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कुलधरा गाँव में बने मार्ग |
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एक घर में रखी पुरानी बैलगाड़ी |
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मकान की बाहरी दीवार पर बने चित्र |
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मकान की छत से दिखाई देता एक दृश्य |
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गाँव के पिछले भाग में बना मार्ग |
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झाड़ियों में लगे फूल |
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गाँव में मार्ग के किनारे बना बैठने की एक सीट |
सैकड़ों वर्षों से वीरान पड़े इस गाँव को पर्यटकों की नज़र में लाने का श्रेय निश्चित तौर पर राजस्थान पर्यटन विभाग को जाता है जिसने यहाँ पर्यटन को बढाने के लिए पूरा जोर लगा दिया और प्रचार-प्रसार भी खूब किया ! वर्तमान में राजस्थान पर्यटन विभाग इस गाँव को सजाने-संवारने में लगा है ताकि अगले कुछ वर्षो या फिर महीनों में यहाँ आने वाले पर्यटक रात्रि विश्राम के लिए रुक भी सके ! कम से कम यहाँ हो रहे निर्माण कार्य को देखकर तो ऐसा ही लगता है, गाँव में जगह-2 नए कमरे बनाए गए है, कुछ कक्ष बनकर तैयार हो चुके है तो कुछ का निर्माण कार्य प्रगति पर है ! इस बात की पुष्टि हमें वहां रखे एक पत्थर पर अंकित कैफेटेरिया को देखकर हुई, वैसे इन कमरों की बनावट और गाँव की अन्य इमारतों को देखकर लगता नहीं है कि ये उतनी पुरानी है जितना इन्हें बताया जाता है ! या फिर हो सकता है कि संरक्षण के काम की वजह से गाँव का मूल रूप कहीं खो सा गया है ! इस गाँव में बनी इमारतों के पत्थर भी सुनहरे रंग के है और दरवाजों पर बढ़िया कारीगरी की गई है ! वैसे इस बात का अनुमान लगाकर भी मन रोमांचित हो जाता है कि जल्द ही जब यहाँ रुकने की व्यवस्था हो जाएगी तो रात को यहाँ की वीरान पड़ी गलियों में घूमने में आनंद आएगा, वैसे वर्तमान में तो यहाँ रात को आने पर पाबन्दी है !
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गाँव में स्थित एक मंदिर |
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गाँव में बने कुछ नए मकान |
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मकान की छत से दिखाई देता एक दृश्य |
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गाँव में बना एक नया मकान |
वैसे ये देखना भी काफी रोमांचक होगा कि जिस गाँव को डरावना बता कर अभी लोगों को रात को यहाँ आने नहीं दिया जाता वहां होटल बन जाने के बाद राजस्थान पर्यटन विभाग क्या कहकर लोगों को रुकने के लिए आमंत्रित करेगा ! गाँव में बनी इमारतों की छत पर खड़े होकर पूरे गाँव का नज़ारा दिखाई देता है, दूर तक उजड़े मकानों के मलवे दिखाई देते है, और कई किलोमीटर तक का दृश्य एकदम साफ़ दिखाई देता है ! इस गाँव के बीचों-बीच एक मंदिर भी है, घूमते हुए हम इस मंदिर में भी गए और फिर गाँव के घुमावदार मार्ग से होते हुए काफी दूर तक निकल गए, वैसे तो अधिकतर मकान खाली पड़े है लेकिन कुछ मकानों में फिर भी कुछ पुरानी वस्तुएं दिखाई दे जाती है ! गाँव में प्रवेश करते ही सामने के कुछ मकानों में तो तहखाने भी बने है और लकड़ी के छत वाले मकान भी, यहाँ घूमते हुए उस समय की कल्पना कीजिये जब यहाँ लोग रहते होंगे ! गाँव में आधा-पौना घंटा घूमने के बाद हमने एक जगह बैठकर हल्का जलपान किया, तेज भूख लगी थी और प्यास भी जोरों की लगी थी ! साइकिल से आए कुछ लोगों का ग्रुप भी हमें यहाँ मिला, महाराष्ट्र से आए ये लोग जैसलमेर से यहाँ साइकिल पर ही आए थे और आज दिनभर ये साइकिल पर ही घूमने वाले थे !
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कैफ़ेटिरिया का एक बोर्ड |
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गाँव की चौपाल से लिया एक दृश्य |
इनका जज्बा देखकर वाकई अच्छा लगा, कुछ देर इनसे बातचीत करने के बाद हम पार्किंग की ओर चल दिए ! कुल मिलाकर हमने यहाँ लगभग घंटे भर से अधिक का समय बिताया ! जब हम यहाँ आए थे तो गिनती की कुछ गाड़ियाँ खड़ी थी, लेकिन अब पार्किंग स्थल भर चुका था ! भरी दोपहर में यहाँ से चलने का मन तो नहीं हो रहा था लेकिन हमें अभी भी कई जगहें देखनी थी, वैसे यहाँ खड़े होकर दूर तक का नज़ारा एकदम साफ़ दिखाई दे रहा था ! कुछ देर बाद हम कुलधरा परिसर से निकलकर मुख्य मार्ग पर पहुँच चुके थे, अब हमारा अगला पड़ाव खाबा फोर्ट था जो यहाँ से लगभग 16 किलोमीटर दूर था ! कुछ ही देर में हम खाबा फोर्ट जाने वाले मार्ग पर पहुँच गए, रास्ता ज्यादा चौड़ा नहीं था लेकिन शानदार बना था, यहाँ भी सड़क के किनारे कंटीली झाड़ियों की भरमार थी ! खाबा फोर्ट और इसके आस-पास की जगहों का वर्णन मैं यात्रा के अगले लेख में करूँगा, फिल्हाल इस लेख पर यहीं विराम लगाते हुए आपसे विदा लेता हूँ जल्द ही आपसे अगले लेख में मुलाकात होगी !
क्यों जाएँ (Why to go Jaisalmer): अगर आपको ऐतिहासिक इमारतें और किले देखना अच्छा लगता है, भारत में रहकर रेगिस्तान घूमना चाहते है तो निश्चित तौर पर राजस्थान में जैसलमेर का रुख कर सकते है !
कब जाएँ (Best time to go Jaisalmer): जैसलमेर जाने के लिए नवम्बर से फरवरी का महीना सबसे उत्तम है इस समय उत्तर भारत में तो कड़ाके की ठण्ड और बर्फ़बारी हो रही होती है लेकिन राजस्थान का मौसम बढ़िया रहता है ! इसलिए अधिकतर सैलानी राजस्थान का ही रुख करते है, गर्मी के मौसम में तो यहाँ बुरा हाल रहता है !
कैसे जाएँ (How to reach Jaisalmer): जैसलमेर देश के अलग-2 शहरों से रेल और सड़क मार्ग से जुड़ा है, देश की राजधानी दिल्ली से इसकी दूरी लगभग 980 किलोमीटर है जिसे आप ट्रेन से आसानी से तय कर सकते है ! दिल्ली से जैसलमेर के लिए कई ट्रेनें चलती है और इस दूरी को तय करने में लगभग 18 घंटे का समय लगता है ! अगर आप सड़क मार्ग से आना चाहे तो ये दूरी घटकर 815 किलोमीटर रह जाती है, सड़क मार्ग से भी देश के अलग-2 शहरों से बसें चलती है, आप निजी गाडी से भी जैसलमेर जा सकते है !
कहाँ रुके (Where to stay near Jaisalmer): जैसलमेर में रुकने के लिए कई विकल्प है, यहाँ 1000 रूपए से शुरू होकर 10000 रूपए तक के होटल आपको मिल जायेंगे ! आप अपनी सुविधा अनुसार होटल चुन सकते है ! खाने-पीने की सुविधा भी हर होटल में मिल जाती है, आप अपने स्वादानुसार भोजन ले सकते है !
क्या देखें (Places to see near Jaisalmer): जैसलमेर में देखने के लिए बहुत जगहें है जिसमें जैसलमेर का प्रसिद्द सोनार किला, पटवों की हवेली, सलीम सिंह की हवेली, नाथमल की हवेली, बड़ा बाग, गदीसर झील, जैन मंदिर, कुलधरा गाँव, सम, और साबा फोर्ट प्रमुख है ! इनमें से अधिकतर जगहें मुख्य शहर में ही है केवल कुलधरा, खाभा फोर्ट, और सम शहर से थोडा दूरी पर है ! जैसलमेर का सदर बाज़ार यहाँ के मुख्य बाजारों में से एक है, जहाँ से आप अपने साथ ले जाने के लिए राजस्थानी परिधान, और सजावट का सामान खरीद सकते है !
अगले भाग में जारी...
जैसलमेर यात्रा
वाह भूरा राम की कार और रिक्षा से इतर आपको बढ़िया ऑप्शन bike का मिल गया....कुलधारा के सभी फोटो बढ़िया लगे...
ReplyDeleteबिलकुल सही कहा प्रतीक भाई, बाइक से घूमने का भी अलग ही आनंद है ! जानकर अच्छा लगा कि फोटो आपको पसंद आए !
Deleteअच्छी फोटो. शोर ज्यादा है कुलधरा का वैसे नाम बड़े और दर्शन छोटे ! वहां के किस्से भी भ्रमात्मक लगे. खाबा कुछ बेहतर लगा.
ReplyDeleteकिस्से तो बनावटी लगे लेकिन आपको जगह में क्या कमी लगी ?
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