जैसलमेर दुर्ग के मंदिर और अन्य दर्शनीय स्थल (Local Sight Seen in Jaisalmer)

मंगलवार, 26 दिसंबर 2017

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यात्रा के पिछले लेख में आप जैसलमेर के कुछ पांच सितारा होटलों के बारे में पढ़ चुके है, सम से वापिस आकर हमने बाइक वापिस की और सोनार किले के अखय पोल के सामने पहुँच गए ! अखय पोल इस दुर्ग का वही प्रवेश द्वार है जिससे होते हुए कल हमने सोनार किले का भ्रमण किया था, अब आगे, रात के समय किले के प्रवेश द्वार को कृत्रिम रोशनी से सजाया गया था जो देखने में बहुत सुन्दर लग रही थी ! मुख्य द्वार से होते हुए हम किला परिसर में दाखिल हुए, थोडा अन्दर जाते ही बाईं तरफ बने पार्किंग क्षेत्र को पार करके आगे ऊँचाई पर इसी तरफ एक मंदिर स्थित है कल हम ये मंदिर नहीं देख पाए थे लेकिन आज हमारे पास पर्याप्त समय था तो इस मंदिर में दर्शन के लिए चल दिए ! चढ़ाई भरे मार्ग से होते हुए कुछ ही देर में हम मंदिर के सामने खड़े थे, मंदिर के बाहरी प्रवेश द्वार के पास जूते उतारकर हम मंदिर परिसर में दाखिल हुए ! मुख्य भवन के सामने एक खुला बरामदा है जहाँ बैठकर लोग भक्ति में ध्यान लगाते है, भगवान् श्रीकृष्ण को समर्पित इस मंदिर के मुख्य भवन में द्वारकाधीश की प्रतिमा स्थापित है, यहाँ द्वारकाधीश को दाढ़ी-मूंछ वाले रूप में दिखाया गया है ! 

जैसलमेर दुर्ग के अन्दर मंदिर का एक दृश्य 

मुख्य भवन ज्यादा बड़ा नहीं है एक बार में 3-4 लोगों से ज्यादा लोग नहीं बैठ सकते, लेकिन फिर भी मंदिर की काफी मान्यता है ! भक्तों ने यहाँ चाँदी के काफी मुकुट चढ़ाए हुए है, लोग अक्सर यहाँ मन्नत लेकर आते है और इच्छा पूरे होने पर भेंट स्वरुप चाँदी के मुकुट और अन्य वस्तुएं चढाते है ! बरामदे से होते हुए हमने मुख्य भवन में जाकर पहले पूजा की और फिर बाहर आकर ध्यान लगाने बैठ गए ! मंदिर में इस समय भजन बज रहे थे जो मन को भक्तिरस से सराबोर कर रहे थे, ऐसी इच्छा हो रही थी कि सबकुछ भूलकर यहाँ घंटो तक ऐसे ही बैठे रहो ! दिनभर की भागदौड़ से मन काफी व्याकुल हो गया था, कुछ देर यहाँ बैठने के बाद मन शांत हुआ, यहाँ बिताया समय इस यात्रा के बेहतरीन पलों में से एक थे ! जिस आनंद ही अनुभूति मुझे इस मंदिर में हुई, उसे मैं ही जानता हूँ ! आधा घंटा यहाँ बैठने के बाद हम मंदिर से बाहर आ गए और किले के अन्दर चल दिए, सोनार किले के भ्रमण के दौरान में आपको बता चुका हूँ कि ये एक रिहायशी किला है यहाँ आज भी काफी लोग रहते है ! संकरी गलियों से होते हुए हम किले के अन्दर घूमते रहे, यहाँ अधिकतर छोटे-2 मकान है, लेकिन कुछ बड़े घर भी है

यहाँ के लोगों का रहन सहन और दिनचर्या मुझे अपने जैसी ही लगी, साधारण सा रहन-सहन और कोई बनावटीपन नहीं ! कई मकानों की बाहरी दीवारों पर बढ़िया कारीगरी की गई थी, इस बीच घूमते हुए हमें यहाँ कुछ और मंदिर भी दिखाई दिए, कुछ मंदिरों के बाहर से ही हाथ जोड़ कर निकल गए तो कुछ के अन्दर जाकर दर्शन किये ! इस बीच हमने टहलते हुए हमने अधिकतर घरों की बाहरी दीवारों पर विवाह के निमंत्रण पत्र देखे, दीवार पर छपे इस निमंत्रण सन्देश में भगवान् के चित्र के साथ वर-वधू के नाम और विवाह तारीख लिखी हुई थी ! सबसे ऊपरी भाग में स्वागत सन्देश भी लिखा था, अधिकतर दीवारों पर लिखा होने के कारण मैंने अनुमान लगाया कि शायद यहाँ विवाह के समय घर की बाहरी दीवारों पर ऐसे चित्र बनाने का रिवाज होता होगा ! अगर किसी मित्र को इस रिवाज से सम्बंधित जानकारी हो तो कृप्या लेख के नीचे कमेंट बॉक्स में सूचित करें ! इन्हीं रिहायशी इलाकों में कुछ होटल भी थे तो कुछ लोगों ने होम स्टे की सुविधा दे रखी थी, मुझे ये एक अतिरिक्त जानकारी मिली जो अगली बार जैसलमेर जाने पर रुकने के लिए काफी लाभदायक होगी ! 

जैसलमेर दुर्ग के प्रवेश द्वार का एक दृश्य 

जैसलमेर दुर्ग के अन्दर का एक दृश्य 

जैसलमेर दुर्ग के अन्दर का एक दृश्य 

जैसलमेर दुर्ग के अन्दर मंदिर का एक दृश्य 

जैसलमेर दुर्ग के अन्दर मंदिर का एक दृश्य 
इस किले के चारों कोनों पर तोपें भी रखी हुई है, इन तोपों तक जाने का रास्ता रिहायशी इलाकों की इन्हीं संकरी गलियों से होकर निकलता है, हमने 4 में से 3 तोपें देखी ! गलियों में भटकते हुए हमें कुछ बंद रास्ते भी मिले, इस बीच हम टहलते हुए लक्ष्मी नारायण मंदिर पहुंचे, मंदिर की बनावट देखकर ही हमें अंदाजा हो गया था कि ये एक प्राचीन मंदिर है ! अपने जूते बाहर उतारकर हम मंदिर परिसर में दाखिल हुए, इस समय संध्या आरती चल रही थी हम भी जाकर इस आरती में शामिल हो गए ! आरती ख़त्म होने के बाद भी हम काफी देर तक वहीँ बैठे रहे, इस दौरान वहां लोग आते जाते रहे ! हमने मंदिर में बैठे कुछ स्थानीय लोगों से मंदिर के इतिहास के बारे में पूछा तो पता चला कि ये मंदिर कई शताब्दियों पुराना है !
जैसलमेर दुर्ग के अन्दर मंदिर का एक दृश्य 

जैसलमेर दुर्ग के अन्दर का एक दृश्य 

जैसलमेर दुर्ग के अन्दर का एक दृश्य 

जैसलमेर दुर्ग के अन्दर का एक दृश्य 

जैसलमेर दुर्ग के अन्दर का एक दृश्य 

दीवार पर लगा शादी का एक निमंत्रण पत्र

जैसलमेर दुर्ग के अन्दर एक होटल

दीवार पर लगा विवाह का एक निमंत्रण पत्र
प्राप्त जानकारी के अनुसार जैसलमेर दुर्ग में स्थित ये एक महत्वपूर्ण हिन्दु मंदिर है, जिसका आधार मूल रूप में पंचयतन के रूप में था। इस मंदिर का निर्माण जैसलमेर दुर्ग के निर्माण के समय ही राव जैसल द्वारा कराया गया था । मंदिर का सभामंडप किले की अन्य इमारतों के समकालीन है, इसका निर्माण 12वीं शताब्दी में हुआ था। अलाउद्धीन के आक्रमण के समय इस मंदिर का एक बङा भाग ध्वस्त कर दिया गया था । लेकिन 15वीं शताब्दी में महारावल लक्ष्मण द्वारा इसका जीर्णोधार करवाया गया। मंदिर के सभा मंडप के खंभों पर घटपल्लव आकृतियाँ बनी है। मंदिर के गर्भ गृह, गूढ़ मंडप तथा अन्य भागों का भी कई बार जीर्णोधार करवाया गया। मंदिर के दरवाजों पर जैन तीर्थकरों की प्रतिमाएँ भी उत्कीर्ण है तथा गणेश मंदिर की छत में भगवान् विष्णु की सर्पो पर विराजमान मूर्ति है। इस मंदिर का प्रांगण काफी खुला है और पिछले भाग में कुछ निर्माण कार्य चल रहा था ! हम इस मंदिर से दर्शन करके निकले तो रात के साढ़े नौ बज रहे थे, अधिकतर लोग अपने घरों में जा चुके थे, लेकिन फिर भी कुछ घरों के आगे लोगों ने दुकानें भी खोल रखी थी जहाँ किताबें, साज-सज्जा की वस्तुएं और अन्य सामान बिक्री के लिए रखी थी !
जैसलमेर दुर्ग की दीवार पर लगी एक तोप

लक्ष्मी नारायण मंदिर के बाहर का एक दृश्य

लक्ष्मी नारायण मंदिर के बाहर का एक दृश्य
दीवार पर लगा विवाह का एक निमंत्रण पत्र 
पूछताछ में एक स्थानीय व्यक्ति से हमें पता चला कि किले के प्रवेश द्वार रात को 10 बजे बंद हो जाते है, हम अब तक किले का अधिकतर भाग घूम ही चुके थे इसलिए यहाँ से बाहर जाने वाले मार्ग पर चल दिए ! स्टेशन के लिए प्रस्थान करने से पहले हमें रात्रि भोजन भी करना था, यहाँ आने से पहले हमने बस कुल्हड़ वाला दूध ही पिया था ! इसलिए यहाँ से निकलकर हम फिर से हनुमान चौराहे की ओर चल दिए, वहां खाने-पीने के बढ़िया विकल्प थे और हमारी धर्मशाला भी वहां से ज्यादा दूर नहीं थी ! 10-15 मिनट बाद हम मंदिर पैलेस के पास एक होटल में बैठे अपने खाने की प्रतीक्षा कर रहे थे और फिर अगले आधे घंटे में हम खा-पीकर फारिक हो चुके थे ! यहाँ से निकले तो धर्मशाला जाकर अपना सामान लिया और वापिस इसी चौराहे पर आ गए ! फिर एक ऑटो में सवार होकर हम स्टेशन के लिए निकल पड़े, मुश्किल से 10 मिनट का समय लगा और हम स्टेशन के सामने खड़े थे, समय रात के 11 बज रहे थे ! हमारी ट्रेन रात्रि 11 बजकर 55 मिनट पर थी, मतलब अभी एक घंटा बाकि था, करने को कुछ था नहीं तो स्टेशन पर एक खाली जगह देखकर बैठ गए ! 
जैसलमेर रेलवे स्टेशन का एक दृश्य 

जैसलमेर रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म का एक दृश्य

जैसलमेर रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म का एक दृश्य

लीलण राजस्थान लोक देवता की प्रिय घोड़ी का नाम था 
कुछ देर तो आस-पास की गतिविधियों पर नज़र रखी, लेकिन खाली बैठे-2 नींद की झपकियाँ भी आने लगी ! नींद से बचने के लिए प्लेटफार्म पर टहलना शुरू कर दिया, इस बीच खाली दिमाग में जैसलमेर भ्रमण के चित्र स्मृति पटल पर आने लगे ! ये यात्रा बड़ी मजेदार रही थी, पहले दिन होटल ढूँढने में देरी के कारण एक बार तो लगने लगा था कि शायद पूरा जैसलमेर नहीं घूम पाएंगे, लेकिन अंत भला तो सब भला ! हम यहाँ की अधिकतर जगहें देख चुके थे, कुल मिलाकर अभी तक हमारी ये यात्रा सफलतापूर्वक चल रही है, उम्मीद है बीकानेर में भी बढ़िया समय कटेगा ! हमारे ट्रेन की उद्घोषणा अभी नहीं हुई थी, हालांकि, ये ट्रेन सबसे आखिरी वाले प्लेटफार्म पर खड़ी थी, लेकिन जानकारी के अभाव में हमने ज्यादा माथा-पच्ची नहीं की ! रात पौने बारह बजे जब इस ट्रेन के आखिरी प्लेटफार्म पर खड़े होने की उद्घोषणा हुई तो भगदड़ सी मच गई, खैर, हमारी सीटें कन्फर्म थी तो कोई परेशानी वाली बात नहीं थी ! इस ट्रेन का नाम लीलण एक्सप्रेस है जो राजस्थान के लोक देवता की प्रिय घोड़ी का नाम था, ये जानकारी ट्रेन के ऊपर ही लिखी हुई थी ! ट्रेन अपने निर्धारित समय पर जैसलमेर से चल पड़ी, आज खूब पैदल चले थे इसलिए अच्छी-खासी थकान हो गई थी, अपनी बर्थ पर लेटते ही कब नींद आ गई कुछ याद नहीं ! चलिए, इसके साथ ही यात्रा के इस लेख पर विराम लगाता हूँ, अगले लेख में आपको बीकानेर की घुमक्कड़ी करवाऊंगा !

क्यों जाएँ (Why to go Jaisalmer): अगर आपको ऐतिहासिक इमारतें और किले देखना अच्छा लगता है, भारत में रहकर रेगिस्तान घूमना चाहते है तो निश्चित तौर पर राजस्थान में जैसलमेर का रुख कर सकते है !

कब जाएँ (Best time to go Jaisalmer): जैसलमेर जाने के लिए नवम्बर से फरवरी का महीना सबसे उत्तम है इस समय उत्तर भारत में तो कड़ाके की ठण्ड और बर्फ़बारी हो रही होती है लेकिन राजस्थान का मौसम बढ़िया रहता है ! इसलिए अधिकतर सैलानी राजस्थान का ही रुख करते है, गर्मी के मौसम में तो यहाँ बुरा हाल रहता है !

कैसे जाएँ (How to reach Jaisalmer): जैसलमेर देश के अलग-2 शहरों से रेल और सड़क मार्ग से जुड़ा है, देश की राजधानी दिल्ली से इसकी दूरी लगभग 980 किलोमीटर है जिसे आप ट्रेन से आसानी से तय कर सकते है ! दिल्ली से जैसलमेर के लिए कई ट्रेनें चलती है और इस दूरी को तय करने में लगभग 18 घंटे का समय लगता है ! अगर आप सड़क मार्ग से आना चाहे तो ये दूरी घटकर 815 किलोमीटर रह जाती है, सड़क मार्ग से भी देश के अलग-2 शहरों से बसें चलती है, आप निजी गाडी से भी जैसलमेर जा सकते है !


कहाँ रुके (Where to stay near Jaisalmer): जैसलमेर में रुकने के लिए कई विकल्प है, यहाँ 1000 रूपए से शुरू होकर 10000 रूपए तक के होटल आपको मिल जायेंगे ! आप अपनी सुविधा अनुसार होटल चुन सकते है ! खाने-पीने की सुविधा भी हर होटल में मिल जाती है, आप अपने स्वादानुसार भोजन ले सकते है !


क्या देखें (Places to see near Jaisalmer): जैसलमेर में देखने के लिए बहुत जगहें है जिसमें जैसलमेर का प्रसिद्द सोनार किला, पटवों की हवेली, सलीम सिंह की हवेली, नाथमल की हवेली, बड़ा बाग, गदीसर झील, जैन मंदिर, कुलधरा गाँव, सम, और khaabha साबा फोर्ट प्रमुख है ! इनमें से अधिकतर जगहें मुख्य शहर में ही है केवल कुलधरा, खाभा फोर्ट, और सम शहर से थोडा दूरी पर है ! जैसलमेर का सदर बाज़ार यहाँ के मुख्य बाजारों में से एक है, जहाँ से आप अपने साथ ले जाने के लिए राजस्थानी परिधान, और सजावट का सामान खरीद सकते है !

जैसलमेर यात्रा समाप्त...

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जैसलमेर यात्रा

  1. जोधपुर से जैसलमेर की ट्रेन यात्रा (A Journey from Jodhpur to Jaisalmer)
  2. जैसलमेर के सोनार किले की सैर (A Visit to Jaisalmer Fort)
  3. जैसलमेर की शानदार हवेलियाँ (Beautiful Haveli’s of Jaisalmer)
  4. जैसलमेर की गदीसर झील (Gadisar Lake of Jaisalmer)
  5. जैसलमेर का बड़ा बाग (Bada Bagh of Jaisalmer)
  6. लोद्रवा के जैन मंदिर (Jain Temples of Lodruva)
  7. लोद्रवा का चुंधी-गणेश मंदिर (Chundhi Ganesh Temple of Lodruva)
  8. कुलधरा – एक शापित गाँव (Kuldhara – A Haunted Village)
  9. खाभा फोर्ट – पालीवालों की नगरी (Khabha Fort of Jaisalmer)
  10. खाभा रिसोर्ट और सम में रेत के टीले (Khabha Resort and Sam Sand Dunes)
  11. जैसलमेर के पांच सितारा होटल (Five Star Hotels in Jaisalmer)
  12. जैसलमेर दुर्ग के मंदिर और अन्य दर्शनीय स्थल (Local Sight Seen in Jaisalmer)
Pradeep Chauhan

घूमने का शौक आख़िर किसे नहीं होता, अक्सर लोग छुट्टियाँ मिलते ही कहीं ना कहीं घूमने जाने का विचार बनाने लगते है ! पर कुछ लोग समय के अभाव में तो कुछ लोग जानकारी के अभाव में बहुत सी अनछूई जगहें देखने से वंचित रह जाते है ! एक बार घूमते हुए ऐसे ही मन में विचार आया कि क्यूँ ना मैं अपने यात्रा अनुभव लोगों से साझा करूँ ! बस उसी दिन से अपने यात्रा विवरण को शब्दों के माध्यम से सहेजने में लगा हूँ ! घूमने जाने की इच्छा तो हमेशा रहती है, इसलिए अपनी व्यस्त ज़िंदगी से जैसे भी बन पड़ता है थोड़ा समय निकाल कर कहीं घूमने चला जाता हूँ ! फिलहाल मैं गुड़गाँव में एक निजी कंपनी में कार्यरत हूँ !

4 Comments

  1. लीलण नाम राजस्थान के लोक देवता की घोड़ी का अच्छा लगा और पढ़कर कुछ नया जानने को मिला...जैसलमेर मंदिर और किले के रात्रि कालीन दृश्य मस्त है...बीकानेर की प्रतीक्षा में

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    1. धन्यवाद प्रतीक भाई, बीकानेर के लेख भी जल्द ही प्रकाशित करूँगा !

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  2. बहुत बढ़िया पोस्ट चौहान साहब .इधर कभी गया नहीं जब जाऊँगा तो आपकी ये पोस्ट काम आएगी .

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    1. शानदार जगह है, मेरा मन तो इधर दोबारा जाने का है !

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