मूसी महारानी की छतरी (Cenotaph of Maharani Moosi, Alwar)

बुधवार 3 अप्रैल 2019

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यात्रा के पिछले लेख में आप मेरे साथ अलवर के संग्रहालय का भ्रमण कर चुके है अब आगे, संग्रहालय से निकले तो टहलते हुए सिटी पैलेस के पीछे स्थित मूसी महारानी की छतरी देखने चल दिए ! आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि अलवर के प्रसिद्ध दर्शनीय स्थलों में मूसी महारानी की छतरी भी शामिल है, सिटी पैलेस के पीछे पश्चिम दिशा में स्थित ये ऐतिहासिक स्मारक अलवर के शासक महाराजा बख्तावर सिंह और उनकी रानी मूसी की स्मृति में उनके उत्तराधिकारी महाराजा विनय सिंह ने 1815 में बनवाई थी ! संग्रहालय से निकलने के बाद हम पहले सीढ़ियों से उतरकर नीचे न्यायिक परिसर में आए, फिर कुछ सीढ़ियों से होते हुए सिटी पैलेस के पिछले भाग में पहुँच गए, जहां ये स्मारक स्थित है ! सिटी पैलेस में न्यायिक परिसर होने के कारण दिनभर यहाँ लोगों की भीड़ लगी रहती है, इसलिए कई बार पता भी नहीं चलता कि इस भीड़-भाड़ इलाके में ऐसी खूबसूरत इमारत भी है ! बख्तावर सिंह की मृत्यु के समय उनकी रानी मूसी उनके साथ सती हो गई थी, इसलिए इस स्मारक में राजा बख्तावर सिंह के साथ उनकी रानी की समाधि भी बनी हुई है ! प्राचीन काल में भारत में सती प्रथा काफी प्रचलित थी, इस प्रथा के बारे में आप विस्तार से यहाँ पढ़ सकते है ! वर्तमान में लोग इस स्मारक को महाराजा बख्तावर सिंह और मूसी महारानी की छतरी के नाम से जानते है !

मूसी महारानी की छतरी का एक दृश्य

चलिए, आगे बढ़ने से पहले आपको थोड़ी जानकारी इस स्मारक के बारे में दे देता हूँ, मुगल और राजपूत शैली में बना ये स्मारक दो मंजिला है जिसका निचला भाग लाल बलुआ पत्थर से बना है जबकि इसके ऊपरी भाग को सफेद संगमरमर से बनाया गया है जो देखने में बहुत सुंदर है ! स्मारक परिसर के आस-पास पत्थर बिछाए गए है, पूरा स्मारक बलुआ पत्थर के स्तंभों पर टिका हुआ है, जिसके भीतरी और बाहरी भाग में बढ़िया कारीगरी की गई है ! बनावट की दृष्टि से ये स्मारक तत्कालीन स्थापत्य कला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, तभी तो 200 साल बीत जाने पर भी इस स्मारक की सुंदरता में कोई कमी नहीं आई ! ये स्मारक वर्गाकार है जिसे किसी भी तरफ से देखने पर इसकी बनावट एक जैसी लगती है जिसके दोनों कोनों पर छतरियाँ बनी है जबकि बीच में प्रांगण बना है जो ऊपरी भाग की बालकनी को दर्शाता है, प्रांगण के ऊपर बढ़िया सजावट की गई है ! स्मारक के चारों कोनों पर बनी छतरियों में पत्थरो को तराश कर जो सजावट की गई है वो वाकई लाजवाब है, बड़े-2 पत्थरों को तराश कर ऐसा रूप देना बहुत मुश्किल काम है, इसी तरह की सजावट स्मारक के दूसरे हिस्सों में भी है ! छतरी के चारों तरफ पत्थरों की जालियाँ लगाई गई है जिनके नीचे सुराग किए गए है ताकि बारिश का पानी बहकर नीचे आ जाए ! स्मारक के अंदर चारों तरफ एक चौड़ा गलियारा बना है, जिसमें बने द्वार अब बंद कर दिए गए है, इन द्वारों के दोनों तरफ आले बनाए गए है जिनमें कभी रोशनी के लिए दिए या मशालें रखी जाती होंगी !

स्मारक की जानकारी देता एक बोर्ड

स्मारक की जानकारी देता एक बोर्ड

दूर से दिखाई देती मूसी महारानी की छतरी

स्मारक के किनारे बनी एक छतरी 

सरोवर के पश्चिम में बने मंदिर

शशांक के पीछे दिखाई देता सागर और सिटी पैलेस 

सीढ़ियों से होते हुए हम पहली मंजिल पर पहुंचे, जिन पत्थरों पर ये पूरा स्मारक टिका हुआ है उन पत्थरों को बिना किसी अतिरिक्त सहायता के खड़ा किया गया है ! सोचिए, इतनी बड़ी इमारत सिर्फ पत्थरों के स्तंभों पर टिकी है, इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है उस समय वास्तुकला कितनी विकसित थी ! इन स्तंभों को तराश कर इन पर भी बढ़िया कलाकृतियाँ बनाई गई है, प्रवेश द्वार पर बनी मेहराबें भी यहाँ आने वाले लोगों को खूब आकर्षित करती है ! स्मारक के ऊपरी भाग में चबूतरे पर राजा-रानी के पद-चिन्ह बनाए गए है, स्थानीय लोगों के लिए ये एक पूजनीय स्थल है, लोग अपनी मन्नतें लेकर यहाँ आते है ! स्मारक की बनावट में विभिन्न प्रकार की कलाकारी के अलावा रामायण और भागवत पर आधारित दृश्य उत्कीर्ण है, परिसर में दी गई जानकारी के अनुसार छतरी के ऊपरी भाग में कृष्ण लीला के कुछ भाव और महाराज बख्तावर सिंह का हाथी पर सवार चित्रण किया गया है ! स्मारक के ऊपरी भाग की छतरी को रंग-बिरंगे कलाकृतियों से सजाया गया है, जिसमें महाराज द्वारा किए जाने वाले विभिन्न क्रियाकलापों को दर्शाया गया है चाहे वो भगवान की पूजा हो, घुड़सवारी या नृत्यशाला का दृश्य ! स्मारक के उत्तरी भाग में एक सरोवर भी है जिसे सागर कहा जाता है, बारिश के दिनों में आस-पास की पहाड़ियों का पानी बहकर इस सरोवर में ही जमा होता है !

सरोवर में बनी छतरियाँ

स्मारक से दिखाई देता सागर

स्मारक से दिखाई देते सरोवर के पास बने मंदिर 

शशांक और हितेश

स्मारक के सामने से दिखाई देता सिटी पैलेस

सागर और उसके पीछे अरावली पर्वत

स्मारक परिसर से वापिस आते हुए

दूर से दिखाई देता स्मारक

प्राप्त जानकारी के अनुसार इस सरोवर की गहराई लगभग 52 फीट है और इस सरोवर के किनारों पर भी जगह-2 छतरियाँ बनी हुई है ! सरोवर में नीचे जाने के लिए पत्थर की सीढ़ियाँ बनी है, प्राचीन समय में ये सरोवर पानी को संरक्षित करने का काम करती थी, जिसका प्रयोग रोजमर्रा के कामों में लिया जाता था ! सरोवर के पश्चिमी भाग में पीले रंग की इमारतों में मंदिर बने है, जहां शाही घराने के लोग पूजा किया करते थे ! वर्तमान में भी ये मंदिर मौजूद है लेकिन जानकारी के अभाव में हम यहाँ जा नहीं सके, अगली बार जब अलवर आना हुआ तो आपको इन मंदिरों के दर्शन जरूर करवाऊँगा ! इन मंदिरों के पीछे अरावली पर्वत स्थित है जिनके ऊपर बना बाला किले की दीवारें स्मारक से दिखाई देती है ! यहाँ भ्रमण करने के बाद कुछ समय के लिए हम सिलिसेढ झील भी गए, जिसके बारे में ब्लॉग पर पहले ही लिख चुका हूँ, शाम होने के बाद हमने वापसी की राह पकड़ी और रात होने तक घर वापिस आ गए ! इसी के साथ अलवर यात्रा की ये सीरीज खत्म करते है, जल्द ही आपसे किसी नई यात्रा पर फिर मुलाकात होगी !

सिलीसेढ़ झील का एक नजारा

सिलीसेढ़ झील का एक नजारा

सिलीसेढ़ पैलेस में बना होटल

शशांक यात्रा का आनंद लेते हुए

यात्रा के सभी साथियों संग एक ग्रुप फोटो

क्यों जाएँ (Why to go)अगर आप ऐतिहासिक इमारतों को देखना पसंद करते है और साप्ताहिक अवकाश (Weekend) पर दिल्ली की भीड़-भाड़ से दूर प्रकृति के समीप कुछ समय बिताना चाहते है तो आप अलवर के बाला किले का भ्रमण कर सकते है !

कब जाएँ (Best time to go): वैसे तो आप अलवर साल के किसी भी महीने में जा सकते है लेकिन गर्मियों में यहाँ का तापमान बहुत बढ़ जाता है और ऐसे में किला घूमना आसान नहीं होता ! इसलिए कोशिश कीजिए कि आप बारिश के मौसम में या सर्दियों में यहाँ भ्रमण के लिए आए !

कैसे जाएँ (How to reach): दिल्ली से अलवर की दूरी महज 170 किलोमीटर है जिसे तय करने में आपको लगभग 2-3 घंटे का समय लगेगा ! दिल्ली से अलवर जाने के लिए सबसे बढ़िया मार्ग मानेसर-भिवाड़ी होते हुए है, बढ़िया मार्ग बना है ! अगर आप ट्रेन से यहाँ आना चाहते है तो अलवर देश के कई रेलमार्गों से जुड़ा हुआ है ! अलवर रेलवे स्टेशन से इस किले की दूरी मात्र 11 किलोमीटर है, जिसे आप टैक्सी या ऑटो से तय कर सकते है !

कहाँ रुके (Where to stay): अलवर राजस्थान का एक प्रसिद्ध पर्यटक स्थल है लेकिन यहाँ रुकने के लिए बहुत ज्यादा विकल्प नहीं है ! फिर भी जो होटल है उनमें से आप अपनी सुविधा अनुसार 1000 रुपए से लेकर 5000 रुपए तक का होटल ले सकते है ! वैसे अलवर में घूमने की जगहें आप शहर में रहकर भी आसानी से देख सकते है इसलिए कोशिश कीजिए कि किसी सुनसान जगह ना रुककर शहर के बीच ही रुके !

क्या देखें (Places to see): अलवर में देखने की कई जगहें है जिसमें से बाला किला, सिटी पैलेस, मूसी महारानी की छतरी, मोती डूंगरी, कंपनी गार्डन, सिलिसेढ़ झील, और सरिस्का वन्यजीव अभयारण्य प्रमुख है !

समाप्त...

तिजारा-अलवर यात्रा

  1. तिजारा का जैन मंदिर (A visit to Jain Temple of Tijara)
  2. अलवर का बाला किला (A Visit to Bala Fort, Alwar)
  3. अलवर का सिटी पैलेस और संग्रहालय (City Palace and Museum, Alwar)
  4. मूसी महारानी की छतरी (Cenotaph of Maharani Moosi, Alwar)
Pradeep Chauhan

घूमने का शौक आख़िर किसे नहीं होता, अक्सर लोग छुट्टियाँ मिलते ही कहीं ना कहीं घूमने जाने का विचार बनाने लगते है ! पर कुछ लोग समय के अभाव में तो कुछ लोग जानकारी के अभाव में बहुत सी अनछूई जगहें देखने से वंचित रह जाते है ! एक बार घूमते हुए ऐसे ही मन में विचार आया कि क्यूँ ना मैं अपने यात्रा अनुभव लोगों से साझा करूँ ! बस उसी दिन से अपने यात्रा विवरण को शब्दों के माध्यम से सहेजने में लगा हूँ ! घूमने जाने की इच्छा तो हमेशा रहती है, इसलिए अपनी व्यस्त ज़िंदगी से जैसे भी बन पड़ता है थोड़ा समय निकाल कर कहीं घूमने चला जाता हूँ ! फिलहाल मैं गुड़गाँव में एक निजी कंपनी में कार्यरत हूँ !

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