रविवार 28 नवंबर, 2021
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यात्रा के पिछले लेख में आप हनुमानगढ़ी के दर्शन कर चुके है अब आगे, हनुमानगढ़ी से वापिस आते हुए शुरुआत में बहुत तेज ढलान थी, इसलिए हम बहुत सावधानी से उतर रहे थे, लेकिन जब ठीक रास्ता मिल गया तो हम तेजी से उतरने लगे ! कुछ देर चलने के बाद पानी पीने के लिए हम कल वाले कुंड के पास आकर रुके, यहाँ कुछ देर रुककर आराम किया और फिर आगे बढ़ने लगे ! हमारे साथी अनिल की तबीयत कुछ ठीक नहीं थी, मंदिर में भी उसे थोड़ी परेशानी हो रही थी लेकिन यहाँ तो उसने उलटी भी की ! पूछने पर पता चला उसने वैष्णो देवी मंदिर के पास कुछ जंगली फल तोड़कर खाया था, हालांकि, मंदिर के पुजारी और कुछ अन्य स्थानीय लोगों से पूछने पर पता चला वो फल विषैला तो नहीं था क्योंकि स्थानीय लोग भी पेट साफ करने के लिए इसका सेवन करते है ! लेकिन अपना भाई ज़हरी आदमी है उसे ये फल हजम नहीं हुआ और उल्टियाँ शुरू हो गई, कुंड पर आराम करने के बाद जब हम चले तो सब सामान्य था उसे उलटी भी नहीं हुई थी ! पहाड़ी मार्गों पर पैदल चलते हुए यात्रा के साथी अक्सर थोड़ा बहुत आगे-पीछे हो ही जाते है लेकिन फिर दोबारा आराम करने के लिए जब कहीं रुकते है तो पीछे रह गए साथी भी मिल जाते है ! यहाँ भी कुछ ऐसा ही हुआ जब हम चलने लगे तो अनिल ने कहा कि तुम लोग चलो मैं थोड़ी देर और आराम करके चलूँगा ! थोड़ी दूर चलकर हम उस जंगल को पार करते हुए फिर से आराम करने के लिए रुके, कुछ देर तक जब अनिल और देवेन्द्र नहीं दिखाई दिए तो उन्हें फोन लगाया तो पता चला अनिल की तबीयत ठीक नहीं है उसे उलटी हुई और अभी भी वो दोनों लोग कुंड के पास ही है !
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ज्वालपा देवी मंदिर, पौड़ी गढ़वाल |
मैं भी वापिस कुंड की ओर जाने को हुआ तो देवेन्द्र बोला, फिलहाल पेट खाली हो गया है तो थोड़ा राहत है तुम जहां हो वहीं रुककर इंतजार करो, हम दोनों यहाँ से निकल ही रहे है ! 10-15 मिनट बीत जाने पर भी जब वो दोनों नहीं आए तो मुझे चिंता होने लगी, दोबारा फोन लगाया लेकिन फोन लगा नहीं, मैं अब तेजी से कुंड की ओर जाने वाले मार्ग पर चल दिया ! इस मार्ग पर दूर-2 तक कोई नहीं दिखाई दे रहा था, इतने में देवेन्द्र का फोन आ गया, उसने बताया अनिल काफी देर तक वहाँ लेटा रहा और बोल रहा है चलने की इच्छा नहीं हो रही ! अब धीरे-2 देवेन्द्र उसे पकड़कर नीचे ला रहा था, ये सुनकर मेरी चिंता भी बढ़ने लगी, क्योंकि यहाँ जंगल में लेटने से कुछ नहीं होने वाला था जबकि अगर हम नीचे जाते तो स्थानीय लोगों की सहायता ले सकते थे या किसी डॉक्टर को भी दिखा सकते थे ! जब अनिल और देवेन्द्र हमारे पास पहुँच गए तो धीरे-2 हम सब नीचे उतरते रहे ! हम जहां रुके हुए थे वहाँ से थोड़ी दूर चलते ही कुछ घर दिखाई दिए, घर के बाहर कुछ स्थानीय लोग बैठे हुए थे, आराम करने के लिए हम इनके पास ही रुक गए ! घर के मुखिया भूतपूर्व सैनिक थे, उन्होंने हमारी बड़ी खातिरदारी की, मालटे (पहाड़ी नींबू ) कटवा कर हमें खाने को दिए, अनिल का मनोबल भी बढ़ाया और बोले अच्छा किया कि एक जगह ज्यादा देर रुकने की जगह लगातार चलते रहे ! जो हालत फिलहाल अनिल की थी उसमें एक जगह रुकने से परेशानी शरीर पर हावी हो जाती, चलते रहते से रक्त का संचार होता रहता है !
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दूर पहाड़ी की चोटी पर हनुमानगढ़ी दिखाई दे रहा है |
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इन्हीं रास्तों से चलकर हम आए है |
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जंगल से गुजरता एक मार्ग |
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मंदिर मार्ग पर रास्ते में एक विश्राम स्थल |
यहाँ मालटे खाने के बाद अनिल ने फिर से उलटी की, फौजी अंकल बोले, वैसे तो जो फल तुमने खाया था उससे कुछ नुकसान नहीं होता, लेकिन अब तुम्हें 2-3 बार उलटी हो गई है तो पेट खाली हो गया है थोड़ी देर में तुम ठीक हो जाओगे ! यहाँ से हम चले तो सीधे कीर्तिखाल में जाकर ही रुके, समय पौने बारह बज रहे थे, कीर्तिखाल से अपनी गाड़ी लेकर गुमखाल पहुँचने में लगभग 10 मिनट का समय लगा ! जहां कल रात को खाना खाया था वो अभी किसी वजह से बंद थी, बगल में दूसरी दुकान पर भी भोजन की व्यवस्था थी तो हम खाने के लिए यहाँ रुक गए ! खाने में दाल-चावल और रोटी-सब्जी सब कुछ था, आधे घंटे में खा-पीकर फ़ारिक हुए, अनिल की हालत अब पहले से बेहतर थी लेकिन उसने यहाँ खाना नहीं खाया क्योंकि वो अपने पेट को थोड़ा आराम देना चाहता था ! गुमखाल से चले तो हम पौड़ी वाले मार्ग पर मुड़ गए, घुमावदार रास्तों से होते हुए हम सतपुली की ओर चल दिए, जो यहाँ से लगभग 20 किलोमीटर दूर था ! हमारी यात्रा का अगला पड़ाव ज्वाल्पा देवी मंदिर था जो सतपुली से लगभग 20 किलोमीटर दूर है ! सवा एक बजे सतपुली पहुंचे, फिलहाल अनिल थोड़ा बेहतर महसूस कर रहा था, लेकिन सतपुली से आगे बढ़े तो एक पेट्रोल पंप पर रुककर अनिल ने फिर उलटी की ! आज तो अनिल की तबीयत कुछ ज्यादा ही हालत खराब हो गई, इस घटना से एक सबक तो मिला कि बिना जानकारी के जंगल में से कुछ ना खाए, वरना आप भी ऐसी परेशानी में पड़ सकते है ! आधे घंटे बाद पेट्रोल पम्प से चले तो पाटीसैन में रुककर अनिल के लिए एक डॉक्टर से दवा ली ! पाटीसैन से चले तो पौने तीन बजे ज्वाल्पा देवी मंदिर पहुंचे, गाड़ी सड़क के किनारे खड़ी करके हम मंदिर में दर्शन करने के लिए चल दिए !
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फौजी अंकल से बातचीत करते हुए |
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गुमखाल का मुख्य चौराहा |
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ज्वालपा देवी जाने से पहले भोजन करते हुए |
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गुमखाल का रावत भोजनालय |
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गुमखाल से दिखाई देता एक दृश्य |
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गुमखाल से सतपुली मार्ग पर कहीं |
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सतपुली से निकलते हुए लिया एक चित्र |
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सतपुली में पूर्वी नयार नदी पर बना एक नया पुल |
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पुल से दिखाई देता एक दृश्य |
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सतपुली पौड़ी मार्ग |
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सतपुली पौड़ी मार्ग |
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पेट्रोल पंप के पास अनिल का इंतजार करते हुए |
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पहाड़ी को काटकर मार्ग चौड़ा किया गया है |
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पाटीसैन बाजार में लिया एक चित्र |
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पाटीसैन बाजार |
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पाटीसैन में अनिल और देवेन्द्र का इंतजार करते हुए |
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यहाँ से खिरसू का मार्ग अलग होता है |
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ज्वालपा मंदिर के बाहर का दृश्य |
मंदिर के बाहर सड़क किनारे दोनों ओर प्रसाद की दुकानें थी, एक दुकान से प्रसाद लेकर हम मंदिर के प्रवेश द्वार की ओर चल दिए ! चलिए, आगे बढ़ने से पहले आपको इस मंदिर से संबंधित कुछ जानकारी दे देता हूँ, माँ ज्वाल्पा देवी मंदिर, उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले में कफोलस्यू पट्टी के पूर्वी छोर पर पश्चिमी नयार नदी के तट पर स्थित एक पौराणिक धार्मिल स्थल है ! ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार ये कहा जाता है कि ये मंदिर हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में स्थित श्री ज्वालामुखी पीठ का उपपीठ बनकर उत्तराखंड के एक प्रसिद्ध शक्तिपीठ के रूप में प्रतिष्ठित हुआ । ज्वाल्पा देवी को थालियाल और बिष्ट जाती के लोगो की कुलदेवी माना जाता है, इस शक्तिपीठ में नवरात्रों के मौकों पर विशेष आयोजन किया जाता है ! कुंवारी लड़कियां यहाँ मनचाहे वर की कामना लेकर आती है, इस मंदिर के पुजारी कफोलस्यू, अणेथ गांव के अणथ्वाल ब्राह्मण हैं, जो बारी-2 से मंदिर में पूजा अर्चना करते हैं ! शुरुआत में थपलियाल ब्राह्मणों द्वारा माता की पूजा का कार्य अणथ्वाल ब्राह्मणों को सौपा गया, इसलिए दान करने वाले थपलियाल देवी के मैती और दान प्राप्त करने वाले अणथ्वाल देवी के ससुराली कहे गए। इस मंदिर में ज्वाल्पा देवी के अलावा माँ काली, भैरवनाथ, शिवजी और हनुमान जी भी विराजमान हैं।
एक पौराणिक कथा के अनुसार, आदिकाल में दैत्यराज पुलोम की पुत्री देवी शचि ने इन्द्र को पति के रूप में पाने के लिए यहाँ नयार नदी के तट पर माँ पार्वती की कठोर तपस्या की थी ! देवी शचि की तपस्या से प्रसन्न होकर माता पार्वती ने दीप्त ज्वाला के रूप में दर्शन देते हुए उन्हें मनचाहा वरदान दिया था ! माता पार्वती द्वारा देवी शचि को ज्वाला रूप में दर्शन देने के कारण, इस शक्तिपीठ का नाम ज्वाल्पा देवी पड़ा । देवी शचि को मनवांछित जीवन साथी का वरदान मिलने के कारण, यह शक्ति पीठ कुँवारी कन्याओं को मनवंछित पति का वर देने वाला शक्तिपीठ माना जाता है। इसलिये रोज यहाँ सैकड़ों कुँवारी कन्याएं अपने लिए मनवांछित वर का आशीर्वाद लेने आती है ! माँ पार्वती के प्रतीक स्वरूप यहाँ लगातार अखंड जोत प्रज्वलित है, इस परंपरा को निरंतर बनाए रखने के लिए मंदिर में आस-पास के गाँवों से तेल एकत्रित किया जाता है और अखंड जोत को जलाए रखने की व्यवस्था की जाती है ! कहा जाता है कि गढ़वाल राजवंश ने इस मंदिर को लगभग 20 एकड़ जमीन दी है, मंदिर में आने वाले भक्तों का हमेशा तांता लगा रहता है, बसंत पंचमी और नवरात्रों में यहाँ एक मेले का आयोजन भी किया जाता है जिसमें शामिल होने लोग दूर-2 से आते है !
इसके अलावा इस मंदिर से जुड़ी कुछ लोक कथाएं भी है ऐसी ही एक कथा के अनुसार प्राचीनकाल में आस-पास के गाँव के लोग यात्रा करते हुए विश्राम करने के लिए इस स्थान पर रुका करते थे ! ऐसे ही एक बार एक यात्री नमक का कट्टा लेकर यहाँ से गुजर रहा था, आराम करने के लिए वो भी यहाँ कुछ देर के लिए रुका, आराम करने के बाद जब उसने अपना नमक का कट्टा उठाया तो वो इसे उठा नहीं सका ! फिर जब उसने कट्टा खोलकर देखा तो उसमें माता की मूर्ति थी, यात्री मूर्ति को यहीं छोड़कर भाग गया ! बाद में यहीं पास के गाँव में एक व्यक्ति को सपने में माता ने दर्शन दिए और यहाँ मंदिर बनाए जाने की इच्छा जताई, तत्पश्चात इस मंदिर का निर्माण हुआ, लेकिन इन लोक कथाओं में कितनी सच्चाई है ये तो भगवान ही जाने ! चलिए, वापिस यात्रा पर लौटते है जहां हम मुख्य प्रवेश द्वार के सामने पहुँच चुके थे, प्रवेश द्वार से अंदर दाखिल होने के बाद सीढ़ियों से नीचे उतरकर एक मार्ग मंदिर के मुख्य भवन तक जाता है ! इस पैदल मार्ग पर शेड डाली गई है ताकि बारिश और तेज धूप से श्रद्धालुओं का बचाव हो सके, 2-3 घुमावदार मोड पार करते हुए हम मंदिर तक पहुँच गए ! मंदिर तक आने वाले मार्ग के दोनों ओर बीच-2 में कई दुकानें सजी है जहां पूजा सामग्री से लेकर लॉकेट, कड़े, सिंदूर, बच्चों के खिलौने और अन्य वस्तुएं भी थी ! मंदिर परिसर में दाखिल होते ही बाईं ओर जूता घर है, जबकि सामने दाईं ओर नारियल फोड़ने की व्यवस्था है ! जूते उतारकर रखने के बाद हाथ-मुंह धोकर हम दर्शन के लिए मंदिर में चल दिए, इस समय मंदिर में किसी का विवाह हो रहा था तो भीड़-भाड़ थोड़ा ज्यादा थी, लेकिन थोड़ा इंतजार करने के बाद आराम से दर्शन हो गए !
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ज्वालपा मंदिर का प्रवेश द्वार |
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मंदिर जाने का मार्ग |
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मंदिर जाने के मार्ग पर सजी एक दुकान |
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मंदिर जाने का मार्ग |
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मुख्य भवन का एक दृश्य |
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पौड़ी स्थित माँ ज्वालपा देवी का दरबार |
मंदिर में दर्शन करके हमने प्रसाद में लाया नारियल भी फोड़ लिया और माता को भोग लगाने के बाद मंदिर परिसर में अन्य देवी-देवताओं के दर्शन करने लगे ! अपनी मनोकामना पूर्ण होने के बाद बहुत से श्रद्धालुओं ने माता को चांदी का छत्र भी चढ़ाया हुआ है, परिसर में स्थापी सभी मंदिरों में दर्शन करके हम घाट की ओर चल दिए, नयार नदी गंगाजी की सहायक नदी है जो व्यासघाट में जाकर गंगा में मिलती है ! प्राप्त जानकारी के अनुसार नयार नदी का प्राचीन नाम नारद गंगा था, इस नदी की दो शाखाएं है पूर्वी और पश्चिमी नयार नदी, दोनों नदियों की संयुक्त लंबाई लगभग 200 किलोमीटर है ! अपने उद्गम स्थल के पास तो इन नदियों की चौड़ाई लगभग 2 फुट ही है, लेकिन घने जंगली क्षेत्र से आने के कारण पूर्वी नयार में पानी अधिक है ! नयार नदी किसी ग्लेशियर से नहीं, अपितु पानी के लिए ये बारिश पर आश्रित रहती है, गैर वर्षा ऋतु में इन नदियों का जल स्तर आधा रह जाता है जबकि बारिश के दिनों में ये नदी भी कभी-2 उफान पर होती है ! नयार नदी के किनारे जो भी क्षेत्र बसे है उनके लिए ये जीवनधारा है क्योंकि स्थानीय लोग इसके जल को सिचाईं से लेकर दैनिक उपयोग में लाते है ! चलिए, वापिस घाट पर चलते है जहां हम नदी के पानी में पैर डालकर अपने सफर की थकान दूर कर रहे थे ! यहाँ बैठकर काफी सुकून मिला, घाट से थोड़ी दूरी पर नदी के ऊपर एक झूला पुल भी बना है ! काफी देर तक यहाँ फ़ोटो सेशन भी चलता रहा, आस-पास के नज़ारे वाकई मनमोहक थे !
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नयार नदी के घाट पर जाने का द्वार |
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देवेन्द्र और अनिल (दाएं से बाएं) |
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घाट पर लिया एक चित्र |
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सफर की थकान मिटाते हुए अनिल |
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बाबा यहाँ आकर प्रसन्न है |
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एक फोटो मेरी भी खींच दो कोई |
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सफर के साथी |
घाट के पास कुछ दुकानें भी सजी थी यहाँ भी मंदिर मार्ग पर सजी अन्य दुकानों की तरह सामग्री उपलब्ध थी, हमने भी यहाँ से कुछ खरीददारी की ! वैसे फिलहाल इस नदी का जलस्तर ज्यादा नहीं था, लेकिन बारिश के मौसम में नदी का पानी घाट के किनारे बनी सीढ़ियों तक आ जाता है ! स्नान करते समय पानी के तेज बहाव से बचने के लिए नदी किनारे लोहे की ज़ंजीरें भी लगाई गई है ताकि तेज बहाव से कोई दुर्घटना ना हो ! यहाँ इतनी शांति थी कि मन कर रहा था नदी में पैर डालकर घंटों ऐसे ही बैठकर नदी के बहते जल को देखते रहो ! यहाँ से जाने का मन तो नहीं हो रहा था लेकिन अभी इस यात्रा में कुछ अन्य धार्मिक स्थल भी देखने थे इसलिए घाट पर कुछ समय बिताने के बाद हमने लगभग साढ़े तीन बजे वापसी की राह पकड़ी ! घाट से वापिस ऊपर आने में हमें ज्यादा समय नहीं लगा, अगले 10 मिनट बाद हम मंदिर के बाहर अपनी गाड़ी तक पहुँच गए ! यहाँ से गाड़ी लेकर हम यात्रा के अगले पड़ाव की ओर चल दिए, जिसका वर्णन मैं यात्रा के अगले लेख में करूंगा !
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पिताजी के साथ एक फोटो |
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नदी पर बना झूला पुल दिखाई दे रहा है |
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मंदिर से वापिस आते हुए |
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मंदिर मार्ग के किनारे सजी दुकानें |
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फिलहाल ज्यादा भीड़ नहीं थी |
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सामने मंदिर का प्रवेश द्वार है चित्र वापसी में लिया गया है |
क्यों जाएँ (Why to go): अगर आपको धार्मिक स्थलों पर जाना पसंद है और आप उत्तराखंड में कुछ शांत और प्राकृतिक जगहों की तलाश में है तो निश्चित तौर पर ये यात्रा आपको पसंद आएगी ! शहर की भीड़-भाड़ से निकलकर इस मंदिर में आकर आपको मानसिक संतुष्टि मिलेगी ! इस मंदिर के अलावा आप आस-पास के कुछ अन्य धार्मिक स्थलों के दर्शन भी कर सकते है !
कब जाएँ (Best time to go): आप यहाँ साल के किसी भी महीने में जा सकते है, हर मौसम में यहाँ अलग ही नजारा दिखाई देता है ! कुछ खास त्याहारों और नवरात्रों में यहाँ ज्यादा भीड़ रहती है इसलिए ऐसे समय में आते हुए अतिरिक्त समय लेकर चले !
कैसे जाएँ (How to reach): दिल्ली से इस मंदिर की दूरी मात्र 320 किलोमीटर है जिसे आप 7-8 घंटे में आसानी से पूरा कर सकते है ! दिल्ली से कोटद्वार आप बिजनोर-नजीबाबाद से होकर जा सकते है, कोटद्वार से आगे गुमखाल-सतपुली होते हुए यहाँ पहुँचा जा सकता है ! अगर आप ट्रेन से यहाँ आना चाहते है तो कोटद्वार यहाँ का नजदीकी रेलवे स्टेशन है जो इस मंदिर से लगभग 75 किलोमीटर दूर है, स्टेशन से यहाँ आने के लिए आप टैक्सी कर सकते है !
कहाँ रुके (Where to stay): ज्वालपा देवी मंदिर के आस-पास रुकने के आपको कई होटल और होमस्टे मिल जाएंगे, जिनका किराया 1000 रुपए से शुरू हो जाता है ! इसके अलावा पौड़ी यहाँ का नजदीकी सबसे बड़ा शहर है, आप चाहे तो पौड़ी में रुककर यहाँ दर्शन करने आ सकते है !
क्या देखें (Places to see): ज्वालपा देवी मंदिर देखने के बाद आप पौड़ी के दर्शनीय स्थलों का भ्रमण कर सकते है और चाहे तो कीर्तिखाल स्थित भैरवगढ़ी और हनुमानगढ़ी के दर्शन भी कर सकते है !