मंगलवार, 23 मार्च 2021
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वैसे देखा जाए तो पर्यटन की दृष्टि से उत्तर प्रदेश के पूर्वाञ्चल में अपार संभावनाएं है यहाँ घूमने-फिरने की जगहें तो बहुत है लेकिन पर्यटकों की श्रेणी में बस कुछ चुनिंदा शहर ही है जिसमें वाराणसी, गोरखपुर और मिर्जापुर प्रमुख है ! पर्यटन की दृष्टि से पूर्वाञ्चल में घूमने के लिए अनेकों स्थान है, लेकिन जानकारी के अभाव और उत्तराखंड पर्यटन विभाग द्वारा उन स्थानों का सही ढंग से प्रचार-प्रसार ना कर पाना कहीं ना कहीं इसके लिए जिम्मेदार है ! इनमें से कुछ दर्शनीय स्थलों के बारे में हम इस यात्रा सीरीज में आगे बात करेंगे, लेकिन उससे पहले मैं आपको पूर्वाञ्चल से संबंधित कुछ जानकारी दे देता हूँ, वैसे तो मिर्जापुर वेब सीरीज देखने के बाद शायद ही कोई ऐसा होगा जिसके लिए पूर्वाञ्चल नाम नया हो ! बोली और रहन-सहन के आधार पर पूर्वी उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों को सम्मिलित करके एक अलग राज्य बनाने की मांग काफी समय से उठती रही है इसी क्षेत्र को पूर्वाञ्चल के नाम से जाना जाता है ! पूर्वाञ्चल में आने वाले शहरों में वाराणसी, जौनपुर, मिर्जापुर, सोनभद्र, ग़ाज़ीपुर, गोरखपुर, कुशीनगर, बलिया, भदोही, देवरिया, आजमगढ़, मऊ, महाराजगंज, बस्ती, सिद्धार्थ नगर और संत कबीर नगर शामिल है ! वैसे तो इनमें से हर शहर में घूमने के लिए कुछ न कुछ है लेकिन 2-3 शहरों को छोड़कर बाकि जगहें ज्यादा प्रसिद्ध नहीं है ! वैसे अब तो पूर्वाञ्चल एक्स्प्रेस वे भी कुछ समय में शुरू होने जा रहा है जो लखनऊ से निकलकर पूर्वाञ्चल के अधिकतर शहरों से निकलता हुआ ग़ाज़ीपुर तक जाएगा ! मैं अलग-2 समय पर पूर्वाञ्चल के इन शहरों में जाता रहा हूँ और यात्रा की इस सीरीज में मैं आपको धीरे-2 इन शहरों के प्रसिद्ध स्थानों की सैर करवाऊँगा !
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महावीर मंदिर के अंदर का एक दृश्य |
बात मार्च 2021 के तीसरे सप्ताह की है जब मैं अपने परिवार संग पूर्वाञ्चल में था, ग़ाज़ीपुर जिले का एक ब्लॉक है सादात ! मात्र 12-13 हजार की आबादी वाला ये कस्बा क्षेत्रफल की दृष्टि से भी बहुत बड़ा नहीं है, लेकिन यहाँ का शांत माहौल मुझे बहुत पसंद है ! इस यात्रा के दौरान मैं सादात में ही रुका था इसलिए मैं अपनी ये पूरी यात्रा सादात को आधार बनाकर ही करूंगा ! तो चलिए शुरुआत करते है सादात के स्थानीय भ्रमण से, वैसे तो सादात में देखने के लिए बहुत कुछ है, फिर वो चाहे यहाँ के प्राचीन मंदिर हो, रेलवे स्टेशन, अंग्रेजों के जमाने की इमारतें, या फिर स्थानीय बाजार ! हर जगह घूमने का एक अलग ही आनंद है अगर आप इन जगहों पर बारी-2 से घूमना शुरू करो तो 3-4 दिन लग जाएंगे ! यात्रा के इस लेख में मैं आपको यहाँ के कुछ स्थानीय मंदिरों में भ्रमण के लिए लेकर चलूँगा, मंगलवार 23 मार्च का दिन था, जब अपने काम से फ़ारिक होकर मैं शाम की चाय पीने बैठा था, अचानक ही मैंने घर पर बाकि लोगों से कहीं आस-पास घूमने चलने के लिए पूछा ! घूमने का नाम सुनकर सब तैयार हो गए, बच्चे तो बस मौके की तलाश में थे उन्हें जगह से कोई मतलब नहीं था, बस गाड़ी में घूमने जाना था ! जगह को लेकर सब असमंजस में थे तो हमने सोचा शाम का समय है आस-पास के मंदिरों में ही चल देते है, पूजा के साथ-2 थोड़ा घूमना-फिरना भी हो जाएगा ! अगले 10-15 मिनट में सभी लोग चलने के लिए तैयार हो गए, मैं भी चाय खत्म करके तैयार हो गया !
घर से निकलकर सबसे पहले हम सादात रेलवे स्टेशन के सामने स्थित महावीर मंदिर पहुँचे ! स्थानीय लोग इसे हनुमान मंदिर के नाम से भी जानते है, वैसे तो हमारे घर से इस मंदिर की दूरी लगभग 2 किलोमीटर है, लेकिन रास्ता ऊबड़-खाबड़ होने की वजह से थोड़ा समय लग ही जाता है, हमें भी मंदिर पहुँचने में 10 मिनट लगे ! गाड़ी खड़ी करके मंदिर के सामने पहुंचे, यहाँ एक बरगद का पेड़ है जिससे थोड़ा आगे बढ़ने पर एक पोखर भी है, साफ-सफाई के अभाव में पानी ज्यादा साफ नहीं है लेकिन पोखर में नीचे जाने के लिए सीढ़ियाँ बनी है ! इस पोखर के उस पार सादात का रेलवे स्टेशन दिखाई देता है जिसकी पुरानी इमारत तो छोटी है लेकिन नई इमारत जो काफी बड़ी है अभी निर्माणाधीन है, जब ये बनकर तैयार होगी तो इस स्टेशन की रौनक देखने लायक होगी ! यहाँ एक्स्प्रेस ट्रेनों का आवागमन बहुत ज्यादा नहीं है, लेकिन लोकल ट्रेनें नियमित अंतराल पर आती रहती है ! स्टेशन के बाहर बनी लकड़ी की कुछ अस्थायी दुकानें यहाँ से दिखाई देती है, फिलहाल स्टेशन के बाहर बहुत ज्यादा चहल-पहल नहीं है ! ट्रेन आने पर कुछ देर के लिए स्टेशन के सामने भीड़ दिखाई देती है लेकिन अगले कुछ ही मिनटों में वो छँट भी जाती है ! मंदिर में जाने से पहले हम पोखर और बरगद के बीच में लगे एक नलकूप पर जाकर बारी-2 से हाथ पैर धोने में लगे है ! फिर कुछ सीढ़ियाँ चढ़कर हम मंदिर के बाहर वाले बरामदे में पहुँचे, मंदिर के प्रवेश द्वार के दोनों ओर हनुमान जी और शंकर जी के चित्र बने है जबकि द्वार के ठीक ऊपर एक घड़ी लगी है !
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मंदिर से दिखाई देता सादात रेलवे स्टेशन |
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मंदिर के सामने स्थित पोखर |
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मंदिर तक आने का मार्ग |
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मंदिर से दिखाई देता पोखर |
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पोखर तक जाने के लिए बनी सीढ़ियाँ |
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मंदिर के सामने बरगद का पेड़ |
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मंदिर में जाने का प्रवेश द्वार |
प्रवेश द्वार से होते हुए हम मंदिर परिसर में पहुंचे, अंदर जाते ही द्वार के ठीक सामने एक बड़ा घंटा लगा है जिसके नीचे से होते हुए हम आगे बढ़ गए ! मंदिर परिसर में द्वार के ठीक सामने दो अलग-2 मंदिर बने है, हमारे दाएं वाले मंदिर में एक चबूतरे पर हनुमान जी की मूर्ति स्थापित है जबकि बाईं ओर के मंदिर में शिवलिंग की स्थापना की गई है, वैसे तो मंदिर परिसर ज्यादा बड़ा नहीं है लेकिन पूजा करने के लिए पर्याप्त स्थान है ! हनुमान जी के मंदिर में एक पुजारी बैठे थे जो पूजा करने में लोगों की सहायता कर रहे थे क्योंकि इस कक्ष में लोगों को अंदर जाने की अनुमति नहीं थी ! पंडित जी शायद इसी कक्ष में रहते भी है, मूर्ति के पीछे टंगे उनके कपड़ों को देखकर तो ऐसा ही लगा और शायद लोगों को अंदर ना जाने देने की वजह भी यही हो ! हनुमान जी की मूर्ति के ऊपर कई घंटियाँ बंधी थी जो शायद लोगों ने अपनी मन्नतें पूरी होने पर चढ़ाई होंगी, केसरी रंग से रंगी हनुमान जी की मूर्ति को लाल कपड़े से ढका गया है ! अधिकतर लोग पहले हनुमान जी के दर्शन करने ही आ रहे है, क्योंकि ये मंदिर उन्हीं को समर्पित है, शायद इसलिए भी शिवलिंग वाले मंदिर में कोई पुजारी नहीं था ! हमने बारी-2 से दोनों मंदिरों में जाकर पहले पूजा की, और फिर परिक्रमा लगाई, इन दोनों मंदिरों के बगल में एक अन्य ढांचा तैयार किया जा रहा है, जिसकी बनावट देखकर लगता है भविष्य में यहाँ भी एक मंदिर बनेगा, लेकिन फिलहाल निर्माण कार्य ढांचा बनाने के बाद शायद संसाधनों के अभाव में रोक दिया गया है !
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प्रवेश द्वार से दिखाई देता मंदिर परिसर |
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हनुमान जी के मंदिर का एक दृश्य |
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मंदिर परिसर का एक दृश्य |
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शिव मंदिर का एक दृश्य |
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मंदिर परिसर का एक और दृश्य |
इस मंदिर की स्थापना को लेकर मुझे कोई सटीक जानकारी तो नहीं मिली लेकिन फिर भी मंदिर की इमारत को देखकर ये काफी पुराना लगता है, हालांकि, मंदिर का बाहरी प्रवेश द्वार बाद में बनाया गया है ! जिस समय हम मंदिर में पहुंचे, हमारे अलावा यहाँ गिनती के 2-3 लोग ही थे, लेकिन जैसे-2 शाम होने लगी, यहाँ आने वाले लोगों की संख्या भी बढ़ती रही, मंदिर परिसर में कुछ देर घूमने के बाद हम बाहर आ गए ! गाड़ी मोड़ते समय मैंने मंदिर के बगल में एक कुआं देखा, जिसके चारों ओर चबूतरा बनाया गया था, फिलहाल इसमें ज्यादा पानी नहीं था लेकिन बनावट से ये कुआं भी प्राचीन लग रहा था ! यहाँ से चले तो हमारा अगला पड़ाव शंकर जी का मंदिर था जो स्टेशन से बाजार जाते हुए पुलिस स्टेशन के पीछे एक गली में है ! महावीर मंदिर से यहाँ पहुँचने में हमें बमुश्किल 2-3 मिनट का समय लगा, गाड़ी मंदिर के सामने गली में खड़ी करके हम मंदिर के प्रवेश द्वार की ओर चल दिए, जो यहाँ से 50-60 कदम की दूरी पर था ! यहाँ भी मंदिर के सामने एक बड़ा बरगद का पेड़ और उसके पास एक नलकूप लगा था, जबकि मंदिर के बगल में यहाँ भी एक पोखर था ! मंदिर के प्रवेश द्वार पर बाहर से कुंडी लगी थी और अंदर भी कोई दिखाई नहीं दे रहा था, कुंडी खोलकर हम अंदर गए और भगवान के दर्शन करते हुए इसके बगल वाले दूसरे मंदिर में चले गए !
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दूर से दिखाई देता कुआं |
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अंदर से भी कुआं देख लो |
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कुएं से दिखाई देता पोखर |
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कुएं से दिखाई देता एक और दृश्य |
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दूर दिखाई देता शिव मंदिर |
ये मंदिर भगवान शिव को समर्पित है लेकिन कुछ अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियाँ भी यहाँ रखी गई है, फिलहाल शायद कोरोना की वजह से यहाँ लोगों का आना जाना कम है वरना सावन के महीने में तो हाँ जल चढ़ाने वालों की भीड़ जमा होती है ! मंदिर के आस-पास आम, बरगद के अलावा अन्य कई छायादार पेड़ लगे है, यहाँ की खामोशी ने मुझे बहुत प्रभावित किया ! सुकून के कुछ पलों के लिए हम कहाँ-2 दौड़ते रहते है जबकि कई बार गाँव के बीच बने इन मंदिरों में आकर भी काफी सुकून मिल जाता है ! यहाँ के पोखर में भी पानी तो काफी था लेकिन उसमें काफी कीचड़ और काई जमी हुई थी, मंदिर परिसर में कुछ समय बिताने के बाद हम यहाँ से भी निकल पड़े ! आज के स्थानीय भ्रमण का हमारा आखिरी पड़ाव काली माता का मंदिर है जो यहाँ से कुछ कदम की दूरी पर है, टहलते हुए एक गली से निकलकर हम काली माता के मंदिर पहुंचे, जिसका मुख्य द्वार गली के उस पार है, एक छोटा द्वार गली के इस मुहाने पर भी है लेकिन फिलहाल ये बंद है ! गली से निकलकर घूमते हुए हम मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार पर पहुंचे, यहाँ भी मंदिर के प्रवेश द्वार के पास दो पीपल के पेड़ है जिनके चारों ओर चबूतरा बना है ! मंदिर के सामने वाले मार्ग के उस पार एक पोखर भी है, पोखर के उस पार यहाँ के मुख्य बाजार की दुकानें दिखाई दे रही है, अब तो मुझे लगने लगा है कि यहाँ हर मन्दिर के सामने एक पोखर, पेड़ और नलकूप जरूर है ! मंदिर के बगल में एक पुरानी सरकारी इमारत भी है जो कभी यहाँ का प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र था लेकिन फिलहाल ये जर्जर अवस्था में है और आवारा जानवरों की आरामगाह बनी हुई है !
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सादात का शिव मंदिर |
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मंदिर के अंदर का दृश्य |
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मंदिर परिसर का एक दृश्य |
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शिव मंदिर का एक दृश्य |
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शिव मंदिर के पास स्थित पोखर |
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पोखर से दिखाई देता मंदिर |
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काली माता के मंदिर जाने का पैदल मार्ग |
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काली माता मंदिर के सामने एक विशाल पेड़ |
सीढ़ियों से होते हुए हम मंदिर के प्रवेश द्वार तक पहुंचे, यहाँ भी द्वार बंद ही था, कुंडी खोलकर हम अंदर दाखिल हुए, इस मंदिर में भी इस समय हमारे अलावा कोई नहीं था ! मंदिर की बाहरी दीवारों पर ऋद्धि-सिद्धि और गणेश जी के चित्र बने है, ऐसी ही चित्रकारी मंदिर की भीतरी दीवारों पर की गई है जहां भगवान विष्णु और कृष्ण जी के चित्र उकेरे गए है ! मंदिर में दाखिल होते ही हमारी बाईं ओर छोटे-2 मंदिर बने है यहाँ भी पहले मंदिर में हनुमान जी की मूर्ति स्थापित है जबकि दूसरे में शिवलिंग की स्थापना की गई है ! इन दोनों मंदिरों के बगल से सीढ़ियाँ ऊपर को जाती है, सीढ़ी के उस पार एक अन्य मंदिर भी है जहां राधा-कृष्ण की मूर्ति रखी गई है, मुझे लगता है नीचे वाले ये तीनों मंदिर बाद में बने होंगे, क्योंकि ये मंदिर तो माँ दुर्गा और काली को समर्पित है ! खैर, नीचे वाले मंदिरों में दर्शन करने के बाद हम सीढ़ियों से होते हुए ऊपर पहुंचे, ऊपर वाले दोनों मंदिरों में माँ दुर्गा और काली की प्रतिमाएं शोभा बढ़ा रही है ! इन दोनों मंदिरों के बाहर माता के चरण बनाए गए है जहां लोग श्रद्धाभाव से पुष्प अर्पित करते है, स्थानीय लोगों में इस मंदिर के प्रति बड़ी आस्था है ! ऊपर वाले दोनों मंदिरों की बाहरी दीवारों पर माँ दुर्गा, काली और अम्बे जी की आरतियाँ लिखी है, सुबह-शाम आरती के समय मंदिर के पुजारी के साथ स्थानीय लोग भी शामिल होते है !
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मंदिर के प्रवेश द्वार पर बने चित्र |
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मंदिर प्रांगण का एक दृश्य |
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मंदिर के अंदर स्थापित शिवलिंग |
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मंदिर में राधा-कृष्ण की मूर्ति |
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मंदिर में स्थापित हनुमान जी की मूर्ति |
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ऊपरी भाग में दुर्गा जी का मंदिर |
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माँ दुर्गा जी की मूर्ति |
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प्रवेश द्वार पर बने माँ दुर्गा के चरण |
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ऊपरी भाग में माँ काली जी का मंदिर |
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मंदिर में स्थापित माँ काली जी की मूर्ति |
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प्रवेश द्वार पर बने काली माता के चरण |
यहीं दीवार पर एक पत्थर लगा था जिस पर मंदिर निर्माण को लेकर कुछ जानकारी दी गई है, इस जानकारी के अनुसार मंदिर का जीर्णोंद्वार 1973 में करवाया गया था ! हालांकि, मंदिर की स्थापना को लेकर कोई सटीक जानकारी यहाँ नहीं दी गई थी, लेकिन अंदाजा लगाया जा सकता है कि जब जीर्णोंद्वार को ही 48 साल हो गए तो ये मंदिर तो उससे भी प्राचीन होगा ! मुख्य भवन के ठीक सामने एक पेड़ है जो जमीन से निकलकर छत के बीच से होता हुए ऊपर जा रहा है ! ऊपरी भाग में बने मंदिरों में दर्शन करने के बाद हम नीचे आ गए और मंदिर परिसर में घूमने लगे, बच्चे खूब मस्ती कर रहे थे ! मंदिर के पश्चिमी भाग में भी एक शिवलिंग स्थापित किया गया है और यहाँ हवन के लिए छोटे-2 दो आहुति कुंड बनाए गए है, जहां कुछ विशेष अवसरों पर पूजा की जाती है ! कुछ देर मंदिर परिसर में घूमने के बाद हम बाहर आ गए और अपनी गाड़ी की ओर चल दिए जो यहाँ से कुछ दूर खड़ी थी ! यहाँ से घर पहुँचने में हमें ज्यादा समय नहीं लगा, तो आज का ये सफर यहीं खत्म करते है, जल्द ही आपसे अगले लेख में फिर मुलाकात होगी !
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मंदिर के जीर्णोंद्वार की जानकारी देता चिन्ह |
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मंदिर के ऊपरी भाग में पेड़ |
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मंदिर परिसर का एक दृश्य |
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मंदिर की दीवारों पर उकेरे गए चित्र |
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मंदिर परिसर में बने शिवलिंग |
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मंदिर परिसर में नंदी |
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मंदिर के सामने पोखर के उस पार सादात का बाजार |