फरवरी का महीना सबसे उत्तम है इस समय उत्तर भारत में तो कड़ाके की ठण्ड और बर्फ़बारी हो रही होती है लेकिन राजस्थान का मौसम बढ़िया रहता है ! इसलिए अधिकतर सैलानी राजस्थान का ही रुख करते है, गर्मी के मौसम में तो यहाँ बुरा हाल रहता है !
कैसे जाएँ (How to reach Jaisalmer): जैसलमेर देश के अलग-2 शहरों से रेल और सड़क मार्ग से जुड़ा है, देश की राजधानी दिल्ली से इसकी दूरी लगभग 980 किलोमीटर है जिसे आप ट्रेन से आसानी से तय कर सकते है ! दिल्ली से जैसलमेर के लिए कई ट्रेनें चलती है और इस दूरी को तय करने में लगभग 18 घंटे का समय लगता है ! अगर आप सड़क मार्ग से आना चाहे तो ये दूरी घटकर 815 किलोमीटर रह जाती है, सड़क मार्ग से भी देश के अलग-2 शहरों से बसें चलती है, आप निजी गाडी से भी जैसलमेर जा सकते है !
कहाँ रुके (Where to stay near Jaisalmer): जैसलमेर में रुकने के लिए कई विकल्प है, यहाँ 1000 रूपए से शुरू होकर 10000 रूपए तक के होटल आपको मिल जायेंगे ! आप अपनी सुविधा अनुसार होटल चुन सकते है ! खाने-पीने की सुविधा भी हर होटल में मिल जाती है, आप अपने स्वादानुसार भोजन ले सकते है !
क्या देखें (Places to see near Jaisalmer): जैसलमेर में देखने के लिए बहुत जगहें है जिसमें जैसलमेर का प्रसिद्द सोनार किला, पटवों की हवेली, सलीम सिंह की हवेली, नाथमल की हवेली, बड़ा बाग, गदीसर झील, जैन मंदिर, कुलधरा गाँव, सम, और साबा फोर्ट प्रमुख है ! इनमें से अधिकतर जगहें मुख्य शहर में ही है केवल कुलधरा, खाभा फोर्ट, और सम शहर से थोडा दूरी पर है ! जैसलमेर का सदर बाज़ार यहाँ के मुख्य बाजारों में से एक है, जहाँ से आप अपने साथ ले जाने के लिए राजस्थानी परिधान, और सजावट का सामान खरीद सकते है !
अगले भाग में जारी...
जैसलमेर यात्रा
किस्मत से भाई आपको भूरा राम और लकी मिल गए जो इतने अच्छे से गड़ीसर लेक घुमा दिए..बहुत बढ़िया भाई
ReplyDeleteप्रतीक भाई, जैसलमेर में आपको हर दर्शनीय स्थल पर गाइड मिल जायेंगे जो आपको अच्छे से घुमा देंगे ! वैसे जैसलमेर की गदीसर झील वाकई बहुत सुन्दर है और दर्शनीय स्थल है !
DeleteThis is amazing blog! 😍
ReplyDeleteधन्यवाद कपिल जी !
Delete