किसी पहाड़ी यात्रा पर गए एक अरसा बीत गया था, वैसे भी कोरोना काल में यात्राओं पर तो जैसे प्रतिबंध सा लग गया था और जो यात्राएं हुई, उनमें से कोई भी पहाड़ी क्षेत्र की नहीं थी ! इसलिए बहुत दिनों से किसी पहाड़ी यात्रा पर जाने का मन था, और जब पौड़ी गढ़वाल की इस यात्रा पर जाना निश्चित हुआ तो मुझे ये कोई सपना सच होने जैसा लग रहा था ! वैसे इस यात्रा पर जाने की योजना तो मैंने काफी पहले बनाई थी और साथ चलने के लिए कई मित्रों से पूछा भी था, लेकिन बात नहीं बनी और यात्रा ठंडे बस्ते में चली गई ! फिर एक दिन अचानक देवेन्द्र का फोन आया, तो उसने पूछा, यार तुम पौड़ी गढ़वाल जाने वाले थे, अभी जाने का मन है या विचार बदल गया ? मैंने कहा, अकेले जाने की इच्छा नहीं है और साथ चलने को कोई तैयार नहीं है, अगर कोई साथ चले तो इस यात्रा पर जाने के लिए दोबारा विचार किया जा सकता है ! कुछ देर बातचीत करने के बाद देवेन्द्र ने ये कहकर फोन रख दिया कि वो यात्रा पर चलने के बाबत जल्द ही मुझे बता देगा ! फोन रखने के बाद मैं भी अपनी रोजमर्रा की दिनचर्या में व्यस्त हो गया, इसी तरह 1-2 दिन बीत गए और मुझे इस यात्रा पर जाने की कोई उम्मीद नहीं दिख रही थी ! अचानक एक दिन शाम को देवेन्द्र का फोन आया, हाल-चाल लेने के बाद उसने बताया कि वो इस यात्रा पर चलने के लिए तैयार है और एक अन्य मित्र अनिल जो केदारनाथ यात्रा पर हमारे साथ था वो भी इस यात्रा में शामिल होना चाहता है, मैंने कहा दो से भले तीन ! अपने घर जब मैंने इस यात्रा की जानकारी दी तो पिताजी भी यात्रा पर साथ चलने के इच्छुक दिखे, तो इस तरह यात्रा पर जाने का दिन और साथी निर्धारित हो गए !
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सिद्धबली मंदिर कोटद्वार |
वैसे तो इस तीन दिवसीय यात्रा के लिए ज्यादा तैयारी की जरूरत नहीं थी लेकिन फिर भी यात्रा में साथ ले जाने के लिए जो भी थोड़ा-बहुत सामान चाहिए था वो मैंने रख लिया और जो सामान नहीं था उसकी खरीददारी भी कर ली ! धीरे-2 यात्रा का दिन भी नजदीक आने लगा, हम शनिवार 27 नवंबर की सुबह इस यात्रा के लिए निकलने वाले थे ! वैसे आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि ये एक धार्मिक यात्रा थी जिसमें हम पौड़ी-गढ़वाल के कुछ प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों के दर्शन करने वाले थे ! जैसे-2 हमारी यात्रा आगे बढ़ते जाएगी मैं इन जगहों की विस्तृत जानकारी भी आपको देता रहूँगा ! योजना के अनुसार निर्धारित दिन सुबह 7 बजे फरीदाबाद स्थित मेरे घर से ये यात्रा शुरू होनी थी, देवेन्द्र और अनिल अपने घर से सुबह की पहली मेट्रो पकड़कर ये यात्रा शुरू भी कर चुके थे और मैं उनके बल्लभगढ़ पहुँचने का इंतजार कर रहा था ! फोन पर हम लगातार संपर्क में थे, 8 बजे के आस-पास ये दोनों बल्लभगढ़ पहुंचे ! बहुत लंबे समय के बाद हमारी मुलाकात हो रही थी इसलिए सभी लोग गर्मजोशी से मिले ! मेट्रो स्टेशन से निकलकर अपनी गाड़ी में सवार होकर हम मोहना रोड से होते हुए केजीपी एक्स्प्रेसवे (Eastern Peripheral Expressway) की ओर चल दिए ! इस एक्स्प्रेसवे के बनने से फरीदाबाद से उत्तराखंड और हिमाचल जाना काफी आसान हो गया है वरना पहले तो दिल्ली को पार करने में ही घंटों लग जाते थे !
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राजा नाहर सिंह मेट्रो स्टेशन के पास |
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केजीपी एक्स्प्रेसवे का एक दृश्य |
मोहना रोड से जाते हुए रास्ते में जहां कहीं भी कोई गाँव पड़ता, हमें यातायात धीमा मिलता इसलिए एक्स्प्रेसवे पर पहुँचने में ही लगभग 9 बज गए ! यहाँ आकर गाड़ी ने थोड़ी रफ्तार पकड़ी, फिर तो घंटे भर में हम केजीपी एक्स्प्रेसवे से उतरकर मेरठ एक्स्प्रेसवे पर पहुँच गए ! दोनों एक्स्प्रेसवे कमाल के है, गाड़ियां सरपट दौड़ती है, लेकिन मेरठ एक्स्प्रेसवे पर जगह-2 कैमरे लगे है गति सीमा 100-120 किलोमीटर के बीच है इसलिए थोड़ा सावधानी बरतनी पड़ती है !साढ़े दस बजे हम मेरठ एक्स्प्रेसवे से उतरकर मेरठ बायपास होते हुए मेरठ-हरिद्वार मार्ग पर जा पहुंचे, रास्ते में एक जगह सीएनजी पंप मिला तो गाड़ी का सिलिन्डर फुल करवा लिया ! सोचा था सड़क किनारे किसी ढाबे पर रुककर खाना खाएंगे, लेकिन अभी किसी को भूख नहीं लगी थी इसलिए हम लगातार आगे बढ़ते रहे ! घंटे भर बाद खतौली पहुंचे, यहाँ दिल्ली-हरिद्वार मार्ग को छोड़कर खतौली-मीरापुर मार्ग पर चल दिए, दोनों तरफ गन्ने के खेतों से घिरा ये मार्ग दिल्ली-हरिद्वार मार्ग के मुकाबले काफी संकरा है, सड़क के बीच में डिवाइडर भी नहीं है और खेतों में से कब कोई जानवर या इंसान निकलकर रास्ते में आ जाए पता ही नहीं चलता, इसलिए यहाँ गाड़ी चलाते हुए ज्यादा सावधानी बरतनी पड़ती है ! इस मार्ग पर 22 किलोमीटर चलने के बाद मीरापुर चौराहा आया, जहां बाई ओर जाने वाला मार्ग मीरापुर-मुजफ्फरनगर मार्ग है जबकि सीधा जाने वाला मार्ग मेरठ-पौड़ी मार्ग है, मीरापुर चौराहे से दाईं ओर जाने वाला मार्ग मेरठ को चला जाता है ! हम सीधे ही चलते रहे, इस चौराहे से आगे बढ़ने पर सड़क की चौड़ाई थोड़ा बढ़ जाती है, फिलहाल सड़क पर यातायात सामान्य ही था !
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केजीपी एक्स्प्रेसवे का टोल प्लाजा |
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मेरठ एक्सप्रेसवे का एक दृश्य |
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मेरठ एक्सप्रेसवे पर बना टोल प्लाजा |
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रास्ते में लिया एक चित्र |
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रास्ते में लिया एक और चित्र |
कुछ देर बाद हम गंगा नदी पर बने बैराज को पार करते हुए नवलपुर से निकलकर बिजनौर पहुंचे ! बिजनौर के जाम से बचने के लिए हमने शहर में ना घुसकर बाइपास से होते हुए कीरतपुर जाने वाला मार्ग पकड़ लिया, इस मार्ग पर कुछ दूर चलकर रास्ते में खाने के लिए चौधरी ढाबे पर जाकर रुके ! यहाँ हल्का-फुल्का नाश्ता किया और अपने साथ घर से लाया खाना भी खत्म कर लिया, चाय पीने के बाद हमने अपना आगे का सफर जारी रखा ! बिजनौर से लगभग 18-20 किलोमीटर चलने के बाद हम कीरतपुर पहुंचे, यहाँ भी एक सीएनजी पंप मिला तो फिर से सिलिन्डर फुल करवा लिया ! मेरठ वाले सीएनजी पंप पर प्रेशर ठीक ना होने के कारण गाड़ी में ज्यादा गैस नहीं आई थी जबकि यहाँ कीरतपुर में सीएनजी पंप पर प्रेशर अच्छा था ! लेकिन यहाँ सीएनजी काफी महंगी थी और सीएनजी लेने के चक्कर में यहाँ आधा घंटा रुकना भी पड़ा, वैसे यात्राओं के दौरान ये सब तो चलता ही रहता है और हर यात्रा में ऐसे अनुभव यादगार रहते है ! कीरतपुर से आगे बढ़े तो नजीबाबाद में जाम मिला, यहाँ बस अड्डा और रेलवे स्टेशन आमने-सामने ही है इसलिए यहाँ अक्सर जाम की स्थिति बनी रहती है ! खैर, जाम से निकले तो थोड़ी दूर ही चले थे कि खराब रास्ता शुरू हो गया, यहाँ सड़क पर जगह-2 गड्ढे थे, समझ नहीं आ रहा था कि सड़क में गड्ढे है या गड्ढों में सड़क ! खराब मार्ग होने से गाड़ी की गति नहीं बन पा रही थी, इसलिए धीरे-2 ही आगे बढ़ते रहे !
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ढाबे से लिया एक चित्र |
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यहाँ रुककर थोड़ी पेट पूजा की |
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ढाबे पर लिया एक चित्र |
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गंगा नदी पर बना बैराज |
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रास्ते में लिया एक चित्र |
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दूरियाँ दर्शाता एक बोर्ड |
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मार्ग पर ज्यादा यातायात नहीं था |
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कोटद्वार पहुँचने वाले है |
लगभग 45 किलोमीटर चलने के बाद हम कोटद्वार पहुंचे, यहाँ से पहाड़ दिखाई देने शुरू हो जाते है, और कोटद्वार को पहाड़ी क्षेत्र का प्रवेश द्वार कहा जाए तो गलत नहीं होगा ! हालांकि, कोटद्वार में कहीं-2 थोड़ा जाम मिल जाता है लेकिन मुख्य शहर से निकलने के बाद मार्ग खाली ही मिलता है ! कोटद्वार के मुख्य बाजार से निकलकर झण्डा चौक होते हुए हम दुग्गडा की ओर चल दिए, झण्डा चौक से लगभग 1 किलोमीटर चलने के बाद सड़क के दाईं ओर खोह नदी पर एक पुल बना है और पुल के उस पार सिद्धबली बाबा का मंदिर है ! मैं इस पहाड़ी मार्ग पर कई बार आया हूँ लेकिन कभी भी सिद्धबली बाबा के दर्शन का सौभाग्य नहीं मिला, इसलिए आज हमारी यात्रा का पहला दर्शनीय स्थल सिद्धबली मंदिर ही था ! मैंने गाड़ी इस पुल पर मोड दी, फिलहाल खोह नदी में नाम मात्र का पानी था लेकिन बारिश के दिनों में इस नदी का जलस्तर काफी बढ़ जाता है और आस-पास की हरियाली भी देखने लायक होती है ! पुल पार करते ही बाईं ओर सिद्धबली मंदिर का पार्किंग स्थल है, पार्किंग शुल्क मात्र 50 रुपए है ! सिद्धबली बाबा का ये मंदिर एक पहाड़ी की चोटी पर है जहां जाने के लिए सीढ़ियाँ बनी है, मंदिर परिसर काफी दूर तक फैला है जिसके चारों ओर खूब हरियाली है ! पार्किंग से निकलकर एक मार्ग गलियारे से होता हुआ मंदिर तक जाने वाली सीढ़ियों तक जाता है, सीढ़ियों के पास ही जूता घर भी है ! पार्किंग में गाड़ी खड़ी करके हम इसी मार्ग से मंदिर की ओर चल दिए, प्रसाद सामग्री की दुकानें पार्किंग से ही शुरू हो जाती है जो आगे गलियारे तक है !
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कोटद्वार में एक चौराहे का दृश्य |
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कोटद्वार से बाहर जाते हुए |
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कोटद्वार से निकलते हुए लिया एक चित्र |
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पहाड़ दिखने शुरू हो गए |
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सिद्धबली धाम पहुँचने वाले है |
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मंदिर की ओर जाने की सीढ़ियाँ |
चलिए, आगे बढ़ने से पहले आपको इस मंदिर से संबंधित कुछ जानकारी दे देता हूँ ! उतराखंड के कोटद्वार कस्बे से लगभग 2 किलोमीटर दूर कोटद्वार-पौड़ी मार्ग पर खोह नदी के किनारे 40 मीटर ऊंचे एक पहाड़ी टीले पर बाबा सिद्धबली का ये मंदिर स्थित है । कोटद्वार को गढ़वाल का प्रवेश द्वार भी माना जाता है और सिद्धबली का ये मंदिर पौड़ी गढ़वाल के प्रसिद्ध देव स्थलों में से एक है ! इस मंदिर की स्थापना के बारे में कहा जाता है कि यहाँ तप करते हुए एक सिद्ध बाबा को हनुमान जी की सिद्धि प्राप्त हुई थी, उन्होनें ही यहाँ हनुमान जी की पत्थर की एक विशाल प्रतिमा का निर्माण किया था ! समय बीतने के साथ इस मंदिर को भव्य रूप दिया गया है, आस-पास के क्षेत्रों के अलावा देश के दूसरे हिस्सों में भी ये मंदिर काफी प्रसिद्ध है, इसलिए यहाँ रोजाना देश-विदेश से हजारों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते है ! कई श्रद्धालु तो यहाँ भंडारे का आयोजन भी करते है, यहाँ हर मंगलवार और रविवार को भंडारे का आयोजन किया जाता है जिसके लिए कतार काफी लंबी है ! इस मंदिर में भंडारे के आयोजन के लिए 2026 तक की अग्रिम बुकिंग हो चुकी है, इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि लोगों के मन में इस मंदिर के लिए कितनी आस्था है ! लोग यहाँ अपनी मुरादें लेकर आते है और फिर मुराद पूरी होने पर मंदिर में भंडारा भी करवाते है ! सिद्धबली मंदिर में प्रसाद के रूप में नारियल के साथ गुड की भेली भी चढ़ाई जाती है ! हर साल यहाँ श्रद्धालुओं द्वारा एक भव्य मेले का आयोजन भी किया जाता है ! चलिए वापिस यात्रा पर लौटते है जहां हम पार्किंग से निकलकर मंदिर की ओर जाने वाले गलियारे तक पहुँच चुके है !
पार्किंग से निकलकर एक दुकान से हमने मंदिर में चढ़ाने के लिए पूजा सामग्री और प्रसाद ले लिया ! फिर एक गलियारे से होते हुए कुछ सीढ़ियाँ चढ़कर हम मंदिर के मुख्य भवन की ओर चल दिए ! श्रद्धालुओं को बारिश और धूप से बचाने के लिए इन सीढ़ियों के ऊपर शेड डाली गई है, सीढ़ियों से मुख्य भवन की ओर जाते हुए रास्ते में एक जगह गुड की भेली और नारियल फोड़ने का स्थान निर्धारित किया गया है, हमने भी आगे बढ़ने से पहले प्रसाद वाला नारियल और भेली यहाँ फोड़ लिया ! फिर सीढ़ियों से होते हुए हम मंदिर के सबसे ऊपरी भाग में पहुँचे, सीढ़ियाँ खत्म होते ही ठीक सामने मुख्य भवन है, जबकि बाईं ओर एक खुला बरामदा है जहां से नीचे देखने पर खोह नदी का एक विहंगम दृश्य दिखाई देता है ! मुख्य भवन के बाहर एक बरामदा है जहां बैठकर श्रद्धालु पूजा-पाठ करते है और प्रभु भक्ति में लीन होकर आध्यात्मिक सुख की प्राप्ति करते है, भवन के चारों ओर एक परिक्रमा मार्ग भी बना है ! मुख्य भवन की बाहरी दीवारों पर देवी-देवताओं के चित्र उकेरे गए है इसके अलावा मुख्य भवन के सामने बने बरामदे की दीवारों पर भी देवी-देवताओं के चित्र लगाए गए है और बरामदे की छत पर रंग-बिरंगे शीशों से सजावट की गई है ! भवन में हनुमान जी के साथ कुछ अन्य देवताओं की मूर्तियाँ भी स्थापित की गई है, मंदिर में दर्शन करने के बाद हम कुछ देर बरामदे में बैठे और फिर परिक्रमा करने के साथ कुछ देर गलियारे के पास एक खुले स्थान पर आकर आस-पास के प्राकृतिक दृश्यों को निहारते रहे ! भवन के परिक्रमा मार्ग के चारों तरफ लगी लोहे की जालियों पर भक्तों दवार खूब चुनरियाँ बांधी गई है, जो लोगों का इस मंदिर के प्रति श्रद्धा और विश्वास को दर्शाती है ! लोग यहाँ मन्नत मांगते समय चुनरी बांधते है और अपनी इच्छा पूरी होने पर पुनः दर्शन के लिए आकर अपनी श्रद्धा अनुसार भंडारे का आयोजन करवाते है !
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देवेन्द्र और अनिल मंदिर जाते हुए |
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सीढ़ियों से दिखाई देता मंदिर का नजारा |
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मंदिर में लगी जालियों पर बंधी चुनरियाँ |
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मंदिर के सामने बरामदे का दृश्य |
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मंदिर के बरामदे से दिखाई देता एक दृश्य |
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मंदिर के बरामदे से दिखाई देता मंदिर परिसर |
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मंदिर के दूसरे भाग में जाने के लिए बनी सीढ़ियाँ |
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मंदिर से दिखाई देती खोह नदी |
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एक फोटो मेरी भी खींच लो भाई |
मंदिर परिसर से आस-पास का नजारा वाकई लाजवाब था और नीचे पहाड़ी की तलहटी पर बहती खोह नदी भी लोहे की इन जालियों से देखने में आकर्षक लग रही थी ! कुछ देर यहाँ बिताने के बाद हम सीढ़ियों से होते हुए मंदिर के दूसरे हिस्से में चले गए, इस भाग में शनिदेव की मूर्ति स्थापित की गई है, जिसके ठीक सामने एक विशाल पीपल का पेड़ है ! मंदिर की छत को इस तरह बनाया गया है कि पेड़ को क्षति ना हो, मुझे ये व्यवस्था बहुत अच्छी लगी ! शनि देव कर दर्शन करके आगे बढ़े तो बगल में ही एक शिवलिंग भी स्थापित किया गया है, शिवलिंग पर जल चढ़ाने के लिए एक पाइपनुमा पात्र लगाया गया है, ऊपर से डाला गया जल इस पात्र से होता हुआ शिवलिंग पर जाकर गिरता है ! थोड़ा आगे बढ़ने पर मंदिर का वो भाग है जहां भंडारे का आयोजन करवाया जाता है, इस समय भंडारा चालू था और प्रतीक्षा में काफी लोग खड़े भी थे मंदिर परिसर में किसी श्रद्धालु से पता चला, समय कम होने के कारण हम भंडारे में नहीं जा पाए ! कुछ देर मंदिर परिसर में बिताने के बाद हम वापिस पार्किंग स्थल की ओर चल दिए, ताकि हम पौड़ी गढ़वाल के अपने सफर को जारी रख सके ! चलिए, यात्रा के इस लेख पर यहीं विराम लगाता हूँ और अगले लेख में आपको अपनी यात्रा के अगले पड़ाव और पौड़ी गढ़वाल के किसी अन्य धार्मिक स्थल के दर्शन करवाऊँगा !
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मंदिर परिसर में बना शनि देव मंदिर |
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शिवलिंग पर जल चढ़ाने के लिए की गई व्यवस्था |
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शनि देव की पूजा करते श्रद्धालु |
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खोह नदी - फिलहाल पानी बहुत कम था |
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मंदिर से बाहर आने की सीढ़ियाँ |
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पार्किंग स्थल का एक दृश्य |
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पुल से पार्किंग स्थल की ओर जाने का मार्ग |
सिद्धबली बाबा का मंदिर दर्शन के लिए सुबह 5 बजे खुल कर दोपहर 2 बजे बंद होता है और फिर एक घंटे बाद 3 बजे दोबारा खुलकर रात 8 बजे तक खुला रहता है ! इसके अलावा मंदिर में रोजाना सुबह-शाम आरती भी होती है, सुबह की आरती 5 बजे और शाम की आरती साढ़े छह बजे होती है, इसलिए अगर आप आरती में शामिल होना चाहते है तो इस समय का जरूर ध्यान रखिए !
क्यों जाएँ (Why to go): अगर आपको धार्मिक स्थलों पर जाना पसंद है और आप उत्तराखंड में कुछ शांत और प्राकृतिक जगहों की तलाश में है तो निश्चित तौर पर ये स्थान आपको पसंद आएगा ! शहर की भीड़-भाड़ से निकलकर इस मंदिर में आकर आपको मानसिक संतुष्टि मिलेगी ! इस मंदिर के अलावा आप आस-पास के कुछ अन्य धार्मिक स्थलों के दर्शन भी कर सकते है !
कब जाएँ (Best time to go): आप यहाँ साल के किसी भी महीने में जा सकते है लेकिन कुछ धार्मिक आयोजनों और मंगलवार के दिन यहाँ भीड़ कुछ ज्यादा ही रहती है इसलिए आपको दर्शम में थोड़ी कठिनाई हो सकती है ! इसलिए इन बातों को ध्यान में रखते हुए अपनी यात्रा की योजना बनाइये !
कैसे जाएँ (How to reach): दिल्ली से इस मंदिर की दूरी मात्र 245 किलोमीटर है जिसे आप 4-5 घंटे में आसानी से पूरा कर सकते है ! दिल्ली से कोटद्वार जाने के लिए सबसे बढ़िया मार्ग बिजनोर-नजीबाबाद होकर है ! अगर आप ट्रेन से यहाँ आना चाहते है तो कोटद्वार यहाँ का नजदीकी रेलवे स्टेशन है जो इस मंदिर से लगभग 3 किलोमीटर दूर है, स्टेशन से यहाँ आने के लिए आपको ऑटो मिल जाएंगे !
कहाँ रुके (Where to stay): वैसे तो इस मंदिर में रुकने के लिए धर्मशाला भी है लेकिन अगर आप किसी होटल में रुकना चाहते है तो आपको मंदिर के आस-पास कुछ होटल भी आसानी से मिल जाएंगे ! होटल का किराया 1000 रुपए से शुरू हो जाता है आप अपनी सुविधा अनुसार होटल चुन सकते है !
क्या देखें (Places to see): सिद्धबली बाबा के दर्शन करने के बाद आप पौड़ी गढ़वाल में कुछ अन्य धार्मिक स्थल की यात्राएं कर सकते है, इसके अलावा लैंसडाउन यहाँ का प्रसिद्ध पर्यटक स्थल है जहां हमेशा यात्रियों का तांता लगा रहता है !